Author Topic: Re: Information about Garhwali plays-विभिन्न गढ़वाली नाटकों का विवरण  (Read 92237 times)

Bhishma Kukreti

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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]


[नाटक -केवल प्रशिक्षण हेतु ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती

दृश्य 5 से अग्वाड़ी

-----------------------------------------------दृश्य - 6 , Scene 6 - -----------------------------------------
             [   डा मदन बिजणु च ]

[ डा मदन सियुं च अर सर्यूळ बिजाळणो आंद ] सर्यूळ- डा साब साब ! खड़ा ह्वेन जरा।
मदन - क्या ह्वे ?सर्यूळ- मेरी घरवळि - वा बिजणी नी च।  मीन कथगा इ कोशिस कार। मि तै कुछ ठीक नी लगणु च।
[मदन गाउन पैरदो , द्वी भैर जांदन ]
-----------------------------------------------दृश्य -7   , Scene 7   -----------------------------------------
[मिसेज सर्यूळ सियीं च। मदन आर सर्यूळ आदन।   डा मदन तपास करद।
मदन मुंड हिलांद -
सर्यूळ- -क्या वा ?मदन -हाँ वा अब यीं दुन्या मा नी च। सर्यूळ- हार्ट अटैक ?
मदन [सोचिक ]-वींक साधारण तब्यत कन छै ?
सर्यूळ- -वातरोग छौ पर ठीक छे। मदन - अजकाल कै डॉक्टरन बि तपास कार ?
सर्यूळ- डाक्टर ? सालों से वा क्या हम दुयुं मादे क्वी डाक्टरम नि गेवां। मदन -मतलब हार्ट अटैक का क्वी चांस नि छया ?सर्यूळ- -ना !मदन -नींद ठीक  आंदि छे ?
सर्यूळ- हाँ ठीक था। मदन -नींद की गोळि  गाळी ?सर्यूळ- -ना ना कबि ना।  वींन वै गोळी खै ज्वा  आपन दे छे। मदन -हूँ !
-----------------------------------------------दृश्य - 8   , Scene  8 -----------------------------------------
                     [समुद्रौ छाल ]
[महेश , आलोक , नंदा , धूमल , ब्रजमोहन समुद्रौ किनारा पर समुद्रौ तरफ दिखणा छन ]
बृजमोहन  - कखि बि मोटर बोत का नामो निशाण नि दिखेणु च।
नंदा - यु तो बीरान द्वीप च तो -अर इख सब चीज धीरे धीरे चल्दन।
धूमल - मौसम का क्या हाल ह्वाल ?
बृजमोहन -उन त ठीक दिखेणु च।
धूमल - कुछ पता नी कि कैबरी खराब ह्वे जावो। बृजमोहन -तूफ़ान ?
[समुद्र माँ जोर की हवा ]
धूमल - बड़ी भूक लगीं च ब्रेकफास्ट ?
[सब वापस चल जांदन ]



-----------------------------------------------दृश्य -9    , Scene 9  -----------------------------------------
                 टेबल मा ब्रेकफास्ट
[सर्यूळ छोड़िक सब नास्ता करणा छन। सर्यूळ नास्ता दीणु च ]
कोमल - यु बड़ो मुरझायुं  लगणु च।
डा मदन - यदि वैन  नास्ता बणै अर दीणु च तो वो बि बड़ी बात च। मिसेज सर्यूळ का बगैर -
कोमल -वीं तै क्या होइ ?
डा मदन - वा सियां सियां मा इ मथिन चलि -
[सब सुस्कारी  भरदन ]
नंदा - दुखदाइ ! द्वीप मा आणो बाद द्वी मौत।
आलोक - मौत का असली कारण ?
डा मदन - कुछ बुले नि सक्यांद।
आलोक - तो सर्टिफिकेट ?
मदन - मि इनि नि दे सकुद किलकि वींक केस हिस्ट्री पता इ नी मि तै।
नंदा - हाँ ब्याळि टेप सूणिक वींक व्यवहार झक्झट्या मतबल नर्वस सि अवश्य छौ। फिर शायद हार्ट फेलियर ?
मदन - अवश्य वींक हार्ट बीत बंद ह्वेन पर क्यान ? यु बथाण कठण च।
ब्रजमोहन - वींन रात क्या खाई , क्या पेयी ? यु पता लगाण बि जरूरी ?
मदन - सर्यूळन बोलि कि क्वी इन चीज नि खै छौ।
बृजमोहन - अजी वैक बुलण से क्या हूंद ? वु कुछ बि बोल सकुद।
धूमल - तो आपक क्या ख़याल च ?
बृजमोहन - किलै ना ? ब्याळिक बात माना कुछ हद तक सही हो तो ? अब यदि वा क्वी भेद जाणदि हो अर यदि वा भेद खुलण पर उतारू ह्वे जाव तो ? वींक भेद खुलण से वींक पति खतरा मा ऐ सकुद छौ। अर भेद खुलण से वैक क्या ह्वै सकुद वु जाणदि व्ह्वाल कि ना ? तो भेद नि खुलणो बान यदि वैन चाय मा कुछ मिलै दे हो तो वैक भेद सदा का वास्ता छुप गे कि ना ?
महेशा - हाँ तर्क का हिसाब से सही बि ह्वे सकद।  किन्तु क्वी अपण घरवळि दगड़ इन नि कर सकुद।
बृजमोहन - कैक    गौळ फँस्युं हो तो वु भावना से दूर ह्वे जांद।  भवनाहीन ![सर्यूळ का प्रवेश , वु चरि तरफ इना ऊना दिखुद ]
सर्यूळ- टोस्ट नि बण सक्दन।  आज आनंद नि आई तो ब्रेड बि नि ऐन।  उन यदि वु नि आंद तो वु अपण भाई भिजद छौ पर आज अबि तलक।
महेशा - सर्यूळ ! तेरी घरवळि मौत कु बड़ो दुःख च। हम सब्युंक तरफ़ान पस्त्यो स्वीकार कारो। सर्यूळ- जी धन्यवाद। [चल जांद ]

-----------------------------------------------दृश्य -  10  , Scene 10  -----------------------------------------

                            [ समुद्रौ किनारा ]
[बृजमोहन , धूमल किनारा पर जायजा लीणा छन , कुछ दूर डा मदन समुद्रौ तरफ़ दिखणु च।  कुछ दुरी पर ही कोमल अर नंदा बचळयाणा छन। ]
धूमल - मोटर बोट -?
बृजमोहन -मि बि वी सुचणु छौं जु आप।  प्रश्न च कि आखिर मोटर बोट किलै नि आणि छन। 
धूमल -उत्तर मील क्या ?
बृजमोहन - मेरी समज से यु साजिस कु हिस्सा च कि इना बोट इ नि आवन।
[मेहश नजदीक आंद ]
महेश - हाँ क्वी बि मोटर बोट नि दिखेणी छन।
बृजमोहन -जनरल साब ! क्या तुम बि सुचणा छंवां कि बोटन नि आण ?
महेशा - हाँ इन लगणु च कि बोटन नि आण। जब तक बोट नि आलि हम द्वीप से भैर नि ह्वे सकदां। अर हमर अंत इखि लिख्युं च।  इन लगद हम तै इखि परम शान्ति मिलण वळ च। [धीरे धीरे फंड चल जांद ]
बृजमोहन - एक हैंक पागल ! जन बुल्यां हम सबुन इखि मरण ! पर म्यार दिमाग तच गे वैक बात सुणिक।
धूमल - हाँ म्यार दिमाग बि घुमण मिसे गे।
[मदन बृजमोहन अर धूमल का तरफ आंद। इथगा मा सर्यूळ आंद।  वैक रंग उड़्यूं च ]
सर्यूळ -डा साब डा साब एक बात ?
डा मदन - बोल क्या बात च ?
सर्यूळ -याद च उखम दस सैनिकुं मिनिएचर मूर्ति छे ?
डा मदन - हाँ दस मिनिएचर मूर्ति छे। पर हाँ दस ही मूर्ति छे।  तो ?
सर्यूळ - अब सिर्फ आठ मूर्ति छन उखम।
[कोमल अर नंदा बि उखम आंदन ]
कोमल - यु जु हम तै इख लाइ देर से बिजद , शायद ! बगैर सहायता का वु कुछ नि क सकुद शायद।
नंदा - काश उ जल्दी आंद तो मीन तो इख बिटेन चल जाण छौ।
कोमल - हम सब जाण चाणा छंवां।
नंदा - देख अब बि दुबर सर्यूळयाणी बारा मा तेरी राय बदिल च कि   ना ?
कोमल - न ! इन च जनि वींन सूण तो वा बेहोस ह्वे।  सर्यूळ का हतुं से चाय की ट्रे गिर। अर वैन जु हमतै समझाई वु तर्कसंगत नी च। मतलब कुछ न अकुछ तो यूँ द्वी झणुन कार च।
नंदा -वा इन लगणी छे जन बुल्यां अपण छाया से इ डरणि हो धौं !
कोमल - मि तै याद आणी च कि टैक्सिन एक बच्चा।  पाप च तो समिण ऐ जाल।  उखमा क्या च।
नंदा - पर हौरुं क्या ? कखि ना कखि अभियोगूँ मा सत्यता तो छ कि ना ? या असत्य ?
कोमल - धूमलन तो स्वीकार बि कार कि 21 आदिवास्युं मृत्यु का पैथर वैक गलती च।
नंदा - हाँ पर वो तो आदिवासी इ छया।
कोमल - आदिवासी मनिख नि हूंदन ? पर हाँ और अभियोगुं तै अभियोग नि बुले सकयांद जन कि जज आलोक का इ केस ले लेदि।  जज अपण कर्तव्य निभाणु छौ। बृजमोहन का केस बि अर म्यार इ केस ले लेदि।
नंदा - क्या ?
कोमल -मीन पैल नि ब्वाल , किलैकि उखम मरद लोग छया तो मि चुप रै ग्यों। 
नंदा -अच्छा ?
कोमल -मृदुला ? वा मेरी असिस्टेंट छे। पर मि तैं भौत बाद पता चौल कि वा भली लड़की नि छे। वींक व्यवहार भलु छौ , साफ़ सुथरी छे अर उत्साही।  पर दिखलौटी बि। मि पसंद करदु छौ। मि तै पता चौल कि वा कै 'कठिनाई ' मा फंसीं च। मीन वीं तै निकाळण इ छौ अरे पाप  कै तै सुहांद ?   वींन नदी मा फाळ मारिक जान दे दे।
नंदा - वींक आत्महत्या बाद क्या तीन आत्मग्लानि महसूस कार ?
कोमल -पर जब मेरी क्वी गलती इ नि छे तो क्यांक आत्मग्लानि ?
नंदा - पर तेरी कठोरता से वींन यु कदम उठाइ  ?
कोमल - केक कठोरता। वींन  पाप कार तो पाप छुपाणो वींन आत्महत्या कर दे। यदि व भलु व्यवहार करदी तो इन कबि बि नि हूंद।
[नंदा घृणा से कोमल तै दिखदी , द्वी स्टेज से भैर अर डा मदन , धूमल अर बृजमोहन स्टेज का केंद्र मा आन्दन ]
मदन - धूमल जी एक बात बुलण छे।
धूमल -हाँ ?
मदन - मैकमोहन  की मृत्यु कन ह्वे होलि ? क्या आत्महत्या कौर होलि ?
धूमल -नही आत्महत्या नि ह्वे सकद। मै लगद वैक हत्या ह्वे।
मदन -अर मिसेज सरयूळ ?
धूमल -हाँ वा आत्महत्या कर सकिद।  मदन - अर फिर दस मिनिएचर मूर्ति ? अर अब आठ इ छन ?
धूमल -पर जरा कविता पर ध्यान तो द्यावो  -

दस सैनिक घुमणो गेन
एकक सांस रुकि गे तब नौ रै गेन
नौ सैनिक कमरा मा देर रात तक रैन
एक से तो बिज  इ  नी अर तब आठ रै गेन
आठ सैनिक ऊख गेन
यीं कविता की इ लैन सही फिट हूणि छन। मैकमोहन की सांस फंस अर सांस रुक अर मिसेज सर्यूळ से तो बिज इ नी च। इलै यु बि एक रहस्य च।
मदन - तो तुम स्वीकार करणा छंवां। पर इखमा कु शामिल च?  सर्यूळन कसम खैक ब्वाल कि हमर अलावा  ये द्वीप मा क्वी नी च। अर उ झूठ नि बुलणु च पर डर्युं अवश्य च।
धूमल - आज बि मोटर बोट नि आई। किसनदत ये द्वीप तै तब तक बिलकुल अलग करण चांदु जब तक वैक काम खतम ह्वे  जांद ।
मदन - यु आदिम पागल च।
धूमल - एक बात और।  द्वीप पथरीला च तो हम ज बि छुप्युं होलु वै तै खोज सकदां। जल्दी इ वै तै खुज्याण पड़ल।
मदन - वु खतरनाक ह्वे सकुद।
धूमल - मि कम खतरनाक नि छौं हाँ यदि उ म्यार पकड़ मा ऐ जावो तो। हाँ बृजमोहन की सहायता लीण पोड़ल।  जनान्युं मा कुछ नि बुलण हाँ। जनरल महेशा अर आलोक जी तै तंग करणै जरूरत नी च। हम तिनि ये काम तै फारिक कर ल्योल्या।
-----------------------------------------------दृश्य -  11, Scene  11 -----------------------------------------
 
         ------------------------खोज जारी -----------------------------------
बृजमोहन - हाँ तो साथियो काम शुरू।  कैमा रिवॉल्वर तो नी च ?
धूमल [कीसा थपथपांद ] - नै मीम छैंच।
बृजमोहन - औ हमेशा गन का साथ ? हैं ?
धूमल - हाँ आदतन। कबि जब खतरा हो तो जरूरत पड़ जांद कि  -
बृजमोहन - ये से अधिक खतरा तो कबि नि रै होलु। यदि उ पागल आदिम यख च तो अवश्य ही वैमा नया हथियार अवश्य होलु। वैमा चक्कु वुक्कु नि होलु।
डा मदन - नही नही इन लोग बड़ा शांत हूंदन। यी लोग आनंदमय दिखेंदन ना कि हथियार से लैस।
बजमोहन - हाँ पर ये द्वीप मा वु इन शांत नि होलु।
[बृजमोहन , मदन , धूमल खुज्यांद खुज्यांद आनदं जख जनरल महेश बैठ्याँ छन।  धूमल पास जांद ]
बृजमोहन -जनरल साब !शांत जगा हैं ?
महेशा - हाँ इथगा कम समय च।  तो मेरी प्रार्थना च कि मि तै क्वी डिस्टर्ब नि कारु।
बृजमोहन - ना ना हम तंग नि करला आप तै। हम बस द्वीप मा घुमणा छंवां। कि यदि क्वी छुप्युं हो तो।
महेशा - म्यार मतलब यु नि छौ।  आप अवश्य अपण काम कारो।
[बृजमोहन धूमल , मदन का पास जांदन ]
धूमल - क्या बुलणा छा  ?
बृजमोहन - कि समय नी च अर डिस्टर्ब नि कारो।
मदन - पता नी क्या अजीब सि व्यवहार ! कुछ अजीब … चलो खोज जारी रहे।
 







स्वांग --- यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती
---------------------------यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]नाटक कु शेष भाग दृश्य  12 माँ पौड़ो ------------------
------------------------------ यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]Next Part of Play in Scene  12 -------------------





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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ] नाटक का 11 दृश्य से आगे


[नाटक -केवल प्रशिक्षण हेतु ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती



----------------------------------------------दृश्य 12 -   , Scene 12  -----------------------------------------

--------------------समुद्रौ छाल /किनारा -----------------------------------------
[जनरल महेशा समुद्रौ तरफ मुख करिक बैठ्याँ छन।  नंदा आंद।  वु बैठणो इशारा करद ]

महेश - औ तो तू छे -
नंदा [बैठद ]- आप तै इखम बैठिक समुद्र दिखणम आनंद आंद?
महेशा - हाँ , आनंददायक जगा च। प्रतीक्षा करणो वास्ता बढ़िया -
नंदा -प्रतीक्षा ? क्यांक प्रतीक्षा ?
महेशा -अंत। पता च ना ? जाणदी छे इ ना ? सच बात च कि ना ? कि हम सब अंत की जग्वाळ करणा छंवां।
नंदा -क्या मतलब ?
महेशा -मतलब ! हम क्वी बि ये द्वीप नि छोड़ सकदां।  यो इ योजना च। तू बि जाणदी छे।  बस इनमा तू नि जाणदी कि चैन  कन  लिए जाय /
नंदा -आनंद ? चैन ?
महेशा -हाँ ! देख एक दिन आंद जब पर तू अबि जवान छे।  चैन आंद जब त्वे तै पता चल जांद कि तुमन जु करण छौ स्यु कौरि आल - अर अब अधिक दिन तक भार नि उठए सक्यांद। तू बि एक दिन अनुभव करली कि अब कुछ नी बच्युं च।  मि  अनीता तै दिल से प्यार करदो छौ।
नंदा -अनिता आपकी घरवळि छे ?
महेशा -हाँ वा मेरी घरवळि छे।  बड़ी बिगरैलि छे।  वा खुस रौंद छे।  मि वीं पर गर्व करदु छौ।  मि वीं से भौत प्रेम करदु छौ - तबि त मीन इन कार -
नंदा -तुमर मतलब -
महेशा -अब मना करिक क्वी फायदा बि नी च-जब हमन बचण इ नी च त । मीन इ राजेन्द्र तै मौत का मुख मा भेजि।  मि राजेन्द्र तै पसंद करदु छौ।  बड़ो कर्तव्यपरायण अर उत्साही युवक छौ।  पर वेक नाजायज संबंध अनिता का साथ छया।  मीन प्रेम पत्र पढ़िनं। मीन वै तै इन जगा भेज कि बचण नामुमकिन छौ।  एक तरां से हत्या इ छे। मि न्यायप्रिय अर अनुशासन प्रिय छौं तो मि तैं वैबगत लग कि मीन उचित ही कार। मि तै क्वी पश्चाताप नि छौ वै तै डंड मिलण इ चयेंद छौ।  पर फिर वेक बाद -
नंदा -हैं ? वैक बाद ?
महेशा -पता नि वैक बाद कुछ ह्वे गे। मि तै नि पता कि मेरी घरवळिन अंदाज लगै होलु।   मेरी घरवळि कखि दूर चल गे अर फिर मरि गे।  मि अकेला ही -
नंदा -अकेला ?
महेशा -हाँ अकेला ही भुगतण सब तै अंत -सब्युंक अंत -त्वै तै बि आनंद होलु कि अंत मा -
नंदा[एकदम उठद ] -पता नी क्या बखणा छंवां।
महेशा -मेरी बच्ची ! सब जाणदु छौं।
नंदा -तुम कुछ नि जाणदा।  कुछ बि ना।
महेशा -अनिता ?
----------------------------------------------दृश्य  13 -   , Scene   13 -----------------------------------------
[समुद्रौ किनारो पर पख्यड़ मा  डा मदन अर बृजमोहन बैठ्याँ छन अर धूमल तै उतरद दिखदन ]
बृजमोहन -मि तै स्यु धूमल कुछ अजीब आदिम लगद।  पता च एक बारा मा म्यार विचार क्या छन ?
डा मदन -क्या ?
बृजमोहन -यु गलत आदिम च।
डा मदन -कै हिसाब से ?
बृजमोहन -पता नी पर।  ये पर विश्वास नि करे सक्यांद कताई न।
[ धूमल आंद ]
धमूल - भैर तो मौत ही ह्वे सकद।  बस भीतर ही सुरक्षित जगा च।


----------------------------------------------दृश्य 14  -   , Scene  14   -----------------------------------------

[एक कमरा का भैराक भाग।
[बृजमोहन , धूमल अर मदन कॉरिडोर का समिण सुरक सुरक चलणा छन ]
बृजमोहन - जै कमरा मा मिसेज सर्यूळ की मौत ह्वे वै कमरा मा क्वी च।
डा मदन - तीन की गिनती पर हम तीनि दरवाजा पर धक्का मारदां।  हम तीन छंवां तो हम वैपर  भरी रौला।
[ तीन की गिनती पर सब धक्का मरदन।  द्वार भड़ाक से खुलद।  भीतर सर्यूळ कुछ कपड़ों लेक खड़ो च ]
बृजमोहन - सर्यूळ जी ! हमन समझ क्वी हौर कमरा पुटुक च।
सर्यूळ - मि इक बिटेन कुछ सामन लेकि तौळ छुटु  कर्मा मा जाण चाणु छौं। कै तै ऐतराज तो नि ह्वाल ना ?
मदन - हाँ वुख रौ ।  कै तै बि क्यांक ऐतराज ? जा जा
सर्यूळ -जी धन्यवाद [जांद ]
मदन [बिस्तर मा सफेद चीज देखिक ]-कास मीम जांचको सामान हूंद।  मि पता लगाण चाँद कि वो क्या रसायन छौ ?
धूमल - कुछ ना जी।  पता लगाण कठण इ च।  कुछ नि ह्वे सकद।
बृजमोहन - यु बड़ो सुरक सुरक चलदो हाँ ! मीन चिताइ इ नी कि वु कब सीढ़ी चौड़ ?
धूमल -हाँ तबि त हमन समज कि क्वी अजनबी कमरा मा च। हम सब आठ आदिम छंवां।  हमन फोकट मा डर बिठै याल।  द्वी मनिखों मौत अचानक ह्वे अर यांक संबंध हम तै - नि जुडण चयेंद।  दुर्घटना छन
डा मदन - पर मैकमोहन की मौत आत्महत्या  नि ह्वे सकद।
धूमल  -क्या या दुर्घटना ह्वे सकद ?
बृजमोहन - अजीब दुर्घटना। पर मिसेज सर्यूळ की मौत ? डा मदन आपन क्वी गोळी की बात कर छे कि ना ?
डा मदन -क्या मतलब ?
बृजमोहन -आपन ही तो बोल छौ कि आपन वीं तैं गोळी दे छे।
मदन - हाँ पर वो माइल्ड सेडेटिव ट्राईनॉल छौ।  ट्राइनोल से बिलकुल बि हानि नि हूंद
बृजमोहन - ह्वे सकद च कि अधिक मात्रा की गोळी दे हो अर या दुर्घटना ह्वे गे हो।
डा मदन [गुस्सा मा ] आपका अर्थ क्या च ?
बृजमोहन -ह्वे सकद कि आपसे गलती ह्वे गे हो।  सम्भव नि ह्वे सकद ?
डा मदन - नहीं क्वी इन गलती नि ह्वे।  तुमर मतलब क्या च कि जाण बूजिक गलती कार ?
बृजमोहन - ह्वे सकद च कि गलती ह्वे हो अर -
धूमल [बृजमोहन से ]- भई आक्रमक हूणै क्या जरूरत ? हम सब सब एकी नाव का सवारी छंवां। हम तै सहयोग अर शान्ति से काम लीण चयेंद। अर तेरी पाप कहानी को क्या ?
बृजमोहन - सब झूठ च। तू मि तै चुप कराणो कोशिस करणु छे।  जरा अपण बारा मा त बता ?
धूमल - म्यार बारामा क्या ?
बृजमोहन - घुमण घामणो अयुं छे अर रिवाल्वर लेकि अयुं छे।  क्या कारण च रिवाल्वर का साथ ?
धूमल -अरे कबि बि कुछ ह्वे गे तो ?
बृजमोहन -फिर ब्याळि रात किलै नि बथै ?
धूमल -हाँ पर जरूरत ही नि पोड।  मि तै एक प्रदीप नामक आदिमान खूब पैसा दे छौ अर ब्वाल छौ कि सबूं पर नजर रखण बीएस।  मीन बि स्वाच नुक्सान क्या च।
बृजमोहन -तो या बात ब्याळि किलै नि बथै ?
धूमल - अरे कै तै पता छौ कि इन इन बारदात ह्वे जाली ? कै तै छौ पता ?
बृजमोहन - अर अब कुछ हौर इ ह्वे गए क्या ?
धूमल - हाँ।  द्वी मौत ह्वे गेन। अर अब लगणु च मी बि तुमर इ दगड़ वींइ नाव माँ छौं।  मि तै इक लाणो वास्ता इ मि तै पैसा दिए गे छ।  प्रदीप वास्तव मा किसनदत्त कु ही आदिम छौ। हम सब जाळ मा फंस्यां छंवां। सब किसनदत्त का खेल हूणा छन।  पर किसनदत्त छ कख च ?
[घंटा बजणो आवाज ]

----------------------------------------------दृश्य 15   -   , Scene 15  -----------------------------------------

-------------दुफरा भोजन , टेबल ---------------------
[ बृजमोहन , धूमल , डा मदन टेबल का चारों तरफ बैठ्याँ छन , सर्यूळ पैथर खड़ो च ]
सर्यूळ -आशा च लंच संतोषप्रद होलु। मटन - मांश बि च। मीन कुछ आलु उसेन अर कुछ जयकादार भुज्जी -
धूमल - अच्छा भोजनसामग्री त छैं च ना ?
सर्यूळ -हाँ डब्बाबंद भोजन खूब च।  आज बि आनंद नि आई।
धूमल -हाँ चिंता की बात च।
[कोमल कु प्रवेश ]
कोमल - मौसम भौत खराब हूणु च।  समुद्र मा बड़ी बड़ी लहर चलणा छन।
]आलोक आंद ]
आलोक -आज सब व्यस्त ही रैन ?
[नंदा आंदि ]
नंदा - अरे क्या मै लेट छौं ?
कोमल - तू अंतिम सदस्य नि छे।  जनरल महेशा बि अबि नि ऐन।
सर्यूळ [कोमल से ] आप बैठिल्या या प्रतीक्षा ?
नंदा - जनरल साब तो ध्यानमग्न छन अर मै नि लगद वूं पर छल्लारो कुछ फरक पड़णु होलु।  सुबेर से -कुछ अजीब मनस्थिति मा छया।
सर्यूळ - मि जैक ऊँ तै लांदु।
मदन - ना ना मि जांदू अर ऊँ तै लांदु। [जांद ]
सर्यूळ -आप अंडा भुर्जी या चिकेन रस्सा ? या ?
नंदा - बड़ो तूफ़ान आण वळ च।
बृजमोहन - ब्याळि ट्रेन मा एक बुड्या बि बुलणु छौ की बड़ो तूफ़ान आण  वळ च।  यूँ तै कनकैक पता चलदो भै ?
सर्यूळ -क्वी दौड़ीक आणु च    ....
[डा मदन दौड़िक भितर आंद ]
मदन - जनरल महेशा -
नंदा - मृत ?
मदन - हाँ महेशा जी मरि गेन।








   




अनुवाद - भीष्म कुकरेती
---------------------------यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]नाटक कु शेष भाग दृश्य 16   माँ पौड़ो ------------------
------------------------------ यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ] Next Part of Play in Scene  16  -------------------






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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]
[नाटक -केवल प्रशिक्षण हेतु ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती
दृश्य 15 से आगे -


----------------------------------------------दृश्य    16 -   , Scene 16   -----------------------------------------

------------------------[महेश का मृत शरीर ]-----------
[नंदा , धूमल , बृजमोहन , कोमल , आलोक, सर्यूळ  खड़ा छन। डा मदन शरीर की जांच करणा छन। ]
आलोक - जी डाक्टर ?
मदन - हार्ट अटैक कु तो सवाल इ पैदा नि हूंद ।  कै वजनदार चीज से सर का पिछ्ला हिस्सा पर गहरी चोट।
आलोक - अब सब कुछ साफ़ च। आज मि जब बालकोनी मा छौ तो सबकी हरकत दिखेणी छै।  आप हत्यारा की खोज करणा छया ?
धूमल - अवश्य।
आलोक - अब साफ़ च कि मिसेज सर्यूळ अर मैकमोहन की मौत  ना त आत्महत्या  च अर ना हि एक्सीडेंट च। अर तुम बि यही अंदाज लगाणो ह्वेल्या कि किसनदत्त कु हम सब तै इख बुलाणो क्या उदेस्य  च।
बृजमोहन - वु पागल च।
आलोक -हाँ ह्वे सकद।  पर अब हमारो एकी उदेस्य च कि कन कै बचे जावो।  जिंदगी बचाण आवश्यक च।
मदन - पर क्वी बि द्वीप मा नी च।
आलोक -वै हिसाब से तुम  सही छंवां।  पर मीन सुबेर स्वछ अर ये नतीजा पर पौंछु कि किसनदत्त इखि च। बिलकुल साफ़ च कि किसनदत्त इखि च।  अर हम मादे क्वी एक च।
नंदा - नही नही।
आलोक -मेरी बच्ची ! जु बात दिखेणी च वै तै इंकार नि करण चयेंद।  दस सैनिकुं मिनिएचर छया।  तीन तो खतम अब छन सात।  याने असल मा छ्युं मौत हूण। तीन तो शक से बाहर ह्वे गेन अब सातों मादे क्वा च जू शक से भैर ह्वे सकद ?
धूमल - सर्यूळ ?
आलोक -कै हिसाब से वु शक का दायरा से भैर च ?
धूमल - एक तो मूर्ख जन च फिर वैक घरवळि की बि हत्या ह्वे।
आलोक -मेरी अदालत मे भौत सा केस ऐन जखमा पतिन पत्नी की हत्या कार।
धूमल - तो तुमर हिसाब से हत्यारा हम मादे क्वी च अर हम सब शक का दायरा मा औंदा ?
आलोक -देखो पद , गुण अर हौर चीजुं तै ध्यान मा रखिक  हम तै नि सुचण चयेंद। क्या हम मादे नी च जैन मिसेज सर्यूळ या मैकमोहन तै जहर खलै होलु ? क्या हम मादे नि ह्वे सकद जैन महेशा की हत्या कर हो ? क्या हम मादे हत्यारा नि ह्वे सकद क्या ?
बृजमोहन - द्याखो जी ! शक करे गे कि क्वी खिड़की रस्ता मैकमोहन का कमरा मा गे। पर भितर रैक ज्यादा सुभीता छे।  याने हम मादे ही क्वी सरलता से कर सकद छौ।
नंदा - अर मिसेज सर्यूळ ?
बृजमोहन - हाँ या तो सर्यूळ छ्यो नजीक या डाक्टर छया -
डा मदन [गुस्सा मा ]- देखो फिर गलत बात च हाँ।  मीन दस दैं बोल याल कि व गोळी खतरनाक नि छे।
आलोक - डा मदन आपक गुस्सा जायज च। पर हकीकत क्या बुलणि च ? हकीकत या च कि आप या सर्यूळ ही मिसेज सर्यूळ का काम तमाम कर सकद छया। अब हम मादे हरेक की स्थिति की विवेचना करे जावो।  हम सब वै काम तै अंजाम दे सकदा छा।
नंदा -तुम सब जाणदा छंवां कि मि कखिम बि नजिक नि छौ।
आलोक - जख तलक मेरी यादास्त कु सवाल च मि ब्योरा दींदु।  कखिम गलत हो तो बतै दियां हाँ। मैकमोहन अर धूमल जीन  सर्यूळ तै उठैक सोफ़ा मा धार अर डा मदन वींपर झुक छया।  फिर डा मदनन सर्यूळ तैं ब्रैंडी लाणो ब्वाल।  सर्यूळ ब्रैंडी लायी।  सर्यूळ ब्रैंडी मा कुछ बि मिलै सकुद छौ।  फिर डा मदन अर सर्यूळ तैं भितर लीगेन।  डा मदनन सेडेटिव गोळी दे।
बृजमोहन - यु त ज ह्वे स्यु ह्वे। तो यांसे अलोक जी , धूमल , अर मि अर नंदा छुट जांदन।
आलोक - अब कुछ संभावनाओं पर बि विचार जरूरी च। मथि मिसेज सर्यूळ पड़ीं च , वींतै सिडेटिव दिए गे। वा निंद मा सि च। अब इन मा क्वी भितर आंद अर बुल्दु कि वींकुण डाक्टरन एक दवा दियीं च तो मिसेज सर्यूळन वीं दवा तै खाण छौ  कि ना ? अब मि आंद जनरल महेश की हत्या पर। या हत्या सुबेर ह्वे।  मि बालकोनी मा बैठ्युं छौ।  बस तबी औं जब भोजन की घंटी बज।  मि बि जल्दी समुद्रौ किनारा जै सकुद छौ।  पर मि गे नि छौं।  हाँ मीम क्वी प्रमाण नी च।
बृजमोहन - मि सरा सुबेर धूमल अर डा मदन का साथ छौ।
आलोक - अर रस्सी का वास्ता भितर औंवां।
बृजमोहन  - हाँ मि रस्सी लाणो भितर औं अर फिर वापस।
मदन - अर भितर देर तक छया।
बृजमोहन - आपक मतलब क्या च ? क्या मतलब ?
मदन -मीन खाली इ ब्वाल बल आप देर तक भितर छया।
बृजमोहन - हाँ खुज्याण म देर ह्वे गे।
आलोक -जब बृजमोहन भितर छौ तुम द्वी कख छया ?
डा मदन - हाँ धूमल थोड़ा देरौ कुण नि छया। मि उकमी छौ जखम छौ।
धूमल -मि सूरज का हिसाब से दिशा जाणन चाणु छौ।  बस एक या द्वी मिनटों कुण।
डा मदन - हाँ इथगा देर मा कतल तो क्या घाव बि नि ह्वे सक्यांद।
आलोक -क्या तुमन अपण घड़ी पर बि नजर डाळ ?
मदन - ना।
धूमल - मेरी घड़ी इ नि पैरीं छे।
आलोक -एक या द्वी मिनट बस सुदिक जबाब च।  मिस कोमल ?
कोमल -मि घर का पास इ छौ। अर लंच टाइम तक बैठ्युं रौं।
आलोक - मिस नंदा ?
नंदा - मि पैल कोमल का साथ छौ। फिर घुमणु रौं।  फिर महेश का दगड़ छ्वीं लगैन।
अलोक - अब रै गे सर्यूळ ! मै उम्मीद नी च कि वैक गवाही कुछ कामक होलि।
 [सर्यूळ का प्रवेश ]
आलोक -सर्यूळ तू सुबेर बिटेन क्या करणु रै ?
सर्यूळ -मि सुबेर बिटेन खाणक बणाणो अर अन्य काम मा व्यस्त रौं।
धूमल नंदा से - अब देख हाँ एन अपण फैसला सुणान  हाँ।
आलोक - हम अबि बि क्वी नतीजा पर नि ऐ सकदवां।  हम मादे क्वी भौत खतरनाक पागलपन का हद तक च।  मि फिर बुल्दो कि क्वी हम मादे बड़ो खतरनाक इरादा लेक इक अयुं च। हम तै अपण हिफाजत का वास्ता बहुत चौकन्ना रौण पोडल।
धूमल - अब कोर्ट कुछ देरौ कुण स्थगित ह्वेलि।

----------------------------------------------दृश्य    17  -   , Scene 17    -----------------------------------------

[कोमल अर धूमल  , समुद्रौ किनारा पर बैठीं छन।  ]
नंदा - आप  तै विश्वास च ?
धूमल - मतलब बुड्या आलोक की बातुं पर ? कि हत्यारा हम मादे इ क्वी च। तर्क का हिसाब से तो सही पता लगद कि हत्यारा  ह्मादे क्वी च। पर -
नंदा -फिर बि विश्वास नि हूंद हाँ।
धूमल -अविश्वसनीय ! पर जनरल की हत्या से तो साफ़ च कि पैलाक मृत्यु क्वी आत्महत्या नि छया अपितु हत्या -
नंदा [डरिक ]- दुःस्वप्न च। मि तै अबि बि लगद कि इन नि ह्वे सकद।
धूमल -पता च।  लगद कि क्वी सुबेर दरवज खटखटाल अर चाय आली अर -
नंदा -अर फिर पता नि क्या होल  धौं ?
धूमल - दुःस्वप्न।  अब हम तै अपण रक्षा का वास्ता भौत कुछ करण पोड़ल।
नंदा - यदि हत्यारा ऊँ मादे क्वी च त कु ह्वे सकद ?
धूमल - मि त हत्यारा नि छौं अर ना ही तुम।  मि तै तुम प्यारी लगदां अर आप हत्यारी ह्वेइ नि सकदां। प्यारी लड़की !
नंदा [मुस्कराट ]- धन्यवाद।
धूमल - मि कुछ हौर आसा करणु छौ।  खैर -
नंदा - तुम तर्क का उस्ताद छंवां।
धूमल -मै लगद कि आलोक ही -
नंदा -आलोक किलै ?
धूमल - पता नि किलै धौं ! पर मै लगद कि आलोक ही।  आलोक तै न्याय प्रणाली कु पूरो ज्ञान च , उ अफु तै भगवान समझ सकद कि पापी तै दंड मिलण इ चयेंद। ह्वे सकद च कि न्याय प्रणाली की कमजोरी तै समजिक अफु दंड दीण चाणु हो-
नंदा -हाँ ह्वे सकद च पर -
धूमल -त्यार शक कै पर च ?
नंदा - डा मदन पर -
धूमल - डा मदन ? म्यार हिसाब से तो डा मदन ह्वेइ नि सकद।  किलै मदन पर शक आणु च ?
नंदा - द्वी हत्या विष से ह्वेन अर कखि ना कखि डा मदन द्वी जगा फंस्यां छया। मिसेज सर्यूळ तै तो निंदक गोळी डा मदन ना ही दे छे।
धूमल - हाँ।  पर वु जनरल महेश का खून नि कौर सकुद छौ। अर वैमा टाइम कब छौ ?
नंदा - वु जब जनरल तै बुलाणो गे छौ।
धूमल - हाँ पर वो इन खतरा मोल नि ले सकुद छौ।
नंदा - एक वी च जै तै शरीर का पूरो ज्ञान च अर कथुक देर मा क्या करण से आदिम मोरि सकुद वु भली भाँती जाणदू। अर वु बोल सकुद कि मृत्यु भौत पैल ह्वे।  क्वी बि डाक्टर तै प्रश्न बि नि कर सकुद।
धूमल -ये  नजरिया मा बि दम च।
 
----------------------------------------------दृश्य   18  -   , Scene   18  -----------------------------------------


[बृजमोहन अर सर्यूळ धीरे धीरे बात करणा छन ]
सर्यूळ -कु ह्वे सकुद ?
बृजमोहन - व्ही तो सवाल च !
सर्यूळ - जज साबन ब्वाल बल हम मादे क्वी त च। हम मादे क्वा च ?
बृजमोहन - यी त पता लगाण।
सर्यूळ - पर तुमम क्वी ना क्वी तो विचार च है ना ?
बृजमोहन -मीम आइडिया तो छौं च पर जरा समय चयेंद कि -म्यार विचार कथगा सही च।
सर्यूळ -सब कुछ दुःस्वप्न च।  है ना ?
बृजमोहन -त्यार विचार से क्वा च ?
सर्यूळ -यी त कांड लग गेन कि म्यार दिमाग मा आणु इ नी कि कु ह्वे सकुद ?

----------------------------------------------दृश्य    19 -   , Scene 19    -----------------------------------------

[डा मदन अर जज आलोक खड़ा छन अर साधारण ढंग से बात करणा छन ]
डा मदन - हम तै इख बिटेन भैर निकळण चयेंद।  भैर ! कै बि कीमत पर।
आलोक - मि मौसमविज्ञानी त नि छौं पर मै लगद कि फेरी 24 घंटा से पैल नि ऐ सकदी।
डा मदन -अर तब तक तो हत्यारा हम सबकी हत्या कौरिक चल जालु।
अलोक -शायद हम बच जौंला।  मि हर तरह की ऐतियात लीणु छौं।
डा मदन -पता च।  इथगा मा तीन हत्या ह्वेइ गेन।
अलोक -अवश्य।  पर तब हम अजाण छया अर अब सब तयार छन कि -
डा मदन -हम कौरी क्या सकदां।  आज ना सुबेर सब -
अलोक -भौत कुछ च जु हम कर सकदां।
डा मदन -पर  हम तै पता इ नी च कि उ कु ह्वे सकद।
अलोक -मि इन नि बोल सकुद किलैकि -
डा मदन -मतलब तुम जाणदा छंवां कि कु - ?
अलोक -हाँ पूरा तो ना पर अन्दाज तो पक्को च कि -
डा मदन -मतलब तुम तै पता च ?
अलोक -एविडेंस तो नि छन पर लगणु च कि क्वा च -
डा मदन -मि बिलकुल नि समजणु छौं की तुम -
----------------------------------------------दृश्य  20   -   , Scene  20   -----------------------------------------
[कोमल धार्मिक किताब पढ़नी च।  अब वा डायरी लिखण लग जांद ]

कोमल [अफिक ]- एक हौर दर्दनाक हादसा ह्वे ग्ये। जनरल महेशा की हत्या ह्वे गे। अर यु तब ह्वे जब आलोक जीन अपण विचार सब तै बतैन। वूंक पूरो ख़याल च बल   हम मादे इ क्वी हत्यारा च। मतलब क्वी एक कातिल च। निर्दयी ! कु ह्वालु ? कु ? कु ? वु ? ना।  वु ? वु बि ना ? तो फिर अवश्य ही दर्शन लाल  कातिल च ---- अवश्य ही दर्शन लाल कातिल च
[अचानक वा दिखदि कि वींन क्या लेखि दे ]
दर्शन लाल ? क्या बकबास च यु ? [वा कागज फाड़दि अर मोड़ माड़िक दर्शकों तरफ फेंकी दीन्दी ]
क्या मि कखि पागल तो नि ह्वे ग्यों ? पागल ?



    अनुवाद - भीष्म कुकरेती

---------------------------यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]नाटक कु शेष भाग अंक 2 दृश्य  1  माँ पौड़ो ------------------
------------------------------ यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]Next Part of Play in Act -2 Scene  1 -------------------






Bhishma Kukreti

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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]
[नाटक -केवल प्रशिक्षण हेतु ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती
अंक 1 का दृश्य 20 से अग्वाड़ी

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य   1  -   , Scene   1  -----------------------------------------
                       -----------------------------ड्रवाइंग रूम ------- 


[कोमल , आलोक , डा मदन , नंदा , धूमल , बृजमोहन बैठ्याँ छन। सर्यूळ चाय की ट्रे लेक आंद।  सब झटका से खड़ ह्वे जांदन। ]
सर्यूळ -क्या पर्दा खींच द्यूं ?
सब - हाँ हाँ।
नंदा - कोमल चाय बणैलि क्या ?
कोमल -ना ना भै ना।  मेरि स्वेटर की बुणै खराब जि ह्वे जालि। कैन ऊँ तै बि द्याख ?
नंदा - न [वा चाय बणानो ट्रेक पास जांद ]
धूमल -चाय वाह ! डिनर  का बाद चाय ! वाह। इंतजाम  तो सही च।  हाँ ?
बृजमोहन - हाँ बिलकुल सही।
सर्यूळ -इखक टेबल क्लॉथ कख गे ?
आलोक - क्या टेबल क्लॉथ सुबेर बि छौ ?
सर्यूळ -जी हाँ।  बिलकुल छौ।
बृजमोहन -यख कुछ बि ह्वे सकद।  पर टेबल क्लॉथ से क्वी कै तै कतल नि कर सकद। भूल जा अर अपण काम कौर।
[सर्यूळ जांद ]
कोमल - मि त अपण कमरा मा जाणु छौं।
नंदा -मी बि।
[द्वी जांदन ]----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य   2   -   , Scene   2   -----------------------------------------
[ , आलोक , डा मदन , , धूमल , बृजमोहन बैठ्याँ छन। क्वी अखबार पढ़णु  च। क्वी सिगरेट पीणु ह।  क्वी बस इनि समय बिताणु च। सर्यूळ किचन मा व्यस्त ]
आलोक - मि कमरा मा जाणु छौं।  अर हाँ सब अपण कमरा पट्ट से बंद करिक हि रैन हाँ।
बृजमोहन - मेरी राय  च कि दरवज पर कुर्सी बि चिपकै देन।  क्वी बि दरवाजों पेंच खोली सकुद।
धूमल -तेरी परेशानी या च कि तू भौत अधिक जाणदु।
आलोक - अच्छा मि त बैडरूम मा जाणु छौं।  सुबेर मिल्दां।
[सब जांदन ]
सर्यूळ [मिनिएचरुं तै देखिक ]- अब ट्रिक नि चौललि [मिनिएचरुं तै उठैक ली जांद ]


----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    3 -   , Scene   3   -----------------------------------------
----------------------------------------[   सुबेर ]------------------------------------------------[ आलोक , डा मदन , नंदा , धूमल , बृजमोहन चलणा छन।  धूमल बुलणु च ]
धूमल - सर्यूळ नि मिलणु च।  कखि बि नी मिलणु च।  वैक बिस्तर साफ़ साफ़ बताणु च कि वू से छैं च।  उस्तरा , साबण नम छन माने वू सुबेर तक तो ज़िंदा छौ। केतली बि नी च अर स्टोव बि नि जल्युं च । पर छ कख च ?
नंदा - मतबल क्या वु हमर वैक ----बान ---कखि लुकि गे ?
धूमल - प्यारी गुड़िया ! मि सब तरफ से सुचणु छौं। मेरी सलाह च कि जब तक कातिल कु पता नि चल्दु तब तक हम सब तै एक साथ इ रौण चयेंद।
आलोक - ह्वे सकद च वु द्वीप मा कखि चल गे हो।  अर कोमल बि नि दिखेणि च ?
[इतना मा कोमल आदि ]
बृजमोहन - कोमल यी क्या मूर्खता च ? इखुल्या इखुलि द्वीप मा घुमणि छे ? पता च ना हम कैं मुसीबत मा छंवां ?
कोमल -बृजमोहन जी मि चौकन्नी ह्वेक सबि तरफ नजर रखद हाँ !
बृजमोहन - कखि सर्यूळ तै बि द्याख ?
कोमल - ना मीन तो नि द्याख।  क्यों ?
आलोक - सर्यूळ गायब च पर नास्ता की टेबल तयार च।
बृजमोहन- ह्वे सकद रात तयार कर ले हो ?
नंदा - अर मिनिएचर सैनिक ! केवल छै छन अब -
धूमल - मतलब , मतलब अब एक की मौत -[स्टेज से भैर जांद अर सर्युल की लाश खेंचिक लांद , सर्यूळ कु सर का पिछवाड़ा पर कुलाड़ी कु घाव , खून ] लया  सर्यूळ पर मृत अवस्था मा। अर वैक बगल माँ खून भरी कुलाड़ी -

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    4  -   , Scene   4    -----------------------------------------
--------------------हत्या  कु दृश्य -----------------------------------------------
[बृजमोहन कुलाड़ी परखणु च। डा मदन शरीर चेक करणु च। आलोक अर धूमल खड़ छन। कोमल अर नंदा नि छन ]
डा मदन - यु बिलकुल साफ़ च कि हत्यारान पैथर बिटेन चोट कार। पैल एक मार मार अर फिर दुसर मार।
आलोक -क्या ज्यादा ताकत की जरूरत पड़ी होली ?
डा मदन - एक औरत बि ये काम कर सकिद छे।  लड़की बि सरलता से इन काम कर सकदन। कोमल उन त पतली लगदी पर इन लड़की पर भौत ताकत हूंदी। ज्वा स्त्री अकेला रौणै आड़ती हो तो वा इन कत्ल कर सकदी।
बृजमोहन - हाथों छाप पूंछे गेन।
[हंसी की आवाज , नंदा पागलपन जन हंसी हंसदी स्टेज मा आदि ]
नंदा [हंसणी च ]- ये द्वीप माँ भौत सा चिमुल्ठ  छन।  बतावो कि शहद कख मीलल ? हाहा हां -
[सब वींतै घूरिक दिखदन ]
नंदा -क्या छंवां मि तैं टक लगैक दिखणा ? हरेक का कमरा मा एक कविता कि

दस सैनिक घुमणो गेन
एकक सांस रुकि गे तब नौ रै गेन
 …
एकान अफु इ काट दे अर  तब छै   रै गेन
छै सैनिक शहद जमा करणो गेन
एक तै चिमल्ठुन तड़कै दे  अर  तब पांच  रै गेन

मतलब अब कै तै चिमल्ठुन तड़काण ?   क्या ये द्वीप मा चिमल्ठ  पाळे जांदन ? हाहाहा
[डा मदन नंदा पर झापड़ मारद ]
नंदा [हिचकी आंदन , रुंदी च , फिर सामन्य हूंदी ] सॉरी।  अब मि ठीक छौं।  मिस कोमल अर मि आपकुण नास्ता बणौदा।  कैम माचिसक तिल्ली च।  आग जगाण। [भैर जांदी ]
बृजमोहन - भौत बढ़िया कार।  बिचारी भी से -
मदन -इन मा मीम क्वी विकल्प नि छौ।  हिस्टीरिया ऐ गे। अर फिर थप्पड़ ही -
बृजमोहन - पर व हिस्टॉरिकल नी च।
डा मदन -न व हिस्टॉरिकल त नी च। व संवेदनशील , विचार करण वळि च। अचानक विपदा से इन ह्वे जांद। कैपर बि दौरा पद सकद।
धूमल - चलो नास्ता करे जावो।
[सब चल्दन ]

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -   , Scene  6    -----------------------------------------
----------------------------------------------टेबल माँ विचार विमर्श -------------------------------------------------

[आलोक , डा मदन , नंदा , धूमल , बृजमोहन   टेबल का चारों और बैठ्याँ छन।  नास्ता ह्वे गे ]
आलोक - मेरी समझ से हम सब तै ड्रवाइंग रूम मा विचार विमर्श करण चयेंद।
[सब स्वीकार करदन ]
नंदा -हम जरा बर्तन साफ़ सफाई -
धूमल -हम सब बर्तन किचन मा लांदवां।
नंदा - धन्यवाद
[कोमल उठणै कोशिस करदी पर धम से गिर जान्दि ]
कोमल -ये नंदा
आलोक - कुछ परेशानी ?
कोमल - मि नंदा की सहयता करण चाणु छौ पर पता नी कि -कुछ उलटी सि लगणी च -
डा मदन -हूंद च।  शौक का बाद हूंद च , उलटी की शिकायत।
कोमल -मि बैठद छौं।  जब उलटी /चक्कर आणो शिकायत नि रैली तो जौलु।
डा मदन -क्वी दवै ?
कोमल - ना जरूरत नि पोड़ली।
बृजमोहन - मि नंदा की मदद करुद।
 
[कोमल इखुलि च।  उलटी की इच्छा अब निंद मा बदलेणि च। इथगा मा गुणगुणाट सुणेन्दि।  ]
कोमल -यी मधुमक्ख्युं जन आवाज  -- चिमल्ठ ? मि उठि नि सकणु छौं , बोल नि सकणु छौं।   
कोमल तै चिमल्ठ  दिखेंदन।
[एक काळु कपड़ों मा आंद कोमल का हतुं मा इंजेक्सन घुस्यांद। ]
----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -   7  Scene     7 -----------------------------------------

---------------------------प्रतीक्षा ----------------------------------------------------
[आलोक , डा मदन , नंदा , धूमल , बृजमोहन कोमल की जग्वाळ करणा छन ]
नंदा - मि वीं तै लाणो जौं ?
बृजमोहन -एक मिनट हाँ।
[नंदा बैठ जांदी ]
बृजमोहन -द्याखो मै लगद कि हत्या हम मादे क्वी जनानी करणी च।
मदन - उदेस्य ?
बृजमोहन - धार्मिक अनुष्ठान !
मदन - बिलकुल ह्वै बि सकद।  मि तुमर बिचारुं विरोध मा बि नि छौं।  पर क्वी पक्को प्रमाण नी च।
नंदा - विचारी रुस्वड़ मा कुछ अजीब सि हालत मा  छे मि वीं तै लयाँद। वींक आँख -
धूमल -तुम आँख से कुछ नि पता लगै सकदां। हमर सब्युंक होश ठिकाणा पर नि छन।
बृजमोहन - टेप सुणणो बाद सब्युंन अपर गाथा बताइ पर कोमलन नि बताइ।  आखिर किलै ?
नंदा - मि तै बतै च।  मृदुला वींक नौकरानी छे।  कुछ समय बाद मृदुला  गर्भवती ह्वे गे। कोमलन वीं तै निकाळ दे।  कुछ समय बाद मृदुलान आत्महत्या कर दे।
आलोक - सीढ़ी सि कथा।  सब विश्वास कारल।  क्या पैथर कोमल तै पश्चाताप बि ह्वे ?
नंदा -ना।
आलोक - अब देर सि ह्वे गे।  हम तै कोमल तै बुलाण चयेंद।
[सब दुसर कमरा मा जांदन अर सब आश्चर्य मा ]
बृजमोहन - ये मेरी ब्वे ! स्या तो मृत च।
धूमल - डा जरा द्याखदी।  जब हम भैर ऐ छ तो वा ठीक ठाक छे ?
मदन [तपास करिक ] -इंजेक्सन से मौत !
[मधुमक्खी की आवाज ]
नंदा - मधुमक्खी।  मीन सुबेर बोली छौ कि -
मदन - मधुमक्खी का काटण से मौत नि ह्वे।
आलोक - तो ?
मदन - विष से। इंजेक्सन द्वारा शरीर मा विष पंहुचाये गे।
आलोक - कु विष ?
मदन - शायद पोटैसियम साइनाइड।
नंदा - पर वा मधुमक्खी।  यु इन अकस्मात संयोग ह्वे सकद क्या ?
धूमल - यु संयोग नी च।  वु एकदम पागल च।
आलोक - विश्लेषण की शक्ति राखो। क्या हम मादे क्वी अपण दगड़ इंजेक्सन लै छौ ?
मदन - हाँ मि हमेशा खाली इंजेक्सन लेक चल्दु।
आलोक - अब इंजेक्सन कख च ?
मदन - कन कख हक ? म्यार सूटकेस पुटुक अर कख।
आलोक - जरा सूटकेस लयावदी
[मदन जांद अर सूटकेस लेक आंद।  सूटकेस की जांच हूंद पर इंजेक्सन उख नी च ]
बृजमोहन - सिरिंज नी च।
मदन - मतलब कैन सिरिंज निकाळ।  अवश्य सिरिंज निकाळ।
आलोक - अब हम पांच छंवां।  हम मादे एक हत्यारा च। खतरा च।  डा तुमम क्या क्या दवा छन ?
मदन - बस कुछ गोळी , एस्पिरिन , आदि आदि। साइनाइड जन कुछ ना।
आलोक - मीम कुछ सीणो गोळी छन। हाँ ओवरडोज ह्वे तो खतरनाक ह्वे सकदन।  धूमल ! तुमम रिवाल्वर छयो ?
धूमल -यदि छैं बि च तो ?
आलोक - हम्म जु बि खतरनाक चीज जन दवाई , गोळी , चक्कु , खुंकरि , रिवाल्वर जु बि च एक जगा बंद कर दीण चयेंदन।
धूमल -मीन रिवाल्वर नि दीण।
आलोक - तुम तो पुलिस मा छया तो तुम बगैर रिवाल्वर बि संघर्ष कर सकदां।
धूमल -ठीक च दींदु छौं।
आलोक - आप संवेदनशील छंवां। रिवाल्वर कख च ?
धूमल - इकि ड्रावर मा।
[ रिवॉल्वर ड्रावर मा नी च ]
----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -    Scene   8 -----------------------------------------
----------------------कमरा मा खोज ---------------------------------------

[धूमल तै आलोक समझाणा छन।  मदन अर बृजमोहन   कमरा मा खोज करणा छन। ]
धूमल - संतुष्ट ?
आलोक - मिस नंदा।  अब सब संतुष्टि कर याल हाँ !
नंदा - हाँ अब हमम खतरनाक हथियार अर दवै नि छन। अब हम यूँ सब तै एक जगा बंद कर दींदा।  वीं अलमारी माँ बंद कर दींदां।
[सब दवा आदि अलमारी मा धरदन ]
बृजमोहन - पर चाबी कैमा राली ?
[आलोक एक चाबी धूमल तैं दींद अर एक बृजमोहन तै ]
आलोक - पर अबि बि रिवॉल्वर की समस्या तो छैं इ च ?
बृजमोहन - रिवाल्वर कु मालिक धूमल -
धूमल - पर मीन ब्वाल नी कि रिवाल्वर हर्ची गे।
आलोक - तीन रिवॉल्वर कब आखिरैं देखि छे ?
धूमल - ब्याळि रात सीण से पैल मीन चेक कौर छौ।  ड्रावर मा इ छे।
आलोक - याने कि जब हम सर्यूळ की खोज माँ छया या वैक शरीर की जांच करणा छया तब इ रिवॉल्वर गम ह्वे ह्वेली।
नंदा -अवश्य ही कखी घौर भितर इ हूण चयेंद। इखि खुज्याण चयेंद।
आलोक - मि तै संदेह च।  हत्यारा का पास छुपाणो जगा कु ज्ञान ह्वालु।  तो खुज्याण बेकार च।
बृजमोहन  -मि नि जणदु कि रिवाल्वर कख च ? पर सिरिंज कख च मि जणदु छौं।  म्यार पैथर आवो।
[सब खिड़की का पास जांदन।  सिरिंज अर तुड़ी मुड़ीं एक मिनिएचर सैनिक मील ]
बृजमोहन - हत्या का बाद एक या इ जगा छे जख हत्यारा यूँ चीजुं  सकुद छौ।
नंदा - अब रिवॉल्वर खुज्याण चयेंद
आलोक - पर सब एक साथ हाँ।

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -    Scene   9 -----------------------------------------
---------------------------------खोज का बाद ----------------------
[सब गोलघ्यारा  मा बैठ्याँ छन। चिंतित अर उचमिचि का साथ।   बृजमोहन घुमणु च ]
आलोक - रिवॉल्वर नी मील।  कख ह्वे सकदी ? हम हथ पर हथ धौरिक नि बैठ सकदां।  हम तै कुछ ना कुछ करण इ चयेंद।  हम तै भैर बि खुज्याण चयेंद। यदि बचण च तो -
बृजमोहन - ये मौसम मा ? भैर जोर की बरखा हूणि च।
धूमल - समय की बात च।  बरखा तो बंद ह्वेली इ। मौसम ठीक हूणों बाद क्वी सिग्नल , उज्यळ दिखैक या कुछ ना कुछ करिक -
मदन - समय ही त समस्या च। तब तक तो हम सब समाप्त !
आलोक - यदि हम सावधान रौला तो बच सकदां।
[सब व्यथित छन अर एक हैंकाक मुख पर दिखदन।  घड़ीन पांच बजैन ]
नंदा - कैन चाय पीणै ?
बृजमोहन -एक कप ह्वे जाव  तो !
नंदा - ठीक च मि बणान्दु।  आप इखमि राओ।
आलोक - हम सब औंदा अर दिखला कि तु  कन चा बणांदि।
नंदा - ठीक च।
आलोक - हम सब तै सावधान रौण चयेंद।
[सब जांदन अर कुछ देर बाद हथ पर चाय कप लेकि आंदन ]
धूमल - [बिजली स्विच ऑन करद ]  - अरे सर्यूळो गुजरणो बाद जनरेटरक इंजिन तो चलाई नी च। हम भैर जैक इंजिन चालु करदां।
आलोक - भैरक कमरा मा मोमबत्ती बि छन।  हम ऊँ तै लयोंदा
धूमल - ठीक च मि लांद।
कोमल - मै अपर कमरा मा जैक मुख ध्वेक आंदु। [जांदी ]
[सब एक हैंकाक मुख देखिक चाय पीणा छन।  इथगा मा नंदा कु चिल्लाणो आवाज ]
नंदा - मदद , मदद -मद  -

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -   10  Scene  10  -----------------------------------------

[वीरा खड़ी च। घबराईं च। चिल्लाणी च।  अचानक धूमल ,बृजमोहन अर मदन प्रवेश करदन ]
मदन - क्या ह्वे ?
धूमल -क्या ह्वाइ ?
[नंदा अग्नै बढ़दी अर भीम पड़  जांदी ]
धूमल - ये मेरी ब्वे ! सी द्याखदी !
[सब दिखदन कि समुद्री घास छत से लटकणि च ]
नंदा - समुद्री घास छे , बस समुद्री घास - गंध तो इनि आणि  छे।
धूमल - क्वी ब्रैंडी लाओ।
[बृजमोहन दौड़ीक जांद अर ब्रैंडी लेक आंद। धूमल ब्रैंडी गिलास मा डाळद अर नंदा का गिच पर लगांद ]
नंदा [पीण इ   वळि छे पर फिर गिच बंद करदी ]- ना ना। कखन ऐ या ब्रैंडी ?
बृजमोहन - तौळ बिटेन।
नंदा -मीन नि पीणाइ।
धूमल - बरोबर बरोबर।  यद्यपि तू परेशान छे पर सचेत छे हाँ।  मि बिन खुलीं बोतल लांदु। [भैर जांद ]
नंदा - ना मि पाणी पे लील्यू।
बृजमोहन -या ब्रैंडी ठीक च।
डा मदन - तू कन कै जाणदि ?
बृजमोहन - मीन कुछ मिलै दे होलु क्या ?
मदन  - म्यार मतलब ते से नी च।  कैन बि , तीन या कै हौरन कुछ मिलै दे हो तो ?
[धूमल बिनखुलिं बोतल लांद ]
धूमल - रिजॉर्ट मा शराब की कमी नी च। इखमा धोखा नी च।  तू पेलि।  [नंदा ब्रैंडी पींदी ]
धूमल - एक हत्या नि ह्वे सौक।
नंदा - मतलब मेरी ?
धूमल - शायद ! डरैक बि हत्या हून्दन।  है ना डाक्टर मदन ?
मदन - हूँ ह्वे सकद च।
नंदा - जस्टिस आलोक कख छन ?
धूमल - हैं ? हमन सोच वु हमर पैथर छन।
डा मदन -  हाँ हमर पैथर - यद्यपि बुड्या छन पर इन बि ना की -
धूमल - कुछ अजीब च
बृजमोहन - चलो ऊँ तै दिखदां।
मदन - यद्यपि उ आण -पर - आलोक जी आलोक जी ! कख छंवां ? अलोक जी !










----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -    Scene   -----------------------------------------

                 अनुवाद - भीष्म कुकरेती
---------------------------यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]नाटक कु शेष भाग अंक -2 दृश्य 11   माँ पौड़ो ------------------
------------------------------ यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]Next Part of Play in Scene Act -2 Scene 11 -------------------

 

Bhishma Kukreti

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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]
[नाटक -केवल प्रशिक्षण हेतु ]
अनुवाद - भीष्म कुकरेती

अंक 2  का दृश्य 10   से अग्वाड़ी

---------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    - 11    Scene   11 -----------------------------------------

[जज आलोक कुर्सी मा छन।  द्वी छवाड़ मोमबत्ती जळणि छन।  उंक  विग उतरीं च ]
[नंदा चिल्लांद।  डा मदन सब तै दूर रौणो इशारा करद।  अफु अलोक का पास जांद ]
मदन - रिवाल्वर की गोळी से हत्या।
बृजमोहन - रिवाल्वर ?
मदन - सीधा सर पर एक हि सेकंड माँ काम तमाम -धागा का गोळा का थ्रू , बेआवाज ?
नंदा -कोमल की स्वेटरक धागा अर इख ?
बृजमोहन - अर टेबलक्लॉथ -
धूमल - अब आलोक जी कबि न्यायधीश की गद्दी मा नि बैठ सक्दन।  अब
नंदा - अर सुबेर तुम आलोक जी पर शक करणा छया।
धूमल - हूँ मीन गलत आदिम पर शक कार ।  हत्यारा हम मादे च जैपर शक नि गे।
[धूमल अर बृजमोहन लाश तै स्टेज से भैर लिजांदन अर  डा मदन , नंदा ,ऊंक पैथरा पैथर ]

----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य  12   -    Scene  12  -----------------------------------------
---------------------रात्रि ------------------------------------
 [एक काळो कपड़ों मा आदिम जमीन मा [स्टेज मा ] सरकणो च। बृजमोहन अपण कमरा से भैर आंद।  चिल्लांद ]
बृजमोहन - पकड़ो , पकड़ो।  यु भागणु च , भागणु च। धूमल मदद को आ।
[धूमल अर नंदा अपण अपण कमरा से भैर आंदन ]
धूमल -कु छौ ? तीन द्याख च ?
बृजमोहन - ना सूरत त नि देखि।  तेज छौ।  पर वैन बड़ी गलती कर दे।  हम छंवां चार अर यदि एक कमरा खाली हो तो ? मतलब डा मदन ?
[बृजमोहन
धूमल - मदन ? अब कै पर बि भरवस नि करे सक्यांद। [  डा मदन का कमरा का दरवज पर जांद दरवज खटखटांद , देर तक पर क्वी उत्तर नि आंद।  फिर की हॉल से दिखणो कोशिस ] की हॉल मा चाबी नी च।  आज सब पता चल जाल। हम वैक खोज मा जाँदा अर मिस नंदा ! डा मदन आल बि तो कमरा नि खुलण।  कतै नि खुलण।  जब तक मि अर बृजमोहन आवाज नि दींदा कमरा कतै नि खोलिन हाँ।  दरवज बिलकुल बंद। हम द्वी वैक खोज मा जांदवां।
नंदा -ठीक च [वा स्टेज का एक छवाड़ से भैर जांद अर हैंक छ्वाड़ से वु द्वी भैर ]


----------------------------------------------अंक 2 , दृश्य    -   13  Scene   13 -----------------------------------------

--------------------------डा मदन की खोज , चादनी रात ---------------------------------
[रात  मा धूमल अर बृजमोहन चलणा छन ]
बृजमोहन - सावधानी से हाँ।  वैक पास रिवॉल्वर बि च।
धूमल - अहो रिवॉल्वर मीमा च।  ड्रावर मा मिल गे छे।
[बृजमोहन डरिक धूमल का तरफ दिखुद ]
धूमल - बेवकूफी नि कर।  मि तेरी हत्या नि करण वळ छौं। मि मदन की खोज मा जाणु छौं।  आणु छे ?
बृजमोहन - ठीक च आणु छौं।
[दुयुंन ज़रा द्वीप खोज पर मदन नि मील।  रिजॉर्ट मा ऐक नंदा का कमरा खटखटाइ ]
धूमल - नंदा नदा ! सब ठीक ना ?
नंदा -हाँ।  क्या ह्वे ?
धूमल - हम तै भीतर तो आण दे।
[नंदा कमरा खुलद ]
नंदा -क्या ह्वे ?
धूमल - मदन गायब च।
नंदा - नहीं !
धूमल - द्वीप मा समाप्त ।
बृजमोहन - हाँ खतम किस्सा।
नंदा - ना ना ! इन ब्वालो कखि लुकि गे।
बृजमोहन - नही! हमन सब जगा द्याख।  दिनक सा उज्यळ चादनी रात मा च।  कखि नि मील।
नंदा - दुबर रिजॉर्ट मा घुस गे हो।
बृजमोहन - हमन स्वाच च अर रिजॉर्ट मा बि ख्वाज।
नंदा -मि तै विश्वास नी च।
धूमल - नंदा जी ! बृजमोहन सही बुलणु च। रिजॉर्ट की खिड़की टूटीं च।  अर टेबल मा अब केवल तीन सैनिकुं मिनिएचर छन।

  ----------------------------------------------Act अंक 2 , दृश्य    14 -    Scene  14  -----------------------------------------
-----------------------------नास्ता ---------------------------------------------
[नंदा , धूमल , बृजमोहन नास्ता करणो बैठ्याँ छन ]
नंदा - मदन कु क्या ह्वे ?
धूमल - केवल एक सुराग च।  अर वाच कि अब तीन सैनिकों मिनिएचर छन।  मतलब मदन की इहलीला समाप्त।
नंदा - पर वैक मृत शरीर किलै नि मील ?
बृजमोहन -ह्वे सकद च कि वैक शरीर समुद्र मा फिंके गे हो ?
धूमल - कु फिंकदु ? तू मी या नंदा ? हमम समय छौ क्या ?
बृजमोहन - मि नि बोल सकुद।  पर यु साफ़ च कि पैल त्यार रिवॉल्वर हरच अर फिर ड्रावर मा ऐ गे। अफिक हरच अर अफिक ऐ गे।
धूमल - हाँ पर हमन सब जगा खोज तो कार  छे ना ?
बृजमोहन - अर तीन चालाकी से हर समय लुकआइं राइ।
धूमल - अरे मी बि खौंळयौं जब रिवॉल्वर मेरी ड्रावर मा ऐ।
बृजमोहन - वो तो हम तै विश्वास करण पोड़ल हैं ? हत्यारा त्वे तै रिवॉल्वर देक चल गे। किलै ?
धूमल - मि तै किलै पता ? फजूल की बात च।
बृजमोहन - क्वी विश्वसनीय कथा सुणा भै।
धूमल - मि सच बुलणु छौं।
बृजमोहन - मि तै नि लगद कि -
धूमल - मि -
बृजमोहन -यदि तू ईमानदार छे तो फिर -
धूमल - मीन कब ब्वाल कि ईमानदार छौं ? अर मीन कबि दर्शाइ बि नी च।
बृजमोहन - ईमानदार छै या ना अब मतलब इ नी च। जब तक तीम रिवाल्वर च मि अर नंदा खतरा मा छंवां। तेरी मेहरबानी मा छंवां।  अब रिवाल्वर बि दवा आदि का इ साथ रखे जाण चयेंद।   … अर तीम अर मीम चाबी राली।
धूमल  - मूर्खतापूर्ण हाँ !
बृजमोहन - हूँ तो तू स्वीकार नि करिल हैं ?
धूमल - अरे मेरी रिवॉल्वर च मेरी रक्षा का सवाल च।
बृजमोहन -  अब तो यही निर्णय  निकल्दु कि -
धूमल - कि मि अनजान किसनदत्त  छौं।  अरे मि किसनदत्त हूंद तो ब्याळि इ तुमर कामतमाम कर द्युंदु। मीम बीस अवसर छया।
बृजमोहन - मि नि जाणदू कि क्या कारण छौ पर -
नंदा - तुम द्वी मुर्खुं तरां व्यवहार करणा छंवां।
  धूमल -क्या ?
नंदा - हाँ जरा कविता तो याद कारो ?
चार सैनिक समुद्र मा गेन
एक तै शार्कन निगळ दे अर  तब तीन  रै गेन
यु बड़ो सुराग च।   मदन मोर नी च। वु मिनिएचर अपण दगड लेकि गे कि हम समजवां कि वैकि हत्या ह्वे गे। वु द्वीप मा इ च।
धूमल -हाँ शायद तू सही छे।
बृजमोहन - हाँ पर छ ?  हमन द्वीप मा सब जगा खुजाखोज कार।
नंदा - हाँ पर रिविोल्वर बि इनि नि मीलि छे।
धूमल - पर आदिम अर रिवॉल्वर कु साइज मा अंतर हूंद।
नंदा -मि नि जणदु -पर मि सही छौं।
बृजमोहन -समुद्र मा हिलसा मछली  न खै दे।  है ना ?
नंदा -हाँ पर वु पागल च। ज़रा कविता कु विचार ही पागलपन च। अर कखी ना कखि हरेक हत्या कविता का हिसाब से फिट हूणि च।
बृजमोहन -हाँ पर क्या किसनदत्त न इख चिड़ियाघर रख्युं च कि हिलसा ऐ जाली।
 नंदा - ब्याळि बिटेन हम ही खुद चिड़ियाघर बण्या छंवां।

----------------------------------------------Act -2 अंक 2 , दृश्य   15  -    Scene  15  -----------------------------------------

----------------------------समुद्र का किनारा -------------------------------------
[नंदा , बृजमोहन अर धूमल समुद्रौ किनारा पर आईना दिखेक सिगनल दीणो कोशिस करणा छन ]
नंदा [रिजॉर्ट का तरफ देखिक ]- इख हम जादा सुरक्षित छंवां।  हम तै उख नि जाण चयेंद।
धूमल -बुरु विचार नी  च। इखम हम सुरक्षित छंवां।  इखम जु बि आलू हम वै तै कनि बि देख ल्योला।
नंदा -हम इखमि रौला।
बृजमोहन - हम तै रात तो कखि व्यतीत करण इ पोड़ल। फिर से रिजॉर्ट भितर।
नंदा [कम्पदि ]- मेसे उख भितर रात नि कटेण।
धूमल -बंद कमरा जादा सुरक्षित च।
बृजमोहन - द्वी बजणा छन।  लंच कु क्या ह्वाल ?
नंदा - मि उख नि जाणु छन।  मीन इखमि रौण।
बृजमोहन - नंदा जी।  धीरज राखो।  तागत राखो। ताकत रखण जरूरी च।
नंदा -डब्बाबंद खाणा देखिक मि तै उलटी आंद।
बृजमोहन - मि बगैर भोजन का नि रै सकुद।  त्यार क्या विचार च ?
धूमल - डब्बाबंद खाणक से मि तै बि मजा नि आंद। मि नंदा का साथ रौलु।
[बृजमोहन घबरान्द ]
नंदा - मि तै इखम गोळी नि मार सकुद।
बृजमोहन - ओके। यदि तुम बुलणा छंवां तो -  पर हमन निर्णय लियुं च बल हम तै दगड़ि रौण चयेंद।
 धमूल - तू जाण इ चाणु छे तो मि दगड़ आंदु।
बृजमोहन - ना ना तू इखि रौ।
धूमल - मतलब तू अबि मे  से डरणि छे ? मि तै मारणी इ हो त मि अबि गोळी मार सकुद।
बृजमोहन - हाँ पर योजनाबद्ध तरीका से इ हत्या हूणि छन।
धूमल - तू सब जाणदि।  है ना ?
बृजमोहन - हाँ अकेला रिजॉर्ट मा जाण खतरा से खाली नी च।
धूमल - तो मि अपण रिवॉल्वर दे सकुद।  पर ना !
[बृजमोहन कंधा हलांद अर चल जांद ]
धूमल -[बृजमोहन तै दिखणु रौंद ]- चिड़ियाघर का जानवर जन।  खाणो समय ह्वे गे अर जानवर अपर  आदत  हूंदन !
नंदा - क्या यु खतरा नी च ? भितर क्या करणो जाणु च ?
धूमल-मैं नि लगद कि डा मदन मा रिवॉल्वर नि होली। वु इथगा तागतवर नी च।  मि तै पूरो विश्वास च कि मदन भितर नि  ह्वालु।
नंदा -पर हमम समाधान क्या छन ?
धूमल-तीन वैकि कथा सूणी आल । यदि वु सही च तो बात साफ़ च। देख वैन ब्वाल कि मीन पदचाप सुणिन अर एक आदिम तै तौळ जांद द्याख ।  अर यदि वैन झूट ब्वाल त वैन डा मदन का काम तमाम एक द्वी घंटा पैल कर याल छौ ।
नंदा - कनकैक ?
धूमल-पता नी पर मै लगद कि बृजमोहन हमकुण खतरा च।  हम वैक बारामा  कुछ बि नि जाणदा।  रति भर बि ना। वी इ अपराधी ह्वे सकद। वैनि सब कुछ कौर हो तो!
नंदा -अर कदाचित वु हमर पैथर ह्वावो तो ?
धूमल-मि कोशिस करुल कि वु हमर विरुद्ध कुछ नि कौर साकु। मि पर विश्वाश च ना ? मि त्वे पर बंदूक नि चलै सकुद ना ?
नंदा - मि तै कैप्र तो विश्वास करणी पोड़ल। मि तै लगद बृजमोहन का बारामा तुम्हारी गलत धारणा च।  यु मदन ही होलु। पता च ना कि क्वी हर समय हम पर नजर लगाणु च अर प्रतीक्षा करणु च। है ना ?
धूमल-यु चिंता का विषय च।
नंदा -तो तुम तै  बि ? मीन एक कथा सूणी छे कि द्वी न्यायधीश एक कस्बा मा ऐन अर वूंन बिलकुल सही फैसला कार।  बिलकुल सही फैसला अर उ द्वी न्यायाधीश ये संसार का नी छया।
धूमल-स्वर्ग से न्यायधीश ! पर यी कतल बिलकुल मणिखन करिन।
नंदा - कबि - मि ठीक से नि बोलि सकुद -कुछ पता नी -
धूमल-वै त आत्मा ह्वे। तीन वु बच्चा नि डुबाइ ना ?
नंदा -नै नै। त्वे तै इन बुलणो क्वी अधिकार नी च।
धूमल-तीन ही कार।  मि तै लगणु च।  अवश्य ही क्वी मरद  तो छौ।  है ना ?
नंदा - हां एक मर्द -
धूमल-बस।  युइ जाणण छौ।
[एक धक्का की आवाज आंद ]
नंदा -क्या च ? क्या भ्यूंचळ ?
धूमल-ना - मै लगद यु कैक किरणों आवाज छे।  भितर जाण चयेंद।
नंदा - ना मि नि जाणु छौं।
धूमल-ठीक च।  मी इ जांदु।
नंदा -तब तो मी बि आंदु।
[नंदा अर धूमल आंदन अर दिखदन कि ब्रजमोगं पड़्यूं च।  वैक पास एक गरुड़ अर रीछ कि घड़ी च। सर पर खून ही खून ।
धूमल[मथिन द्याख ]-मथिन कैक खिड़की च ?
नंदा -मेरी -अर या घड़ी बि म्यार कमरा मा छे।
[धूमल नंदा का  थपथपांद ]
धूमल-यु सिद्ध करद की मदन इख कखि ये घरम लुक्युं च। मि वै तै खुज्यांद।
नंदा -ना ना।  अब हम द्वीइ छंवां।  वु इ चाणु ह्वालु कि हम वै तै खुज्याणो जौंवाँ। अर उ -
धूमल-हाँ बात मा दम च।
नंदा - मतलब मि सही छौ कि डा मदन -
धूमल-हाँ।  पर हमन तो घरका कूण्या कूण्या ख्वाज।
नंदा -तुमन ठीक से नि ढूंढी ह्वाल जन।  मंदिर का अंदर।
धूमल-ना ना हमन सब जगा द्याख च अर वा  जगा -इन जगा नी च।
नंदा - क्वी जगा त छैं च।
धूमल-हूँ दिखण पोड़ल -
नंदा -हाँ ! अर वांकी ताक  मा व्हाल कि हम उख जौंवा।
धूमल[रिवॉल्वर भैर गाडद ] -मीम रिवाल्वर च।
नंदा - तीन बोली कि मदन बृजमोहन से कमजोर च।  पर जै पर बौळ चढ़ीं हो वै पर रागस की शक्ति ऐ जांदी।
धूमल[रिवॉल्वर कीसौंद धरद ]-तो रात होली तो क्या करे जावु ? कुछ स्वाच च क्या ?
नंदा -हम कर क्या सकदां ? मि तै डर लगणी च -
धूमल-हम समुद्र का किनारा रात बितौला।  चांन्दनी रात छन।  बैठ्या रौला।  स्योला ना सुबेर तक। यदि क्वी आल तो मि गण चलै द्योलु। इतना महीन कपड़ों मा त्वे तै ठंड लग जाली।
नंदा - हाँ पर मोरणो बाद हौर बि ठंडी।
धूमल-अच्छा चल भैर -
नंदा -हाँ चल -
धूमल-चल समुद्रक किनारा की ऊंचाई पर -
----------------------------------------------Act -2 अंक 2 , दृश्य    - 16    Scene 16   -----------------------------------------
[नंदा  धूमल समुद्रकऊंचा  किनारा पर छन। मदन की लाश पड़ीं च पर क्वी नि दिखुद। ]
धूमल-हैं क्या च वु ?
नंदा -कैक कपड़ा ?
धूमल-या समुद्री घास ? दिख्दा छंवां ! चलो।
[द्वी जांदन अर उखम जांदन जखम मदन की लाश पड़ीं च ]
नंदा - बूट ? कैक ? कपड़ा ? कैक ?
धूमल-कपड़ा ना मदन का शरीर अर  हाँ या च लाश -
नंदा -लाश [द्वी एक हैंक तै दिखदन ]
धूमल-हूँ अब हम द्वी इ -
नंदा - हाँ केवल हम द्वीइ  -
धूमल-अब सचाई समिण ऐ गे।
नंदा -एकी लाश  भीतर लिजौंदा।
धूमल-ना ना। इन समय मा की जरूरत नी च।
नंदा - हाँ पर समुद्र से भैर तो गाडि लीन्दां
[द्वी लाश निकलणो संघर्ष करदन। नंदा धूमल की जेब से रिवॉल्वर निकाळदि जू धूमल तै पता नि चलद ]
धूमल-सरल काम नी च।  अब संतुष्ट ?
नंदा - हाँ
धूमल घुमद तो दिखद कि नंदा का हाथ मा रिवॉल्वर च अर निशाना च धूमल ]
धूमल- रिवॉल्वर निकाळणो बान दया ढँट नाटक करणी रै ? 
नंदा - हूँ।
धूमल-रिवाल्वर वापस कौर।
नंदा [हंसदि ]
धूमल-रिवॉल्वर दे
नंदा[सर हलांकांदी ]-
धूमल-रिवॉल्वर वापस कौर छोरी !
[नंदा  रिवॉल्वर चलांदी अर धूमल ढेर ह्वे जांद ]
नंदा -सब कुछ खतम।
[नंदा वापस रिजॉर्ट मा आंद अर सैनिक मिनिएचरुं तै दिखदि ]
नंदा [स्वतः ]-तू समय से पैथर छंवां । [द्वी मिनिएचरुं तै भैर फिंकदि अर एक तै अपर हाथ मा लीन्दी ]। तू अब म्यार दगड़ ऐ सकदी। हम जीत गेवां।  हम जीत गेवां।  [मथिन आदि, हुक पर एक फंदा लग्युं च ]। अब केवल एक सैनिक अकेला बच्युं च। क्या पंक्ति छे ? वु क्या शादी कार ? ना अमरनाथ  च व कमरा मा ? वु मेरी प्रतीक्षा करणु च। वैन मि तै माफ़ कर याल  … वु चाँद कि मि फांस खै द्यूं   … । एक सैनिक बच गे    .... वु अकेला ग्याई अर वैन फांस खै दे    … [वा जांदी अर अपण गौळुन्द फंदा डाळदि , कुर्सी मा खड़ी हूंदी अर कुर्सी खस्कान्दी अर झूल जान्दि।   


   




अनुवाद - भीष्म कुकरेती
---------------------------यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]नाटक कु शेष भाग अंक 2 दृश्य  17  माँ पौड़ो ------------------
------------------------------ यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ]Next Part of Play in Act 2 Scene  17 -------------------


Bhishma Kukreti

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यहां कोई ज़िंदा नहीं बचेगा [इख कैन ज़िंदा  नि बचण ] 
नाटक
अनुवाद - भीष्म कुकरेती
नाटक का अंक 2 दृश्य 16 से अग्वाड़ी पढ़ो

----------------------------------------------Act -2 अंक 2 , दृश्य    - 17     Scene 17    -----------------------------------------


------------------------उपसंहार ---------------------------------------
[इस्पेक्टर जनरल राय चौधरी अर इंस्पेक्टर मनोज घंघतोळ मा बैठ्यां छन। ]
राय चौधरी -इंस्पेक्टर मनोज ! अजीब आश्चर्यजनक घटना ह्वेन बीकाबार द्वीप मा। दस मनिखों हत्या ह्वे अर द्वीप मा एक बि माख नि मील। यु कुछ समज मा नी आणु च।  कैन ना कैन तो हत्या कौर इ च। डाक्टर की रिपोर्ट से बि कुछ पता नि चलणु च। 
मनोज-[रिपोर्ट पढ़द ] -यस ! आइ जी राय चौधरी साब ! पर साब ! आलोक अर धूमल की हत्या गन से ह्वे। एकाक सर पर फायर करे गे दुसरक हृदय पर गोळी मारे गे। मिस कोमल  अर मैकमोहन की हत्या साइनामाइड से ह्वे। तो मिसेज सर्यूळ की मौत निंद कीअधिक मात्रा गोळी से ह्वे। सर्यूळ कु सर फुडे गे। बृजमोहन का सर फुडे गे। मदन की हत्या डुबैक ह्वे। महेशा की हत्या पैथर बिटेन सर फोडिक ह्वे। अर नंदान तै फांसी पर लटकाये गे।
राय चौधरी -हूँ।  स्थानीय लोग क्या बुलणा छन ?
मनोज -कुछ न बल एक किसनदत्तन बीकाबार द्वीप खरीद छौ।
राय चौधरी -यूँ लोगुं तै लिजाणो काम कैन कौर ?
मनोज -कै प्रदीपन कौर छौ पर वू अब दुन्या मा नी च।
राय चौधरी -वैक बारामा क्वी जानकारी च ?
मनोज -उ छ तो गुनाहगार छौ।  चरस गांजा का धंदा करद छौ।  पर प्रूफ नि करे सक्यांद छौ। तीन साल पैल एक फ्रॉड केस मा बि फंस पर प्रमाण का अभाव  मा छूट गे। भौत इ सावधान मनिख छौ।
राय चौधरी -अर वु द्वीप ब्यापार मा शामिल छौ ?
मनोज -हाँ।  पर वैन साफ़ बतै छौ कि द्वीप वु तीसर पार्टी कुण खरीदणो च।
राय चौधरी -हूँ।  फिनेन्सियल प्वाइंट से दिखण जरूरी च कि पैसा कनै लग ?
मनोज -ना सर ! प्रदीप इतना चालाक छौ कि हुस्यार चार्टेड अकाउंटेंट बि हार मानि जांदन। फ्रॉड केस मा बि हम कुछ नि कर सक्यां। वु किसनदत्त का प्रतिनिधि बौण अर कखि बि किसनदात का सुराग साथ मा नि राख वैन।  अर वैन ही मृत मनिखों तै पटाइ कि एक हफ्ता का वास्ता बीकाबार द्वीप चलो जख एक हफ्ता शान्ति ही शान्ति राली । भैर से संबंध खतम करे गे छा।
राय चौधरी -पर ऊँ लोगुं तै धोखा कु पता नि चौल ? गंध बास ?
मनोज -ये द्वीप मा पैल बि इन प्रयोगिक अर शानदार पार्टी ह्वेन।  याने दीं दुन्या से कटण अर मजा करण।
राय चौधरी -हूँ या बात सही च।
मनोज -आनंद ! बोत ड्राइवर ! वैन बताइ कि इन साधारण लोगुं तै देखिक वु खौंळे बि च।  वै तै आश्चर्य  ह्वे की यी लोग पैल पार्टयूं जन लोग नि छया। सब साधारण प्रकृति का छया। प्रदीप कु वै तै हिदैत छे कि लोगुं तै द्वीप मा छोड़िक उख एक मिनट बि नि रौण। 
राय चौधरी -फिर कै तै  द्वीप का बारा मा कुछ पता बि चौल ?
मनोज -हाँ जब ऊख द्वीप बिटेन सिगनल मील। 
राय चौधरी -कब ?
मनोज -एक लड़कों ग्रुपन 11 तारीककुंण सिग्नल देखि छौ पर वु उना जैइ सकद छ।बड़ो तूफ़ान छौ।   वु लोग बारा को इ जै सकिन।  वूंक पक्को बुलण च बल वूंक पौंछण से पैल क्वी हौर नि पौंछि छ। अर क्वी तैरिक बि मुख्य जमीन मा नि ऐ सकद छौ।
राय चौधरी -अर तीन ग्रामफोन बि पाइ।  क्या विचार च ? वांसे कुछ सहायता मिल सकिद ?
मनोज -एक नाटक कम्पनीन प्रदीप का द्वारा यु ग्रामफोन रिकॉर्ड किसनदत्त कुण भ्याज। प्रदीप कु बुलण छौ कि नाट्य प्रशिक्षणों कुण ग्रामफोन चयेणु छौ। ये द्वीप मा सबसे पैल सर्यूळ अर वैकि कज्याण पौंचीन। वांसे पैल दुई मिस ऐलिस की नौकरी करदा छ।  जैंक अचानक मृत्यु ह्वे। डाक्टर बि नि बतै सौक कि अचानक क्या ह्वे।  यु निश्चित च कि दुयुंन विष नि दे छौ। हाँ संदेह च कि ऊंकी असावधानी से मृत्यु ह्वे पर प्रमाणित नि करे सक्यांद।
जस्टिस आलोकन टोनी तै फांसीक सजा सुणै छौ।  वैक विरुद्ध पूरा प्रमाण प्रमाणित ह्वेन।  फांसीक बाद पता चल कि प्रमाण गलत छ।  बाद मा दस मादे दसुंक मनण छौ कि टोनी निर्दोष छौ अर जज साबन कै ईर्ष्या मा टोनी तै सजा दे।
नंदा एक घरम कबि आया छे।  अर वुक  से बच्ची डूबिक मोर ।  यद्यपि वींन बचाणो पूरी कोशिश कार अर अफु बि डुबद डुबद बच।
 डा मदन कु अपण नर्सिंग होम थौ। बड़ो खरो डाक्टर। नियम कु पक्को।  वैक एक मरीज छौ प्रसन्ना जू ओपरेसन टेबल मा ओपरेसनो बगत इ खतम ह्वे। ह्वे सकद तब अनुभवहीनता रै होलि या सटापोंड़ी मा मृत्यु ह्वे गे।  पर सटापोड़ी क्वी अपराध नी च।
कोमल की एक नौकरानी छे।  वा गर्भवती ह्वे तो कोमलन नौकरी से निकाळ दे।  नौकरानीन डूबिक आत्महत्या कर दे।  बर्खास्त करण अमानवीय च पर नौकरी से बर्खास्त करण क्वी अपराध नी च।
राय चौधरी -इन लगणु च कि किसनदत्तन वो इ केस लेन जौं मा अपराध्युं तै  न्यायिक प्रक्रिया से डंड  नि मील।
मनोज -मैकमोहन एक अनाड़ी ड्राइवर छौ।  वै से एक दैं कार का तौळ कुछ बच्चा ऐ गेन अर ऊंन उखमी तडम दम तोड़ी दे।  ऐक्सिडेंट मानिक मैकमोहन कोर्ट से छुट गे।
जनरल महेश कु आर्मी रिकॉर्ड भौत बढ़िया छौ।  अपण असिस्टेंट तै इन जगा भ्याज कि बचण मुस्किल इ छौ।  पर मिलिट्री मा ये तै अपराध नि मने जांद।
अब रै गे बृजमोहन।  तो बृजमोहन हमर इ औफिस मा छौ।  घाघ जासूस छौ पर वैकि अपणी इज्जत छे।
राय चौधरी - अरे बदमाशी इज्जत छे वैकि।
मनोज -आपकी या रे च ?
राय चौधरी -अरे मि हमेशा से जाणदु छौ कि वु बदमाश च।  मीन वैक पैथर एक जासूस बि लगै छौ पर कुछ साबित नि ह्वे सौक।  बड़ो घाघ छौ वो। प्रदीपन आत्महत्या कार मि मानि नि सकुद।  बृजमोहन ही इखमा फँस्युं रै होलु।
मनोज -आपकी राय अर।
राय चौधरी -सबसे अजीब चकरघनी या च कि एक खाली द्वीप मा दस आदिम्युं हत्या ह्वे अर हमम क्वी सुराग नी च कि ह्वे क्या च।
मनोज -जी क्वी पागल आदिम यूँ हत्याक पैथर च। वैन ऊं अदिमों कु चुनाव कार जु न्यायिक प्रक्रिया से भैर  ह्वेन अर चाहये ऊंन अपराध कार च कि ना।
राय चौधरी -हूँ बोल बोल क्लू मिलणु च।
मनोज -हत्यारा यूँ तै अपराधी समझिक डंड दीण चाणु छौ। अर कै ना कै तरां वु अदिखळ राइ अर अबि बि अदिखळ च।
राय चौधरी -हाँ पर घटनाओं तै तर्क पर खरा बि उतरण चयेंद।
मनोज -एकी बात च कि हत्यारा बि द्वीप मा छौ पर अदिखळ रै।  नंदा की डायरी से पता चलद कि हत्या कु क्रम च - मैकमोहन , मिसेज सर्यूळ , महेश ,सर्यूळ ,कोमल , आलोक।  आलोक की हत्या का बाद नंदा की डायरी बतांदी कि रात मा डा मदन ना घर छोड़ी छौ अर ब्रजंमोहन  व धूमल वैक पैथर गेन।  फिर सुबेर मदन की लॉस समुद्र मा मील। अर आश्चर्य या च कि मदन की लाश ज्वार भाटा मा किलै नि बौग ? फिर बृजमोहन की हत्या ।  धूमल की मृत्यु रिवाल्वर की गोळी से ह्वे अर नंदा क गौळ मा फांसी का फंदा छौ। बृजमोहन की हत्या सर पर एक खिड़की से गिरिक भारी घड़ी गिरण से ह्वे।
राय चौधरी -कैक खिड़की छे ?
मनोज -नंदा की। इख्मा द्वी तीन अंदाज लगाये जै सक्यांदन।  यदि धूमलन बृजमोहन तै  मार अर फिर नंदा तै फांसी चढ़ाई अर फिर अफु पर गोळी मार तो ?
राय चौधरी -रिवाल्वर पर अंग्ल्युं निसान कैक छन ?
मनोज -नंदा का।
राय चौधरी -तो यु सिद्ध नि हूंद कि धूमलन गोळी से एटीएम हत्या कार इ होलु।  बड़ो जटिल केस च मेरी जिंदगी को -
मनोज -जी।
राय चौधरी -तो क्या नंदा हमारी अपराधीन च जैंन नौ खून करिन अर अंत मा स्वयम बि फांसी ?
मनोज -तर्क अर कुतर्क से -
[एक मच्छीमार आंद ]
मच्छीमार - साब एक प्लास्टिक मा बंधी बोतल मील जख पुटुक प्लास्टिक भितर कुछ पर्चा च। समुद्र का छाल  पर मील सैत च आपक क्वी कामक हो।
[मच्छीमार बोतल दींदु अर चल जांद ]

राय चौधरी [बंद बोतल खोलिक पर्चा निकाळदु।  पर्चा मनोज तै दींदु ] - बड़ी मेहनत करीं च।  एक रति भर पाणी नि गे बोतल भितर।  जरा पौढ़ क्या लिख्युं च धौं !
मनोज -
 हाँ तो सूणो ! युवावस्था से इ मेरी प्रकृति विरोधाभासी छे। मि हमेशा सपना दिखुद छौ कि कबि मि क्वी रहस्य बोतल पुटुक धौरुं अर वै रहस्य बड़ी कीमत ह्वावो।  रहस्य भरीं बोतल समुद्रौ लहरों माँ रावो अर ये रहस्य तै सही जगा पौंछणो अवसर केवल एक टका ही रावो ।
इनि मि तै दुःख दिखण खासकर हत्या दिखणो बड़ो बिगरौ छौ अर मि ईं इच्छा पूर्ति बगीचा मा चिमल्ठ , मधुमक्खी , तितली मारिक करदो छौ। बचपन से ही म्यार दिमाग मा हत्या करणो जनून बसि गे छौ।
पर दगड मा विरोधाभास यु छौ कि मि तै अन्याय पसंद नि छौ , बिलकुल बि ना। मि तै निर्दोषों पर अत्याचार बिलकुल पसंद नि छौ।
मीन अपण प्रकृति समझिक इ वकालात व्यवसाय अपणै। वकालात व्यवसाय मेरी द्वी विरोधाभासी प्रकृति दगड़ मेल खांद छौ , अपराध से दिखणो मौक़ा , अपराध से मुलाक़ात अर जुल्मियों तै डंड !
अपराध अर डंड मि तै आकर्षित करदो छौ और मि संतुष्टि का वास्ता अपराध साहित्य अर जासूसी किताब मा मसगूल रौंद छौ।
अभिनव अपराध करणो मीन सोची याल छौ।
जब मि न्यायाधीश बण ग्यो तो भौत सा छुपीं प्रवृति बि विकसित हूंद गेन। अपराध्युं पर यंत्रणा से मि तै आनंद आन्दु छौ। पर यदि म्यार समिण क्वी निर्दोष आवो अर उ यंत्रणा झेलणु हो तो में से सहन नि हूंद छौ। द्वी दै मीन जब द्याख कि निर्दोष फंसणु च तो मीन केस बंद कर दे।  पुलिस की चौकसी से निर्दोष तै अपराधी बणैक म्यार समिण नि लये गेन।  अधिकतर अपराधी वास्तव मा अपराधी इ छया।
एक बार मीम कीर्ति अपराधी का केस आई अर वैक व्यवहार बड़ो धोखा दीण वळु छौ।  वैक निर्दोष व्यवहार से न्यायालय , पुलिस प्रभावित ह्वे गे छे , तथ्य बि वैक समर्थन करदा दिखेणा छा पर मेरी अपराधी पछ्याणणो प्रवृति धोखा खाणो तयार नि छे। मीन वै तै सजा सुणाई किले कि वैन एक मासूम बुढ़िया को खून कार ज्वा बूडडी वै पर विश्वास करदी छे।
मि तै फांसी दीण वळ जज कु नाम दिए गे छौ पर मि हमेशा अपराधी तै सही डण्ड कु समर्थक रौं।
मि हमेशा अपराधी द्वारा इमोसनल ब्लैकमेल से दूर रौं अरअपराधी द्वारा इमोसनल ब्लैकमेल तै पछ्याँणण मा कामयाब बि रौं।
धीरे धीरे मीमा बदलाव आई कि न्यायाधीश की जगा मी तै स्वयं कुछ करण चयेंद।
मि स्वयं कत्ल करण चाणु छौ। कतल करणै इच्छा दिन प्रतिदिन प्रबल हूंद गे। इच्छा प्रबल से प्रबल हूंद गे जन एक कलाकार का अंदर सुंदर कृति रचना करणै प्रबल इच्छा जागृत अर प्रबल हूंद।
किन्तु मि साधारण तरां से कतल नि करण चांदु छौ।
म्यरो द्वारा कतल एक अनोखा कतल हूण चयेंद , अप्रतिम , दुनिया से अलग अनोखा कतल ! कलयुक्त कतल - अणसुण्यूं , अकल्पनीय काल !
मि तै लगण लग गे कि कतल करण चयेंद , मि  कतल करण चाणु छौ  , कतल   करण चाणु छौ …
पर मेरी भीतरी प्रवृति बीच मा अवरोध पैदा करणी छे कि कै बि निर्दोष  अत्याचार , यंत्रणा नि हूण चयेंद , निर्दोष तै दुःख नि दिए जाण चयेंद।
अचानक एक दिन एक साधारण डाक्टर से मुलाक़ात ह्वे अर बातोंबातों मा वैन बताइ कि कन कतल ह्वे सक्दन अर न्यायालय बि कुछ नि कर सकदन। वैन एक वाकिया सुणै जखमा एक बुढ़िया को कतल एक पति -पत्नी द्वारा दवा से करे गे अर दुयुं तै  बुढ़िया की मृत्यु से लाभ हूण वाळ छौ।  किन्तु दवा क्वी विष नि छौ तो वे युगल पर न्यायालय की नजर नि गे।  डाक्टरन कुछ किस्सा सुणैन जखमा जुर्म अवश्य हूंद किन्तु न्यायालय की हद मा इ जुर्म माने इ नि सके छया।
अर बस मि तै अग्नै बढ़णो सूत्र , दिशा, रस्ता  मिल गे छौ।
म्यार दिमाग मा बचपन मा सुणी गीत आइ कि ---नौ सैनिक कमरा मा देर रात तक छया
अर म्यार दिमाग मा अनोखी कल्पना आंद गेन , आंद गेन बस कल्पना मा विकास हूंद गे।
मि तरकीव से छुपीक अपण शिकार खुज्याण पर लग ग्यों।
मि अब ज्यादा समय बर्बाद नि करुल अर सीधा मूल कथा पर आन्दु
एक नर्सिंग होम से मीन डा मदन  मा पता चौल। मतलब एक डाक्टरन पियां मा ऑपरेशन कार अर मरीज मोरि गे।
द्वी मिलिट्री सैनिकों से जनरल महेशा की कारस्तानी पता चौल।
इनि धुमल का चाल चलन का बारा मा जानकारी मील।
मिस कोमल की नौकरानी की हत्या का बार मा पता चौल।
रिट्यर्ड इंस्पेक्टर बृजमोहन दगड़यों बदौलत  में से जुड़ . बृजमोहन वास्तव मा कातिल ही तो छौ जैन अपराध रुकण छौ वैन अपराध छुपाई !
नंदा का बार मा एक यात्रा मा जानकारी मील।
मीन एक डॉक्टर की सहायता से जाण याल छौ कि कैं दवा से अचानक हृदय गति रुक सकदी।  अपण मृत्यु का इंतजाम मीन अफिक कर यल छौ।
सर्यूळ अर मिसेज सर्यूळ कु अपराध बि कम नि छौ।
फिर बख्तवार मील अर वै से मीन भौत काम लेन।
जब सर्यूळ अपण घरवळि कुण ब्रैंडी लाइ तो मीन चुपके से क्लोरल हाइड्रेट मिलै दे छौ। कै तै बि शक होणो गुंजाइश तब नि छे।
जनरल महेशा की हत्या बड़ी सरलता से ह्वे।  महेशा तै म्यार आणो पता इ नि चौल। हाँ मीन टैरेस से उतरण मा बड़ी सवधानी बरत अर सब कुछ ठीक ठाक राइ।
मि तै पता छौ कि द्वीप की खोज होलि अर खोज ह्वे बि च पर हम सात का अलावा मूस नि मिलण छौ सो सात का अलावा क्वी  नि दिखे।
 मीतैं एक सहायक की जरूरत छे तो डा मदन काम आइ। वै तै मेरी खसियत अर इज्जत भरी जिंदगी का बारा मा पता छौ तो वैक संदेह में पर हवाइ नी च बल्कि वु बृजमोहन पर संदेह करणु राइ।  मीन वैक विश्वास जीत अर वै तै हत्यारा खुज्याणो स्कीम बताई जू वु मेरी बात मानि गे।
फिर खोज करे गे किन्तु खोज मा ज़िंदा लोगुं कमरों खोज नि ह्वे। मि तै यांकी संभावना छैं इ छे।
मीन सर्यूळ तब मार जब वू लखड़ काटणु छौ अर वैन म्यार आणै आवाज नि सूण।  मीन वैक खीसा  बिटेन डाइनिंग रूम की चाबी ल्याइ जै रूम तै वैन रात बंद करी छौ।
गंजमजी , घपरोळ माँ मि बृजमोहन का कमरा मा खिसक अर मीन वैक रिवाल्वर चुराई।
ब्रेकफास्ट का समय पर मीन क्लोरल  चाय मा मिलाइ अर वा आधा सुप्तावस्था मा ऐ गयी। फिर मीन वींक बांह मा सरलता से बच्युं -खुच्युं साइनामाइड कु इंजेक्सन घुसेड़ दे।
जब खोज शुरू ह्वे तो मीन रिवाल्वर छुपै दे अर क्लोरल व साइनामाइड तो खतम ही ह्वे गे छा।
 मदन से बोल कि मि तै मोर्युं घोषित करण जरूरी च।
 पर लाल रंग कु माटु लपोड़ अर काफी छौ बाकी काम तो डा मदन तै घोषित करण छौ कि मेरी मृत्यु ह्वे गे।
मीन मिस नंदा का कमरा मा समुद्री घास डाळ दे छौ अर घास देखिक वा किराण लग गे छे।
अर इथगा मा मि मीन मृतावस्था कु नाटक कार।  गहमागहमी मा मी तै वु लोग म्यार कमरा मा छोड़िक ऐ गेन।
फिर म्यार अर डा मदन कु क्लिफ पर मिळणो योजना बणी इ छे।
मीन क्लिफ से डा मदन तै धक्का दे वु समुद्र जोग ह्वे गे।
मि बंगलो में औं अर मिस नंदान म्यार पदचाप सुणिन । मि डा मदन का कमरा मा औं अर इन शोर कार कि क्वी सूण ल्यावो। मीन द्वार ख्वाल भैर होऊं अर कैन मेरी छाया जांद द्याख।
 एकाद मिनट बाद उ म्यार पैथर ऐन तब तक मि कूड़ो कुलिण पैथर औं अर खुलि छुड़ीं खिड़की  रस्ता डाइनिंग रूम मा औं। खिड़की मीन बंद कार। फिर मीन खिड़की कांच त्वाड अर अपर कमरा मा ऐ ग्यों।
मि तै अंदाज छौ कि वु लोग डर मकान की तलाशी ल्याल  अर ऊनि ह्वे।
मि बतांद बिसर ग्यों कि मीन धूमल कु रिवाल्वर जगा मा धर दे छौ अर मीन यु रिवाल्वर डिब्बाबंद  भोजन  डिब्बा तौळ चिपकैक छुपै छौ।
मि तै भर्वस छौ कि टूटा फूटा डब्बौं मा  यूंन नि खुज्याण।
लाल पर्दा तै मीन डाइनिंग रूम का कुर्सीक गद्दी तौळ छुपै दे छौ।
अब आन्दु मि क्लाइमेक्स पर !
मीन खिड़की से द्याख कि तीन मनिख  से घबरायां छया , कुछ बि ह्वे सकद छौ।   उंमादे एकमा रिवाल्वर छे। 
जब बृजमोहन भितर आयी तो मीन मार्बल घड़ी लमडैक वैको अंत कार।
फिर नंदान रिवॉल्वर से धूमल की हत्या कर दे।  निथर दुयुंक अच्छी जोड़ी बण सकद छे।
फिर मीन जू सोछ छौ वी ह्वाइ।  नंदा भीतर आइ अर मनोविज्ञान का तहत वींन अफु तै फांसी लगै दे।  अपराध बोध बड़ो निर्दयी जि हूंद। मीन वींक रिवॉल्वर जु कमरा मा पोड़ गे छौ रुमाल से उठाइ अर उखपर नंदा का उंगलयूँ निसान लेन।
फिर मीन यु सब ल्याख अर बोतल पुटुक घटना विवरण डाळ अर समुद्र मा बौगै  दे।
कुछ सवाल छन कि मीन इन किले कार ?
सबसे बड़ो कारण  हत्या अनोखी हत्या होली जु म्यार अलावा कैन नि करिन। मेरी तमन्ना छे कि मि मौलिक हत्या तरीका खोजूं अर अंजाम द्यूं।
मि अफु तै सबसे होशियार बताण चांदु।
फिर हत्या प्रतीकात्मक बि छन।
फिर मीन अपणी हत्या बि अफिक करण।
रिवॉल्वर ट्रिगर म्यार रुमाल लग्युं हथ से दबल  कि गोळी सीधा म्यार कपाळ पर लग जावो अर मि सीधा बिस्तर मा पौड़ी जौं। अर रिवाल्वर दूर छटक जालु।  रिवाल्वर पर नंदा का हथु निसान मिलल।
जब समुद्र शांत ह्वे जाल तो मुख्य भूमि से नाव आली अर तब पता चौलल कि इख दस हत्या ह्वेन पर हत्या कु रहस्य तब तक पता नि चौलल जब तक कि या बोतल नि मीलली।
            आपका जज न्यायधीश आलोक (द्स्त्ख्त )


इंस्पेक्टर मनोज रायचौधरी का तरफ दीखुद।

मनोज -हूँ कै तै पता चलद कि खून इन ह्वेन     .... पागल आदिम
राय चौधरी -म्यार हिसाबन जज महेशा पागल नि छौ। हाँ वो कुछ पागल अवश्य छौ पर बुद्धिमान छौ।  फिर न्यायप्रियता मा वु कम नि छौ। बेशकीमती मस्तिष्क का मनिख ! वाह क्या कत्ल करिन वैन काबिलेतारीफ !
मनोज -?जी
राय चौधरी -हाँ काबिलेतारीफ ! हत्यारा , बुद्धिमान हत्यारा , न्यायप्रिय हत्यारा !
     

 ------------------------समाप्त  ----------








 

अनुवादक  - भीष्म कुकरेती
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Bhishma Kukreti

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बौ सुरीला का चार पति (गढ़वाली में अनुदित  एकालाप नाटक )


मूल लेखिका -- लौरा एम . विलियम्स
अनुवाद --  भीष्म कुकरेती

चरित्र
बौ सरीला
रणधीर - एक बिगरैलु जवान
गोविन्दु -जवान अर सौम्य ड्रेस वळ
छैला - कलाकार लम्बो बाळ वळ
बर्मा - दाड़ी  वळ सबसे बुड्या
(पति  चरित्र एकी मनिख निभांद अर हर दृश्य मा झुल्ला बदलिक आंद )
 स्थान - लिविंग रूम
                                             बौ सुरीला
-उफ़ ,  फिर वै बात ह्वे गे।  म्यार फिर से तलाक ह्वे गे। मि सबसे भाग्यहीन जनानी छौं। भौत से एकी खसम से खुस रौंदन या खुस हूणों नाटक करदन।  अर मीन चार बदल देंन पर। [खांसद अर अखबार पढ़न लगद ]. उंह सौ प्रति माह। आदिम  स्वार्थी हूंदन।
म्यार चौथू खसम ! यु संभव नी च। हम चित्तार्षक जनान्युं तै इथगा भुगण पड़द।  हूँ
( पैलु फ्रेम मा रणधीर प्रकट हूंद , सुरीला पिक्चरक पास जांद ) आह ! रणधीर ! बांका सजीला जवान पति ! मि त्वे तै कबि नि बिसर सौकु।  बिसरण बि किलै छौ ? सजीला , बिगरैला पति भुलणै चीज हूंद क्या ? रणधीर तू ख़ूबसूरत छौ अर प्यारो।  मि प्यार मा त्वे तै प्यारे प्यारे करिक  भट्यान्दु छौ। तब मि सोळा की छौ अर तू चौबीस को।  त्वै तै मेरी जवानी अर मूर्खता माफ़ करण चयेंद छौ। पर मरद जात अपण अलावा कैक बारा मा कख सुचदि ? तीन मि तै भगणो सलाह दे कि तीम पैसा नि छन । तीन मि तै गलत समझ।
क्या एक जवान लड़की का काम सब्जी काटण , आटु उलण इ रै जांद ? [रणधीर दुःख मा हंसद ] पर सबसे बड़ी गलती तेरी या छे कि तू गोविंदु तै घर लै गे। अर मि अपण आकर्षण कम थूका कौर सकुद छौ ? तू क्या चांदी छे कि मि अपण आकर्षक बाळ काटिक नंगमुंडी ह्वे जान्दि ? क्या मि अपण सफेद दाँतपाँटी पर क्वीलतार फेरी दींदु ? [हंसदी ] हाँ तू इनि विश्वास करदु छे कि मि अनार्षक ह्वे जौं। तू कथगा जल्थमार छै हैं [गंभीर ] हैं ? यु त्यारि दोष छौ त्वै तै वै तै ड्यार नि लाण चयेणु छौ। पता नि कब मरद सीखल कि यदि वैकि कज्याणि खबसूरत हो तो दोस्तों तै घर का आस पास बि नि आण दीण चयेंद।
रणधीर तब तू असह्य ह्वे गे छै हाँ ! गोविंदु अर म्यार दगड होटलम डिन्नर पार्टी मा नि आन्दु छौ।  जब बि गोविंदु मि तै वा चीज भेंट करदो छौ जु तू नि दे सकद छौ तो तो जळीक म्वास  ह्वे जांद छौ। त्यार फोकट का घमंड से सब कुछ बर्बाद ह्वे।  अरे गोविंदु मि तै कान का फूल आदि इ त भेंट माँ दींदु छौ। अर वा घड़ी ? गोविन्द द्वारा मि तै घड़ी दीणो बाद तो सब कुछ समाप्त ह्वे गे। हम अलग हुवाँ।  तयार फोकट का घमंड अर स्वार्थी प्रवृति का कारण मि तै भौत भुगण पोड।


                                          बौ सुरीला [गोविंदु दुसर  फ्रेम मा आंद आर वा गोविंदु की तस्वीर जिना देखिक ]
गोविंदु भौत आलोचनात्मक दृष्टि से नि देख।  यु सब तेरी गलती च। जब मि प्यार से नाखुश छौ तो त्वै तै कुछ नि सुणण चयेणु छौ बल्कि में से दूर रौण चयेंद छौ।  तुम सब मर्द भावनात्मक मुर्ख हुँदा। मि अबि बि त्वे अर प्यारे तै नि बिसर सौकुं। अहा क्या दिन छया हैं ! इना रणधीर अर उना तू याने गोविंदु। रणधीरन ब्वाल , "गोविंदु ! मेरी कज्याण नाखुश च किलैकि मि वीँ तै सब कुछ नि दे सकुद। "
तीन ब्वाल , " त्वै तै सुरीला तै व सब कुछ दीण चयेंद जांक वा ख्वाइस करदि। " अर फिर मीन रणधीर से तलाक ले अर त्यार दगड़ ब्यौ कर। इख्मा म्यार क्वी दोष नि छौ।
त्वी बि मानली कि मि एक पतिव्रता नारी छौ। शिकैत की कखि जगा नी  च । तीन बोलि छौ कि सब कुछ मीम रालो। वा सुफेद मोटर बड़ी बिगरैलि छे। तीन बेकार शिकायत कार। मि तै नि पता छौ बल तू इथगा काईयाँ प्रवृति कु ह्वेल। जब मि क्वी चीज खरीदद छौ तो तू नराज ह्वेक कुणकुण ,  गुरगुर करदो छौ। तू असह्य प्राणी साबित ह्वे जब बि मीन क्वी जवारात खरीद। असह्य !
            इन मा मेरी तब्यत खराब हूणी छे सो ह्वे। क्वी बि भली जनानी इन वातावरण मा नि रै सकदी। मि तै त्वे से पीछा छुड़ानो बान यात्रा करण पोड। (उफ़ ) स्वार्थी मनिख ! मीन अब त्वै तै क्षमा कर याल।
खैर तीन म्यार तलाक की भरपाई का वास्ता का खूब दे।  पर मि तै सामंजस्य पसंद च। मि तै तड़क भड़क पसंद छौ अर त्वै तै सरलता बस या ही परेशानी छे।  तू मि तै नि समझ सकी। अरे इन दौलत का क्या करण जु दुसर पर रौब नि मारे सक्या ? गोविंदु सैत च इथगा धनी हूणों बाद बि तू एक साधारण मनिख ही छौ।
                    बौ सुरीला [छैला  तिसर फ्रेम मा आंद आर वा छैला की तस्वीर जिना देखिक ]

अहा छैला अर तेरी तुलना करीं बगैर मि नि रै सकदु।   शादी से पैल वैन मेकुण अजीब अजीब अलंकृत भाषा मा ल्याख।  छैला एक भावुक जानवर छौ। वैक लम्बा बाळु अर स्वप्नीली/  सुपनेळी  आंख्युं मि तै धोखा दे। मि तै भरवस छौ बल उ मि तै समजल। पर ना।
मि  लगद कि एक हैंक तै इलै नि समज स्कड किलैकि स्वार्थ बीच मा ऐ जांद। 
छैला ! मीन त्यार दगड ब्यौ करणो बान आलिशान मकान छवाड़। तीन या बात कबि नि समज।  ठीक च मीम गोविंदु का दियां घना छ अर पैसा छौ। पर मि तै यु असह्य छौ कि तू उखमादे इक पैसा  बि ले।
मि तै लगद छौ कि तू प्रसिद्ध ह्वेलि। पर ना - जब मि स्टडी रूम मा आंद छौ तो तू या तो लिखणु रोंद छौ या पढ्नु रौंद छौ। तू रात भर लिखणु रौंद छौ अर म्यार आराम माँ खलल पड़दु रौंद छौ।  फिर त्वै तै जबरदस्ती कखि भैर लीजाण पड़द छौ। तू तब बि लेख सकद छौ जब में तै तेरी जरूरत नि हूंदी छे कि ना ? पर यांसे मेरी खबसूरती मा कमि आंद गई। तू अफु मा इ व्यस्त रै।
मि तै आशा छे कि तू म्यार व्यक्तित्व समजिल पर सब बेकार। मीम नाटक का एक बढ़िया कहानी छे। हाँ याद आई कथा छे कि एक लड़की रात रात स्टेज मे काम करदी छे अर एक रात   वा प्रसिद्ध ह्वै गे। फिर व तबि घर लौट जब ठीक समय पर वींक गरीब मा तै वींक जरूरत छे।  पर तीन मेरी सहायता नि कार।
तू अफु मा व्यस्त छै अर जु बि तू लिखद छौ मेर समज मा कुछ नि आंद छौ।
अब तू धनी अर प्रसिद्ध ह्वे गे पर जब हम दगड छया तो तेरी आय कुछ ख़ास नि छे।  सब तै लगद  छौ कि तू  धनी छौ अर तबी मि इथगा सुंदर ड्रेस पैरदु । मीन तेरी सहायता करण चाहि पर तीन मना कर दे छौ। फिर हम द्वी अलग ह्वे गेवां।  वेक बाद क्वी युवा नि मील अर युवा स्वार्थी अर महत्वाकांक्षी जि हूंदन।
त्वै छुडनो दुःख तो छैं च।
                        बौ सुरीला [ चौथू फ्रेम मा वर्मा बुड्या आंद वा वैक दगड बात करदी ]
जब मि बर्मा तै मील तो इथगा धोका मीन कबि नि खै। मीन समज बल उ एक सज्जन आदिम च। अब बथावदी एक सौतेली मा कनकैक दूसरौ बच्चों तै अपण मानी ल्यावो ? मि बर्माक बच्चों तै अपण मानि नि सौक ! ठीक च शादी से पैल मि ऊँ तै कथा सुणान्दु छौ पर शादी बाद में से कथा तो क्या उंक दगड़ बात करणो ज्यु बि नि बुल्याइ। बर्मा तीन बि मि तै समजण मा गलती कार।  अरे में पर कुछ खर्चा पर्चा करण मा त्यार क्या जाणु छौ।  सब कुछ बच्चा ही नि हून्दन । बच्चो पर खर्चा अर मेपर कुछ ना।  तीन वूं तै बिगाड़न ही च तो बिगाड़।
ऊख बर्माक दगड बि दाल नि गौळ।  कैन बि मि तै सही तरां से नि समज।
अब मि स्टेज माँ काम करण चांदु अर एक मर्द की तलास च जु मि तै स्टेज मा चमकाण मा मदद कर साको।
हे सब पतियों ! वु तुम सब पर भारी पोड़ल अर फिर मि टॉम तै शायद याद नि बि करुल !
अर वु म्यार पंचौं खसम ह्वालु।


मूल लेखिका -- लौरा एम . विलियम्स
अनुवाद -भीष्म कुकरेती जून 2015

Bhishma Kukreti

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              आखरी खाणो डब्बा
          (करुणा, रोमांच , संशय , भ्रम  रसयुक्त  नाटक )
मूल नाटककार - डी . एम  . लारसन
गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती
(केवल नाटक प्रशिक्षण हेतु , नाट्य प्रदर्शन हेतु लेखक की अनुमति आवश्यक है )

                  माला
          राजू क्या बात च ?
           राजेन्द्र
                 मि तै अति भूख लगीं च।
[राजू खाणो डब्बा पर नजर टिकैक रखद
                माला
तो खालेदी।  मी तै फर्क नि पड़द

           राजेन्द्र
पर यु तो आखिरी डब्बा ही बच्युं च।
           माला
क्या ह्वे तब। ठीक च
          राजेन्द्र
अर तू ? त्वै तै भूक नी च ?
           माला
ना भूक नी च।
[राजू मथि तक लगान्दु ]
         राजेन्द्र मि तै विश्वास नी हूणु च कि यु खाणो आखरी डब्बा च।            माला
एक न एक दिन तो यु हूणि  इ छौ।
            राजेन्द्र
मि तै विश्वास छौ कि कुछ अहुर दिन चल जालो।
(वु कैन ओपनर खुज्यांद )
           माला
कैन   ओपनर मेज मा ह्वालु
[कैन  ओपनर मेज तौळ रौंद वु तौळ खुज्यांद अर इथगा मा माला खाणो डब्बा मेज बटें उठै लीन्दी ]
          राजेन्द्र
[उत्तेजना मा ] आ डब्बा खुलणो ओपनर मिल गे , मिल गे , इख्मी छौ। पर डब्बा कख च ? है इ क्या डब्बा तो मीन मेज मा देखि छौ।
  राजेन्द्र
 क्या मि तै मेज माँ डब्बा हूणों भरम ह्वे ह्वालु ? हैं भरम ?
           माला [खुसी का मूड मा ]
ह्वे सकद च !
         राजेन्द्र हूँ ? या कैन उठै दे हो ?[राजेन्द्र जांद अर माला तै कुतगळी दीण लग जांद            माला     
अरे बंद कौर मेरी     टट्टी  पिशाब भैर ऐ  जाली।     
           राजेन्द्र
तो डब्बा मि तै दे।
           माला
अच्छा अच्छा दींद छौ।
[माला डब्बा हथ मा लेकि हंसणी रौंदी।   फिर डब्बा दीन्दी ]
          राजेन्द्र
तीन कुछ बि नि खाणै ?
           माला
उंह
         राजेन्द्र
[राजेन्द्र कैन खुल्द पर काँटा नि रौंद। उ काँटा का बान उठद अर मेज की तरफ जांद। माला कैन का तरफ सरकदि ]
देख डब्बा पर हथ ना हाँ।
[द्वी कांटा लेक आंद अर अपण काँटा से भोज्य पदार्थ भैर गाडद अर माला का मुख मा धरद।  इनि माला बि भोज्य पदार्थ गाड्दि अर राजेन्द्र का मुख मा धरदी ]
           माला
 खाणो आखरी डब्बा !
            राजेन्द्र
हाँ पर   --
           माला
या जीमण से पैल आखरी भोजन।
          राजेन्द्र
जीमण ?
           माला
हाँ भैर जो प्रतीक्षा मा जि छन।
         राजेन्द्र हा ह्वे सकद च न्यूक्लियर विकिरण कम ह्वे गे हो !           माला    यु भौत बुरु च कि तू पक्को शाकाहारी छे।
           राजेन्द्र
भैर फल तयार होला।
           माला
अर साफ़ पाणी   मा डुबका होला।
          राजेन्द्र
मि तै डुबका वळ पाणी पसंद च।  बोतल का पाणी पेकी पेकि बिखळाण पड़ गे।
           माला
चल मि फूक मारिक त्यार पाणी मा डुबका लांदु।
[द्वी एक दूसर तै खलाणा रौंदन ]
         राजेन्द्र पता नी भैराक क्या हाल छन धौं ?           माला
पता नी मॉनिटर तो रेडिएसन मतबल विकिरण ही दिखाणु च।
            राजेन्द्र
अब हमम एक दिनों बि भोजन नी च।
           माला
पाणी की बि वै हालत च।
          राजेन्द्र
हूँ
           माला
अब  भोजन केवल रिसाक्लिंग से प्राप्त ह्वे सकद
[द्वी डब्बा चाटिक खाली करदन ]
     
           माला       
बांटिक खाणो वास्ता धन्यवाद         
           राजेन्द्र
हमेशा मि तेरी फिकर करदो।
           माला
हाँ तीन हमेशा शेयर कार।
          राजेन्द्र
तू प्रिय छे। मि बढ़िया से बढ़िया चीज दीण चांदो छौ।
           माला
हाँ अर अंत तक म्यार पैथर खड़ो रै।
         राजेन्द्र तन न बोल  अबि अंत नि ऐ।            माला मि तै याद च जब वूंन ब्वाल कि वु बम लेकि आणा छन तो   … मि अकेला इखुल्या यखुली छौ।             राजेन्द्र
मीन बि आस छोड़ी आल छौ कि हम फिर दगड़ी बि होला। 
           माला
हरेक शहर से दूर जाण चाणो छौ।  हरेक भागम भागमा लग्युं छौ कि बम फुटणो जगा से दूर ह्वे जावो।
          राजेन्द्र
मि दुसर तरफ जाणु छौ।
           माला
अर उ त्वै तै पकड़न चाणा छया कि तू शहर का तरफ नि जै सौकु।
         राजेन्द्र क्वी मि तै त्वै से नि कर सकद छा।            माला 
मी बि त्यार बगैर   शेल्टर तौळ जाणो तैयार इ नि छौ।
           राजेन्द्र
हाँ तू पोर्च तौळ खड़ी छे अर अगास जिना दिखणि छे।
           माला
हाँ मि आकास मा मिसाइलों की दौड़ दिखणु छौ कि बम कख फिंके जांद धौं।
          राजेन्द्र
अर मेरी कार क्रैश  ह्वे गे सीधा आँगन का चौक का पेड़ से
           माला
थैंक गौड कुछ नि ह्वे।
         राजेन्द्र मि जल्दी मा छौ।  ब्रेक लगाणो बगत इ नि छौ।            माला
मि त डौरी गे छौ कि अब क्या दिखुल    …
            राजेन्द्र
मी पर एक खरोड़ा बि नि लग।
           माला
हम द्वी एक दुसरो कुण जि बण्या छया।
          राजेन्द्र
अर समय हम तै ये घोल , घोसला पुटुक लया तब।
           माला
मि तै यु घोल पसंद च।
         राजेन्द्र मि तै नि लगद यांसे पैल मि इथगा खुस रै होलु !           माला       
मी बि         
           राजेन्द्र
क्वी बाधा ब्यवधान ना। कैक ना सुणनि न कैक लगाणि। क्वी भैर वाळ बीच मा ना।
           माला
मि त इख से भैर जाण इ नि चाँद छौ।
          राजेन्द्र
पर क्या करें अब तो अंतिम डब्बा बि हमन खतम कर याल।
           माला
एक साल हमन इख अकेला गुजार हैं ?
         राजेन्द्र मि त अबि बि सालों त्यार दगड इख अकेला रै सक्दु।            माला मी बि।             राजेन्द्र
वा कुर्सी शानदार च हाँ ![कुर्सी पास जांद ]
           माला
वा कुर्सी मेरी पसंदीदा कुर्सी च हाँ।  कखि कुर्सी बुकाणो बिचार तो नी च ना ?
          राजेन्द्र
[कुर्सी का कुसन भैर खींचद ]
           माला
क्या करणु छै ?
         राजेन्द्र दिखणु छौं इख पुटुक खाणो टींड त नि ह्वावन।            माला       अपण सोफ़ा चेक कार कुर्सी अधिक साफ़ च।           राजेन्द्र
क्या ?
           माला
अरे मि हमेशा त्वै तै अधिक खाण दींद छौ कि तू फिर अजर -बजर नि कौरी।
          राजेन्द्र
मि तै लगद तू सही छे। कुर्सी का पुटुक कुछ नी च -- सोफ़ा चेक करण चयेंद।
[सोफ़ा का कुसन हटांद ]
अरे जैकपॉट !
           माला
बोली तो छौ।
         राजेन्द्र चिप्स का चूरा   …            माला
हूँ शाकाहारी चूरा
[राजेन्द्र चूरा तै मुख पुटुक डाळद ]
     
           माला
कथगा चूरा ह्वालु ?
          राजेन्द्र
 साल भर तक को तो -
           माला
हूँ ?
         राजेन्द्र यदि हम माछ हूंद तो !           माला   
क्या मतबल ?           
           राजेन्द्र
बस जु मुख्य मा आयि से बोल दे
[द्वी हंसदन।  माला कुर्सी मा बैठ जांदी ]
           माला
अब क्या करे जावो ?
          राजेन्द्र
भैर जाण पोड़ल।
           माला
 पर भैर तो विकिरण किरण ?
         राजेन्द्र कुछ तो खतरा मोल लीण इ पोड़ल कि ना।            माला पता नी भैर का क्या हाल होला ?         राजेन्द्र
ह्वे सकद च सब बम फुस ह्वे गे ह्वावन अर भैर  ठीक ठाक ही हो ?
           माला
तो फिर विकिरण किलै दिखानो च ?
        राजेन्द्र
तीन कखि माइक्रोवन ऑन तो नि रख छौ ?
[द्वी हंसदन।  माला नक्सा पर नजर डाळदि ]
           माला
अच्छा अब कख जये जावो ?
         राजेन्द्र आखरी रेडिओ ब्रोडकास्ट कख बिटेन ऐ छौ ?         माला    कुछ समय पैली।  मीन नक्सा मा मार्क बि कौर छौ।
       राजेन्द्र शायद क्वी छूट सि कस्बा बच गे होलु।  अर रेडिओ ऊख बटें -           माला शहर का कथगा लोग वै कस्बा तक पौंछि ह्वाला ?            राजेन्द्र
ऊंकुण उथ्गा भोजन  नि रै ह्वालु।
           माला
बच्यां लोगुंन भोजन की क्या व्यवस्था कर होली ? खाणक तो रैई नि होलु।
          राजेन्द्र
मतलब हम तै उख नि जाण चयेंद ?
           माला
हाँ उख बि तो भोजन नि होलु।
         राजेन्द्र
 एक बात बता कि जुत खाण मा कनो हूंद ह्वालो।  एक फिलम मा चार्ली चैप्लिन भूख मा जुत खांद।
           माला
मीन  चैप्लिन की पिक्चर तो नि देख पर वैक का बारा मा सूण इ सूण च ।   
           राजेन्द्र
उफ़ कन पिक्चर दिखदी छै तू ?
           माला
तू बोल तो मि त्यार बान कैं पिक्चर की हीरोइन बण जौं !
          राजेन्द्र
मेरी त फेवरेट फिल्म जुरासिक पार्क च तो डायनासोर कु अभिनय करली हैं ?
[द्वी हंसदन ]
           माला
मीन बचपन मा देखि छौ।
         राजेन्द्र तेरी यादास्त खूब च हाँ।            माला
हूँ
            राजेन्द्र
त्यार साल यखुली गुजर गे अर पता बि नि चौल।  तीम  या रस्याण लाणो कला बड़ी च हाँ।
           माला
मि तै वु पसंद जु तीन मेकुण प्रेम बाबत लेखी छौ।
          राजेन्द्र
अर मि तै भौत पसंद च जु तीन चित्र बणैन।
           माला
मेरी जिंदगी का सबसे महत्वूर्ण रचनात्मक समय छौ यु एक साल।
         राजेन्द्र म्यार बि। मि नि जाणदो कि क्वी  रचनाधर्मिता द्याखल बि।            माला       
कुछ फरक नि पड़द।  हमन एक हैंकाकुण  रचना रच अर हम दुयुं तै पसंद आई यो ही भौत महत्वपूर्ण च।       
           राजेन्द्र
तू भौत मयेळी छे।  मि इ जनम मा कै हैंकाक दगड बिताणो सोच बि नि सकुद।
           माला
में पर चिपकिक रौणै इच्छा ?
          राजेन्द्र
हाँ।
           माला
त्वी बि तो दुनिया का सुंदर युवा छै।
         राजेन्द्र मि त्वै तै असफल हूण नि दिखण चांदु छौ बस आज -           माला आज क्या ?            राजेन्द्र
भोजन -सब समाप्त -
           माला
पर हमन आवश्यकता से अधिक ही खै ह्वाल। तीन इथगा दिन भौत स्वादिस्ट भोजन बणाइ। तीन सब कुछ की पूरी हिफाजत कार।
          राजेन्द्र
पर आज समज मा नि आणु च कि क्या करे जावो। समस्या कु क्या समाधान ह्वालु ?
           माला
समय ऐ गे कि कै हैंक तै समाधान खुजण दे।
         राजेन्द्र तीम क्वी योजना च ?           माला
हाँ     
          राजेन्द्र
मी तै त्वे पर पूरो विश्वास  च।
           माला
मि तै लगणु च कि आज कुछ ना कुछ हूण वाळ च। कुछ भलो भलु हितकारी -
          राजेन्द्र
मि तै विश्वास च कि हितकारी ही ह्वालु।
           माला
पता नि क्या    … पर कुछ हितकारी हूण वाळ च।
         राजेन्द्र बिलकुल विश्वास च मि तै।            माला
तो फिर आँख बंद कौर अर घुण्ड मा बैठ।
            राजेन्द्र
प्रार्थना ?
           माला
हाँ प्रार्थना करण ।
[राजेन्द्र कॉफी टेबल का पास जांद , आँख बंद करद।  प्रार्थना पीजे मा ]
          राजेन्द्र
उन मि प्रार्थना नि करद पर अब प्रार्थना से मि कुछ बि नि मंगण चांदो अपितु कुछ जणन चांदु शायद अफु तै समजण चांदु।  मि त्वै तै  धन्यवाद दींदु जु तीन में तै एक भेंट दे -प्रार्थना !  तू सबसे प्यारी छे अर तीन मि तै अमूल्य भेंट दे।
[ माला वैक समिण आदि अर खुस ह्वेक एक चॉकलेट जन का बक्सा धरदी।
         राजेन्द्र हे भगवान !
[वु आँख खुल्द अर खुस माला तै दिखुद अर चॉकलेटौ बक्सा दिखुद ]
राजेन्द्र माला लिपटद ]
           माला
       मीन यु अति आवश्यकता का वास्ता बचैक रख छौ।   
[ अचानक संगीत की आवाज आदि ]     
           राजेन्द्र
कुछ तीन बि सूण ?
           माला
इंटरकॉम की आवाज च।
          राजेन्द्र
नहीं या आवाज भैर बटें आणि च। क्वी संगीत बजाणु च।
           माला
आकर्षक संगीत आकर्षक !
         राजेन्द्र भैर दिखणो जये जाय ?           माला ह्वे सकद च क्वी हमर पैथर हो ?         राजेन्द्र
हम तै क्वी अलग नि कौर सकद।
           माला
संगीत नजदीक आणु च।
        राजेन्द्र
इन लगणु च जन बच्चो बान आइस क्रीमों  ट्रक  आणु हो जू संगीत सुणान्दु।
           माला
हाँ हां आइस क्रीम कु ट्रक  जु संगीत बजाणु रौंद।
         राजेन्द्र हाँ आइस क्रीम कु ही ट्रकक आवाज च।          माला      स्वादिस्ट ठंडी आइसक्रीम।
      राजेन्द्र
 हम तै भैर दिखणो जाण चयेंद ?
           माला ठीक च।             राजेन्द्र
तयार ?
           माला
मि स्वेटर पैरिक आंदु
[वा स्वेटर पैरदी ]
          राजेन्द्र
त्वे पर स्वेटर क्या फबणी च हाँ !
           माला
धन्यवाद।
         राजेन्द्र तयार ?           माला     
थुडा डौर लगणी च।            राजेन्द्र
मि सदा त्यार साथ रौलु।
           माला
चलें ?
          राजेन्द्र
चल।
           माला
[भैर सुहाना छौ।  जन कि संसार ]
         राजेन्द्र
 क्या हम बेकार मा एक साल तक भ्रमवश विकिरण का डौर भितरी रौंवाँ ?
           माला
हैं ? क्या  बेकार मा ?
[   राजेन्द्र अर माला भैर जांदन आइसक्रीम का डब्बा लांदन अर भैर से संगीत की आवाज बढ़दी जांद। ]


             The End

मूल नाटककार - डी . एम  . लारसन
गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती

Bhishma Kukreti

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     News about Garhwali Drama
दिल्ली में उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 का आयोजन ऐतिहासिक पहल!
-    सुरेश नौटियाल

देश की राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में उत्तराखंड की तीन प्रमुख भाषाओं -- गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी -- में से गढ़वाली नाटकों की परंपरा सबसे अग्रणी और महत्वपूर्ण रही है. पिछले डेढ़-दो दशक से लगभग नेपथ्य में जा चुकी इस परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास 2013 में द हाई हिलर्स ग्रुप ने किया पर उत्तराखंड के केदारनाथ और अन्य क्षेत्रों में आपदा आने के कारण यह प्रयास स्थगित रह गया. इसके बाद, फरवरी 2014 में विनोद रावत, सुरेश नौटियाल, दिनेश बिजल्वाण और प्रताप सिंह शाही ने ऐसा ही प्रयास किया. इन लोगों के साथ मिलकर इस संवाद को डॉ. सुवर्ण रावत,खुशहाल सिंह बिष्ट, हेम पंत, चारु तिवारी, भूपेन सिंह, लक्ष्मी रावत, चंद्रकांत नेगी, हेमा उनियाल, दयाल पांडे, देवेन्द्र बिष्ट, अनीता नौटियाल, सुनील नेगी, विनोद नौटियाल, राकेश गौड़, गणेश रौतेला, संयोगिता ध्यानी और किशोर शर्मा इत्यादि जैसे रंगकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों ने आगे बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन बात तब भी बन नहीं पाई.

बहरहाल, अब 2015 में इस प्रयास को साकार किया विनोद रावत ने 2011 मेंस्थापित अपनी संस्था कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम तथा सुरेश नौटियाल,दिनेश बिजल्वाण और सुनील नेगी के विशेष सहयोग से. हेम पंत, लक्ष्मी रावत,विनोद बड़थ्वाल और खुशहाल सिंह बिष्ट के अतिरिक्त उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 आयोजन समिति के सदस्यों और जूरी-सदस्यों का भी इस आयोजन में प्रत्यक्ष और परोक्ष योगदान रहा. अंतत:, उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 के नाम से यह आयोजन 5 से 8 नवंबर तक नयी दिल्ली स्थित पुरुषोत्तम हिंदी भवन आडिटोरियम में किया गया. इस काम को अंजाम देने के लिए नाट्योत्सव आयोजन समिति का गठन विनोद रावत की अध्यक्षता में किया गया था जिसमें सुरेश नौटियाल, दिनेश बिजल्वाण, सुनील नेगी, लक्ष्मी रावत, हेम पंत, प्रेम गोसाईं, प्रताप सिंह शाही, राजीव बडथ्वाल और शिवचरण मुंडेपी सदस्य थे. इसके साथ ही, वरिष्ठ नाट्य-समीक्षक दीवान सिंह बजेली की अध्यक्षता में जूरी का गठन किया गया जिसमें एनएसडी से रंगकर्म में प्रशिक्षित डॉ. सुवर्ण रावत के अतिरिक्त रंगकर्मी हेम पंत और लक्ष्मी रावत तथा गढ़वाली संस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. सतीश कालेश्वरी सदस्य थे.

नाट्योत्सव के पहले दिन 5 नवंबर को हल्द्वानी के रंगमंडल शैलनट ने “अदपुर तिपुर” अर्थात आधा महल नामक कुमाऊंनी नाटक का मंचन किया. अगले दिन6 नवंबर को श्रीनगर-गढ़वाल की नाट्य-मंडली विद्याधर श्रीकला ने गढ़वाली नाटक “बुढ़देवा दिल्ली में” की प्रस्तुति दी और 7 नंवबर को दिल्ली की संस्था द हाई हिलर्स ग्रुप ने गढ़वाली नाटक “फुंद्या पदान अर चखुलि प्रधान” का मंचन किया. अंतिम दिन 8 नवंबर को सम्मानपत्र और पुरस्कार वितरण समारोह और सांस्क्रृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर स्मारिका का प्रकाशन भी किया गया.

शैलनट हल्द्वानी की प्रस्तुति कुमाऊंनी नाटक “अदपुर तिपुर” का मूल आधार कुमाऊं की एक पौराणिक गाथा का मुख्य पात्र कल्याण सिंह बिष्ट (कलबिष्ट) था, जो अपने गांव की भलाई के लिए एक दुष्ट व्यक्ति का सामना करते हुए अपने प्राण गंवा देता है. इस कथा को “अदपुर तिपुर” नाटक के रूप में ढाला शम्भुदत्त ‘साहिल’ ने और कुमाऊंनी भाषा में अनुवाद किया राजीव शर्मा ने.

कल्याण सिंह की भूमिका स्वयं शंभुदत्त ‘साहिल’ ने निभाई और दीवान पांडे की भूमिका मुकेश जोशी ने. कृष्ण पांडे की भूमिका में विवेक वर्मा, लक्ष्मण सिंह की भूमिका में देवेन्द्र तिवारी, कमला की भूमिका में दीपा भट्ट, जानकी की भूमिका में प्रियांशु जोशी, नागुलि और भागुलि की भूमिका में अनवर और अभिषेक, भराड़ी की भूमिका में विक्की जायसवाल, चनुवा की भूमिका में कैलाश तिवाड़ी, मनुवा की भूमिका में हर्षित पंत, बुबू की भूमिका में राजीव वर्मा, भौजी की भूमिका में ललिता अधिकारी, हरिया की भूमिका में अजय कुमार, गणेशदा की भूमिका में केदार पलडिया/मोहन जोशी और सूत्रधार की भूमिका में रोहित मलकानी थे. गीत एवं संगीत निर्देशन किया मोहन जोशी, रूप-सज्जा की राजीव शर्मा ने, वेशभूषा की दिनेश जोशी और दिनेश पांडे ने, मंच सामग्री की व्यवस्था की रोहित मलकानी और पल्लवी ने. नाटक का संयोजक डॉ. डीएन भट्ट ने और सह-संयोजक दीपक मेहता ने किया. कला एवं दृश्य संयोजन राजीव शर्मा ने किया. और नाट्यांतरण, परिकल्पना एवं निर्देशन शम्भुदत्त ‘साहिल’ ने किया.

विद्याधर श्रीकला श्रीनगर-गढ़वाल की मुखौटा नाट्य-प्रस्तुति “बुढ़देवा दिल्ली में” गढ़वाल की एक पारंपरिक नाट्य-विधा पर आधारित थी, जो जाख, चंडिका, कांस और क्षेत्रपाल जैसे देवी-देवताओं की डोली जात्रा के दौरान खेली जाती है. इस नाटक की आत्मा भान और मुख्य पात्र बुढदेवा हैं, जिनके बीच चुटीले संवाद होते हैं. नाटक में मुख्यतः व्यंग्यात्मक हास्य मुखर रहा और इसका विस्तार भौगोलिक सीमाओं से परे करके स्थितियों और परिस्थितियों में साम्यता का बोध कराया गया.

बुढदेवा की भूमिका डॉ. डीआर पुरोहित ने और भान की भूमिका विमल बहुगुणा ने की. विभिन्न भूमिकाओं में थे अभिषेक बहुगुणा और हर्ष पुरी तथा मुखौटा नर्तक थे पंकज नैथानी, तान्या पुरोहित, दीपक डोभाल और राखी धनै. गायन और संगीत निर्देशन किया संजय पांडे और नियति कबटियाल के साथ-साथ कुसुम भट्ट, गोकर्ण बमराड़ा और तीन अन्य ने. प्रोडक्शन नियंत्रक थे मदनलाल डंगवाल और हार्विच बैटल. प्रस्तुति के आयोजन निदेशक थे डॉ. डीआर पुरोहित तो वस्त्र-विन्यास एवं मुखौटों की व्यवस्था की प्रेम मोहन डोभाल और सुरेश काला ने. संगीत दिया धूम लाल/संजय पांडे और राकेश भट्ट ने तो नाटककार थे डॉ. डीआर पुरोहित. नाटक का निर्देशन किया सुरेश काला ने, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला.

तीसरे दिन दिल्ली के द हाई हिलर्स ग्रुप ने सुरेश नौटियाल का गढ़वाली नाटक “फुंद्या पदान अर चखुलि प्रधान” खेला. यह नाटक  उत्तराखंड में प्रधानपति की अघोषित और असंवैधानिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी के साथ-साथ वहां की वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर सूक्ष्म टिप्पणियां और कटाक्ष करते हुए आगे बढ़ता है तथा इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि यदि महिला प्रधान व्यवस्था पुरुषों नहीं स्वयं महिलाओं के हाथ में होनी चाहिए. व्यवस्था में पारदर्शिता, सामूहिकता और सुशासन की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए यह नाटक ग्राम स्वराज और ग्राम सरकार की स्थापना का संदेश भी देता है.

इस नाटक में समाचारवाचिका की भूमिका निभाई अनीता नौटियाल ने और कोरस में महेंद्र रावत, कुसुम बिष्ट और ओंकार सिंह नेगी के अलावा सभी कलाकार शामिल थे. बसंत सिंह रावत उर्फ़ फुंद्या पदान की भूमिका निभाई रमेश ठंगरियाल ने और चखुलीदेवी का रोल किया कुसुम चौहान ने. शांतिदेवी की भूमिका में संयोगिता ध्यानी, पुरुषोत्तम बडोला की भूमिका में सुभाष कुकरेती, प्रताप सिंह नेगी के रोल में  गिरधारी रावत, बैशाखीलाल की भूमिका में खुशहाल सिंह बिष्ट, फ्यूंली के रोल में प्रकृति नौटियाल, उद्घोषक के रोल में सुरेश नौटियाल, बीडीओ की भूमिका में हरेन्द्र सिंह रावत, बस कंडक्टर की भूमिका में सुभाष कुकरेती, बस ड्राइवर के रोल में गिरधारी रावत, आन्दोलनकारी के रूप में हरेन्द्र सिंह रावत, ग्रामीण महिला की भूमिका में सुधा सेमवाल और स्कूली छात्र के रूप में सुशील भद्री ने भूमिकाएं निभाईं. मंच प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाई दिनेश बिजल्वाण और कुसुम बिष्ट ने तो प्रकाश व्यवस्था में थे बलवंत सिंह एवं हरि सेमवाल. मंच एवं वस्तु सामग्री की जिम्मेदारी थी ओंकार सिंह नेगी की और रूपसज्जा की सुशील भद्री ने. वेश-भूषा एवं वस्त्र विन्यास कलाकारों ने स्वयं किया. पार्श्व संगीत वासु सिंह का था तो संगीत निर्देशन था कृपाल सिंह रावत “राजू” का तथा वाद्ययंत्रों पर थे कृपाल सिंह रावत “राजू” (हारमोनियम), आनंद सिंह (ढोलक), गोपीचंद भारद्वाज (हुड़का) और सुशील भद्री (थाली). अंत में प्रकाश परिकल्पना एवं निर्देशन था हरि सेमवाल का.

चौथे और अंतिम दिन सामान और पुरस्कार वितरण समारोह के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उत्तराखंड नाट्य लीजेंड का सम्मान जाने-माने रंगकर्मी ललितमोहन थपल्याल को मरणोपरांत दिया गया. उनका जन्म 1920 में ग्राम श्रीकोट, खातस्यूं, गढ़वाल में हुआ था.  जहां तक थियेटर का सवाल है, ललितमोहन छात्र-जीवन से ही थियेटर से जुड़ गये थे. उन्होंने गढ़वाली थिएटर और रंगकर्म को आगे बढाने में उल्लेखनीय योगदान किया.

लाइफ-टाइम सम्मान नईमा खान उप्रेती को दिया गया. उनका जन्म 26 मई1938 को अल्मोड़ा में हुआ था. नईमा ने अपने पति मोहन उप्रेती के अलावा बीएल शाह और बीएम् शाह जैसी सांस्कृतिक विभूतियों के साथ मिलकर उत्तराखंड के लोकगीतों और संगीत को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान किया. लाइफ-टाइम सम्मान शारदा नेगी को भी दिया गया. उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल में 1956 में हुआ था. दिल्ली में रंगमंच और नाटकों में सर्वप्रथम हिस्सेदारी करने वाली महिलाओं में शारदा नेगी अग्रणी रही हैं. उन्होंने ऐसे समय और ऐसी परिस्थिति में गढ़वाली रंगमंच में प्रवेश किया जब स्वयं को संभ्रांत मानने वाले पहाडी लोग अभिनय करने वाली स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखते थे.

लाइफ-टाइम सम्मान उत्तराखंडी रंगमंच को समर्पित दिनेश कोठियाल को मरणोपरांत दिया गया. उनका जन्म ग्राम तछेटी (पाबौ), घुडदौड़स्यूं, पौड़ी गढ़वाल में 10 नवंबर 1952 को हुआ था. वह रंगकर्म के अच्छे संगठनकर्ता थे. लाइफ-टाइम सम्मान होशियार सिंह रावत को गढ़वाली थिएटर में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया. उनका जन्म ग्राम कोटली, पट्टी साबली, पौड़ी गढ़वाल में 3 फरवरी 1945 को हुआ था.

नाट्य-निर्देशन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मित्रानंद कुकरेती को सम्मान प्रदान किया गया. वह गढ़वाली रंगमंच के अग्रणी निर्देशक और रंगकर्मी हैं. नाट्य-लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए राजेन्द्र धस्माना को सम्मान प्रदान किया गया. गढ़वाली रंगमंच को भारतीय भाषाओं के आधुनिक रंगमंच के समकक्ष लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. नाट्य-समीक्षा के लिए दीवान सिंह बजेली को सम्मान प्रदान किया गया. उनका जन्म ग्राम कलेत, पत्रालय मनाण, जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) में 1937 में हुआ था. बजेली पिछले चार दशक से नाटक, नाटककारों और कलाकारों के बारे में लगातार देश की सुप्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं.


उत्तराखंड नाट्य समारोह-2015 के लिए पुरस्कार इस प्रकार से दिए गए: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार कुसुम चौहान को सुरेश नौटियाल के गढ़वाली नाटक “फुन्द्या पदान अर चखुली प्रधान” में मुख्य भूमिका के लिए प्रदान किया गया और इसी नाटक में फुन्द्या पदान की भूमिका करने वाले रमेश ठंगरियाल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया. सर्वश्रेष्ठ आलेख का पुरस्कार “अदपुर तिपुर” को गया और इसके लिए शम्भुदत्त ‘साहिल’ को पुरस्कृत किया गया. सर्वश्रेष्ठ रूपसज्जा के लिए  “अदपुर तिपुर” के रूपसज्जाकार राजीव शर्मा को पुरस्कृत किया गया. सर्वश्रेष्ठ वस्त्र-विन्यास का पुरस्कार प्रेमबल्लभ डोभाल के खाते में गया जिन्होंने “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक के लिए वस्त्र-विन्यास किया. सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक में संगीत देने के लिए संजय पांडे को दिया गया. सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक के निर्देशन के लिए सुरेश काला को दिया गया. और, “अदपुर तिपुर” को सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति माना गया.

अंत में, यह कहना आवश्यक है कि कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट ने उत्तराखंड नाट्योत्सव के नाम से जो रंगयात्रा बिना किसी सरकारी सहायता के आरंभ की है, उसे जारी रहना चाहिए. साथ ही, भविष्य में उत्तराखंड नाट्योत्सवों का आयोजन उत्तराखंड की भूमि में अनिवार्य रूप से होना चाहिए तभी यह रंगयात्रा अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होगी.


Bhishma Kukreti

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'Jank Jod': Garhwali Drama Illustrating Bureaucratic Mentality of Migrated Garhwalis





 

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                          Bhishm Kukreti

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             Jank Jod’ a Garhwali play written by playwright Rajendra Dhashmana is one of the milestones for the modern Garhwali drama /play world.  Famous Garhwali drama researcher Dr. Sudha Rani states that ‘Jank Jod ‘ by Rajendra Dhashmana is one of the milestones in the Garhwali drama world for taking Garhwali drama to a new era. Famous writer and socio-political activist Suresh Nautiyal narrate that ‘Jank Jod ‘ is the third step in modernizing Garhwali drama and taking the Garhwali drama world for competing with other Indian language dramas. Rajendra Dhashmana connected the drama with people and paved the way for future growth in Garhwali drama.

          'Jank Jod' is a satirical drama and was staged by a drama organization ' Jagar'  in 1975 in Delhi. Mohan Dandriyal directed the drama. The drama deals with the bureaucratic mentality of migrated Garhwali even in their social and family life. The drama is an amalgam of realism and imagination but is inclined more toward realism. Dr. Sudharani remarked that the drama deals with the problems and future of Garhwali drama staging keeping the theme of bureaucratic mentality on the background. She writes that Jank  Jod became interesting when Mohan Dandariyal directed the drama.
         The characters are suitable for dramatic effects and so are dialogues to suit the theme. Dialogues are very sharp and teasing to migrated Garhwalis.
          The dialogues and characters seem to be from real-world government servants from migrated Garhwali world living in Delhi.
 The drama ‘Jank Jod’ by Dhashama opened a new world for modernizing Garhwali dramas.

Reference; Dr Sudharani, Garhwal ka Rangmanch, 1990, Garhwal ki Jivit Vibhutiyan aur Garhwal ka Vaishishthya page 207
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