News about Garhwali Drama
दिल्ली में उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 का आयोजन ऐतिहासिक पहल!
- सुरेश नौटियाल
देश की राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में उत्तराखंड की तीन प्रमुख भाषाओं -- गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी -- में से गढ़वाली नाटकों की परंपरा सबसे अग्रणी और महत्वपूर्ण रही है. पिछले डेढ़-दो दशक से लगभग नेपथ्य में जा चुकी इस परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास 2013 में द हाई हिलर्स ग्रुप ने किया पर उत्तराखंड के केदारनाथ और अन्य क्षेत्रों में आपदा आने के कारण यह प्रयास स्थगित रह गया. इसके बाद, फरवरी 2014 में विनोद रावत, सुरेश नौटियाल, दिनेश बिजल्वाण और प्रताप सिंह शाही ने ऐसा ही प्रयास किया. इन लोगों के साथ मिलकर इस संवाद को डॉ. सुवर्ण रावत,खुशहाल सिंह बिष्ट, हेम पंत, चारु तिवारी, भूपेन सिंह, लक्ष्मी रावत, चंद्रकांत नेगी, हेमा उनियाल, दयाल पांडे, देवेन्द्र बिष्ट, अनीता नौटियाल, सुनील नेगी, विनोद नौटियाल, राकेश गौड़, गणेश रौतेला, संयोगिता ध्यानी और किशोर शर्मा इत्यादि जैसे रंगकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों ने आगे बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन बात तब भी बन नहीं पाई.
बहरहाल, अब 2015 में इस प्रयास को साकार किया विनोद रावत ने 2011 मेंस्थापित अपनी संस्था कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम तथा सुरेश नौटियाल,दिनेश बिजल्वाण और सुनील नेगी के विशेष सहयोग से. हेम पंत, लक्ष्मी रावत,विनोद बड़थ्वाल और खुशहाल सिंह बिष्ट के अतिरिक्त उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 आयोजन समिति के सदस्यों और जूरी-सदस्यों का भी इस आयोजन में प्रत्यक्ष और परोक्ष योगदान रहा. अंतत:, उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015 के नाम से यह आयोजन 5 से 8 नवंबर तक नयी दिल्ली स्थित पुरुषोत्तम हिंदी भवन आडिटोरियम में किया गया. इस काम को अंजाम देने के लिए नाट्योत्सव आयोजन समिति का गठन विनोद रावत की अध्यक्षता में किया गया था जिसमें सुरेश नौटियाल, दिनेश बिजल्वाण, सुनील नेगी, लक्ष्मी रावत, हेम पंत, प्रेम गोसाईं, प्रताप सिंह शाही, राजीव बडथ्वाल और शिवचरण मुंडेपी सदस्य थे. इसके साथ ही, वरिष्ठ नाट्य-समीक्षक दीवान सिंह बजेली की अध्यक्षता में जूरी का गठन किया गया जिसमें एनएसडी से रंगकर्म में प्रशिक्षित डॉ. सुवर्ण रावत के अतिरिक्त रंगकर्मी हेम पंत और लक्ष्मी रावत तथा गढ़वाली संस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. सतीश कालेश्वरी सदस्य थे.
नाट्योत्सव के पहले दिन 5 नवंबर को हल्द्वानी के रंगमंडल शैलनट ने “अदपुर तिपुर” अर्थात आधा महल नामक कुमाऊंनी नाटक का मंचन किया. अगले दिन6 नवंबर को श्रीनगर-गढ़वाल की नाट्य-मंडली विद्याधर श्रीकला ने गढ़वाली नाटक “बुढ़देवा दिल्ली में” की प्रस्तुति दी और 7 नंवबर को दिल्ली की संस्था द हाई हिलर्स ग्रुप ने गढ़वाली नाटक “फुंद्या पदान अर चखुलि प्रधान” का मंचन किया. अंतिम दिन 8 नवंबर को सम्मानपत्र और पुरस्कार वितरण समारोह और सांस्क्रृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर स्मारिका का प्रकाशन भी किया गया.
शैलनट हल्द्वानी की प्रस्तुति कुमाऊंनी नाटक “अदपुर तिपुर” का मूल आधार कुमाऊं की एक पौराणिक गाथा का मुख्य पात्र कल्याण सिंह बिष्ट (कलबिष्ट) था, जो अपने गांव की भलाई के लिए एक दुष्ट व्यक्ति का सामना करते हुए अपने प्राण गंवा देता है. इस कथा को “अदपुर तिपुर” नाटक के रूप में ढाला शम्भुदत्त ‘साहिल’ ने और कुमाऊंनी भाषा में अनुवाद किया राजीव शर्मा ने.
कल्याण सिंह की भूमिका स्वयं शंभुदत्त ‘साहिल’ ने निभाई और दीवान पांडे की भूमिका मुकेश जोशी ने. कृष्ण पांडे की भूमिका में विवेक वर्मा, लक्ष्मण सिंह की भूमिका में देवेन्द्र तिवारी, कमला की भूमिका में दीपा भट्ट, जानकी की भूमिका में प्रियांशु जोशी, नागुलि और भागुलि की भूमिका में अनवर और अभिषेक, भराड़ी की भूमिका में विक्की जायसवाल, चनुवा की भूमिका में कैलाश तिवाड़ी, मनुवा की भूमिका में हर्षित पंत, बुबू की भूमिका में राजीव वर्मा, भौजी की भूमिका में ललिता अधिकारी, हरिया की भूमिका में अजय कुमार, गणेशदा की भूमिका में केदार पलडिया/मोहन जोशी और सूत्रधार की भूमिका में रोहित मलकानी थे. गीत एवं संगीत निर्देशन किया मोहन जोशी, रूप-सज्जा की राजीव शर्मा ने, वेशभूषा की दिनेश जोशी और दिनेश पांडे ने, मंच सामग्री की व्यवस्था की रोहित मलकानी और पल्लवी ने. नाटक का संयोजक डॉ. डीएन भट्ट ने और सह-संयोजक दीपक मेहता ने किया. कला एवं दृश्य संयोजन राजीव शर्मा ने किया. और नाट्यांतरण, परिकल्पना एवं निर्देशन शम्भुदत्त ‘साहिल’ ने किया.
विद्याधर श्रीकला श्रीनगर-गढ़वाल की मुखौटा नाट्य-प्रस्तुति “बुढ़देवा दिल्ली में” गढ़वाल की एक पारंपरिक नाट्य-विधा पर आधारित थी, जो जाख, चंडिका, कांस और क्षेत्रपाल जैसे देवी-देवताओं की डोली जात्रा के दौरान खेली जाती है. इस नाटक की आत्मा भान और मुख्य पात्र बुढदेवा हैं, जिनके बीच चुटीले संवाद होते हैं. नाटक में मुख्यतः व्यंग्यात्मक हास्य मुखर रहा और इसका विस्तार भौगोलिक सीमाओं से परे करके स्थितियों और परिस्थितियों में साम्यता का बोध कराया गया.
बुढदेवा की भूमिका डॉ. डीआर पुरोहित ने और भान की भूमिका विमल बहुगुणा ने की. विभिन्न भूमिकाओं में थे अभिषेक बहुगुणा और हर्ष पुरी तथा मुखौटा नर्तक थे पंकज नैथानी, तान्या पुरोहित, दीपक डोभाल और राखी धनै. गायन और संगीत निर्देशन किया संजय पांडे और नियति कबटियाल के साथ-साथ कुसुम भट्ट, गोकर्ण बमराड़ा और तीन अन्य ने. प्रोडक्शन नियंत्रक थे मदनलाल डंगवाल और हार्विच बैटल. प्रस्तुति के आयोजन निदेशक थे डॉ. डीआर पुरोहित तो वस्त्र-विन्यास एवं मुखौटों की व्यवस्था की प्रेम मोहन डोभाल और सुरेश काला ने. संगीत दिया धूम लाल/संजय पांडे और राकेश भट्ट ने तो नाटककार थे डॉ. डीआर पुरोहित. नाटक का निर्देशन किया सुरेश काला ने, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला.
तीसरे दिन दिल्ली के द हाई हिलर्स ग्रुप ने सुरेश नौटियाल का गढ़वाली नाटक “फुंद्या पदान अर चखुलि प्रधान” खेला. यह नाटक उत्तराखंड में प्रधानपति की अघोषित और असंवैधानिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी के साथ-साथ वहां की वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर सूक्ष्म टिप्पणियां और कटाक्ष करते हुए आगे बढ़ता है तथा इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि यदि महिला प्रधान व्यवस्था पुरुषों नहीं स्वयं महिलाओं के हाथ में होनी चाहिए. व्यवस्था में पारदर्शिता, सामूहिकता और सुशासन की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए यह नाटक ग्राम स्वराज और ग्राम सरकार की स्थापना का संदेश भी देता है.
इस नाटक में समाचारवाचिका की भूमिका निभाई अनीता नौटियाल ने और कोरस में महेंद्र रावत, कुसुम बिष्ट और ओंकार सिंह नेगी के अलावा सभी कलाकार शामिल थे. बसंत सिंह रावत उर्फ़ फुंद्या पदान की भूमिका निभाई रमेश ठंगरियाल ने और चखुलीदेवी का रोल किया कुसुम चौहान ने. शांतिदेवी की भूमिका में संयोगिता ध्यानी, पुरुषोत्तम बडोला की भूमिका में सुभाष कुकरेती, प्रताप सिंह नेगी के रोल में गिरधारी रावत, बैशाखीलाल की भूमिका में खुशहाल सिंह बिष्ट, फ्यूंली के रोल में प्रकृति नौटियाल, उद्घोषक के रोल में सुरेश नौटियाल, बीडीओ की भूमिका में हरेन्द्र सिंह रावत, बस कंडक्टर की भूमिका में सुभाष कुकरेती, बस ड्राइवर के रोल में गिरधारी रावत, आन्दोलनकारी के रूप में हरेन्द्र सिंह रावत, ग्रामीण महिला की भूमिका में सुधा सेमवाल और स्कूली छात्र के रूप में सुशील भद्री ने भूमिकाएं निभाईं. मंच प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाई दिनेश बिजल्वाण और कुसुम बिष्ट ने तो प्रकाश व्यवस्था में थे बलवंत सिंह एवं हरि सेमवाल. मंच एवं वस्तु सामग्री की जिम्मेदारी थी ओंकार सिंह नेगी की और रूपसज्जा की सुशील भद्री ने. वेश-भूषा एवं वस्त्र विन्यास कलाकारों ने स्वयं किया. पार्श्व संगीत वासु सिंह का था तो संगीत निर्देशन था कृपाल सिंह रावत “राजू” का तथा वाद्ययंत्रों पर थे कृपाल सिंह रावत “राजू” (हारमोनियम), आनंद सिंह (ढोलक), गोपीचंद भारद्वाज (हुड़का) और सुशील भद्री (थाली). अंत में प्रकाश परिकल्पना एवं निर्देशन था हरि सेमवाल का.
चौथे और अंतिम दिन सामान और पुरस्कार वितरण समारोह के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उत्तराखंड नाट्य लीजेंड का सम्मान जाने-माने रंगकर्मी ललितमोहन थपल्याल को मरणोपरांत दिया गया. उनका जन्म 1920 में ग्राम श्रीकोट, खातस्यूं, गढ़वाल में हुआ था. जहां तक थियेटर का सवाल है, ललितमोहन छात्र-जीवन से ही थियेटर से जुड़ गये थे. उन्होंने गढ़वाली थिएटर और रंगकर्म को आगे बढाने में उल्लेखनीय योगदान किया.
लाइफ-टाइम सम्मान नईमा खान उप्रेती को दिया गया. उनका जन्म 26 मई1938 को अल्मोड़ा में हुआ था. नईमा ने अपने पति मोहन उप्रेती के अलावा बीएल शाह और बीएम् शाह जैसी सांस्कृतिक विभूतियों के साथ मिलकर उत्तराखंड के लोकगीतों और संगीत को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान किया. लाइफ-टाइम सम्मान शारदा नेगी को भी दिया गया. उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल में 1956 में हुआ था. दिल्ली में रंगमंच और नाटकों में सर्वप्रथम हिस्सेदारी करने वाली महिलाओं में शारदा नेगी अग्रणी रही हैं. उन्होंने ऐसे समय और ऐसी परिस्थिति में गढ़वाली रंगमंच में प्रवेश किया जब स्वयं को संभ्रांत मानने वाले पहाडी लोग अभिनय करने वाली स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखते थे.
लाइफ-टाइम सम्मान उत्तराखंडी रंगमंच को समर्पित दिनेश कोठियाल को मरणोपरांत दिया गया. उनका जन्म ग्राम तछेटी (पाबौ), घुडदौड़स्यूं, पौड़ी गढ़वाल में 10 नवंबर 1952 को हुआ था. वह रंगकर्म के अच्छे संगठनकर्ता थे. लाइफ-टाइम सम्मान होशियार सिंह रावत को गढ़वाली थिएटर में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया. उनका जन्म ग्राम कोटली, पट्टी साबली, पौड़ी गढ़वाल में 3 फरवरी 1945 को हुआ था.
नाट्य-निर्देशन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मित्रानंद कुकरेती को सम्मान प्रदान किया गया. वह गढ़वाली रंगमंच के अग्रणी निर्देशक और रंगकर्मी हैं. नाट्य-लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए राजेन्द्र धस्माना को सम्मान प्रदान किया गया. गढ़वाली रंगमंच को भारतीय भाषाओं के आधुनिक रंगमंच के समकक्ष लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. नाट्य-समीक्षा के लिए दीवान सिंह बजेली को सम्मान प्रदान किया गया. उनका जन्म ग्राम कलेत, पत्रालय मनाण, जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) में 1937 में हुआ था. बजेली पिछले चार दशक से नाटक, नाटककारों और कलाकारों के बारे में लगातार देश की सुप्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं.
उत्तराखंड नाट्य समारोह-2015 के लिए पुरस्कार इस प्रकार से दिए गए: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार कुसुम चौहान को सुरेश नौटियाल के गढ़वाली नाटक “फुन्द्या पदान अर चखुली प्रधान” में मुख्य भूमिका के लिए प्रदान किया गया और इसी नाटक में फुन्द्या पदान की भूमिका करने वाले रमेश ठंगरियाल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया. सर्वश्रेष्ठ आलेख का पुरस्कार “अदपुर तिपुर” को गया और इसके लिए शम्भुदत्त ‘साहिल’ को पुरस्कृत किया गया. सर्वश्रेष्ठ रूपसज्जा के लिए “अदपुर तिपुर” के रूपसज्जाकार राजीव शर्मा को पुरस्कृत किया गया. सर्वश्रेष्ठ वस्त्र-विन्यास का पुरस्कार प्रेमबल्लभ डोभाल के खाते में गया जिन्होंने “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक के लिए वस्त्र-विन्यास किया. सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक में संगीत देने के लिए संजय पांडे को दिया गया. सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार “बुढदेवा दिल्ली में” नाटक के निर्देशन के लिए सुरेश काला को दिया गया. और, “अदपुर तिपुर” को सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति माना गया.
अंत में, यह कहना आवश्यक है कि कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट ने उत्तराखंड नाट्योत्सव के नाम से जो रंगयात्रा बिना किसी सरकारी सहायता के आरंभ की है, उसे जारी रहना चाहिए. साथ ही, भविष्य में उत्तराखंड नाट्योत्सवों का आयोजन उत्तराखंड की भूमि में अनिवार्य रूप से होना चाहिए तभी यह रंगयात्रा अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होगी.