Chakhuli Pradhan Part -4
Garhwali Drama By Suresh Nautiyal, Delhi
चखुलीदेवी: तुम भूलि जावा अपना पितजि का जमाना की बथा. मी तब भी बोलदु छौ कि तन नी करा पर यूं माई का लालन कबि नी ध्यान दे मेरि बथु पर.
फुंद्या पदान: मां होण कू फर्ज त निभाण ही पड़लो प्रधानजी!
चखुलीदेवी: तुम चुप रावा! मी अपना बच्चों दगड़ी बात कनु छौं. (सोचिकी) मी तैं अक्ल ऐगे और समझी गयुं कि सरकारन महिला आरक्षण असल मा महिला सशक्तिकरण का वास्ता करी. जनता का दबाव मा सरकारन यी जू ताकत महिलों तैं दे, तै मी कै भी हालत मा नी छोड़ी सकदू. मी जू ताकत भितर बटी महसूस कनू छौं, तैंतैं बड़ी से बड़ी रकम भी हासिल नी करी सकद. (पदान से) बड़ा ऐनि लोकतंत्र की बात कन वाला! जीवन भर ता मीं तैं दबाई की रखी अर जब खुद पर आई ता कना छन लोकतंतर, लोकतंतर! चला, ह्वे जा यख बटी छू-मंतर!
(गुस्सा मां घर का भितर चलि जांद. बकि सबि एक-दूसरा गिचू देखदी रै जांदन.)
फुंद्या पदान: क्वी बात नी श्रीमतीजी! लोकतंत्र मा अभि भौत उपाय छन. (बच्चों से) बच्चों, अब भूख हड़ताल का सिवाय कुछ उपाय नि छ. अच्छा-अच्छा नेतौं कु दिमाग ठीक ह्वे जांद भूख हड़ताल कु नौं सुणी!
(बच्चा दुविधा मा फुंद्या तैं देखणा छन. सबि लोग फ्रीज़ ह्वे जांदन. कोरस प्रवेश करद.)
स्त्री कोरस: एतुरी आयीं फुंद्या पदान तैं कि कन अर कब बणलो प्रधानपति!
पुरुष कोरस: देखि आपन चखुलिन तैकि कन बणाई गति! सत्ता का लालच मा तैकी फिरगे पूरि मति!
कोरस का द्वी सदस्य: अग्वड़ी-अग्वड़ी देखदी जावा, होली तैकि सद्गति या दुर्गति, सद्गति या दुर्गति!
(कोरस चली जांद. प्रकाश मलिन ह्वेकि विलीन ह्वे जांद. दुसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद.)
दृश्य-दस
(गांव की ग्रामसभा की बैठक. गांव का कई मर्द, जनना अर नौन्याल बैठ्याँ छन. बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान चखुलीदेवी कनि च. फुंद्या पदान अर तौन्का बच्चा भि बैठ्याँ छन.)
बैशाखीलाल: सम्मानित प्रधानजी श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी की अनुमति से मि आजकि मीटिंग शुरू करदु.
चखुलीदेवी: हां, हां, बैसाखीलालजी, शुरू करा!
बैशाखीलाल: सम्मानित ग्रामवास्यूं, ग्रामसभा का चुनाव होण अर गांव मा पैलि बार महिला प्रधान का चुनाव का बाद आज हमरी या महत्वपूर्ण बैठक होणी च. अब मि सबसे पैलि माननीय ग्राम प्रधान श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी से विनती करदु कि वू बतावन कि कै प्रकार से ग्रामसभा की गतिविधि चलाण को तौंको सुपन्यों छ.
चखुलीदेवी: सबसे पैलि मि आप सबकु धन्यवाद करदू कि आपन मी तैं भारी बहुमत से ऊंचाकोट ग्रामसभा कू प्रधान निर्वाचित करी. मी वू सबी प्रत्याशी लोखू कु भी धन्यवाद करदू जौन चुनाव मा भागीदारी करीकी लोकतंत्र की प्रक्रिया और मजबूत करी. पर, मि चांदू कि पैलि आप लोखुका विचार आई जावन, तांका बाद मि अपणी बात रखलो.
पुरुषोत्तम बडोला: मेरु एक सुझाव छ. महिला प्रधानजी तैं जरूर पता ह्वयूं चैंद कि ग्रामसभा मजबूत नि होलि ता हमरा गांव मा अर देश मा स्वराज नि आई सकद.
बैशाखीलाल: हां, हां, यूं भी याद रखण कि पंचायती राज कानून का हिसाब से पंचायतूं तैं ऊंका अधिकार दिलाण की लड़ाई जारी रखण!
प्रताप सिंह नेगी: अर नयी कार्यकारिणी काम नी करलि ता सूचना अधिकार की तलवार अपणु काम करलि! अर हां, गांव का लोखु मा जागरूकता भी जरूरी छ.
पुरुषोत्तम बडोला: वित्तीय वर्ष कू लेखा-जोखा सब्तैं पता हो, ऑडिट रिपोर्ट बणु अर निगरानी समिति कू गठन हो.
प्रताप सिंह नेगी: यू सब ह्वे जाव ता पंचायतूं तैं वित्तीय अधिकार दिलाणा का अलावा अफसरशाही पर अंकुश जनि बथा भी ह्वे सकदन. भ्रष्टाचार मिटाण का वास्ता अब हम सबतैं लग जाण चैंद.
पुरुषोत्तम बडोला: ये बारा मा भी हमारा प्रयास जारी ह्वयां चैन्दन. नियोजन एवं विकास समिति, निर्माण कार्य समिति, शिक्षा समिति, जल प्रबंधन समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति अर प्रशासनिक समिति की स्थापना भी हो ताकि ऊंचाकोट का लोखु तक पंचायतीराज का लाभ पहुंचन.
बैशाखीलाल: अर भूल गयां कि 12 अप्रैल 2007 मा केंद्र सरकारन निर्णय ले छौ कि गांव का लोखु तैं पंचायत स्तर पर ही न्याय दिलाण का वास्ता प्रत्येक पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालय की स्थापना करे जालि. म्यारु बोनौ मतलब यो छ कि यांका वास्ता भी हमरी लड़ाई जारी रली.
फुंद्या पदान: आप लोग ता इनि बात कना छन जनकि मिन क्वी काम ही नी कैरी! अरे, पैलि खानदानी पदान अर फेर ग्राम प्रधान रयूं इथगा साल. मिन अगर काम नि करि ता तुमन इथगा साल मीताईं किलाइ प्रधान बणाई?
चखुलीदेवी: पदानजी, बस करा. यख हम भूतकाल कू आपरेशन कनुकू निछां बैठ्याँ. अग्ने क्य अर कन कन, ये पर विचार कन!
बैशाखीलाल: ग्राम प्रधानजी ठीक ब्वना छन. अब ग्रामसभा की नयी कार्यकारिणी छ अर हमन अब नया ढंग से सोचण.
फ्यूंली: अर हमरा घर मा लोकतंत्र कू क्य होलो? पितजि का हिसाब से लोकतंत्र कि परिभाषा कुछ अर मांजी आपका हिसाब से कुछ और! क्य चक्कर छ यु?
क्रांतिवीर: मांजी, मेरी ता समझ से भैर छ यू सब! आप जरा यू बता कि पैली पदानी अर अब प्रधानी पर हमरा परिवारकु कब्जा छ अर तब भी हम लोकतंत्र-लोकतंत्र की बात काना छावां!
चखुलीदेवी: पैली क्रांतिवीर का सवाल को जवाब! बेटा, पैली पदानी की पारंपरिक व्यवस्था छाई. हमरा परिवार तैं पदानी तई हिसाब से मिली. जब प्रधानी की व्यवस्था आई, तब तुमरा पितजी गांव का प्रधान बणगे छया. कारण कई छया.
क्रांतिवीर: क्य कारण रै होला तब?
चखुलीदेवी: जागरूकता की कमी भी एक कारण रै होलु! पारंपरिकता बणाई रखण कि गौं कि सामूहिक इच्छा भी हवे सकद! खैर, अब महिला सीट ह्वे ता लोखुन अपनी मर्जी से मी तैं जिताई. मेरु दायित्व यु छ कि गांव वलों की आशा अर अपेक्षा पर खरु उतरूं!
फ्यूंली: म्यरु सवाल ता जखि कु तखि रै ग्याई.
चखुलीदेवी: न, न! अब फ्यूंली त्यरा सवाल कु जवाब! बेटी, लोकतंत्र कू मूलमंत्र यो छ कि कखी भी अर कै भी स्तर पर अनावश्यक हस्तक्षेप न हो. कै परिवार का भितर का मामलों मा भी न. परिवार अपनी समस्या को समाधान अपणा-आप खोजु. जब बात बड़ी ह्वे जा तब ग्रामसभा छ. इनि ग्रामसभा तैं भी अपनो काम-काज खुदी संभाल्यु चयेंद. कखी बटी क्वी रोक-टोक अर हस्तक्षेप न हो. बेटी फ्यूंलि, हौर क्वी सवाल?
फ्यूंली: पर मांजि हमरा घौर का लोकतंत्र कु क्य होलु? जब घौर मा ही लोकतंत्र नि होलु ता भैर कन आण? पितजि अधिकार कि बात करदन अर आप कर्तव्य की. मी भौत कन्फ्यूज्ड छौं.
चखुलीदेवी (दार्शनिक ह्वेकि): फ्यूंली, लोकतंत्र इनि विधा अर प्रक्रिया छ जु चारों दिशाओं मा समानरूप से पहुंचद, बिना कै भेदभाव का! अर जै लोकतंत्र कि बात तु कनी छै, स्य लोकतंत्र नि होंद. (विराम) मेरु सुप्न्यु ई छ कि हमरा गांव, राज्य अर देश मा सच्चु लोकतंत्र निसा बटी ठेठ ऐंच तक हो, अर ऐंच बटी ठेठ निसा तक हो. ईमानदारी का दगड़ी सब मिलीकि काम करां. एक-दुसरा का काम कि पूरी जानकारी हो, पारदर्शिता हो!
बैशाखीलाल: यु पारदर्शिता क्या होंद, जरा लोखू तैं विस्तार से बतावा!
चखुलीदेवी: ठीक! गांव अपणा धन को नियोजन अपनी जरूरत का हिसाब से करु अर हर ग्रामवासि कि बात सुने जाव. गांव का हिस्सा कु पैसा सीधा ग्रामसभा का पास पौन्छु. न क्वी डीएम, न क्वी सीम अर न क्वी पीएम! अर हां, ग्रामसभा भी ईमानदारी अर बिना कै भेदभाव का काम करू तबि ग्राम स्वराज अर ग्राम सरकार को सुन्प्न्यां पूरो होलो. यी होंद पारदर्शिता!
पुरुषोत्तम बडोला: भौत सुन्दर प्रधानजी! भौत सुन्दर! कनी अच्छी बात कनी आपन! महिला आरक्षण सरकारन पैली किले नि करी ह्वलु?
फुंद्या पदान: तन नी होंद सा’ब! बिंडा बिरलों से मूसा नी मोरदा! ताकत ता प्रधान का हाथ मा ह्वयीं चैंद. तन नी होलो तो प्रधान कू मतलब ही क्या?
चखुलीदेवी: रुका, रुका पदानजी रुका. बैठक मा बिघ्न न डाला. आपन अपणि प्रधानी मा ता क्वी काम नि कैरि अर मीं भि नी कन देण चांदा. आपतैं समझ यूं आयूं चएंद कि लोकतंत्र कू अर्थ होंद विकेंद्रीकरण अर सत्ता कू अर्थ होंद हर नागरिक, हर व्यक्ति की सेवा!
बैशाखीलाल: हमरि प्रधानजी भौत अच्छी बात कना छन. पैलि जु ह्वेगि, वू ह्वेगि! पिछनै देखण से कैकु भलु नि होण! यु हम सबकु गांव छ. ग्रामसभा भि हमरि अर गौंकि प्रगति का वास्ता मिलीजुलि काम कनु भि हम सबकि जिम्यादारि छ.
प्रताप सिंह नेगी: हां भै, अब हम सबु तैं बदल जाण चैन्द. प्रधानजी तैं सहयोग द्योला ता ऊंचाकोट कि उन्नति होलि.
फुंद्या पदान: अबे सालों, रात बोतल पेकि कुछ हौर बोल्दां अर दिन मा कुछ हौर! शरम नहीं आती है तुमको?
चखुलीदेवी: पदानजी, आपका घर की चौपाल नी छ या! ग्रामसभा कि बैठक छ, बैठक!
पुरुषोत्तम बडोला: पदानजी, श्याम का टैम हम जू भि करदां स्यु हमरु व्यक्तिगत छ. अब जु कना छां वु सार्वजनिक छ. निजी बैठक अर समाज कि बैठक मा फरक होंद, फरक!
फुंद्या पदान: भौत फरका रहा है स्साला! कमीना कहीं का!
चखुलीदेवी: पदानजी, अपणू गिच्चू खराब नि करा! औरी सब्यूं से निवेदन छ कि बैठक पर ध्यान द्यावा!
बैशाखीलाल: मीं एक प्रस्ताव लाण चांदू!
चखुलीदेवी: जु सुझाव या प्रस्ताव सबू तैं पसंद होला, तौं तैं हम ग्रामसभा का प्रस्तावू का रूप मा स्वीकार करि ल्योला!
फुंद्या पदान: सबका दिमाग खराब हो गया है! अबे, मेरे से पूछो, ग्रामसभा कैसे चलती है!
चखुलीदेवी: पदानजी, चुप करा! चुप ह्वे जावा, चुप!
फुंद्या पदान: चुप, बड़ी आई प्रधान कि बच्ची!
चखुलीदेवी: चुप करा, चुप! आप ऊंचाकोट गौंकि प्रधान से बात कना छां!
फुंद्या पदान: चुप कर, मैं कहता हूं चुप कर! चुप!!
चखुलीदेवी: चखुलि चुप नि ह्वे सकद! तुम मेरा पति छां. प्रधान का पति नि छां! देखदि जावा, अग्वाड़ी-अग्वाड़ी क्य होंद!
(द्वी अपनी-अपनी जगह खड़ा ह्वे जांदन गुस्सा मा. बाकि लोग बीच-बचाव करांदन. कोरस प्रवेश का साथ सब फ्रीज़ ह्वे जांदन.)
स्त्री कोरस: जागी जावा, जागी हे खोली का गणेशा, खोली का गणेशा!
जागी जावा जागी हे मोरी का नारेणा, मोरी का नारेणा!
पुरुष कोरस: जागीगे, जागीगे चखुलीक भीतर की नेता जागीगे!
गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे!
गौं कि स्कीम अब बणली गौं का हिसाब से!
गौं मा आलु स्वराज अर बणली ग्राम सरकार!
जागीगे, जागीगे चखुली का भीतर की नेता जागीगे!
कोरस का द्वी सदस्य: गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे!
गौं मा आलु स्वराज अर बणली गांव कि अपणी सरकार!
ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार! ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार!
(कोरस धीरे-धीरे चली जांद. दूसरा कोणा पर प्रकाश तेज होंद.)
दृश्य-ग्यारह
बीडीओ कु दफ्तर. बीडीओ कु चपरासी कुर्सियूं मा खुटा पसारीकि स्ययूं छ. बीडीओ प्रवेश करद.
बीडीओ (चपरासी से): ये, यु क्य मजाक बणयूं छ? दफ्तर मा इन बैठदन? शर्म आयीं चैंद! भाग यख बटी! गेट आउट फ्राम हियर!
(बीडीओ कु चपरासी सकपकाकर तख बटी भाग जांद. कुछ पल का बाद शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी कमरा मा प्रवेश करदन. सबी खालि कुर्सियूं पर बैठी जांदन.)
चखुली: नमस्कार बीडीओ सा’ब! (बाकि सब हाथ जोड़दन.)
बीडीओ: ओहो, नमस्कार! कन आणु ह्वे? मी ता अभी पल्या गौं जाण की तैयारी मा छौ.
शांतिदेवी: बीडीओ सा’ब, पल्या गौं बाद मा जयां! चखुलीदेवी अर मी केदारनाथ आपदा का बारा मा आपसे बात कन चांदा. ये बारा मा हमन एक रिपोर्ट भी तैयार करीं. हम चांदा कि आपका माध्यम से हमरी रिपोर्ट सरकार तक पौंछ.
बीडीओ: चला ता ठीक छ. पैलि आप लोग ही अपणी बात रखा.
शांतिदेवी: चल ब्वारि, रिपोर्ट का बारा मा बतौ.
चखुलीदेवी: न जी, आप ही रिपोर्ट का बारा मा बोला.
शांतिदेवी (अपणा थैला बटी कागज़ निकलद): या छ रिपोर्ट, जु चखुलीदेवी अर मिन तैयार करि! पूरि रिपोर्ट आप बाद मा पढ़ लियां. सक्षेप मा हम ई बोन चांदा कि केदारनाथ आपदा कु आकलन ठीक से नी ह्वाई!
बीडीओ: देखा शांतिदेवीजी, सरकार अपना स्तर पर हर संभव प्रयास कनि छ. यु आपदा इथागा बड़ी छ कि सरकार का साथ-साथ समाज तैं भी काम कर्यूं चैंद. तबि सबकु भलु होलु! (चखुलीदेवी से) हां, एक बात बोलनी छाई. कै आदमीन आपकि शिकैत करि छाई कि ऊंचाकोट गांव कि डिग्गी अर गूल निर्माण मा घटिया सामग्री कू इस्तेमाल ह्वे. पर, हमन जांच मा पाई कि काम बहुत ही उत्तम होयूँ चा. इथगा कम बजट मा इनु काम आज तक क्या होई होलू. मीं आपतैं बधाई अर धन्यवाद देणु आयूं.
चखुलीदेवी: बजट मा ता पुरु नी ह्वे सकदु छ्यु, या सहि बात चा. गांव का लोखु अर खासकैरी महिलोन श्रमदान से स्यु काम पुरु कैरी. गांव का सबि काम का वास्ता सरकारन कख बटी पैसा लाणन? हम तैं भि ता कुछ कर्यूं चैन्दू.
बीडीओ: इनि सोच का वास्ता धन्यवाद पर एक बात च. ये गांव मा न ता ढंग से पशुपालन होणु अर ना खेती अर न बागवानी. भौत योजना छान जांमा सब्सिडी मिलद. आपका गांव कु बजट अब वापस नई जायुं चैन्द. अरे, सरकार ता अब एक-एक डाला का तीन-तीन सौ रुप्या देणी चा.
चखुलीदेवी: सा’ब, गांव मा पैली जमीन कि कम्तैस छ. अब पुंगडो पर भी डाला लगाई द्योला ता पुंगडा भी चलि जाला जंगलात मा अर फेर चक्कर लगाणा रावा जंगलात दफ्तर का! बीडीओ सा’ब, एक बात बता कि जब इनि योजना बणाई जांदन तब यु नि स्वचे जांद कि जनता कु क्या होलु? एक हौर बात जू समझ मा नि आणि, वा या छ कि सरकार एक तरफ बोनी कि कैका पुंगड़ा मा डाला जामला ता खेत जंगलात कु ह्वे जालू अर लोग लगाला ता तीन सौ रूप्या सरकार देली. या बात कुछ समझ मा नि आई. बीडीओ सा’ब!
बैशाखीलाल: अब बैंकु कि पालिसि देखा. पैंसठ साल से ज्यादा उमर का लोखु तैं सि ऋण नि देंदा जबकि गांव मा ता दाना-सयाणा ही रयां छन. लोन लेण का वास्ता जमीन का कागज़ भी सही नी मिलदा किलैकी जमीन को बंदोबस्त भि साख्यूं बटी नी ह्वाई. जमीन दादा-परदादों का नाम पर चलनी छ अर आजका हकदार रैणा छन देरादून, दिल्ली, बम्बे अर लन्दन!
प्रताप सिंह नेगी: ज्वान लोग भी नौकरी-धंधा कि खोज मा गांव छोडि चलि गेन ता योजनों तेन कैन साकार कन? दलितु का हिस्सा कु बजट भी मैदान जने बौग जांद.
शांतिदेवी: अर, महिलों कि ता क्वी बात ही नी करद. बड़ी मुश्किल से निचला स्तर पर महिला आरक्षण ह्वे ता तै से भि मरदू तैं जौल ह्वेयीं छ.
चखुलीदेवी: जी, अब हमन साबित कन कि महिला प्रधान बणाई कि सरकारन क्वी गलति नि करि!
फुंद्या पदान: बीडीओ सा’ब, ब्वन द्या यूं तैं. जन चलण लग्युं, उनि चलण द्यावा. व्यवस्था ता इनि रैण. हमरा जना कै फुंद्या पदानअर प्रधान आइनी अर आला. ईं प्रधानी जनि भि कै प्रधानी आली. पहाड़ कि समस्योंन ता इनि रैण.
चखुलीदेवी: पदानजी, तुम चुप रावा. आप ग्राम प्रधान अर बीडीओ सा’ब की मीटिंग मा छयां, घौरकि चौपाल मा नी छां बैठ्यां.
बीडीओ: देखा इनु छ, सरकार सबि काम नि करी सकद. संसाधन नी छन. लोग अर व्यापारी ईमानदारी से टैक्स नी देंदा. पैसा आण कख बटी? जू नीतिगत समस्या छन, तौन्का बारा मा मि सरकार तैं लिखी भेजलू. पर, आप लोग अपना गांव का ऊं लोखु से संपर्क करी सकदां जू दिल्ली, बम्बे अर कनाडा रैन्दीन. सि लोग साधन-संपन्न छन, गांव की मदद करि सकदन.
प्रताप सिंह नेगी: बीडीओ सा’ब, तौंकी बात नी करा जु केवल फेसबुक कि क्रान्ति मा बिस्वास रखदन. जु फेसबुक पर पहाड़ बसाण कि बात करदन. अर हमूं तैं फोन आन्दन कि अमेरिका वालि नातिण कि छाया पूजोण, घड्यलो इंतजाम करी देल्या? अर कीसा भी तौन्का खाली. बस पुराणा लत्ता-कपड़ा दान कना चांदन. सा’ब, इनि मदद नि चैंद.
बैशाखीलाल: प्रधानजी ठीक बुना छिन. हम तैं इनी मामदा नि चैंद. हम तैंत इनो विकास चैंद कि गांव का पास इनो अस्पताल हो जेमा डाक्टर हो, नर्स हो, बैणी-ब्वारी प्रसवपीडा से न मरां. हम तैं इनो विकास चैंद कि गांव का स्कूल मा पढ्यूं-लिख्यूं अध्यापक हो.
पुरुषोत्तम बडोला: हम तैं इनो विकास चैंद कि यूं बाठों से गांव का गांव खाली नी ह्वे जावन. इनु विकास नि चैंद कि हमरा जंगल, परबत, नदी, खेती, गांव सब बर्बाद ह्वे जावन.
बैशाखीलाल: हम तैं इनो लोकतंत्र चैंद कि गौं मा सबि छोटा-बड़ा, दाना-सयणा प्रेम से रवन. गौं की योजना गौं का लोग बणावन, सरकार कु हस्तक्षेप कै भी स्तर पर नि होऊ.
प्रताप सिंह नेगी: सरकार केवल अर केवल बजट की समीक्षा अर ऑडिट करू अर देखू कि पैसा कु दुरुपयोग ता नई ह्वेयूं. बस. बकि अपना विकास की योजना गांव का लोग अफ़ी बणाई सकदन.
प्रताप सिंह नेगी: दुर्भाग्य यो छ कि आज गांवू मा मनखी कम अर बांदर, गोणी, सुंगर अर बाघ जना प्राणी ज्यादा अर मनखी कम ह्वे गैनी.
चखुलीदेवी: भौत-भौत धन्यवाद सबका सुझाव का वास्ता. बीडीओ सा’बन भी हमरा मन की बात सूनि याली. आशा छ कि हमरी बात सरकार तक पहुँचली. गांव कि ओर से मी पुरु भरोसा दिलांदु कि हमरा लोग कखी पैथर नि राला.
बीडीओ: धन्यवाद प्रधानजी, भौत-भौत धन्यवाद! आप लोखुन मेरा आंखा खोलि यनि. अगर हर ग्रामसभा का पदाधिकारी अर हर गाँव का लोग इनि ह्वे जावन ता फेर बात ही क्या च! अपणु गढ़वाल, अपणु कुमाऊं, अपणु उत्तराखंड सच मा स्वर्ग बणी जाव. अर हां, मि पूरो प्रयास करलु कि आपका सुझाव अर बात सरकार का मंत्र्यूं तक पौंछ.
(लाईट फेड ह्वे जांद. शांतिदेवी एक कोणा पर जांद. प्रकाश तखी शांतिदेवी पर केंद्रित होंद. बाकि लोग फ्रीज हवे जांदन. शांतिदेवी अपणा मन की बात ब्वल्द दिखेंद.)
शांतिदेवी: केदारनाथ आपदा कू आकलन न ता सरकारन सही करि अर न कै स्वतंत्र संस्था न! मीडिया न भी क्वी रिपोर्ट ठीक-ठाक ढंग से नी दिखैनी. यीं आपदा न समाज, संस्कृति अर आर्थिकी पर जु प्रभाव डालि, तैतैं ठीक होण मा साख्यूं लग जाली! (विराम) जु सैकड़ों जवान नौनि विधवा ह्वेनि गांव कि तौंकु क्य होलु? जु बच्चा अनाथ ह्वेनि तौंकी पढाई कु क्य होलु? जु बूड-बुढया यखुलि रै गैनि तौंका बुढापा कु क्य होलु? अर, देश-दुनिया का जु हजारु-हजारु लोग तैं आपदा मा म्वरिगेनि, तौंकु गिणती कु काम कु करलो, अर तौंका परिवारु तैं कैन दिलासा दिलौण? सरकार भौत ब्वलद कि चारधाम उत्तराखंड की लैफलेन छन, पर मी यु जण चांदु कि यख जू मनखी बच्यां रै गेनी, वूंकी लैफलेन कु क्य होलो?
(प्रकाश मठु- मठु मलिन ह्वैकी विलीन ह्वे जांद.)
दृश्य-बारह
गोधूलि का बाद कु समय. शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी सबी लोग वापस गांव पौंछि गैनि. जनि सि पंचैति चौक पर पहुंचदन, फुंद्या पदान अचणचक जोर-जोर से चिल्लाण लगद.
फुंद्या पदान: न्हैजी, ऐसा नहीं होता है! यु सब बकबास छ. ग्रामसभा इनि नि चली सकद जन ई प्रधानिजी चलाणी छन. यी सब किताबि बथ छन. मि जब प्रधान छौ तब गांव का काम कराण का वास्ता मिन क्या-क्या नि करी! कै-कै तैं पीठें नि लगाई. अर सि बीडीओ जै तैं मिलि आयां, तैन क्य पीठें नि लगवाई?
चखुलीदेवी: क्य छां तुम ये पंचेती चौक मा बड-बड करणा? जरूर लगवाई ह्वली तैंन भी पीठें पर तुम भि तैयार बैठ्याँ राइ होला पीठें लगाणुकु. मि यू बोन चांदू कि अगर तुमरो अपनो हिसाब ठीक हो ता कैकी हिम्मत नी ह्वे सकद पिठाईं लगवाण की. व्यवस्था बहुत गड़बड़ छ पर मि दिखौलु कि ईं व्यवस्था मा भी काम करे सकद. निराश हूण से काम नि चलद. आप भला त जग भला! (विराम) अर हां, बीडीओ सा’बी से मेरि अर हमरी ग्रामसभा की शिकैत तुमन करि छाई?
फुंद्या पदान: कै हौरन करि ह्वालि. भौत लोग छन दुश्मन ये गांव मा!
चखुलीदेवी: मी सब पता छ. जब तुमन इथगा भ्रष्टाचार करि तब ता कैन तुमरी शिकैत नि करि. अब मी पारदर्शिता अर ईमानदारी का साथ ग्रामसभा कु काम कन की कोशिश कनु छौं ता तुमरा पेट मा पिड़ा उठणी छ.
फुंद्या पदान: भौत देखनि तेरा जना पारदर्शी र आदर्शवादी! जैतैं खाणु नि मिलद सी होंद आदर्शवादी! क्य होंद या पारदर्शिता और लोकतंत्र! नयी-नयी प्रधान बणी, त्वेतैं होश आण मा ज्यादा टैम नि लगण!
चखुलीदेवी: मीं अपना गांव अर यखक लोखु तैं बदली दिखौलु. हर समय अर काल मा इना लोग ह्वेनि जौन बथों का विपरीत चलिकी बड़ा काम करनी.
शांतिदेवी: हमरि नेता कन हो, चखुली प्रधान जन हो!
सब एक साथ (फुंद्या पदान तैं छोडीक): चखुली प्रधान जन हो! चखुली प्रधान जन हो!
फुंद्या पदान: चखुली प्रधान, तेरी चलि नि सकद कबि! यीं व्यवस्था मा भ्रष्टाचार का अलावा कुछ ह्वे नि सकद. मी भी पैलि ईमानदार पदान अर फिर ईमानदार प्रधान छौ. पर, व्यवस्था अर व्यवस्था चलोंण वाला लोखु ना मीं तैं सब समझै दे. अर फिर मी उनि ह्वे ग्यों जन सी व्यवस्था का ठेकेदार छन.
चखुलीदेवी: तुम कमजोर आदमी छां. तुमरा बस की बात व्यवस्था से टकराण की नी छयी. आप मेरा पति छन पर मेरि प्रेरणा कभि नी बणि सक्यां, किलैकी तुमन इनु क्वी काम ही नी करी! (सोचदा-सोचदा) अर चला, सच-सच बता कि बीडीओ सा’ब से आपन मेरि अर ग्राम सभा कि शिकैत किलाइ करि छै? अर कथगा बार करि शिकैत?
फुंद्या पदान: मिन क्वी शिकैत नि करि! किलाई कन छै मिन? मीं तैं तु मूरख समझदि?
चखुलीदेवी: तै बारा मा कुछ नि बोल सकदु पर शिकैत जना काम आप ही करि सकदां! चला खैर, तुमसे ज्यादा उम्मीद भी नि छै. उन भी विभीषण अर जयचंद ता हर युग अर काल मा पैदा होंदन!
फुंद्या पदान: गलत! त्वेतैं सिन नि ब्वलयूं चैंद. नयी-नयी प्रधान बणी, मीं से सिख्यूं चैन्द!
चखुलीदेवी: चुप रावा! मेरि प्रेरणा का स्रोत हौर भौत से लोग छन. (कखी दूर ब्रह्माण्ड मा देखद अर मंच का अग्रभाग मा आंद.) अर, भैर क्या जाण? अपणा उत्तराखंड मा ही इनी कै महिला छन. बिश्नीदेवी साह, टिंचरी माई, तुलसीदेवी, रेवती उनियाल, गौरादेवी, गंगोत्री गर्ब्याल, विमला बहुगुणा, बचेंद्री पाल, प्रतिभा अर तारा मिश्र, बौंणीदेवी, राधा भट्ट अर अब सुशीला भंडारी जनि भौत सी उत्तराखंडी महिला छन जु मीं तैं प्रेरणा देंदीन. (पदान से) अर सुण ल्या, मेरु नौ चखुलीदेवी रावत छ पर मीं छौं ऊंचाकोट ग्राम की प्रधान, चखुलि प्रधान! महिला प्रधान! तुम म्यरा पति छां पर कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति! कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति!!
(पदान का अलावा सबि लोग चखुलीदेवी तैं कुछ पल तक देखदी राइ जांदन अर फेर जोर-जोर से ताली बजाण बैठदन. एका साथ कोरस-द्वय प्रवेश करद अर सबि कलाकार भी कोरस मा परिवर्तित ह्वे जांदन. सबि एक-साथ गाण लगदन.)
कोरस: ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे
समै भी हौड़ फरकण लैगे, हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे!
चखुलिन उठ्यालि डंडा, उठ्यालि डंडा!
चखुलिन उठ्यालि झंडा, उठ्यालि झंडा!
ग्रामसभा चललि मिलि-जुलिकि
बस यी अब गौं कु फंडा, गौं कु फंडा!
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे...
(कोरस कर्टन काल में परिवर्तित ह्वे नमस्कार की मुद्रा में आइ जांद. प्रकाश मलिन होण का साथ-साथ पर्दा मठु-मठु निस आंद. गीत का बोल अभी भी कंदुडू मा गुंजणा छन.)
समाप्त.
(09/10/2015, 2049 बजे.)
संशोधन: 28/10/2015, 14/11/2015, 23/11/2015 और 20 से 25/04/2016 तथा 27-28/04/2016.
Copyright @Suresh Nautiyal , Delhi 2017
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