Author Topic: Re: Information about Garhwali plays-विभिन्न गढ़वाली नाटकों का विवरण  (Read 63263 times)

Bhishma Kukreti

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चखुलि प्रधान!
(गढ़वाली नाटक)

नाटककार: सुरेश नौटियाल
Garhwali Play by Suresh Nautiyal
नाटक के बारे में
“चखुलि प्रधान” गढ़वाली नाटक उत्तराखंड की वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों और समस्याओं का अवलोकन करते हुए टिप्पणी करने का एक छोटा सा प्रयास है. नाटक में जो समय दिखाया गया है वह है 9 नवंबर 2032, अर्थात उत्तराखंड राज्य गठन की बत्तीसवीं वर्षगांठ. भविष्य की तिथि दिखाकर यह कल्पना की गयी है कि 9 नवंबर 2032 तक राज्य की लगभग हर समस्या का समाधान हो चुका होगा और तब लोगों के बड़े वर्ग को इस नाटक के माध्यम से पता चलेगा कि राज्य में 2015-16 के आस-पास किस-किस तरह की समस्याएं उपस्थित थीं. राज्य की वर्तमान विकराल समस्याओं को एक नाटक में समेटना संभव नहीं है, फिर भी प्रयास किया गया कि इन्हें समग्रता से न सही, सूक्ष्म रूप में ही सही, प्रस्तुत किया जाए. आप जानते ही हैं कि अपने उत्तराखंड में आजकल प्रधानपति का बड़ा प्रचलन है, इसलिए इस विषय को केंद्र में रखकर अन्य विषयों और मुद्दों पर भी पात्रों के माध्यम से यथोचित टिप्पणियां की गयी हैं.
उत्तराखंड की वर्तमान परिस्थितियों को मैं स्वयं को एक लेखक, पत्रकार और सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अत्यंत असहज मानता हूं. साथ ही, प्रधानपति की असंवैधानिक और अनैतिक व्यवस्था को महिला सशक्तिकरण में व्यवधान और बेसुरे राग की तरह देखता हूं. नाटक में यह दिखाने का प्रयास किया गया है जो स्त्री ग्राम प्रधान बनने से पहले तक किसी भी साधारण स्त्री की तरह थी, वह अवसर मिलते ही अपने व्यक्तित्व की पूर्णता की ओर बढ़ती है. यह कोई चमत्कार नहीं है कि नाटक की मुख्यपात्र चखुलीदेवी अचानक एक सक्षम, बुद्धिमान और दार्शनिक और नेतृत्व प्रदान करने वाली महिला बन जाती है. सच तो यह है कि वह सदैव ही सक्षम थी पर उसे पहले अपनी बौद्धिक सक्षमता दिखाने का अवसर नहीं मिला था. अब मिला तो उसके व्यक्तित्व के निखरने और आत्म-निर्भर होने में समय नहीं लगा.
और अवसर उसे समाज के पुरुष-प्रधान होने और पति के वर्चस्व के कारण नहीं मिला था. जब सरकार की महिला-पक्षधर नीति के फलस्वरूप उसे अवसर मिला तो वह अपने भीतर की स्त्री को समग्र रूप में प्रस्तुत करने से नहीं चूकी. यह बात उसके संवादों से भी पता चलती है. चखुली पढी-लिखी है, सोचने-समझने वाली है, उसके पास राजनीतिक दृष्टि है, उसने उत्तराखंड के राजनीतिक और सामजिक आंदोलनों का अध्ययन किया है तथा राज्य की परिस्थिति को जानती और समझती है. पति की प्रधानी के दौरान उसने स्वयं को परिवार के कार्यों तक सीमित तो रखा पर समय-समय पर वह अपने पति को भ्रष्ट न होने का सुझाव देती रही. ऐसा इसलिए कि वह चारित्रिक और व्यावहारिक रूप से पारदर्शी और ईमानदार है. वह यह जानती है गांव कि अन्य महिलाओं के उत्थान का दायित्व भी उस पर है और ग्राम प्रधान रहते हुए वह इस उद्देश्य में सफल हो सकती है.
यह नाटक उन पुरुषों पर टिप्पणी है जो स्त्रियों को और विशेषकर अपनी पत्नियों को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं. फुंद्या पदान ने तो यह सोचकर अपनी पत्नी चखुली को ग्राम प्रधान के चुनाव में उतारा था कि प्रधानपति रहते हुए सबकुछ उसके अपने नियंत्रण में रहेगा, पर जैसे ही चखुली ग्राम प्रधान बनती है, वह स्वतंत्र और मुखर होकर पारदर्शी ढंग से अपना काम-काज चलाने लगती है. और यह बात फुंद्या पदान को पसंद नहीं है. अपने हाथ से चीजों को खिसकते देख वह चखुली के विरुद्ध वह हर काम करता है, जो वह कर सकता है. बेटी फ्यूंली के साथ मिलकर वह धरना-कार्यक्रम भी करता है. यह दृश्य प्रतीकात्मक अधिक है पर फुंद्या पदान के भीतर की स्थिति को दिखाने के लिए इस बिम्ब का प्रयोग किया गया है.
नाटक के अंत में चखुली को प्रधानपतिवाद को नकारते हुए अर्थात पारदर्शिता, सामूहिकता और सुशासन को अपनाते हुए ग्राम स्वराज और ग्राम सरकार की स्थापना के सपने को साकार करने की ओर गांव वालों के साथ आगे बढ़ते हुए दिखाया गया है.

परिचय: सुरेश नौटियाल
वर्ष 1956 में पौड़ी के पास गढ़वाल के एक छोटे से, पर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर, गांव उन्चर (इडवालस्यूं) में जन्मे सुरेश नौटियाल पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में रचनात्मक हस्तक्षेप के लिए जाने जाते हैं. पत्रकार और एक्टिविस्ट होने के साथ-साथ वह कवि, नाटककार और स्क्रिप्ट-राइटर भी हैं.
सुरेश सैकड़ों कविताएं और दस से अधिक हिंदी और अंग्रेजी नाटक लिख चुके हैं. “चखुलि प्रधान” सुरेश नौटियाल का पहला गढ़वाली नाटक है. वह अनेक फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिख चुके हैं. उनकी कवितायेँ विभिन्न कविता संकलनों के अतिरिक्त साहित्य अकादमी के अंग्रेजी जर्नल, अमेरिका और फ़िनलैंड में छप चुकी हैं.
अस्सी के दशक के आरंभ में सुरेश नौटियाल ने “द हाई हिलर्स ग्रुप” की स्थापना की. इस ग्रुप ने अब तक अनेक गढ़वाली और हिंदी नाटकों का मंचन और उत्तराखंडी संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर महत्वपूर्ण काम किया है.
पत्रकारिता की लगभग सब विधाओं – साप्ताहिक, पाक्षिक, दैनिक, न्यूज एजेंसी, ब्राडकास्ट, टेलिकास्ट, वेबकास्ट – में लेखन का उन्हें तीन दशक से अधिक समय का अनुभव है. उन्होंने 1984 में हिंदी साप्ताहिक “प्रतिपक्ष” से अपनी यात्रा आरंभ की. इसके पश्चात, यूनाइटेड न्यूज ऑव इंडिया (यूनिवार्ता) में उन्होंने पत्रकारिता के अपने आधार को मजबूत किया. अंग्रेज़ी दैनिकपत्र “ऑब्जर्वर ऑव बिजनेस एंड पॉलिटिक्स” और “अमर उजाला” में विशेष संवाददाता के रूप में उन्होंने अपना योगदान दिया. सुरेश नौटियाल अंग्रेजी पत्रिका “काम्बैट ला” के सीनियर एसोसिएट एडीटर और इसी पत्रिका के हिंदी संस्करण के कार्यकारी संपादक रहे. उन्होंने लंबे समय तक हिंदी पाक्षिकपत्र “उत्तराखंड प्रभात” का संपादन भी किया. पत्रकारिता के अपने पूरे करीयर में उन्होंने उत्तराखंड के साथ-साथ लोकतंत्र, मानव से लेकर जीव-जंतु के अधिकारों और पारिस्थितिकी से जुड़े सरोकारों को अत्यंत महत्व दिया. विभिन्न विषयों पर अब तक उनके सैकड़ों लेख स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छप चुके हैं. 
सुरेश नौटियाल देश की एकमात्र ग्रीन पार्टी -- उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी -- के केंद्रीय उपाध्यक्ष, पूरी दुनिया की ग्रीन पार्टियों की सर्वोच्च संस्था “ग्लोबल ग्रीन्स” की अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समिति के कार्यकारी ग्रुप के सदस्य, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों की ग्रीन पार्टियों के संगठन “एशिया-पैसिफिक ग्रीन्स फेडरेशन” (एपीजीएफ) कौंसिल के सदस्य, प्रत्यक्ष लोकतंत्र को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय संगठन “डेमोक्रेसी इंटरनैशनल” (जर्मनी) के बोर्ड मेंबर, पारिस्थितिकी को समर्पित संस्था “एकोक्सिया इंटरनैशनल” (जापान) की नीति-निर्धारण समिति के सदस्य, संयुक्तराष्ट्र संसद के लिए आंदोलनरत संगठन -- यूएनपीए -- के सदस्य होने के साथ-साथ “थिंक डेमोक्रेसी इंडिया” संस्था के अध्यक्ष और “उत्तराखंड चिंतन” संस्था के महासचिव भी हैं. वह सिटीजन्स ग्लोबल प्लेटफार्म के भारत में समन्वयक और हेलसिंकी प्रोसेस ऑन डेमोक्रेटाइजेशन के समन्वय-निदेशक (भारत) भी रहे. विश्व के सभी महाद्वीपों की अनेक यात्राएं कर चुके सुरेश नौटियाल अब दिल्ली और उत्तराखंड में रहते हुए अपना ध्यान रचनात्मक लेखन और उत्तराखंड की राजनीति पर केंद्रित कर रहे हैं.
नाटककार की ओर से
यह नाटक “चखुलि प्रधान” यद्यपि मेरे हिंदी नाटक “बांकेलाल सत्याग्रही” से प्रेरित है, लेकिन भिन्न और स्वतंत्र है. आरंभ में विचार था कि परम मित्र दिनेश बिजल्वाण “बांकेलाल सत्याग्रही” नाटक का गढ़वाली रूपांतरण करेंगे. उन्होंने यह कार्य आरंभ किया भी पर लगा कि पहाड़ी परिवेश वाला नाटक मूल-रूप से गढ़वाली में ही लिखा जाए. भौगोलिक दूरी अर्थात दिल्ली के दो भिन्न छोरों पर निवास और मेरी दिल्ली से बाहर की लगातार भागदौड़ के कारण इस नाटक को मिलकर लिखने की इच्छा पूरी न हो सकी. दिनेश ने लगभग दो सप्ताह के इस नाटक लेखन के दौरान अनेक बार सुझाव दिए, कहीं-कहीं संवाद जोड़े, संवादों में हास्य का पुट दिया तथा गढ़वाली भाषा के मेरे ज्ञान को परिमार्जित किया.
नाटक के निर्देशक हरि सेमवाल ने इस नाटक को और विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसमें उनका भी योगदान रहा है. हरि ने स्वयं भी कुछ संवाद जोड़े और कोरस गीतों को दृश्य अनुकूल गीतात्मक बनाया. रिहर्सल के दौरान कलाकारों ने भी अपनी ओर से कुछ-न-कुछ जोड़ा. नाटक को गति देने के लिए हरि के कहने पर कुछ नये दृश्य जोड़े गये. कहीं-कहीं थियेटर वर्कशाप जैसी अनुभूति भी हुयी. खुशहाल सिंह बिष्ट, कर्नल डीडी डिमरी और अतुल देवरानी इत्यादि ने भी इस नाटक को संपन्न बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए.
एक महत्वपूर्ण बात यह भी कि यदि हाई हिलर्स ग्रुप ने कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट दिल्ली द्वारा आयोजित “उत्तराखंड नाट्योत्सव-2015” में भाग लेने का निर्णय न किया होता तो यह नाटक भी न लिखा जाता. खुशहाल सिंह बिष्ट, श्रीमती सुशीला रावत और दिनेश बिजल्वाण सहित हाई हिलर्स ग्रुप के सब साथियों का धन्यवाद! रिहर्सल के लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिए अल्मोड़ा ग्राम कमेटी और इस संस्था के अध्यक्ष प्रताप सिंह शाही का आभार भी प्रकट करना चाहूंगा!


गढ़वाली नाटक
चखुलि प्रधान!
नाटककार: सुरेश नौटियाल
पात्र-परिचय
समाचारवाचिका: चौखम्भा न्यूज चैनल कि एंकर.
स्त्री कोरस: नाटक की कथा तैं अग्ने बढाण वलि टीम की महिला सदस्य.
पुरुष कोरस: नाटक की कथा तैं अग्ने बढाण वलि टीम कु पुरुष सदस्य.
स्त्री सूत्रधार: नाटक का कथानक पर टिप्पणी करण वली स्त्री.   
पुरुष सूत्रधार: नाटक का कथानक पर टिप्पणी करण वलु पुरुष.
बैशाखीलाल:  गौं कू कजे.
मंगलादेवी: ऊंचाकोट गौं कि एक वृद्ध महिला जु चुनाव से पैली मीटिंग कि अध्यक्षता करद.
बसंत सिंह रावत उर्फ़ फुंद्या पदान: चखुलीदेवी कू जवें यानि पति. फुंद्या पदान गढ़वाला ऊंचाकोट गौं को पारंपरिक पदान भी रही अर पूर्व प्रधान भी. आयु 60 साल का आस-पास. 
चखुलीदेवी: ऊंचाकोट गौं कि प्रधान. महिला सीट होण पर ही स्य प्रधान ह्वे पायी. आयु 45 साल का आस-पास.
शांतिदेवी: ऊंचाकोट गौं का पड़ोसी गौं निसाकोट कि प्रधान. आयु 60 बरस का आस-पास.
उद्घोषक: डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति कू कार्यकर्ता.
पुरुषोत्तम बडोला:  गौं कू कजे.
प्रताप सिंह नेगी:  गौं कू कजे.
फ्यूंली: चखुलीदेवी अर बसंत सिंह की बड़ी नौनि. आयु 25 बरस का आस-पास.
क्रांतिवीर: चखुलीदेवी अर बसंत सिंह को इकलौतू नौनू. आयु 20 बरस का आस-पास.
बीडीओ: ब्लाक विकास अधिकारी. 
बस कंडक्टर: प्राइवेट बस कु कंडक्टर.
बस ड्राइवर: प्राइवेट बस कु ड्राइवर. 
आंदोलनकारी: उत्तराखंड राज्य निर्माण आन्दोलन मा प्रमुख भूमिका निभाण वालो एक आन्दोलनकारी.
महिलायात्री: अगस्त्यमुनि, चमोली की बस मा चखुलीदेवी की बगलवली सीट पर बैठीं महिला.
ग्रामीण महिला: अगस्त्यमुनि, चमोली क आस-पास क एक गांव की महिला. आयु 40-45 वर्ष.
ग्रामीण नवयुवक: नदी पर लटकीं रस्सी से दुसरी ओर जाणकु प्रयास कन वलु नवयुवक. 

दृश्य-एक
मठु-मठु पर्दा ऐंच जांद अर प्रकाश मंचक एक कोणा पर तेज होण बैठद. “चौखम्भा न्यूज चैनल” का न्यूजरूम कू सेट दिखेंद. तख तारीख छ लिखीं: 9 नवंबर 2032. ओपनिंग मोंटाज म्यूजिक का बाद समाचारवाचिका समाचार पढ़न लगद.
समाचारवाचिका: नमस्कार! आज दिनांक 9 नवंबर 2032 क फटफटिया समाचारुं म खास – उत्तराखंड राज्य गठन कि आज बत्तीसवीं वर्षगांठ. पूरा राज्य मा ह्वेनि रंगबिरंगा कार्यक्रम. मुख्यमंत्री न करिन बनि-बनि की घोषणा. उत्तराखंड कि तीन मूल भाषाओं -- गढ़वाली, कुमौनी अर जौनसारी -- तैं देश का संविधान की आठवीं अनुसूची मा मिली जगा. अल्पमत सरकार गिराण का बजाय विपक्षन सरकार तैं दे भरोसू पूरा पाँच साल तक भरपूर सहयोग देण कू, बोलि कि मंत्री भी सब ईमानदार अर इनि ईमानदार सरकार बणी रैंण चैन्द. भ्रष्टाचार न्यूनतम स्तर तक पहुंचण का कारण छिनिगे उत्तराखंड कु भ्रष्टतम राज्य होण कु तगमा. राज्य मा ट्रांसफर उद्योग पर भी लगी रोक, हालांकि राज्य का जीडीपी मा होलि पचास प्रतिशत की कमी. राज्य का पर्वतीय क्षेत्रम चकबंदी अर सामूहिक खेती की व्यवस्था संविधान का अनुच्छेद-371 का आधार पर शीघ्र लागु करे जाण कि घोषणा. तराई क्षेत्रम भूमि हदबंदी कानून सफलता का साथ लागु होणु कि आज तिसरी वर्षगांठ. सार्वजनिक स्थानु पर गौड़ा-बछुरु छोड़न पर लगी प्रतिबन्ध, आदेश नि माणन वलों पर लगलु भारी जुर्मनु. अर, राज्य मा गोणी-बांदरूं से लेकि सुन्गुरू तक कि नसबंदी का बारा म मंत्रिमंडल का निर्णय पर काम अगला सोमवार से होलु शुरू. (कुछ पल कु विराम) अन्य समाचारूं म कुछ ख़ास नी. राज्य म आज क्वी बस सड़क से नि लमडी, अर बदरी-केदार जनि जगा भी क्वी आपदा नि आई. बाढ़न भी कखि तबाहि नि मचाई. सीएम का कै चमच न, क्षमा कर्यां, कै दायित्वधारी मंत्रीन, बड़ा अधिकारिन या माफियन राज्य बेचण की क्वी नयी स्कीम भि शुरू नि करी. मुख्यमंत्री द्वारा निर्देशित मुख्य विपक्षी पार्टी न भी आज कखी धरना-प्रदर्शन नि करि. (कुछ पल कु विराम) ग्रामीण समाचार भी क्वी ख़ास नि छन. न ता कै ग्राम प्रधान की भैंसी लमडीकि मरि, अर न गोणी-बांदर न कैकी कखड़ी या अमेर्त खाई. कखी क्वी मनस्वाग भी नि दिखे. कैन कै बामण की लंबी धोती भी नि खैंची अर कै ठाकुर का लंबा जोंखा भि नि उपाड़ीन. क्वी गरीब भी भूखन नी मरी. और त और, मैदानी इलाका म डेंगू से भी क्वी नि मरी. (कुछ पल कु विराम) संक्षेप म, पूरा राज्य म सुख-शांति अर खुशाली फैलीं छ. सीएम से लेकी उंका मंत्री-संतरी का गीत असकोट से आराकोट तक अर रामनगर से मुनस्यारी तक छकिक बजणा छन. सच म दिखे जाओ त उत्तराखंड हैपीनेस इंडेक्स का मामला म शीघ्र भूटान से भि अग्वाड़ी पहुंच जालो. (क्षणभर रुककर) ई सब देखिक चौखम्भा न्यूज चैनल न आज सुरेश नौटियालकु नाटक “चखुलि प्रधान” दिखौण कु निर्णय ल्हे. त अवा आप भी देखा ये गढ़वली नाटक! अर, देखा कि पैली हमरा उत्तराखंड म कन बनि-बनि की समस्या होंदी छै! (मठु-मठु सेट पर प्रकाश मध्यम ह्वेकि मलिन ह्वे जांद. समाचार-वाचिका चली जांद.)

दृश्य-दो
मंच का दुसरा कोणा पर प्रकाश तेज होंद. हाव-भाव का दगड़ी कोरस-द्वय प्रवेश करद.
स्त्री कोरस: सुणा भै-बैणो, सुणा! एक दिन बोणन सुणाई कथा ऊंचाकोट गौं की तै डाला तईं जैका झड़ीगे छया पात! तैई दिन बोणन सुणाई तै डाला तईं अपणी जिकुड़ी की बात. बोलि की छौ एक गौं ऊंचाकोट, जैमा छया बनि-बनि का कूड़ा. क्वी खन्द्वार पलायन से, क्वी भूकंप से झस्क्यां! (विराम) हां भै-बैणो, तै गौं का एक घौर मा रैंदु छयो अपणी ब्वारि चखुली अर नौन्याल का दगड़ी फुंद्या पदान, जी फुंद्या पदान!
पुरुष कोरस (गायन के साथ): दस नंबर का खुट्टा तैका, द्वी नंबर कू कपाल. छप्पन नंबरै छाती तैकी, पर सौ नंबर कू बबाल! सौ नंबर कू बबाल! दस नंबर का खुट्टा तैका, द्वी नंबर कू कपाल. छप्पन नंबरै छाती तैकी, पर सौ नंबर कू बबाल! सौ नंबर कू बबाल!
स्त्री कोरस (सामान्य होकर): त भै-बैणो, फुंद्या छौ पदान पैली, फिर बणि स्यू ग्राम प्रधान मालदार!
पुरुष कोरस (रुककर): अर अब देखा, क्या ह्वे ह्वलो अगनै! इनै हम, उने आप. इनै हम, उनै आप!
(प्रकाश मलिन ह्वेकि लुप्त ह्वे जांद. कोरस-द्वय चलि जांद.)
दृश्य-तीन
गांव कि चौपाल म मीटिंग कु दृश्य. बनि-बनि का परचा-पोस्टर लग्यां छन. ग्रामसभा प्रधान का सबि प्रत्याशी अर समर्थक का साथ-साथ गांव क लोग उपस्थित छन. गांव कि एक वृद्ध महिला मंगलादेवी बैठक की अध्यक्षता कनि छ.
बैशाखीलाल: मीटिंग मा उपस्थित सबि लोगु तैं नमस्कार! यीं बैठक कि अध्यक्षा (मंगलादेवी जनै संकेत करद) श्रीमती मंगलादेवीजी की आज्ञा से मि बैठक आरंभ करदु. (मंगलादेवी मुंड हिलैकि बैठक आरंभ करण की अनुमति देंद) भै-बैणो, आप सबि जाणदा कि या मीटिंग किले बुलैगे? ग्रामसभा प्रधान का चुनावम एक प्रत्याशी श्रीमती चखुलीदेवी रावतजीन ख़ासकर बैठक बुलाण कु आग्रह करि छौ. मि यु चांदु कि श्रीमती चखुलीदेवी अफु बतावन कि मीटिंग कु उद्देश्य क्य छ.
चखुलीदेवी: सबि बडों तैं सादर नमस्कार अर छोटों तैं आशीर्वाद! (विराम) मि बस ई ब्वन चांदु कि हम तईं गांव कु बाताबरण नि बिगड़यूं चएंद. चुनाव त आंदा-जांदा राला. कबि क्वी ग्राम प्रधान बणलो अर कबी क्वी! पर, हम सबन यखी ये गांवम राण! मि देखणु छौ कि हमारा पदानजी से ल्हेकी और सबी प्रत्याश्यूं का पति चुनाव जीतण का खातिर खराब से खराब काम कना छन. (विराम) अगर आप लोग ई सब बंद नि करला त मिन चुनाव से अपणु नाम वापस ल्हे लेण. अब आप लोखुन सोचण कि क्या करियूं चैंद.
(सब लोग खुसर-पुसर कन बैठी जांदन. खलबली सी मच जांद. कई लोग अपनी बात रखण चांदन.)
बैशाखीलाल: जु भी अपणि बात रखण चांदू, स्यु खडू ह्वे जाव. (अनेक लोग खड़ा ह्वे जांदन) आपकि बात समणा आण से पैली यु ब्वनु चांदू कि हम सब मिलिकी इन क्वी उपाय करां जैसे इनी नौबत नि आव की चखुलीदेवीजी तैं अपणु नाम वापस ल्हेण पोड़.
पुरुषोत्तम बडोला: हां, लोकतंत्र मा सबकु अधिकार छ चुनाव लड़नु. अगर अच्छा प्रत्याशी नि लड़ला ता चुनाव प्रक्रिया कु मतलब ही क्या रै जांद? 
प्रताप सिंह नेगी:  मेरु सुझाव छ कि एक प्रत्याशी पर आम सहमति बणए जाव. यु भौत जरुरी छ. चुनाव मां खून-खच्चर रोकण का खातिर यू करण पडलो!
फुन्द्या पदान: प्रताप ठीक ब्वनु छ. (विराम) इन करा, चखुली तैं सर्वसम्मत प्रत्याशी घोषित कर द्यावा अर बाकि सबी प्रत्याशी अपणा नाम वापस ले ल्यावा.
चखुलीदेवी: ना, ना, लोकतंत्र मां इनी सर्वसम्मति ठीक नी. मी यु चांदू की चुनाव हो पर ईमानदारी, पारदर्शिता और स्वतंत्र रूप से – क्वी भाई-भतीजावाद न हो, क्वी खोलावाद अर थोकवाद न हो, क्वी जातिवाद न हो! (सब लोग टक लगैकी सुणना छन.) मी बस इथगा ही बोलुदु कि अगर मी चुनाव जीती जौलू ता अपना ढंग से अर स्वतंत्ररूप से पारदर्शिता का साथ काम करलू. इन नि स्वच्यां कि जन पदानजी चलान्दा छया ग्रामसभा, उनि मी भी चलौलु!
प्रताप सिंह नेगी: अर्थात, सबुन चुनाव लड़न? फिर ता यु घपरौल बंद नि होण. लोखुन इनी आपस मा लड़नु रैण अर हासिल कुछ नि होण.
पुरुषोत्तम बडोला: मेरी अपील छ कि हम सब लोग सौं घैन्टा कि वोट ईमानदारी अर निष्पक्षता का साथ अर अंतर्रात्मा का हिसाब से द्यौला. जू सबसे योग्य प्रत्याशी दिखेलु तैतैं वोट द्योला.
मंगलादेवी:  बेटों, ब्वारियूं अर नौन्याल, मी एक ही बात ब्वलू कि हम सबु तैं राग-द्वेष का बिना, स्वार्थ से ऐंच उठिकी निष्पक्ष भाव से वोट दियूं चैंद.
(सब लोग हाथ का ऐंच हाथ राखी सौं घैन्टणन कु अभिनय करदन.)
सब ग्रामीण (ऊँचा सुर मा): ऊंचाकोट गौं का हम सब लोग सौं घैन्टदां कि हम सब ग्रामसभा प्रधान का चुनाव मा वोट ईमानदारी अर निष्पक्षता का साथ द्यौला. जू सबसे योग्य प्रत्याशी ह्वालि तैतैं वोट द्योला! जू सबसे योग्य प्रत्याशी ह्वालि तैतैं वोट द्योला!
(प्रकाश मंद हवेकि लुप्त ह्वे जांद.)

दृश्य-चार
मंच का बीचों-बीच प्रकाश तीव्र होंद. गौं का सामुदायिक भवन मा मतदान चलणु छ. महिला और पुरुषु की अलग-अलग पंक्ति लगीं छन. कुछ लोग आणा छन, कुछ जाणा छन. बैसाखीलाल, मंगलादेवी, प्रताप सिंह नेगी, पुरुषोत्तम बडोला अर गौं का कुछ हौर स्त्री-पुरुष वोट देणा बाद एक कोणा पर खड़ा ह्वेकि मतदान का बारा मां बातचीत करणा छन. बातचीत सुणमा नि आणी. मठु-मठु मंच का मध्य हिस्सा पर प्रकाश मंद ह्वेकि लुप्त ह्वे जांद.

दृश्य-पांच
एक कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद. सूत्रधार-द्वय कु प्रवेश. प्रकाश तौं तैं अपणा घेरा मां लेंद.
स्त्री सूत्रधार: जी, सूचना अर समाचार यु छ कि चखुलीदेवी रावत ऊंचाकोट ग्राम प्रधान कु चुनाव जीतिगे, अर स्य तै गांव की पहली महिला प्रधान ह्वगे! आप सबु तैं बधाई! 
पुरुष सूत्रधार: हां सा’ब, चखुलीदेवीन ग्राम प्रधान कु चुनाव भारी बहुमत से जीती! बाकि सबि पत्याश्यूं की जमानत जब्त ह्वे गैनी! (विराम) उन ता चखुली ग्राम प्रधान कु चुनाव नि लड़नी चांदि छई, पर फुंद्या पदान नि मानि. तैंन बोलि कि चुनाव त लड़न ही पडलो!
स्त्री सूत्रधार: चखुली जाणदी छई कि फुंद्या पदान त अपणा मतलब का खातिर यी सब कनु छ. (विराम) खैर आप तैं पता छ कि चखुलीन सोची-विचारिकि चुनाव लड़न को निर्णय करी. चुनाव की प्रक्रिया शुरू ह्वे. चखुली ता अपणा धरम पर राई पर हौर प्रत्याश्यून चुनाव का खातिर क्य-क्य नि करी!
पुरुष सूत्रधार: चखुली छोड़ी लगभग सब्बी महिला प्रत्याश्यूं का पति लोखुन कै तैं दारू पिलाई ता कैकु कीसु गरम करी. कैन कै तैं मुर्गा खलाई ता कैन भाई-भतीजावाद अर जातिवाद चलाई! इन लगणू छौ सा’ब जन लोकसभा का चुनाव होणा होला! क्य ई सब भ्रष्ट कामू तैं लोकतंत्र अर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बोल्दिन?   
स्त्री सूत्रधार: वोट का सवाल पर कुछ पति-पत्नी एक दूसरा का खिलाफ ह्वेगे छा अर भै-भै कु दुश्मन! कपाल फुटण की स्थिति हवे गै छै! इनु होंदु ता लोकतंत्र भी यखी रै जांदू अर वेकि प्रक्रिया भी!
पुरुष सूत्रधार: हां अर, फुंद्या पदान भी पिछने नि रांदु पर चखुलिन तैकी नि चलण दे. चखुलीन टक लगाई कि बोलि कि मेरा चुनाव मा क्वी भ्रष्ट आचरण नी होलो!
स्त्री सूत्रधार (सामान्य होकर): त भै-बैणो, खानदानी पदानी का बाद फुंद्या रै ग्राम प्रधान अर अब जब सीट चलिगे महिलों का पास, ता तन ह्वैगे तैको निर्बल अर मन ह्वेगे उदास! मन ह्वेगे उदास!
पुरुष सूत्रधार: अर, लग्यूं छ जतन मा स्यु फुंद्या पदान कि बणजों कै तरां अब प्रधानपति!
स्त्री सूत्रधार: पर, ऊंचाकोट गौं का लोगुन ईं बार पूरा लोकतंत्र कु परिचय दे और अधिकतर प्रत्याश्यून प्रचार की कमान अपणा पति लोखु तैं देण का बजाय अपणा हाथ मा रखी.
पुरुष सूत्रधार: वोट का दिन भी बाताबरण भलु राइ.
स्त्री सूत्रधार: ता दीदी-भुल्यूं अर भै-बंधु! ऊंचाकोट गौं का लोखुन घैंटी सौं का हिसाब से ग्रामसभा प्रधान का चुनाव मा वोट ईमानदारी अर निष्पक्षता से द्याई. जू सबसे योग्य प्रत्याशी छौ, सि जीति ग्ये. यानि चखुलीदेवी कि जीत ह्वेगे!
पुरुष सूत्रधार: चुनाव जितण का बाद कनु आत्मविश्वास बढद, आप अफी देखा. जू चखुली चुपचाप अपणा काम मा लगीं रैंदी छई, सि कन जागरूक ह्वेगे, या देखण वली बात छ. आवा, आप भी मजा ल्याव लोकतांत्रिक ढंग से ह्वयां महिला सशक्तिकरण कु!
(प्रकाश मंद ह्वेकि विलीन ह्वे जांद.)

दृश्य-छः   
दुसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद तख फुंद्या पदान बैठ्यूं भुजि कटणु दिखेंद.
फुंद्या पदान (भुजि कटद-कटद अपणा आप से बात करणु छ): ब्वा सा’ब, कनु जमानु एगी! कजे लोगुकि त क्वी सुणदु नी, बस कजणयूं कू डंका बजद. अरे भई, कजणयूं तैं अग्ने राखा, अर कजे लोखु तैं भेल बटी लमडै द्या! फुंद्या पदाने तरां भौत फुंद्या बणदा छया यी मर्द लोग! पर सोचा जरा, सरकारन इन किले करि ह्वलो सा’ब? तौं महिलों मू न डंडा न झंडा, बस आरक्षण कू फंदा! (चखुलीदेवी प्रवेश करद अर घौर की सीढी पर बैठी कुछ लिखण मा व्यस्त ह्वे जांद.) गांव से लेकी ब्लाक, ब्लाक से लेकी तहसील अर तहसील से लेकी जिला मुख्यालय तक जुता त घिसां हम मर्द लोग अर प्रधान बणला यी जनना! हे भगवान, कनि दुर्बुद्धि दे तिन सरकार तैं! अच्छु-भलु चलण लग्यूं छौ कारोबार. महिला आरक्षणन कन बणाई मेरि गति, नि बण सकण अब मिन गौं कु प्रधान! अर जनि य मेरी कज्याण छ, वै हिसाब से छ कठिन बणणु प्रधानपति! 
(चखुलीदेवी का मोबाइल की घंटी बजद. चखुलीदेवी फोन कंदूड पर लगांद अर कापी-पेन निसा धारिकी इने-उने चलण बैठी जांद.)
चखुलीदेवी: हां मांजी, प्रणाम! हां, तेरि य चखुलि भलि छ! अर तु ठीक छीं? बौजी-भैजी भी ठीक छन? (सुणनो उपक्रम) तुमरी दिल्ली मा बल डेंगु ह्वयुं छ! (सुणनो उपक्रम) हां, पदानजी भी खूब छन (फुंद्या पदानकि तरफ देखद) अर नौन्याल भी. (सुणनो उपक्रम) हां, हां, नौन्याल स्कूल-कालेज जयां छन. (सुणनो उपक्रम) मांजि, जब बटी ग्राम प्रधान बणयूं, घौरौ काम कनु टैमी नी च. हां मांजि, गौड़ा-भैंसा भी ठीक छन. अज्क्याल पदानजी ही देखदन तौं. (हंसदा-हंसदा) गौड़ी इकत्या छ. पदानजी द्वी-चार बार तैं गौड़ी कि लात भी खयेनी! (पास का निसाकोट गौं की ग्राम प्रधान शांतिदेवी प्रवेश करद. पदान अपणा काम मा व्यस्त रांद. चखुली शांतिदेवी से बात कन बैठी जांद.)
चखुलीदेवी (सेवा लगान्द): आवा, आवा जी! खूब छयां!
शांतिदेवी: चिरंजीव! स्वागवंती रईं! ठीक छईं! अर, बाल-बच्चा? 
चखुलीदेवी: सब ठीक छ! कनु आण ह्वे आज हमरा गांव? पूरा बारह-चौदह साल बाद आणा हवेल्या हमरा गांव!
शांतिदेवी: हां ब्वारि, दिल्ली रयूं. तेरा सोसराजी का ख़तम होणा का बाद द्वी साल पैली गांव आईगे छौ. दिल्ली मा ब्वारिन नि रैण दे. (हंसदा-हंसदा) आज ता त्वे तैं ग्राम प्रधान बणन कि बधाई देणु यूं छौं! 
चखुलीदेवी: धन्यवाद जी! आप तैं भी निसाकोट की ग्राम प्रधान बणन की बधाई! 
शांतिदेवी: अरे ब्वारि, भौत मुश्किल काम छ प्रधानी चलाणी! मर्द लोग हर टैम क्वी ना क्वी कमि निकालणा रैन्दन. मेरा सुरु का पितजि ता उत्तराखंड आंदोलन मा शहीद ह्वे ग्या छया अर म्यरा जेठाजी देखदन हमरु घर-परिवार! पर अब सि चांदन कि ग्राम प्रधान की चाबि तौंकई पास राऊ. प्रधानपति की तरां प्रधान जेठाजी बणन चांदन! सोच्दन की कजणयूं पर ता दिमाग होंदु नि!  (फुंद्या पदान का तरफ देखिकी) अर बेटा फुंद्या खूब छै तु?
फुंद्या पदान (सेवा लगांद): चचि प्रणाम! आशीर्वाद छ आपकु!
शांतिदेवी: आशीर्वाद बेटा! अब ता तेरी ब्वारि प्रधान बणगे. बधाई हो!
फुंद्या पदान: हां चचि, सरकारन नीति बदल दे. महिला सीट ह्वेगि. क्य कन तब!
चखुलीदेवी (फुंद्या पदान कि बात काटी की): जब बटी ग्राम प्रधान बणयूं, घौरौ काम कनु टैमी नी च. पर कन क्या?
(फुंद्या पदान तख बटी चली जांद)
शांतिदेवी: अर ब्वारी, हमर गांव मा ता खेती-बाड़ी चौपट छ. ऊंचाकोट मा खेती का क्या हाल छन? 
चखुलीदेवी: जी, निसाकोट अर ऊंचाकोट कि बात नी. पूरा पहाड़ कि हालत खराब छ. कुछ गोणी-बांदर अर सुन्गरून बर्बाद करियाली अर कुछ मनरेगन चौपट करियाली. ज्यादा कुछ कर्यां बिना जब द्वी रुपया किलो चावल मिलण लग्यां छन तब लोखुन खेती किले कन! मी ता बोलदु कि यू मनरेगा-फनरेगा बंद ह्वे जाण चैन्द. यीं स्कीमन लोखु तैं निक्कमु बणाई याली. अर, बीपीएल देखा. जू सच मा गरीब छन, सी बीपीएल कार्ड का खातिर भटकण लग्यां छन अर जौंकी पछाणक छ सी ठीक-ठाक होण का बाद भी बीपीएल कार्ड वला बन्या छान. ठाठ कना छन सी लोग! जी, जब यु मनरेगा-फनरेगा नि छायु, गढ़वाल का पुनगड़ा-डोखरा कन सुन्दर लगदा छया फसल का टैम पर! अब ता सी बांजा ह्वे गैनी. डाला जमणा छन पुनगडों मा, डाला!
शांतिदेवी: हां, अर लोग पहाड़ छोड़ीक शहरू जनैं पलायन कन लग्यां स्यू अलग! पैली ता नौकरी-चाकरी कि खातिर जांदा छाया पर अब ता बच्चों पढाण का बाना भी पलायन कन लगिन. सुण मा आई कि राज्य बणन का बाद पलायान हौर तेज ह्वे ग्याई!
चखुलीदेवी: पलायन ता बड़ी भारी समस्या ह्वेगे. पर क्य कन? सरकारी स्कूलु मा पढाई हूंद नी अर अच्छा पब्लिक स्कूल सब भैर छन पहाड़ से. सरकारी स्कुलु कि न ता बिल्डिंग अर न तौं तक पहुंचण की क्वी व्यवस्था. अर जख स्कूल छन तख नौन्यूं खुणी शौचालय कि व्यवस्था नी! इना-इना स्कूल छन जख पहुंचणु नदी-गधेरा रस्यूं से पार करदन स्कुल्या बच्चा. कई बच्चा तौं गाड-गधेरों की भेंट चढ़ी गैन. अर, पढ़ाई की ता बात ही क्या कन! मास्टरु तैं बस अपणी तनखा से मतलब! सी लोग अपणा बच्चों तक नि पढ़ान्दा तौं सरकारी स्कुलू मा! मि ता बोलुदु कि अमीर-गरीब सबका वास्ता एक जना सरकारी और सस्ता स्कूल होयां चैन्दन. स्वास्थ्य-चिकित्सा व्यवस्था भि अमीर-गरीब सबी लोखु का वास्ता सरकारी, सस्ती अर एक जनि ह्वयीं चैन्द. पता नी अच्छा अस्पताल का चक्कर मा कतना लोग दिल्ली का अस्पताल पौंछण से पैली म्वर जांदन! 
शांतिदेवी: हां ब्वारि, भारी परेशानी च. यूं समस्यों कु क्वी-न-क्वी समाधान ता खोजण ही पड़लो हम सब तैं मिलिकी!
चखुलीदेवी: कुछ समझ मा नी आणु. खेति का भी सी हाल छन. गोणी-बांदर अर सुन्गरून बुरा हाल कर्यां छन. मी सोचदु कि अगर चकबंदी ह्वे जाव या सामूहिक खेती कन को विचार लोखु तैं समझ आई जाव ता कै तैं अपणु घौर छोडीकि भैर नि जाण पोड़.
शांतिदेवी: हां ब्वारि, हमारा गौं मा लोग ब्वना छया कि संविधान का अनुच्छेद-371 जनि कै व्यवस्था का साथ अनिवार्य चकबंदी ह्वे जाव ता किसान कि खेती कु चक एकि जगा पर होण से कृषि पैदावार भी बढली अर भू-माफिया उत्तराखंड मा चक-का-चक नि खरीदी सकला! 
चखुलीदेवी: हां जी, कै राज्यों मा संविधान का अनुच्छेद-371 की व्यवस्था पैली से छ. तौं राज्यों मा या व्यवस्था ह्वे सकद ता नेपाल अर तिब्बत जनि अंतर्राष्ट्रीय सीमौं से लग्यां हमरा राज्य मा ता इनि व्यवस्था सुरक्षा का हिसाब से हौर भी जरूरी छ.
शांतिदेवी: ब्वारि, अर खेती का खातिर पाणी की व्यवस्था ह्वे जाव ता हमरी खेती सोना पैदा कर सकद, सोना! कुल मिलैकी खेति भी बचलि अर नौकरी का खातिर पलायन भी रुकलो! हमरा जु ज्वान बच्चा बिना नौकरी का इने-उने भटकणा छन तौं तैं नौकरी की खोज मा देस नि जाण पड़लो. (रुकिकी) अर जब तु मिटीन्ग्यूं मा जांदि तब खाणु कु बणाद?
चखुलीदेवी: खाण-पीणकु काम पदानजी ही करदन.
शांतिदेवी: तब ता तेरि निखणी समझा! पदान तैं मि नि जणदु क्य?
चखुलीदेवी: हां, कबि-कबि निखणी ह्वे जांद. गुस्सा आई जांद पदानजी तैं चुला-चौका कन मा. कबि मर्च ज्यादा त कबि निरपट अलणु. कबि भात फूक देंदन अर कबि चुल्लु उमालन बुजि जांद. यु ता पता ही नी छ कि जख्या कू तड़का केमा लगद, मेथी कू केमा अर जीरा कु केमा.
शांतिदेवी: यी मर्द होंदै इना छन! पर, क्य कन तब? प्रधाना नाता जिम्यदारी भी ता भौत छन.
चखुलीदेवी: हां जी, प्रधान की भौत जिम्यदारी हूंद. टैम कख होंद अपणा खातिर. छुयूं मा अल्ज जा ता कतई नि ह्वे सकद प्रधानि!
शांतिदेवी: क्वी अच्छि सी स्कीम बणादि जननौं का वास्ता! मीं भी अपणा गांव मा तैं स्कीम लागु करौलु.
चखुलीदेवी: जी, जख्या से पैसा कमाण का बारा मा आपकि क्य राय छ? 
शांतिदेवी: ब्वारि, जख्या बुतण ता गाली हूंद!
चखुलीदेवी: हां जी, मि भी जणदो कि जख्या बुतण गाली हूंद पर सी पुराणी बात छ. नयु जमानो ऐगी. जख्या तैं हम नकदी फसल बणाई सकदां. द्वी सौ रुपया किलो च बिकण लग्यूं बजार मा! मिन सोचि कि कुछ फैदा ह्वे जाव गांव की महिलों तैं.
शांतिदेवी: ता खेती कण पोड़ली जख्या कि?
चखुलीदेवी: नन, न जी! जख्या कि खेति कने क्वी जरूरत नी छ. ई जू लोग दिल्ली-बम्बे रैंदन, तौंका पुंगड़ा-डोखरों मा जख्या ता छ जम्यूं. अर ताख जख्या न हो ता डाला जम्यान!  पुंगड़ा-डोखरा ता छोड़ा, हमरा गांव का कूड़ों का धुर्पलों पर भी जख्या जामिगे! (भैर भोंपू से उद्घोषणा होणा की आवाज सुनाई देंद. भोंपू से उद्घोषणा करणवालु दिखाई देंद. तैका शरीर पर पोस्टर अर नारा लिख्या छन. द्विई महिला ध्यान से सुणदन.)
उद्घोषक: हलो, हलो! ऊंचाकोट ग्रामवास्यूं तैं डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति कू नमस्कार! आप लोखु से निवेदन छ कि डोबरा-चांठी पुल निर्माण अर प्रतापनगर क्षेत्र की जनता तैं अपणू समर्थन देणा वास्ता अग्ल्या रविवार ग्यारा बजि ऋषिकेश त्रिवेणी

Bhishma Kukreti

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चखुलि प्रधान! Part --2
(गढ़वाली नाटक)

नाटककार: सुरेश नौटियाल
Garhwali Play by Suresh Nautiyal



उद्घोषक: हलो, हलो! ऊंचाकोट ग्रामवास्यूं तैं डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति कू नमस्कार! आप लोखु से निवेदन छ कि डोबरा-चांठी पुल निर्माण अर प्रतापनगर क्षेत्र की जनता तैं अपणू समर्थन देणा वास्ता अग्ल्या रविवार ग्यारा बजि ऋषिकेश त्रिवेणी घाट पहुंचल्या. प्रतापनगर क्षेत्र की जनता की समस्याओं की बात सरकार और मीडिया तक पहुंचौंण की खातिर अग्ल्या रविवार कू ग्यारा बजि ऋषिकेश त्रिवेणी घाट जरूर पहुंच्यां. आप तैं बताई दयां कि डोबारा-चांठी पुल का समर्थन मा हम लोग पूरा गढ़वाल मा जन-जागृति कना छां, किलैकी डोबरा-चांठी पुल कु निर्माण पूरा उत्तराखंड का वास्ता महत्वपूर्ण छ. यीं घोषणा सुणन का वास्ता ऊंचाकोट ग्रामवास्यूं कु धन्यवाद! (उद्घोषक उद्घोषणा कर चलि जांद.)
चखुलीदेवी: जी, परस्यूं क्य छन आप कना? तै डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति कि बैठक छ ऋषिकेश मा. मीन जाण तख. आप चल्या? 
शांतिदेवी: क्या स्यु डोबरा-चांठी?
चखुलीदेवी: अरे जी, केंद्र अर उत्तर प्रदेश सरकारन दिल्ली अर मैदानि इलकों मा पाणी-बिजली पहुंचौंण का खातिर टीरी डाम त बणाई दे पर ई नि सोचि कि जू लोग टीरी झील की दुसरी तरफ रांदन, सी कन कैकी इने-उने आला-जाला? द्वी छोटा-छोटा पुल छन तख टीरी झील का ऐंच! बड़ी गाड़ी नी जाई सकदन तौं से इने-उने. प्रतापनगर ब्लाक अर दूसरा प्रभावित क्षेत्रू का लोग मांग कना छन कि टीरी झील का ऐंच बडू मोटर पुल बणए जाव.
शांतिदेवी: मांग ता बिलकुल ठीक छ, फिर पूरी किले नि ह्वे?
चखुलीदेवी: पुल कि अनुमति ता तिवारी सरकारन भौत पैली दे यालि छै अर काम भी शुरू ह्वेगे छौ पर पुल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़गे. करीब डेढ़ सौ करोड़ रुप्या सरकार का लग गैनी पर पुल कु कखी नाम नी! द्वी खंभा छन तख खड़ा होयां भूतु जना! येही बारा मा मीटिंग छ ऋषिकेश मा अग्ल्या रविवार कु. अरे भै, पुल ता उनि भी सबका काम आण!   
शांतिदेवी: ब्वारी, जरूर औलो मी तैं मीटिंग मा. समाज कु काम छ. बारा साल कु बनबास दिल्ली मा काटण का बाद हमारा गांव का लोखुन मीं तैं ग्राम प्रधान ता चुनि दे पर अभी सिखुणु भौत छ. मीं तैं पतै नि कि ये पहाड़ कि समस्या कतना बड़ा पहाड़ छन! 
चखुलीदेवी: अरे जी, डोबरा-चांठी ता एक मिसाल भर छ. अब देखा जमीनु कु घपला! सरकार पूंजीपति लोखु का दगड़ा सांठ-गांठ करीकि नानीसार, पोखड़ा अर टी-एस्टेट की जमीन कौड़ी का भाव बेचणी छ.
शांतिदेवी: हां ब्वारि, हमारा गौंकु एक नौनु ब्वनु छायु कि द्वी बड़ी पार्टीयूं का नेता मिल्यां छन!
चखुलीदेवी: जी, ठीक बोलि आपन! मलेथा अर वीरपुर-लच्छी जनि जगा स्टोन क्रशर की समस्या छ, स्यु अलग! रेता-बजरी और खनन का पट्टा ता इन इस्तेमाल होणा छन जन पूरी धरती तैं बेचणु पट्टा मिलगे हो यूं बदमासूं तैं!
शांतिदेवी: अर यख पहाड़ मा क्वी मकाना वास्ता ढुंगा निकालु ता सरकारी लोग पहुंची जान्दन!
चखुलीदेवी: जी, ऋषिकेश मा चंद्रभागा नदी से लेकि हल्द्वानी मा गौला नदी तक अर न जानै कख बटी कख तक अवैध खनन होणु छ. जनता तैं सब पता छ! पुलिस भी चुप रैंद. कै पुलिसवालन ज्यादा मुस्तैदी दिखाई ता खनन माफिया तैकु ट्रांसफर कराई देंदिन!
शांतिदेवी: माफिया अर यूं पार्टीयूं कु सत्यानाश हो!
चखुलीदेवी (सोचदा-सोचदा): नी होणु न! जी, मी बस यु बताणु चांदु कि राजनीतिक दल जैं जनता का वोट लेकि सरकार कु गठन करदिन, तौंहि लोखु तैं बाद मा मूरख साबित कर देंदिन. पार्टी सरकार मा आण का बाद कतना उदासीन, कतना असंवेदनशील ह्वे जान्दिन!
शांतिदेवी: लोग क्षेत्रीय दलु का बारा मा किलाई नि सोचदा?
चखुलीदेवी: ठीक छां बुना आप! अब देखा, राज्य ता बणाई पहाड़ी लोखुन अर योजना बणदन मैदानी इलाकों का हिसाब से. स्कुल्या नौन्यूं तैं साइकिल भी मैदानू मा अर बुड्या लोखु तैं सरकारि बसु मा फ्री यात्रा भी तखी. पहाडू मा ना साइकिल काम की अर ना सरकारी बस जौं मा वृद्ध लोग सवारी कर सकन. अरे, पहाड़ मा ता सरकारि बस ही नी छन!
शांतिदेवी: त्वी बतौ ब्वारि, हम गांव का लोखु तैं क्य कर्यूं चैंदु?  (ये बीच फुंद्या पदान भितर बटीक दुसुरु फोन लांद अर चखुली तैं देंद) अच्छा जी, फेर बात करला, शैद, पदानजी का फोन पर मी खुणी कैकु कॉल छ! (कंदूड पर दुसुरु मूबाइल लगांद) हलो! कौन बोल रहा है?
शांतिदेवी: अच्छा ब्वारि, मी चलदु. फेर औलू. सोच कि गांव का लोखू तैं क्य कर्यूं चैन्द कि खेति, स्क्ल्यूं अर डोबरा-चांठी पुल जनि समस्यों कू समाधान हम अपणा आप करी सकां. (चखुलीदेवी शांतिदेवी तैं अर फोन एकसाथ सुणनै कू उपक्रम करद. शांतिदेवी चलि जांद.)
चखुलीदेवी: हां, हां बीडीओ भैजी! कन याद कैरि आपन ईं छोटी सी ग्राम प्रधान तैं? क्य बोलि, मेरु फोन नि छौ लगणु!
फुंद्या पदान: अरे क्य ब्वनी तन? बीडीओ सा’ब तैं सर बोल सर! सॉरी बोल, सॉरी!
चखुलीदेवी: (मोबाइल पर हाथ रखी व्यंग्य मा): पैलि क्य ब्वन, सर य सॉरी? 
फुंद्या पदान: मेरु कपाल बोल! (फुंद्या पदान घरा भितर चली जांद)
चखुलीदेवी: कपाल त ह्वेगे, स्यू फोन कटेगि. नजणी, किलै कै ह्वलु फोन बीडीओ सा’बन? (घंटी फिर बजद) जीजी, सर! जी सर, हमरा गांव मा “स्वच्छ भारत कार्यक्रम” चन लग्यूं. प्रधानमंत्रीजी कू “मन की बात” कार्यक्रम भी हम सब महिला लोग टक लगैकि सुणदां. (सुनने का उपक्रम) नन! कजे लोग नि सुणदा तै कार्यक्रम. एक ता सि बोल्दन कि प्रधानमंत्री राजनीति छ कनू अर दुसरा सि मनरेगा का पैसों की दारू पेण मा मस्त रैंदीन. पुरुसार्थ समझदिन तै काम कनु! (सुनने का उपक्रम) जी, क्य बोलि आपन कि मुख्यमंत्री कु कार्यक्रम “आपके मन की बात” भी सुणन? जी, जी, तै भी सुणला. (व्यंग्य मा) तौंका मन कि बात अर हमरा मन की बात, सबी जरूरी छ. (सुनने का उपक्रम) जी, जी चिंता न कर्यां. (सुनने का उपक्रम) क्य बोलि आपन कि गांवकि योजना की शीघ्र स्वीकृति का वास्ता अछरीखाल मा मुख्यमंत्री का कार्यक्रम मा सौ लोग गांव से लाण पोड़ला? (सुनने का उपक्रम) जी, जी! ता आप क्या चांदन कि ग्राम प्रधानुकू प्रतिनिधिमंडल केदारनाथ आपदा से ह्वयां नुकसान कु आकलन कना वास्ता जाऊ? पर बीडीओ सा’ब, सरकारि अधिकार्यूं की फ़ौज का बाद भी हमरि किलै जरूरत पोड़ी? (सुनने का उपक्रम) चला ठीक छ. मीं निसाकोट की ग्राम प्रधान शांतिदेवीजी का दगड़ी केदार घाटी चली जौलू! (सुनने का उपक्रम) हां, हां मिन बोलि कि निसाकोट की ग्राम प्रधान शांतिदेवीजी का दगड़ी केदार घाटी चली जौलू! अबि यखी अयां छा हमरा गांव. (सुनने का उपक्रम) जी, सीम सा’ब की जनसभा की भी आप चिंता ना कैरा, पर हमरा गांव की योजनौं कू पैसा तुरंत रिलीज ह्वे जाणु चैंद. अच्छा बीडीओ सा’ब, नमस्कार! (सुनने का उपक्रम) फोन कन कू धन्यवाद! 
फुंद्या पदान (प्रवेश करदू-करदू, व्यंगात्मक शैली मां): क्य छा तुमरा बीडीओ भैजी ब्वना? कखी कै चक्कर-वक्कर मा ता नि छन सि? 
चखुलीदेवी: मुंड-कपाल! तुमतै ता शरम भि नि आंद. सि ब्वना छया कि मुख्यमंत्री की रैली मा गांव बटी कम से कम सौ लोग ह्वयां चैंदन, तबि गांव की योजनौं कू पैसा आसनि से रिलीज होलु.
फुंद्या पदान: बोली देंदि कि खेती-बाड़ी को काम च, सौ लोग कखकि लाणन! 
चखुलीदेवी: मठु-मठु समझमा आणु कि हमरि सरकार, हमरि शासन व्यवस्था कै ढंग से चलद अर कै ढंग से काम करये जांदन.   
फुंद्या पदान: अरे, कजणयूं का बस की बात नि छ सरकारी दफ्तरू का धक्का खाणा अर अफ्सरु दगड़ कपाळ फोड़नौ. बिना लियां-दियां फ़ाइल नि हिलौन्दा सि अधिकारी-कर्मचारी! स्कीम ता पूरि सी अफी खाई जांदन. गांव का हिस्सा मा ता कड़ाई पोंछण राइ जांद. अर कड़ाई पोंछण वाला भि भतेर. पतनि भै, कन कैकि यी सब करलि तु? क्य होलो तेरा आदर्श कू? (सोचदी-सोचदी) इन कर कि घर पर ही रया कर तू. भैरा काम मि देखलु. मि ब्लाक, तहसील अर जिला मुख्यालय का आफिसु सबि जगा जौलो. तखा अधिकार्यूं से काम निकलाणु कू मी अच्छो अनुभव छ. (गिच्ची लटकैकि) अर उन भी मीसे घास-पात, चुला-चौका अर गोर-भैंसों को काम नि होंदो. गांव का लोग अब मेरि इज्जत भी नि करदा. बोल्दन कि फुंद्या पदान ता जननो ह्वेगे, जननो!   
चखुलीदेवी: जननो होण क्या गलत बात होंद?
फुंद्या पदान: मेरु स्यू मतलब नी छ. अरे पर मि ता मरद छौं न, मरद. जननों का काम करलू ता लोग ता बोलला ही न मीकु जननु? ठंडा मन से सोच ज़रा. तेरू मरद छौं मि. त्वे बी ता अच्छू नी लगलो कि तेरा आदमी तैं लोग जननु बोलन. 
चखुलीदेवी: मेरु प्रधान बणु तुम पचाई नि छां सकणा. अर सुणा, स्कीमूं मा तुमरा तरां घपला मि नि कैरि सकदू. अर, तुम तैं भी नि करण द्योलू. तुम चांदा कि प्रधानपति बणीक बेईमानी से पैसा कमां. (गुस्सा मा) सुणल्या, तुम ये चक्कर मा नी रयां कि मी तैं मूरख बणाई कि प्रधानपति बणी जैल्या. मी भी पढी-लिखीं महिला छौं. सरकार क्वी मूर्ख नी च जैन महिलों तैं यूं अधिकार दे. ये को क्वी ता मतलब होलो! सीधी-साधी भाषा मा महिला सशक्तिकरण एको उद्देश्य छ. मी प्रधान नी बणदो ता क्य तुमन घास कटणु जाण छौ? क्या तुमन खाणु बणान छौ? क्या तुमन गोर-भैसों कू काम देखण छौ और क्य गौडी की लात खाण छाई? क्या तुमन पाणी लेणु धारा जाण छौ? क्या तुमन पुंगड़ा गोडणु जाण छौ? पदानजी, तुमन यूं मा से एक भी काम नि कनू छौ किलैकि यूं सबि बथु कु ठेका महिलों कू छ, महिलों कू! 
(फुंद्या पदान मुंड निसा करीकी चुपचाप खडू छ. कोरस-द्वय का प्रवेश का साथ द्वी फ्रीज़ होई जांदन.)
कोरस-द्वय: चखुली प्रधान अर फुंद्या पदान की कथा मा ऐगे झोल!
कथा मा ऐगे झोल!
स्त्री कोरस: फुंद्या पदान को मरद ह्वे घायल!
पुरुष कोरस: चखुली कि नारीशक्ति जागीगे!
स्त्री कोरस: अपणी जीत पर प्रधान चखुली तैं छ भारि गर्व अर स्वाभिमान!
पुरुष कोरस: पदान तैं यु सब नि छ पसंद अर चखुली तैं देंदो बड़ो ज्ञान!
स्त्री कोरस: पर चखुली क्वी मूरख नी अर न क्वी नादान!
कोरस-द्वय: अगनै-अगनै देखा अब, कनै जांद फुंद्या अर कनै महिला प्रधान! कनै जांद फुंद्या अर कनै महिला प्रधान!
(कोरस-द्वय गांदा-गांदा प्रस्थान करद. लाईट फेड होंद अर दुसरा कोणा पर लाईट तेज होंद.)
   
दृश्य-सात
ऊंचाकोट गांव का एक पुंगड़ा को दृश्य. गांव का तीन कजे -- बैशाखी लाल, प्रताप सिंह नेगी अर  पुरुषोत्तम बडोला -- बैठ्याँ छन. तौंका बीचम दारू की बोतल, गिलास और नमकीन रख्यूं छ.   
पुरुषोत्तम बडोला (बोतल से गिलासून मां दारु डलद- डलद):  क्य बात होलि यार, फुंद्या पदान अभि तक नि आई?
प्रताप सिंह नेगी: आई जालु यार! तु अपणु काम करदी रौ.
बैशाखीलाल (गौं कि दिशा की तरफ देखद): वू देखा, एगी फुंद्या पदान (व्यंग्य मा) अर ऊंचाकोट गौं की पैलि महिला प्रधान कू पति अर्थात महिला प्रधानपति!
(फुंद्या पदान प्रवेश करदू. जनि स्यू बैठद उनि अपणु गिलास उठौंद.)
फुंद्या पदान: देर ह्वेगि जरा! गौड़ा-भैंसों सबकु काम निपटाई कि आणु छौं. बीडीओ साबन आपकि महिला प्रधान चखुलीदेवी अर निसाकोट गौं कि प्रधान शांतिदेवी चच्ची तैं केदारनाथ आपदा निरीक्षण की टीम मा हमरा क्षेत्र कु प्रतिनिधित्व कनु शामिल कैरि. सि द्वी आज दिनै बस से श्रीनगर चली गैनी. अग्वाड़ी जन जाली तब! (हंसते हुए) इलई देर ह्वे ग्या!
प्रताप सिंह नेगी (व्यंग्य मा): महिला सशक्तिकरण शुरु ह्वेगे साब!
पुरुषोत्तम बडोला: महिला सशक्तिकरण बाद मा यार. (गिलास उठांद) अभी ता चीयर्स!
प्रताप सिंह नेगी: अबे, जादा चीयर्स न कर! हरदा की डेनिस की चस्स बोल चस्स!
पुरुषोत्तम बडोला (व्यंग्य मा): हां भै, चस्स नि बोल्ला ता हरदा कु रणदा आई जालु हां! (सब जोर-जोर से हंसदन)
बैशाखीलाल (विषयांतर): पदानजी, मान गयों तुम तैं यार, प्रधान नि बणी सक्यां ता क्य ह्वे, प्रधानपति ता बणी गयां! नौं अर मुहर त रालि चखुली प्रधानजी कि अर असली ठप्पा लगलु फुंद्या पदान कु! अर सुणा, वू त भलु ह्वे कि प्रधान कि सीट महिला सीट ह्वेगे निथर ईं दां तुम तैं हरौण कि पूरी तैयरि करीं छई हमरी पार्टी की!
पुरुषोत्तम बडोला (व्यंग्य मा):  फुंद्या पदान, अब भि तु ग्राम प्रधान बण चांदि ता तू अपणु जेंडर चेंज करै दि भै! 
बैशाखीलाल (कटाक्ष करद): यार, फुंद्या कू जेंडर चेंज ता पैली ह्वेगी. घास कटणु अर खाणु बणान से लेकी गोर-भैसों कू काम, पानी लाणों काम, खेतिबाड़ी कु काम -- सब फुंद्या पदान ही ता कनु छ. फुंद्या पदान कि ब्वारि ता अज्क्याल मर्द ह्वेगेन, मर्द!   
प्रताप सिंह नेगी:  अबे चुप रा! यू जेंडर-वेंडर क्या हूंद? फुंद्या कि ब्वारि प्रधान अर फुंद्या प्रधानपति! वेरी सिंपल! चक्कू ककड़ी पर मारा या ककड़ी चक्कू पर, बात एक ही छ. माल ता एक ही घर आण यार!
(फुंद्या का अलावा सब लोग ठहाका लगांदन. ये क्रम मां पुरुषोत्तम बडोला गलती से अपणु गिलास अफी फरकै देंद.)
पुरुषोत्तम बडोला: अबे सालों, मेरु गिलास फरकेगि!

बैशाखीलाल: अबे, पता भी नि चली! तेरु गिलास ता सर्र इन फरके जन हरदा की सरकार!

पुरुषोत्तम बडोला: अबे, डेनिस भी ता तनि चुपचाप आई. कै पता चलि?

बैसाखीलाल: कख बटी अर कबरी आई यु डेनिस? अंग्रेज छ क्या?

पुरुषोत्तम बडोला: अबे, त्वे नी पता, को छ डेनिस? कख रैंदी तू स्ययूं? पर सूण, यि जु तू पेणी छैं सी छ इंग्लैंड कु डेनिस!   
(सब लोग ठहाका लगांदन.)
बैसाखीलाल: अब समझ्यूं मि!

पुरुषोत्तम बडोला (बैसाखीलाल से): अभी तिन लोकतंत्र का बारा मा भौत कुछ समझण. खैर! (बात बदली कि फुंद्या से) फुंद्या, तू ता ह्वे खानदानी पदान, दगड़ा-दगड़ा पूर्व-प्रधान और अब प्रधानपति! पर, त्वे पता च कि ग्रामसभा पंचायतीराज की मूल इकाई होंद, जड़ होंद जड़! अर, हर साल ग्रामसभा कि अनिवार्य जनरल बाडी मीटिंग ह्वयीं चैंदन.

प्रताप सिंह नेगी (मजाक मा): क्या हूंद स्य जनरल बाडी मीटिंग? अर्थात, सामान्य शरीर मिलन? 

(फुंद्या पदान का अलावा सब हंसदन)

फुंद्या पदान: चुप कमीना! हर टैम मजाक कू नी होंद!

पुरुषोत्तम बडोला (फुंद्या पदान से): जब तू प्रधान छै तब करि तिन कबि ग्रामसभा की जनरल बाडी मीटिंग? अबे तिन ता अपणा पेट से अग्वाड़ी ता कुछ देखी नी! 

फुंद्या पदान: बहुत बक-बक कनी छैं तु पुरुषु! म्यरी बोतल म्यरै कपाळ मा फोणनी छैं! म्यरी पेकि मीई तैं गाली! कमीणा स्साला!

पुरुषोत्तम बडोला: अबे, पिलैकि म्यरी बाच बंद नि करि सकद तू! लोकतंत्र छ यु लोकतंत्र! अबे तिन ता जिला पंचायतराज अधिकारी अर क्षेत्र पंचायत की लिखित मांग का बाद भी कबि क्वी बैठक नि बुलाई ग्रामसभा की!

प्रताप सिंह नेगी: अर जब भी ग्रामसभा का सदस्योंन इनि मांग करि ता खानापूर्ति करि तिन फुंद्या. अर बैठकू मा कबि कोरम भी पुरु नि राई.

बैशाखीलाल (व्यंग्य मा): पर एकु क्य कसूर छ भाई? सबि ता इनि करणा छन. राज्य बणन का बाद जु मंत्रियूं से लेकी संत्रियूं की फौज खड़ी ह्वे तैका कारण भ्रष्टाचारन उत्तर प्रदेश का जमना का सरा रिकार्ड तोड़ी देन. हौर अब ता सुणन मा आई कि उत्तराखंड सरा देश का राज्यों मा भ्रष्टाचार का मामला मा सबसे अग्वाड़ी पौंछगे! यानि उत्तराखंड राज्य भ्रष्टतम राज्य ह्वेगे!

पुरुषोत्तम बडोला (व्यंग्य मां): सबु तैं बधाई हो सा’ब बधाई! राज्य बण का बाद चला क्वी ता मेडल ल्हे हमरा ये प्यारा राज्यन!
 
प्रताप सिंह नेगी (कुछ नशा मा, कुछ व्यंग्य मा): भेरि गुड! हमरु राज्य दिन-दूणी-रात-चौगुणी प्रगति कनु छ. एकु श्रेय सत्ताधारी पार्टीयूं तैं जयूं चैंद!

बैशाखीलाल: छोड़ यार! सवाल एक पार्टी कु नि छ. पूरी व्यवस्था ही गड़बड़ छ. पूरि सफाई कन पोड़ली! उदाहरण फुंद्या पदान कु ल्या! यू पैली ईमानदार पदान छयु. पर जब प्रधानी की व्यवस्था आई ता अपना दगड़ी भौत सी बुरी बथा भी लेकि आई यानि अबि वर्तमान मा जू व्यवस्था छ तैंका सबि दुर्गुण ल्हेकि आयी. ये कारण से तौंकु प्रभाव हमरा फुंद्या पदान पर भी पड़ी!

पुरुषोत्तम बडोला:  अर, गौं का हिस्सा कु धन सरकारी कोष से निकालणा मा येन भी वी रस्ता पकड़े जै रस्ता पर हमारा मंत्री-संतरी अर नेता-अधिकारि पूरि निष्ठा का साथ चलि की ऐनी!

प्रताप सिंह नेगी: मी बि करदू एक सवाल! फुंद्या पदान तू यु बतौ कि तिन अपणा कार्यकाल मा गौं कि भलाई का वास्ता क्या क्वी योजना तैयार करि कबि? अरे भाई, तेरु बजट कब बणदु छौ अर कख पारित होंदु छौ, हम तैं नि कुछ पता! अर यूबि नी पता कि कख खर्च होंदु छौ!

बैशाखीलाल: यार, सब भूल गयां तुम? यखी ये ही पुंगड़ा मा त बजट बणदा छया और इनि डेनिस जनि बोतलु की मुहर लगैकि यखी पारित भी होंदा छया. बजट भी ता यूंई बोतल्यूं पर खर्च ह्वे जांदु छयु! 

फुंद्या पदान: बैसखु, कनी भली बथा कनु तु यार! बहुत सुंदर! तिन म्यरा मन कि बात बोल्यले यार! इन मन की बात ता फेंकू बि नि करि सकद यार!   

बैशाखीलाल: अर, साल की अनिवार्य जीबीएम बैठक भी ता यखी होंदी छई. भूल गयां तुम सब? (उठी जांद अर समणि आंद) यां से ज्यादा क्या पारदर्शिता ह्वे सकद कि आगाश का निसा अर गैणों की छांव मा हमारा गौं ऊंचाकोट की बैठक ह्वेनि अर लाभार्थियूं कू चयन अर जनसुनवाई भी यखी ह्वेन पूरि पारदर्शिता से! (थोड़ा अग्ने ऐकि) अरे भै, मि ता यू बोल्दु कि न खाता न बही जु फुंद्या पदान न कैरि सी सही! 

(सबि हंसदन)

पुरुषोत्तम बडोला (हंसदी-हंसदी): यार बैसखु, तु हरदा जनि बात ता कर न!

बैशाखीलाल: ता, तुमरा फेंकू की तरां बात कन?

प्रताप सिंह नेगी (उठी जांद अर समणि आंद): हां, फुंद्या पदान का खातों तैं कैन भी चुनौति नि दे! गौं का हर वर्ग को आदमी यख बैठक मा रई अर पूरा मेलजोल, एकता अर भाईचारा का साथ हमन गिलास से गिलास मिलैकी अर चस्स बोलिकी काम करी, प्रस्ताव पारित कनी! जै हो इना लोकतंत्र, सॉरी लोकमंत्र की! 

फुंद्या पदान (नशा मा): ये पुंगड़ा मा रात-रात जागि कि हमन गौं की संजैती संपत्यूं की देखरेख भी कैरि!

पुरुषोत्तम बडोला: अब हम अपणी ग्रामसभा का माध्यम से इ मांग कर सकदां कि बिहार अर आंध्रप्रदेश की तरां उत्तराखंड का हर गौं मा ग्रामसभा स्थापित हो, ताकि हरेक गौं ऊंचाकोट जनु खुशहाल हो और ऊंका नागरिकों तैं भि हमरा जना अवसर मिलन! (अचानक रुकुदु अर फिर बोलद) यार एक बात च. हम लोग पेण का बाद कनि सुंदर अर दार्शनिक बथ करि सकदां! अर सच बात ता या च कि एका बिना साला गिचु बंद ही रैंद.

(सब लोग तालि बजांदन)

प्रताप सिंह नेगी: पर पदान, तिन ता अपना कार्यकाल मा ये पुंगड़ा से अग्ने कुछ नी सोचि! 

बैशाखीलाल: चुप करा यार, मि बोलण द्यावा. दारु पीकि ता क्वी भी भाषण झाड़ी सकद. बड़ी-बड़ी बात करी सकद. ऊं बथु पर भी चर्चा करी सकद जौंका मुंड-कपाल का बारा मा कुछ पता नि होंद जन कि अमेरिका मा हिलेरी क्लिंटन जीतीं चैंद या ट्रंप! 

प्रताप सिंह नेगी: अबे, हमन क्य कन अमेरिका वालुं कु? हमरी ज्यादा रुचि ता अगला विधानसभा चुनाव मा क्षेत्रीय दलु कु गठबंधन देखण अर तैतैं जिताण मा होयीं चैंद. इनु लोकतंत्र क्य अच्छु ह्वे सकद कि जनपथ अर नागपुर का हिसाब से चलण वली पार्टी बारि-बारि से हम पर राज करां अर राज्य आंदोलन करण वला हमरा दगड़ी छज्जा मा बैठिकी तमशु देखणा रा! (विराम) चला खैर, मि अभी करि भी क्या सकदु? (बात बदलते हुए) फुंद्या पदान, तिन ग्राम प्रधान रैण का समै गांव की प्रगति का वास्ता ठीक से काम नी करि, तब भी हमन त्वेतैं पद से नी हटायी!

पुरुषोत्तम बडोला:  अबे, हटाण किलै छयु? तन करदा ता दारू कख बटी पेण छाई?

(सब हंसते हैं.)

फुंद्या पदान: अबे कमीनों वे काम करा जू चलण लग्यूं. इने-वुने की बात नी करा. मेरु खून उनी गरम होणु छ. जब बटी मेरी ब्वारि प्रधान बणी, स्यु ब्लाक वालू खबेश बीडीओ मेरी ओर ता हेरदु बी नी चा. मेरि ब्वारी का पैथर पड्यूं रांद स्साला! मैडम, मैडम लग्यूं रैंद साला मेरि जनानि लेकि! हराम कू बच्चा साला! साले की कम्प्लेंट करूंगा डीएम सा’ब से.

प्रताप सिंह नेगी: अरे, क्य कम्प्लेंट कन तिन? ब्यालि तक त तू तैका भितर घुस्यूं रांदु छयू. तेरी पोटगि का भितर की सबी बथा जाणदू स्यू.   
फुंद्या पदान: अरे मिन तै बीडीओ तैं बोलि कि साले मेरी कज्याणन ता बस घुग्गी चलाण, बकि काम ता बेटा ये प्रधानपतिन ही करणन. (सोचद-सोचद) चल छोड़ यार! पाणी डाल, कडू ज्यादा ह्वेगे.
पुरुषोत्तम बडोला: महिला सीट होणक बाद अब त्वेई तैं कडू घूँट पेण की आदत डालण पडली!   
(फुंद्या पदान खेत का एक तरफ जांद. नशा मा हिलद-हिलद मन-ही-मन मा बात करद.)
फुंद्या पदान (स्वत:): कज्याण का प्रधान बणन का बाद ता मेरि सरकार ही चलिगे यार! अब कुछ कन पड़लो! क्वी जुगत लगाण पड़ली! जब मीं प्रधान छौ तब गांव मा पाणि नी छौ. लोग नारैण का धारा बटी पाणि लांदा छया. गर्म्यूं मा पाणि कम ह्वे जांदू छौ ता बसग्यालु मा धारा-पंदेरा सब बौगि जांदा छया. गूल टूटी जांदी छई. मिन डिग्गी अर गूल बणाण कु जु प्रस्ताव भेजी छौ, स्यू अब मंजूर ह्वे स्साला! मेरा टैम पर पास ह्वे जांदु ता कुछ माल-पाणि बण जांदु! स्साला, तैकु काम अब शुरू ह्वे! ... खैर, यी टैम छ कुछ कनु कू! ढालवाला ऋषिकेश मा चंद्रभागा नदी कु खनन-वनन कु पट्टा कराण पडलो अपणा नौं! लोकल गरीब लोखु से खनन करावा अर मस्त रावा! (झूमते हुए) या ... पोखड़ा जनि जगा मा अंतर-राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बणान पडलो! टी-गार्डन मा स्मार्ट सिटी बणानि ता अपणा बस की बात नी छ. नानीसार मा भी कुछ नि ह्वे सकदो. तख परिवर्तन पार्टी कुछ नी करण देणी! जब ताख जिंदल की नी चलणी ता ये फुंद्या पदान की औकात क्या छ?     
(सब लोग नशा मां हिलणा छन. अर बात करण की स्थिति मा नि छन. सबी फ्रीज़ ह्वे जांदन, जनि कोरस प्रवेश करदू.)
स्त्री कोरस: भाई-बैणों, यू कहानि छ उत्तराखंड का गांव-गांव कि. हर गांव कि! इन लगद जन एक गांव कि कहानि कॉपी करी कखी हौर पेस्ट कर दे हो. प्रधानी का चक्कर मा भाई-भाई को शत्रु ह्वेगे अर कजे-कज्याणि एक-दुसरा खून का प्यासा!
पुरुष कोरस: सत्ता का मद मा सबी बिना आंखों का ह्वे गैन. क्वी कै तैं न ता जाण अर न पछाणदो!
स्त्री कोरस: आप ही बतावा कि क्या इ
Continued in part 3

Bhishma Kukreti

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चखुलि प्रधान! Part -3
(गढ़वाली नाटक)

नाटककार: सुरेश नौटियाल
Garhwali Play by Suresh Nautiyal
स्त्री कोरस: आप ही बतावा कि क्या इना लोकतंत्र की हमन कामना करी छई? क्या इना उत्तराखंड का वास्ता आपन अर हमन बलिदान देनी? क्या यी उत्तराखंड छ जू हमरा सुप्न्यों मा रोज आंदो छयो? क्य ई उत्तराखंड छ जैका खातिर हमरी दीदी-भुल्यून अपणी इज्जत दांव पर लगाईं! आज तक न्याय नि मिलि तौन्तें, अर जौन जुलम कनि, तौन्तें मेडल भी अर प्रमोशन भी! एक दोषी अधिकारी कु नाम बतावा जै तैं सज़ा मिली हो अपणी करणी की! हाई कोर्टन मुआवजा दे छौ, पर तौं महिलों की छाती पर जखम आज भी छन! सि कबि ठीक नि ह्वे सकदा!
कोरस-द्वय: अर सा’ब, जब ईनाम की बारी आई ता ईनाम देण वला सब अंधा ह्वे गैंन! यानि, रेवड़ी बस अपणा खास लोखु तैं बस!   
(कोरस पर लाइट फेड हूंद अर दूसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद.) 


दृश्य-आठ 
चखुलीदेवी अर शांतिदेवी श्रीनगर गढ़वाल का बस अड्डा पर केदारघाटी जनैंकि बस की प्रतीक्षा मा खड़ी छन.
चखुलीदेवी: यख श्रीनगर तक ता जनि-कनि जीप से पौंछ गयां, पर अग्वडी कु पता नि!
शांतिदेवी: जीप मा इथगा भीड़ छै कि पीठ पर खजि भी नि कंज्याई सकि मिन! (चखुलीदेवी हंसती है) उत्तराखंड परिवहन निगम कि सरकारी बस ता पहाड़ बटी जन गैब ही ह्वेगे ह्वलि! सरकारी बस आंदि ता मेरु टिकट नि लगदु पर हे राम सि ता मूड़ी मैदान्यूं मा दिखेदन.
चखुलीदेवी: जी, उनै देखा, बस खड़ी छ अगस्त्यमुनि कि!   
शांतिदेवी: चल सामान उठौ!
(बस आंद अर द्वी तैं मा सवार ह्वे जांदीन. बस मा एक आंदोलनकारी अर भौत लोग बैठ्याँ छान. कंडक्टर टिकट का पैसा मंगद.) 
कंडक्टर: सा’ब, जौंन टिकट नि ल्याया, सि टिकट ल्हे लेवन!
शांतिदेवी (अपणु सीनियर सिटिज़न कु पास दिखांद): यु मेरु वरिष्ठ नागरिक कु प्रमाणपत्र छ.
कंडक्टर: बोडि स्यु नि चलदु प्राइवेट बस मा. केवल सरकारी बासु मा चलद. (आन्दोलनकारी से) अर भैजी, आपकू टिकट?
आंदोलनकारी (पास दिखांद): यो मेरु राज्य आन्दोलनकारी कु पास छ!
कंडक्टर: स्यु पास भी नि चलद प्राइवेट बसु मा!
आंदोलनकारी: या क्य बात ह्वे सा’ब? सबेर बटी सरकारि बस नि आई अर अब आप अपणी बस मा पास नि चलौणा छन. हमन राज्य यीई खातिर बणाई क्य? इनु मजाक किलाई होणु हमरा साथ? राज्य से भैर एक भी खुटू रखदां ता टिकट लेण पोड़द! ये से ता अच्छु यु छौ कि पास ही नि दिए जांदा!
कंडक्टर: भैजी, सरकारन आप लोखु तैं मूरख बणाई स्यु पता नी आप तैं? अर जख तक फोकट मा यात्रा कराण कु सवाल छ, ता हम बसवलों की मवासि ता पैली सुमो अर ट्रेकर जीपून घाम लगाईं छ. अर यी सीनियर सिटीजन अर आन्दोलनकारी वाला पास चलाई दयोला ता कूडी अलकनंदा मा बौगि जालि!
(सब हंसते हैं)
शांतिदेवी: पर या गलत बात छ! पास सबि बसूं मा चल्यां चैन्दा. मेरु ब्वनु मतलब यो कि प्राइवेट बसूं तैं हमरु किराया सरकार द्यौ! यदि क्वी सुविधा देयीं छ ता वैका हिसाब से सम्मान भी ता मिल्युं चैन्दा! ये पहाड़ मा किले क्वी सुविधा नी? मुफ्त साइकिल भी मैदानूं मा अर बसूं मा फोकट सवारी भी मैदानूं मा! वाह मेरी जनप्रिय सरकार!
कंडक्टर: हम क्य करि सकदां? आपै शिकैत ता सरकारन दूर करण. हम जीएमओयू वाला ता अपणु खर्चा तक नि छां निकालि सकणा! हमरि गाड़ी एक-एक करि बंद होणी छन. सरकारे तरफ बटी क्वी मदद नी. मीं ता बोलुदु कि हमरि बात भी सरकार तक पहुंचाई देवा, आप ता बड़ा लोग छन! 
(सभि लोग पैसा निकालि कि टिकट लेंदन. थोड़ी देर तक बस चलनी रांद. चखुलीदेवी भैर देखद.)
चखुलीदेवी: जी, यूं सड़क्यूं कि ता बुरी हालत छ. केदारनाथ आपदा ह्वयां इतना समय ह्वेगे पर आज भी सड़कक्यूं कि हालत नि सुधरि!
महिलायात्री: पूरा राज्य का इनि हाल छन जन यीं सड़क का छन! राज्य बणाई कैन, अर राज करणा छन क्वी हौर! जौन बोलि कि हमरी लाश पर बणलो उत्तराखंड, तौंकी ता बण गेन कै-कै मुख्यमंत्री अर जौन खैनी लाठी-डंडा, सि आज भी खाणा छन लाठी-डंडा! य जनता किले नि समझद तौंकू दुःख-दर्द! किले नि तौं लोखु, तौं पार्टीयूं भी देंदी मौक़ा!   

आंदोलनकारी: अर यी जु सत्ता मा आइनी, तौन क्या करि अंधाधुंध जमीन बेचणक अलावा?

महिलायात्री: नियम-कानून तक बदली देन तौन दिल्ली-मेरठ का बिल्डरु अर माफिया का पक्ष मा! चुगान का नौं पर नद्यूं कु रेतु-बजरी अर ढुंगा खैणी- खैणी कि जख्मी कर देनी तौन सि नदी-नालों कि छाती! तौंकि चलु ता पूरी धरती तैं खाई जावन अर डकार भि नि लेवन!

आंदोलनकारी: बड़ा ऐन स्साला धरती कि विरासत तैं बेचण वला! क्य सि प्राणवायु बणाई सकदन? क्य सि एक बूंद पाणी कि बणाई सकदन? उल्टा, जगा-जगा डाला-बोटा काटी-काटी कि धरती नंगी करि यालि! बस डाम बणाना छान डाम! डाम प्वडला तौंका छाती पर स्सालों की!

महिलायात्री (व्यंग्यात्मक ह्वेकि): भैजी, एक बातौ श्रेय ता जांदु यूं सत्ताधारी दलु का नेताओं तैं कि तौन उत्तराखंड तैं देश मा सबसे भ्रष्ट राज्य बणाई दे अर बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स मा शामिल कराण कि होड़ लगीं छ. देखि नि आप लोखुन स्यु कमीणा कन छौ कनु विधायकु कु मोल-भौ! नंगा ह्वे गैनी हराम का बच्चा, शरम भि नि रैगी तौं कतई!

चखुलीदेवी: कैन पढ़ाई-लिखाई कु स्तर सुधारण कु प्रयास भी नि करि. खाली ह्वे गैनी सरकारी स्कूल! मास्टर हि मास्टर रैं गैनी तख! तौंका अपणा बच्चा भी नि पढ़दा तख! क्य कन इना स्कूलू कु? म्यरु सवाल छ कि एक जना यानि समान शिक्षा वला स्कूल किले नि ह्वे सकदा उत्तराखंड मा? 

शांतिदेवी: जथगा भी सरकार ऐनी, कैन भी लोखु तैं हुनरमंद बणान कि कोशिश भि नि करि! हमरा यख इना उद्योग लगी सकदा छया जौंसे प्रदूषण क्वी खतरा नी छा.

महिलायात्री: जैविक खेती अर बागवानी, जड़ी-बूटी, आईटी उद्योग, कॉलसेंटर, मत्स्य-पालन, साहसिक-सैलानी अर धार्मिक पर्यटन जना क्य काम नि हवे सकदा छाया, पर यूं हराम का बच्चोंन ट्रांसफर तैं सबसे बडू उद्योग बनाई दे. अर मंत्री, विदेश जांदन नयी-नयी चीज सिखणु पर पड़ोस का हिमाचल प्रदेश जैकि नि सीख सकदा कुछ!

आंदोलनकारी: बड़ा-बड़ा उद्योगु का वास्ता सिडकुल बण गैनी अर हमरा लोखु का वास्ता राष्ट्रीय पार्क, अभयारण्य अर बायोस्फियर रीजन जख हम घुस भी नि सकदां! साब, य परिकल्पना छ उत्तराखंड का बारह मा यूं सत्ताधारी दलुं कि! मि बोल्दु कि हमारा नौन्याल तैं अगर हुनरमंद बनाई जांदू ता तौंन पलायन किले कनु छौ? कै तैं घर का आस-पास नौकरी मिलि जांदी ता क्वी अपणु छोटु-मोटु उद्योग-धंधा करि लेंदु!

महिलायात्री: कै लोग शहीद ह्वैनी अर मां-बैणयूं का दगड़ी वु सब कुछ ह्वे जैकि कैन कल्पना तक नि करी हो! पर, यु सब सहन करेगे लोखु का सुपन्यों मा देख्यां उत्तराखंड तैं साकार करण का खातिर! अर, जौन जुल्म करनी तौं तैं मिलनि पुरस्कार, तगमा अर प्रमोशन! सांड जना घुमणा छन हमरा शहीदूं का खूनी! जिकुड़ी मा आग लगीं छ मेरा, आग!

चखुलीदेवी: मैडमजी, यूं मरदु का बसै बात नि राई गे, अब हम महिलों तैं उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की तरां अग्वाडी आण पडलो! (भैर देखद) जी, मीं लगदु कि अगस्त्यमुनि ऐगि!

(चखुलीदेवी, शांतिदेवी अर कुछ हौर यात्रि बस से उतरण को उपक्रम करदन. पास मा एक नदी छा, जैकु स्वीन्स्याट मठु- मठु तेज होणु छा. नदी का ऐंच एक मोटी रस्सी लटकीं छा. समणा बटी एक ग्रामीण महिला बजार बटी भुजि लेकि आन्द दिखेंद. चखुलीदेवी आर शांतिदेवी रस्सी तैं देखणा छन. ये बीच ग्रामीण महिला कि तरफ चखुलीदेवी अर शांतिदेवी को जनि ध्यान जांद, महिला कि भुजि खते जांद.)

चखुलीदेवी: हे दीदी, भुजि खतेगी तुमरि!

शांतिदेवी: अर भुलि, भुजि बजार बटी किलाई छां लाणा? गांव मा नि होंद भुजि!

ग्रामीण महिला: भुजि होती तो क्यों नहीं है गांव में, पर गोणी-बांदर खा जाते हैं. अर जु जौड़ी-मौड़ी बच जाती है, उसे सुंगर उपाड़ देते हैं!
शांतिदेवी: अर छतरी भि नि छा आपका पास?
ग्रामीण महिला: छतरी कि आदत नि छ. छतरी के साथ काम नहीं हो सकता है. छतरी संभालूंगी या काम? 
चखुलीदेवी: दीदी आप हिन्दी मा किलै ब्वना छां?
ग्रामीण महिला: यहां सबी लोग हिंदी फूकते हैं. गढ़वाली कोई नहीं बोलता. मास्टर लोग, बजार के लाला लोग, बैंक का बाबू अर पोस्ट मास्टर से लेकर गांव के लोग -- सब हिंदी फूकते हैं. (रुकिकी) हिंदी  बोलनी मजबूरी हो गयी है मजबूरी! वैसे एक-डेढ़ साल मैं भी दिल्ली रही हूं!  (चखुलीदेवी अर शांतिदेवी हंसती हैं.)
शांतिदेवी (ट्राली की तरफ देखिकी): स्यु क्या छ भूलि? 
ग्रामीण महिला: दीदी, वो ट्राली है, ट्राली! ये हमारा वला छाला-पल्या छाला आने-जाने का का साधन है. सारी कश्तकारी इसी से करते हैं हम लोग. स्कुल्या बच्चा भी इसी से स्कूल जाते हैं. कै बच्चे तो ट्राली से गिरकर नदी में बौग चुके हैं. राज्य बने इथगा साल हो गये, पर हाल वैसे-के-वैसे! पर भुल्यूं, जू मर्जी बोला, ये ट्राली हमारी लैफलैन है, लैफलैन! इसके बिना हम कुछ नहीं! सरकार तो बोलती है कि राज्य की लैफलैन चारधाम हैं पर हमारी लैफलैन तो यी ट्राली है!
(ये बीच नदी पार कन कु प्रयास कनु एक स्कुल्या बच्चा अचानक रस्सी टूटण का कारण नदी मा गिर जांद. शांतिदेवी अर चखुलीदेवी समेत सबुका गिच्चा से तेज चीख निकलद. कुछ देर मा ग्रामीण महिला, शांतिदेवी अर चखुलीदेवी तै बच्चा की लाश सड़क पर लांदीन अर ग्रामीण महिला अपणा पटका से तैं लाश तैं ढक देन्द. पिछने बटी आर्तनाद वालु संगीत सुणाई देंद. कोरस-द्वय प्रवेश करद.)
स्त्री कोरस: न जाणी इना स्कूल कख-कख होला ये उत्तराखंड मा, जौं तक बच्चा नि पहुंची सकदा होला! ह्वे सकद कि स्यु बालक रै हो कै विधवा कू इकलौतू! या कै गरीब परिवार कि बड़ी आस!
पुरुष कोरस: ह्वे सकद कि सि नौनु रै हो सात बैणयूं कु एक भाई! अर, न जणी क्या बणदु स्यु बडू ह्वेकि? ह्वे सकद कि राज्य कु मुख्यमंत्री या देश कु प्रधानमंत्री बणदु! (द्वी कुछ पल का वास्ता चुप ह्वे जांदन)
स्त्री कोरस: हां साब, केदारनाथ आपदा क्या आई कि तैन पूरा उत्तराखंड की सामाजिक अर आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न कर दे!
पुरुष कोरस: सामाजिक प्रभाव इन कि केदार आपदान सैकड़ों महिला विधवा बणाई देन. अर, विधवा होण कु मतलब परिवार की आर्थिकी, अर्थव्यवस्था कमजोर! आज तक कै पता नि की कतना लोखुकि का प्राण गै ह्वला! आज भी देशभर का लोग भटकणा छन अपणों तैं खोजुणू!
स्त्री कोरस: गांवूं मा जु कूड़ा टूटी छा, सि अभी तक तनि छन. राहत का पैसों से सरकरी अधिकार्यून मुर्गा अर बोतल उड़ाईन, बस! 
पुरुष कोरस: अर पुल, सड़क? आज तक न ता पुल तैयार ह्वेनि अर ना सड़क कै काम कि बण सकनि! (सोचण लगद) पुल अर सड़क बण जांदा ता तै नौना कु बलिदान किलै होंदु?
कोरस-द्वय: क्य उत्तराखंडन सदनि इनि रैण? क्य उत्तराखंड कि नियति इनि छ? क्य उत्तराखंडन सदनि इनि रैण? क्य उत्तराखंड कि नियति इनि छ?
(कोरस-द्वय चलि जांद. धीरे-धीरे प्रकाश मलिन होंद. मंच का दूसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद.)

दृश्य-नौ
फुंद्या पदान का घर को दृश्य. फुंद्या पदान अपना बच्चों का दगड़ी बैठ्यूं छ. दृश्य कुछ गंभीर सी दिखेणु छ.
फुंद्या पदान: मेरा प्यारा बच्चों, आज मी अपणा मन की बात तुमरा समणी रखण चांदू. तुमन देखि ह्वलो कि तुम तैं मिन कभि क्वी कष्ट नी होण दे. तुमरि हर जरूरत मिन पूरि करि.
फ्यूंली: पर पितजि, आप क्या ब्वन्न चांदन?
फुंद्या पदान: बेटी, तुम देखण लग्यां होला कि जब बटी तुमरी मां ग्राम प्रधान बणि तब बटी तुमरी आवश्यकता पूरी नी होणी छन. (कुछ देर चुप रैण का बाद सवाल करद) क्य तुम तैं ये अन्याय का विरुद्ध अपणी बाच नि उठईं चैंद?
क्रांतिवीर: बिलकुल उठाईं चैंद. बिलकुल! मेरु मोबाइल द्वी साल बटी नी आई.
फुंद्या पदान: लोकतंत्र मा अपणा अधिकार लेणा कि खातिर संघर्ष करण पोड़द. धरना-प्रदर्शन करण पोड़दन. तुमरी ब्वे केदारघाटी जाईं छ. आण ही वली होलि स्य आज. मी ब्वन यूं चांदू कि आज हम तैं अपनी एकता दिखाण पड़ली. संघर्ष करण पोड़लू.
क्रांतिवीर: पितजि, हमन क्य कन, स्यु बता! 
फ्यूंली: अरे मूरख ज़रा चुप रौ. पितजि जन बोलला, उनि हम करला. हमारा पितजी गांव का बहुत बड़ा नेता छन.
क्रांतिवीर: हां, हां, मी पता यार, प्रधानगिरी से पैली पितजी तैं खानदानि पदानी को अनुभव भी छ. हमारा दादा-पड़दादा सबि पदान छया. या बात इन भि ब्वले सकैंद कि पैलि पदानी अर अब प्रधानी पर हमरा परिवार कु कब्जा! पितजि प्रधान नी रै गया ता हमरी मां प्रधान बण ग्याई!
फ्यूंली: ईं बात पर एक नारा ह्वे जाव! सच्चे लोकतंत्र की जय हो!
क्रांतिवीर: सच्चे लोकतंत्र की जय हो! सच्चे लोकतंत्र की जय हो!
फुंद्या पदान: ठीक छ यू सब. ता जन मि बोलु, ऊनि करल्या?
द्वी बच्चा एक साथ: हां पितजी, हम उनि करला, जन आप बोलला.
फुंद्या पदान: चला अब नारा लगा: परिवार में सच्चे लोकतंत्र की जय हो!
द्वी बच्चा एक साथ: परिवार में सच्चे लोकतंत्र की जय हो! परिवार में सच्चे लोकतंत्र की जय हो!
फुंद्या पदान: शाबास! आखिरी तुम संतान कैकी छवां!
क्रांतिवीर: मांजी कि!
फुंद्या पदान (प्रेम से डांट मारद):  चुप कर मूरख! (समझैकी) हां ता बच्चों, एक बात ध्यान रखण कि हमरो संघर्ष असफल नी होयुं चैंद. मि ये मौक़ा पर ई भी बोनु चांदु कि तुम बच्चा लोग मेरा संघर्ष का प्रतीक छयां. जब फ्यूंलि पैदा ह्वे छई तब मी जवान छौ अर मेरा सुपन्या फ्यूंलि जाना पीला अर सुनहरा छया.
फ्यूंली: हैं, पितजि? हम आपका संघर्ष का प्रतीक छा?
फुंद्या पदान: फेर बुरांसि ईं धरती पर आयी! तब मेरा सुपन्या बुरांस जना लाल ह्वेगे छया. मी क्रांति की बात करदू छौ और संघर्ष की आग मेरा भितर भट्टी जनी तेज छई. पर, बुरांसिन ज्यादा साथ नि द्याई अर स्य संसार छोडि झट चलिगे.
फ्यूंली: हां पितजि, मी तैं भी याद छ बुरांसी कि!
फुंद्या पदान: और जब क्रांतिवीर तू पैदा होयीं तब उत्तराखंड राज्य आंदोलन चरम पर छयो. मिन सोची कि तेरो नौं क्रांतिवीर धारिकी हमतैं राज्य झट मिल जालो. (भाव बदलिकी) खैर, लंबी कहानी छ. अभि ता यु बोनु चांदू कि हमरा परिवार मा उनि लोकतंत्र फिर से औ, जनु कि मेरि पदानि अर प्रधानि का टैम मा छयो.
क्रांतिवीर: ता हम तैं क्या कर्यूं चैंद?
फ्यूंली: चुप रि तू. जन पितजि बोलला, उनि करण हमन. वूं तैं लंबो अनुभव छ.
फुंद्या पदान: रात जब तुम लोग सेइ ग्या छया, तब मिन पोस्टर अर प्लेकार्ड की व्यवस्था कैरि.
फ्यूंली: मतलब?
फुंद्या पदान: मतलब यो कि मिन रातभर जागिकी पोस्टर अर प्लेकार्ड तैयार करनी. (घर का भीतर जांद. द्वी तैंई तरफ देखदन. फुंद्या कुछ ही क्षण मा वापस आंद.) यी छन पोस्टर और प्लेकार्ड! अब तुम लोग यूं तैं ढंग से सजाई द्या. (पोस्टर और प्लेकार्ड बच्चों तैं थमौन्द) झट करी लगा. प्रधान मैडम पधारण वाली छन. (द्वी बच्चा पोस्टर अर प्लेकार्ड सजाण बैठी जांदन. तौं पर नारा लिख्या छन: “प्रधान मैडम, परिवार के साथ न्याय करो”, “परिवार में लोकतंत्र बहाल करो”, बच्चों की एकता जिंदाबाद”, “हमारा नेता कैसा हो, फुंद्या फुंद्या पदानजैसा हो”, “तानाशाही नहीं चलेगी”, इत्यादि.)
फ्यूंलि (क्रांतिवीर से): जा मेरा प्यारा भुला, भितर बटी बड़ी दरि लेकी औ. (क्रांतिवीर भीतर जांद अर एक बड़ी सी दरी लेकी आंद. फ्यूंलि दरी बिछांद.) पूरु प्रोफेशनल धरना ह्वेगे. बस कसर रैगी ता माइक अर टीवी कैमरों की.
फुंद्या पदान: आज नी च या आवश्यकता. अभि ता संघर्ष की शुरुआत च. क्य पता संघर्ष तेज करण पोडू?  (फ्यूंलि से) चल मेरि लाटी, कार्यक्रम शुरू कर.
फ्यूंली: मी नी पता कि धरना कन शुरू करदन.
फुंद्या पदान: अरे उनि करण जन तुम लोग कालेज मा करद्यां. लोकतंत्र मा अपणा अधिकारू की मांग करण की ट्रेनिंग च या. आज जू अनुभव होलो, जीवन मा अग्ने काम आलो. बेटी फ्यूंलि तू अब भाषण देण को काम कर. देखण चांदु कि त्वेमा मेरा कतना गुण आइनी.
फ्यूंली: पर पितजी, मिन ता कबि भाषण नी देयी.
क्रांतिवीर: अरे, पितजी तैंत देख्यूं च तेरु भाषण देंद. उनि कुछ बोल दी.  प्रैक्टिस ह्वेई जाली. प्रैक्टिस मेक्स अ मैन परफेक्ट!
फ्यूंली: गलत बोलि तिन. यु होंद -- प्रैक्टिस मेक्स अ वूमन परफेक्ट!
क्रांतिवीर: न, प्रैक्टिस मेक्स अ मैन परफेक्ट! तु कन ये मुहावरा तैं बदली सकदि?
फ्यूंली: गलत तैं ता बदल्यूं ही चैंद. यु सब पुरुष लोखु ना बणाईन. अब हम स्त्री लोग यी सब बदली दयोला! चल बोल, प्रैक्टिस मेक्स अ वूमन परफेक्ट!
क्रांतिवीर: बड़ी आई नेता! मिन यी बोन -- प्रैक्टिस मेक्स अ मैन परफेक्ट!
फुंद्या पदान: बस करा. अब थोड़ा काम की बात ह्वे जा. चल फ्यूंलि भाषण कर.
फ्यूंली: हां, कोशिश करदु. (गौलु साफ़ करद) बहनों और भाइयो अर आपका बीच मा बैठ्याँ जलतेरों, मी सर्वप्रथम ऊंचाकोट ग्राम का खानदानी पदान अर ग्रामसभा का पूर्व प्रधान श्री बसंत सिंह रावतजी कू स्वागत करदू. मी ऊं तैं धन्यवाद देण चांदु कि ऊन अपना परिवार मा उपेक्षित और असहाय बच्चों की सुध ले अर ऊंकि आवाज तैं ग्राम प्रधान महोदया तक पौछौण की पहल करी. सच मा, श्री बसंत सिंह जी परमेश्वर का रूप छन. पतनि गांव का लोग किले यूं तैं फुंद्या पदान बोल्दन? चला, अपनी-अपनी समझ की बात छ. अब मि पूर्व प्रधान महोदय बसंत सिंह रावतजी से आग्रह करदु कि हम तैं बतावन कि ये धरना की आवश्यकता किले पड़ी.
क्रांतिवीर: वाह दीदी, मजा ऐगे. तिन ता कमाल कर दे. मीतैं ता पुरु भरोसो ह्वेगे कि आण वाला समय मा तिन पितजी अर मांजी से बहुत अग्ने जाण.
फुंद्या पदान: भौत अच्छू बेटी! मेरु आशीर्वाद च तेरा दगड़ी. (थोड़ा सोचिकी) बच्चो, मी यूं बताण चांदो कि हमरु संघर्ष अपणा अधिकारू की खातिर छ. या लड़ाई कै तरां से भी निजी स्वार्थू की लड़ाई नी छ. मि यी चांदु कि तुमतैं जू भी सुविधा मेरी प्रधानी का टैम मा मिलदी छाई, वू सब श्रीमती चखुलीदेवी का कार्यकाल मा भी मिलीं चैनदी. यूं तुमरो अधिकार छ. 
फ्यूंली: पर पितजि, मांजि ता पूरी कोशिश करद हमरा सुख का खातिर.
क्रांतिवीर: मांजि ता भौत अच्छी छ. 
फुंद्या पदान: मिन कब बोलि कि मांजि खराब छ? हम ता बस अपनी मांग रखणा छवां.
क्रांतिवीर: ठीक. मि तैं भी अब मोबाइल का जगा स्मार्टफोन चएंद.   
फ्यूंली: मेरु लैपटॉप भी आयूं चैंद. देखदां अब पितजि को मंतर!
फुंद्या पदान: सब चललो, सब! जनि तुमरि ब्वे पधारलि, तनि तुमन नारा लगाणा शुरू कैरि दिणन. यी नारा जु यूं तख्त्यूं पर लिख्यां छन.
क्रांतिवीर: ल्या, मांजि एगी! (सभी चखुलीदेवी की तरफ देखदन. फुंद्या पदान इशारु करद अर बच्चा नारा लगाण बैठी जांदन.)
द्वी बच्चा: प्रधान मैडम, परिवार के साथ न्याय करो, न्याय करो! परिवार में लोकतंत्र बहाल करो, बहाल करो! बच्चों की एकता जिंदाबाद, जिंदाबाद! हमारा नेता कैसा हो, महान पिताजी जैसा हो, महान पिताजी जैसा हो! तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी! प्रधान मैडम होश में आओ, होश में आओ! हमारी मांगें पूरी करो, पूरी करो!
चखुलीदेवी: बंद करा तैं बकबक! क्वी काम नी च तुमरा पास? (फुंद्या पदान से) काम-धंधा ता कुछ छ न तुमरा पास अर बच्चों तैं भी बर्बाद कन पर जुटी गयां. शरम नी आंदी तुम तैं इनि नेतागिरी करण मा? अरे, चोर भी द्वी घर छोडद. (फ्यूंलि से) तू ता बड़ी अर त्वे भी अकल नी? ये बुड्या तैं ता जौल होयीं च मेरा ग्राम प्रधान बण पर, पर तुम बच्चों तैं क्य ह्वे? तुम किलाइ ये बुड्या चक्कर मा ऐग्यां? (क्रांतिवीर से) अर, त्वे से ता क्वी आस लगाणि बेकार छ. तिन त अपना बुबा की तरां बर्बाद होण. (फुंद्या पदान से) जा, क्या छयां देखणा? भूख लगीं च, खाणु लगा. (बच्चों से) उठा ये बोर्या-बिस्तर. मी यू नौटंकी अच्छी नी लगद.
फ्यूंली: मांजि, पितजिन बोलि कि लोकतंत्र मा अपना अधिकारू का वास्ता लड़नू क्वी खराब बात नी छ.
चखुलीदेवी: अधिकारू की बात से पैलि कर्त्तव्य होंदन. ये बुड्यान बताई तुम तैं कि कर्तव्य क्या होंदन?
क्रांतिवीर: ना, अधिकारू कि ता क्वी बात नी करी पितजिन.
चखुलीदेवी: हां, किले बतौंण. अपनी मतलब की बात बतौंण अर जू सबका मतलब की छ, सि नि बतौंण. कान लगाई कि सुण ल्यावा. न तुमरि क्वी मांग पूरि होण अर न क्वी सुनवाई. यी क्वी लोकतंत्र नी, अराजकता छ, अराजकता!
फ्यूंली: पर मांजी, अपना कर्त्तव्य ता हम तैं पता छन! तौन्कू पालन हम करदा. अभी ता हम छोटा-मोटा अधिकारु कि बात कना छां.
चखुलीदेवी: मेरा पास इनु क्या छ जैसे मि तुमरि मांगूं तैं पूरि कर सकूं? मीं क्वी तनखा मिल्द या मी तुमरा पितजि जनूं क्वी भ्रष्ट आचरण कनू छौं? मेरा पास क्वी पैसा नी!
क्रांतिवीर: गांव का हर बच्चा का पास स्मार्ट फोन छ. मेरा पास नी!
चखुलीदेवी: तौं बच्चों का बुबा ता काम-धंधा करदन. तेरु बुबा क्या करद? अर सुण, मिन क्वी स्मार्ट फोन नी दिलाण. ग्रामसभा को धन सरकार से निकालण का वास्ता तक एक लाल पैसा खर्च नी कन्या मी!
फ्यूंली: हम क्वी बड़ी चीज कि मांग नी छा कना. 
चखुलीदेवी: तुम भूलि जावा अपना पितजि का जमाना की बथा. मी तब भी बोलदु छौ कि तन नी करा पर यूं माई का



Continued in Part 4

Bhishma Kukreti

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Chakhuli Pradhan Part -4
Garhwali Drama By Suresh Nautiyal, Delhi

चखुलीदेवी: तुम भूलि जावा अपना पितजि का जमाना की बथा. मी तब भी बोलदु छौ कि तन नी करा पर यूं माई का लालन कबि नी ध्यान दे मेरि बथु पर.
फुंद्या पदान: मां होण कू फर्ज त निभाण ही पड़लो प्रधानजी! 
चखुलीदेवी: तुम चुप रावा! मी अपना बच्चों दगड़ी बात कनु छौं. (सोचिकी) मी तैं अक्ल ऐगे और समझी गयुं कि सरकारन महिला आरक्षण असल मा महिला सशक्तिकरण का वास्ता करी. जनता का दबाव मा सरकारन यी जू ताकत महिलों तैं दे, तै मी कै भी हालत मा नी छोड़ी सकदू. मी जू ताकत भितर बटी महसूस कनू छौं, तैंतैं बड़ी से बड़ी रकम भी हासिल नी करी सकद. (पदान से) बड़ा ऐनि लोकतंत्र की बात कन वाला! जीवन भर ता मीं तैं दबाई की रखी अर जब खुद पर आई ता कना छन लोकतंतर, लोकतंतर! चला, ह्वे जा यख बटी छू-मंतर!   
(गुस्सा मां घर का भितर चलि जांद. बकि सबि एक-दूसरा गिचू देखदी रै जांदन.)
फुंद्या पदान: क्वी बात नी श्रीमतीजी! लोकतंत्र मा अभि भौत उपाय छन. (बच्चों से) बच्चों, अब भूख हड़ताल का सिवाय कुछ उपाय नि छ. अच्छा-अच्छा नेतौं कु दिमाग ठीक ह्वे जांद भूख हड़ताल कु नौं सुणी!
(बच्चा दुविधा मा फुंद्या तैं देखणा छन. सबि लोग फ्रीज़ ह्वे जांदन. कोरस प्रवेश करद.)
स्त्री कोरस: एतुरी आयीं फुंद्या पदान तैं कि कन अर कब बणलो प्रधानपति!   
पुरुष कोरस: देखि आपन चखुलिन तैकि कन बणाई गति! सत्ता का लालच मा तैकी फिरगे पूरि मति!
कोरस का द्वी सदस्य: अग्वड़ी-अग्वड़ी देखदी जावा, होली तैकि सद्गति या दुर्गति, सद्गति या दुर्गति!
(कोरस चली जांद. प्रकाश मलिन ह्वेकि विलीन ह्वे जांद. दुसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद.)

दृश्य-दस
(गांव की ग्रामसभा की बैठक. गांव का कई मर्द, जनना अर नौन्याल बैठ्याँ छन. बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान चखुलीदेवी कनि च. फुंद्या पदान अर तौन्का बच्चा भि बैठ्याँ छन.)
बैशाखीलाल: सम्मानित प्रधानजी श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी की अनुमति से मि आजकि मीटिंग शुरू करदु.
चखुलीदेवी: हां, हां, बैसाखीलालजी, शुरू करा! 
बैशाखीलाल: सम्मानित ग्रामवास्यूं, ग्रामसभा का चुनाव होण अर गांव मा पैलि बार महिला प्रधान का चुनाव का बाद आज हमरी या महत्वपूर्ण बैठक होणी च. अब मि सबसे पैलि माननीय ग्राम प्रधान श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी से विनती करदु कि वू बतावन कि कै प्रकार से ग्रामसभा की गतिविधि चलाण को तौंको सुपन्यों छ.
चखुलीदेवी: सबसे पैलि मि आप सबकु धन्यवाद करदू कि आपन मी तैं भारी बहुमत से ऊंचाकोट ग्रामसभा कू प्रधान निर्वाचित करी. मी वू सबी प्रत्याशी लोखू कु भी धन्यवाद करदू जौन चुनाव मा भागीदारी करीकी लोकतंत्र की प्रक्रिया और मजबूत करी. पर, मि चांदू कि पैलि आप लोखुका विचार आई जावन, तांका बाद मि अपणी बात रखलो.
पुरुषोत्तम बडोला:  मेरु एक सुझाव छ. महिला प्रधानजी तैं जरूर पता ह्वयूं चैंद कि ग्रामसभा मजबूत नि होलि ता हमरा गांव मा अर देश मा स्वराज नि आई सकद.
बैशाखीलाल: हां, हां, यूं भी याद रखण कि पंचायती राज कानून का हिसाब से पंचायतूं तैं ऊंका अधिकार दिलाण की लड़ाई जारी रखण!
प्रताप सिंह नेगी: अर नयी कार्यकारिणी काम नी करलि ता सूचना अधिकार की तलवार अपणु काम करलि! अर हां, गांव का लोखु मा जागरूकता भी जरूरी छ.
पुरुषोत्तम बडोला: वित्तीय वर्ष कू लेखा-जोखा सब्तैं पता हो, ऑडिट रिपोर्ट बणु अर निगरानी समिति कू गठन हो.
प्रताप सिंह नेगी: यू सब ह्वे जाव ता पंचायतूं तैं वित्तीय अधिकार दिलाणा का अलावा अफसरशाही पर अंकुश जनि बथा भी ह्वे सकदन. भ्रष्टाचार मिटाण का वास्ता अब हम सबतैं लग जाण चैंद.
पुरुषोत्तम बडोला:  ये बारा मा भी हमारा प्रयास जारी ह्वयां चैन्दन. नियोजन एवं विकास समिति, निर्माण कार्य समिति, शिक्षा समिति, जल प्रबंधन समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति अर प्रशासनिक समिति की स्थापना भी हो ताकि ऊंचाकोट का लोखु तक पंचायतीराज का लाभ पहुंचन.

बैशाखीलाल: अर भूल गयां कि 12 अप्रैल 2007 मा केंद्र सरकारन निर्णय ले छौ कि गांव का लोखु तैं पंचायत स्तर पर ही न्याय दिलाण का वास्ता प्रत्येक पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालय की स्थापना करे जालि. म्यारु बोनौ मतलब यो छ कि यांका वास्ता भी हमरी लड़ाई जारी रली.

फुंद्या पदान: आप लोग ता इनि बात कना छन जनकि मिन क्वी काम ही नी कैरी! अरे, पैलि खानदानी पदान अर फेर ग्राम प्रधान रयूं इथगा साल. मिन अगर काम नि करि ता तुमन इथगा साल मीताईं किलाइ प्रधान बणाई?

चखुलीदेवी: पदानजी, बस करा. यख हम भूतकाल कू आपरेशन कनुकू निछां बैठ्याँ. अग्ने क्य अर कन कन, ये पर विचार कन!

बैशाखीलाल: ग्राम प्रधानजी ठीक ब्वना छन. अब ग्रामसभा की नयी कार्यकारिणी छ अर हमन अब नया ढंग से सोचण. 

फ्यूंली: अर हमरा घर मा लोकतंत्र कू क्य होलो? पितजि का हिसाब से लोकतंत्र कि परिभाषा कुछ अर मांजी आपका हिसाब से कुछ और! क्य चक्कर छ यु?

क्रांतिवीर: मांजी, मेरी ता समझ से भैर छ यू सब! आप जरा यू बता कि पैली पदानी अर अब प्रधानी पर हमरा परिवारकु कब्जा छ अर तब भी हम लोकतंत्र-लोकतंत्र की बात काना छावां! 

चखुलीदेवी: पैली क्रांतिवीर का सवाल को जवाब! बेटा, पैली पदानी की पारंपरिक व्यवस्था छाई. हमरा परिवार तैं पदानी तई हिसाब से मिली. जब प्रधानी की व्यवस्था आई, तब तुमरा पितजी गांव का प्रधान बणगे छया. कारण कई छया.

क्रांतिवीर: क्य कारण रै होला तब?

चखुलीदेवी: जागरूकता की कमी भी एक कारण रै होलु! पारंपरिकता बणाई रखण कि गौं कि सामूहिक इच्छा भी हवे सकद! खैर, अब महिला सीट ह्वे ता लोखुन अपनी मर्जी से मी तैं जिताई. मेरु दायित्व यु छ कि गांव वलों की आशा अर अपेक्षा पर खरु उतरूं!

फ्यूंली: म्यरु सवाल ता जखि कु तखि रै ग्याई.

चखुलीदेवी: न, न! अब फ्यूंली त्यरा सवाल कु जवाब! बेटी, लोकतंत्र कू मूलमंत्र यो छ कि कखी भी अर कै भी स्तर पर अनावश्यक हस्तक्षेप न हो. कै परिवार का भितर का मामलों मा भी न. परिवार अपनी समस्या को समाधान अपणा-आप खोजु. जब बात बड़ी ह्वे जा तब ग्रामसभा छ. इनि ग्रामसभा तैं भी अपनो काम-काज खुदी संभाल्यु चयेंद. कखी बटी क्वी रोक-टोक अर हस्तक्षेप न हो. बेटी फ्यूंलि, हौर क्वी सवाल?

फ्यूंली: पर मांजि हमरा घौर का लोकतंत्र कु क्य होलु? जब घौर मा ही लोकतंत्र नि होलु ता भैर कन आण? पितजि अधिकार कि बात करदन अर आप कर्तव्य की. मी भौत कन्फ्यूज्ड छौं.

चखुलीदेवी (दार्शनिक ह्वेकि): फ्यूंली, लोकतंत्र इनि विधा अर प्रक्रिया छ जु चारों दिशाओं मा समानरूप से पहुंचद, बिना कै भेदभाव का! अर जै लोकतंत्र कि बात तु कनी छै, स्य लोकतंत्र नि होंद. (विराम) मेरु सुप्न्यु ई छ कि हमरा गांव, राज्य अर देश मा सच्चु लोकतंत्र निसा बटी ठेठ ऐंच तक हो, अर ऐंच बटी ठेठ निसा तक हो. ईमानदारी का दगड़ी सब मिलीकि काम करां. एक-दुसरा का काम कि पूरी जानकारी हो, पारदर्शिता हो!

बैशाखीलाल: यु पारदर्शिता क्या होंद, जरा लोखू तैं विस्तार से बतावा!

चखुलीदेवी: ठीक! गांव अपणा धन को नियोजन अपनी जरूरत का हिसाब से करु अर हर ग्रामवासि कि बात सुने जाव. गांव का हिस्सा कु पैसा सीधा ग्रामसभा का पास पौन्छु. न क्वी डीएम, न क्वी सीम अर न क्वी पीएम! अर हां, ग्रामसभा भी ईमानदारी अर बिना कै भेदभाव का काम करू तबि ग्राम स्वराज अर ग्राम सरकार को सुन्प्न्यां पूरो होलो. यी होंद पारदर्शिता!

पुरुषोत्तम बडोला:  भौत सुन्दर प्रधानजी! भौत सुन्दर! कनी अच्छी बात कनी आपन! महिला आरक्षण सरकारन पैली किले नि करी ह्वलु?     

फुंद्या पदान: तन नी होंद सा’ब! बिंडा बिरलों से मूसा नी मोरदा! ताकत ता प्रधान का हाथ मा ह्वयीं चैंद. तन नी होलो तो प्रधान कू मतलब ही क्या?

चखुलीदेवी: रुका, रुका पदानजी रुका. बैठक मा बिघ्न न डाला. आपन अपणि प्रधानी मा ता क्वी काम नि कैरि अर मीं भि नी कन देण चांदा. आपतैं समझ यूं आयूं चएंद कि लोकतंत्र कू अर्थ होंद विकेंद्रीकरण अर सत्ता कू अर्थ होंद हर नागरिक, हर व्यक्ति की सेवा!

बैशाखीलाल: हमरि प्रधानजी भौत अच्छी बात कना छन. पैलि जु ह्वेगि, वू ह्वेगि! पिछनै देखण से कैकु भलु नि होण! यु हम सबकु गांव छ. ग्रामसभा भि हमरि अर गौंकि प्रगति का वास्ता मिलीजुलि काम कनु भि हम सबकि जिम्यादारि छ.

प्रताप सिंह नेगी: हां भै, अब हम सबु तैं बदल जाण चैन्द. प्रधानजी तैं सहयोग द्योला ता ऊंचाकोट कि उन्नति होलि.

फुंद्या पदान: अबे सालों, रात बोतल पेकि कुछ हौर बोल्दां अर दिन मा कुछ हौर! शरम नहीं आती है तुमको?

चखुलीदेवी: पदानजी, आपका घर की चौपाल नी छ या! ग्रामसभा कि बैठक छ, बैठक!

पुरुषोत्तम बडोला: पदानजी, श्याम का टैम हम जू भि करदां स्यु हमरु व्यक्तिगत छ. अब जु कना छां वु सार्वजनिक छ. निजी बैठक अर समाज कि बैठक मा फरक होंद, फरक!

फुंद्या पदान: भौत फरका रहा है स्साला! कमीना कहीं का!

चखुलीदेवी:  पदानजी, अपणू गिच्चू खराब नि करा! औरी सब्यूं से निवेदन छ कि बैठक पर ध्यान द्यावा!

बैशाखीलाल: मीं एक प्रस्ताव लाण चांदू!

चखुलीदेवी: जु सुझाव या प्रस्ताव सबू तैं पसंद होला, तौं तैं हम ग्रामसभा का प्रस्तावू का रूप मा स्वीकार करि ल्योला!

फुंद्या पदान: सबका दिमाग खराब हो गया है! अबे, मेरे से पूछो, ग्रामसभा कैसे चलती है!

चखुलीदेवी:  पदानजी, चुप करा! चुप ह्वे जावा, चुप!

फुंद्या पदान: चुप, बड़ी आई प्रधान कि बच्ची!

चखुलीदेवी: चुप करा, चुप! आप ऊंचाकोट गौंकि प्रधान से बात कना छां!

फुंद्या पदान: चुप कर, मैं कहता हूं चुप कर! चुप!!

चखुलीदेवी: चखुलि चुप नि ह्वे सकद! तुम मेरा पति छां. प्रधान का पति नि छां! देखदि जावा, अग्वाड़ी-अग्वाड़ी क्य होंद!

(द्वी अपनी-अपनी जगह खड़ा ह्वे जांदन गुस्सा मा. बाकि लोग बीच-बचाव करांदन. कोरस प्रवेश का साथ सब फ्रीज़ ह्वे जांदन.)

स्त्री कोरस: जागी जावा, जागी हे खोली का गणेशा, खोली का गणेशा!
जागी जावा जागी हे मोरी का नारेणा, मोरी का नारेणा!
पुरुष कोरस: जागीगे, जागीगे चखुलीक भीतर की नेता जागीगे!
गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे!   
गौं कि स्कीम अब बणली गौं का हिसाब से!    
गौं मा आलु स्वराज अर बणली ग्राम सरकार!   
जागीगे, जागीगे चखुली का भीतर की नेता जागीगे! 
कोरस का द्वी सदस्य: गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे! 
गौं मा आलु स्वराज अर बणली गांव कि अपणी सरकार!
ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार!  ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार!   
(कोरस धीरे-धीरे चली जांद. दूसरा कोणा पर प्रकाश तेज होंद.)


दृश्य-ग्यारह

बीडीओ कु दफ्तर. बीडीओ कु चपरासी कुर्सियूं मा खुटा पसारीकि स्ययूं छ. बीडीओ प्रवेश करद.

बीडीओ (चपरासी से): ये, यु क्य मजाक बणयूं छ? दफ्तर मा इन बैठदन? शर्म आयीं चैंद! भाग यख बटी! गेट आउट फ्राम हियर!

(बीडीओ कु चपरासी सकपकाकर तख बटी भाग जांद. कुछ पल का बाद शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी कमरा मा प्रवेश करदन. सबी खालि कुर्सियूं पर बैठी जांदन.)

चखुली: नमस्कार बीडीओ सा’ब! (बाकि सब हाथ जोड़दन.)

बीडीओ: ओहो, नमस्कार! कन आणु ह्वे? मी ता अभी पल्या गौं जाण की तैयारी मा छौ.

शांतिदेवी: बीडीओ सा’ब, पल्या गौं बाद मा जयां! चखुलीदेवी अर मी केदारनाथ आपदा का बारा मा आपसे बात कन चांदा. ये बारा मा हमन एक रिपोर्ट भी तैयार करीं. हम चांदा कि आपका माध्यम से हमरी रिपोर्ट सरकार तक पौंछ.

बीडीओ: चला ता ठीक छ. पैलि आप लोग ही अपणी बात रखा.

शांतिदेवी: चल ब्वारि, रिपोर्ट का बारा मा बतौ.

चखुलीदेवी: न जी, आप ही रिपोर्ट का बारा मा बोला.

शांतिदेवी (अपणा थैला बटी कागज़ निकलद): या छ रिपोर्ट, जु चखुलीदेवी अर मिन तैयार करि! पूरि रिपोर्ट आप बाद मा पढ़ लियां. सक्षेप मा हम ई बोन चांदा कि केदारनाथ आपदा कु आकलन ठीक से नी ह्वाई!

बीडीओ: देखा शांतिदेवीजी, सरकार अपना स्तर पर हर संभव प्रयास कनि छ. यु आपदा इथागा बड़ी छ कि सरकार का साथ-साथ समाज तैं भी काम कर्यूं चैंद. तबि सबकु भलु होलु! (चखुलीदेवी से) हां, एक बात बोलनी छाई. कै आदमीन आपकि शिकैत करि छाई कि ऊंचाकोट गांव कि डिग्गी अर गूल निर्माण मा घटिया सामग्री कू इस्तेमाल ह्वे. पर, हमन जांच मा पाई कि काम बहुत ही उत्तम होयूँ चा. इथगा कम बजट मा इनु काम आज तक क्या होई होलू. मीं आपतैं बधाई अर धन्यवाद देणु आयूं.

चखुलीदेवी: बजट मा ता पुरु नी ह्वे सकदु छ्यु, या सहि बात चा. गांव का लोखु अर खासकैरी महिलोन श्रमदान से स्यु काम पुरु कैरी. गांव का सबि काम का वास्ता सरकारन कख बटी पैसा लाणन? हम तैं भि ता कुछ कर्यूं चैन्दू.

बीडीओ: इनि सोच का वास्ता धन्यवाद पर एक बात च. ये गांव मा न ता ढंग से पशुपालन होणु अर ना खेती अर न बागवानी. भौत योजना छान जांमा सब्सिडी मिलद. आपका गांव कु बजट अब वापस नई जायुं चैन्द. अरे, सरकार ता अब एक-एक डाला का तीन-तीन सौ रुप्या देणी चा.

चखुलीदेवी: सा’ब, गांव मा पैली जमीन कि कम्तैस छ. अब पुंगडो पर भी डाला लगाई द्योला ता पुंगडा भी चलि जाला जंगलात मा अर फेर चक्कर लगाणा रावा जंगलात दफ्तर का! बीडीओ सा’ब, एक बात बता कि जब इनि योजना बणाई जांदन तब यु नि स्वचे जांद कि जनता कु क्या होलु? एक हौर बात जू समझ मा नि आणि, वा या छ कि सरकार एक तरफ बोनी कि कैका पुंगड़ा मा डाला जामला ता खेत जंगलात कु ह्वे जालू अर लोग लगाला ता तीन सौ रूप्या सरकार देली. या बात कुछ समझ मा नि आई. बीडीओ सा’ब!
बैशाखीलाल: अब बैंकु कि पालिसि देखा. पैंसठ साल से ज्यादा उमर का लोखु तैं सि ऋण नि देंदा जबकि गांव मा ता दाना-सयाणा ही रयां छन. लोन लेण का वास्ता जमीन का कागज़ भी सही नी मिलदा किलैकी जमीन को बंदोबस्त भि साख्यूं बटी नी ह्वाई. जमीन दादा-परदादों का नाम पर चलनी छ अर आजका हकदार रैणा छन देरादून, दिल्ली, बम्बे अर लन्दन!

प्रताप सिंह नेगी: ज्वान लोग भी नौकरी-धंधा कि खोज मा गांव छोडि चलि गेन ता योजनों तेन कैन साकार कन? दलितु का हिस्सा कु बजट भी मैदान जने बौग जांद.

शांतिदेवी: अर, महिलों कि ता क्वी बात ही नी करद. बड़ी मुश्किल से निचला स्तर पर महिला आरक्षण ह्वे ता तै से भि मरदू तैं जौल ह्वेयीं छ.

चखुलीदेवी: जी, अब हमन साबित कन कि महिला प्रधान बणाई कि सरकारन क्वी गलति नि करि!

फुंद्या पदान: बीडीओ सा’ब, ब्वन द्या यूं तैं. जन चलण लग्युं, उनि चलण द्यावा. व्यवस्था ता इनि रैण. हमरा जना कै फुंद्या पदानअर प्रधान आइनी अर आला. ईं प्रधानी जनि भि कै प्रधानी आली. पहाड़ कि समस्योंन ता इनि रैण.

चखुलीदेवी: पदानजी, तुम चुप रावा. आप ग्राम प्रधान अर बीडीओ सा’ब की मीटिंग मा छयां, घौरकि चौपाल मा नी छां बैठ्यां.

बीडीओ: देखा इनु छ, सरकार सबि काम नि करी सकद. संसाधन नी छन. लोग अर व्यापारी ईमानदारी से टैक्स नी देंदा. पैसा आण कख बटी? जू नीतिगत समस्या छन, तौन्का बारा मा मि सरकार तैं लिखी भेजलू. पर, आप लोग अपना गांव का ऊं लोखु से संपर्क करी सकदां जू दिल्ली, बम्बे अर कनाडा रैन्दीन. सि लोग साधन-संपन्न छन, गांव की मदद करि सकदन.

प्रताप सिंह नेगी: बीडीओ सा’ब, तौंकी बात नी करा जु केवल फेसबुक कि क्रान्ति मा बिस्वास रखदन. जु फेसबुक पर पहाड़ बसाण कि बात करदन. अर हमूं तैं फोन आन्दन कि अमेरिका वालि नातिण कि छाया पूजोण, घड्यलो इंतजाम करी देल्या? अर कीसा भी तौन्का खाली. बस पुराणा लत्ता-कपड़ा दान कना चांदन. सा’ब, इनि मदद नि चैंद.

बैशाखीलाल: प्रधानजी ठीक बुना छिन. हम तैं इनी मामदा नि चैंद. हम तैंत इनो विकास चैंद कि गांव का पास इनो अस्पताल हो जेमा डाक्टर हो, नर्स हो, बैणी-ब्वारी प्रसवपीडा से न मरां. हम तैं इनो विकास चैंद कि गांव का स्कूल मा पढ्यूं-लिख्यूं अध्यापक हो.

पुरुषोत्तम बडोला:  हम तैं इनो विकास चैंद कि यूं बाठों से गांव का गांव खाली नी ह्वे जावन. इनु विकास नि चैंद कि हमरा जंगल, परबत, नदी, खेती, गांव सब बर्बाद ह्वे जावन.

बैशाखीलाल: हम तैं इनो लोकतंत्र चैंद कि गौं मा सबि छोटा-बड़ा, दाना-सयणा प्रेम से रवन. गौं की योजना गौं का लोग बणावन, सरकार कु हस्तक्षेप कै भी स्तर पर नि होऊ.

प्रताप सिंह नेगी: सरकार केवल अर केवल बजट की समीक्षा अर ऑडिट करू अर देखू कि पैसा कु दुरुपयोग ता नई ह्वेयूं. बस. बकि अपना विकास की योजना गांव का लोग अफ़ी बणाई सकदन.

प्रताप सिंह नेगी: दुर्भाग्य यो छ कि आज गांवू मा मनखी कम अर बांदर, गोणी, सुंगर अर बाघ जना प्राणी ज्यादा अर मनखी कम ह्वे गैनी. 

चखुलीदेवी: भौत-भौत धन्यवाद सबका सुझाव का वास्ता. बीडीओ सा’बन भी हमरा मन की बात सूनि याली. आशा छ कि हमरी बात सरकार तक पहुँचली. गांव कि ओर से मी पुरु भरोसा दिलांदु कि हमरा लोग कखी पैथर नि राला.
बीडीओ: धन्यवाद प्रधानजी, भौत-भौत धन्यवाद! आप लोखुन मेरा आंखा खोलि यनि. अगर हर ग्रामसभा का पदाधिकारी अर हर गाँव का लोग इनि ह्वे जावन ता फेर बात ही क्या च! अपणु गढ़वाल, अपणु कुमाऊं, अपणु उत्तराखंड सच मा स्वर्ग बणी जाव. अर हां, मि पूरो प्रयास करलु कि आपका सुझाव अर बात सरकार का मंत्र्यूं तक पौंछ.
(लाईट फेड ह्वे जांद. शांतिदेवी एक कोणा पर जांद. प्रकाश तखी शांतिदेवी पर केंद्रित होंद. बाकि लोग फ्रीज हवे जांदन. शांतिदेवी अपणा मन की बात ब्वल्द दिखेंद.)
शांतिदेवी: केदारनाथ आपदा कू आकलन न ता सरकारन सही करि अर न कै स्वतंत्र संस्था न! मीडिया न भी क्वी रिपोर्ट ठीक-ठाक ढंग से नी दिखैनी. यीं आपदा न समाज, संस्कृति अर आर्थिकी पर जु प्रभाव डालि, तैतैं ठीक होण मा साख्यूं लग जाली! (विराम) जु सैकड़ों जवान नौनि विधवा ह्वेनि गांव कि तौंकु क्य होलु? जु बच्चा अनाथ ह्वेनि तौंकी पढाई कु क्य होलु?  जु बूड-बुढया यखुलि रै गैनि तौंका बुढापा कु क्य होलु? अर, देश-दुनिया का जु हजारु-हजारु लोग तैं आपदा मा म्वरिगेनि, तौंकु गिणती कु काम कु करलो, अर तौंका परिवारु तैं कैन दिलासा दिलौण? सरकार भौत ब्वलद कि चारधाम उत्तराखंड की लैफलेन छन, पर मी यु जण चांदु कि यख जू मनखी बच्यां रै गेनी, वूंकी लैफलेन कु क्य होलो?

(प्रकाश मठु- मठु मलिन ह्वैकी विलीन ह्वे जांद.)


दृश्य-बारह
गोधूलि का बाद कु समय. शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी सबी लोग वापस गांव पौंछि गैनि. जनि सि पंचैति चौक पर पहुंचदन, फुंद्या पदान अचणचक जोर-जोर से चिल्लाण लगद. 
फुंद्या पदान: न्हैजी, ऐसा नहीं होता है! यु सब बकबास छ. ग्रामसभा इनि नि चली सकद जन ई प्रधानिजी चलाणी छन. यी सब किताबि बथ छन. मि जब प्रधान छौ तब गांव का काम कराण का वास्ता मिन क्या-क्या नि करी! कै-कै तैं पीठें नि लगाई. अर सि बीडीओ जै तैं मिलि आयां, तैन क्य पीठें नि लगवाई?
चखुलीदेवी: क्य छां तुम ये पंचेती चौक मा बड-बड करणा? जरूर लगवाई ह्वली तैंन भी पीठें पर तुम भि तैयार बैठ्याँ राइ होला पीठें लगाणुकु. मि यू बोन चांदू कि अगर तुमरो अपनो हिसाब ठीक हो ता कैकी हिम्मत नी ह्वे सकद पिठाईं लगवाण की. व्यवस्था बहुत गड़बड़ छ पर मि दिखौलु कि ईं व्यवस्था मा भी काम करे सकद. निराश हूण से काम नि चलद. आप भला त जग भला! (विराम) अर हां, बीडीओ सा’बी से मेरि अर हमरी ग्रामसभा की शिकैत तुमन करि छाई?
फुंद्या पदान: कै हौरन करि ह्वालि. भौत लोग छन दुश्मन ये गांव मा!
चखुलीदेवी: मी सब पता छ. जब तुमन इथगा भ्रष्टाचार करि तब ता कैन तुमरी शिकैत नि करि. अब मी पारदर्शिता अर ईमानदारी का साथ ग्रामसभा कु काम कन की कोशिश कनु छौं ता तुमरा पेट मा पिड़ा उठणी छ.
फुंद्या पदान: भौत देखनि तेरा जना पारदर्शी र आदर्शवादी! जैतैं खाणु नि मिलद सी होंद आदर्शवादी! क्य होंद या पारदर्शिता और लोकतंत्र! नयी-नयी प्रधान बणी, त्वेतैं होश आण मा ज्यादा टैम नि लगण!
चखुलीदेवी: मीं अपना गांव अर यखक लोखु तैं बदली दिखौलु. हर समय अर काल मा इना लोग ह्वेनि जौन बथों का विपरीत चलिकी बड़ा काम करनी.
शांतिदेवी: हमरि नेता कन हो, चखुली प्रधान जन हो!
सब एक साथ (फुंद्या पदान तैं छोडीक): चखुली प्रधान जन हो! चखुली प्रधान जन हो!
फुंद्या पदान: चखुली प्रधान, तेरी चलि नि सकद कबि! यीं व्यवस्था मा भ्रष्टाचार का अलावा कुछ ह्वे नि सकद. मी भी पैलि ईमानदार पदान अर फिर ईमानदार प्रधान छौ. पर, व्यवस्था अर व्यवस्था चलोंण वाला लोखु ना मीं तैं सब समझै दे. अर फिर मी उनि ह्वे ग्यों जन सी व्यवस्था का ठेकेदार छन.
चखुलीदेवी: तुम कमजोर आदमी छां. तुमरा बस की बात व्यवस्था से टकराण की नी छयी. आप मेरा पति छन पर मेरि प्रेरणा कभि नी बणि सक्यां, किलैकी तुमन इनु क्वी काम ही नी करी! (सोचदा-सोचदा) अर चला, सच-सच बता कि बीडीओ सा’ब से आपन मेरि अर ग्राम सभा कि शिकैत किलाइ करि छै? अर कथगा बार करि शिकैत?
फुंद्या पदान: मिन क्वी शिकैत नि करि! किलाई कन छै मिन? मीं तैं तु मूरख समझदि?
चखुलीदेवी: तै बारा मा कुछ नि बोल सकदु पर शिकैत जना काम आप ही करि सकदां! चला खैर, तुमसे ज्यादा उम्मीद भी नि छै. उन भी विभीषण अर जयचंद ता हर युग अर काल मा पैदा होंदन!
फुंद्या पदान: गलत! त्वेतैं सिन नि ब्वलयूं चैंद. नयी-नयी प्रधान बणी, मीं से सिख्यूं चैन्द! 
चखुलीदेवी: चुप रावा! मेरि प्रेरणा का स्रोत हौर भौत से लोग छन. (कखी दूर ब्रह्माण्ड मा देखद अर मंच का अग्रभाग मा आंद.) अर, भैर क्या जाण? अपणा उत्तराखंड मा ही इनी कै महिला छन. बिश्नीदेवी साह, टिंचरी माई, तुलसीदेवी, रेवती उनियाल, गौरादेवी, गंगोत्री गर्ब्याल, विमला बहुगुणा, बचेंद्री पाल, प्रतिभा अर तारा मिश्र, बौंणीदेवी, राधा भट्ट अर अब सुशीला भंडारी जनि भौत सी उत्तराखंडी महिला छन जु मीं तैं प्रेरणा देंदीन. (पदान से) अर सुण ल्या, मेरु नौ चखुलीदेवी रावत छ पर मीं छौं ऊंचाकोट ग्राम की प्रधान, चखुलि प्रधान! महिला प्रधान! तुम म्यरा पति छां पर कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति! कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति!! 
(पदान का अलावा सबि लोग चखुलीदेवी तैं कुछ पल तक देखदी राइ जांदन अर फेर जोर-जोर से ताली बजाण बैठदन. एका साथ कोरस-द्वय प्रवेश करद अर सबि कलाकार भी कोरस मा परिवर्तित ह्वे जांदन. सबि एक-साथ गाण लगदन.)
कोरस: ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे
समै भी हौड़ फरकण लैगे, हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे!
चखुलिन उठ्यालि डंडा, उठ्यालि डंडा!
चखुलिन उठ्यालि झंडा, उठ्यालि झंडा!
ग्रामसभा चललि मिलि-जुलिकि
बस यी अब गौं कु फंडा, गौं कु फंडा! 
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे...
(कोरस कर्टन काल में परिवर्तित ह्वे नमस्कार की मुद्रा में आइ जांद. प्रकाश मलिन होण का साथ-साथ पर्दा मठु-मठु निस आंद. गीत का बोल अभी भी कंदुडू मा गुंजणा छन.)
समाप्त.
(09/10/2015, 2049 बजे.)
संशोधन: 28/10/2015, 14/11/2015, 23/11/2015 और 20 से 25/04/2016 तथा 27-28/04/2016.
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Bhishma Kukreti

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Chakhuli Pradhan Part -4
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चखुलीदेवी: तुम भूलि जावा अपना पितजि का जमाना की बथा. मी तब भी बोलदु छौ कि तन नी करा पर यूं माई का लालन कबि नी ध्यान दे मेरि बथु पर.
फुंद्या पदान: मां होण कू फर्ज त निभाण ही पड़लो प्रधानजी! 
चखुलीदेवी: तुम चुप रावा! मी अपना बच्चों दगड़ी बात कनु छौं. (सोचिकी) मी तैं अक्ल ऐगे और समझी गयुं कि सरकारन महिला आरक्षण असल मा महिला सशक्तिकरण का वास्ता करी. जनता का दबाव मा सरकारन यी जू ताकत महिलों तैं दे, तै मी कै भी हालत मा नी छोड़ी सकदू. मी जू ताकत भितर बटी महसूस कनू छौं, तैंतैं बड़ी से बड़ी रकम भी हासिल नी करी सकद. (पदान से) बड़ा ऐनि लोकतंत्र की बात कन वाला! जीवन भर ता मीं तैं दबाई की रखी अर जब खुद पर आई ता कना छन लोकतंतर, लोकतंतर! चला, ह्वे जा यख बटी छू-मंतर!   
(गुस्सा मां घर का भितर चलि जांद. बकि सबि एक-दूसरा गिचू देखदी रै जांदन.)
फुंद्या पदान: क्वी बात नी श्रीमतीजी! लोकतंत्र मा अभि भौत उपाय छन. (बच्चों से) बच्चों, अब भूख हड़ताल का सिवाय कुछ उपाय नि छ. अच्छा-अच्छा नेतौं कु दिमाग ठीक ह्वे जांद भूख हड़ताल कु नौं सुणी!
(बच्चा दुविधा मा फुंद्या तैं देखणा छन. सबि लोग फ्रीज़ ह्वे जांदन. कोरस प्रवेश करद.)
स्त्री कोरस: एतुरी आयीं फुंद्या पदान तैं कि कन अर कब बणलो प्रधानपति!   
पुरुष कोरस: देखि आपन चखुलिन तैकि कन बणाई गति! सत्ता का लालच मा तैकी फिरगे पूरि मति!
कोरस का द्वी सदस्य: अग्वड़ी-अग्वड़ी देखदी जावा, होली तैकि सद्गति या दुर्गति, सद्गति या दुर्गति!
(कोरस चली जांद. प्रकाश मलिन ह्वेकि विलीन ह्वे जांद. दुसरा कोणा पर प्रकाश तीव्र होंद.)

दृश्य-दस
(गांव की ग्रामसभा की बैठक. गांव का कई मर्द, जनना अर नौन्याल बैठ्याँ छन. बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान चखुलीदेवी कनि च. फुंद्या पदान अर तौन्का बच्चा भि बैठ्याँ छन.)
बैशाखीलाल: सम्मानित प्रधानजी श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी की अनुमति से मि आजकि मीटिंग शुरू करदु.
चखुलीदेवी: हां, हां, बैसाखीलालजी, शुरू करा! 
बैशाखीलाल: सम्मानित ग्रामवास्यूं, ग्रामसभा का चुनाव होण अर गांव मा पैलि बार महिला प्रधान का चुनाव का बाद आज हमरी या महत्वपूर्ण बैठक होणी च. अब मि सबसे पैलि माननीय ग्राम प्रधान श्रीमती चखुलीदेवी रावतजी से विनती करदु कि वू बतावन कि कै प्रकार से ग्रामसभा की गतिविधि चलाण को तौंको सुपन्यों छ.
चखुलीदेवी: सबसे पैलि मि आप सबकु धन्यवाद करदू कि आपन मी तैं भारी बहुमत से ऊंचाकोट ग्रामसभा कू प्रधान निर्वाचित करी. मी वू सबी प्रत्याशी लोखू कु भी धन्यवाद करदू जौन चुनाव मा भागीदारी करीकी लोकतंत्र की प्रक्रिया और मजबूत करी. पर, मि चांदू कि पैलि आप लोखुका विचार आई जावन, तांका बाद मि अपणी बात रखलो.
पुरुषोत्तम बडोला:  मेरु एक सुझाव छ. महिला प्रधानजी तैं जरूर पता ह्वयूं चैंद कि ग्रामसभा मजबूत नि होलि ता हमरा गांव मा अर देश मा स्वराज नि आई सकद.
बैशाखीलाल: हां, हां, यूं भी याद रखण कि पंचायती राज कानून का हिसाब से पंचायतूं तैं ऊंका अधिकार दिलाण की लड़ाई जारी रखण!
प्रताप सिंह नेगी: अर नयी कार्यकारिणी काम नी करलि ता सूचना अधिकार की तलवार अपणु काम करलि! अर हां, गांव का लोखु मा जागरूकता भी जरूरी छ.
पुरुषोत्तम बडोला: वित्तीय वर्ष कू लेखा-जोखा सब्तैं पता हो, ऑडिट रिपोर्ट बणु अर निगरानी समिति कू गठन हो.
प्रताप सिंह नेगी: यू सब ह्वे जाव ता पंचायतूं तैं वित्तीय अधिकार दिलाणा का अलावा अफसरशाही पर अंकुश जनि बथा भी ह्वे सकदन. भ्रष्टाचार मिटाण का वास्ता अब हम सबतैं लग जाण चैंद.
पुरुषोत्तम बडोला:  ये बारा मा भी हमारा प्रयास जारी ह्वयां चैन्दन. नियोजन एवं विकास समिति, निर्माण कार्य समिति, शिक्षा समिति, जल प्रबंधन समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति अर प्रशासनिक समिति की स्थापना भी हो ताकि ऊंचाकोट का लोखु तक पंचायतीराज का लाभ पहुंचन.

बैशाखीलाल: अर भूल गयां कि 12 अप्रैल 2007 मा केंद्र सरकारन निर्णय ले छौ कि गांव का लोखु तैं पंचायत स्तर पर ही न्याय दिलाण का वास्ता प्रत्येक पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालय की स्थापना करे जालि. म्यारु बोनौ मतलब यो छ कि यांका वास्ता भी हमरी लड़ाई जारी रली.

फुंद्या पदान: आप लोग ता इनि बात कना छन जनकि मिन क्वी काम ही नी कैरी! अरे, पैलि खानदानी पदान अर फेर ग्राम प्रधान रयूं इथगा साल. मिन अगर काम नि करि ता तुमन इथगा साल मीताईं किलाइ प्रधान बणाई?

चखुलीदेवी: पदानजी, बस करा. यख हम भूतकाल कू आपरेशन कनुकू निछां बैठ्याँ. अग्ने क्य अर कन कन, ये पर विचार कन!

बैशाखीलाल: ग्राम प्रधानजी ठीक ब्वना छन. अब ग्रामसभा की नयी कार्यकारिणी छ अर हमन अब नया ढंग से सोचण. 

फ्यूंली: अर हमरा घर मा लोकतंत्र कू क्य होलो? पितजि का हिसाब से लोकतंत्र कि परिभाषा कुछ अर मांजी आपका हिसाब से कुछ और! क्य चक्कर छ यु?

क्रांतिवीर: मांजी, मेरी ता समझ से भैर छ यू सब! आप जरा यू बता कि पैली पदानी अर अब प्रधानी पर हमरा परिवारकु कब्जा छ अर तब भी हम लोकतंत्र-लोकतंत्र की बात काना छावां! 

चखुलीदेवी: पैली क्रांतिवीर का सवाल को जवाब! बेटा, पैली पदानी की पारंपरिक व्यवस्था छाई. हमरा परिवार तैं पदानी तई हिसाब से मिली. जब प्रधानी की व्यवस्था आई, तब तुमरा पितजी गांव का प्रधान बणगे छया. कारण कई छया.

क्रांतिवीर: क्य कारण रै होला तब?

चखुलीदेवी: जागरूकता की कमी भी एक कारण रै होलु! पारंपरिकता बणाई रखण कि गौं कि सामूहिक इच्छा भी हवे सकद! खैर, अब महिला सीट ह्वे ता लोखुन अपनी मर्जी से मी तैं जिताई. मेरु दायित्व यु छ कि गांव वलों की आशा अर अपेक्षा पर खरु उतरूं!

फ्यूंली: म्यरु सवाल ता जखि कु तखि रै ग्याई.

चखुलीदेवी: न, न! अब फ्यूंली त्यरा सवाल कु जवाब! बेटी, लोकतंत्र कू मूलमंत्र यो छ कि कखी भी अर कै भी स्तर पर अनावश्यक हस्तक्षेप न हो. कै परिवार का भितर का मामलों मा भी न. परिवार अपनी समस्या को समाधान अपणा-आप खोजु. जब बात बड़ी ह्वे जा तब ग्रामसभा छ. इनि ग्रामसभा तैं भी अपनो काम-काज खुदी संभाल्यु चयेंद. कखी बटी क्वी रोक-टोक अर हस्तक्षेप न हो. बेटी फ्यूंलि, हौर क्वी सवाल?

फ्यूंली: पर मांजि हमरा घौर का लोकतंत्र कु क्य होलु? जब घौर मा ही लोकतंत्र नि होलु ता भैर कन आण? पितजि अधिकार कि बात करदन अर आप कर्तव्य की. मी भौत कन्फ्यूज्ड छौं.

चखुलीदेवी (दार्शनिक ह्वेकि): फ्यूंली, लोकतंत्र इनि विधा अर प्रक्रिया छ जु चारों दिशाओं मा समानरूप से पहुंचद, बिना कै भेदभाव का! अर जै लोकतंत्र कि बात तु कनी छै, स्य लोकतंत्र नि होंद. (विराम) मेरु सुप्न्यु ई छ कि हमरा गांव, राज्य अर देश मा सच्चु लोकतंत्र निसा बटी ठेठ ऐंच तक हो, अर ऐंच बटी ठेठ निसा तक हो. ईमानदारी का दगड़ी सब मिलीकि काम करां. एक-दुसरा का काम कि पूरी जानकारी हो, पारदर्शिता हो!

बैशाखीलाल: यु पारदर्शिता क्या होंद, जरा लोखू तैं विस्तार से बतावा!

चखुलीदेवी: ठीक! गांव अपणा धन को नियोजन अपनी जरूरत का हिसाब से करु अर हर ग्रामवासि कि बात सुने जाव. गांव का हिस्सा कु पैसा सीधा ग्रामसभा का पास पौन्छु. न क्वी डीएम, न क्वी सीम अर न क्वी पीएम! अर हां, ग्रामसभा भी ईमानदारी अर बिना कै भेदभाव का काम करू तबि ग्राम स्वराज अर ग्राम सरकार को सुन्प्न्यां पूरो होलो. यी होंद पारदर्शिता!

पुरुषोत्तम बडोला:  भौत सुन्दर प्रधानजी! भौत सुन्दर! कनी अच्छी बात कनी आपन! महिला आरक्षण सरकारन पैली किले नि करी ह्वलु?     

फुंद्या पदान: तन नी होंद सा’ब! बिंडा बिरलों से मूसा नी मोरदा! ताकत ता प्रधान का हाथ मा ह्वयीं चैंद. तन नी होलो तो प्रधान कू मतलब ही क्या?

चखुलीदेवी: रुका, रुका पदानजी रुका. बैठक मा बिघ्न न डाला. आपन अपणि प्रधानी मा ता क्वी काम नि कैरि अर मीं भि नी कन देण चांदा. आपतैं समझ यूं आयूं चएंद कि लोकतंत्र कू अर्थ होंद विकेंद्रीकरण अर सत्ता कू अर्थ होंद हर नागरिक, हर व्यक्ति की सेवा!

बैशाखीलाल: हमरि प्रधानजी भौत अच्छी बात कना छन. पैलि जु ह्वेगि, वू ह्वेगि! पिछनै देखण से कैकु भलु नि होण! यु हम सबकु गांव छ. ग्रामसभा भि हमरि अर गौंकि प्रगति का वास्ता मिलीजुलि काम कनु भि हम सबकि जिम्यादारि छ.

प्रताप सिंह नेगी: हां भै, अब हम सबु तैं बदल जाण चैन्द. प्रधानजी तैं सहयोग द्योला ता ऊंचाकोट कि उन्नति होलि.

फुंद्या पदान: अबे सालों, रात बोतल पेकि कुछ हौर बोल्दां अर दिन मा कुछ हौर! शरम नहीं आती है तुमको?

चखुलीदेवी: पदानजी, आपका घर की चौपाल नी छ या! ग्रामसभा कि बैठक छ, बैठक!

पुरुषोत्तम बडोला: पदानजी, श्याम का टैम हम जू भि करदां स्यु हमरु व्यक्तिगत छ. अब जु कना छां वु सार्वजनिक छ. निजी बैठक अर समाज कि बैठक मा फरक होंद, फरक!

फुंद्या पदान: भौत फरका रहा है स्साला! कमीना कहीं का!

चखुलीदेवी:  पदानजी, अपणू गिच्चू खराब नि करा! औरी सब्यूं से निवेदन छ कि बैठक पर ध्यान द्यावा!

बैशाखीलाल: मीं एक प्रस्ताव लाण चांदू!

चखुलीदेवी: जु सुझाव या प्रस्ताव सबू तैं पसंद होला, तौं तैं हम ग्रामसभा का प्रस्तावू का रूप मा स्वीकार करि ल्योला!

फुंद्या पदान: सबका दिमाग खराब हो गया है! अबे, मेरे से पूछो, ग्रामसभा कैसे चलती है!

चखुलीदेवी:  पदानजी, चुप करा! चुप ह्वे जावा, चुप!

फुंद्या पदान: चुप, बड़ी आई प्रधान कि बच्ची!

चखुलीदेवी: चुप करा, चुप! आप ऊंचाकोट गौंकि प्रधान से बात कना छां!

फुंद्या पदान: चुप कर, मैं कहता हूं चुप कर! चुप!!

चखुलीदेवी: चखुलि चुप नि ह्वे सकद! तुम मेरा पति छां. प्रधान का पति नि छां! देखदि जावा, अग्वाड़ी-अग्वाड़ी क्य होंद!

(द्वी अपनी-अपनी जगह खड़ा ह्वे जांदन गुस्सा मा. बाकि लोग बीच-बचाव करांदन. कोरस प्रवेश का साथ सब फ्रीज़ ह्वे जांदन.)

स्त्री कोरस: जागी जावा, जागी हे खोली का गणेशा, खोली का गणेशा!
जागी जावा जागी हे मोरी का नारेणा, मोरी का नारेणा!
पुरुष कोरस: जागीगे, जागीगे चखुलीक भीतर की नेता जागीगे!
गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे!   
गौं कि स्कीम अब बणली गौं का हिसाब से!   
गौं मा आलु स्वराज अर बणली ग्राम सरकार!   
जागीगे, जागीगे चखुली का भीतर की नेता जागीगे! 
कोरस का द्वी सदस्य: गौं कु भ्रष्टाचार भागण लागे, लोकतंत्र जागण लागे! 
गौं मा आलु स्वराज अर बणली गांव कि अपणी सरकार!
ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार!  ग्राम स्वराज, ग्राम सरकार!   
(कोरस धीरे-धीरे चली जांद. दूसरा कोणा पर प्रकाश तेज होंद.)


दृश्य-ग्यारह

बीडीओ कु दफ्तर. बीडीओ कु चपरासी कुर्सियूं मा खुटा पसारीकि स्ययूं छ. बीडीओ प्रवेश करद.

बीडीओ (चपरासी से): ये, यु क्य मजाक बणयूं छ? दफ्तर मा इन बैठदन? शर्म आयीं चैंद! भाग यख बटी! गेट आउट फ्राम हियर!

(बीडीओ कु चपरासी सकपकाकर तख बटी भाग जांद. कुछ पल का बाद शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी कमरा मा प्रवेश करदन. सबी खालि कुर्सियूं पर बैठी जांदन.)

चखुली: नमस्कार बीडीओ सा’ब! (बाकि सब हाथ जोड़दन.)

बीडीओ: ओहो, नमस्कार! कन आणु ह्वे? मी ता अभी पल्या गौं जाण की तैयारी मा छौ.

शांतिदेवी: बीडीओ सा’ब, पल्या गौं बाद मा जयां! चखुलीदेवी अर मी केदारनाथ आपदा का बारा मा आपसे बात कन चांदा. ये बारा मा हमन एक रिपोर्ट भी तैयार करीं. हम चांदा कि आपका माध्यम से हमरी रिपोर्ट सरकार तक पौंछ.

बीडीओ: चला ता ठीक छ. पैलि आप लोग ही अपणी बात रखा.

शांतिदेवी: चल ब्वारि, रिपोर्ट का बारा मा बतौ.

चखुलीदेवी: न जी, आप ही रिपोर्ट का बारा मा बोला.

शांतिदेवी (अपणा थैला बटी कागज़ निकलद): या छ रिपोर्ट, जु चखुलीदेवी अर मिन तैयार करि! पूरि रिपोर्ट आप बाद मा पढ़ लियां. सक्षेप मा हम ई बोन चांदा कि केदारनाथ आपदा कु आकलन ठीक से नी ह्वाई!

बीडीओ: देखा शांतिदेवीजी, सरकार अपना स्तर पर हर संभव प्रयास कनि छ. यु आपदा इथागा बड़ी छ कि सरकार का साथ-साथ समाज तैं भी काम कर्यूं चैंद. तबि सबकु भलु होलु! (चखुलीदेवी से) हां, एक बात बोलनी छाई. कै आदमीन आपकि शिकैत करि छाई कि ऊंचाकोट गांव कि डिग्गी अर गूल निर्माण मा घटिया सामग्री कू इस्तेमाल ह्वे. पर, हमन जांच मा पाई कि काम बहुत ही उत्तम होयूँ चा. इथगा कम बजट मा इनु काम आज तक क्या होई होलू. मीं आपतैं बधाई अर धन्यवाद देणु आयूं.

चखुलीदेवी: बजट मा ता पुरु नी ह्वे सकदु छ्यु, या सहि बात चा. गांव का लोखु अर खासकैरी महिलोन श्रमदान से स्यु काम पुरु कैरी. गांव का सबि काम का वास्ता सरकारन कख बटी पैसा लाणन? हम तैं भि ता कुछ कर्यूं चैन्दू.

बीडीओ: इनि सोच का वास्ता धन्यवाद पर एक बात च. ये गांव मा न ता ढंग से पशुपालन होणु अर ना खेती अर न बागवानी. भौत योजना छान जांमा सब्सिडी मिलद. आपका गांव कु बजट अब वापस नई जायुं चैन्द. अरे, सरकार ता अब एक-एक डाला का तीन-तीन सौ रुप्या देणी चा.

चखुलीदेवी: सा’ब, गांव मा पैली जमीन कि कम्तैस छ. अब पुंगडो पर भी डाला लगाई द्योला ता पुंगडा भी चलि जाला जंगलात मा अर फेर चक्कर लगाणा रावा जंगलात दफ्तर का! बीडीओ सा’ब, एक बात बता कि जब इनि योजना बणाई जांदन तब यु नि स्वचे जांद कि जनता कु क्या होलु? एक हौर बात जू समझ मा नि आणि, वा या छ कि सरकार एक तरफ बोनी कि कैका पुंगड़ा मा डाला जामला ता खेत जंगलात कु ह्वे जालू अर लोग लगाला ता तीन सौ रूप्या सरकार देली. या बात कुछ समझ मा नि आई. बीडीओ सा’ब!
बैशाखीलाल: अब बैंकु कि पालिसि देखा. पैंसठ साल से ज्यादा उमर का लोखु तैं सि ऋण नि देंदा जबकि गांव मा ता दाना-सयाणा ही रयां छन. लोन लेण का वास्ता जमीन का कागज़ भी सही नी मिलदा किलैकी जमीन को बंदोबस्त भि साख्यूं बटी नी ह्वाई. जमीन दादा-परदादों का नाम पर चलनी छ अर आजका हकदार रैणा छन देरादून, दिल्ली, बम्बे अर लन्दन!

प्रताप सिंह नेगी: ज्वान लोग भी नौकरी-धंधा कि खोज मा गांव छोडि चलि गेन ता योजनों तेन कैन साकार कन? दलितु का हिस्सा कु बजट भी मैदान जने बौग जांद.

शांतिदेवी: अर, महिलों कि ता क्वी बात ही नी करद. बड़ी मुश्किल से निचला स्तर पर महिला आरक्षण ह्वे ता तै से भि मरदू तैं जौल ह्वेयीं छ.

चखुलीदेवी: जी, अब हमन साबित कन कि महिला प्रधान बणाई कि सरकारन क्वी गलति नि करि!

फुंद्या पदान: बीडीओ सा’ब, ब्वन द्या यूं तैं. जन चलण लग्युं, उनि चलण द्यावा. व्यवस्था ता इनि रैण. हमरा जना कै फुंद्या पदानअर प्रधान आइनी अर आला. ईं प्रधानी जनि भि कै प्रधानी आली. पहाड़ कि समस्योंन ता इनि रैण.

चखुलीदेवी: पदानजी, तुम चुप रावा. आप ग्राम प्रधान अर बीडीओ सा’ब की मीटिंग मा छयां, घौरकि चौपाल मा नी छां बैठ्यां.

बीडीओ: देखा इनु छ, सरकार सबि काम नि करी सकद. संसाधन नी छन. लोग अर व्यापारी ईमानदारी से टैक्स नी देंदा. पैसा आण कख बटी? जू नीतिगत समस्या छन, तौन्का बारा मा मि सरकार तैं लिखी भेजलू. पर, आप लोग अपना गांव का ऊं लोखु से संपर्क करी सकदां जू दिल्ली, बम्बे अर कनाडा रैन्दीन. सि लोग साधन-संपन्न छन, गांव की मदद करि सकदन.

प्रताप सिंह नेगी: बीडीओ सा’ब, तौंकी बात नी करा जु केवल फेसबुक कि क्रान्ति मा बिस्वास रखदन. जु फेसबुक पर पहाड़ बसाण कि बात करदन. अर हमूं तैं फोन आन्दन कि अमेरिका वालि नातिण कि छाया पूजोण, घड्यलो इंतजाम करी देल्या? अर कीसा भी तौन्का खाली. बस पुराणा लत्ता-कपड़ा दान कना चांदन. सा’ब, इनि मदद नि चैंद.

बैशाखीलाल: प्रधानजी ठीक बुना छिन. हम तैं इनी मामदा नि चैंद. हम तैंत इनो विकास चैंद कि गांव का पास इनो अस्पताल हो जेमा डाक्टर हो, नर्स हो, बैणी-ब्वारी प्रसवपीडा से न मरां. हम तैं इनो विकास चैंद कि गांव का स्कूल मा पढ्यूं-लिख्यूं अध्यापक हो.

पुरुषोत्तम बडोला:  हम तैं इनो विकास चैंद कि यूं बाठों से गांव का गांव खाली नी ह्वे जावन. इनु विकास नि चैंद कि हमरा जंगल, परबत, नदी, खेती, गांव सब बर्बाद ह्वे जावन.

बैशाखीलाल: हम तैं इनो लोकतंत्र चैंद कि गौं मा सबि छोटा-बड़ा, दाना-सयणा प्रेम से रवन. गौं की योजना गौं का लोग बणावन, सरकार कु हस्तक्षेप कै भी स्तर पर नि होऊ.

प्रताप सिंह नेगी: सरकार केवल अर केवल बजट की समीक्षा अर ऑडिट करू अर देखू कि पैसा कु दुरुपयोग ता नई ह्वेयूं. बस. बकि अपना विकास की योजना गांव का लोग अफ़ी बणाई सकदन.

प्रताप सिंह नेगी: दुर्भाग्य यो छ कि आज गांवू मा मनखी कम अर बांदर, गोणी, सुंगर अर बाघ जना प्राणी ज्यादा अर मनखी कम ह्वे गैनी. 

चखुलीदेवी: भौत-भौत धन्यवाद सबका सुझाव का वास्ता. बीडीओ सा’बन भी हमरा मन की बात सूनि याली. आशा छ कि हमरी बात सरकार तक पहुँचली. गांव कि ओर से मी पुरु भरोसा दिलांदु कि हमरा लोग कखी पैथर नि राला.
बीडीओ: धन्यवाद प्रधानजी, भौत-भौत धन्यवाद! आप लोखुन मेरा आंखा खोलि यनि. अगर हर ग्रामसभा का पदाधिकारी अर हर गाँव का लोग इनि ह्वे जावन ता फेर बात ही क्या च! अपणु गढ़वाल, अपणु कुमाऊं, अपणु उत्तराखंड सच मा स्वर्ग बणी जाव. अर हां, मि पूरो प्रयास करलु कि आपका सुझाव अर बात सरकार का मंत्र्यूं तक पौंछ.
(लाईट फेड ह्वे जांद. शांतिदेवी एक कोणा पर जांद. प्रकाश तखी शांतिदेवी पर केंद्रित होंद. बाकि लोग फ्रीज हवे जांदन. शांतिदेवी अपणा मन की बात ब्वल्द दिखेंद.)
शांतिदेवी: केदारनाथ आपदा कू आकलन न ता सरकारन सही करि अर न कै स्वतंत्र संस्था न! मीडिया न भी क्वी रिपोर्ट ठीक-ठाक ढंग से नी दिखैनी. यीं आपदा न समाज, संस्कृति अर आर्थिकी पर जु प्रभाव डालि, तैतैं ठीक होण मा साख्यूं लग जाली! (विराम) जु सैकड़ों जवान नौनि विधवा ह्वेनि गांव कि तौंकु क्य होलु? जु बच्चा अनाथ ह्वेनि तौंकी पढाई कु क्य होलु?  जु बूड-बुढया यखुलि रै गैनि तौंका बुढापा कु क्य होलु? अर, देश-दुनिया का जु हजारु-हजारु लोग तैं आपदा मा म्वरिगेनि, तौंकु गिणती कु काम कु करलो, अर तौंका परिवारु तैं कैन दिलासा दिलौण? सरकार भौत ब्वलद कि चारधाम उत्तराखंड की लैफलेन छन, पर मी यु जण चांदु कि यख जू मनखी बच्यां रै गेनी, वूंकी लैफलेन कु क्य होलो?

(प्रकाश मठु- मठु मलिन ह्वैकी विलीन ह्वे जांद.)


दृश्य-बारह
गोधूलि का बाद कु समय. शांतिदेवी, चखुलीदेवी, फुंद्या पदान, बैशाखी लाल, पुरुषोत्तम बडोला अर प्रताप सिंह नेगी सबी लोग वापस गांव पौंछि गैनि. जनि सि पंचैति चौक पर पहुंचदन, फुंद्या पदान अचणचक जोर-जोर से चिल्लाण लगद. 
फुंद्या पदान: न्हैजी, ऐसा नहीं होता है! यु सब बकबास छ. ग्रामसभा इनि नि चली सकद जन ई प्रधानिजी चलाणी छन. यी सब किताबि बथ छन. मि जब प्रधान छौ तब गांव का काम कराण का वास्ता मिन क्या-क्या नि करी! कै-कै तैं पीठें नि लगाई. अर सि बीडीओ जै तैं मिलि आयां, तैन क्य पीठें नि लगवाई?
चखुलीदेवी: क्य छां तुम ये पंचेती चौक मा बड-बड करणा? जरूर लगवाई ह्वली तैंन भी पीठें पर तुम भि तैयार बैठ्याँ राइ होला पीठें लगाणुकु. मि यू बोन चांदू कि अगर तुमरो अपनो हिसाब ठीक हो ता कैकी हिम्मत नी ह्वे सकद पिठाईं लगवाण की. व्यवस्था बहुत गड़बड़ छ पर मि दिखौलु कि ईं व्यवस्था मा भी काम करे सकद. निराश हूण से काम नि चलद. आप भला त जग भला! (विराम) अर हां, बीडीओ सा’बी से मेरि अर हमरी ग्रामसभा की शिकैत तुमन करि छाई?
फुंद्या पदान: कै हौरन करि ह्वालि. भौत लोग छन दुश्मन ये गांव मा!
चखुलीदेवी: मी सब पता छ. जब तुमन इथगा भ्रष्टाचार करि तब ता कैन तुमरी शिकैत नि करि. अब मी पारदर्शिता अर ईमानदारी का साथ ग्रामसभा कु काम कन की कोशिश कनु छौं ता तुमरा पेट मा पिड़ा उठणी छ.
फुंद्या पदान: भौत देखनि तेरा जना पारदर्शी र आदर्शवादी! जैतैं खाणु नि मिलद सी होंद आदर्शवादी! क्य होंद या पारदर्शिता और लोकतंत्र! नयी-नयी प्रधान बणी, त्वेतैं होश आण मा ज्यादा टैम नि लगण!
चखुलीदेवी: मीं अपना गांव अर यखक लोखु तैं बदली दिखौलु. हर समय अर काल मा इना लोग ह्वेनि जौन बथों का विपरीत चलिकी बड़ा काम करनी.
शांतिदेवी: हमरि नेता कन हो, चखुली प्रधान जन हो!
सब एक साथ (फुंद्या पदान तैं छोडीक): चखुली प्रधान जन हो! चखुली प्रधान जन हो!
फुंद्या पदान: चखुली प्रधान, तेरी चलि नि सकद कबि! यीं व्यवस्था मा भ्रष्टाचार का अलावा कुछ ह्वे नि सकद. मी भी पैलि ईमानदार पदान अर फिर ईमानदार प्रधान छौ. पर, व्यवस्था अर व्यवस्था चलोंण वाला लोखु ना मीं तैं सब समझै दे. अर फिर मी उनि ह्वे ग्यों जन सी व्यवस्था का ठेकेदार छन.
चखुलीदेवी: तुम कमजोर आदमी छां. तुमरा बस की बात व्यवस्था से टकराण की नी छयी. आप मेरा पति छन पर मेरि प्रेरणा कभि नी बणि सक्यां, किलैकी तुमन इनु क्वी काम ही नी करी! (सोचदा-सोचदा) अर चला, सच-सच बता कि बीडीओ सा’ब से आपन मेरि अर ग्राम सभा कि शिकैत किलाइ करि छै? अर कथगा बार करि शिकैत?
फुंद्या पदान: मिन क्वी शिकैत नि करि! किलाई कन छै मिन? मीं तैं तु मूरख समझदि?
चखुलीदेवी: तै बारा मा कुछ नि बोल सकदु पर शिकैत जना काम आप ही करि सकदां! चला खैर, तुमसे ज्यादा उम्मीद भी नि छै. उन भी विभीषण अर जयचंद ता हर युग अर काल मा पैदा होंदन!
फुंद्या पदान: गलत! त्वेतैं सिन नि ब्वलयूं चैंद. नयी-नयी प्रधान बणी, मीं से सिख्यूं चैन्द! 
चखुलीदेवी: चुप रावा! मेरि प्रेरणा का स्रोत हौर भौत से लोग छन. (कखी दूर ब्रह्माण्ड मा देखद अर मंच का अग्रभाग मा आंद.) अर, भैर क्या जाण? अपणा उत्तराखंड मा ही इनी कै महिला छन. बिश्नीदेवी साह, टिंचरी माई, तुलसीदेवी, रेवती उनियाल, गौरादेवी, गंगोत्री गर्ब्याल, विमला बहुगुणा, बचेंद्री पाल, प्रतिभा अर तारा मिश्र, बौंणीदेवी, राधा भट्ट अर अब सुशीला भंडारी जनि भौत सी उत्तराखंडी महिला छन जु मीं तैं प्रेरणा देंदीन. (पदान से) अर सुण ल्या, मेरु नौ चखुलीदेवी रावत छ पर मीं छौं ऊंचाकोट ग्राम की प्रधान, चखुलि प्रधान! महिला प्रधान! तुम म्यरा पति छां पर कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति! कबि नि ह्वे सकदां प्रधानपति!! 
(पदान का अलावा सबि लोग चखुलीदेवी तैं कुछ पल तक देखदी राइ जांदन अर फेर जोर-जोर से ताली बजाण बैठदन. एका साथ कोरस-द्वय प्रवेश करद अर सबि कलाकार भी कोरस मा परिवर्तित ह्वे जांदन. सबि एक-साथ गाण लगदन.)
कोरस: ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे
समै भी हौड़ फरकण लैगे, हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, ऐगे जमानू ऐगे!
चखुलिन उठ्यालि डंडा, उठ्यालि डंडा!
चखुलिन उठ्यालि झंडा, उठ्यालि झंडा!
ग्रामसभा चललि मिलि-जुलिकि
बस यी अब गौं कु फंडा, गौं कु फंडा! 
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे!
ऐगे जमानू ऐगे, समै हौड़ फरकण लैगे...
(कोरस कर्टन काल में परिवर्तित ह्वे नमस्कार की मुद्रा में आइ जांद. प्रकाश मलिन होण का साथ-साथ पर्दा मठु-मठु निस आंद. गीत का बोल अभी भी कंदुडू मा गुंजणा छन.)
समाप्त.
(09/10/2015, 2049 बजे.)
संशोधन: 28/10/2015, 14/11/2015, 23/11/2015 और 20 से 25/04/2016 तथा 27-28/04/2016.
Copyright @Suresh Nautiyal , Delhi 2017
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Bhishma Kukreti

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शीर्षक....."ल्या जी चा"
(पूर्णत काल्पनिक लघुकथा स्वरचित द्वारा सुनील भट्ट दिनांक 24/04/2017)

पात्र : केवल चार (बूढ्या, बुढड़ी, ऊ छोरा अर ब्वारी)

कहानी  कु संक्षिप्त सार...बुढ्या जी दिल्ली सरकार  (सैद से जलनिगम) मा बटै एक छोटा से पद पर छा अब त खैर कै बरस पैली रिटैर ह्वैगैन । सिरफ बुढ्या जी कु नौनु बुढ्या जी दगड़ी दिल्ली मा पढै करदु छौ अर बकै तीन नौनी दगड़ी बुढड़ी कुछ साल पैली तक त घौर मै (पहाड़ गौं मा सैद से सतुपुली जनै ) रैंदी छै।।
जिंदगी भरै कमै धमै 3 नौनी अर 1 मात्र नौनु पढांण, तौकु ब्यौ अर रिस्तादरी निभाण मा खत्म ह्वैगै .....बकै जु थोड़ा भौत पैसा बची बी छन त नौनन जिद्द करि कि ना जी पहाड़ नी जाणु अर वन बी लुखौं सिक्यासैरी मा....तब बुढ्या जीन दिल्ली मा ही बुराड़ी, कै तंग गली मा 50 गजौ मकान खरीद ल्हे। अर बुढड़ीन जी क्य कनु छौ यखुली घौर मा बुढड़ी बी दिल्ली ऐगै छै । जिंदगी कटेणी चा, नौनु कबि ईं कंपनी त  कभी वीं कंपनी मा सुद्धी धक्का खाणु । ........(अग्नै पटकथा)

प्रथम दृश्य:
पर्दा पर पात्र तथा कलाकार परिचय दगड़ी द्वी जनान्यौं आवाज़ (बैक ग्राउण्ड) सुणैदी।

ब्वारी: ल्या जी चा..

बुढड़ी(सासु) : हे दूध आणी दे मिन नी पीण्या स्यू कालु पाणी।
(तब्यरौं रसोई मा बटै घड़म कप फुठ्याँ सी आवाज़ दगड़ी  पर्दा पर  बुढड़ी मुखड़ी  दिंखेदी)

बुढड़ी: क्य ह्वै ये ब्वारी

(ब्वारी रसोई मा बटै)
ब्वारी: जी कुछ ना....

(सब्बी दृश्य बुढ्या जी कु दिल्ली बुराड़ी 50 गजौ मकान भितरै छन जैमा एक कमरा से थोडा से अगनै लगीं रसोई छ, ब्वारी किचन मा काम धाम करदी झल झल सी दिखेणी छ।  टैम सुबेर, 8 बजे गर्म्यौं का दिन)
(तब्यरौं लैट भागी जांदी अर पुराणु सी टैबल फैन का पंखुड़ा धीरे धीरे रूक जांदन टेबल फैनै मुख पर कुर्सी मा बैंठीं बुढड़ी परेशान..... झुल्ला यानी क्वी कपड़ा हिंलाद हिंलाद)

बुढड़ी: दा कनी आग लगी रै ईं लैट पर, जप्प आणी छ अर जप्प जाणी च ....(बरड़ा बरड़ी) अर यू बुढ्या कख म्वरी होलु कबरि बटै जयूँ दूध ल्हीणौ, सुबेर बटै चा नी पे, चा की टपटपी लगीं, फक्या द्यखुदू छौं कै देश चलगे यू बुढ्या ....
(बुढड़ी कुर्सी मा बटै उठदी अर देली मा बटै भैर जनै तंग गली मा बुढ्या तै ह्यरदी तब्यरौं द्यखदी कि बुढ्या जी त दूधै थैली पकड़ी बीच गली मा खड़ा एक ज्वान छोरा(ऊ) दगड़ी गप्पों मा मिस्याँ त बुढड़ी गुस्सा मा जोर से देहली
मा बटै)

द्वितीय दृश्य : (बुढड़ी देली मा बटै गली का बीचोंबीच  गप्पौं मा मिस्याँ ऊँ द्वीयौं तैं देखी)

बुढड़ी: हे मिन त चितै जणी तुम वखी जुगा ह्वैग्याँ, हे ब्वै दस घंटा ह्वैगैन तुमतैं.....गप्प लगाणौ क्या छ ....बड़ा ट्रक चलणा छन जणी तुमरा 
( बुढड़ी आवाज़ सुणदी पर्वाण ऊ द्विया  बुढड़ी जनै औंदन)

बुढ्या:  ( घौर मा भितर जांदू , पिरूपरू मुख कैरी  ) आणु छौं क्य ह्वैगे, सुबेर सुबेर दिमाग़ खराब न कैर यार

बुढड़ी: बुढैग्या पर कबि नी सुधरण तुमन....
(तबर्यो बुढड़ी तै ऊ छोरा प्रणाम करदु)
(बुढ्या जी की भितर बटै आवाज सुणैदी ल्या ब्वारी यू दूध छ)

ऊ छोरा: बोड़ी प्रणाम ।

बुढड़ी: प्रणाम ब्यटा, खूब छै रै तू ...क्या छ रै भितर औण मा डैर लगणी त्वै......भैरै बटै हैं....कतग्यै  दिन देखी याली मिन त्वै यखु फुंड जांदी.....   पण एक दिन बी तू
ऐजा  भीतर द्वी घड़ी त बैठ...अरे तुम त ये परदेश मा बी परदेशी ह्वैंग्या रे .....

ऊ छोरा : न बोड़ी तन बात नी

तृतीय दृश्य : (घौरै भीतर)
(बुढड़ी दगड़ी ऊ छोरा बी भितर ऐ जांदू ....तबर्यो जप्प लैट ऐ जांदी .....बुढ्या जी एक किनारा बैठी पिरूपिरू  मुख कैरी अखबार द्यखणा)

बुढड़ी : दा बुबा दैणु ह्वैगे रै तु तेरा औण से लैट बी ऐगे । हे म्यरा गरमा....हे ब्वै उस्यै ग्यौं मी ईं दिल्ली मा...
अछै  तेरी ब्वै खूब च रे..कतग्या दिन बटै नी देखी मिन..तेरी ब्वै, अपड़ी ब्वै लेकी नी ऐ सकदी हैं तू यख... .कतग्या निर्दयी ह्वैग्याँ रै तुम भैर ऐकी......

(ऊ छोरा हरिबी झल्ल झल्ल किचन मा ब्वारी जनै द्यखुणू  ज्वा कदण्यौ मा फोन लगै छुयू पर मिंसी छ अर कबर्यों जोर से हंसणी सैद से ड्यूटी पर जयूं अपड़ु जवैं दगड़ी छ्वीं लगाणी )

ऊ छोरा: कख  बोड़ी मेरी प्राइवेट नौकरी, टैम ही नी मिलदू बुन्या । अर कैदिन छुट्टी होंदी बी च न..  त दुनिया भरै काम। अर माँ की तबियत बी खराब रैंद...तू त जणदी  ही छै न...

(बोड़ी जरा ब्वारी तै सुणै तै)
बोड़ी: हाँ बेटा अपड़ी ब्वैकु खूब ख्याल रखुणू रै...याद रखणु रे ईं बात तैं कि ब्वै नी मिल्दी दुबरा ....ख़ूब सेवा कन ह्वाँ ब्वैकी..अर ह्याँ ब्वारी बखैंया मा नी आणु ह्वाँ ......

(बुढ्या जी खौल्यां सी  द्यखणा त रसोई मा बटि ब्वारीन जणी हल्कु हल्कु सी सुणी द्या)

( ब्वारी कन्द्यूड़्यौ मा बटै  फोन हंटादी अर भैर बैठ्या सब्यौं जनै चुल चुल द्यखदी)
ब्वारी :(फोन पर)  एक मिनट ह्वाँ....

(सबी एक दूसरे जनै द्यखणा तब्यरौं बुढड़ी बात टाली देंदी)

बुढड़ी: अरे मी त पुछण ही भूली ग्यौं ..आज कख च तेरी दौड़ हुणी बैग सैग पकड़ी सुबेर सुबेर  ।

(ब्वारी  फिर से फोन पर .मिसे जांदी ..ब्वारी कु किचन मा बटै मुख दिखेंदू... फोन तैं खचर्वणू दिखेदू.)

ऊ छोरा: बोड़ी जरा  काम से जाणू छौं आज पहाड़ ।

(पहाड़ नौ सुणदी पर्वाण बोड़ी थकान दूर, मुखड़ी मा मौल्यार एक लालसा पहाड़ प्रेम की भावना उभरदी)

बोड़ी: अहा बेटा कनि जैलू रै तू मेरू मुलुक, (स्मृतियों मा सी ख्वै जांदी) पहाड़ै ठंढी हवा पाणी, साफ सुन्दर वातावरण, खाणी पीणी,भला लोग, भलु समाज अछै बुबा हम कुणै त हर्ची ग्या रै सब कुछ ......(अचाणचक बात पलट देंदी)
हे बाबा आजकल्यौं काफल पक्याँ होला, काफल ल्हैयै ह्वाँ,

ऊ छोरा: बोड़ी मी .......
(बोड़ी तब्यरौं वैतैं बीच मा टोकी देंदी अर बोड़ी कु मुखड़ी मौल्यार देखी ऊ छोरा बी कुछ नी बोली सकदू)

बोड़ी: बुबा हमरी कुड़ी पुंगड़ी, डाली बूटी देखी ऐजै ह्वाँ,
अर गौं गल्यौ मा सब्यौं कुणै मेरी सेवा सौंकी जरूर कै बोली दे ।

(वै छोरा मुखड़ी .......कुछ ब्वन चाणु पर बोली नी सकणु बुढ्या अखबार पढणा बहाना करि कबर्यों कबर्यौं मुख बी मड़काणु)

ऊ छोरा: बोड़ी ऊ ह्याँ.....

(तब्यरौं बोड़ी फिर शुरू)

बोड़ी: बुबा ह्याँ संजू ब्वै कुणै बोली दे कि बुन तदगै साल बटै कटणी  छै तू हमरू घास, डाल बूटी ...चार सौ रूप्या सालै देणा छ्या....वीन करार कैरी छै
सात साल ह्वैगैन आज सात साल,  अर सिरफ ह्याँ द्वी  बार भिज्याँ वीका चार चार सौ रूप्या ......
हाँ एक दफै पाथैक गैथ अर जरा कोदू पिस्युँ धौ भिजवाई  वीन जरा...वीकुणै बोली दे कि एक  द्वी माणी  घ्यू (घी) ही भेजी दे.बुन.....बतै दे बोड़ी की तबियत भौत खराब च .....भौत कमजोर ह्वैग्या बुन ।

(बुढड़ी की बात सूणी बुढ्या अर ऊ छोरा एक हैंकौ मुखड़ी देखी जरा ज़रा मुस्काणा)

बुढड़ी की बरड़ा बरड़ी ....: हे राम बाबा तिल बी सूण, बल औ। ह्याँ  मुड़्या खोला क संतोषी बाबा लमड़ीन बल परस्यौं फुन अर.अब झणी कन .छन धौं... रंत न रैबार.....न कैकु फोन न कुछ...जरा ऐजै बाबा ऊंतैं .देखी..

(बुढड़ी कु भौत देर बटै कड़कड़ाट सूणी तब्यरौं बीच मा बुढ्या तैं  चिंगै)

बुढ्या: अबे बुढड़ी कैबरी बटै एकछ्वड़ी  कचर कचर कचर कचर लगीं...निरभै बौल्याऊ औलाद, हैंकै जम्मा नी सुणदी .....अपड़ी अपड़ी लगांणी बस...नी जाणू ऊ गौं, अपड़ा काम से जाणू कखी।

(बुढड़ी फटकरै सी ग्याई)
बुढड़ी: त कख, कख जाणू यु....हे पैली त बोली वैन कि मी  पाड़ जाणू छौं

बुढ्या: अबे निरभगी  (तबरयौं बीच मा ऊ छोरा)

ऊ छोरा: ओहो बोड़ी जाणू त मी पाड़ ही छौं पर मीन घौर नी जाण बुनै, गौं नी जाणु  मीन त बस सतपुली तक जाण
माँ की पेंशन चक्कर मा, माँ की पेंशन गड़बड़ी हुईं जरा, बैंक मा पता कन, राति  कोटद्वार रैण मिन अर... सुबेर ल्याखम सतपुली काम करै अर  ब्यखुनै कैं बी हालात से वापिस ..

बुढड़ी: हे त पैली बटै नी बतै सकदू छ्या तु ....वैबरी बटै लाटु समझणु छै हैं  तू मितैं

बुढ्या: अर तिल ब्वलण बी द्या वैतैंई, बौल्या जन बरड़ बरड़ बरड़ बरड़, गिच्ची द्याखोदी तेरी कैंची से बी पैनी ....
बीच मा बोली की कैन कटैण च ...वन त खूब कणाणी रैंदी तू राति दिन हे ब्वै मीतैं यनु ह्वैग्याई तनु ह्वैग्याई, मुड़्याबीस्सी  ह्वैग्या....

(बुढड़ी गुस्सा मा)

बुढड़ी: हां त भौत पैंसा खर्च करिनी न तुमन म्यरा इलाज पर,  कैदिन बटै ब्वनु छौं कि मीतैं जरा गौं ल्हीजा गौं ल्हीजा....पर यनु म्वर्यू च तुमरू....(दांत कीटी की)

बुढ्या: अर छैं च त्वै पर बसागत, द्वी फलांग चलदी पर्वाण अब तेरी जीभ भैर ऐ जांदी, नखरा कन बैठी जांदी तू

बुढड़ी: (हल्की रूंणी सी़..... तू तड़ाका पर ऐ जांदी) हे यनु म्वरी ऐकु ...हे ब्वै म्यरा दुख ऐतैं नखरा दिखेदन....पैली त खाणी खुराक होंदी ...(गुस्सा मा) ह्याँ नखरा त तुमरी ब्वै करदी  छै, म्वरदी म्वरदी तक चुसणी रया मीतैं .....सेवा कना कुणै  तुमरी  नौकराणी कनी धरीं छ्या मी..

(ऊ छोरा तमशगीर बणी अपड़ा मुखौ हाव भाव बदलणु ....तबर्यो वैकी नजर फिर रसोई मा काम पर दगड़ी फोन पर बात करदी ब्वारी पर फिर से जांदी किलै कि ईं दा ब्वारी फिर से जरा जोर से हंसदी)

ब्वारी: (फोन पर) हा हा हा हैलो..हैलौ..  सुणणा छौ अपरी ब्वै कु करड़ाट .....
( फ़िर से फोन पर लगी जांदी)

(बुढ्या बुढड़ी कुणै)

बुढ्या:ब्वै की सेवा करि त क्वी ऐसान नी करि त्वैन,  पितृों कै (सासु की सेवा) प्रताप आज बचीं बी छै नथर कैदिन .....

(तबर्यो ऊ छोरा बीच बचाव)

ऊ छोरा: अरे बोड़ी किलै तुमरू इतरी सी बात मा इतरू बड़ू उफदरू खड़ू कर्यूँ, भैर परदेश च यू परदेश

(वैकी बाच सूणी बोड़ी और गरम)

बोड़ी: हैं क्य बोली त्वैन ऊफदरू ....मी कनु ऊफदरू हैं (गुस्सा मा) अरे उफद्यर्या  (उफदरया) तू छै तू , फजल ल्याखम ऐगे मेरा घौरम काल सी बणी, सर्या दिन खराब कैद्या हमरू

(ऊ छोरा फटकरै सी जांदु, ब्वारी सी जनै द्यखुदू त ब्वारी अणदिख्या कैरी फोन पर मींसी तब ऊ बोड़ा जनै द्यखुदू अर अपड़ी बेजती सी समझी खौल्यूँ सी)

ऊ छोरा:(थोड़ा गुस्सै सी) बोड़ा तुम लुखौं दिमाग़ न....

(तबर्यो बोड़ा तिलमिलै की)

बोड़ा: अबे क्या पागल चिताणी छैं हमतै हैं,  चल फुंड सटक यखमा बटै ...क्या रै  हमरू दिमाग.क्या...क्या बुन च्हाणी छै तू

(ऊ छोरा बेचारू  फटकरै सी, एक नकली सी हंसदू,  दगड़ी घैर से भैर(बाहर) आंदू आंदू कुछ गिच्चा मा बड़बड़ांदु)

ऊ छोरा  (हरिबी घौर से भैर जांदु) हम्म(नकली हंसी) मीतैं त यनु कि तुम सब्या का सब्बी बौल्यै ग्या जणी, यु घौर ना तुमरू पागलखाना छ.....हट्ट कबि नी अण्या मी तुमरू घौर.....

(ऊ छोरा चली जांदू, बुढ्या जी दाड़ी बणौण मा लगी जांदन, बुढड़ी टेबल फैन अगनै बैंठी लम्बी लम्बी  सांस ल्हेणी अर अपड़ा आप ही बड़बड़ाणी)

बुढड़ी: हे ब्वै कनु जोग च म्यारू... हे भितरै त ह्वाई ह्वाई अब भैर का बी  प्वड़ी गैन म्यरा चाड़ी ....दा रै जोगा़. दा रै जोगा़ ..... (अपरू कपाल पर मरदी हथन)

(तब्यरौं ब्वारी थाली मा चार स्टील का गिलास्यौं मा चा लेकी नप्प बुढड़ी अग्नै)

ब्वारी: ल्या जी चा

(बुढड़ी  खोल्या सी चा गिलास द्यखदी त चा कु रंग कालु) बुढड़ी : हे दूध कख च

ब्वारी : जी ऊ त बितड़ीगे

(बुढड़ी पिरूपिरू मुख कैरी ब्वारी तै मुड़ी बटै माथा तक द्यखदी अर ब्वल्दी)

बुढड़ी: दा बुबा दूध क्या बितड़ी, मेरू जोग बिरड़िगे बुनै  जैंदिन  बटै......(इशारा ब्वारी जनै ही)...
(अर यनु ब्वल्दी ब्वल्दी हथ्यौन इशारा करदी कि फुंड ल्हीजा तैं चा तैं, अर मुख पर हथ लगै बैठदी ही च कि जप्प फिर टेबल फैन का पंखुड़ा धीरे धीरे  रूक जांदन अर बुढड़ी परेशान झुल्ला हिलांद हिलांद  हवा कुणै)

बुढड़ी: दा यनु बिजोग प्वड़ी रै ईं लैट खुणै .....हे ब्वै म्वरूदु छौं मी........ (बुढड़ी खुणै रकर्याट)

(इसी के साथ यह गढवली संक्षिप्त कहानी खत्म होती है)

पूर्णतः काल्पनिक स्वरचित/**सुनील भट्ट
24 /04/2017

Bhishma Kukreti

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चक्रव्यूह नाटक पर डा डी आर पुरोहित का खुलासा
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बहुत शोधपरक लेख। 1901 के आसपास वचनराम(गैरोल) आर्य और चन्द्र सिंह बुटोला(जो बम्बई के रंगमंच के कलाकार थै) ने चक्रव्यूह को पाण्डव चौक से उठाकर खुले खेतों तक पंहुंचाया। अभिमन्यु को रथ पर विठा कर विजय जुलूस की शक्ल में खुले खेतों में बने चक्रव्यूह तक ले जाने का विचार भी इन्हीं दो का था। पहला चक्रव्यूह कण्डारा गांव में हुआ था। उसके बाद चापड, बावई और उखीमठ में भी होने लगा।फिर पूरी घाटी में होते हुए टिहरी के अखोडी़, मुण्डेती, ठेला और उत्तरकाशी धनारी में भी होने लगा।
1995 में मेरे अनुरोध पर आचार्य कृषणा नन्द नौटियाल ने दे वर गांव की चक्रव्यूह स्क्रिप्ट का गढवाली अनुवाद कर कण्डारा(जहां वे उस समय अध्यापन कर रहे थे) गांव के कलाकारों के माध्यम से 1995 में कौथिक देहरादून और फिर उसी वर्ष ग्रीष्मोत्सव पौड़ी में मंचन भी करवाया। किन्तु चक्रव्यूह मंचन की शैली गढवाली भाषा के अलावा नौट़की और पारसी शैली में ही रहा। 1998 अगस्त माह में मैने और नौटियाल जी ने नवोदय विद्यालय जाखधार में चक्रव्यूह कार्यशाला शुरू की किन्तु 18 अगस् 1998 के भीषण भूस्खलन ने इसे बाधित कर दिया और नौटियाल जी ने किसी तरह कार्यशाला को वाइन्डअप किया।

फिर 2001 में रीच देहरादून के आर्थिक सहयोग व विद्याधर श्रीकला श्रीनगर के सहयोग से गान्धारी गांव में सुरेश काला की अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंचीय दृष्टि से गढवाली भाषा, वेशभूषा, और हावभाव के साथ इसनाटक की प्रस्तुति तैयार हुई जिसमें श्री प्रेम मोहन डोभाल, डां शैलेन्द्र मैठाणी, शैलेन्द्र तिवाड़ी, मदनलाल ड़गवाल, राकेश भट्ट, किरणदास और गौतम सुण्डली एवं अरविन्द दरमोडा़ का प्रमुख सहयोग रहा। श्री सर्वेश्वर काण्डपाल ने 7 दिन और आचार्य और कृष्णा नन्द नौटियाल ने 2 दिन बैठकर डायलौग लिखे जिसे रंगमंचीय ढांचा मैने दिया।

Bhishma Kukreti

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शिल्पी , समाज और सरकार साथ मिलकर  ही गढ़वाली नाटकों को पुनर्जीवित कर सकते हैं - डा .डी.आर. पुरोहित
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(गढ़वळि नाटक पुनर्जीवितिकरण पप्रसिद्द लोक नाट्य सक्रिय शिल्पी डा .डी.आर. पुरोहित दगड़ भीष्म कुकरेतीअ   टेली -छ्वीं )
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भीष्म कुकरेती  - जी डा साब ! अजकाल दस बारा सालुं बटिं गढ़वळी नाटकुं मा सुन्नपट्ट हुयुं च। 
डा .डी.आर. पुरोहित- हाँ दिखे जावो तो राष्ट्रीय स्तर पर बि इनि कुछ  ..
भीष्म कुकरेती  -ना पर मुंबई , पुणे मा मराठी नाटकों मा दुबर रंगत ऐ गे , मुंबई मा अब गुजराती नाटक खूब चलणा छन अर मुंबई म हिंदी नाटक बि अब ठीक ठीक चलणा छन।
डा .डी.आर. पुरोहित- हाँ वो तो च किन्तु गढ़वळि नाटकों की सबसे बड़ी परेशानी च बल इखमा नाटक का समझदार नाट्य लिख्वार नि छन , एकाद अपवाद हो  तो हो।
भीष्म कुकरेती  -मतलब जड़ नाट्य लिख्वार की सबसे बड़ी समस्या च।
डा .डी.आर. पुरोहित- बिलकुल सबसे पैल नाटक की समझ वाळ नाटक ल्याखन तो नाटक विधा अगवाड़ी बढ़णो बाटो साफ़ होलु। दिखणेर  तो तबि आकर्षित होला कि ना ?
भीष्म कुकरेती  - माना कि नाट्य लेखक मिल बि जावन तो मंचन की समस्या तो उख्मी च कि ना ?
डा .डी.आर. पुरोहित- जी आज मंचन खासो मैंगो ह्वे गे तो इखमा सामाजिक संस्था , समाज अर धनी वर्ग तै समिण आण पोड़ल।
भीष्म कुकरेती  -जी कन ?
डा .डी.आर. पुरोहित- सामाजिक संस्थाओं व धनी वर्ग तै मंचन व्यवस्था करण पोड़ल अर समाज तै अपण खीसा से कंळदार खर्च करिक नाटक दिखण पोड़ल।
भीष्म कुकरेती  -जी हाँ जनता तै पैसा लगाणो ढब डळण पोड़ल। 
डा .डी.आर. पुरोहित- अर उत्तराखंड सरकार तै याने संस्कृति विभाग तै विजनरी ह्वेका नयो  शिरा से आधुनिक नाटकों का संवर्धन , संरक्षण का वास्ता योजना बणाण आवश्यक च।  आज  की स्थिति तो भयानक च।  संस्कृति विभाग बस एक तुर्री बजाण वळ विभाग बणी रै गे। 
भीष्म कुकरेती  -याने कि नाट्य शिल्प , समाज व संस्कृति विभाग तै एक दगड़ी ह्वेका काम करण से ही नाटक विधा माँ सुधार आलो।
डा .डी.आर. पुरोहित- बिलकुल तिन्नी स्तम्भ जब तक मीलिक काम नि कारल  नाटकों विकास असंभव च।
भीष्म कुकरेती - जुगराज रयाँ। 


Bhishma Kukreti

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  क्या नेहरु विरासत धरासायी  की जा रही  है ?
 ( अति लघु नाटक )

   नाटक  कृति : भीष्म कुकरेती 'चबोड़ाचार्य '

s =का , को , कु , क

 युग -   आठवीं से दसवीं सदी मध्य समय

थान - माणा गाँव मत्थि उड़्यार
-
माणाs व्यास - हैं हैं ! क्या भै कंदूर्या ! सुबेर सुबेर ! बरफ बण्यु पाळु  बि नि  गौळ अर तु  इथैं  ? क्या बौद्ध सेना पैथर तिब्बत से आणि च ?
कंदूर्या - ब्राह्मण श्रेष्ठ ! ये ना ना गुरु श्रेष्ठ ! तुम बामणु बि ना ! पुड़क्या बामण तै बामण बोलि भट्याओ त  तिड़क जांदन बल ब्राह्मण श्रेष्ठ  कौरिs भट्याओ।  अर तुम सरीखों तै ब्राह्मण श्रेष्ठ बोलि भट्याओ तो तुमर चुप्पा क्या जंद्यो पर अग्यो लग जांद बल गुरु श्रेष्ठ ब्वालो।   
 माणा s व्यास - नारद को कलजुगी रूप कंदूर्या त्यार हास परिहास को अर्थ च तिब्बत से क्वी भय नी च आज।  बोल क्या समाचार छन जु तू बामण गाँव से बौद्ध गाँव माणा अर फिर इथैं उड़्यार म ऐ ?
कंदूर्या -  कत्यूर गढ़ पांडव स्थल से समाचार छन बल द्वी ब्राह्मण श्रेष्ठ या गुरु श्रेष्ठ बाट लग्यां छन।  अपुस्ट समाचार छन।  इन पता नी बल यी  ब्राह्मण भेष म बौद्ध योद्धा त नीन जु बद्रिकाश्रम तै अशोक स्तम्भ म परिवर्तन हेतु अयाँ होला ।  बात त बल संस्कृत या खस भाषा म करणा छन , कोर कोशिस  कार पर यूं दुयूंन पाली बोली म बात नि कार बल। 
माणाs व्यास - ओहो ओहो क्षमा तात ! मि महाभारत की सम्पूर्णता अर गुप्त सम्राटों सहायता से बेहंत प्रचार  पश्चात  चार सदी उपरान्त श्रीमद भागवत पुराण की सम्पूर्ण हूणै पुळ्याटम त्वै तै बथांद बिसरि गे थौ बल म्यार द्वी प्रिय शिष्य बणेली व्यास याने नयार  -गंगा संगम आश्रम का बणेली व्यास अर हिंवल -गंगा संगम फूल चट्टी  से पल्ली पार गूलर गाड आश्रम का गूलरगाडी व्यास मी तै मिलणो आणा छन। 
कंदूर्या - हाँ तबी बल ऊं म कुछ बोझ बि च बल।
माणाs व्यास - हाँ वत्स ! दुयुंम श्रीमद भागवत का भोज पत्रों म ऊंका रचित स्कन्द छन।
कंदूर्या - स्कन्द ?
माणाs व्यास - पुस्तक या भाग
कंदूर्या - पुस्तक  या भाग ?
माणाs व्यास - हाँ श्रीमद भागवत म कुल 12 स्कन्द छन अर चार स्कन्द  मीन रचिन , चार चार स्कन्द ऊं प्रत्येक व्यासन रचिन।
कंदूर्या - औ त  या बात च।  कथगा शोक होला भगवत पुराण मा ? !
माणाs व्यास  (रोष म ) - बत्स ! आज से कभी भी बगैर श्रीमद लगैक भागवत नि बोली हाँ।  कारण हम सब व्यास श्री विष्णु वाद प्रचारित प्रसारित करण वाळ छां।  तो जब तलक विष्णु विषय से पैल श्री या श्रीमद नि लगल आम मानव ये वाद तै पवित्र नि मानल।  विष्णु वाद तब ही आम मानवों मध्य प्रसारित होलु जब यु पवित्र की गणत म आलू अर यांकुण श्री विष्णु या श्रीमद भागवत पुराण नाम से उच्चारित हूण आवश्य्क च। 
कंदूर्या - औ औ ! बींगी ग्यों।  तभी तुम गुरु श्रेष्ठोंन माणा ग्राम का आस पास पर्वतो नया नया नाम धार श्री नर पर्वत श्रृंखला व श्री नारायण पर्वत श्रृंखला। 
माणाs व्यास - हाँ  अर श्री विष्णु वाद तै संबल दीणो वास्ता कथा बणये गे बल यी नारद  नर रूप म च व श्री कृष्ण  श्री नारायण रूप म छन ।
 कंदूर्या - तुम ब्राह्मणों बुद्धि से तो सच्ची भगवान श्री  बि मात खै  जाल  माणा s व्यास श्री !
 माणाs व्यास -  बत्स ! यो इ त समस्या च।  तुम कुछ समय बौद्ध भिक्षुऊं मध्य रै तो अभि बि चार्वक  सिद्धांत याने नास्तिकता की गंध बचीं च।  स्वयं कुछ समय उपरान्त श्री विष्णु को अस्तित्व तै मनण लग जैल।
कंदूर्या - गुरु श्रेष्ठ ! जब द्वी व्यास श्री अर ऊंक संग श्रमिक बि छन तो भोजन , सीणो व्यवस्था आदि  ?
माणाs व्यास -   हाँ नारद रूप कंदूर्या ! धन्यवाद।  करतिरी गढ़ राजा म रैबार भिज्यूं   बौद्ध आक्रांताओं से रक्षा वास्ता।  द्वी व्यास कम से कम एक मास तक राल , तो वै अनुसार भोजन व्यवथा।  भोजन बणानो सुमाड़ी का काळा  ब्राह्मणो कुण रैबार भेजी दे।  तदोपरांत एक मास उपरान्त म्यार पुत्र शुकदेव व दुयुं क शुकदेव शुकदेव पुत्र बि आला  वो बि रात दिन ये उड़्यार म इ राला। 
कंदूर्या -  एक शंसय निदान गुरु श्रेष्ठ ?
माणाs व्यास - क्या बत्स ?
कंदूर्या - तुम सब अपर असली नाम समाप्त करीक व्यास धरी लींदा।  इख तलक कि अपण नौनु नाम बि तुमन शुकदेव धरीं  छन किलै ? 
माणाs व्यास -  बत्स ! जो भी पुराण कंठस्थ कारल व रचल वैक नाम व्यास ही  होलु  . ये ही समर्पण से श्री विष्णु वाद प्रसारित होलु।  हम रचनाकारों पहचान जब नि राली तभी तो श्री विष्णु की पहचान बणली।  इनि जो भी भारत भर म श्री विष्णु वाद कु प्रचार प्रसार कारल वै तै शुकदेव बोले जाल।  रचयिता अर प्रचारक  अनाम ही रालो तो ही श्री विष्णु वाद की पकड़ पक्की होली। 
कंदूर्या -  वाह वाह श्री।  समर्पण की जय हो।
माणाs व्यास - श्री विष्णु की जय हो।
कंदूर्या -  तो मि चलदो छौं।  मध्य मध्य म अंतराल पश्चात आणु रौल।
माणाs व्यास -  भलो भलो।  हाँ कुछ भोज पत्रों को प्रबंध कर दे संभवतया श्री मद भागवत म कुछ सुधार की आवश्यकता पड़ जावो।
कंदूर्या -   अवश्य मि नीति ओर जाणु छौं त भोज पत्र बि लै औलु।
  प्रथम अंक समाप्त
  द्वितीय  अंक
थान - माणा ग्राम मथि उड़्यार
समय - कुछ अंतराल पश्चात
माणाs  व्यास मध्य म व समिण  द्वी व्यास बैठ्यां  छन।  तिन्युन समिण  भोजपत्र ग्रंथ छन।  तिन्युं हथ म गरुड़ पंख कलम।  काठक दवात।  आठ तरफ बड़ो माटो द्यू जळणा छन।
माणाs व्यास - तो बंधु ! हम हरेक  कन चार चार स्कंध रचिक  कुल  12 स्कंध रची आलीन। मीन यूँ चार दिवसों म सब श्लोक बाँची ऐन।
गूलर गाडी व्यास -हाँ अर 18000 श्लोक भी सम्पूर्ण ह्वे गेन।
बणेली व्यास - तो उत्स्व मनाये जाय आज।  अर शुकदेवों तैं भट्येक श्रीमद भागवत कु प्रचार कार्य सौंपे जाय।  प्रत्येक शुकदेव स्थान स्थान म जैक श्रीमद भागवत कथाओं प्रवचन  कारल।

माणाs व्यास - बंधु 18000 श्लोक से उत्स्व नि मनाये जै सक्यांद।
द्वी व्यास एक संग - क्या अर्थ  अब जब श्री मद भागवत कथा पुराण सम्पूर्ण ह्वे गे तो उत्स्व किलै ना 
माणा व्यास - बंधुओ ! सर्व तो कुशल च   श्री मद भागवत पुराण मा किन्तु कुछ बात अपूर्ण रै गेन।
द्वी व्यास - अपूर्ण  ? हमन तो एक सम्पूर्ण  वर्ष  विचार कार कि कै विषय अनुसार कु संकंध रचे जाल , कै सन्कध म क्वा क्वा कथा होली अर कैक कथा होली।
गूलरगाडs व्यास - हाँ हमन क्या तुमन बि प्रभु विष्णु तै देव नाम व पहचान म अग्रिम पंक्ति म बिठाणो बान वेद व वेद प्रतीकों तैं नेपथ्य म धकेल।  वेद देव व दिवतौं  तैं द्वितीय  क्या चतुर्थ श्रेणी म धौर फिर किलै श्रीमद भागवत अपूर्ण च ?
 बणेली घाटs  व्यास - बंधु गूलरगड्या व्यास सही बुलणा छन , हमन नाम पहचान मनोविज्ञान का सभी नियम पालन करीन  अर  भूतकाल का देव जन वायु , अग्नि , अश्वनी कुमार   देव देवियों ही ना  खस , किरात वीरों तैं बि खल पुरुष या खल महिला सिद्ध करी।  इखम वेदुं क्रमशः यता तै बि संयचित  राख।  अर वेद भावना , वेद सद्भावना तै या वर्तमान प्रसिद्ध देव देवियों तैं नेपथ्य म रखणो ध्येय से ब्रह्मा व सरस्वती सरीखों तै श्री विष्णु का समिण निम्न कोटि का देव देवी सिद्ध कर दे।
   माणाs  व्यास - हाँ नाम व नाम पहचान का मनोवैज्ञानिक नियमों पूरो पालन हम सब व्यासों न कार अर श्रीमद भागवत रचणो म कणाद कृत वैशषिकी को पूरो ख़याल राख व गौतम रचित न्याय दर्शन को भी पूरो ध्यान कार।  इखम तक तो ठीक च किन्तु एक बात फिर बि ध्यान म आण से रै इ गे।
  द्वी - तो कमी  पर प्रकाश डाळो
माणाs व्यास - लक्षणसंनिवेश , छवि , छविकरण  , अथवा लक्षणसंनिपात नियमों से वेद देवाधिदेव तैं श्री विष्णु का समिण  अति निम्न कोटि कु  देव सिद्ध करण आवश्यक छौ।  मि  वेद प्रमुख देव इंद्र की छ्वीं करणु  छौं।
गूलरगाडी व्यास - हाँ सत्य कि लक्षणसंनिवेश , लक्षणसंनिपात अथवा छवि -छविकरण नियमों से तो  वेद प्रमुख देव इंद्र तैं  निम्न से निम् कोटि देव सिद्ध करण  आवश्यक च।  हाँ पर भौत सा स्थानों म इंद्र तैं पद अभिलाषी , देव राज का अभिलाषी , स्वार्थी , इंद्र पद लालची व पद का खातिर निम्न से निम्न स्तर तक जाण वल दिबता सिद्ध हुयुं च श्री मद भागवत म
बणेली घाटs व्यास - श्रीमद भागवत की भौत सी कथाओं म इंद्र खस , किरातों याने राक्षसों से बि निम्न स्तर को कुकर्म करदो तो स्वयं ही इंद्र श्री विष्णु समिण  गौण देव सिद्ध ह्वे जांद।
माणाs  व्यास - संभवतया हम चार्वक गुरु वृहस्पति कु प्रतियोगिता व लक्षणसंनिवेश ,  लक्षणसंनिपात सिद्धांत अर्थात छवि व छविकरण नियमुं  तैं हम बिसर गेवां।
द्वी व्यास - कु सिद्धांत
माणाs  व्यास - चार्वक गुरु वृहस्पति कु सिद्धांत च कि यदि कै नयो नाम तै अति प्रसिद्ध करण तो पुराणों नाम तैं नया नाम से हरवाओ।  हमन श्रीमद भागवत म  कखिम बि श्री विष्णु द्वारा इंद्र तै पराजित नि करवाई। अर पराजित बि जन सेवार्थ  ही हूण चयेंद , अहम , स्वार्थ या पद हेतु पराजित कराण से इंद्र कु महत्व श्री विष्णु समिण निम्न  नि होलु।  जब श्री विष्णु जन सेवार्थ इंद्र तै पराजित कारल तो ही इंद्र निम्न स्तर कु देव माने  जाल।  जन मानस  म इंद्र की छवि कम करवाण आवश्यक च।  लक्षणसंनिवेश सब छवि को ही त खेल च।
बणेली घाट कु व्यास - हूँ ! हूँ !  तथ्यात्क सिद्धांत , सर्व सिद्ध सिद्धांत
गूलर गाडs  व्यास - हूँ ! हूँ ! विचारणीय कथ्य !  पुनः विचार आवश्यक च
बणेली घाट कु  व्यास - कुछ  योग याने जुड़न अति आवश्यक च।  श्री विष्णु  द्वारा इंद्र तै जन सेवार्थ पराजित करण आवश्यक च।
माणाs व्यास - हाँ तो क्या करे जावो ?
 बणेली घाट कु  व्यास - इंद्र तै जन विरोधी व विलंच , कामुक संबंधी द्वी लोक कथा प्रचलित तो छैं इ  छन। 
माणाs व्यास - कु कु ?
 बणेली व्यास - मध्य देश की लोक कथा कि इंद्र न गौतम मुनि की पत्नी से व्यभिचार हेतु खटकर्म करि छौ। 
गूलर गाडs  व्यास - अति सुंदर , अति सुंदर ! प्रसंसनीय विचार ! व्यभिचार से इंद्र की छवि बहुत ही निम्न स्तर की छवि बण जाली। 
माणा - अर दूसरी लोक कथा ?
बणेली व्यास - मथुरा म प्रसिद्ध लोक कथा जब इंद्र न बृन्दावन वासियों तै तंग करणो बान अति वर्षा करवाई अर श्री विष्णु अवतार श्री कृष्ण न वृन्दावन पर्वत से वृंदावन वासियों रक्षा कार व वृन्दावन वासियों तै सुख दे।
 गूलर गाडs व्यास - हर्ष !  हर्ष ! अति हर्ष श्री विष्णु द्वारा इंद्र की जनहित हेतु पराजित करण  यानी छवि सिद्धांत को पूरो अनुसरण।
माणा s  व्यास - हाँ हाँ ! वैशषिकी व गुरु वृहस्पति का छवि सिद्धांत अनुसार  द्वी कथा श्री विष्णु समिण इंद्र तैं म्लेच्छ जन देव सिद्ध करदन।  यूं द्वी कथाओं तै श्रीमद भागवत म योग करण आवश्यक च।  द्वी कथा इथगा  नाटकीय हूण चएंदन कि जन मांस म इंद्र की छवि म्लेछों से बि निम्न स्तर कि बण जाय ।
द्वी व्यास - हाँ हाँ नाटकीयता लाण आवश्यक च।
गूलर गाड कु  व्यास - किन्तु हमन त  18000 श्लोक रची ऐन।
माणाs व्यास - चिंता नि कारो द्वी कथा कम कारो अर श्रीमद भागवत म वृन्दावन प्रकरण व गौतम -अहिल्या प्रकरण जोड़ द्यावो।  हाँ अंत म 18000 श्लोक ही रौण चएंदन। द्वी प्रकरण म इंद्र निम्न स्तर कु सिद्ध हूण चयेंद अर ह्री विष्णु अति उदार , जन हित  कारी व स्त्री कल्याणकारी सिद्ध हूण चएंदन।  श्री राम द्वारा अहिल्या उद्धार व श्री कृष्ण द्वारा वृन्दावन म इंद्र गर्व मर्दन यथेष्ट पर्याप्त ह्वे जाल।
द्वी व्यास - साधु !  साधु ! सर्वोचित ।
माणाs व्यास - तो अब इन कारो बल
द्वी -क्या ?
माणाs व्यास - गूलरगड्या व्यास तुम मध्य देश की लोक कथाओं विशेषज्ञ छंवां त तुम गौतम -अहिल्या -इंद्र प्रकरण रचो।  अर बणेल घाट का व्यास श्री  तुम मथुरा विशेषज्ञ छंवां त तुम वृन्दावन प्रकरण रचो अर ध्यान रहे बल कुल श्लोक 18000 ही रावन अर संग संग इंद्र की छवि म्लेच्छों से बि निम्न बणन चयेंद अर श्रोता क मन म श्री विष्णु की निर्विकार ईश्वर की छवि उतपन्न ही नी हो अपितु सदियों तक सर्वेश्वर छवि ही रावो। कथाओं म नाटकीयता को सम्पूर्ण ध्यान रखण आवश्यक च। 
द्वी - भलो भलो
माणाs  व्यास - लगभग कति दिवसम यी द्वी अध्याय पूर ह्वे जाल ?
गूलरगाडs व्यास - लगभग एक सप्ताह
बणेली व्यास - म्यार अध्याय बि एक सप्ताह।
माणा व्यास - लिपिक गणेश की क्वी आवश्यकता  ?
द्वी - न न बिलकुल ना
माणाs व्यास - साधू साधू ! भोजपत्र , मसि : , मसिकूपी , रिंगाळ लेखनी , लेख मार्जक , कु पूरो प्रबंध च।  मि एक सप्ताह कुण तौळ जोशी आश्रम तक जाणु छौं।  वैष्णवी आचार्य से कुछ कार्य च।  भोजन आदि सब प्रबंध काळा ब्राह्मणों म सौंप्युं च तो क्वी समस्या नि  होली।  करतीपुर का सैनिक तिब्बती बौद्ध आक्रांताओं का ध्यान राखल।  शुभ हो शुभ हो।
द्वी व्यास - तुम्हारी यात्रा शुभ हो
तृतीय अंक
माणा व्यास उड़्यार
तीन व्यास व तीन शुकदेव
कंदूर्या  बि उपस्थित
माणाs व्यास - तो तिनि शुकदेवो ! समय पर पौंची गेंवा हैं ? पथ म क्वी समस्या त नि छे जांक निदान आवश्यक हो
सब शुकदेव - ना ना
माणाs व्यास - तो  तिनि शुकदेवो ! ध्यान लगैक सुणो।  प्रभु श्री विष्णु का आशीर्वाद से श्रीमद भागवत तैयार च।  तुम तै ध्यान से 18000 श्लोकुं तै स्मरण  करण अर सम्पूर्ण भारत भ्रमण पर जाण।  प्रत्येक शुकदेव तै   श्रुति शैली म अन्य शुकदेव तैयार करणन।  प्रत्येक शुकदेव तै ग्राम ग्राम जैक प्रवचन सुणान।  अर प्रवचन से ध्यान दीण कि इंद्र की छवि भूमिगत हो जाय।
सब शुकदेव - तुमारी आज्ञा सविनय पालन होलु।
माणा व्यास - शुभ यात्रा श्री विष्णु की जय हो
सब - जय हो जय हो विजय हो।
माणा व्यास - नारद रूप कंदूर्या ! यूं  सब्युं रक्षा प्रबंध , अर दूरगामी सूचना पौंछाणो प्रबंध कारो।  अब यी सब सम्पूर्ण भारत म श्री मद भागवत की सहायता से श्री विष्णु पंथ का प्रचार कारल।  अपण संसाधनुं पूरो सहायता द्यावो।
कंदूर्या - चिंता नि कारो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप म म्यार धर्म सूचना जाळ  च तो जालचक्र का प्रयोग  से सब शुकदेवों की सहायता करुल।
सब - शुभ हो शुभ हो।  श्री विष्णु की कीर्ति उज्वल हो , उज्जवल हो , उज्ज्वल हो।
चतुर्थ अंक
समय 2014 , जुलाई महीना 
स्थान - एक एयर कंडीशंड कॉनफेरेन्स हाल
कम्प्युटरीय बोर्ड पर बैनर पट्टिका च - मीटिंग ऑफ थिंक  टैंक ऑफ इंडियन पीपल्स   पार्टी
मुख्य सलाहकार वक्ता - तो इंडियन पीपल्स  पार्टी का मुख्य थिंकर्स या प्रचारक इन ओल्ड लैंग्वेज , मॉडर्न शुकदेव  ! तुमन आबि विष्णु धर्म छवि करण की फिल्म द्याख।  तो बताओ ब्रैंडिंग का हिसाब से कन लग
सब - एक्सेलेंट  एक्सेलेंट ओनली एक्सेलेंट !
सलाहकार - तो अब तुम क्या काम च ?
एक प्रचारक - सर कै बि नया राजनैतिक दल  को प्रथम कार्य च अपण प्रतीकों छवि बणान अर  दगड़म  प्रत्योगी दल का सबसे बड़ो रतीक तै छुट  करण  याने अनुपातिक सिद्धांत।  सबसे प्रथम जवाहर लाल नेहरू की छवि मर्दन आवश्यक च। नेहरू इज्म शुड बि  वाईप्ड  आउट फॉर अवर ग्रोथ।
सलाहकार - वेरी गुड।  इट इज अटमोस्ट इम्पोर्टेंट फॉर डिग्रेडिंग  नेहरू इज्म।  नेहरूवाद की समाप्ति ही इंडियन पीपल्स पार्टी  की जीत च । टोटल वाइपिंग ऑफ़ नेहरूइज्म इज मस्ट।  साथ साथ एक कार्य हैंक बि अनिवार्य च।
दुसर प्रचारक - यस सर ! मनमोहन इज्म तैं  नेपथ्य म रखण आवश्यक च
सलाहकार - एक्ससीलेंट एक्ससीलेंट ! मनमोहन इज्म पर आधार रखिक अळग चढ़न  आवश्यक च किन्तु दगड़ म मनमोहन इज्म तै नेपथ्य म पौंचाण बि  आवश्यक च।  मनमोहन इज्म की नींव म खड़ ह्वेका नेहरू इज्म का छत्या नास आवश्यक च।  जन वेद आधारित श्रीमद भागवत म वेदो मुख्य  देव इंद्र की तौहीन करे गे उनी मनमोहन इज्म का उदाहरणों से ही नेहरू की  छवि समाप्ति आवश्यक च। समझ म आयी कि ना ?
सब - जी जी नेहरू इज्म की मट्टी पलीत इनि हूण चयेंद जन श्रीमद भागवत मा विष्णु क समिण  इंद्र की मिटटी पलीत करे  गे.अर मनमोहन या नरसिम्हा राव तै नेपथ्य म डाळन  बी अत्त्यावष्यक च।
सलाहकार - वेरी गुड।  अब तुम सब प्रचारक अपण अपण उप प्रचारक तैयार कारो अर मनमोहन इज्म या नरसिम्हा राव इज्म तै नेपथ्य म डाळो अर महत्वपूर्ण च नेहरू छवि समाप्त करण या निम्न स्तर की छवि क्रिएट करण।  प्रत्येक माध्यमों से नेहरू छवि खराब कारो।  ऑल द बेस्ट फॉर डिमिनिशिंग एंड एडल्ट्रिंग नेहरू इमेज !

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती , 2018 bjkukreti@gmail. com ,

** नाटक का पात्र , कथा सर्वथा काल्पनिक छन ।  यदि कखि  समानता हो तो मि उत्तरदायी नि   छौं।

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Bhishma Kukreti

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Ramu Patrol: Garhwali Drama depicting the Unresolved Forest Conflicts existing from Ramayana Era

 (Chronological History and Review of Modern Garhwali Stage Plays)
(  Stage Play ‘Ramu Patrol ‘written by Kula Nand Ghanshala  )
Review by: Bhishma Kukreti (Literature Historian)
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 The question “Whose either state or the villagers right should be on the forest is unresolved from the time civilization started or copper era started. Ramayana story discusses through epical story the problems of right on forest (either by State is owner or villagers). The disputes or conflicts between state and villagers accelerate from British period when British declared rights of state on forests of Garhwal and leaving a small forest portion for the villagers. After independent, the situation worsened for ownership of forest or using nearby forest /forest produces by villagers and causing various environmental problems too.
  In Ramu Patrol drama, The famous North India language  Garhwali stage playwright Kula Nand Ghanshala tried for  depicting  all those problems of ownership of forests, need of villagers, need of protection, cutting state forests cruelly, Mussulmen using their power for destroying forests , forest fires destroying forest and then villagers agreeing for new plantation for preserving forests . This author was witness and Kula Nand Ghanshala too that in past if there is forest fire, villagers used to go to defuse further fire and were ready for preserving forests. But now, people are not interested in preserving forests because State does not give right on forest products to villagers or state does not permit for cutting their own trees.
   At the end Ghanshala conclude that cooperation among villagers, administration and state is must for preserving forest and environment.
 There are eight scenes on this fine drama depicting the problem of environment and villagers needs. There are 15 performers in the drama those discuss and clear  the need and environmental issues.
        The dialogues are as per the class of performer as
Ram Singh Forest Guard-(with pride – Are Ram Singh Forest Guard ka Hondu kwee dalu ta kya ek Haryu Patta bhi ni todi sakdu
Poor man Danu (dwee hath Jodi ) – Dida mi dal ni chhaun katnau , mi ta munda chhaun katnu
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Shiva Nand (musclemen) –jaa be daanu tu faad lakhda dekhdu mi kan ni fanan daindu yu lakhda (ram singh ki tarfa dekhik)
  There is reasonable speed in the social and inspiration drama  due to various sentiments andt barring last lyrical messages,  there is no stereotype teaching and that is the characteristic of Ghanshala. The story seems to be realistic and day to day readers .Though, Kula Nand  depicts the problem of cutting our own trees through satirical and humorous means  but it is tragedy in real life for getting permission for cutting own planted trees or owned tree .
  Editor, Critic, Film performers, poet Madan Duklan rightly state that Ghanshala is College for Drama students.
 As drama critics appreciate Mary Kathryn Nagle ,Jihae Park for their work on forest and  environment protection , same way t. Dr Manju Dhoundiyal a literature exert  appreciates the work of Kula Nand Ghanshala for his efforts on environment .
Ramu patrol (Garhwali Drama)
From drama Collection Rangchhol (2019)
Playwright: Kula Nand Ghanshala
Publisher :Samy Sakshya
Dehradun , North India

Copyright@ Bhishma Kukreti , May 2019
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