इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -3
गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण - फाड़ी -2
भीष्म कुकरेती
स्वांगूं पच्छमी सिद्धांत
१- अरस्तु सिद्धांत
पच्छमी देसूं मा काव्य अर स्वान्गू पर सबसे पैल कलम अरस्तु (३८४-३२२ ई.) की चौल.
अरस्तु से उन्नीसवीं सदी आखिरैं तलक पच्छमी देसूं मा नाटकों द्वी ही प्रकार माने गेन- ट्रेजिडी/त्रासदी अर कोमेडी (हौंस आदि )
अरस्तू न स्वान्गुं बारा मा इन बोली छौ -
अ- धारणा -
अरस्तु बिटेन इ ए विवादोऊ पर्वाण लग बल नाटकुं मा व्यक्ति की महत्ता होण चयेंद या वस्तु की.
१- अरस्तु हिसाब से कथा अर कार्य नाटकुं चरित्र या चरित्र्य से जादा कामौ ( महत्वपूर्ण ) च
२- कार्य, कथा या कथावस्तु ही तरास/ट्रेजिडी क लक्ष हों चयेंद याने कि कार्य आदि क उदेश्य ट्रेजिडी प्राप्ति च
३- असल मा चरित्र कार्य व्यौहार कु भुर्त्या च
४- चरित्रौ नि होंण से बि तरस / ट्रेजिडी ऐ सकद च पन कथा/कार्य व्यौपार बगैर कबि बि ट्रेजिडी नि ऐ सकदी
५- कथानक ट्रेजिडी कि आत्मा च. कथानक/कार्य व्यौपार को स्थान पैलो च अर चरित्रौ जगा दुसर च
६- घटना सन्गठन कु अळगौ स्थान च
ब- कार्य व्यौपार अर चरित्र -
काम द्वी तरां होन्दन
१- जाणि बूजिक क्र्याँ करतब
२- अजाणि मा हुयाँ काम या परिस्थिति दबाब मा कर्याँ काज
अरस्तु क मनण छौ बल अजाणि मा हुयाँ या परिस्थिति क दबाब मा कर्या काम ट्रेजिडी लांदन
स- त्रासिदी क नाट्य पात्र
१- त्रासदी नायक तैं पूरो सदाचारी नि होण चयेंद
२- त्रासदी क पात्र पूरो दुराचारी बि नि होण चयेंद
३- इख तलक कि खल नायक तैं बि पूरो दुराचारी नि होण चयेंद
द- त्रासदी क नायक
१- नायक तैं पूरो सत्चरित्र नि होण चयेंद
२- खलपात्र त्रासदी नायक नि ह्व़े सकद
३-नायक तैं ह्म्जन /सहज इ होण चयेंद
४- नायक तैं ऊँचो कुलौ / उच्च कुलीन (पद) अर नामी होण चयेंद
५-नायकु पतन स्वाभावौ कमजोरी होण चयेंद ना कि घड़यूँ धुर्यापन /विचारयुक्त दुष्टता
इ- चरित्र चित्रण अर चरित्र्य क सिद्धांत
१- चरित्र तैं भद्र होण चयेंद
२- औचित्य जरुरी च (तर्क /कुतर्क अर वितर्क मा भेद)
३-चरित्र जिन्दगी नजीक होण चयेंद
४-चरित्र मा इक्सारिपन होण चयेंद . बिंडीरुपुं तैं इकरुपी बणावो
५- चरित्र दिखाण मा समभावना होण चयेंद
६- श्रेष्ठता को बखान होण चयेंद
होरेस (६५-८ ई.) कु औचित्य सिधांत
काव्य समीक्षक होरेस क बुलण च बल
१- हरेक चरित्र औ चर्रित्र चित्रण वैकी अवस्था क हिसाबन होण चयेंद
२-डाइरेक्टर आदि तैं कला, या नाटक तैं तागत दीणो बान छूट मिलण चयेंद
३- पात्रुं बचळयात (सम्वाद) पात्रुं सामाजिक पद, जगा, मनस्थिति , ज़ात, रंग, रौणै जगा,
अर लिँग औ हिसाबन होण चएंद
४- नाटक तैं सम्पूर्ण अर सौष्ठव पूर्ण होण चएंद
नामी गिरामी नौर्वे बासिन्दा , स्वांगकार हेनरिक जौन इब्सन (१८२८-१९०६) का ख़याल
१- स्वांग लिख्वार तैं पात्र अर पात्रुं क चारित्रिक खूबी क तलक जाण जरूरी च
२-नाटककार तैं चरित्रुं बारा मा पैल सुचण चएंद अर शब्दुं बारा मा पैथर सुचण चएंद
३-नाटककार तैं आपन पात्र अर ऊं पात्रुं मनोविज्ञान - समाजिक स्तिथियौ पूरी जानकारी होण चएंद
विलियम आर्चर (स्कौटलैंड १८५६-१९२४ )
१- नाटक मा चरित इ जादा महत्वपूर्ण छन
२-चमत्कारिक परिवर्तन (अचाणचको बदलौ ) सिद्धांत माने होंद चरित्र विकास पर ध्यान.
लाजम एग्री
अ- चरित्रों महत्व
चरित्रुं गुण अथाअ छन , बगैर चरित्रौ क्वी स्वांग ना त खिल्याई च ना इ कबि लिख्याल
ब- नायक अर खलनायक
नायक नाटकौ केंद्र हूंद अर खलनायक नायकु बरोबर को इ होण चयेंद
स- पात्रुं त्रिआयामी गुण
१- सरैल-लिंग, आयु, ऊँचै , वजन, रंग, आंखि, बाळ, हौ भौ, गातौ हिसाब किताब(मुंड, मुख, अंगुळ जन बात)
दोष (जन्मजाति रोग, कुरूपता, ) वंश/खार ,
२- सामाजिक -जात, भुर्त्या, नेगिचारी(सेवक) , रज़ा, अर बीचौ
३- चाकरी ( काम, कामौ समौ, सक्यात), पढाई लिखै ,गिरस्थी, धर्म, पंथ, देस, भाषा, राजनैतिक पौंच ,
टैम बिताणो /मनोविनोद का साधन आदि
द- मन सम्बन्धी सिद्धांत
१-यौन सम्बन्ध, नैतिकता
३-आकांक्षा , गाणि -स्याणि , महत्वाकांक्षा
४-निरासा
५-सुभौ
६-जिन्दगी दिखणो ढर्रा
७- - जटिलताएं, परेशानी, संघर्ष
८- विश्वास अर अंधविश्वास
९- अंतर्मुखी या बहिर्मुखी या घुन्ना
१०- शक्यात /योग्यता
११- गुण, सुचणो तागत, कल्पना शक्ति, निर्णै लीणै कुवत, रूचि-अरुचि, क्याँ से प्रेम-क्याँ से घीण
मारेन एलवुड
१- चरित्र तैं जीवंत बणाण जरूरी च
२- क्वी कठण अळजाट/ महत्व पूर्ण समस्या हूणि चयेंद
३- तर्क
४-चरित्रुं मा विश्सनीयता अर प्रभावित करणै तागत हूण चयेंद
५- चरित्र निर्माण मा चरित्रुं क्वी ना क्वी छवि दिखणेरूं मगज मा हूण चयेंद
६- हरेक पात्रौ काम मा वजह अर अवस्था क वजूद/उपस्थिति/एक्जिसटेंस हूण जरूरी च
ई.एम् फ्रोस्टर
द्वी किस्मौ चरित्र होन्दन - सरल अर जटिल
नाटक शिक्षक सुसान पैटीसनऔ पाठ
नाटककार तैं चरित्र निर्माण मा तौळौ हिदैत ध्यान मा धरण चयेन्दन
१- चरित्रौ पूरी कल्पना
२- चरित्रुं बारा मा जनता मा ख़याल, जणगरूं ख़याल अर दुयूं खयालूं मा क्या भेद च
३- चरित्रौ इतियास क्या च
४- चरित्रौ नाटक मा पिछलो कथा क्या च
५- चरित्रौ हौरुं दगड क्या क्या रिश्ता च
६-चरित्रौ नाटक मा जरुरत इ किलै च ?
७-चरित्रुं आपस मा संघर्ष /तनातनी
८- चरित्र निर्माण मा चरित्रौ भूतकाल को योगदान
९- चरित्रौ समणि आण अर नाटक मा पूरो कामकी कल्पना
सन्दर्भ -१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना
४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,
८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ - ड्रामा लिटरेचर
१२ - डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख
१६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना
२३-मारेन एलवुड ,१९४९, कैरेकटर्स मेक युअर स्टोरी
बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा......
फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ' आशाराम ' मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण
३- भीष्म कुकरेती क नाटक ' बखरौं ग्वेर स्याळ ' मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया
३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत
Copyright@ Bhishm Kukreti