Jai Prakash Dangwal
October 4 at 10:45pm · Delhi · Edited ·
मेरी कलम से© Jai Prakash Dangwal:-
किसी गुनाह की ग़र सजा दी होती, तो मुझे, कोईं शिकायत नहीं होती,
मगर, किसी बेगुनाह को, सजा देना, जुल्म होता है इनायत नहीं होती.
मुहब्बत में आशा के दीप जलाने से, खुदा की शान की पहचान होती है,
आशाओं के, दीप जला कर, उन्हे बुझा देने से मुहब्बत बदनाम होती है.
इसलिए ऐ मेरे नादान दोस्त मुहब्बत के दीप जला कर उन्हें मत बुझा,
मेरे लिए न सही, अपने चमन की, बहार के खातिर, यह दीप मत बुझा.