Author Topic: जय प्रकाश डंगवाल-उत्तराखंड के लेखक JaiPrakashDangwal,An Author from Uttarakhand  (Read 25338 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:-©Jai Prakash Dangwal लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त:-
 
 पांच इन्द्रियों के चंचल घोड़ों वाले,
 सुन्दर देह के रथ पर सवार,
 सीमा के बन्धनों से मुक्त,
 दौड़ रहा हूँ उन्मुक्त।
 
 इन्द्रिय जनित सुख और दुःख,
 दोनों ही प्रकृति जन्य हैं इसलिए,
 भोग रहा हूँ इन्द्रियों के भोग,
 निष्पाप, निष्छल, निर्विकार,
 इन्द्रिय भोगों में हूँ मैं लिप्त,
 लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त।
 
 क्योंकि जागृत है मेरा विवेक,
 मैं स्वयम को करता नहीं मानता,
 करता है बस परमात्मा।
 मैंने अपने अश्वों की लगाम,
 सौंपी हुई है करता के हाथ,
 देह रथ के चंचल अश्वों को,
 जिसने मेरे विवेक की डोर से,
 सरपट भागने के लिए साध दिया है,
 एक मात्र उस दिशा की ओर जहाँ,
 आत्म स्वरूप में लीन करने हेतु मुझे,
 देख रहे हैं प्रभु एक टक मेरी ओर।
 
 इन्द्रिय भोगों में हूँ मैं लिप्त,
 लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त।मेरी कलम से:-©Jai Prakash Dangwal लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त:- पांच इन्द्रियों के चंचल घोड़ों वाले, सुन्दर देह के रथ पर सवार, सीमा के बन्धनों से मुक्त, दौड़ रहा हूँ उन्मुक्त। इन्द्रिय जनित सुख और दुःख, दोनों ही प्रकृति जन्य हैं इसलिए, भोग रहा हूँ इन्द्रियों के भोग, निष्पाप, निष्छल, निर्विकार, इन्द्रिय भोगों में हूँ मैं लिप्त, लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त। क्योंकि जागृत है मेरा विवेक, मैं स्वयम को करता नहीं मानता, करता है बस परमात्मा। मैंने अपने अश्वों की लगाम, सौंपी हुई है करता के हाथ, देह रथ के चंचल अश्वों को, जिसने मेरे विवेक की डोर से, सरपट भागने के लिए साध दिया है, एक मात्र उस दिशा की ओर जहाँ, आत्म स्वरूप में लीन करने हेतु मुझे, देख रहे हैं प्रभु एक टक मेरी ओर। इन्द्रिय भोगों में हूँ मैं लिप्त, लिप्त होते हुए भी हूँ अलिप्त। height=265

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:-
 
 जो मंदिर में निवास करता है,
 वही दिल में निवास करता है।
 
 फिर, क्यों हम मंदिर जाते हैं,
 प्रभु मूरत देखके सकूं पाते हैं।
 
 मेरे लिए मुहब्बत भगवान है,
 तेरे लिए फकीर बस इंसान है।
 
 मेरे दिल में बसी तेरी सूरत है,
 जैसे मंदिर में प्रभु की मूरत है।
 
 हर सुबह, तेरे दर पर जाता हूँ,
 तहे दिल से, अलख जगाता हूँ।
 
 लेकिन तुझे कहाँ परवाह मेरी,
 तरस जाता हूँ झलक को तेरी।
 
 पर सकूँ मिलता है, कुच्छ ऐसा,
 मन्दिर  से लौटने के बाद जैसा।
 
 तेरे दर पे आना फितरत है मेरी,
 अलख जगाना, फितरत है मेरी।
 
 तडफाना, अगर फितरत है तेरी,
 तेरे लिए तडफना आदत है मेरी।
 
 लोग, जिसे, दीवानापन कहते हैं,
 फकीर इबादते मुहब्बत कहते हैं,
 
 तड़फने का तो, वे बहाना करते हैं,
 जब चाहा उसे दिल में देख लेते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
मेरी कलम से:-

उधर भोर की बेला में, उषा की लालिमा को को देखा लजाते हुए मुस्कराते हुए,
इधर तेरे चेहरे पर भी देखी, वैसी ही लालिमा, कुच्छ लजाते हुए मुस्कराते हुए,
एक किरण उषा की भी छू गई मेरे मन को प्रेम का सन्देश देते हुए लजाते हुए,
और एक किरण तेरी भी गुद गुदा गई मन को, मुस्कराते हुए कुछ लजाते हुए।
किंकर्तव्य विमूढ़ हूँ किसका छूना भागया मेरे मन को स्नेह स्पर्शितकरते हुए।
सोचा कि उषा का क्या नजाने कब अपने प्रेमी बादलों की गोद में लुप्त हो जाये,
लेकिन? तुम्हारी मुस्कान की किरण मुझे, सदा गुदगुदाती रहेगी, शरमाते हुए।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal  मेरी कलम से:-
 
 न नजरें मिलीं, न मुलाकात हुई,
 न गुफ्तगू हुई, न कोई, बात हुई,
 न फसाना बना न कोई चर्चा हुई,
 न जाने कब तुमसे मुहब्बत हुई।
 
 तेरी तस्वीर देख कर दीवाने हुए,
 तेरी मुस्कान देखी, मस्ताने हुए,
 जीते रहे हम दीदारे हसरत लिए,
 इंतजार करते रहे मुस्कराते हुए।
 
 जाने क्यों नजरअंदाज कर दिया,
 तेरी बेरुखी ने, परेशान कर दिया,
 जरा बता तूने यह क्या कर दिया,
 न मुझे जीने दिया न मरने दिया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal  मेरी कलम से मेरी कलम के लिए:-
 
 दर्दे दिल ज़माने का महसूस कर के मैं बेबस रो पड़ता हूँ,
 दिले समंदर में लहरे खुशियाँ देखकरके मैं हंस पड़ता हूँ।
 
 और मेरी कलम . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . .?
 
 अगर मैं रो पड़ता हूँ मेरी कलम भी मेरे साथ रो पड़ती है,
 अगर मैं हंस पड़ता हूँ मेरी कलम मेरे साथ हंस पड़ती है।
 
 मुहब्बत में, इतनी एकात्मता और कहीं नहीं देखपाता हूँ,
 इसलिए, अपनी कलम से मैं बेइन्तहा मुहब्बत करता हूँ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:
 
 इस, हकीकत की दुनियां में, तुम हो ही नहीं,
 ख्वाबों की दुनियां में मैंने तुम्हें देखा है कहीं।
 तुम जब याद आती हो, बहुत याद आती हो,
 हर सुबह, हर शाम, मुझे रोज याद आती हो।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:-
 
 वाह क्या मधुर सत्य है! न अमीर, न गरीब, बस वह लोग चैन से सो रहे हैं,
 जो लोग, सीमित आकंक्षाओं और सीमित आय के साथ संतोष से जी रहे हैं।
 
 न समाजवाद और न ही पूंजीवाद हल है, इस विर्हत भारत की समस्याओं का,
 जियो और जीने दो, पर संतुलित जनतंत्र, ही हल है भारत की समस्याओं का।
 
 लेकिन, क्या अनन्त लोभी, और भ्रष्ट नेता, कऱ पाएंगे स्थापित ऐसा जन तंत्र,
 क्या हर्ज है, जो परख लें एक बार मोदी सुशान, त्याग कर कांग्रेस का भ्रष्ट तंत्र।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal "बटाला हाउस केस में माननीय शहीद मोहन चंद शर्मा जी के आतंक वादियों के विरुद्ध कार्यवाही को न्यालय ने अपने फैसले में न्याय संगत बताया है। गाँधी जी के नाम का चोला पहनने वाले सांप्रदायिक नेताओं के मुंह पर इस फैसले ने काली स्याई पोत दी  है. अब चेतने का समय आगया है। आतंक वादियों के पोषक इन मिथ्या, ढोंगी एवं भ्रष्ट  नेताओं से बच  कर ऐसे नेताओं का चुनाव करें जो की सच्चा हिन्दू हो, सच्चा सिख हो, सच्चा मुस्लमान हो, सच्चा इसाई हो, और एक सच्चा इंसान हो फिर चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो?
 माननीय शहीद मोहन चंद शर्मा जी को उनकी अनुपम सहादत के लिए हार्दिक श्रद्धांजलि .

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal नूतन जी गढ़कवि मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन' जी की इस कविता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्य्वाद.
 रजनी का तम खिल जाता है
 शशि का शीतल चुम्बन पा कर
 नभ के आंसू ढल जाते हैं
 पृथ्वी की छाती पर आ कर .....
 चुन ले जाता जिनको दिनकर,
 अरुणोदय में कर किरणों से |
 गढ़कवि मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन' जी को सादर भावांजलि समर्पित
 उनका काव्य संग्रह पढना चाहूँगा। आपके पास उनकी रचना संग्रह प्राप्ति का कोई लिंक हो तो बताने की कृपा करें।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:-
 
 बादलों की तरह तेरी मुहब्बत भी है,
 कभी छा  जाती हो मानस पटल पर ऐसे,
 नील गगन पर  छा जाते हैं बादल जैसे,
 उकता कर फिर नील गगन से,
 बरस जाती हो धरा का आलिंगन करने,
 उड़ जाती हो फिर बादल बन कर नील गगन में,
 और तुम्हारा यह क्रम चलता रहता है,
 कभी तरसाती रहती हो नील गगन को,
 और कभी तरसाती रहती हो धरा को,
 क्यों तड़फाती रहती हो दोनों को?
 धरा और नील गगन से है तेरी गहरी पहचान,
 तुम दोनों की ही हो एक अजब, मधुर मुस्कान।My desk:-like clouds, is also to be a mash ever your mood boards are such on cloud such as Neil's on Gagan, Gagan, is bored and then showering to get Neil's embrace of the cloud to fly to be become the Nile in and your order moves Gagan, Gagan ever lives to be Neil tarsati, And never tarsati to be tadphati to be retained, why keep both defeats?
 Defeats and Neil from Teri deep recognition, Gagan you both a Flash crash, sweet smile.

 

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