Jai Prakash Dangwal मेरी कलम से:-
जो मंदिर में निवास करता है,
वही दिल में निवास करता है।
फिर, क्यों हम मंदिर जाते हैं,
प्रभु मूरत देखके सकूं पाते हैं।
मेरे लिए मुहब्बत भगवान है,
तेरे लिए फकीर बस इंसान है।
मेरे दिल में बसी तेरी सूरत है,
जैसे मंदिर में प्रभु की मूरत है।
हर सुबह, तेरे दर पर जाता हूँ,
तहे दिल से, अलख जगाता हूँ।
लेकिन तुझे कहाँ परवाह मेरी,
तरस जाता हूँ झलक को तेरी।
पर सकूँ मिलता है, कुच्छ ऐसा,
मन्दिर से लौटने के बाद जैसा।
तेरे दर पे आना फितरत है मेरी,
अलख जगाना, फितरत है मेरी।
तडफाना, अगर फितरत है तेरी,
तेरे लिए तडफना आदत है मेरी।
लोग, जिसे, दीवानापन कहते हैं,
फकीर इबादते मुहब्बत कहते हैं,
तड़फने का तो, वे बहाना करते हैं,
जब चाहा उसे दिल में देख लेते हैं।