Author Topic: जय प्रकाश डंगवाल-उत्तराखंड के लेखक JaiPrakashDangwal,An Author from Uttarakhand  (Read 25343 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
September 27 at 4:40am · Edited ·

मेरी कलम से ©जय प्रकाश डंगवाल:
सभी मित्रों के लिए शुभ प्रभात, मंगलमय जीवन की शुभ कामना.
दुखों के बदरंग रंग मिटाते चलें सुखों के सुंदर रंगों से जीवन रंगें,
इसके लिए कुछ ख़ुद का हौसला बुलंद करें कुछ खुदा से दुआ करें.
खुदा की मेहर.... दोस्तों की नजरे इनायत हो तो सब मुमकिन है,
बस हर मुश्किल, और दुख के लह्मो में एक दूस्ररे का साथ देते रहें.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
 
मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal:-
भाव के सौंदर्य का निखार, भाव की अभिव्यक्ति से और भी निखर जाता है,
अनुपम सौंदर्य से पूर्ण अव्यक्त भाव, अभिव्यक्ति के बिना कुंठित होजाता है.
अपना अनुपम सौंदर्य देख् आल्हादित होने का मन करे तो दर्पण न देखिये,
प्रिय की आँखों में, या तुम्हारे सौंदर्य से अभिभूत, कवि की रचना में देखिये.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
Yesterday at 12:21pm · Photobucket ·
प्रिय स्वप्न से गुफ्तगू मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
आज प्रातः जब स्वप्न को देखा... तो हतप्रभ: रह गया,
न मुस्कुराया, न अभिवादn.......अपरिचित बन गया.
मैने पूछा, "प्रिय स्वप्न! तू क्यों है अपरिचित बन गया?"
स्वप्न बोला, "कभी तेरा था.. अब मैं तेरा नहीं रह गया
मेरी खोज निरंतर है जो भा गया, मैं उसीका हो गया.
कल तेरा आज उसका, कल मैं किसी और का हो गया,
मैं स्वप्न हूँ सुंदर स्वप्न, बहुत सारे.... चाहने वाले हैं मेरे,
तेरा यौवन और वैभव ढल चुका क्यों रुकूँ मैं पास तेरे?"
मैंने कहा: मेरे भाव, यौवन से परिपूर्ण और मनोरम हैं,
प्रिय स्वप्न! जो मुझे प्रिय है... वह् तुझे भी बड़ा प्रिय हैं."
स्वप्न ने कहा: " मुझे भागया......... वही मेरा होता है."
एक दिन वह् स्वप्न, टूटी फूटी हालत में मुझे मिल गया,
उसके प्रिय को कोई अन्य मनोरम स्वप्न........ भा गया.
मैंने अपने प्रिय स्वप्न को... प्यार से सहला गले लगाया,
और एक बार फिर मेरे प्रिय स्वप्न को........ मैं भा गया.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
Yesterday at 7:35am ·
ज़माना तादीक करता है, जनाब उम्र के हिसाब से जीना सीखिये,
उनका कहना है उम्र हो गई है, बुढ़ापे के हिसाब से जीना सीखिये.
अपना कहना है कि सुखी जीवन के लिए, फजूल की बातें छोड़िये,
बचपन और जवानी के एहसास के मिश्रण के साथ जीना सीखिये.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 12 at 1:00pm ·
एक गुनाह का कबूलनामा या यों समझिये मनोरंजन का हलफनामा. मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
एक शिकायत:-
आपकी, बेरुखी, तो इस कदर बढ़ गई, कि पैग़ाम से तो दूर,
हम तो, तेरे सलाम से भी, हो गए हैं, न जाने क्यों इतने दूर.
जवाब जब नहीं मिला, खुदा से पूछ लिया, यह क्या हो गया?
उसने हंसके कहा तुझे तेरी ज्यादितियो का सबक मिल गया,
मैने भी बड़े अदब से, खुदा से अपना गुनाह कबूल कर लिया,
मुहब्बत अगर गुनाह है, तो कबूल है मैंने गुनाह है कर लिया.
एक शुकराना उनके लिये:-
तू भले ही न मिलीं, खुदा से गुफ्तगू का मौका तो मिल गया,
इस मेहरबानी के लिए दिल से, आपका शुक्रिया और शुक्रिया.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 2 at 8:33pm ·
मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
देख् कर किसी की बेबसी, मुस्कुराना भारतीय संस्कृति का अंश नहीं है,
हर किसी की मुसीबत में सहायता करना, भारतीय संस्कृति का अंश है.
हिंसक प्रवृति को, पोषित करके हिंसा फैलाना दानवीय प्रवृति का दंश है,
लक्छय? समाज में, नफरत का जहर घोल, मनुष्यता का अंत करना है.
भारत ऐसा होंने नहीं देगा पूरे देश में मानवता का ही परचम लहरायेगा,
हिंसा का दानव, कोने में पड़ा हुआ, अपनी अंतिम साँसें, गिन रहा होगा.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 1 at 8:59pm ·
मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
तेरे दिल में मुझे रहना है क्योंकि मेरे सकूँ का आशियाना है तेरा दिल,
तुझे सकूँ मिले न मिलें फिर भी हक है, बने आशियाना तेरा मेरा दिल.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
December 31, 2015 at 12:28am ·
मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
मुझे, पीने की लत नहीं मेरे दोस्तों, मैं कभी शराब पीता नहीं हूँ,
प्रभु की भक्ति के नशे की लत है, भक्ति रस के खुमार में रहता हूँ.
मदिरालय से सरोकार नहीं, घनश्याम की भक्ति में डूबा रहता हूँ,
हे सखा! तेरी दोस्ती बनी रहे, बस मैँ यही गुहार करता रहता हूँ.
यह न समझ लेना कि मैँ मय और रंगते मयखाने से अनजान हूँ,
खालिस शराब में वह सकूँ नहीं मिलता, जॉ तेरी भक्ति में पाता हूँ.
इतनी मेहर करना तेरा सामीप्य बना रहे, मैँ इतना ही, चाहता हूँ,
न तू मुझसे दूर, न मैँ तुझसे दूर, बस मैँ इतनी गुजारिस करता हूँ.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 2 at 8:33pm ·
मेरी कलम से©Jai Prakash Dangwal
देख् कर किसी की बेबसी, मुस्कुराना भारतीय संस्कृति का अंश नहीं है,
हर किसी की मुसीबत में सहायता करना, भारतीय संस्कृति का अंश है.
हिंसक प्रवृति को, पोषित करके हिंसा फैलाना दानवीय प्रवृति का दंश है,
लक्छय? समाज में, नफरत का जहर घोल, मनुष्यता का अंत करना है.
भारत ऐसा होंने नहीं देगा पूरे देश में मानवता का ही परचम लहरायेगा,
हिंसा का दानव, कोने में पड़ा हुआ, अपनी अंतिम साँसें, गिन रहा होगा.

 

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