उलणा और जळतुंगा के पौधे.....
(बिलुप्त होते या होने वाले -गढवाली शब्द श्रृंखला )
महेशा नन्द (भाषा विशेषग्य )
जब पहाड़ों का जीवन सीधा प्रकृति से जुड़ा था तब इन पौधों की बहुत मान्यता थी। इन प्रकृति प्रेमियों ने प्रकृति से सीखकर अपना जीवन सरल बनाया।
आज स्थिति यह है कि लोग इन पौधों के नाम तक नहीं जानते होंगे। ये दोनों पौधे नम स्थानों में होते हैं।
1- #उलणा- यह एक फर्न की प्रजाति है। फर्न की पहाड़ों में मुख्य तीन प्रजातियाँ हैं
(a)- #लिंगुड़ा- लिंगुड़ा छायादार नम स्थानों में होता है। मुख्यता यह पौधा गधेरों में, पानी के नम छायादार स्थानों में होता है। बरसात में इसके कोमल तने लम्बे होकर गोल घंड़ी के आकार जैसे हो जाते हैं जो सब्जी बनाने के काम आते हैं।
(b)- #कुथड़ा- कुथड़ा भी फर्न प्रजाति का है जो चीड़ या बाँज के जंगल के नमीदार स्थानों में होता है। इसके तनों की भी सब्जी बनायी जाती है। इसके तने भी लिंगुड़ा जैसे होते हैं किन्तु वे बारीक होते हैं। लिंगुड़ा और कुथड़ा के स्वाद में यदि तुलना करें तो लिंगुड़ा अधिक स्वादिष्ट होता है।
(c)- #उलणा- यह फर्न की मुख्य प्रजाति है। उलणा बाँज के जंगल में नम किन्तु किसी भी स्थान में कहीं भी उग जाता है। यह #जहरीला पौधा है। इसका उपयोग पहाड़ों के कच्चे घरोंं की छतों को छाने के लिए किया जाता था। क्यों किया जाता है ? फिर कभी....
2- #जळतुंगा- जळतुंगा चारा देने वाला पौधा तो है ही, साथ ही इसके तने से मिट्टी, गोबर, पत्थर आदि ढोने के कण्डे बनाए जाते थे। इस कला के माहिर थे रुड़िया। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि रुड़िया लोग उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं जो बाँस, रिंगाळ से कुन्ने, डुखरे आदि बनाते थे। इन शिल्पियों को मै हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।