Author Topic: Kumaoni Poem by Sh Madan Mohan Bisht -मदन मोहन बिष्ट जी की कुमाउनी कविताएं  (Read 5507 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बखत नि मिल
यसि दौडी जिन्दगी, कि रुकणक बखत नि मिल,
खुशी भौत मिलीं, पर हंसणक बखत नि मिल।

मील लै सजे राखीं ’दी’  घर मैं आपण,
सिलाई  जलूणक पर बखत नि मिल।

जैकें चाण मै हरै गोइं, खुद भीड मैं मि,
ऊ सामणी छी  मिलणक बखत नि मिल।

मुरझै गेइं ऊं सब फ़ूल, जो छी  इन्तजार में,
हम कानां मै उलझी रयुं और बखत नि मिल।

जीवनक दौड मै जिन्दगी बिते दे,
कभैं जिन्दगी क जीणक बखत नि मिल।

खुशी भौत मिलीं जीवन मैं,
हंसणक पर बखत नि मिल।
           ....................मदन मोहन बिष्ट

http://merakumoun.blogspot.com/2011/03/blog-post.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मलाल...


वीक हंसण तो कमाल छी
पर वीक जाणक भ्हौत मलाल छी,
मुख पर हमार लगे गे ऊ दाग
हमूल समझौ ऊ गुलाल छी।

रात भर ऊंछी वीकै स्वैण
दिन भर वीकै खयाल छी,
उडि गे नीन आब म्येरि आंखोंकि
वीक कौस ऊ सवाल छी।

करण बैठूं दिलक सौद जब लै "मदन"
जो लै मिलौ ऊ दलाल छी॥

........मदन मोहन बिष्ट, शक्ति विहार, रुद्रपुर.....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Madan Mohan Bisht मन्जिल भी उसकी थी
 रास्ता भी उसका था
 एक में अकेला था
 काफ़िला भी उसका था
 साथ चलने की सोच भी उसकी थी
 फ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उसका था
 आज क्यों अकेला हूं
 दिल सवाल करता है
 लोग तो उसके थे
 क्या खुदा भी उसका था ?
 ~मदन~

Bhishma Kukreti

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Madan ji
Congratulations !
Pl keep it ..
regrds
Bhishm

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Madan Mohan Bisht दीपक जुगनूं चांद सितारे एक जास छिन,
 यानी सब गमक मारी एक जास छिन।
 
 कधिनें उज्याव हयी बाद ऎ बेर देख लिये चंदा,
 म्यार आंसू और तों तारे एक जास छिन।
 
 गाड जस  छिन मि भेद भाव के जाणू,
 म्यार लिजी द्विए किनार एक जास छिन।
 
 मेरि नाव जाणि कैल डुबै के मालूम,
 सब लहर सब धारा यां एक जास छिन।
 
 कुछ आपण कुछ तेहति (पराय) और मी खुद,
 म्यार जानक दुष्मण सब एक जास छिन।
 
 आब बताओ यां कैथैं फ़रियाद करूं ’मदन’,
 कातिल, कोतवाल और काजी सब एक जास छिन।
 
 -----मदन मोहन बिष्ट

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Madan Mohan Bisht ‎"कुत्तों की महासभा"
 
 जमा हुए थे शहर से कुत्ते गली के एक चौराहे पर,
 लगता जैसे महासभा हो ठहर गया मैं भीड देखकर।
 शेरू, कालू, टिम्मी, जिम्मी कुछ पहचाने चेहरे थे,
 कुछ मरियल कुछ ठीक ठाक से कुछ काया से दोहरे थे।
 मोटा कुत्ता नस्ल विदेशी माइक थामे मंच पर,
 देसी कुत्ते जीभ निकाले आश्रित ज्यों सरपंच पर।
 कुत्तों का शैलाब जमा था करते भौंभौं क्याऊं क्याऊं,
 गरजा फ़िर सरपंच मंच से चुप हो जाओ बात बताऊं।
 एक समय था हम कुत्तों की इज्जत सेवा होती थी,
 ना पाती जो घर में हमको घर की मेमैं रोती थी।
 नखरे करते भाव दिखाते हम गोदी चढ जाते थे,
 पैडीग्री से पेट थे भरते और पकवान सड जाते थे।
 अब लगता है कम हो रही इज्जत अपनी जात की,
 कैसे संभले इज्जत अपनी चिंता है इस बात की।
 एक ने भौंका मैं बतलाऊं बढ गयी संख्या स्वानों की,
 इसीलिये तो कदर नहीं है हम कुत्तों की जानों की।
 अपनाओ परिवार नियोजन काबू में संख्या कर लो,
 कम होंगे तो मांग बढेगी मर्जी से फ़िर घर चुन लो।
 गुर्राया सरपंच मंच से डरो नहीं नवजातों से,
 कुत्तेपन पर उतर रहे जो डरो उन आदिमजातों से।
 हम कुत्ते तो पूंछ हिलाते फ़ैंका टुकडा खाकर भी,
 जडें काटता वही आदमी छप्पन ब्यंजन खाकर भी।
 कुत्ते सब बदनाम हो रहे इन्सानों के कर्मों से,
 कुत्तेपन को शरम  आ रही इन अधमी बेशर्मों से।
 ’कुत्ते का बच्चा’ कहकर हमको करते हैं बदनाम,
 गोद भले ही चढ जाते पर ब्यभिचारी नहिं होते स्वान।
 कुत्तों जैसे दुम हिलाना सीख लिया इन्सानों ने,
 स्वामिभक्ति और वफ़ादारी सब ठुकरा दी बेऊमानों ने।
 कुत्तों का सम्मान बचाने एक बात ये मान लो,
 कुत्तों में घुसपैंठ रोकनी बात गांठ से बांध लो।
 खुली रहे आंखें तुम सब की मत आंखों को भींच लो,
 देखो आदमी कुत्ता बनता टांग पकड कर खींच लो।
 
 ............. मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर...................

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुझ को पुरानी राह पर चलना नहीं आता,

खुद का बनाया रास्ता सीधा नहीं जाता।

बेगैरत अगर बनता बहुत आगे निकल जाता,

गुमराह करके राह पर चलना नहीं आता॥

 

ना रहते आसरे उनके तो फ़िर हम और क्या करते,

हमें उनकी तरह राहें बदलना भी नहीं आता।

गये वो ऎसी राहों पर अकेला छोड कर मुझ्को,

कि जिन पर ठीक से मुझको तो चलना भी नहीं आता॥

 

मुझे नकली हंसी के साथ मुस्कुराना नहीं आता,

पराया माल अपने नाम करवाना नहीं आता।

दिल के किसी का दर्द भी देखा नहीं जाता,

मगर दिल चीर कर दुनियां को दिखलाना नहीं आता॥

 

हमने बहते पानी से भी दोस्ती निभाई है,

फ़िर भी बर्फ़ की तरह अबतक तैरना नहीं आता।

शौक जलने का हमें कब था यहां ’मदन’,

पर राख में से आग अलग करना नहीं आता॥

 

मुसीबत का पहाड भी किसी दिन कट ही जायेंगा,

मुझे सिर मार कर दीवार पर मरना नहीं आता।

चकाचौंध की दुनियां मुझे भी गुदगुदाती है,

मगर चादर के बाहर पांव फ़ैलाना नहीं आता॥

 

जिन्दगी जीने के सिर्फ़ दो तरीके हैं,

एक उनको नहीं आता एक हमको नहीं आता॥

...................मदन मोहन बिष्ट...............

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Madan Mohan Bisht आगे खुदा, पीछे खुदा, बायें खुदा, दाये खुदा,
 चारों तरफ़ खुदा ही खुदा..
 जहां नहीं खुदा वहां खुदने वाला है।
 क्योंकी जल्दी ही रुद्रपुर नगर निगम अस्तित्व में आने वाला है, नगर बढ कर निगम बनेगा तो डर है कि नियम भी बढेंगे फ़िर अफ़सर बढेंगे तो सुविधा शुल्क भी बढ जायेगा इसी लिये खुदाई चालू ।
 "कर लो जमीन कब्जे में"

 

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