Author Topic: Kumaoni Poem by Sh Madan Mohan Bisht -मदन मोहन बिष्ट जी की कुमाउनी कविताएं  (Read 5506 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,


We are sharing exclusive Kumaoni Poems written by Shri Madan Mohan Bisht ji. You will surprise to know that Bisht ji born and brought up in Delhi still he has very good command over Kumaoni language. He writes very good kumoani poems.




A brief introduction about Mr Madan Mohan Bisht.
IndustryBusiness Services
LocationRudrapur, U.S. Nagar, UTTARAKHAND, India
IntroductionOrigin - Vill. Maasar, Tah. Dwarahaat. Ranikhet, DIstt. Almora, Uttarakhand. PG from DU 1985. ex.Manger(EDP) Garden Vareli Group. Settled in Rudrapur. Engaged in multiple Businesses. Actively participating in Social Works. I love Uttarakhand, its culture and simplicity.

Here is first poem

 
आस
 एक दुआ मांगणक खातिर सारि रात जागूं,
पर क्वे तार अकाश बै टुट न्हैं।
बचै बे नजर ऊं न्है गोछी बगल बै,
हमार हाल चाल तक के पुछ न्हैं।
हम सांस रोकि बे देखनै रयूं,
उ जानै रयीं और हमूल लै उकैं रोक न्हैं।
यां बै जाई बाद लै ऊ हंसते खेलते रूंछी,
यां आइ तक पाणि आंखोंक  सुक न्हैं।
भौत पैली बै आखोंक पछ्याण छी हमेरि,
पर कभैं कैलै मनाय न्हैं कभैं क्वे रिसाय न्हैं।
एक आस मिलणेकि दिल में बसाई छि,
आज ऊ दुनी बटिकै हिट दे फ़िर लै हमुकैं बताय न्हैं।........
मदन मोहन बिष्ट, रूद्रपुर, ऊत्तराखन्ड   
http://merakumoun.blogspot.com/

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M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं,
क्वे जब स्वैण दिखूं तो डर लागैं।
डुबी छी अन्यार में यसि जिन्दगी,
कि आब तो उज्याव में जाण में डर लागैं।
मांग न्है आज तक कैहैणि लै के,
फ़िर लै हाथ फ़ैलूण में डर लागैं।
देईं ध्वाक आपणोंल इतुक ज्यादा,
कि आब क्वे आपण बतूं तो डर लागैं।
जागणै उम्मीद आइ फ़िर जिन्दगी मैं,
देखियणै एक आस आइ कत्तिकै बै।
सोचौ कि कै दियू खुशीक यौ बात सब्बू थैं,
मगर दिलेकि बात सबुकैं बतूण मैं डर लागैं।
क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं...
        ~मदन मोहन बिष्ट,  रुद्रपुर-उत्तराखण्ड~

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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- वादा -
नि पुछो अल्लै कि  मन्जिल कां छु 
आइ सिर्फ़ जाणक इरादा करी छू,
लफ़ाइ नि जूं कतिकै बाटां पन
हौसला लै खूब ज्यादा भरी छू,
नि हारुल कभैं यां ’मदन’ उमर भर
कैहैंणी नै आपण थैं यौ वादा करी छू।
.......................मदन मोहन बिष्ट

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem from Madan Mohan Bisht ji.

गौंक हाल
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणै गौं पनाक यास हाल देख बे...
बाट-घाटां सिसौण जामी छू, पाख मैं कुरिक झाल देख बे,
उधरि छन सब भिड गाडां पन, दरकी कुडिक दीवाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
बाखई-बाखाइ सुन्न पडी छन, जो घर छिन उनार हाल देख बे,
दुखी-दुखी जा  हंसन मुखाड सब  पधानिक पर चाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
नल बिन पाणि और नौव बांजी गो पाणिक हाहाकार देख बे,
बोठ, लगिल सब सुकी सुकी छन  गोरु बाछ लै बीमार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
सुवर, बानर भौते बढ गेईं, गौं वाल छन बेहाल देख बे,
फ़ूल, फ़ल ना दूद धिनाइ छू नान तिन चिपकी गाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
जू-शराब छु आम चलन में चुप पट्वारि- थाणदार देख बे,
सासु-ब्वारी सबै दुखी छन भोवाक करणधार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
निगेंइ हालीं सब गौं सरकारैल खुश छु उनार हाल देख बे,
आग लागणै म्यार भितेर आब शहरों कैं खुशहाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
...( मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड)..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दव्न्द   
- कसूर -
सच तो यो छु कि कसूर आपणै छी,
चांद पकडणकि कोशिस करी
आकाश जमीन पर मांगौ
ढुंगों पर फ़ूल खिलोण चाहीं
कानां में खुश्बूकि चाहत करी
बरफ़ में निमैल(गर्मी) चानै रयूं
ख्वाब जो देखीं सोचौ सच है जाल
यैक हमुकैं सजा तो मिलणै छी
सच तो यो छु कि कसूर आपणै छी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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परिचय

शिब्दाल मिकैं ब्याव आपुं घर मैं बुला,
आपण चारों च्यालां दगै म्यर परिचय करा।
यो ठुल च्यल परकाश छू,
एम ए बीएड पास छू मास्टरीक शौक छी पर बण नि पाय,
आब कस्सि.. लै नौकरीक तलाश छू।
दुसर च्यल हालै में दिल्लि बै ऎ रौ,
के कूनी ऊ.. एमबीएक डिग्री ल्यै रौ।
तिसर तौ दाडि वाव जो लागणौं देवदास,
कम्पूटरेकि क्याप्प.. डिग्री छु तैक पास।
पार ऊ जो पट्याल में भै रौ ऊ सब्बुं है नान च्यल छू,
पढाइ लिखाइ के करि न्हैं, तैक चाऊमीनौक ठ्यल छू।
मील कौ शिबदा.. तकैं घर बे निकालो,
दाज्यू.. आपण घरेकि इज्जत कें सम्भालो।
शिबदाल कौ निकाइ तो तैकं पैलिकै दिंछि ’मदन’, पर तौ भौतै काम ऊं।
बांकि तो सबै यूं बेरोजगार छन, घरक खर्च सब तै तो चलूं ॥

http://merakumoun.blogspot.com

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वीक हंसण तो कमाल छी
पर वीक जाणक भ्हौत मलाल छी,
मुख पर हमार लगे गे ऊ दाग
हमूल समझौ ऊ गुलाल छी।
रात भर ऊंछी वीकै स्वैण
दिन भर वीकै खयाल छी,
उडि गे नीन आब म्येरि आंखोंकि
वीक कौस ऊ सवाल छी।
करण बैठूं दिलक सौद जब लै "मदन"
जो लै मिलौ ऊ दलाल छी॥
........मदन मोहन बिष्ट, शक्ति विहार, रुद्रपुर.....
 
                                               ................................. मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर

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बखत नि मिल

यसि दौडी जिन्दगी, कि रुकणक बखत नि मिल,
खुशी भौत मिलीं, पर हंसणक बखत नि मिल।
मील लै सजे राखीं ’दी’  घर मैं आपण,
सिलाई  जलूणक पर बखत नि मिल।
जैकें चाण मै हरै गोइं, खुद भीड मैं मि,
ऊ सामणी छी  मिलणक बखत नि मिल।
मुरझै गेइं ऊं सब फ़ूल, जो छी  इन्तजार में,
हम कानां मै उलझी रयुं और बखत नि मिल।
जीवनक दौड मै जिन्दगी बिते दे,
कभैं जिन्दगी क जीणक बखत नि मिल।
खुशी भौत मिलीं जीवन मैं,
हंसणक पर बखत नि मिल।
           ....................मदन मोहन बिष्ट

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 जनमबार    पत्त नै किलै लोग जनम्बार मनूनी,         
 इष्ट मित्र लै मिल बे खूब कौतिक लगूनी,           
 योस के करो जाणि साल भर वील,                   
 जो भकार भर जानी गिफ़्ट और बधाईल।
 
 इन्सान लै आब खूबै समझदार हैगो,         
 जाणूं येक जीवन आब एक साल कम रैगो,     
 तब्बै खुशीयोंक दी जलूणक रिवाज आब न्हैगो,       
 जनमबारे दिन मोमबत्ती बुझोंणक चलन हैगो।                 
 
 जिन्दगी त्यर एक साल आइ कम हैगो,         
 पत्त नै कतु टैम  त्यर यां आइ रैगो,                 
 धपोड्लै जब केक तू जनमबार पर,             
 झन भुलिये वां बैठ रौ क्वे त्यर इन्तजार पर।       
 
 आपण सब्बै करनी, दुसरों लिजि लै कुछ कर जा,
 आघिल पिछ्याडि जाण सबूल छू  भल कर बे, बेशक आघिल न्है जा,         
 मरी बाद लै लोग मनाल त्यर जनम्बार ,             
 ज्योन छिना भाल काम यास करजा  द्वि चार।
 
 ज्योन छिना भाल काम करजालै द्वि-चार,
 जाण बाद लै मनाल लोग त्यर जनम्बार हर बार।             
  ...........................................................................मदन मोहन बिष्ट
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यौस झन समझिया मिं डरुणई....
क्वे लूंण रव्टल पेट भरर्णों,
क्वे कुकुड़ तितिर खैबै लै भुक्कै रूणों,
कुकुड़ तितिर ऑब बिलुप्तीक कगार पर छिन,
लोग तुमुन्कौ लै चै रयी, बच बे रया, .....यौस झन समझिया मिं डरुणई

गरीब नवाज लौकि आब पहुँच बे दूर न्हे गे,
जब बे जूसक चलन चलौ, लौकि लै VIP हैगे.
गदू, कर्याल लै रिशार थै रिशाई रिशाई जा छिन,
सोचो के बणाला के खाला, ....यौस झन समझिया मिं डरुणई

राजा महाराजा न्हे गेईं, आब मन्त्री सन्त्री ऐ गेईं.
पेट भरणक मजबूरी छु, चारा, सूटकेस, सड़क सब खाण लै रयी,
समान तुमर पास लै छु वीक सुरक्ष्याक तुम खुद जिम्मेदार छा, .....यौस झन समझिया मिं डरुणई

टीवी पर, मंच पर अधनंग मैंस पोज बणे बणे बे कशरत सिखूणई,
सब देखा देख उस्से करण लाग रईं,
उधिन के हौल जब सैणी उस्से सिखूँण लागल,
टीवी कं या नान्तिना कं, कैकं लुकाला, .....यौस झन समझिया मिं डरुणई....

पेंटिंग लगे बे, घंटी टांगी बे अशुभ कं शुभ करण लागि रयी,
क्वे दरौज तोड़ बेर वां गड्ड करण लाग रईं,
के हौल जब क्वे बताल घर मैं सितण, गिज़ाबाट खाण अशुभ हूँ,
कां रौला, कसी खाला, ......यौस झन समझिया मिं डरुणई l

पैल बखत यमदूत भैंस में ऊंछी, ऊन उनैं टैम लागि जांछी ,
आपण जिम्मेदारी निभे बे आदिम वीक बाट चै रूंछि,
आब स्पीडक जमान हैगो, यमदूतोंल लै जीप ट्रक ली हांली,
घर-घर जै निसकन बाट घट्टे टिप लि जानी,
भली कै जाया सड़क पर, तुम लै जाँ छा, ...यौस झन समझिया मिं डरुणई l

 

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