Author Topic: Kumaoni Poem by Sunder Kabdola-सुन्दर कबडोला की कुमाउनी कविताये  (Read 12434 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फिर भी मुझको दर्द नही “मै पत्थर होता”

फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

दिन तपाता
रात कँपाता
कितने दुख
कितने गम
पथ पे मैरे
अडँचन देती
शाम-सवेरे
प्रेम का बँन्धन
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

कोई बाँटे
जख्म दिलो को
कोई रुलाति
मुझे छलाति
पग-पग पे
कोई भुलाति
घृणा देति
दिलको मेरे
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

प्रेम का
सच्चा पंछी मिलता
मुझे हँसाति
मुझे रिझाति
प्रेम का बँन्धन
र्दद ना होता
अगर जँहा मे
प्रेम ना होता
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

लँहु-लौहान
करते मुझको
करे अंकाल
जो प्रेम कंकाल
देते मैरे
दिलको रैते
करे विंकाल
देखको मुझको
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

चमक जो जाता
प्रेम जगत मे
छिन-हतौडे
से तरस्ता
शब्द भी मेरा
उज्जवल होता
सच्चा प्रेमि
मिलता मुझको
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

सूरज-चाँद
रोज तपाते
सच्चा प्रेमि
मुझे बताते
फिर भी देखो
दिल है रोता
मेरा लेख
मुझे बताता
फिर भी मुझको दर्द नही
“मै पत्थर होता”

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सौण कु महैण

सौण कु महैण
रुम-झुमि बर्रखालि
झुम-झुमाट हैई छा
ऊँचो-निचोँ डाण्डि मा
फुल-पात खिलणी हौला
बोटु डाई मा
गोरु बाछा डोरि हला
पुछड धरि पुठ मा हौला
गोरु कु गौछार ले
बोटु डाई लुकि हला
गौ कु चेलि-ब्वारि घाँ घटवा
ख्वर मा धरि औणि हौला
चाह कु केतिल
चुल मा धरि खोलणि हौला
बुँढ-बाँढि दगड बैठि
र्फुर-र्फुराण फसैक कौला
कन रँगति यु पहाड
कै कु क्वीड चलणि हला
कै कु मन उदास हौला
सौण कु महैण

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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सुपणियो कि चेलि

कन रुप समाई रुपि छा
पुर कुँमो उजाणि काया छै
बण-बुँराशी लटुलि चा
गौर-फुनारी मुखडि चा
कै नि देखी यदुक मयालि
कौ गौ कि छै तू चेलि
पुर कुँमो उजाणि रुपि छै
नैनिताल समाई आँखण छा
अल्मोडा उलझि बालुण तेरो
कौसानी छलकि बोलि छै
हिटनी-हिटे कै गौ कि छै तू
नौ बतै जा कै मौ कि चेलि छै तू
जिकुडि मेरोँ…
यु त्वैमा फिसली चा
हे रुपसी कख जानी छै
सुपणियोँ मा आणि-जाणि छै
दी घडि रुक जा रुपसी
“तीस लगौणि कन पाई रुपि छा”
हे रुपसी…
कौल-करार लगैई जा
अब-कब हौलि भेट-भिटाणु
जिकुडि म्यर दु:खणि चा

“दी चार दिनु मा
दुर मुलुक जानु चा”
कै ता…
“बोल वचन बोलि जा
अपणु नौ खोलि जा”
त्यर दगडि ब्यौ रचणु
लिखणु अपणु सुपणियु चा॥
लिखणु अपणु सुपणियु चा॥

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई-बागेश्वर-उत्तराँखण्ड
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चला रे कलमु

सपने बुनु….
तुझ पे कविता लिखदु
दिल को र्दद रचना भरदु
प्रेम सराँश तुझ पे करदु
“चला रे कलमु”
‘सुवा’ नाम पर कुछ उद्धित करलु
उलझे बाल सुलझालु पहलु
तिरछि नजरे कागज पर देदु
मुल-मुल हैँसी शब्दोँ मे रचदु
दर्पण तेरे लेख मे भरदु
धनुष प्रेम मे तुरि चढालु
प्रेम बाण से ढाल हटालु
निशस्ञ प्रेम शँखनाद बजादु
शब्द घोष सी वार्णि तेरु
तुरि बाण से लिपिबद्ध करलु
शीत लहर सी मिठोँ-मिठोँ
एक चुभन सी कविता देदु

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई-बागेश्वर-उत्तराँखण्ड
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गौ-गुँठारु पँछि रे

एक उँडाण गौ-गुँठारु
घुमि आला डाना-काना
गाड़-ग्धेरा बगणि पाणि
तिस लगौणि ठण्डोँ जाणि
ईजा-बौज्यु थामि तिसु
खिलणी हौलि यु बुँराशु
जै दिन गौ-गुँठारु आला
गौ-गुँठारु पँछि रे

बोटा-डाई घोला छाडि
उडणि हौला चाँड पथिला
गोरु ले जाणि बण मा हौला
आस मा हौलि बुढि माँजि
शाष पडि तै लोटि आल
शाष पडि तै लोटि आल
गौ-गुँठारु पँछि रे

खिलणि हौलि यु हजारी
बोटु-डाई हौलि लाई
श्यार मा देखि पिँगलि रैई
घाँ हुणि घसैर रे
जै रुणि….
कै कु ईजा, कै कु चेलि
कै कु बैणि, कै कु सुवा
ट्यड-म्यडो-गढ़ भिडोँ बाँटु मा
बैठि हला आस मा
अब आला-कब आला
भेट भिटाणु….
गौ-गुँठारु पँछि रे

डँक-डँकई माँजि हैई
पाण कु पण्धेर मा
बिसे दिला यु चा बौझा
गौ-गुँठारु जै दिन आला
बाँट मा चाणि हौलि रे
आस मा रौलि रोज रे
तेरी माँजि मेरी माँजि
गौ-गुँठारु पँछि रे

बांझ पडि बौज्युक कुडि मा
दवार पटल टुटी रे
पाँख ले चुगणि हैगोँ रे
किले रे छाडि रे
हमर रे पहाड रे
चै-चितैई जाला
गौ-गुँठारु पँछि रे
एक उँडाण गौ-गुँठारु
एक उँडाण गौ-गुँठारु

लेख-सुन्दर कबडोला
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From - Sunder Kabdola

दारु मारु हैगोँ राम-

दारु-मारु हैगोँ राम

बिन यैकु कै दुँवा सलाम
रित-रिवार्ज ले हैगोँ जाम
एक घूँट मा ऐगोँ दाम
काम-काज ले हैगोँ राम
दारु-मारु हैगोँ राम

जागर तै पैलि दारु-मारु
फिर अवतारित हुणि राम
ब्याह बरातु यु छू राम
बिन यैकु नि हुणोँ काम
दारु-मारु हैगोँ राम

गौ कु ठेकु मा छू राम
शाम सबैर मुनई यु टेकु
घौर ऐबैर सबकु ठोकु
राम नाम कु भोग लगै
दारु-मारु हैगोँ राम

पैद हुण मा दारु-मारु
मरण कु स्या दारु-मारु
सुख मा राम
दुख मा राम
दारु-मारु हैगोँ राम

राम नाम भी सत्य है
दारु-मारु गत्य है
सकँल्प करो यु सीता राम
दारु मुक्ति उत्तँरा धाम
दारु मुक्ति उत्तँरा धाम

दारु-मारु हैगोँ राम
दारु-मारु ना हो राम

लेख-सुन्दर कबडोला
18/01/2013
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त्यार कु कविता“ओ साली मैले हुँछि त्यर दगडि होली हुँछि”
     
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कसकै खेलि होली रे
 मि रैग्यु परदेशु रे
 ओ साली मैले हुँछि
 त्यर दगडि होली हुँछि
ना कर साली मुँखडि मिजाति
 होली खेलि चल रे साली
 नि मारी पिचकारि धार
 मि रैग्यु तू घरदेशु पार
 बोल रे साली
 तेरो-मेरो होली कु वार
 “कसि करु मि लाल-लाल
 त्यर गरुरुडि गाल-गाल”
 “तू हलि घरफना
 कसकै लगु एक टिका गुलाल कु”
 मि रैग्यु परदेश पार
 “ओ साली मैले हुँछि
 त्यर दगडि होली हुँछि”
तू हलि होली खेलि
 गौ-बाँटा बौजि सँग
 भुलि ना तेरो जीजा
 उ रैग्यु परदेश पार
 उ रैग्यु परदेश पार
 एक पलु याद करु
 गुलालु टिक भेजु
 सोच जरा साली रे
 याद करि होली रे
 ओ साली मैले हुँछि
 त्यर दगडि होली हुँछि
जब हलि बैठ होली
 मन मा त्यर गीत हलि
 ठाड होली मा नाच रौलि
 छलड होई मा लुकि हौलि
 छप-छपि भिजि रौलि
 माँठ-माँठु ऐगो होली
 कसकै खेलु होली रे
 मि रैग्यु परदेश रे
 ओ साली मैले हुँछि
 त्यर दगडि होली हुँछि
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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“ओ गोरुँवा गावा नि बजा मुरुलि कु तान ना”

“ओ गोरुँवा गावा नि बजा मुरुलि कु तान ना”
 ऊँचो निचो डाण्डि मा
 रिमझिमा बरखा कु भाँदओ मा
 मैगणि याद ऐगे सुवा कु बुलाण
 परदेशु मा छू भागी
 मन मेरो उदास
डूटि मेरो ले-लँद्दाख
 बफिलो डाण्डि मा
 घुसपैठि ऐरि दुश्मन पडोस कु
 छुट्टि मेरो रोकि हैलिण
 देश कु पहेरी हैरिण
“ओ गोरुँवा गावा नि बजा मुरुलि कु तान ना”
 त्यर मुरुलि तान सुनि
 आँखा मेरो भैरि ऐरि
द्यु चार दिन हैई
 सुवा कु चिट्टि ऐई
 खोलि नै… पढि नै
 कै जवाब दैणु
 कै जवाब दैणु
 एक हाथा रैफेले मेरो
 जेब धरि.. सुवा कु चिट्टि मेरी
 दुश्मनु कु गोलि छुटि
 सुवा कु… कै जवाब दैणु
 दुश्मनु जवाब ऐगो
 दुश्मनु जवाब ऐगो
“लोटि जा रे गोरुँवा गावा”
 दुश्मनु कु गोलि छुटि
 सुवा कु..
 कै जवाब दैणु
 कै जवाब दैणु
लेख-सुन्दर कबडोला
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नि लगाओ नि लगाओ

हरि भरि दाण टुकि
नि लगाओ नि लगाओ
ऊँचो निचो दाण टुकि
हैरि भैरि धार रुखि
अदभुत रौनक ठाँड बैरि

नि जलाओ नि जलाओ
तुमँरु हमँरु यु पहाड
हैरि भैरि कै बिगै (नुकशान)
फल दारु गौर बाँछु
चरणि हैरि एक निवाल
ऊँचो निचो दाण टुकि
रुँडि दिना धुँघरि (धुँवा) पट

नि करो नि करो
पहाडुण दाण टुकि मा आग लगै
चाड़ पथिल उडणि फुर
“एक पेडु घोल पडि
चाड़ पौथि आण जलि”
सोचि मेरी बैणि दाज्यु
चाड़ पौथिल आँख भैरि
बेजुबाण प्राण भयि
अदत्त मदत्त पुकार नै
वैकु मुँया कैल मारि
आण भदैर सँसार नै
विनती मेरी गिनति तेरी
जैल लगाई आग रे
ऊँचो निचो दाण टुकि
नि लगाओ नि लगाओ
हरि भरि दाण टुकि

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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“रै मिस्तरि”

रै मिस्तरि”

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गार-माट कु उ चिनाई
अजर-अमर हैगिण रै
अब का ढुँढू….?
रै मिस्तरि

चार क्वाणोँ मा शैल धरि
राज मिस्तरि त्यर नौ पडि
पुरान कुडि मा छाप गडि
हाथ हतौडा कुरता पजामा
ख्वर मा वैकु टोपि रै
यु वेशभूषा मा…
पुरान कुडि कु मिस्तरि रै
कै छा देखि दगडियोँ तुमले
चार दिनोँ कु भुखे प्यासु

रै मिस्तरि
पुरान कुडि ले झर-झर हैगिण
एक रिपेयरिँग कर जा रै
बाँस-पात्थरा हिलणि हैगिण
दवार-पटला दिमंगि गिण
सौण-भादोँ सी…
गाड-ग्धेरोँ..म्यर भतैरोँ
ओ रे दगडियो
कथै हैराइण यु मिस्तरि
खोज खबर कर ल्यौव रै
“एक रिपेयरिँग पुरान कुडे तै”

वैकु जस…
‘interior’ धारि
का छु रै यु बखत
का छु रै यु बखत

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