Author Topic: Kumaoni Poem by Sunder Kabdola-सुन्दर कबडोला की कुमाउनी कविताये  (Read 12473 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting here some interesting & meaningful poem by young poet Mr Sunder Kabdola who is originally District Bageshwar. Mr Kabdola has written poem on various social issues of Pahad. Most of this poems are in Kumaoni.

We hope you would like poem of Mr Sunder Kabdola.

दुख छिपाती पहाडि नारि
“ओ रे मेरी पहाड कि नारि
 तुमको मेरा कलम सलाम”
लुट लगाती दुख छिपाती
 “कटै से लेकर बदै तलक
 खेत से लेकर लुट तलक”
 र्दद छिपाती काटो मे चलती
 “एक पुँवा से एक घटोव तक
 पैर हिटै से ख्वर धरण तक”
 ऐसी होती पहाडि नारि
विचँल अवस्था अचँल ये रहती
 माँग सिन्दुरि आस मे रहती
 “डाल दाँथुलि जोड लपेटि”
 इनसे पुछो र्दद छिपाती
 खेत खलियान दगडियो सँग
र्दद हँवा का झौका चलता
 “अँवाई घालि युँ र्दद छिपाती”
 जबै युँ पडती सिर मे इनके
 धर्म किनारे हल चलती
 ऐसी होती त्याग वेदना
 “कालि रुपि सरस्वति वार्णि”
 फिर भी सहेती दुख है प्यारि
समाज निगाह से…!
 कँटु वचन से…!
 भुर्ण हत्या से…!
 दहेज प्रथा से…!
 कैसी है रे त्याग वेदना
 ओ रे मेरी पहाड कि नारि
“तुमको मेरा कलम सलाम”
 निम (नियम) धर्म मे चलती है तूँ
 समाज निगाह से पिटती है तूँ
 पति प्रेम के हाथो पिटती
 विकल वेदना सहेती नारि
 सुख तलाश दुख पिड़ा मे
 दुख छिपती है ये नारि
क्या क्या ना सहेती.. है रे नारि
 दुख छिपाती…
 तेरी जीवन गाथा!
 दुख छिपाती…
 तेरी जीवन गाथा!
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved
http://phadikavitablog.wordpress.com



M S Mehta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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माय

घर छुटि बण छुटा
माय नि टूटि मायदारा

राति ब्याखुण शिल जै पिसण
हल्द खुसाणि माय जै ईजा
याद जै ऊणि राति ब्याखुण
जबै निकलणि आँखा डाँडु
परदेशी युँ चेला तेरो
माय लिबेरी माय जै हैगो
माय लिबेरी माय जै हैगो

दी डबलु मा कै छुटि ईजा
नि टूटि रे माय ईजा
चकाचौद सी नगरी मा
निशासी गो रे त्यर चेला
कसि बतु रे ओ ईजा
कसि कटणी दिन मेरा
भुखै प्यासु मुख मा थामु
नि थामिण हो ईजा यादु
नि थामिण हो ईजा यादु

ओ रे ईजा तेरो बात
याद जै ऊणि मैगणि आज
फुकै फुकै कि कै हुणि बात
कैकु सुपणियु कु खातिर
माय लिबेरी दिल्ली वाला
दी डबलु कु आँखा डाँडा
परदेशी यु चेला नाना
माय लिबेरी माय जै हैगिण
माय लिबेरी माय जै हैगिण

जबै यु चलणि आधि रात
खातड उडाई तेरी याद
ठण्ड गरम सी माया तेरो
कसि बतु रे ओ ईजा
तन लिबेरो तल गयो
मन छुटो रे घर मेरो
मन छुटो रे घर मेरो

एक पाँखा घर लगै
एक पाँखा तल जडै
फुर उडि रे दी किनार
परदेशी यु घैल पँछि
माय लगै घैल पँछि
माय लगै घैल पँछि

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola

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अदत्त मदत्त को आना रे

बैशाख महैणु होगी रुँडि
तभै पकै यु ग्युँ क बालि
ग्युँ आँठु मे नँऊ बादण मे
अदत्त मदत्त को आना रे

बैशाख महैणु देखिया रौनक
गढ भिडो मे लागिया कौतिक
ग्युँ बालि कु काटल दाथुलि
ज्वौड लपेडि नँऊ घटौवा
अदत्त मदत्त को आना रे

कही कटेगा ग्युँ क बालि
कही आँगण मे फेर फेर बैलि
ग्युँ दाणि मे चिल फटाँऊ
चुमँऊ ग्युँ मे धुसि लाठि
अदत्त मदत्त को आना रे

मौहट मे सुखलि ग्युँ दाणि
आकाश बै बरसि दौयो दाणि
प्राण सुखि जा मौहट समेटि
बैशाख महैणु झण मण रे
अदत्त मदत्त को आना रे

कही लगेगा लुट को डालि
कही सजेगा ब्यौ को डोलि
कही पडेगा धान बिणौडु
बैशाख महैणु चडकण घामु
अदत्त मदत्त को आना रे
अदत्त मदत्त को आना रे

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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हाई हाई रे हलिया …….!

पाँडुण हैग्यु हलियो हाल
सोना चाँदी जैसो भाव
मिल जा जैकुँ हलिया प्याँरु
खुश नसीब उँ बनिया न्याँरु
दीयु बँखै युँ नखँरा चलणि
ग्रेहुँ धान फसल मा यैकुँ देखो
हाई हाई रे हलिया …….!

जौकँ कुँ जैसो खून चुँसू
किस्त से पैलि किस्त उँठु
दीयु बँखै युँ हलिया नखरा
डँबलु मा मन वाँछित फल नि पैई
तबै युँ चलणि सिखुडै कि बेद
बल्दु कु पुँठणि सिखुडै कि रेख
हाई हाई रे हलिया …….!

लँठुरा जँठुरा कानि मा जुँवा
उगैर भरि युँ गँढ मा हलिया
दाँण टुँकि ले कँवरे छुटि
खनने खनने गुसै गुसैणि
पुँछड अमौरि बल्दु रेल
मौय मे डैल बल्दु कुँ यैले पैल
हाई हाई रे हलिया …….!

हथैण पकडि हाथु ले
चाँपर गुमैई सिखु मा
ठाँड असाँऊ यैकुँ नैहँडु
बल्दु कानि कान (छाला) लगै
गुसै गुसैणि आँफत रे
ब्याँव बखै अदि (शराब) चै
दुहर दिने युँ छुटि रे
हाई हाई रे हलिया …….!
हाई हाई रे हलिया …….!

लेख-सुन्दर कबडोला
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By Sunder Kabdola

मै अभागा भैजि तेरो- मै अभागण बैणि तेरो (ईजा बौज्यु हुणा मेरो)

अछो….. बैणि
आ खिले दे तौलि भात
भँट्ट डुबुक मुलि थैचि नूर्णि स्वाद
आ खिले दे कुरैट लागि रे तौलि भात
अगिल महैणु यु पैठु
तूँ बनलिल ब्यौलि बैणि
जबै सजल यु डोला तेरो
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
ईजा बौज्यु हुणा मेरो

ओ म्यर भैजि
रुँले रुँले बै बात करन छै
सुनले भैजि मेरो बात
ईजा बौज्यु हुणा मेरो
डौ (शिकायत) ले कुँछि तेरो भैजि
मै अभागण बैणि तेरी
कस छि ईजा बौज्यु रुप रे तेरो
त्वैमा देखि छँवि रे भैजि
त्वैमा देखि छँवि रे भैजि
तूँ छै मेरो ईजा बौज्यु
कभै नि छोडुण तेरो साथ
सुनले भैजि मेरो बात
कभै नि छोडुण तेरो साथ
रुँले रुँले बै बात करन छै
घुत मा लागल दुँल्हा तेरो
मि नि करनु ब्याँ हो भैजि

समाज निठुर छू बैणि मेरो
नौ धराँल रे मैसि मैमा
ईजा बौज्यु र्फज छै मेरो
सुनले मेरो बात रे बैणि
ईजा बौज्यु…
रात स्वैण मा ऊणि मेरो
बस त्यर बार मा पुछणि बैणि
बस त्यर बार मा पुछणि बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
ईजा बौज्यु हुणा मेरो

नि कर भैजि मैथे बात
कुटि (नाराज) छू रे तेरो साथ
नि कर भैजि मैथे बात
मै अभागण बैणि तेरी
जबै ले जुण रे त्वैगे छोडि
तूँ कसके रोले भैजि मेरो
कौ पकालु तेरो भात
मेलि कुचलि लुकडि (कपडे) तेरो
कौ ध्वौल रे भैजि तेरो रे

कै रे भैजि…
म्यर मन पिड़ा नि समझे भैजि
कसि छू सैति पालि त्वील
ईजा बौज्यु प्यार ले तूँ छै
भै बैणि कूँ साथ ले तूँ छै
तेरो मेरो युँ बँन्धन
कसकै छोडु रे बँन्धन
बोल रे भैजि
मै अभागण बैणि तेरी

ओ रे बैणि…
हाथ कु रक्षा धाँगा बैणि
सुख दुख कि छै तूँ बैणि
म्यर मन धाँकणा (इच्छा) पुर करदे बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
पाई पाई जोडि बैणि तेरो
त्यर ब्याँ करनु सुपणियु मेरो
ओ रे बैणि…
जबै तूँ बणलि ब्यौलि बैणि
सात फैरो मा रैँगि रैँगि
म्यर आँख्यु कु आँसू मा
पराई अमानत छै तूँ बैणि
रोक सँकु ना त्वैगे बैणि
ना युँ आँख्यु कु आँसू बैणि

सुनले मेरो बात रे बैणि
जबै सजल युँ डोला तेरो
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि

मै अभागा भैजि तेरो
झट पकै दे तौलि भात
भँट्ट डुबुक मुलि थैचि नूर्णि स्वाद
फिर नि जाणि कभै मिल रे
त्यर पकाई हाथु भात
जी भरबै… खँवै दे बैणि आज
त्यर अभागा भैजि भुखो
त्यर अभागा भैजि भुखो

लेख-सुन्दर कबडोला
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मय्या कै दर पे होली

हाट गौ कि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
साथ मे आऐ मँस्त मँलग हुँयार है आऐ
गुलाल लगा कै थाल सँजा कै
मय्या तेरे दर पे आऐ
“कोई तुझको कालि बोले
कोई बोले गौरि तुझको”
दर पे तेरे होली लाऐ
होली सँग भक्त है आऐ
मय्या तेरी महिमा गाऐ
मँस्त मँलग हुँयार है आऐ
‘तुझको रँगनै तुझको पुँजनै’
गुलाल लगा कै थाल सँजा कै
मय्या तेरे दर पे आऐ
नर कै नारि नान कै बुँढा

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चलो रे भँक्तोँ चलो रे बँन्धु
“बुँराश खिले गे ढोलँ बजे गे
मय्या कै दर पे गुलाल उडे गे”
दियाँ उठा कै बाँथ जला कै
शिव गौरि कि महिमा कर कै
गुलाल उँडाओ कालि कै दर पे

चलो रे भँक्तो चलो रे बँन्धु
ढोलँ उठाओ हुँड्डुक बँजाओ
मय्या कै दर पे गुलाल उँडाओ
चुनर भिजा कै गुलाल लगा कै
माँ मँमता कि महिमा गाँओ

काल रुँपणि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
“मय्या तेरे दर्शन के प्यासै
प्यास भुजा दे दर्शन दे कै”
भक्त है आऐ दर पे तेरे
थाल सँजा कै होली ले कै
मय्या तेरे दर पे आऐ

तूँ भय हरणि काल रुँपणि
श्याम वर्ण शोभित मुड़ माला
चक्र है धारि ञिशूल- भाला
काल रुँपणि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
थाल सँजा कै गुलाल लगा कै
हाट गौ कि कालका मय्या
सदा ही तेरी जय-जय कार
सदा ही तेरी जय-जय कार

लेख-सुन्दर कबडोला
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छिलुँ जलै खौजि ल्यु

चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

हिल-मिल पहाडि छिलुँ जलै
छिलुँ जलै कि हाथ सरै
खौजि-मौजि यु रण मै
कुँर्मो-गँड्डे सँस्कृति लौ मै
बुँढ-बाँढा रितु रैण
अण्यार पडै यु बटै घटै
पुश्त पुतै ले हेगै फाम
पुश्त पुतै ले हेगै फाम

चल चला रे चल पहाडि
धाँरु वाँरु पाँरु मा
पैद हैई यु माँटु मा
रित-रैज कु छिलुँ जलै
चार रितु कु आँठ रिर्वाज
छिलुँ जलै कि खौजि आज
बिति गै रै कदुक जमान
अन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
“बिन पानि कु गगरि बोल
कै छु दगडि सँस्कृति मोल”

चल चला रे चल पहाडि
ज्युँ बिखरि छू रे हमँरु वन मा
खौजि लैणु बुढि आँखा
पुश्त पुतै आधार हमारोँ
जैकि टक टकि यु हमरि आँखा
चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

लेख-सुन्दर कबडोला
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‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवोँ’

 

‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवोँ’
उत्तँराचल कु आँचल मा
आँचल कु यु कण कण मा
देव बसि यु
गाड़ ग्धेरोँ माँटु मा
धार नँऊ कु बाँटु मा
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ

शिव जँटा कु गंगा धार
गोऊ मुखि कु गौमती गाड़
डाँण्डि ढुँगि कु खूटि मा
छण छण पाणि कु ध्वनि
शँखनाँद तुमरोँ राति ब्याखुण
जोत जगि यु तुमँरु नौउ
तुमि बसि छा तुमि छा देवोँ
अत्तँराचल कु कण कण मा

‘तुमि छा लाटु’ ‘तुमि छा भैँरु’
देवभुमि कु भुँमाऊ देवोँ
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ
मेघ घाम कु बण बौटि मा
फुल पात कु चाड़ पौथि मा
तुमि बसि छा तुमि छा देवोँ
उत्तँराचल कु कण कण मा

पाँच पुञ संग द्रोपति कुन्ति मय्या
एक रात कु रचना तुमरि
हाट गौ कु कालका मन्दिर
बैजनाथ मा ईष्ट देव कु शिव मन्दिर
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ
अत्तँराचल कु कण कण मा

सब रुप छा बिखरि तुमरि गौत
देव वाँध्य मा तुमरि जोत
थाल हुँडुकि अवतारित हुँछा
बोल वचण कु तुमि रचैता
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’
पैद हुण कु तुमि रचैता
मरण कु श्याँ तुमि बनैता
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’

‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवो’
अत्तँराखण्ड कु सस्कृति मा
तबै पडे यु नौ तुमाँरु
देव भुमि छा उत्तँराचल
‘तुमि रचैता’
‘तुमि बनैता’
‘तुमि बसि छा’
‘तुमि छा देवो’
अत्तँराचल कु कण कण मा

लेख-सुन्दर कबडोला
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म्यर सुवा

“प्रेम गुँछै कि छै तू सैणि
माय गुँछै कि छै तू सैणि”

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जन्म जमान्तर कि छै सैणि

एक लाख कु सवा सौ सैरि
सात फैरो कि छै तू सैणि
मन प्रेम कु दर्पण छै
एक चुटकि सिन्दर तै
तै सुहागण छै तू सैणि

तेरो मेरो यु धर्म
सात फैरो कु सात कसम
हैँसि खेलि निर्भे दे सैणि यु धर्म

जूँ मरण कु गीत सदा
चलते रुणि म्यर सुवा
माय नि जान जौसर तै
ना सुवा कु प्रीत तेरी
ना इज-बबै यु रित तेरी
रै जै यु दुनि
हे सुवा रिश्तो कु जन जाल यथै
चार दिनु कु जूँ मिले
हैँसि खेलि निर्भे दे सैणि यु धर्म

मि ता नि रु सदा यु मेरो बोल
जब कबै याद जू आला
आँख मा आसू नर्म ता हाल

सदा नि रुणि एक मुलार
जूँ मँरण कु गीत सदा
चलते रुणि म्यर सुवा
चलते रुणि म्यर सुवा

लेख-सुन्दर कबडोला
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ओ सिपैई दाज्यु



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Category Archives: पहाडि कविता ब्लाँग   
दुख छिपाती पहाडि नारि
 
 
 
 
 
 

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“ओ रे मेरी पहाड कि नारि
तुमको मेरा कलम सलाम”

लुट लगाती दुख छिपाती
“कटै से लेकर बदै तलक
खेत से लेकर लुट तलक”
र्दद छिपाती काटो मे चलती
“एक पुँवा से एक घटोव तक
पैर हिटै से ख्वर धरण तक”
ऐसी होती पहाडि नारि

विचँल अवस्था अचँल ये रहती
माँग सिन्दुरि आस मे रहती
“डाल दाँथुलि जोड लपेटि”
इनसे पुछो र्दद छिपाती
खेत खलियान दगडियो सँग

र्दद हँवा का झौका चलता
“अँवाई घालि युँ र्दद छिपाती”
जबै युँ पडती सिर मे इनके
धर्म किनारे हल चलती
ऐसी होती त्याग वेदना
“कालि रुपि सरस्वति वार्णि”
फिर भी सहेती दुख है प्यारि

समाज निगाह से…!
कँटु वचन से…!
भुर्ण हत्या से…!
दहेज प्रथा से…!
कैसी है रे त्याग वेदना
ओ रे मेरी पहाड कि नारि

“तुमको मेरा कलम सलाम”
निम (नियम) धर्म मे चलती है तूँ
समाज निगाह से पिटती है तूँ
पति प्रेम के हाथो पिटती
विकल वेदना सहेती नारि
सुख तलाश दुख पिड़ा मे
दुख छिपती है ये नारि

क्या क्या ना सहेती.. है रे नारि
दुख छिपाती…
तेरी जीवन गाथा!
दुख छिपाती…
तेरी जीवन गाथा!

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Image | Posted on April 6, 2013   
माय
 
 
 
 
 
 

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घर छुटि बण छुटा
माय नि टूटि मायदारा

राति ब्याखुण शिल जै पिसण
हल्द खुसाणि माय जै ईजा
याद जै ऊणि राति ब्याखुण
जबै निकलणि आँखा डाँडु
परदेशी युँ चेला तेरो
माय लिबेरी माय जै हैगो
माय लिबेरी माय जै हैगो

दी डबलु मा कै छुटि ईजा
नि टूटि रे माय ईजा
चकाचौद सी नगरी मा
निशासी गो रे त्यर चेला
कसि बतु रे ओ ईजा
कसि कटणी दिन मेरा
भुखै प्यासु मुख मा थामु
नि थामिण हो ईजा यादु
नि थामिण हो ईजा यादु

ओ रे ईजा तेरो बात
याद जै ऊणि मैगणि आज
फुकै फुकै कि कै हुणि बात
कैकु सुपणियु कु खातिर
माय लिबेरी दिल्ली वाला
दी डबलु कु आँखा डाँडा
परदेशी यु चेला नाना
माय लिबेरी माय जै हैगिण
माय लिबेरी माय जै हैगिण

जबै यु चलणि आधि रात
खातड उडाई तेरी याद
ठण्ड गरम सी माया तेरो
कसि बतु रे ओ ईजा
तन लिबेरो तल गयो
मन छुटो रे घर मेरो
मन छुटो रे घर मेरो

एक पाँखा घर लगै
एक पाँखा तल जडै
फुर उडि रे दी किनार
परदेशी यु घैल पँछि
माय लगै घैल पँछि
माय लगै घैल पँछि

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Aside | Posted on April 4, 2013   
अदत्त मदत्त को आना रे
 
 
 
 
 
 

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बैशाख महैणु होगी रुँडि
तभै पकै यु ग्युँ क बालि
ग्युँ आँठु मे नँऊ बादण मे
अदत्त मदत्त को आना रे

बैशाख महैणु देखिया रौनक
गढ भिडो मे लागिया कौतिक
ग्युँ बालि कु काटल दाथुलि
ज्वौड लपेडि नँऊ घटौवा
अदत्त मदत्त को आना रे

कही कटेगा ग्युँ क बालि
कही आँगण मे फेर फेर बैलि
ग्युँ दाणि मे चिल फटाँऊ
चुमँऊ ग्युँ मे धुसि लाठि
अदत्त मदत्त को आना रे

मौहट मे सुखलि ग्युँ दाणि
आकाश बै बरसि दौयो दाणि
प्राण सुखि जा मौहट समेटि
बैशाख महैणु झण मण रे
अदत्त मदत्त को आना रे

कही लगेगा लुट को डालि
कही सजेगा ब्यौ को डोलि
कही पडेगा धान बिणौडु
बैशाख महैणु चडकण घामु
अदत्त मदत्त को आना रे
अदत्त मदत्त को आना रे

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Aside | Posted on April 4, 2013   
हाई हाई रे हलिया …….!
 
 
 
 
 
 

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पाँडुण हैग्यु हलियो हाल
सोना चाँदी जैसो भाव
मिल जा जैकुँ हलिया प्याँरु
खुश नसीब उँ बनिया न्याँरु
दीयु बँखै युँ नखँरा चलणि
ग्रेहुँ धान फसल मा यैकुँ देखो
हाई हाई रे हलिया …….!

जौकँ कुँ जैसो खून चुँसू
किस्त से पैलि किस्त उँठु
दीयु बँखै युँ हलिया नखरा
डँबलु मा मन वाँछित फल नि पैई
तबै युँ चलणि सिखुडै कि बेद
बल्दु कु पुँठणि सिखुडै कि रेख
हाई हाई रे हलिया …….!

लँठुरा जँठुरा कानि मा जुँवा
उगैर भरि युँ गँढ मा हलिया
दाँण टुँकि ले कँवरे छुटि
खनने खनने गुसै गुसैणि
पुँछड अमौरि बल्दु रेल
मौय मे डैल बल्दु कुँ यैले पैल
हाई हाई रे हलिया …….!

हथैण पकडि हाथु ले
चाँपर गुमैई सिखु मा
ठाँड असाँऊ यैकुँ नैहँडु
बल्दु कानि कान (छाला) लगै
गुसै गुसैणि आँफत रे
ब्याँव बखै अदि (शराब) चै
दुहर दिने युँ छुटि रे
हाई हाई रे हलिया …….!
हाई हाई रे हलिया …….!

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved
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Aside | Posted on March 16, 2013   
मै अभागा भैजि तेरो- मै अभागण बैणि तेरो (ईजा बौज्यु हुणा मेरो)
 
 
 
 
 
 

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अछो….. बैणि
आ खिले दे तौलि भात
भँट्ट डुबुक मुलि थैचि नूर्णि स्वाद
आ खिले दे कुरैट लागि रे तौलि भात
अगिल महैणु यु पैठु
तूँ बनलिल ब्यौलि बैणि
जबै सजल यु डोला तेरो
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
ईजा बौज्यु हुणा मेरो

ओ म्यर भैजि
रुँले रुँले बै बात करन छै
सुनले भैजि मेरो बात
ईजा बौज्यु हुणा मेरो
डौ (शिकायत) ले कुँछि तेरो भैजि
मै अभागण बैणि तेरी
कस छि ईजा बौज्यु रुप रे तेरो
त्वैमा देखि छँवि रे भैजि
त्वैमा देखि छँवि रे भैजि
तूँ छै मेरो ईजा बौज्यु
कभै नि छोडुण तेरो साथ
सुनले भैजि मेरो बात
कभै नि छोडुण तेरो साथ
रुँले रुँले बै बात करन छै
घुत मा लागल दुँल्हा तेरो
मि नि करनु ब्याँ हो भैजि

समाज निठुर छू बैणि मेरो
नौ धराँल रे मैसि मैमा
ईजा बौज्यु र्फज छै मेरो
सुनले मेरो बात रे बैणि
ईजा बौज्यु…
रात स्वैण मा ऊणि मेरो
बस त्यर बार मा पुछणि बैणि
बस त्यर बार मा पुछणि बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
ईजा बौज्यु हुणा मेरो

नि कर भैजि मैथे बात
कुटि (नाराज) छू रे तेरो साथ
नि कर भैजि मैथे बात
मै अभागण बैणि तेरी
जबै ले जुण रे त्वैगे छोडि
तूँ कसके रोले भैजि मेरो
कौ पकालु तेरो भात
मेलि कुचलि लुकडि (कपडे) तेरो
कौ ध्वौल रे भैजि तेरो रे

कै रे भैजि…
म्यर मन पिड़ा नि समझे भैजि
कसि छू सैति पालि त्वील
ईजा बौज्यु प्यार ले तूँ छै
भै बैणि कूँ साथ ले तूँ छै
तेरो मेरो युँ बँन्धन
कसकै छोडु रे बँन्धन
बोल रे भैजि
मै अभागण बैणि तेरी

ओ रे बैणि…
हाथ कु रक्षा धाँगा बैणि
सुख दुख कि छै तूँ बैणि
म्यर मन धाँकणा (इच्छा) पुर करदे बैणि
मै अभागा भैजि तेरो
पाई पाई जोडि बैणि तेरो
त्यर ब्याँ करनु सुपणियु मेरो
ओ रे बैणि…
जबै तूँ बणलि ब्यौलि बैणि
सात फैरो मा रैँगि रैँगि
म्यर आँख्यु कु आँसू मा
पराई अमानत छै तूँ बैणि
रोक सँकु ना त्वैगे बैणि
ना युँ आँख्यु कु आँसू बैणि

सुनले मेरो बात रे बैणि
जबै सजल युँ डोला तेरो
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि
भैजि आँख्युमा नि चैई बैणि

मै अभागा भैजि तेरो
झट पकै दे तौलि भात
भँट्ट डुबुक मुलि थैचि नूर्णि स्वाद
फिर नि जाणि कभै मिल रे
त्यर पकाई हाथु भात
जी भरबै… खँवै दे बैणि आज
त्यर अभागा भैजि भुखो
त्यर अभागा भैजि भुखो

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved
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Aside | Posted on March 15, 2013   
मय्या कै दर पे होली
 
 
 
 
 
 

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हाट गौ कि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
साथ मे आऐ मँस्त मँलग हुँयार है आऐ
गुलाल लगा कै थाल सँजा कै
मय्या तेरे दर पे आऐ
“कोई तुझको कालि बोले
कोई बोले गौरि तुझको”
दर पे तेरे होली लाऐ
होली सँग भक्त है आऐ
मय्या तेरी महिमा गाऐ
मँस्त मँलग हुँयार है आऐ
‘तुझको रँगनै तुझको पुँजनै’
गुलाल लगा कै थाल सँजा कै
मय्या तेरे दर पे आऐ
नर कै नारि नान कै बुँढा

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चलो रे भँक्तोँ चलो रे बँन्धु
“बुँराश खिले गे ढोलँ बजे गे
मय्या कै दर पे गुलाल उडे गे”
दियाँ उठा कै बाँथ जला कै
शिव गौरि कि महिमा कर कै
गुलाल उँडाओ कालि कै दर पे

चलो रे भँक्तो चलो रे बँन्धु
ढोलँ उठाओ हुँड्डुक बँजाओ
मय्या कै दर पे गुलाल उँडाओ
चुनर भिजा कै गुलाल लगा कै
माँ मँमता कि महिमा गाँओ

काल रुँपणि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
“मय्या तेरे दर्शन के प्यासै
प्यास भुजा दे दर्शन दे कै”
भक्त है आऐ दर पे तेरे
थाल सँजा कै होली ले कै
मय्या तेरे दर पे आऐ

तूँ भय हरणि काल रुँपणि
श्याम वर्ण शोभित मुड़ माला
चक्र है धारि ञिशूल- भाला
काल रुँपणि कालका मय्या
दर पे तेरे होली लाऐ
थाल सँजा कै गुलाल लगा कै
हाट गौ कि कालका मय्या
सदा ही तेरी जय-जय कार
सदा ही तेरी जय-जय कार

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved
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Aside | Posted on March 6, 2013   
छिलुँ जलै खौजि ल्यु
 
 
 
 
 
 

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चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

हिल-मिल पहाडि छिलुँ जलै
छिलुँ जलै कि हाथ सरै
खौजि-मौजि यु रण मै
कुँर्मो-गँड्डे सँस्कृति लौ मै
बुँढ-बाँढा रितु रैण
अण्यार पडै यु बटै घटै
पुश्त पुतै ले हेगै फाम
पुश्त पुतै ले हेगै फाम

चल चला रे चल पहाडि
धाँरु वाँरु पाँरु मा
पैद हैई यु माँटु मा
रित-रैज कु छिलुँ जलै
चार रितु कु आँठ रिर्वाज
छिलुँ जलै कि खौजि आज
बिति गै रै कदुक जमान
अन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
“बिन पानि कु गगरि बोल
कै छु दगडि सँस्कृति मोल”

चल चला रे चल पहाडि
ज्युँ बिखरि छू रे हमँरु वन मा
खौजि लैणु बुढि आँखा
पुश्त पुतै आधार हमारोँ
जैकि टक टकि यु हमरि आँखा
चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved
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Aside | Posted on March 5, 2013   
‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवोँ’
 
 
 
 
 
 

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‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवोँ’
उत्तँराचल कु आँचल मा
आँचल कु यु कण कण मा
देव बसि यु
गाड़ ग्धेरोँ माँटु मा
धार नँऊ कु बाँटु मा
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ

शिव जँटा कु गंगा धार
गोऊ मुखि कु गौमती गाड़
डाँण्डि ढुँगि कु खूटि मा
छण छण पाणि कु ध्वनि
शँखनाँद तुमरोँ राति ब्याखुण
जोत जगि यु तुमँरु नौउ
तुमि बसि छा तुमि छा देवोँ
अत्तँराचल कु कण कण मा

‘तुमि छा लाटु’ ‘तुमि छा भैँरु’
देवभुमि कु भुँमाऊ देवोँ
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ
मेघ घाम कु बण बौटि मा
फुल पात कु चाड़ पौथि मा
तुमि बसि छा तुमि छा देवोँ
उत्तँराचल कु कण कण मा

पाँच पुञ संग द्रोपति कुन्ति मय्या
एक रात कु रचना तुमरि
हाट गौ कु कालका मन्दिर
बैजनाथ मा ईष्ट देव कु शिव मन्दिर
तुमि रचैता तुमि छा देवोँ
अत्तँराचल कु कण कण मा

सब रुप छा बिखरि तुमरि गौत
देव वाँध्य मा तुमरि जोत
थाल हुँडुकि अवतारित हुँछा
बोल वचण कु तुमि रचैता
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’
पैद हुण कु तुमि रचैता
मरण कु श्याँ तुमि बनैता
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’
‘जूँ मरण कु गीत तुमि छा’

‘तुमि बसि छा’ ‘तुमि छा देवो’
अत्तँराखण्ड कु सस्कृति मा
तबै पडे यु नौ तुमाँरु
देव भुमि छा उत्तँराचल
‘तुमि रचैता’
‘तुमि बनैता’
‘तुमि बसि छा’
‘तुमि छा देवो’
अत्तँराचल कु कण कण मा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved
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Aside | Posted on March 2, 2013   
म्यर सुवा
 
 
 
 
 
 

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“प्रेम गुँछै कि छै तू सैणि
माय गुँछै कि छै तू सैणि”

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जन्म जमान्तर कि छै सैणि

एक लाख कु सवा सौ सैरि
सात फैरो कि छै तू सैणि
मन प्रेम कु दर्पण छै
एक चुटकि सिन्दर तै
तै सुहागण छै तू सैणि

तेरो मेरो यु धर्म
सात फैरो कु सात कसम
हैँसि खेलि निर्भे दे सैणि यु धर्म

जूँ मरण कु गीत सदा
चलते रुणि म्यर सुवा
माय नि जान जौसर तै
ना सुवा कु प्रीत तेरी
ना इज-बबै यु रित तेरी
रै जै यु दुनि
हे सुवा रिश्तो कु जन जाल यथै
चार दिनु कु जूँ मिले
हैँसि खेलि निर्भे दे सैणि यु धर्म

मि ता नि रु सदा यु मेरो बोल
जब कबै याद जू आला
आँख मा आसू नर्म ता हाल

सदा नि रुणि एक मुलार
जूँ मँरण कु गीत सदा
चलते रुणि म्यर सुवा
चलते रुणि म्यर सुवा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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Aside | Posted on February 26, 2013   
ओ सिपैई दाज्यु
 
 
 
 
 
 

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ओ सिपैई दाज्यु
लेफ्ट राईट… लेफ्ट राईट…
रोज त्यर परेड छा
हाथ कु बँन्दुक त्यर
जूँ पराण हथैल धरि
सिना तानि गोलि तै
दुश्मनु कु भेद कै
दुश्मनु कु भेद कै
ओ सिपैई दाज्यु
खूट मा त्यर प्रणाम छा
ठण्ड गरम त्वैमा ना
बिन मौसम पराण छै
भै-बैणि, इज-बबा, सुवा तै दूर छै
बोडँरु मा लागि छा
ओ भगवति माता
रखदे आपण हाथ रे
कै कु च्याला कै कु मुँया
बोडँरु तैनात छा
अपणु जूँ पराण
देश कु निछाँर कु
बोडँरु तैनात छू

गढ-कुँर्मो रेजिमेण्ट
सुख-दुखै कि कै छू बात
इनरि मनमा नि छू आज
ओ सिपैई दाज्यु
खूट मा त्यर प्रणाम छू
त्यागि तुमुल माया रे
त्यागि तुमुल यु पराण
देश कु खातिर रे
कुँर्मो-गँढु कु सिपै
तुमरि वीर गाथा रे
उत्तँराखण्ड कु गर्व रे
तुमरि वीर गाथा रे

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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