Author Topic: Kumaoni Poems By Hem Chand Joshi-कुमाउनी कविताये हेम चन्द्र जोशी  (Read 5082 times)

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काहुं जां भ्रष्टाचार


अमरिका बै पड़ि, धाद,भारत वालो!/
भलि कै, करो बात.
कुण लागि,विक्टोरिया न्यूलैण्ड,/
प्रवक्ता अमरिकाक, विदेश विभाग.
हमरि धाक, पुर दुनि  में,/
भ्रष्टाचार मामुल, लोकतांत्रिक  अनशन.
बिगराड भै, हमरि नीति,/
उकैं समर्थन, करूं क्वे शान्तिपूर्ण प्रदर्शन.
 मन्त्री कुनैई भ्रष्टाचार मिटुण हुं,/
गैरवाजिब छु  अन्ना य प्रदर्शन .
मिलण लाग मौक ,य भीतेरैकि बात,/
लोकपाल  बिल क, लिज़ि अनशन .
क्वे  कुनैई ब्लैकमेलर उनुधैं,/
सवाल! को छा तुम?के छा? निकरो ज़िद.
जबाब उनों ,जनसेवा करुं मन्दिर में रौं,/   
सेना में रैंई,  ईतुलै न्है तों मैं सिद.
आब लाल किलै कि, प्राचीर बटि,/
भारत क प्रधानमंत्रील, उठै हेलौ सवाल.
के लै मदद नि कर सकन य अनशन,/
निकरो जनलोकपाल क लिज़ि य बबाल.
भ्रष्टाचार कैं मिटुण, हमरि पैलि  चाहत छु,/
संसद में ल्यूनियां, हम एक मजबूत लोकपाल.
एक भै विधान, एक ढंग छु,/
उमैं नि बैठ सकौ, तुमर जनलोकपाल.
गिरफ्तार करि तिहाड़ जेल खिति अन्ना,/
वैं बै करण लाग अनशन.
जनलोकपाल बिल कैं ,/
मिलण लागि, भारि जन समर्थन.
एकबटिण जनता, /
घेरि हालौ जेल तिहाड़.
मैं छु अन्ना, मैं छु अन्ना,/
पड़ि गे दहाड़.
तिहाड़ भेजणैकि सला,/
हैगे भारि भूल.
सरकाराक आब जै,/
हिलण लागिं चूल.
अनशन रोकणैं कि, य चाल,/
फ़िट नि भै , हैगे बेकार.
अनशनै कि लिज़ि जाग,/
आपुड़्हाथि बणैं बेर दिनै सरकार.
ज्वान- बुड़,  मुंड- झुंड रामलिलौ मैदान,/
जनता जनार्जन दौड़ गे,  जसि ऎं आंधी.
सबनै हाथन मैं छु तिरंग,/
नार लाग्नैई, अन्ना, तुम छा, आजक गांधी.
खिसियै गैंई अरूणा,अरुन्धति,
सुणों उनर लै हाल.
जनसमर्थन देखि रिसी गैंई,/ ,
कुतर्क  करि, उठुनैई सवाल.
लेख छापि रौ  हिन्दू /
कां छी अन्ना उभत.
किसान आपुण अन्त,/
कर नौ छी जभत.
किर्केट्क जश्न जै, है रौ,
य तुमर अनशन,
नि औंन  जनलोकपाल/
निकरो  भ्रष्टाचारक य प्रदर्शन.
अरे! भाल मैंसो पुछो आपुधै./
देश में कतु फैल गो भ्रष्टाचार.
आजादी कैं आदु संवत बिति,/
आई लै क्वे,  नि करनै यस विचार.

किलै कर नौ छा,वीक लौ मन्द,/
अन्ना ल जगै हैलि, जो मशाल.
समाजाक खम्भ तुम, यस निकरो,/
सार देश कुनौ आज, ल्याओ लोकपाल.
ठुल नेता आब कुण लाग,/
अन्ना मनाओ , अन्ना मानि जाओ.
जिद छोड़ो समझौत करो,/
क्वे बीच क बाट अपनाओ.
हमर बातचीत क द्वार छन खुल,/
आपुड़ जिद छोड़ि ऎगे सरकार.
मिल बैठ मजबूत लोकपाल बणूनूं/
देखो देखनै रौला, काहुं जां भ्रष्टाचार


  By-  Hem chandra joshi( Almora)

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काहुं जां
भ्रष्टाचार.

सबै छ्न लाचार ,
मिटुण छु भ्रष्टाचार.
सरकारक  सब चाल,
 है गैंई बेकार.
जन लोकपालै कि लिजि ,
अन्नाल भरि हैलि हुंकार ,
 दिल्लीक  राम लीला मैदान,
उठिगो  भ्रष्टाचार क सवाल,
सार देश अन्ना अन्ना है गै,
मचि गो धमाल,
डटि रओ अन्ना दगडी छ्न ,
 भारताक आम  जन  .
दक्छिण  बै  गांधी ज्यूक दगडि ,
श्री वैंकट के  कुनैई ,
गांधी है बेर अन्ना ,
आघिल नै गैंई .
विशिष्ट  जन  कुनैई,
को छु अन्ना, भ्रष्ट छु अन्ना,
 आम जन भारताक कुनैई,
 मैं छु अन्ना मैं छु अन्ना.
कैभै कुनै  छन,
 तुमर जन लोक पाल ,
कैभै कुनै छन,
 हमर मजबूत लोक पाल .
संवेदनशील छी अंग्रेज,
सुण छी गांधी ज्यूक सवाल.
य संवेदनहीन भ्रष्टाचार में लीन,
मचै सकनि बबाल ,
कभै संसद कभै संविधान ,
 नई नई लागनैई ल्याख.
जगै हैलि अन्नाल  सब जन ,
सार देश लागणै लागि जाग.   


                                                 



Hem chandra joshi (Almora)

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Re: kumaoni Poems
« Reply #2 on: January 09, 2012, 10:55:17 AM »
भ्रष्टाचारक मामुल



आई ऎ गैंई अन्ना,/
ल्ही बेर, जन मुछ्याव.
लाग्नौ, निमानि उनरि बात,/
संसद्क प्रस्ताव, पड़ि गो खाव.
राले गांव छोड़ि, दिल्ली पुजि अन्ना, /
कास छन ,बड़ जल्दि ठुल भ, उनर भाव.
कुनैई, भ्रष्टाचार मिटूण बणि, दुसरि लड़ाई,/
आओ ज्वानो, आई दिखाओ ताव.
ग्वार छी न्है गैंई, काव भै रैंई,/
भ्रष्टाचारक छु सवाल .
जन्तर मन्तर, एक दिनक अनशन,/
सब मिलि बड़ाओ, सखत लोकपाल.
दैंण ,बौं, जद सप, ऐ गैंई दगड़ि,/
लोकपाल बणि गो, राजनैतिक मामुल.
कुनौ विपक्ष, तय करेलि संसद,/
य भै वीक काम, यस हम मानुल.
क्वे कुनैई, अन्ना है गैंई,/
 अलोकतांत्रिक.   
संसद्क काम भै,कानून दिण,/
 य ढंग छु लोकतांत्रिक.
यस किसमक बण रौ मसौद ,/
आब संबिधानिक होल लोकपाल.
द्वि बटा तीनौक, चक्कर में,/
लट्कौल सालोंसाल.
राजनैतिक प्रपंचन में फ़सि गो,/
 य सखत लोकपाल,
लोकायुक्त, लोकपाल कि लड़ाई,/
 कैं भोव कौला बड़ाओ  धरमपाल.
भ्रष्टाचारक मामुल




Hem chandra joshi (HEM)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जोशी जी बहुत सुंदर कविता लिखी छो आपुन भ्रष्टाचार पर!
जारी रखिये महराज.

Bhishma Kukreti

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जुगराज रयां जोशी जी !

जु आपन भस्त्र तंत्र पर बढ़िया अर कविता बन्दळ (ह्ल की फल नोक) जन तीखी नोक वळी छन जो भ्रस्टाचारी रूपी कठोर धरती तैं चीरी दीदन 

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जीएम फ़सल


किसान दगड़ियो!
आई है जाओ तैयार,
नई नई अवतार,
ल्हिनों भ्रष्टाचार.
ब्राइबिल छु उनौं,
बाट साफ़ करण,
लागि सरकार.
बिन हाल गुल ,
बिराउ जै चार,
पुजि गो, हमर द्वार,
के कौ ! ब्राइबिल,
होय क, बी० आर० ए० आइ० बिल,
बायोटैक्नोलाजी रेगुलेटरी,
आथोरिटी औफ़ इन्डिया ,
उजाड़ि दयोल, हमरि फ़सल.
य कानून कैं उणै झन दिया.
य छु जी एम,
फ़सलनौंक पैरोकार,
शंका छु ,
है जालि हमरि कृषि,
पर्यावरण बेकार.
जी एम फ़सल य कसि ,
नई तकनीक छु भुलि.
जीन बदलि बेर,
बीज बड़ूनि,
जनैटिकलि मोडिफ़ाइड,
य धैं कुनि.
याद छु, पोरिबेर बीटी बैगण क,
उठि छि सवाल.
उभत रोक लगै सरकारल,
थामि दे छी बबाल.
आब हमर पुश्तैनी बीजों क,
होल अकाल.
मान्सेंटो जास,
एमएनसी हलु पकाल.


                    हेम चन्द्र जोशी

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त्यर संसार

बीज बो हैलिं मटर,
लागि गे, उपजड़.
माटि बै उपरि ऐगे,
कलियां, लागि देखड़
कलियों क बीच,
ओ रे चड़,
ठुगिं ठुगिं कलिन,
किलै कर बांज,
त्वील य गड़.
कलियों क पिछाड़ि,
किलै तु पड़.
ठुल होलि पौंध,
लागेलि फलि.
नि ठुंग,
जामनै कलि.
चड़ छु मैंस,
कलि भै, स्त्रीभ्रूण.
आज क मैंस,
हैगो क्रूर.
ओ रे मैंस, 
निहुणी ऐगो,
आपुणैं नाश,
करण फैगो.
नष्ट करनैई,
स्त्रीभ्रूण.
मैंस ज के भै,
ज्यौने भिषूण.
किलै छै भुलि तु,
स्त्री  तेरि स्रष्टी छु.
स्त्री  तेरि शक्ति छु.
स्त्री त्यर आधार छु.
स्त्री त्यर संसार छु.           

हेम चन्द्र जोशी

 

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