Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 132021 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब

डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब
अब त दोई खुथा यख और्री दोई खुथा छन वख

टिहरी डैम टिहरी कथा सब लग्ना छन अब
प्रताप नगर यखुली रैगे कब बनलु तेरु डगर

अयं बड़ा बड़ा इंजनियर सब योजना व्हैगे रद्द
दोई लगुला ना टंग पाई सरकार की इनि खत

टक्कों टक्कों टक्कों दगडी खेलण छन सब
देरहादून गैरसैंण कबी त तू हमरी बी सुण

दिल्ली उत्तराखंड पहाड़ों मा ध्ये लग्ना छन सब
ऐ जवा टंगी जवा तुमरो लगुला थे पौड़ीगे जंग

डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब
अब त दोई खुथा यख और्री दोई खुथा छन वख

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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वै बाटा मांजी ईईईई

वै बाटा मांजी ईईईई
क्ख्क ऊ जणा छन
मि थै बाथे दे मेर बोई जी
जैकी ऊ कया लणा छन
वै बाटा मांजी

दूर देश ऊ जांद लाटा
वै बाटु ने हम थे बांटा
हिट वैमा क्वी नि आंदु
अहम ये जियु भरी जांदू

वै बाटा मांजी ईईईई
मेरा बाबाजी बी ग्या छन
क्दग दिन रति बिती
मि अब तक ऊँ थे ना देकि छे

ये मेरा दूध को छरो
पोट्गी छे जब तब ऊ गैं छन
भैर देश मा ऊ जैकी
टक्कों का थैल भोरणा छन

ऐ मेर मांजी ईईईई
क्या कण हमुल ऊँ टक्कों कू
बचपन मेरु इन सुधि जाणा
बाबा कैरी मिल कैथे ध्ये लगाण न

वै बाटा मांजी ईईईई

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

मेसै बोल्दै
ई जिकोड़ी को भेद खोल्दे
ना ना इनि ना
ना ना वख ना जा
मेर समण आ आ ऐजा
मेसै आँखा जोड़ दे
ये मेर हिंसोला की दाणी जनि तू नार
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

रंग मा त रंग तेरु गौर
हुयंद की ईं चलूं जनि उजाळ
सेब कु रंग च यू लाल
जन तेर द्वि ग्लौड़ी छे लाल
कख भत्ते आयु व्हालु
कैन तै थे इन बनायुं हलु
वै देबता थे मेरु जैकार
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

गद्नि सी बगदी छे तू
हरेल सारी मा जच्दी छे तू
आणि छे तै मा कैकि अनवार
तू ऐई ऐगे यख बनेकी मयल्दी ब्यार
म्यार गढ़ देश की तू छे उल्यार
खत्युं च यख माया साऱ्या गढ़वाल
देखी की तै मेरु जीयु व्हैगे घैल
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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Sudesh Bhatt
52 mins ·

रोंत्यालु उलारु दीदों
म्यार अपण गों च
म्यार बचपन
खत्यूं जखपन
यी वी भग्यांन
गांव च
तिबरी डिंडयाली अर
नीमदरीयुं से सज्यूं गांव च
रोंत्यालु उलारु दीदों
म्यार अपण गांव च
मैत की बेटयूं क
सारु भग्यान गांव च
ठंडी ठंडी हवा चलदी
धार मा बस्युं गांव च
रोंत्यालु उलरु दीदों
म्यार भग्यान गांव च
बेटी ब्वारी कुन सुख दीदों
घास लखुड क गांव च
फ्रिज से भी ठंडु पाणी
गाड गदन्यु क गांव च
रोंत्यालु उलरु दीदों
म्यार भग्यान गांव च
भटट बंधुओं से
रचयुं बसयुं
हैंसदु खिलद
गांव च
मेकुन स्वर्ग से भी बडु
म्यार भग्यान गांव ब्वांग च
सर्वाधिकार सुरक्षित @लिख्वार सुदेश भटट(दगडया)की कलम से
रौंत्यालु उलारु दीदों
म्यार अपुण.........

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा।

........कण लाग जी आप थे जरूर बतवा जी

सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली …२
अन्देरी रात , बरखा की झामणाट , खुद तेरी लागली
सोणा का मैना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली ..
चौ डाण्ड्यों पोर सर्ग गगड़ान्द…२
हिरिरिरी पापी बरखा झुकी आंद…२
बडुली लागाली ई ई ई
सोणा का मैना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली
सोणा का मैना , ब्वे कनु के रैणा ...

गाढ़ गद्नियों सी , स्विस्याट घनाघोर ..…२
तुम परदेस , मी याख़ुली घोरा..…२
ज़ीकूड़ी डॉराली ई ई ई
सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली
अन्देरी रात , बरखा की झामणाट , खुद तेरी लागली
सोणा का मैना , ब्वे कनु के रैणा ...
.
यकुलू सरेला , उनी प्राणी क्वासु ..…२
सेरा बस्ग्याल , अब दन मन आंसू..…२
आखी धोलाली ई ई ई
सोणा का मेहना , ब्वेकनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली
सोणा का मैना , ब्वे कनु के रैणा ...
.

तेरा नौन्यल , आर पूँगाद्यों धान.....२
बरखा का दीडो माँ घांस कु बे जान.....२
झूली मेरी रूझालीई ई ई
सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली
सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा

सोणा भादों बर्खिकी चली गैनी -2
ऋतू गेनी मेरी आँखें नि ऊबेइनि -2
कनु के उबाली ई ई ई
सोणा का मेहना , ब्वे कनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली
अन्देरी रात , बरखा की झामणाट , खुद तेरी लागली
सोणा का मैना , ब्वेकनु के रैणा , कुएड़ी लौन्काली .
अन्देरी रात , बरखा की झामणाट , खुद तेरी लागली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आजौ कळजुगि श्रवण भुला

लोकप्रिय कवि -हरीश जुयाल

बरंडा मा बैठिकि
ब्वारी कु दगड़
बदाम भचगाणू च
श्रवण भुला

बदाम भचगयेणा छन
"बागवान " पिक्चर दगड़
फिलम सौलिड च
करुण कहानी च
सीन आणा जाणा छन
अर नौना बाळा
गीतौं दगड़
ढौळ पुर्याणा छन

कुटमदरी यकरस हुयीं च
फिलम दगड़
"फिलम सौलिड च "
यन ब्वनूच श्रवण भुला

श्रवण भुला मा
ईश्वर की कृपा से
सब चीज च
कुटमदरी च
ल्वै बि च
ज्वै बि च
अर ब्वै बि च

पर...
ब्वै जरा बुडिढ़ि च
बुडिढ़ि फर अंग्वठा च
अंग्वठा कि पिन्सन च
पिन्सन का बदाम छन
अर बदामु कु भ्वार
ल्वै च अर ज्वै च
श्रवण भुला मा

ब्वै बि च
पर...
दानी बुडिढ़ि च
मड़घट कु मसाण च
बूढ़ू पराण च

बोडी कुटमदरी खुणै
आफत च
गंगजाट च
पिक्चर मा ब्यवधान च
कूण ध्वळ्यूं सामान च

बोडी गंगजाणी च
गप्फा का बान
अर पिक्चर लगींच
"बागवान "

बोडी कनीच डिस्टर्ब
किलैकि
पिक्चर बढ़िया च
अर पिक्चर द्यखण मा
यकरस हुयूंच
कुटमदरी दगड़
श्रवण भुला

Copyright@ Harish Juyal

Contact -09568021039

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ऐंसू कि रूड़
रचना -- रत्नाम्बर दत्त चंदोला (थापली , कफोळ स्यूं १९०१-१९७५)
-----------१-------------
ऐंसू कि रूडी मा छन घाम खूब चमक्याँ I
बरखा जरा नि होई , छन इंद्र देवता रूठ्यां I I
पाणी बिना तिसाला , छन गोरु भैंसा भटक्यां I
होवन जाणो कि यूँका, ताळू म प्राण अटक्याँ ई
--------२---------------------
ह्वेगे बरीक देखा, सूखिक पाणी धारा I
गदना गाड नाळा , सुखी गैन सारा II
काफळ कि डाळयूँ मा , बैठिक पंछी प्यारा I
गीतू न अब कंदूड़ s , भरदा नि छन हमारा II
--------------३-------------
डाळो का फौंगा पाता , सुखी गैन डांडियों मा I
लमडी गेन भुइयां , लगुला का सगोड़ीयों मा II
भौंरा निरस 'र' सुख्या , फूलूं कि डाळियूँ मा I
रोना सि चहन विचारा, बैठिक फौंकियों माँ II
-------४------------------
रिक, बाग़, पंछी, बांदर, गाड, गधेरा, जंगळ I
हिसरा खुमानी आरू ; किनगोड़ा बेडु काफळ II
अच्काल ये सबी ही जड़-जीव फूल अर फल I
छन दांत भैर गादी पाणी बगैर केवल II
-----------------५----------

ह्वेगे फसल इबारे की दां उजाड़ सारी I
सुप्पी गणेलि वख तs जख हून्दी कत्ति खारी II
रोगू न साँस लेणो मुस्किल हुयुं छ भारी I
नाना दुखू न ह्वेगे हां दुरदशा हमारि II
------------६----------
केकु अकाळ रुपी विष, दैव घोलणा छन I
ईं देही मां किलै जी हां प्राण रोपणा छन II
देखा जथै उथै इनु लोग बाग बोलणा छन II
निज पापी प्राण सणि हां ! सब जीव कोषणा छन II
( गढ़वाली कवितावली, १९३२ से साभार )
--

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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म्यारु मुलक (सन 1935 -50 का बीचक कविता )
रचना -- कमल साहित्यालंकार (हरुली , तळाइं , पौड़ी गढ़वाल, 1909 -स्वर्गीय )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती


जनु रम्यळु म्यारु मुलक इनु त कैको नी च
ज्ञान गुरु ब्वंदी दुनिया का बीच।
हथगुळि मा ब्रह्मकमल झमकदो कैलास
रूद्र महादेव जख देवतौं का बास
गंगा जमुना मा मुक्ति घोळिका छुळी च।
हिंवाळी रौल्यूं को पाणी दूध जनो हूंद
डांडिऊँ की चुफळि मथि सर्ग थैं छूंद
चंदन तिलक मनींद गंगा जीको कीच।
ऋतु ऋतु को फेरो यख खिलदा पारिजात
सूना का छै दिन हिंवळया चांदी कि छै रात
कर्म कळा रैंद यख अंगुळयूँ का बीच।

……
.......
बावन तीरथ यख ऋषि मुन्यों का बास
हरर गंगा सरर जमुना ब्वगद आस पास
मुक्ति मिली जांद जैका भाग मा बदीं च।

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क्या आपन बि देखि इन - कुसगोरि कज्याण ?

कुसगोरि कज्याण ( रचना काल 1937 से पैल )

रचना - भजन सिंह 'सिंह ' (कोटसाड़ा , सितौनस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , 1905 -1996 )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

अति मैलि कुरूप कुस्वाणि बणी
बरड़ाणि च , रुटि पकाणि च वा
फिर हाथन फूंजि सिंगाणु कभी -
हगणु उबरा फंड जाणि च वा
कभि खांद पकांद जुंवा मरद
दुइ हाथन मुंड कन्याणि च वा
फिर मैलि सि थाळिम भात धरी
पदणी च ,सिंगाणु चबाणि च वा।

खुचल्या पर नौनु उखी हगणू
उखि भात कि थाळि सजाणि च वा
छन रुटि म जैकि जुंवा बिलक्यां
द्वी हाथुन गात कन्याणि च वा
छन भात म बाळ त रुटि म बाळ
त दाळि मा लाळ चुवाणि च वा
मुंडळी छिमनै कि पकाणि च वा
कुछ खाणि च , हौरि लकाणि च वा।
कभि भात गिल्लो कबि लूण बिंडे
कबि कोरू व काचु बणान्दि च वा
पिछ्नै कखि कैक मिले न मिलो
पर पैलि घड़ी भर खांदि च वा
कखि थाळि , कखि च लुट्या लमड्युं
लटकी दुफरा तक रांदि च वा
………
जै मैसन पाथ रुप्या भरिने
वै मैस खबेस बतांदि च वा
.......
कुछ बोलु त डागिण सि लड़द
झट मैत कु बाठु खुज्यांदि च वा
घर रौरव -नर्क बणैकि इनू
नित स्वामी कि ज्यान जळान्दि च वा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी ! (1928 की कविता )

रचना : सदानंद कुकरेती (ग्वील , ढांगू , 1886-1937 )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

हे देवि दे भाव तु मै स्वदेशी , हे देवि दे भेख तु मैं स्वदेशी
हे देवि दे भाव तु मै स्वदेशी , लाणों लगौणों सवि दे स्वदेशी।
सपूत तेरो जु सदा स्वदेशी , निभाव पूरो ब्रत जो स्वदेशी
निशेध भाव करि जो विदेशी , बिजै मनौला करि जै स्वदेशी।
प्राणीक प्राणू कि लगै जु बाजी , जै जो विदेशों कर साज साजी
गावो जु ध्यानो नित जै स्वदेशी , जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी।
या देह निश्चै छुटली ही भाई , ह्वै जीर्ण कुत्तादिक की सि भाई
पूजी सदा पूज्य कि माँ स्वदेशी गाई बजाई जै जै स्वदेशी।
सो यज्ञ मा आत्म बलि को देइ , द्यो त्यागी दासत्व प्रभुत्व लेई
गावो सपूतो तुम जै स्वदेशी , जै जै स्वदेशी, जै जै स्वदेशी।
सेवा स्वदेशी कि छ धर्म्म भाई , यो ही सपूत जु गाई बताई
देई इनो ही तु सपूत माई , जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी।
छै आदि शक्ति कि इबारे माई , जो भाव मैतूं अवतार माई
जै दैणा ह्वीं श्री स्वसुराज दाई , हे माई !गौं तेरि मि जै सदाई।
('गढ़वाली' में प्रकाशित , 8 /9 /1928 )

 

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