Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 132343 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बल लिखण दे मिथे एक कबिता

बल लिखण दे मिथे एक कबिता
बल जमण दे वै थे सरिता

उत्तराखंड मा हुनू सब गुम
खोजंदे कया चो यख बिखरो ग़म

चोरै चोरै कि ले जाणा सब
पूरै पूरै कि सब खै जाणा अब

बेचेकि कि खैगे वो सारू झुंड
देखि ले अब ये च अपरुँ कू गुण

दोई आखर लेखी वै बी हैगे गुम
कबीता मेर पौड़ीगे तू किले सुम

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

मि थे बी बचण दे त्यूं ह्युं की चलूँ चांठी
कण आंदी हुली रस्यांण बोई ते चलूँ गाठी

हर्षण लगे अब मेरु जियूं तर्स्नू अब मेरु हियू
कैन छबी बणई हुली राति मा ऐकि रंगाई हुली

एकदूजा रंग मा सबु का सब यख रंग्या छन
एकदूजा मा मिस्ली की सब रंग पसरया छन

अब इत्गा ही लिक स्कदु मि देणु च विराम अ
कैल बाची ये मेर रचना वैल बी मेर दगड आन

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sudesh Bhatt

हैरी हैरी ककडी देखी
गौं की याद यैगे
दुर छौं परदेश
खुद बौडी बौडी यैगे
खुब लगीं होली
झींकडी झालुंद ककडी
जब बिटी ओं परदेश
चाखी नी घर्या ककडी
हैरी हैरी ककडी देखी
गौं की याद....
याद आणा छन दीदों
हैरी हैरी चिरकी
खांद खांद जाण स्कूल
बाकि बस्ता मा धरीकी
गैल्या गैल्याणु गैल
खुब ककडी चुरेन
जब म्वाल पनन लोगु क
ककडी हमन फुचेन
रोज गोरुम जांदी बगत
पलान बणाण
आज मी लों ककडी
भ्वाल तीन लांण
ऊं दीनु की याद यीं
ककडी तै देखी यैगे
दुर छौं परदेश
खुद बौडी बौडी....
सर्वाधिकार सुरक्षित@ लेखक सुदेश भटट(दगडया)की खुदेड कलम से

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Payash Pokhra

(हे ! म्यार घार आज कख ग्याई ?
ब्यालि तक त उ यखमै त छ्याई ।
अब त पट्वरि की खाता-खतौनी मा देख,
कि छैं भि छ्याई कि नि छ्याई ?)******

गौं-गल्या घर खालि,
मोर संगाड़ फर तालि
यकुंलास मा कैकि टौखणि,
कन्दुण इन फ्वड़द ।
कभि आ त सै म्यार गौं मा,
त्वै द्यखौलु कि-
खरयां सरग म बज़र कन प्वड़द ।।

नांगा हुयां खड़खड़ा डालौं थैं,
अपड़ा सूखा पात टिपदा ।
कभि आ त सै म्यार गौं मा,
देखि जा चोलि बणि रौलि गदिनि थैं,
अपड़ि तीस लिपदा।।

हडगा निकल्यां सिंग टुट्यां,
धौ सन्दकै गल्या उगड़दा ढांगा।
कभि आ त सै म्यार गौं मा,
देख त सही अल्सू भट्क्यूं
जख्या जम्या फांगा।।

मूला,मर्सू, वोगल कख बटैकि,
अब सर्या क्वदड़ि सारि
बांजि चा।
कभि आ त सै म्यार गौं मा,
ख्याल राखि, लमडि ना,
यख ता अब हवा पाणि भि
झांजि चा।।

मैत आणा कि जिद कनि राया,
त मिल इनु रैबार पौंछाई
खुदेड़ नौनि मा ।
लाटी ! कभि ऐलि अपणा गौं मा त,
पन्देरि भेंटि, दीबा भेंटि कैरि अब तु,
बस पट्वरि जि की खाता-खतौनी मा ।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Payash Pokhra

*****गज़ल गंजेलि******

दुख, पिड़ा अर डौ की डांडि
सजाणा-मिसाणा रंवा ।
अपड़ि सांग अफि उठाणा रंवा
अर बिसाणा रंवा ।।
ख्वींडि मिख़राज ल अदरणां
झुल्लौं थैं काटि-काटिक ।
स्युंण, धागु अर गुस्तनु ल्हैकि
कफ़न सिलाणा रंवा ।।
घड़ि द्वि घड़ि तू भि ज़रा सीं
कमर सीधि कै ल्हैदि ।
रतखुलणिम बटैकि तुमरि
तिबरिम पराल डिस्याणा रंवा ।।
कच्चि कुटमदरि अंधु घोल
अर हौरि क्य-क्य छोड़िगे ।
न, ना, नि करदा सितगा हालि-झालि
कब बटै समझाणा रंवा ।।
तीड़ि ग्या भाग दुफ़ड़ि ह्वै ग्या
स्या रिचीं कपलि ।
मौलाणा कु हड्यलु आरू कु
राड़ा ढुंगा घिसाणा रंवा ।
अपड़ि सांग अफ़ि उठाणा रंवा
अर बिसाणा रंवा ।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पागलों को प्रेम

विद्यावती डोभाल ( सैंज , टिहरी , 1902 -स्वर्गवासी )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

पागलों को क्या यकीन करेई जांदो
पागलों का प्रेम से भी डरेई जांदो
पागलों से त कोसों दूर रयेइ जांदो
पागलों से त भगवाल भी बचाई जांदो
पागल , ,पागल पागल या पागल क्या बला होई जांदो
पर यो पागल क्वी मामूली जीव भी त निपाइ जांदो
पागल की पागल्वाती दुनिया सणी डराई देंदी
दुनिया पागल सणि अफु से अधिक पागल दिखाई देंदी
यो पागल पागल क्या कि सबुक आफत होइ जांदो
येको पागल प्रेम क्या कि सबुक आफत होइ जांदो
पागल , ,पागल पागल -पागल से सब जगा डरेइ जाँदो
ये पागल सब लोगुं मा सारि दुनिया मा मशहूर होई जांदो
पर , क्या करां ये पागल को , कुछ करे भी त नि जांदो
यो कैका डळा ढूंगा भी त नि मारिक जांदो

(Curtsey , Garhwali Kavita , 1975 )

Modern Garhwali Folk Songs, Modern Garhwali Folk Verses, Modern Poetries, Contemporary Poetries, Contemporary folk Poetries from Garhwal

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पागलों को प्रेम

विद्यावती डोभाल ( सैंज , टिहरी , 1902 -स्वर्गवासी )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

पागलों को क्या यकीन करेई जांदो
पागलों का प्रेम से भी डरेई जांदो
पागलों से त कोसों दूर रयेइ जांदो
पागलों से त भगवाल भी बचाई जांदो
पागल , ,पागल पागल या पागल क्या बला होई जांदो
पर यो पागल क्वी मामूली जीव भी त निपाइ जांदो
पागल की पागल्वाती दुनिया सणी डराई देंदी
दुनिया पागल सणि अफु से अधिक पागल दिखाई देंदी
यो पागल पागल क्या कि सबुक आफत होइ जांदो
येको पागल प्रेम क्या कि सबुक आफत होइ जांदो
पागल , ,पागल पागल -पागल से सब जगा डरेइ जाँदो
ये पागल सब लोगुं मा सारि दुनिया मा मशहूर होई जांदो
पर , क्या करां ये पागल को , कुछ करे भी त नि जांदो
यो कैका डळा ढूंगा भी त नि मारिक जांदो

(Curtsey , Garhwali Kavita , 1975 )

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आजौ कळजुगि श्रवण भुला

लोकप्रिय कवि -हरीश जुयाल

बरंडा मा बैठिकि
ब्वारी कु दगड़
बदाम भचगाणू च
श्रवण भुला

बदाम भचगयेणा छन
"बागवान " पिक्चर दगड़
फिलम सौलिड च
करुण कहानी च
सीन आणा जाणा छन
अर नौना बाळा
गीतौं दगड़
ढौळ पुर्याणा छन

कुटमदरी यकरस हुयीं च
फिलम दगड़
"फिलम सौलिड च "
यन ब्वनूच श्रवण भुला

श्रवण भुला मा
ईश्वर की कृपा से
सब चीज च
कुटमदरी च
ल्वै बि च
ज्वै बि च
अर ब्वै बि च

पर...
ब्वै जरा बुडिढ़ि च
बुडिढ़ि फर अंग्वठा च
अंग्वठा कि पिन्सन च
पिन्सन का बदाम छन
अर बदामु कु भ्वार
ल्वै च अर ज्वै च
श्रवण भुला मा

ब्वै बि च
पर...
दानी बुडिढ़ि च
मड़घट कु मसाण च
बूढ़ू पराण च

बोडी कुटमदरी खुणै
आफत च
गंगजाट च
पिक्चर मा ब्यवधान च
कूण ध्वळ्यूं सामान च

बोडी गंगजाणी च
गप्फा का बान
अर पिक्चर लगींच
"बागवान "

बोडी कनीच डिस्टर्ब
किलैकि
पिक्चर बढ़िया च
अर पिक्चर द्यखण मा
यकरस हुयूंच
कुटमदरी दगड़
श्रवण भुला

Copyright@ Harish Juyal

Contact -09568021039

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ऐंसू कि रूड़
रचना -- रत्नाम्बर दत्त चंदोला (थापली , कफोळ स्यूं १९०१-१९७५)
-----------१-------------
ऐंसू कि रूडी मा छन घाम खूब चमक्याँ I
बरखा जरा नि होई , छन इंद्र देवता रूठ्यां I I
पाणी बिना तिसाला , छन गोरु भैंसा भटक्यां I
होवन जाणो कि यूँका, ताळू म प्राण अटक्याँ ई
--------२---------------------
ह्वेगे बरीक देखा, सूखिक पाणी धारा I
गदना गाड नाळा , सुखी गैन सारा II
काफळ कि डाळयूँ मा , बैठिक पंछी प्यारा I
गीतू न अब कंदूड़ s , भरदा नि छन हमारा II
--------------३-------------
डाळो का फौंगा पाता , सुखी गैन डांडियों मा I
लमडी गेन भुइयां , लगुला का सगोड़ीयों मा II
भौंरा निरस 'र' सुख्या , फूलूं कि डाळियूँ मा I
रोना सि चहन विचारा, बैठिक फौंकियों माँ II
-------४------------------
रिक, बाग़, पंछी, बांदर, गाड, गधेरा, जंगळ I
हिसरा खुमानी आरू ; किनगोड़ा बेडु काफळ II
अच्काल ये सबी ही जड़-जीव फूल अर फल I
छन दांत भैर गादी पाणी बगैर केवल II
-----------------५----------

ह्वेगे फसल इबारे की दां उजाड़ सारी I
सुप्पी गणेलि वख तs जख हून्दी कत्ति खारी II
रोगू न साँस लेणो मुस्किल हुयुं छ भारी I
नाना दुखू न ह्वेगे हां दुरदशा हमारि II
------------६----------
केकु अकाळ रुपी विष, दैव घोलणा छन I
ईं देही मां किलै जी हां प्राण रोपणा छन II
देखा जथै उथै इनु लोग बाग बोलणा छन II
निज पापी प्राण सणि हां ! सब जीव कोषणा छन II
( गढ़वाली कवितावली, १९३२ से साभार )
--

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क्या आपन बि देखि इन - कुसगोरि कज्याण ?

कुसगोरि कज्याण ( रचना काल 1937 से पैल )

रचना - भजन सिंह 'सिंह ' (कोटसाड़ा , सितौनस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , 1905 -1996 )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

अति मैलि कुरूप कुस्वाणि बणी
बरड़ाणि च , रुटि पकाणि च वा
फिर हाथन फूंजि सिंगाणु कभी -
हगणु उबरा फंड जाणि च वा
कभि खांद पकांद जुंवा मरद
दुइ हाथन मुंड कन्याणि च वा
फिर मैलि सि थाळिम भात धरी
पदणी च ,सिंगाणु चबाणि च वा।

खुचल्या पर नौनु उखी हगणू
उखि भात कि थाळि सजाणि च वा
छन रुटि म जैकि जुंवा बिलक्यां
द्वी हाथुन गात कन्याणि च वा
छन भात म बाळ त रुटि म बाळ
त दाळि मा लाळ चुवाणि च वा
मुंडळी छिमनै कि पकाणि च वा
कुछ खाणि च , हौरि लकाणि च वा।
कभि भात गिल्लो कबि लूण बिंडे
कबि कोरू व काचु बणान्दि च वा
पिछ्नै कखि कैक मिले न मिलो
पर पैलि घड़ी भर खांदि च वा
कखि थाळि , कखि च लुट्या लमड्युं
लटकी दुफरा तक रांदि च वा
………
जै मैसन पाथ रुप्या भरिने
वै मैस खबेस बतांदि च वा
.......
कुछ बोलु त डागिण सि लड़द
झट मैत कु बाठु खुज्यांदि च वा
घर रौरव -नर्क बणैकि इनू
नित स्वामी कि ज्यान जळान्दि च वा।

 

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