Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 451814 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भग्यान त वा नथुली छ

By -- नवीन डबराल
खितखितैकी
वा हँसदी इनि
दूध माँ उमाळ जनि
भग्यान त वा नथुली छ
पैली वा चखदि छ
बिंडी मी बौग नि सारि सकदु
पिंदारो मी कम नि छौं
कबि मुळ मुळ कैकि
मुस्कान्दी छ वा
मेरी ज्युकड़ी हरिलेंदी
आँखों बिटेन पिलन्दी
मेरा गिच्चा पुटिग
अपणी मिठ्ठी छुयों को
गिंदौड़ा खोशदि छ
दगड़ै हमन बौण जौंण
बन्नी बन्नीक गीत लगोंण
भूली कै बी णी रिसौण
हंसी ख़ुशी माँ दिन बितौण
शायद पिछला जनम का
अच्छा कर्मों का फल छन
ज्यु म्यiरा दगड्या छन
ऊ मेरा सर्वस्व भी छन
( नवीन डबराल ),
12 Aug.2015, Mumbai

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा जिया कि प्यारि बांसुळी
रचना --अमरनाथ शर्मा ( सिराळा, कण्डवालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , जन्म 1912 )
इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती

मेरा जिया कि प्यारी बांसुळी छै तू
बांस की मेरी बांसुळी
तेरा गित्तुं मा मेरा पराण
भौंण तेरि रसीली
धारु धारु ऊँ डाँड्यूं ऐंच
बैठदि तु ठुमकुली
तौं उदासी गीत केकु
बजौन्दि बांसुळी !
बिसरीं खुद बौड़ान्दि तु
गीत उऴयारा गैकी
तौं खुदेड़ गित्तु सुणैकि
दुनिया तु रिझान्दी
रिझै तिन कृष्ण दगड़ि
गोपी मेरी बांसुळी
त्वै बिना भगवान कृष्ण
कभी नि रै यखुली।
कना मोहनी स्यू गीत तेरा
बांस कु तेरा गात
मिट्ठा खट्टा सब्बु लगदा
क्वी होंदा उदास
बग्ड्वाळ जीतू कि रये
तू बणी हँसूळी
स्याळि दगड़ वेकु विणास
किलै ह्वै बांसुळी।

Copyright @ Bhishma Kukreti for any interpretation

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अपना उत्तराखंड
15 hrs ·

मेरा पहाड़"

आपका भी है प्राण से प्यारा,
जहाँ जन्म हुआ हमारा और तुम्हारा,
उस दिन हंसी थी फ्योंलि और बुरांश,
हमारे उत्तराखंड पदार्पण पर,
माता-पिता की ख़ुशी में,
शामिल हुए थे ग्राम देवता भी,
ग्रामवासी और पित्र देवता भी.

भूलना नहीं मित्रों पहाड़ को,
हमने अन्न वहां का खाया है,
जैसे कोदा, झंगोरा, कांजू, काफ्लु,
तोर की दाल और कंडाळी का साग,
लिया जन्म हमनें उत्तराखंड में,
देखो कैसे सुन्दर हमारे भाग.

ज्वान उत्तराखंड कहो या मेरा पहाड़,
कायम रहनी चाहिए आगे बढ़ने की ललक,
उत्सुकता बनी रहे हमेशा मन में,
देखने को उत्तराखंड की झलक.

शैल पुत्रों ये हैं कवि "ज़िग्यांसु" के,
मेरा पहाड़ के प्रति मन के उद्दगार,
पहाड़ प्रेम कायम रहे सर्वदा,
पायें पहाड़ से जीवनभर उपहार.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"

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बलबीर राणा
13 hrs

रिमिक्स हिंगलिश मा गोत्राचार
------------------------------------
खोला-चौक स्वांपट सवार
ठंग्रा बिगैर लग्लु लाचार
कुर्चणा छां आंदा-जांदा
पिछने मुड़ी द्येखा एक बार।

कत्गा कयांरू कत्गा रैबार
आँखियों चौमासी बरखेक धार
भग्यान ह्वे निर्भागी बंण्यु मी
ह्वेग्यां यख सब निर्चट-बलार।

गुणी-बांदर हल्या सैणा-सैंचार
लंपसार प्लास्टिक थैलाक थ्वकदार
रड्यां सुलारक मालदार कबतलक
रिमिक्स हिंग्लिस मा गोत्राचार।

@ बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरा ब्लॉग "उदनकार" www.ranabalbir.blogspot.in

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बलबीर राणा
 

रिमिक्स हिंगलिश मा गोत्राचार
------------------------------------
खोला-चौक स्वांपट सवार
ठंग्रा बिगैर लग्लु लाचार
कुर्चणा छां आंदा-जांदा
पिछने मुड़ी द्येखा एक बार।

कत्गा कयांरू कत्गा रैबार
आँखियों चौमासी बरखेक धार
भग्यान ह्वे निर्भागी बंण्यु मी
ह्वेग्यां यख सब निर्चट-बलार।

गुणी-बांदर हल्या सैणा-सैंचार
लंपसार प्लास्टिक थैलाक थ्वकदार
रड्यां सुलारक मालदार कबतलक
रिमिक्स हिंग्लिस मा गोत्राचार।

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Keshav Dobriyal
August 15 at 11:55am

आप सभी बिद्वत जनो थेन स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना।
माँ का ये शब्द बीर सिपै खुणि समर्पित कनु छौं,
म्यार सिपै छै तू,
न बुबा म्यार न देशा कु सिपै छै तू,
मेरी खून कु सिच्यूं छै तू,
देशा खुणि पल्युं छै तू,
बाबू की लगाईं धरीं नीँव छै तू,
देशा खुणि झुकी ना,एकटक खड़ु रै तू,
भाई कु लाड़ छै तू,बैणी कु प्यार छै तू,
कभी झुकी ना,टूटी न पूरा देशा कु लाल छै तू,
मनखी की मनख्यात न छोड़ी बेटा,
सांस टूटनि रैली बेटा,बन्दुक न छोड़ी बेटा,
म्यार सिपै छै तू,
न बुबा म्यार न देशा कु सिपै छै तू।
माँ छौं एक सिपै की,देशा का बीरा की,
जिकुड़ी बड़ी कैकि भेजणु छौं बेटा,
देशा की आन,बान,शान का खातिर,कभी न झुकी बेटा,
म्यार सिपै छै तू,
न बुबा म्यार न देशा कु सिपै छै तू।
केशव डोबरियाल "मैती"

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
August 14 at 4:13pm ·

पांच भै कठैत......

श्रीनगर मा जबरि,
जियाजीकनकदेई कू,
राणी राज थौ,
सादर सिंग कठैत का,
पांच बलशाली नौना,
भगोत सिंग, राम सिंग,
उदोत सिंह, सब्‍बल सिंग,
सुजान सिंग सब्‍बि अपणि,
कठैत गर्दी चलौन्‍दा था.........

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भौत खूब गुरु जी, कथ्‍गा ऊलार सी झलकणु छ आपकी मयाळु मुखड़ि मा।

जल्‍मबार नरु दा कू,
तुम दाळ पिसणा,
झळ झळ हम देखि,
सिलोटि घिसणा....

सब सिख्‍युं काम,
अब काम औणु,
हुनरवान छन आप,
अहसास होणु......

राजि खुशी चैन्‍दा भैजि,
तुमारु उलारया पराण,
खुश होयुं मन तुमारु,
नरु दा कू जल्‍मबार मनौण........

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
दिनांक 13.8.2015

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
August 11 at 2:38pm ·

दगड़यौं मेरी कल्‍पना, आप भी बतावा अपणा मुल्‍क पहाड़ मा भूत भूतणि भी देख्‍यन आपन।

बसगाळ की बात थै,
घोर अंधेरी रात थै,
भैर अयौं बचपन मा,
नजर पड़ि देखि मैंन,
भूतणि बैठिं चौक मा,
मैंन सोचि कू होलु,
डौर जरा लगणि थै,
सटट भीतर भगि ग्‍यौं.....

-कवि जिज्ञासु की कल्‍पना
सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 11.8.2015

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तेर कंडो मा

तेर कंडो मा
खिल्दा फूल छों मि ऐ माँ
तू इनि सम्भली रखी सदनी
अपरी गोदी मा मिथे ऐ माँ
तेर कंडो मा...............

ना अपरी से मिथे कभी दूर कैर
ना कभी नारज व्है तू ना गुस्सा कैर तू माँ
तेर फ़िक्र मि भी कैदु ऐ माँ
पर अपरी माया थे जातौ बतौ नि सक्दु
तेर कंडो मा...............

तेरी आँखि सदनी में दगड बचंदि रैंदी
जीकोडी धड़ धड़ तेरी मिथे धिर बंधोंदी रैंदी माँ
तेर हाक सुनी की मि झट दौड़ी ते पास ऐजांदु
भूकी मिटदी ना दोई घास तेरा हाथा कु नि खान्दु
तेर कंडो मा...............

तू इनि सदनी अपरा हाथ मेर मोंड मसल दी रे
मि तेर दोइया खुठड़ियों मा सदनी इनि पौड़ी रालों
मि थे मिल जालु मेरु सर्ग यखी ये भुंया मा माँ
मि तेर खुठीयूं को धोयुँ पाणी जब रोज प्यालो
तेर कंडो मा...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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