Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 134387 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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१)- "को बोलन्द कि
असधरियुँ मा वजन नि हून्दू
कभि अज्मै कि त देख्याँ धौ
एक बूँद भी खत्यै जो
आँख्यूँ बटि त मन कु ऊमाल अर
दिल कु खुमार सचै
कम ह्वैजान्द.....".

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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*********#छ्वीं ...=3****
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एक होरि छोटि रचना थै आप भै बंदौं की सेवा मा चुलाणु छूँ.............................................
"खैरि विपदा फरि सारू मंगिल्या जो ता
कटकटल मंगिया
नथर वो दबण्या मर्ज बणि जाँद अगन्या कु
कुई कुई मनिखि हुन्द खैरि मा हथ बटाण वोलु
अर कतगै ता बिना बाति का चुगन्याणा रैंदिई
छेदोला का पैना कांडा सी
रैंदिई बिनाणा सदन्या कु
अन्तुरि फरि हम तैयार ह्वै जन्दवा
मोला का माद्यो मा भि
खुटुँ मुण्ड टेकणा कु
पर क्या फैदा ये मुण्ड टेक्या कु
जब कुई पक्कु भरोसु नि कपाल रेच्याणा कु
मोरिणि बचिणि ता द्वी घडि कु
खेल हुन्द भै बंदौ
कुछ नि हुन्दु कभि कभि क्वारा बचन खैति की
कैई दौ सुदि मुदि एहसान बोकदवा हम
छपछपी नि पोडिदि गैति की
कै भागी थै अपिडि तिडयाणिम इन गुमान ह्वैजान्द कि म्यार बगैर कैकु कुई काम नि चलुन्दु
यो जुयाल कु मनिख्यात ख्याल च दिदाओ
जरा तब अपडा पित्रों की फोटो आख्यूँ मा
सुमिरण कैरि की सोच्यां कि
वुँक नी रैंणा का बाद भि
अबेर जरुर होलि पर होलु
कैका बगैर कभि
कुई काम नि रुकुन्दु
आज जैल भकोरा मारि मारि की
लटि पटि खाण
वैल भोल जब खीसा खाली तब खिसयुँ सी रैजाण
हमरु भलु बुरु कयुँ ईखि्या दगिडि जाण
वो यमपुरी का औफिस मा चित्रकुटल बथाण
जैल एक दिन सब्युँ थैई खिकोडि की लिजाण
अपिडि-२ नि सोच्या भै बन्दौ
ना हो जि तब कुजाण कुजाण
वुन भलु कर्युँ भलु ही हुन्द
यकुलि यकुलि यख मनिखि रून्द जो
यैक दुसरा थैई नि देखि सकुन्दु
घडैक ज्यूँन्दु
'शमशाणा कू रंगुणुँ देखि कि
मनमा कभि कभि यो ख्याल आन्द
सिर्फ ये रंगुणाँ मा रल्येणा का खातिर
ज्यूँन्दू मनिखि
होरियुँ से नफरत कैरि की
अपिडि जिकुडि की फंचि
फुकि फुकि जलान्द'
या ता वेई विधाता की रचि दुनियादारी चा लाटों
जै का बगैर डाला कु पत्ता भि अफि नि हलुन्दु"
@

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नरेँद्र कठैत का व्यंगबाण नेतागिरी
अरे लाटा !
सुद्धि नेतगिरी नि करदी
अगर छै तू तागतबर
त त्वे हमारि
क्या जरोरत प्वङगी
अर -
अगर छै तू निरबल
त लाटा !
हमारू छै हमारा बीच रे
अरे चुचा !
जन हम हिटणा छवां
तनि तू बि हीट ली ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi

गोरी या काली
वो चाँद है
वो सूरज है
वो फूल है
इन बासी उपमाओं
क्या नया गीत रचाउ
मै क्या नया गीत लिखूं
वो लम्बी है छोटी है
वो मोटि है छोटी है
कब तक इन बासी
उपमाओं में गीत रचाऊँ
प्रेम गोरा काला
लंबा या छोटा
मोटा या पितला
फिगर नही होता
फिर क्यों
इन बासी उपमाओं में

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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संस्कृति सी प्यार करा,
अपणु मुल्क प्यारु छ,
पाड़ का रंग मा रंगणु,
जरा मिजाज हमारु छ......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 25/1/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
January 24 at 5:57pm ·
ब्याळि तक दिखेन्दु नि थौ,
यनु किलै ह्वोयुं छ,
हमारा अग्वाड़ि हात जोड़ी,
सरीप ह्वेक ख्वोयुं छ....
खबरदार भै बंधु,
येकी छुयौं मा नि ऐन,
स्वोचि समझिक तुम,
अपणु अमूल्य वोट देन.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 24/1/2017

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Darsansingh Rawat
January 26 at 8:25pm ·
सुमिरिंदा त्वे सदानी,कुछ कन सी पैली।
देंदि रै सुफलु नंदा,भक्ति म सदनी रैली।
कौथिग तेरू नाम कु,संतानो बौड़ांदी रैली।
भक्ति शक्ति देणी रै माँ,डोली ए सजणी रैली।
माता देवभूमि की तू,सुख शान्ती देणी रैली।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
January 27 at 6:55pm ·
सम्मान आप कु,मान देवभूमि कला कु।
गर्व सी उचु आज, सिर कलाकारों कु।
मान विरासत च,पहाड़ म मातृशक्ति कु।
प्रतीक व कला बणी,बर्वच्व छौ मर्द कु।
अमर इतिहास म,बनी प्रेरणा पीढ़ी कु।
सतत नमन तुम थै, हम पहाड़ वलो कु।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prakash Dhoundiyal 

January 24 at 10:55pm ·

रणभेरी है गूंज उठी , ये शोर नहीं थमने देंगे|
जी से है ये जान से है, ये ज़ोर नहीं थमने देंगे|
ये मौका है कुछ करने का, कोशिश है पूरी जारी है|
इस रण में अपनी जि़द है, लड़ने की तैयारी है|
वीरों की इस धरती का, सम्मान बढ़ाने आया है,
बलिदानी पंथ्या का बेटा मान बढ़ाने आया है|
लोगों के दिल की बातों को सुनने वाला आया है,
लोगों के संघर्ष का साथी 'मोहन काला' आया है|
उबल रहा है खून पहाड़ी, इसे नहीं जमने देंगे|
ये शोर नहीं थमने देंगे , ये ज़ोर नहीं थमने देंगे|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ashish Rawat 

January 24 at 10:46pm ·

सजि ढजि की जब तू छोरी स्कूटी चलोंदी,
तेरी भुरणि लटूली उडी अफू मां बुलोंदी,
हैंसदी बगत प्वडदू गलवाडी मां पिल,
ज्यू त बोदू चट चूंड दयू चौंठी मां कू तिल,
त्वैथै नि चल सबूथे पता चलिगे,
देहरादूने कि रचिता त्वेमा चित बुझिगे

 

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