Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 451773 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khyali Ram Joshi
August 12 at 8:57pm ·

कानोंकि दुश्मणी खाल्ली फूलों में निकाई नि करो
क्वे लै बेगुनाह पर कभ्भें लै कच्यार उछाइ नि करो
किस्मतमें अगर अन्यार लेखीछू तो अन्यारै मिलौल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khyali Ram Joshi
August 10 at 12:48pm ·

दुनी में खालि हाथ आयां खालि हाथ जाण छू,
यदुग विचार करि लियो तो जिंदगी बणी जालि।
बुढ़ापा में द्वी रवाट टैम पर मिलि जाओ और,
च्याल ब्वारी सत्कार करोतो जिंदगी बणी जालि॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इलमतु दादा

कवि -जया नंद खुकसाल 'बौऴया'(1925 -स्वर्गीय , ऊण्यूँ असवाल स्यूं , पौ .ग. )

इंटरनेट प्रस्तुति -भीष्म कुकरेती

हैळ लगांदा बुखणा बुखांदा,
इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
कुरता चिरीऊँ ट्वप फट्यूं च ,
क्वाटा बौंळो सफाचट नी चा।
घुंड मा सुलार तैको फट्यूं चा;
झपड़म झपड़म हिटणा लग्युं चा।
रकर्याट कैकि पुंगडौ म आंदा , इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
बळद भि वैका ठडगैळ छीना ,
ढमणा दुयुं बैठयांऊ छिना।
रंगू काळा कबरीणा छिना ,
दांत भि ऊंका निखुऴयाउ छिना।
ठेलि ठेलि बि अगनै नि जाँदा , इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
हौळो कु वैकु हथनड़ु ,नी चा ,
निसुड़ा का मुख ऊनि ख्वंड्यू च।
यक सिंग्या ढांगो झिल्लो जुत्युं चा
जिमदार कना को क्वी ढंग नी चा
xx xxx
को छौ घसेर्यो सूणि लियां
घुतडु ब्वे मा इन बोलि दियां।
पल्य ख्वाळ जैकि छांच मांगी लयां ,
मी खुणि जरा सि छंच्या पकैयां।
ढया मा खड़ु ह्वै धाद लागांदा इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।

From Ilmatu Dada (Poetry Collection)
Notes on The Poems Brought Realism in Garhwali Poetry

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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परतंत्र नौकरी

रचना -जीवानंद श्रीयाल (जखन्याळी , नैलचामी , टि ग )
इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती

करीक सत्कर्म अनेक जन्मुं मा
तबैत मिल्दी छ मनुष्य जोनि या
सु सच्चिदानंद स्वतंत्र ह्वेक
सदा खुज्यान्दु परतंत्र नौकरी
कि देवता भी जख स्वर्ग रैक तैं
सदा मनौन्दा जग मा मनुष्य ह्वा
मनुष्य देख जगदीश छोड़ि कै
सदानि जपदु कन पौलु नौकरी !
छुट्या दया , दान ज्ञान गान भी
व पूर्वजों को अनुकर्म सभी
किसाण भूमि पर जन्म ल्हीक भी
भरेन्दु नी पेट बगैर नौकरी।
पढौंद ब्वे बाप भि नौनि नौनु तैं
कि देण यौंनै छ हमू कमै तैं
अनेक डिग्री झट पास कैक तैं
अगाड़ि यौंने भली पौण नौकरी।
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढवालि कोचिंग क्लास-
जंगल को यहां डाण्डा कहते,
बर्तनों को भाण्डा कहते हैं।
छोटे बच्चों को नौना कहते हैं,
बुजुर्गों को दाना कहते हैं।।
साथ को दगडा कहते हैं,
लड़ने को झगडा कहते हैं।
मोटे को तगडा कहते हैं,
भू-स्खलन को रगडा कहते हैं।।
छोटे भाई को यहा भुला कहते हैं,
किचन को यहा चुला कहते है।
ब्रिज को यहा पुल कहते है,
नहर को यहा कूल कहते है।।
पत्नी को यहा जनानि कहते है,
वहू को दुलैणि कहते है।
ब्याई भैंस को लैणि कहते हैं,
दूध दही को दुभैण कहते हैं।।
आदमी को यहा मैस कहते हैं ,
बफैलो को यहा भैस कहते है।
जीजा को यहा भिना कहते हैं,
अटौल को यहा किना कहते है।
सख्त को यहा जिना कहते है,
गोबर को यहा पिना कहते हैं।।
चावल को यहा भात कहते हैं,
सादी को बरात कहते हैं।
चौडे वर्तन को परात कहते हैं,
पित्र तर्पण को शराद कहते है।।
बाकी अगली बार-
कृपया प्रवासी पहाडी बच्चों को जरूर पहाडी
सिखाऐं वरना वो दिन दूर नहीं जब हमारी आने
वाली पीढ़ी कहेगी:-"ये गढवाली क्या होता है?"

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नि छौ खयाल कि तू परदेशो ह्वेली

रचना -- दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल (1923 -स्वर्गीय , पंदाऴयू , पौड़ी गढ़वाल ) इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती

जु मैं मु धर्युं छौ , त्वे देइ याले
अपणा हड्गौ रस , जु मैं मु बच्युं छौ
खलैकि यख की , बारा रस्याळी
विदेशु रण मा त्वे तैं पठै छौ।
निभैने तिन बल , भला ही काज
रखे तिन म्यरा , दूध कि लाज
नि छौ खयाल कि तू परदेशो ह्वेली
भरोसो छयो कि तु मैं मु ऐली।
छोड़ी पुराणी नई थैं अंग्यौणो
या प्रथा च भौत पुराणी
पर माँ त माँ च , इनो किलै नि सोची
बर्षु बटि च ज्वा त्वे तैं भट्यौणी।
तख रच्येंदी कविता गयेंदा गीत
पर याँन नि ढकेंदी म्यरि नाँग काँग
नि पौंछदि यख त्यरा गित्तु की भौण
सुद्दी -मुद्दी नि लगौणी लांग फांग।
भैरा का औंदन , मि तैं भ्यंटेणू
भितर जाणा छन भैर ढुंढणू
जु होन्दा सुमन सरीखा लाल मैं मू
मिन नि फैलौणा छा हाथ हाथ त्वेमू।
यख आग भभरौंद , लगदन बडूळी
मी दिन भूक नी रात सेणी
त्यरो याद कन्नो , उन्नि सि दिखेंद
सियां भुला की जसि भुक्की पेणी।
सर्वाधिकार @ दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल परिवार

( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any

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अबै दारु का नशाम त लमंड ले

रचना ----भगवान सिंह जयाड़ा
झूम ले , झूम ले , अबै दारु नशाम त झूम ले
लमंड ले , लमंड ले , दारुक नशाम त लमंड ले

कन फुके पहाड़ी समाज माँ या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,
यख ब्यो बरात होंन या जन्म दिन ,
अब त यनु उलटू रिवाज देखि मिन ,
बिना ईका कार्योँ मा मजा नि रैगी ,
यन बात यख सबुका मन मा समैगी
, शराब छ त सभी लोग वाह वाह करदा
, नित सभी वीं मवासी का नौउ धरदा,
जैन जादा पिलाई वेकि वाह क्या बात ,
सभी देण्या छन यख यन लोगु कु साथ ,
खाणु पाणी कथगा भी जू खूब करदा ,
शराब नि छ ता लोग ऊं का नौऊ धरदा ,
मन्न जन्मण मा अब कुछ फर्क नि रैगी ,
या निर्भागी दारू अब सब जगा समैगी ,
अगर यनि यीं दारू कु बोल बालू रालू ,
दिन दूर नि ,जब दारु मा सब समै जालू ,
तब पछतैक कुछ हमारा हाथ नि औण,
अपरी गलती कु सबून यख बाद मा रोण ,
कन फुके पहाड़ी समाज मा या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,

Copyright @ भगवान सिंह जयाड़ा दिनांक >१२ /०४ /२०१३

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काळी को रैबार : मंगसिर मिथैं दिल्ली लिजैंयाँ

रचना --कुलानन्द भारतीय (1926 , जामणी , सल्ट , गढ़वाल )
इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती

-

काळी ल द्याख, नौऴया राम , मालुम ह्वेई। दिल्ली जाम
दौड़ी दौड़ी वख , काळी आई , घास काटणु छोड़ आई
आवाज वींल नौऴया थैं देइ , द्यूरा ! ऊँथैं जाणदा ह्वैला।
दिल्ली म ऊँथैं जरूर पैला , म्यारु रैबार , भेजी दियां
भली क समझैक बोली दियां , खामू , पीमू , रमू यख
द्वी साल ह्वैगे , तुम नि आया , ब्याऊ कैरीक , क्या मिल पाया।
दिन रात मीत कददू घास , ब्वै बाब तुमरा नि गडदा बाच
दड़िमा की डाळी फूली ग्याई , आमूं की डाळी पर , बौर आई
सरसों खेती फूली ग्याई , पर मेरी दुनिया बांजी रै ग्याई।
द्यूरा ! ऊंमा बोली दियां , ये साल घौर जरूर अयाँ
चिट्ठी पत्री भेजदी रयां खयाँ पियाँ , भलीक रयाँ
कातिग तुम घर अयाँ , मंगसिर मिथैं दिल्ली लिजैंयाँ ।

( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any Modern Garhwali Folk Songs, Modern Garhwali Folk Verses

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हैळ लगांदा बुखणा बुखांदा,
इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
कुरता चिरीऊँ ट्वप फट्यूं च ,
क्वाटा बौंळो सफाचट नी चा।
घुंड मा सुलार तैको फट्यूं चा;
झपड़म झपड़म हिटणा लग्युं चा।
रकर्याट कैकि पुंगडौ म आंदा , इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
बळद भि वैका ठडगैळ छीना ,
ढमणा दुयुं बैठयांऊ छिना।
रंगू काळा कबरीणा छिना ,
दांत भि ऊंका निखुऴयाउ छिना।
ठेलि ठेलि बि अगनै नि जाँदा , इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।
हौळो कु वैकु हथनड़ु ,नी चा ,
निसुड़ा का मुख ऊनि ख्वंड्यू च।
यक सिंग्या ढांगो झिल्लो जुत्युं चा
जिमदार कना को क्वी ढंग नी चा
xx xxx
को छौ घसेर्यो सूणि लियां
घुतडु ब्वे मा इन बोलि दियां।
पल्य ख्वाळ जैकि छांच मांगी लयां ,
मी खुणि जरा सि छंच्या पकैयां।
ढया मा खड़ु ह्वै धाद लागांदा इलमतु दादा भदोड़ा बांदा।

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परतंत्र नौकरी

रचना -जीवानंद श्रीयाल (जखन्याळी , नैलचामी , टि ग )
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करीक सत्कर्म अनेक जन्मुं मा
तबैत मिल्दी छ मनुष्य जोनि या
सु सच्चिदानंद स्वतंत्र ह्वेक
सदा खुज्यान्दु परतंत्र नौकरी
कि देवता भी जख स्वर्ग रैक तैं
सदा मनौन्दा जग मा मनुष्य ह्वा
मनुष्य देख जगदीश छोड़ि कै
सदानि जपदु कन पौलु नौकरी !
छुट्या दया , दान ज्ञान गान भी
व पूर्वजों को अनुकर्म सभी
किसाण भूमि पर जन्म ल्हीक भी
भरेन्दु नी पेट बगैर नौकरी।
पढौंद ब्वे बाप भि नौनि नौनु तैं
कि देण यौंनै छ हमू कमै तैं
अनेक डिग्री झट पास कैक तैं
अगाड़ि यौंने भली पौण नौकरी।
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
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