Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383912 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऋृतु मौळ्यार ऐगि,
हे दगड़्यौं,
चला अपणा मुल्क जौला,
बुरांस हैंसणा,
देवदार झूमणा,
फूल्यां पंय्या अर आरु,
भारी रौंत्याळु लगण लग्युं,
प्यारु उत्तराखण्ड हमारु.....
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
21/2/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दगड़ु निभैाला......
मन का ऊमाळ,
छन यीं दगड़्यौं,
यीं धर्ति मा हम,
जब तक ज्यूंदा रौला,
हंसी खुशी जिंदगी बितौला,
दगड़ु निभैाला, दगड़ु निभैाला......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 20/2/17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देवभूमि दर्शन की चाह मा,
जाणु छौं आज रात,
ताड़केश्वर महादेव,
किलैकि मैकु बुलावा अयुं छ,
म्येरा कविमन मा,
अति ऊलार छयुं छ,
मुल मुल हैंस्दा बुरांस,
द्येखिक भी औलु,
यात्रा वृतांत का माध्यम सी,
आपतैं भी बतौलु,
तुमारा मन मा,
कुतग्याळि लगौलु,
बण का बुरांस रैबार द्येला,
तुम्तैं बतौलु.........
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आवा हिटो आज शिवरात छ, मंदिर है औंनूं।
आपण सुख दुख जिलै छ, शिवज्यूंन धें कै औंनूं।
हमन जबलै जरूरत पड़ी, शिवज्यूंन कें धाद लगै।
हर दुख तकलीफ, शिवज्यूंनिं, चुटकी बजौंण में दूर भगै।
ज्याक क्वे सहार न्हाति, वीक सहार शिवज्यू हुंनी।
भूत प्रेत, पिशाचन तक, यकै म्यार शिवज्यू शरण दिनी।
म्यार शिवज्यू, हौरनाक लिजी सबै भल इंतजाम कनी।
शिव आपणि धें के न धरन , मिलगैत तबै भोग लगूंनी।
नंग धड़ंग, गावन नाग, त्रिशूल, खप्पर, शिव डमरूवाल।
शिव महादेव, देवाधिदेव, महाकाल, छन सबनैहै भाल।
शिवज्यू हम सबै तुमरि शरण में छों, पत धरिया।
जिलै रोग शोक संताप दुख दरिद्र छ, सबनैकै हरिया।
श्री Rajendra Prasad Joshi के द्वारा भेजी कविता...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Durga Datt Joshi

आवा हिटो आज शिवरात छ, मंदिर है औंनूं।
आपण सुख दुख जिलै छ, शिवज्यूंन धें कै औंनूं।
हमन जबलै जरूरत पड़ी, शिवज्यूंन कें धाद लगै।
हर दुख तकलीफ, शिवज्यूंनिं, चुटकी बजौंण में दूर भगै।
ज्याक क्वे सहार न्हाति, वीक सहार शिवज्यू हुंनी।
भूत प्रेत, पिशाचन तक, यकै म्यार शिवज्यू शरण दिनी।
म्यार शिवज्यू, हौरनाक लिजी सबै भल इंतजाम कनी।
शिव आपणि धें के न धरन , मिलगैत तबै भोग लगूंनी।
नंग धड़ंग, गावन नाग, त्रिशूल, खप्पर, शिव डमरूवाल।
शिव महादेव, देवाधिदेव, महाकाल, छन सबनैहै भाल।
शिवज्यू हम सबै तुमरि शरण में छों, पत धरिया।
जिलै रोग शोक संताप दुख दरिद्र छ, सबनैकै हरिया।
श्री Rajendra Prasad Joshi के द्वारा भेजी कविता...
बुजुर्गोंकि मानी जैल लै राय।धर्म कर्म करौ वील भईं शिव वीकै सहाय।।पूजा तबै छू जबहोल दुखियोंक दुख हरण।लाचारोंकि सेवा करिं मिलें शिवज्यू शरण।।हाथ में डमरू छू झन समझिया क्वे मदारी। आशुतोष रूप में यों छन हमार हितकारी।।पापी अनाचारी और भईं जो लै अत्याचारी।पकड़ि बेर हाथ में त्रिशूल सबै इनूँल मारीं।।आपणीं बात मानि जोशीज्यू मन्दिर जानूँ।पुजौक बखत हैगो आब जरा भजन गाँनूँ।।
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Jagdish Chandra Bhatt
Jagdish Chandra Bhatt हर हर महादेव
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भावीन चौहाण
भावीन चौहाण धनयवाद
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Mohan Singh Bisht
Mohan Singh Bisht बहुत सुन्दर जी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Durga Datt Joshi 
February 22 at 1:09am ·
म्यार गोंक सेठज्यूनक च्यल प्यार में पगली रौ।
घर में रूप्यांनाक ढेर भाय, लोंड अलबली रौ।
रोज बजारपन गलफ्रेंडनाक दगड़ि बेइमी रों।
रात में खै पी बेर धांकमुंक लागणै घरैं औं।
सेठज्यूंनि उ समझा, पोथा, तु ब्या करले।
म्यार नजर में सेठकि चेलि छ,जै बेर देखि ले।
"न बाज्यू मैं ब्याकरनत फ्रेंडाकै दगड़ि करन।
तुम जै मना करलात, मैं जहर खै बेर मरन।"
तसि सुंणि बेर सेठक बरमान चकरि ज गै।
"पोथिया तस केहिं कौंछे, तु थ्वाड़ समझि ले।
जात पात ऊंच नींच घर खानदान देखण पड़ों।
ब्या कण के खेल जै किछ, सबै समझण पड़ौं।
लोंड मानै नं, बाप लाचार हैगे, वीकै दगड़ि ब्या करदे।
भुलिया उ स्यांणिलि यकै साल में सबै लटि पटि उड़ै दे।
यक दिन सेठाक च्याल कें लात मारि जनीं रै।
सेठक च्यल गरीब हैगे, फिरि औकात में ऐ।

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राजेंद्र ढैला 
February 21 at 6:38pm ·
~ न्यूँत छ आओ ~
""""""""""""""""""""""
निकाओ-निकाओ बखत निकाओ
साहित्यैकि गंग में डुबकी लगाओ,
कुमाउनी साहित्यकार कौतिक में आओ
आपणि बोलि-भाषाक स्वाद चाखि जाओ,
--
पच्चीस फरवरी सन् द्वी हजार सत्र हुणी
अतिथि रेस्टोरेंट देवलचौड़ हलद्वाणी,
एक दिनी कौतिक छ तीस साहित्यकारोंक
आया हो आया स्वागत छ आपण सबोंक।।
....
~मित्रो आपूं सबन् हूँ न्यूत छ हमर कि यौ समारोह में सामिल हैबेर आपूं लोग हमर उत्साह वर्धन करो ताकि हमन् कैं और तागत मिलौ यास कामन कैं करण हूँ।।सादर।। समय रत्तै ९.३० बाजी बटी ब्यावाक ४ बाजी जांलै।। जय हो।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Durga Datt Joshi added 
February 18 at 12:36am ·
पापैकि कमै दसै सालन तक रौंनेर भै।
फिरि मूल समेत सबै, दगड़ि ल्हिजनेर भै।
आमा बुबु सबै, नानतिनन समझाते रौंनी।
कभै भुलिबेर लै के पाप झनकरिया कौंनी।
हमनि हुस्यारिक दगड़ ईमानदार रौंण च्यां।
बेइमानिक माल छाड़ा,सांचिक सुक रूवट च्यां।
बेइमानाक घर थ्वाड़ दिनन में अन्यारपट हैजैं।
कुछ सालन बाद, महलनैकि खन्यारपट हैजैं।
खूब मेहनत करिया, भगवानक नाम ल्हीनै रया।
थ्वाड़ै में गुजर करिया, भलिमति भाल काम करिया।
भुलिया म्यार गोंक आमा बुबु अशीष दिनारै।
जी रया जागि रया तमार भल हो कुनारै।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Durga Dutt Joshi 

February 19 at 2:25am ·

हंसो और हंसाओ
भुलिया म्यार गों घनदा, बेलि दिल्ली बै घर ऐरौ।
सयाणि धें रेशमकि साड़ि, ईजाहिं रुमाल लैरौ।
ईजाहिं गूड़ैकि भेलि,हाई सयाणिधें मिठ्या लैरौ।
अच्यानक जमान भै, कि कोंनों अणकसै ऐरौ।
सासु रतहिं उठैं, पुर परवारैं चहा पाणि बणौं।
दुल्हाणि कें देखा, दोफरि तक बिस्तर में पैणों।
घराक हाल देखि बुड़ज्यू, भौतै खार खनी।
रतहिं रमट पकड़ि जगंव बटिक लाकड़ लौंनी।
दुल्हाणिलि लगैहालि सबै घरवाल काम में।
आपूं भल खै पीबेर दिनभरि भै रौं घाम में।
भुलिया पहाड़पन अच्यान तसि काव हैरै।
बुड़ बुड़ि काम कनी, ज्वान उनार ग्वाव हैरी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
24 mins ·
रैंदा गाँव गल्याऊ त, लगांदा कछड़ी हम।
कभि गोरो कु पिछने,त कभि फांग्यो में हम।
बगीचा में बैठी,समस्याओं पर बच्याणा हम।
होली कि गांणी पूरी,जौंला फिरि पहाड़ों हम।
बड़ौला दिन क्या ,हिटुला गल्याऊ बाटो हम।
होलु वी कलबलाट, पंध्यरो की छ्वी में हम।
बाग बट्टा पिट्ठू कंचा, त गुच्छी खेलुला हम।
सरका दौड़ म अगनै, छोड़ी ग्यो पहाड़ हम।

 

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