Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383436 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 16 at 10:15am ·
सुंदर सी गौं च, स्वावलंबन कु प्रतीक।
चमक बताणी, समृद्धि खूब च भै यख।
पलायन की मार, च जरा कम सी यख।
पर असर शहरों कु, पौचण लग्यू तक।
दूर फुंगड़ी धाण छुटि,खेती नजदीक तक।
पर उम्मीद च बकै,पलायन रूकलु यख।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 15 at 6:28am ·
पाख्यो रौल्यो बनी बाटु,जमनु अब बदली गे।
फांग्यो बूण बढि गि, मनखी ऊंदरि बाटा लै गे।
सड़क्यो सी फैदा कम,नुकसान ज्यादा हवे गे।
भला कु आई सड़क,पर बुरू थै बिछाण लै गे।
दिन रात भ्वरिणां गाड़ी,पहाड़ खाली हवे गे।
यख तक पौचि बात,सड़क बिन मनखी रै गे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हीरो बणि गये हम भैजी की बरात मे
धूपी चसमा पहने थे हमने आधी रात में,
काठा कू कपाल पर रेसमि रूमाल था
ढौंडा कू सि ताल तक निखूल्दा सुलार था,
स्याली एक कूंण से हमे घूर रही थी
दूध की भदौली मे हमे चूर रही थी,
गर्ल्फ्रेन्ड का रोग हमे ऐसा सुहाया
गिचू बटी घूंड तक लार हमने चुवाया,
भारी भीड मे घुसे भितर गोतरा चार मे
किंल्ग बोल्ड हुऐ हम पहले पहले प्यार में,
गोरी गोरी चोंठी पे काला काला तिल था
तिल नही था वे हमारा फूंका हुवा दिल था,
ज्यूड डाली गाल मे बांध दिया किलू पर
भैजी की बरात मे बोख्टया बन्या हम कीलू पर ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"घिण्डुड़ि" दिवस मा छौं मि खुजाणु घिण्डुड़ि
डाली डालियों पाता पातियों हिरणु घिण्डुड़ि
घोल तेरा खाली होयां नि च तेरु अता पता
कन्दुड़ियों मा गुंजणि चचाट तेरी
आंखियों मा बणनि रचना तेरी
ये पहाड़ छोड़ी कख तू गैइ
किले तू इदका रुसाड़ ह्वेई
तेरा त पंखों की रौनक यखी चा
यूँ डालों छोड़ी कख तेरी मुखड़ी लुकाइं चा
ना कैर तौं मनखियों की सैर
तौं कु नि क्वी थौ- ठिकाणो
भूली बिसरी पितरों ते वो
यकुली यकुली ख़ुशी छन मनाणा
हिट नि सकदा उकाल-उंधार
इले वु सब मैदान मा दौड़ गैना
पहाड़ भी इदका करड़ा नि ह्वीना
जदका तौंका मुख का रंग उड़ीना
यु नकली माया कु बुखार तौं ते भलु लगदु
असली माया की पञ्छ्याण क्वी नि जणदू
ई हिमालय ई बुग्याल
ई बुरांश अर ई हिंवाल
गाड़-गद्य्ना, गौं-गुठ्यार
जंदरु, उरख्य्लु, धुरपलु अर मोर संगाड़
ई च असली माया कु खुमार
झट औ तू घिण्डुड़ि ते मुलुक छोड़ी की
फौंखड़ा फैला तू फुर उड़ी की
ई च त्यारू असली मुलुक
यखी तेरा फौंकड़ों की शान चा
हर दिल मा तेरा प्रति सम्मान चा
रचना तेरी छुटि सी पर रूप तेरु महान चा
गौरैया बणी वू बात नि
जो "घिण्डुड़ि" मा तेरु अभिमान चा....
( हृदय का भाव कलम की स्वतंत्रता से )
-- संदीप थपलियाल
मासों एकेश्वर
पौड़ी गढ़वाल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धन्य रे पौड़ी गढ़वाल।
जैकू छै अजीत डोबाल।
धन्य तेरी खाद पाणी।
धन्य हो ई तेरा बाल।
खंडूरी भी मुख्यमंत्री।
रै छन यखा का खास।
निशंक यखौ रैबासी।
मुख्यमंत्री पद रै पास।
बहुगुणा भी कै गुणा।
छन रे ई बुघाणी लाल।
खैरासैण का त्रिवेंद्र।
मुख्यमंत्री बणी मिशाल।
धन्य पौड़ी भूमी हे रे।
हेमंती तै जन्म द्द्याई।
योगी भै आदित्य नाथ।
आज मुख्यमंत्री बणाई।
मुख्य मंत्री खान रे।
गढ़वाल ते कु तै प्रणाम।
तेरा माटा पाणी जादू।
करदू माँ त्वै ते सलाम।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली दोहा ““पखणौं का बुखणां”” -- दोहा लम्बर 28:
.
बारा मैंना दिल्लि रयां
हमनत भाड़ हि झोंकि ।
कुछ सलेकु भी आय नी
नाक भि साकि नि पोंछि ॥ (२८)
.
बाकी फिर कभी अगले अंक में ........
.
Of and By कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }

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गढ़वाली दोहा ““पखणौं का बुखणां”” -- दोहा लम्बर 22:
.
फिकर नी च ईं बात की
बखरि मरे त कनै ।
चिंता ल्वाला बाघ की
जील पड़ी स्यु कनै ॥ (२२)
.
बाकी फिर कभी अगले अंक में ........
.
Of and By कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ

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Dharmendra Negi
 
आज विश्व घिन्डुड़ि दिवस पर एक बाळ कविता
" घिन्डुड़ी फुर्रss उडै की ऐजी "
घिन्डुड़ी फुर्रss उडै कि ऐजा
ऐकि हमारि डिन्डाळि मा बैजा
त्वेथैं कौंणी झुंगरु खिलौंलू
नवलि को ठंडो पाणी पिलौंलू
दगड़म घिन्ड्वा दा तैं भी लैजा
घिन्डुड़ी फुर्रss उडैकि ऐजा
त्वेखुणि भलु सी घोल बणौलू
बिगच्यॉ दगड़्यों तैं नि बतौंलू
यखुली छौ मी दगड़म ऐजा
घिन्डुड़ी फुर्रss उडै की ऐजा
गुणमुण - गुणमुण छ्वीं लगौंला
सुख-दुख बंटला हैंसला-ख्यलला
मेरा दगड़म ख्यलणकु ऐजा
घिंडुड़ी फुर्रss उडै की ऐजा
अपणा फौंकुड़ मैंतैं तु देदे
मैंतैं भी दगड़्या उडणू सिखै दे
मेरा सुपिन्या सच तू कैजा
घिन्डुड़ी फुर्र उडै की ऐजा
सर्वाधिकार सुरक्षित -:
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ

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भलि-बुरी
नि खै
नि लगै
नि पैं
सदनी
गिच्चू
बारणी रै
अपणू
खुणै
वा कुईं
होरि नी
वा च
मेरी
ब्वै।।
बचपन
भुल्ला-भुल्यों
ग्वैर रै
ज्वनि
बौंळान खै
बुढ़ापू मा
इकुलांस
लेखी रै
वा कुईं
होरि नी
वा च
मेरी
ब्वै।।
रचना:गोविन्दराम पोखरियाल "साथी"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बुये बाबा म्यर पाड मा
मम्मी डैडी हुयां छन
सास ससुर बी मम्मी पापा
जिठा जी भैजी बंण्या छन
फैंसी चश्मों मा ब्वारी दीदों
सासू कांणी हुयीं छन
लीड क्वचीं कंदड्युं मा तौंकी
धै सुणीक बैरी बंणी छन
ऊंची हिल सैंडल्युं मा ब्वारी
ब्यो मा डांस कना छन
लसका ढसकों मा दीदों भग्यनी
द्युरों तै लमडांणा छन
जियो कु नैट लियुं
फेसबुक मा मिसीं छन
कमेंट मा द्युर जिठांणु तै
नाईस लुकिंग लिखंणा छन
बुये बाब म्यर पाड मा
मम्मी डैड हुयां छन
सास ससुर बी मम्मी पापा
जिठा जी भैजी बंण्या....
मेरी दीदी भूल्युं तै समर्पित मेरी या नयी रचना@लेख सुदेश भट्ट"दगड्या"

 

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