Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383112 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
April 3 at 10:25am ·
गुंजी शब्द परंपरा का,आज सरा दुन्या म।
पौंची विघ्या दुन्या म,जो दबी छै पहाड़ो म।
नमन बसंती बिष्ट जी,जो गठयी आपन सुरो म।
सुर आपका शब्द परंपरा का,गुंजणा जन जन म।
नमन आप थै पहाड़ो कु,पौंछै जो नयी ऊँचाई म।
अमर विघ्या करी भै,अमर आप पहाड़्यो का दिल म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat with Prem Kuliyal.
April 1 at 11:33pm ·
खड़ि छु विरासती खिड़की म,बाटु रैंदु रोज देखणी।
आलु क्वी बोड़िक गौं म,ऐ विरासत बचाणा खणी।
सम्हाललु ऐ जब क्वी, तभी होलु संतोष हम सणी।
बनै छौ पुरण्योल, मन लगै अपणा नौन्यालु खणी।
नि आणु रास आज, बनी छै जो नयी पीढ़ी खणी।
कखि इंतजार हमरू,जग्वाल ही न रै जौ हम खणी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
अपणि जिंदगी मा....
मैंन यनु देखि,
कुछ मनखि अफुतैं,
भारी चितौन्दा,
यनु नि स्वोच्दा,
मनखि त माटु छ......
-कवि जिज्ञासू,
म्येरा कविमन कू कबलाट,
खासपटटी, बागी नौसा,
10/4/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
8 hrs ·
ढुंगा न चलैन भै....
भागीरथी का बीच बैठि,
एक बड़ा ढुंगा ऐंच,
गढ़वाळि मा रैप पॉप,
बौळ मा गाणु छौं,
बतावा दौं भै बंधु,
मैं कख जाणु छौं.....
-कवि जिज्ञासू,
म्येरा कविमन कू कबलाट,
खासपटटी, बागी नौसा,
10/4/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
ढुंगा न चलैन भै....
भागीरथी का बीच बैठि,
एक बड़ा ढुंगा ऐंच,
गढ़वाळि मा गजल,
बौळ मा गाणु छौं,
बतावा दौं भै बंधु,
मैं कख जाणु छौं.....
-कवि जिज्ञासू,
म्येरा कविमन कू कबलाट,
खासपटटी, बागी नौसा,
10/4/2017

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
पाबौं बिटि भानुमति कु,
अयुं छ रैबार,
पाबौं घूमिक चलि जवा,
हे दिन द्वी चार....
भारी मजबूरी छ,
हे पाबौं की भानुमति,
दर्द भरी दिल्ली मा,
होणी हे दुर्गति......
-कवि जिज्ञासू
रचना-1093
8.4.17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू 
April 8 at 7:29am ·

धर्ती स्वाणी सब्बि धाणी,
ज्वानि देखा बगदु जाणी,
एक दिन चलि जौला,
तब भौत याद औला,
जब तक जिन्दगी छ,
तुम दगड़ी दगड़ू निभौला.....
-कवि जिज्ञासू
rachna-1092
8.4.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
April 7 at 2:30pm ·
घत्त आज यनु आई,
भग्यानु की सार,
खासपटटी की बात छ,
भागीरथी का पार.....
ओल्या गदना भतग खाई,
पल्या गदना मार,
हाडग्यौं कू बणिगी पिन्ना,
बतौणु हपार......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
रचना.1092, दिनांक 7.4.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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निंदी
ढुल ढुल कैकि
आंदि जांदी छे
मुंड थे झुल झुल कैकि
हिलांदी छे
कु हुलु निर्जक सियुं
गुर गुर करनु
नाक कु छिद्र कु बथों थे
सुर सुर करनु
कैथे ऐजाँदी
सिंकुली सुरक करि की
मिठा सुपनीयू ले जांदी
अंचल भौरि कि
कैथे याखुली याखुली
क्दगा तड़पादीं छे
पिछणे पिछणे अपडा
क्दगा दौड़ांदी छे
खेळ छन विंक
रति बेराती न्यारा न्यारा
कबि हसंदी रुलांदी
कबि खूब बचांदी छे
निंदी जबै
में पास आंदि जांदी छे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

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Darsansingh Rawat
 
देखिक तस्वीर तुमारी,संस्कृति याद हम थै आंद हमारी।
कंदड़्यूम म गीत भै,गोपाल बाबू का गुंजदी रात सारी।
नौ पाटा घघरी,माथिया अंगड़ी,
के भली छाजी रै रंगीली पिछोड़ी।
,,,,,,,
गवा गलोबन्द हाथो की धगूली,
चम चमा चमकी रे ख्वारा की बिंदूली।
हाय तेरी रूमाला,,,,,,,गुलाबी मुखड़ी।

 

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