Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382861 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तेर घुटी
तेर घुटी कु पीणा
अब त मेरु मन करदु
तेर दगड इण जीणा
अब त मेरु मन करदु
वा क़्या तेर नत की बात
अब त मेरु मन करदु
कै दे मिथे स्वीकार अ
अब त मेरु मन करदु
झम झम प्रेम बरसात
अब त मेरु मन करदु
इन कोयड़ी लागे बारामास
अब त मेरु मन करदु
कैर ले मेसे बात इन दिन रात
अब त मेरु मन करदु
किले ह्वैगे ह्वैली ऐ संकुली रात
अब त मेरु मन करदु
कबिता मां तेरु पाठ
अब त मेरु मन करदु
दे दे तू मिथे अपडो साथ
अब त मेरु मन करदु
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दूर भतेकि
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
राजा कि गद्दी कैल छुड़ाण
वख जैकी कैल कैल चौंल बुकाण
सदनियों कु तुम छोड़ दिना
भौत म्वाट मनखीयों कु रुझान
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
अब नि ऐ सकदु मि तेर पास
क्वी नि रेग्यूं जब मेर आस पास
अब मिथे जी भोरिकी तेर याद आई
जब बोगीगे मेर खैर कमाई
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
छान,तिवारी,भूमडू ई कुड़ी
अब तक नि देक नि टूटी मेर खुंटी
मोअरी भतेक को मारलू हाक
सब चली गेनी अब देब्तों का पास
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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किले हुलि
किले हुलि
बैठी मांजी आज ऐ घघुति उदास
कैका बाना धैरी हुलि
इन हैरा भैरा डालियों मां आस
झम झम झम बर्खाणी
हुलि यूँ का आंख्युं मां बरसात
तीळ तीळ कैकी मौरनि हुलि
ऐ यखुली यखुली किले की दिन रात
बल्दू की घांडी बज्दी
घस्यारियों गीतों न ऐ दांडी
कैका हेर मां हुलि तांसि जीकोडी विंकी
किले हुलि यखुली तप्राणी
टुकड़ी टुकड़ी कु
जीकोडी को हेर नि च वींको क्वी ठौर
यखुली सोचणी कै बाना सजायूँ हुलु
हमुन ऐ अपड़ो घौर..... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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Darsansingh Rawat
 
अछेल मेरि तू, अछेल करलू त्वेकु सदनि।
ब्वे छु मि तेरी, खुचिलु च त्वे खणि सदनि।
आश छै तु मेरी ,मेरू मातृत्व की कहानी।
तेरू सुख मेरू सुख,हैंसदी रै बाला सदानि।
मनैलू दिन मातृत्व कु,आशीष मेरू सदनि।
जुग जुग बटि चली,संतान ब्वे कि कहानी।
।।।मातृ दिवस कि शुभकामना।।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
दगड़ु हमरू सदनी, वचन ब्यो का अंचलों कु।
सुख दुख दगड़ी कटण,वक्त च भै निभाणा कु।
मि प्रदेश रू जब, त ख्याल रखि त्वेन घर कु।
अब मिलि वक्त मैं, तेरी परेशानी जणणा कु।
सात वचन तेरा मेरा, घार बूण रौ निभाणा कु।
ज्वानी संघर्ष में रै,अब बुढापा मिली दगड़ा कु।

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Darsansingh Rawat
May 14 at 12:45am ·
वक्त छौ कभि इनु,रैंदा छाया पाणी अग्यार म।
बचपन बिति भै,पाणी जग्वाल करदा धार म।
अब समया न ले करवट,बनि डिग्गी पंध्यर म।
छुटि पिछनै जमनु ओ,अग्यार ना अब धार म।
नवली धारा बणि,पर भीड़ फिरि भी पंध्यर म।
जल ही जीवन च भै,तभी च सुख ऐ संसार म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 10 at 5:59pm ·
डांड्यो थै देखणु,मि कांठ्यो कु वासी छु।
आणु होलु क्वी त, बस जग्वाल पर लग्यु छु।
कर्मभूमि बनलि क्या ए,भै मि त यु सोचणु छु।
क्वी बौड़लु कि ना,पर मि त बस बाटु तकणु छु।
इरादु पक्कू करणु मि,भविष्य भी पहाड़ु कु छु।
दगड़ु कना क्वी आंदु कि ना,अण्यु जग्वाल म छु।

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Darsansingh Rawat
 
टिहरी म बणि डाम,पंचेश्वर डाम की तयरि च।
पाणी पठ्याणा मैदान,पहाड़ो की तीस तकी च।
त्रासदी ब्वलु ए खुणी,कि सोचि समझी चाल च।
अपणु ही पाणी पर,हम पहाड़्यो कु हक नी च।
दूर डांड्यो का गौ,पाणी ल्यण्यो की तस्वीर च।
छैंदा पाणी का भी,पंधेरयो की कतार लगी च।

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Darsansingh Rawat
May 17 at 11:33am ·
चलि ग्यो कर्तव्य निभै की,नमन च सूर्यदेव थै।
जाण बगत भी विहंगम, भै दृश्य देणा धरती थै।
रचना प्रभु प्रकृति की, सौंदर्य सौगात पहाड़ो थै।
असमान धरती एक कना, धन्यवाद भै सूर्यदेव थै।
ब्यखुनी देकि यख,उज्यलु कना लगी हैंकि दुन्या थै।
आई जाणु मुलुक मेरू कभि,देखणा कु इनु द्रश्य थै।

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पाथर छायी मकान हूँछी
नानू नान कुड़ी में लै फरांग हूँछी
भीं में बिछै बेर गद्द चटाई
भली भल नींन उछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
आम –बुब काका –ताऊ, भै – बैणियोंक पुरि बरात हूँछी
मिल जुल बेर रोंछी सब, हमर लिजी रोजै त्योहार हूँछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
रत्ती फजर देवी थान बटी, शंख घंटीक आवाज उछी
छाज में भै बेर बुब लै हमार, गुड़गुड़ी हुक्क में तान भर छी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
दिन भरीक थकी पराण, खेतों में पसीण बहौं छी
आलू –पिनाऊ साग दगैण ,मडुवक चार रौट खछी
रत्ती कनै भलीक्कै पेट लै साफ हूँछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
रत्ती कनै जब सब सै रोंछी, ईजक आदू काम है जछी
गोरूक दूध निकाव बेर, भिनैर कै चणै दिछी
दूदक गिलास किनार धर बेर
किरौटी लिजी भै – बैणियों में लड़ाई हूँछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
बाबू जछी गोरूक ग्वाव, ईज खेतम कुटैयी छापेरि लि जछी
भै–बैणियोंक दगण हमलै , बाखोई में डोइनै रौंछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
ठुल दादीक पेंट जब ,घुन जाणे पुज जछी, चार हरी पिहाव टल्ल जब
विक पिछाडि लाग जछी
ऊक बादा ऊ म्यर नई पेंट हूँछी, पेंट पैण बेर मैं लै खूब इतरौंछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
स्यो,खुमानि,पुलम,काफो
हमर पहाड़ में खूब हूँछी
अडडू , बाघ– बकरि , साँप सीड़ी
हमर नान छनाँक खेल हूँछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी….
भल करला भलै हौल, आम–बुबुक य सीख हूँछी
पहाड़ेक ठंडी हाव में, ईष्ट देवोंक आशीष हूँछी
आहा ! पहाड़ में कतु भल दिन हूँछी…
संजय पाठक (हल्द्वानी) की कविता है 

 

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