Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 132489 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
 
बस यों ही .....
यादों के पहाड़ में
सभी कुछ
हरा - भरा हो
संभव ही नहीं है .......
वहाँ
गाड़ - गधेरे
दाड़िम , अनार , पुलम
और अलबखर के साथ
चूक , नारंगी , माल्टा
अखरोट और
" रीठा " भी होता है
पेड़ों में ......
हिसालु ,किनमड़ और
काफल खूब होने वाले हुए
गीतों में .......
अब
बाड़न में पाऊँ , हालंग
चू , लाई , उगल नहीं होता ...
पक्षियों के घौंसलों में
चूँ - चूँ करते
बच्चे जरुर होते हैं ....
गोठ में
ढोर - डँगर के साथ
लकड़ियाँ सजी रहती हैं
चौमास के लिए ......
गाज्यो , पराल होता है
लुटाँणि के अतिरिक्त
अटिक - बटिक समय के लिए
........ भकार में
ग्यूँ - धान भी रखती है
आमा
भरबाटुन में
दया्व रखती है , जहाँ
खुटकूँण से जाना होता है
केले चुराकर खाने के लिए
..... रौन छैं
तिपाई पर बैठी
काली केतली के नीचे
" राख " में सदैव
उजाला लुका रहता है
इसीलिए
अँधेरा कभी नहीं होता
पहाड़ी घरों में
फू - फू करते ही
पसर जाता है ......
मैं , यहाँ भी
यादों के पहाड़ में
कुछ इसी तरह
उजाला ढूँढ लेता हूँ
या कहूँ
कि , " छिलुक " ढूँढता हूँ ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Nandan Singh
 
फुक माजत !
य रूड़ लै जिलै बनै हनैल भगवानैल l
भौतै गरम हैगो l दिनम कतई मुनव फुटै है रेंछ घामेंल l
न पंखै हाव लागनी, न कूलर के करि सकन l
और त और, ए.सी. लै फेल करि हैली य गरमें ल l
अब के जै करण हय, काँ जै जाण हय, के समझ नि आन l
यसम हमर पहाड़ै भल हय,
जस लै हय रुख सुख, एक घट्टाक पाणि त ठण्ड हय l पौन त ठण्डि हय l
य परदेशम कतई मरण काव हैरै l
सब आपण और आपण नान तिना ख्याल धरिया l
जै पास टैम छु , पहाड़ घुमि आऔ l

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mridula Joshi
 
कुमाऊँ में कोइ लै भल मंगल काम में शगुन आँखर सबन हैबेर पैली गई जां। जस मैंल् सुण राखौ लेखणयूं। कत्ति कै गलत लै है सकूँ। सुधार अपेक्षित छ्।
शकूना दे शकूना दे
काज ए अति नीका
सो रंगीलो पाटल अन्चली
कमल को फूल सोई फूल
मोल वान्त
गणेश रामीचन्द्र लछीमन
जीवा जनमैं
आद्या हमरो ओइ
सोई पाटो पैरी रैना
सिद्धी बुद्धी सीता देही
बहो राणी आयी वान्ती
पुत्र वान्ती ओइ
सोई फूल मोल वान्त
दिनेश चन्द्र, राजेश चन्द्र(घराक् आदिमनाक नाम)
भाई बन्द जीवा जनमैं
आद्या यमरू ओइ
सोई पाटो पैरी रैना
दया सुन्दरी राधा सुन्दरी(आदिमनाक् नामाक् पैल् वर्णैल् सुन्दरी बण जाल्)
दूल्हा हिणियां सबै बहुआ
आयी वान्ती पुत्र वान्ती ओइ!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 ·
उमर पिच्चासी की,पर अजि नजर च बालापन सी।
हाथ खुटि चलणी छी,किलै कि आदत बचपन सी।
राज स्वास्थ्य कु,खाण पेणु कखि ना पहाड़ सी।
जीण जीवन सदनि भै, इच्छानुसार अपणी सी।
चलदी रैंद जीवन सरस, विमुख न जब कर्म सी।
कख मिलंद भै हवा पाणी,हमरा पहाड़ जनि सी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat

Yesterday at 8:49am ·

कन्यादान सी भी, महान होंद भै गौदान।
रक्षा गौ माता की, पूजणु दिवतो समान।
पलेंदी जै डेरा गौड़ी,भगवान तकी बस्यान।
माता अर गौड़ी कु, दर्जा वेदो म भी समान।
गौरक्षा परंपरा हमारी,करण सदनि सम्मान।
एक घर एक गौड़ी पालि,यज्ञ करण महान।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 19 at 10:23am ·
टिहरी म बणि डाम,पंचेश्वर डाम की तयरि च।
पाणी पठ्याणा मैदान,पहाड़ो की तीस तकी च।
त्रासदी ब्वलु ए खुणी,कि सोचि समझी चाल च।
अपणु ही पाणी पर,हम पहाड़्यो कु हक नी च।
दूर डांड्यो का गौ,पाणी ल्यण्यो की तस्वीर च।
छैंदा पाणी का भी,पंधेरयो की कतार लगी च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
ठेट पहाड़ी छु मि, जयु छु भै बरात म।
हथ म नमकीन च,च्या कु कप भुया म।
तरीका पुरणु सी बैठणा कु,बैठ्यु भुया म।
थकान हिटणा की,उड़ि गे भै च्या पीण म।
आनंद भ्वरू कप कु,दिखेणु मुखड़ी म।
आई जाणु आनंद लेणा,पहाड़ो कु ब्यो म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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केला निम्बू अखोड़ दाड़िम दड़ा, नारिंग आदो दही,
खासो भात जमालि को कलकलो, भूना गडेरी गाबा।
च्यूड़ा सद्य उत्योल दूध बाकलो, घ्यू गाय को दाणोंदार,
खाणीं सुन्दर मोंणींयाँ घपढूवा, गंगावली रौणींयाँ II”
(छायावाद के जनक पं सुमित्रानन्दन पंत जी की तर्ज पर कुमांऊनी भाषा के ख्याति प्राप्त कवि गुमानी जी की चंद पंक्तिया ... )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शेरदा अन्पड जी की प्रसिद्ध कविता "को छै तू" (KAUN HO TUM?).....

भुरू भुरू उजाउ जैसी जाणी रट्ते ब्याण
भेकुवक सिकडी जैसी ओड़ी जैसी निसाण
खित्त कने हसण और झऊ कने चाण
क्वाठन् मे कुरकाटी लूगूछ मुखक बुलाण
मिसिर है मीठी लागै के कार्तिकी मौ छै तू?
पुषक पालणी जैसी ओ खणुणी को छै तू?
दै जैसी गोरी उजई बिगौत जसी चिटि
हिसाव किल्मोड़ी कसि मॅणी खॅटी - मीठी
आँखे क़ी तारी जैसी आँख मे रै रिटी
उडेई फुलडेई हजै जो देइ तू हीटी
हाथ पाते हरे जाछे के रूणीक ड्यो छै तू?
सुरवुरी बयाव जैसी ओ खढूणी को छै तू?
उताके चौमास देखीछै उताके रुण
सुनु साकणी देखीछैे उताके स्युण
कभै हरयाव चणु कभै पूजे चूयूण
गदुवक झाल भतेर ओ इजा तू ककडी फूलुण
भ्यार् बे अनारक दाण और भीतेरबै स्यो छै तू?
नौ रत्ती बावन ट्वेलक ओ दाबणी को छै तू?
जाले छ तू देखीछ भांग फूलै पात मे
नौणी जसी बिले रैछे म्यार दिन रात मे
को फूल अंगाव हालू रंग जसी सबो मे छै
न तू क्वे न मी क्वे मी तुमे तू मिमे छै
तारों जसी आनवार हंसे धार पार जो छै तू?
ब्योली जैसी डोली भतेर ओ रूपसी को छै तू?
ब्योज मे क्वौठ मे रौछे स्वेणा मे सिरान
नरे लगै भेद लगै मन मे दिसाण
शरीर माट मे मिल त्वी छे तराण
जाणी क्वै जुग बटी जुग जुग पछाण
सांसौ मे कुतकुन है अरे सामणी जे के छे तू?
मायादार मायाजाल ओ हंसनी को छै तू?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat (facebook)
 
बचपन याद आई गे,रैंदा छाया हम कभि दगड़ी।
तुम रौ यखी पहाड़, मिन शहरों कु बाटु पकड़ी।
तुम यख मि प्रदेश,जिंदगी चलि दगड़्या दगड़ी।
मिलि बगत अब त,मिन भै छनुड़ि बाटु पकड़ी।
पुरणी माया तेरी मेरी, कंठ भोरी मन म उमड़ी।
दुलार तेरू भी खूब भै,देखी मैं थै अपणा समणी।

 

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