Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382727 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 14 at 4:32pm ·
लग्यु तड़तड़ु घाम भै,शैल में जाणा जुगत च।
उलझी छि समस्या भौत, बताणा जग्वाल च।
एक करोड़ जनसंख्या, परेशानी कु अंबार च।
सरकार बदलेंदी रैणी, जनता कु भुरू हाल च।
स्वनिंद म नेता शासन,आलस म ज्वान वर्ग च।
पलायन ही शायद,यू समस्याओ कु कारण च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 14 at 6:57am ·
रौ सदनि मि परदेश,ऑदु कभि कभि सी गौं म।
बगत रोपणी कु लग्यू भै,पौचु मी भी स्यारो म।
याद ऐगी सुपन्यला दिन,नई ब्योली फुंगड़्यो म।
कलेरोटी ल्यांदा सौंजड़्या,नजर रैंदी छै बाटु म।
रोटी पर कम नजर भै,टक रैंदी छै सौंज्वड़्या म।
बौड़्यु सी लगणु ओ वक्त,बौड़ो जब स्यारो म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 13 at 12:09pm ·
जीर्ण सीर्ण सी छौ हम, पिछने खड़ा तुमरू।
छोड़िक अगनै गौ तुम,नि रखि ख्याल हमरू।
आज मौन सी हम,कभि खेल्या डंढेलि हमरू।
वक्त आज बताणा तुम, घर छौ कभि यु हमरू।
खैंची तस्वीर समणी,त दिल भी खुश च हमरू।
जाणा फिरि मिलिक,रालु हम थै इंतजार तुमरू।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat

गड़गड़ांदु सरग मथि, भै सुरसुरू बथौ भी च।
गरम दिनो की शितली ब्यखुनी,हथ चिलम च।
मौसम क्या बुन तब,चौक तिरली बैठणा मन च।
आनंद इनु कखि कख ,जो म्यरू मुलुक म च।
जिन्दगी चार दिना की,मन की शान्ती जरूरी च।
आई जाणु कभि कभि,विरासत हमरि यखी च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 12 at 12:57pm ·
गाँव एक गल्याऊ द्वी,मनखी भी तका का द्वी।
महफिल जमि जांदी भै,जख बैठदा ए भाई द्वी।
मरोड़ प्वटकी पोड़दी, जब लगांदी छ्वी ए द्वी।
दिनराती पता नि रैंदु, कछड़ि म मिलदी जब द्वी।
गाँव इलाका प्रसिद्ध छि,मेरा गौं का भैजी द्वी।
दुआ देवतो सी करदु, रैया सलामत भै ऐ द्वी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 12 at 9:26am ·
बोल मिसाणा कु शानी, स्वर सरस्वती की देन भी।
मिठ्ठु बजाणु भी च,मन सी गितु कु रसिया भी।
बूण घार ऑदा जांदा, गुंजणा रैंदा भै स्वर भी।
बावन गढ़ गढ़वाल म,त सुणदा लोग कुमाऊँ भी।
माया खुदेड़ सुख दुख, अपणा सी लगदा गीत भी।
गुंजणा राला स्वर सदानी, दिल म रैला बस्या भी।

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Darsansingh Rawat
June 11 at 6:09am ·
रिवाज फाड़ म भात खाणो, दिन च भै या रात।
फाइबर कि पतल्ल ऐनी, नि रै कंदार तिमलि पात।
खण्यो की कतार तनी, बटण्यो का भी तनी हाथ।
पैंट कमीज पैनी बटणि,छुटि गे अब धोति कु साथ।
बदलेंदु वक्त पहाड़ो कु, नयु जमना की करामात।
उदेड़भुन म नई पीढी,दगड़ी चलणी नई पुरणी बात।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
June 10 at 11:20am ·
वक्त अचकाल रूड़ी कु,सरग बदल्यू च।
औडल आणी भै,नजर असमान लगी च।
नि कनु भरवसु भै,ए प्रकृति की देन च।
सरग कब बरखलु,कै थै क्वी पता नि च।
कै डांड ऐन गरजण,कै डांड बरखण च।
पहाड़ो म मैणु भै, रूड़ी दिनो औडल च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat

फाणु बनाण गैथो कु,छापण टुक धरू कि कंडली।
सोच मा सी छु,कै सी जी लागली फगरव्णी भली।
डुबक तभी खूब भै,प्वड़ो कंडलि कुंगली कुंगली।
खवाणो स्वाद तभी,खण्या खाऊ चटि कि अंगुली।
टुक जुमली का खूब,पाती रौ तै कि कुंगली कुंगली।
डलु कै जी आज ,देखणु कंडली जुमली लगुली।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
कुछ नयु कनु छौ, मिन कैरिक दिखे दयाई।
पाक सी खेलदा भै,पैलि बार देश हरै दयाई।
अमर दिलो म दिन, भुलण लैक भि नि राई।
नासूर सी बणी चोट, घाव मिन इनु लगाई।
नाम विराट मेरू,कप्तान बनणा गुट बणाई।
सवा सौ करोड़ लोगो समणी मिन नाक कटाई।

 

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