Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 131921 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat 
June 17 at 8:29am ·
हथ्यो की पीड़ा, हथ्योन पछ्याणी।
बिसराण पीड़ा,कैरिक काम धाणी।
मन की पीड़ा भै, मुखड़ी नि ल्याणी।
मन की भै कैकी, कैन भी नि जाणी।
सुख दुखी दिन त,रैंदा आणी जाणी।
कटि जांदी दुख त,कैकि सुखा गाणी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
बसगाल...
कुछ दिन बाद बौड़िक ऐ जालु,
मैं अपणा गौं बागी नौसा जाणु,
मेरी जिन्दगी मा बसगाल कु,
अहसास सी ह्वे जालु.....
अति प्यारू लगदु छ,
अपणु प्यारू गौं,
ज्यु कर्दु यीं दिल्ली त्यागि,
सदानि कु चलि जौं....
जैंका खातिर दिल्ली ऐ थौ,
बोन्नि छ गौं कतै नि जाण,
मेरू दगडु निभौ छै साल हौर,
त्वैन नितर क्या खाण....
रे नौकरी कनु फस्युँ छौं,
मैं तेरा जाल मा,
सदानि मेरू मन गयुँ रंदु,
देवभूमि गढवाल मा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
19.6.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
June 2 at 3:36pm · New Delhi ·
द्वी जून की रोठ्ठी.....
हम्तैं जू भी बुलालु,
वेका घौर जौला,
अपणा हातुन हम,
रोठ्ठी पाणी बणौला,
खौला भी अर खलौला,
सेवा करिक जरा,
धन्य ह्वे जौला.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 2/2/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू 
June 2 at 9:35am ·
नयार का छाला बैठिक,
स्वोचण लग्युं छौं,
अब कख जौला,
सतपुळि का माछा खौला,
सुखि दुखि जन भी रौला,
अपणौ तैं गौळा लगौला,
काफळ भी पकणां अजग्याल,
लखि बखि बण मा जौला,
गेर भरिक काफळ खौला......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 2/6/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रुप्या कथ्गै हो पर....
जू मनखि अपणा पाड़,
घूमण नि जान्दु,
न ऊ पाड़ी, न द्येसी,
कतै नि रै जान्दु......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 31/2/2017

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खिगचाट....
हमारा यख ब्वोल्दन,
हे छारों खिगचाट न करा,
चुप्प ह्वे जवा,
जबकि छोरा खिच्च खिच्च,
हैंस्दु हैंस्दु खिगचाट,
कर्दा हि रन्दन......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 31/5/2017

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
May 31 at 10:20am ·
कविमन का ऊमाळ....
जन भी छौं मैं मनखि छौं,
तुमारा पाड़ कू,
रोगी छौं दिदा भुलौं,
तुमारा प्यार कु.....
यीं धर्ति मा हे दगड़्यौं,
जन भी रौला,
ज्युंदा ज्यु यीं धर्ति मा,
दगड़्यौं दगड़ु निभौला......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 31/5/2017

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Darsansingh Rawat 
कभि कभि जिंदगी म,नि रैंदु कुछ हथ म।
कल्पना जै कि करदा,अफि आंद बाटु म।
चांदु हर क्वी फुर्सत,रैंदु भै सदनि जुगत म।
नि मिलदु वक्त कभि,लग्यू रैंदु अपणा कर्म म।
परस्थिति भै कभि,हवे जांदी अपणा बस म।
आज फुर्सत म बैठ्या,हवै जहाज जग्वाल म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat 
June 23 at 8:30am ·
शुप्तासन लग्यू भैसी कु, मिन लगयु शीर्षासन।
योग योगी की हवा चलणी, हमन भी लगयु योगासन।
टप भुया पोड़ुलु त, मिन हवे जाण भै मरणासन।
जीवन आसन चलणु,हवे ना जौ हड्डी तोड़ासन।
टक लगै कि देखा तुम, यु च भै शरारताशन।
नि कनु इनु कुछ भै, लगाणु बस जीणासन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat 
June 22 at 8:30pm ·
जयु घुमणो कश्मीर मि,जन्मभूमि भै उत्तराखंड च।
मन खुश पहाड़ देखी, पर मन म एक ख्याल च।
यख भी उनी जीवन चलणु , जनु उत्तराखण्ड म च।
फर्क यख मनखी बसणा,उत्तराखण्ड खाली होणु च।
होलु कभि इनु मेरू मुल्क भि, घोड़ी बैठी सोच च।
कश्मीर हवे सकदु इनु त,मेरू पहाड़ म क्या कमि च।

 

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