Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 131951 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
 
ए द्वि तीणं चार पाँ छै सात आठ नौ !
दस्स ग्यारा बारा तेरा !
सबैं है गयीं बेरोजगार म्यारकै चार !
बन्द है गो नौकरी बाजार !
हाईस्कूल जैले धो धो कौय !
उ कुल्ली कामम गैरसैंण पन रौय !
पैंट पारि लागूं कच्यार म्यारकै चार !
बन्द है गो नौकरी बाजार !
क्रमश :

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jogasingh Kaira
December 3 at 7:26pm
 
जैक जअस तैक तअस,बाकर पाठ बाकरै जस।
आपणि आपणि देबुलि च्यापणि।
मी निमिल्यक बचू बामण हय।
खाॅहणी च्यल,लड़हं भतिज।
बागैल खाय घर नी आय,भ्याैव पड़ौ घर नी आय।
जो थकुलम खाॅल उमैजि छैद करौल।
आब उ माथ माथी चाछ,भीपन नजरै निछ।
पाणिम आग निखितो भै।
एक घुटुक लाल पाड़ी पी जाओ,अलेबेर धिनाइ पाणी के नीछू।
निमखण राजाॅ काॅथे कॅाथ।
आपण हाथ जगरनाथ।
कैहैं कुछा,विन मरिए स्वर्ग नी देखियन।3/12/2014

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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संवत् 1934 के गढवाल में पड़े भयंकर अकाल , दुर्भिक्ष का आँखों देखा वर्णन
कवि – शीश राम ममगाईं
Shishram Mamgain witnessed the famine of 1877(1934 Samvat) and illustrated the famine as Virodhi Samvatsar as follows-
विरोधि सम्वतसर यो साल चौतीस में . पड़ा भारी अकाल तमामी मुल्क में .
इज्जत गैर इज्जत के मानी ण कोई ! इलम और हासिल सबै हीं ण होई !
दोस ना किसी को सुनो यार भाई ! दुनिया के बीच में हुआ ऐसी जाई !
सबौं की अक्ल ने किया जो ण काम ! बिसाऊ की खोज मैं फिरे लोक तमाम !
गए अपने मित्र पड़ोस्यूं के पास ! ण दिया किसी ने हुआ तब निरास !
XX XX
गढवाल बीच तीन सेठ कहलावें . गोकुल्देव रामसरण गोविन्दलाल बतावैं.
हमारे समझ में यही बात भाई . गोकुल्देव रामसरण ख्याल में ण आई .
ये दोनों मनुष्य व्यापारी हैं भाई ! बागेश्वर का स्वागा बजार मैं बिकाई !
इसी तौर अनाज का व्यापार चलावैं ! छ: पाथाखरीदकर दो पाथा बिकावें !
ऐसे व्यौपरि सेठ ना कहलावैं ! सेठ तो बजार में गोविन्दलाल बतावैं .
जिनौं ने अकाल में सदावर्त लाया . गेहूं चंणा रोटी कंगालों को बर्ताया.
पुन्य जो करते तो तोता न परता . पाप जेहि करते नफा है न मिलता .
छै सेर की मडुई सुनो लो भाई , ऐसी यार जुल्मी न देखि न आई
(शीशराम ममगाईं , चौतीस का आकाल , उत्तराखंड भारती , अप्रैल , सितम्बर 1974, सन्दर्भ पुस्तक डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास , भाग -8 , पृष्ठ 48 )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Deepti Trivedi Joshi
 
कुमाऊँनी कविता ॥2॥
न घट,
न नौल,
न काथ,
न क्वीड,
कदुक छू,
देखो दाज्यू पहाडैकि पीड॥1॥

न भाष,
न रिवाज,
न आम् ,
न काखि,
खाल्ली भीड,
देखो दाज्यू पहाडैकि पीड॥2॥

बांज बाखई,
टुटी कुड,
बची बुढ खुढ,
बांज हरा गई,
रै ग्यान चीड,
देखो दाज्यू पहाडैकि पीड॥3॥

न ऊ होलार,
न ऊ गिदार,
न ऊ अतरी,
न ऊ जुआरि,
लागी रूं यां अब,
शराबिनैकि भीड,
देखो दाज्यू पहाडैकि पीड॥4॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Nirmala Sah Gangola
 
"(कुमाऊँनी हास्य कविता )  😜😜
""आजकल चेली ब्वारी चलौनी फेसबुक

""नई फोटो अपलोड करी पुछनी हाउ इज माई लुक


सौर ज्यू देखनी गोर भैसों कैै सासु बेचारी बनी रै कुक ..

स्वामी जी हैं बोली मैकै छ भारी दुःख ..

देवर जिठान सब फ्रेंड्स बनै हली ;
जिठाना त कमेन्ट करनी "माई ब्रो नाईस लुक"

मैसेज मै लिखनी ओ भूली मैंलै ऊँ जरा रूक .

रत्ते बटी रात तक सब आनलाइन आईडी सबुक,

सासु बोलें चल ब्वारी जंगलजानू गोरू भैसो हुनी घा लौनू ,उ छन भूख,

चेली ब्वारी चलौनी फेसबुक

भूख हरेगे नींद हैरगे फेसबुक मै लागरी टूक टूक ,

आठ नानतिना की माँ छू और फोटो सोल साल की ..

फ्रेंड्स का कमैन्ट ऊनी मस्त छ त्यर लुक"

जुग जुग जी रयै ईजा जैल बना य फेसबुक" 😜😜

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Surender Rawat
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इतन ठुल माछ मोहन दा,जाणि कां बटी ल्याछ।
आंणी जाणी सबै झणी, इनोंकणी चांछ।।
इतुक ठुल माछ मोहन दा,जाणि कां बटी ल्याछ ।
गाढ़ गध्यार सुखी ग्यनां,य कां बटी आछ।।
इतुक ठुल मांछ मोहन दा, ............।
आरगी गौं में बांटी दिया,झन मारिया भांच।।
इतुक ठुल मांछ मोहन दा,..........।
धारमै की कुढ़ि मोहन दा,ठाड़िम कैसी जांछ।।
इतुक ठुल माछ मोहन दा,.......।
गौं गाड़क नान ठुल आज तो, आज गो माछ खांछ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kundan Arya
 
(कुमाऊँनी हास्य कविता)

आजकल चेली ब्वारी चलौनी फेसबुक !
नई फोटो अपलोड करी पुछनी,
हाउ इज माई लुक !!

सौर ज्यू देखनी गोर भैसों कैै,
सासु बेचारी बनी रै कुक !
स्वामी जी हैं बोली..
मैकै छ भारी दुःख !!

देवर जिठान सब फ्रेंड्स बनै हली;
जिठाना त कमेन्ट करनी...
"माई ब्रो नाईस लुक"!
मैसेज में लिखनी ओ भूली,
मैंलै ऊँ जरा रूक !

रत्ते बटी रात तक...
आनलाइन आईडी सबुक !
सासु बोलें चल ब्वारी जंगल जानू,
गोरू भैसो हुनी घा लौनू, उ छन भूख!

भूख हरेगे नींद हैरगे,
फेसबुक में लागरी टुक-टुक!
आठ नानतिना की माँ छू,
और फोटो सोल साल की !
फ्रेंड्स का कमैन्ट ऊनी,
मस्त छ त्यर लुक !!

जुग जुग जी रयै ईजा,
जैल बना य फेसबुक !! 😜😜

jagmohan singh jayara

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मेजर वारेन हेडली वार्डल

अठ्ठारा सौ इक्याणनब्बि मा,
गढ़वाळ रैफल की,
पैलि बटालैन मा शामिल ह्वेन,
छै साल तक लैंसडौन मा रैन,
सन् उन्नीस सौ चौद्दा मा,
विश्व युद्ध मा शामिल होण कु,
बटालियन दगड़ि फ्रांस गैन,
लड़दु लड़दु लापता ह्वेन,
बौड़िक लैंसडौन नि ऐन....

लैंसडौन छावणी मा रात कु,
डयूटी फर तैनात सन्तर्यौंन,
उन्नीस सौ चौवन्न सी पैलि,
मेजर वार्डल कु भूत रात मा,
सफेद घोड़ा मा बैठिक घूम्दु,
साक्षात सामणि देखि,
जू तैनात सन्तर्यौं तैं,
ऊंकी गल्ती बतौन्दु थौ,
ब्वोला त निरीक्षण करदु थौ.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 9/1/2018


Bhishma Kukreti

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Pratibimb Barthwal: A Garhwali poet and Blogger
 (गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग -228 )
-
 (Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -228)
  By: Bhishma Kukreti   (Literature Historian)   
      Pratibimb Barthwal is multitalented literature creator. Pratibimb Barthwal was born in 1964, Sirain village of Langur Patti, Pauri Garhwal, Uttarakhand.
     A graduate in medical science is working in UAE. Pratibimb create poems in Hindi and in Garhwali too.
    Pratibimb Barthwal published a few Garhwali poems in periodicals and in Internet medium. Pratibimb is blogger and he translates various subjects from Hindi to Garhwali to Kumaoni and vice versa. Pratibimb believes in integrated Uttarakhand in terms of language and culture.
   Pratibimb Barthwal posted Garhwali poems of various subject and his style is creating small poem as well larger poems. He creates in conventional style and free verses. Humor and satire are part and partial of poetry by Barthwal
     His subjects of Garhwali poems vary from contemporary matters, changes in social values,  culture and to spirituality.
     Pratibimb Barthwal uses conventional and nonconventional phrases for creating perfect image. His uses of Anupras Alankar (alliteration) are excellent. Mostly, his small poems are satirical, sharp and compel readers for thinking.
   
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल की कविताएं

कथका ब्वाला पर क्वी नी सुण्दू,
अंगरेज बणीक अपणी सान समझदिन
अरे जख तख जन भी ब्वाला दगड्यो,
पर इख सब अपणी भासा समझदिन
पूछा के ते, मी बी छौं उत्तराखंडी
बड़ू ज़ोर लगे की इन सब बुलदिन
बीन्ग नी सकदिन गढ्वली कुमौनी
बुलण मा कथका त सरम समझदिन
चला दगड्यो ये पन्ना मा अब सीखी जौला
पोस्ट नोट्स चित्र मा हम कुछ आप ते बतौला
जू लिख्यूं च वे पेढ़ी अब तुम कुछ सीखी ल्यावा
अफू बी सीखा दगड्यो ते सिखे अपर प्रेम जतावा
गढ्वली कुमौनी ये पन्ना मा सिखला सिखौला
उत्तराखंडी बणी की हम सच्चू उत्तराखंड बणौला

-खुदेड मन म्यार-
-
-
खुदेड मन म्यार
करदू रैंद भितर भैर
आंदि च कभी मितै खैर
नी दिखदू तब शाम सुबेर

- कैते बतो –
-
बैठ्यू रै ग्यू
सुचणू रै ग्य़ू
सुचदा सुचदा
रुमक पोडी ग्ये
क्वी दिखे नी
कैते बतो क्या सोची?

-क्या छंवी लगाण-
-
यू भी कर दूय़ं
वू भी कर दूयं
क्या बुतण
अर क्या चुसण
अब तुमम
क्या छंवी लगाण

- रगर्याट –
-
आज किलै ह्वाल
हुंयु यू तौं फिर
रगराय़ट
बुढे गीन पर
नी छुट यूंक
सदिन्यु क रगरयाट

- छुंयाळ  -
-
छुंयाळ  छौ !!!
इन बुल्दिन लोग
कभी छ्वी इनै की
कभी छ्वी उनै की
पर बुल्दु छौ जु
लोग बुल्वदिन ..

- बिसर ग्यो –
-
ध्यै लगेकि ब्वालि वीन
चिन्नी लयेन आंद दफे
पहुंची जब बज़ार
मिल गीन यार द्वी चार
लगिन गप्प अर
घूंट गीन भितर द्वी चार
लमडदू लमडदू
पौंछि मी गौ मा
कैकि चिन्नी
मित बिसर ग्यों अपर घार


   
  Poetry critic Dr. Manju Dhoundiyal appreciated the poetic style of Pratibimb Barthwal.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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चमोली गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; देहरादून गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ;
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Vijay Pandey
8 hrs
कुमाउनी ग़जल

इजा ने कुछ दिन लुका के खिलाया,
तो बौज्यु के द्वारा भजाये गए हैं!
जमाने ने हम पर जुलम इतने ढाये,
घुटनों से आँसू बहाये हुए हैं !!

बिठाके खिलाती है नखानों को अपने,
इजा को आँखें दिखाके गए हैं !
फ़ोकट न खाओ, कमा के दिखाओ,
कह के वो भान कुन घुर्या के गए हैं !

अ से अः तक आता है हमको,
भट्टज्यु के हम भी पढ़ाये हुए हैं !
पैरों के छाले रुलाते बहुत हैं,
जहां भी गए हम ठगाये गए हैं !

मौसा जी कह कर दरोगा से लिपटे,
तो थाने में कल से बिठाए गए हैं !
बहुत याद आती है मडुवे की रोटी,
जब से ये लंगण हम चलाये हुए है !

न सत्ता न हत्ता न पन्यार कैकी,
गरीबी का चन्दन लगाए हुए हैं !
हालात पे आँसू कबतक बहाये,
किश्मत पे चादर ओढ़ाए हुए हैं !

दुनियां में अच्छा अपना ही घर है,
इरादा ये पक्का बनाये हुए हैं !
इजा की तिक तिक पे बुलाएंगे बौज्यु,
अरमां ये दिल में सजाये हुए हैं !

 

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