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A Kumauni Poem /folk Song by Ramesh Hitaishi
बघत कुछ अणकौसै हैगो
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By: रमेश हितैषी
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बघत आज बलवान हैगो,
मनखी पैसुक पछिन भाजन हैगो.
अकास पारि पुजणकि सोच हैरै,
बघत कुछ अणकौसै हैगो।
गों तरुफ़ पूठ फरकै रौ,
बुजुर्गुक कुड़ी में बुकिलु जामिगो।
पहाड़ छोडि सहरों में ऐ गई,
अब एन आर आई फौरन रिटर्ण हैगो।
पहाड़ी छोड़ी हिंदी मैं ऐ गो,
हिंदी लै ग्ये अब निरपट अंग्रेज है गो.
अघिंन पीड़ी बुलानी निछा खाली समझी,
य अबलछण कुछ अणकौसै हैगो।
नमस्ते नमस्कार मेरीस्यो गे,
अब त हैल्लो हाय और बाय बाय रहै गो.
घरक बब बुड़ सौरासकू डैडी,
दीदी दीदू और भिन जीजू हैगो।
डी टी सी छोड़ी अब गाड़ी वाऊ हैगो,
सुख सुबिधाक लै आदी हैगो।
घुमणा बौहन कुकूर पाई रौ,
गोरु बकर छोड़ी अब कुकुरुकू ग्वाऊ हैगो।
रामी , तिलु,राजुली बघत नहै गो,
शीला मुन्नी कु बुखार चड़ी गो.
को कौं याद हरियाऊ घिसज्ञान,
वेलेंटाइन और करवाचौथक रिवाज हैगो।
दूध, दै, छांछ, बिल्कुलै हैरै गो,
काई सुकिली पिवाणकु रिवाज हैगो।
पेंट कमीज सोर्ट है गई,
ज्वातु नस्युड़ जसु जाधे लम्बू हैगो।
एक रिवाज इज बाज्यू हबै अलग रहणक लै हैगो,
भौ हन द्या सासु कै बुलाई गो.
नामकरणक दिन स्याऊ पिठ्या लगणी बनिरौ,
सौर कैटरिंग क इन्चार्ज हैगो।
टेलीविजन में खुसी छैं चार व्य देखि बै,
येति एकै झेलण मुस्किल हैगो।
को पुछू एक गिलाश पाणी,
बस सिरियालुक जमघट हैगो.
इज बौज्यूक फजितु हैगो,
घर नि आय सौरासै बै लौटि गो.
घरवाई बीमार नौकरी झंजट बतैगो,
नेस्ट टैम मिलुल वडसप कैगो।
अब त डिजैनुक लै मतलब बदली गो,
चिरी टल्य्युक जमानु है गो,
पैली बै डिजैन कागज बन छि,
अब वक लिजी केवल मुनव रहै गो।
जमानु बदली फैशन बदली, गोरु,
गोरु और भैंस-भैंसे जसु रहै गो।
सिर्फ इंसान इंसान नि रौहय,
बस यकै लिजी कुनु बघत कुछ अणकौसै हैगो.
Kumauni Poem by Ramesh Hitaishi, Uttarakhandi Folk Song by Ramesh Hitaishi