Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 178703 times)

Bhishma Kukreti

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दुधबोली मातृभाषा परिवार मा आपसी बोलचाल
 से सरकिदि एक पीढ़ी बटि दुसरी पीढ़ी तलक आम घरेलु बोलचाल से ही बच्चों मा शब्द संपदा समृद्ध ह्वोंदि।
 पर हम जै फ्लो मा अपडि भाषा ब्वदन लिखण का मामला मा हरेक शब्द पर अच्छा खासा लोग भी फंस जंदन वाकई ब्वन्न अर लिखण मा जमीन आसमान कु फर्क च।
   नै छवाळि मा आज भौत सारा बच्चा ब्यक्तिगत संपर्क करी मैसे जुडणा छिन अर अफ्वी प्रेरित ह्वेतै अपड़ि शब्द संपदा की रचना अपडा भाव कागज मा लिखणा छिन अर मैंमु पौछौणा छिन अर मै भी यूं बच्चों से वाकई भौत प्रेरित ह्वोणू छू।
   गंगी बजिंगा पिळखी पालाकुराली अर लुठियाग  जन दुर्गम की नै छवाळि मा यन भाव पैदा ह्वौण भौत गर्व की बात च हमारि भाषा की समृद्धि का खातिर।
आप भी देखा पढ़ा नै छवाळि कन लिखणी च गढ़भाषा --------------------------अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग।


फ्योंलि

पुंगण्यूं कि मेंडळयूं मा
खिळी फ्योंलि
हरी भरी सार्यूं मा जन
नै-नै ब्योलि


बीठा पाख्यूं घसेर्यूं का गैल
कन भलि दिखैंणी  फ्योंलि
द्यौ-द्येबतौं  मंडलो मा
 कन भलि सजणी फ्योंलि


बाळौ का हाथ्यू मा जन
ज्वौन सी दिख्यैंणी फ्योंलि
हरी-भरी सार्यूं  मा
कन भली सजणी फ्योंली।

औंस का बून्द जन
मोती  सी चमकणा
फ्योंलि का फूलौ तै
 कन भला सजौणा


 तड़तड़ा घाम मा
 मुरझ्ये जांदी फ्योंलि
बरखा द्वी बून्द पांणीन
खिली जान्दी फ्योंली ।


पुंगण्यूं कि मेंडळयूं मा
खिळी फ्योंलि
हरी भरी सार्यूं मा जन
नै-नै ब्योलि ।

बीठा पाख्यूं घसेर्यूं का गैल
कन भलि दिखैंणी  फ्योंलि
द्यौ-द्येबतौं  मंडलो मा
 कन भलि सजणी फ्योंलि---

-----@कविता कैंतुरा  खलुवा लुठियाग चिरबटिया रुद्रप्रयाग।




पहाड़ की वसुन्धरा, मां
हमारि सेवा सूंण, मां
तु अबारि हिकमत ना ख्वे,
हमारु हौंसला बढ़ौ, मां

अपणा‌ फल-फूलुन हमारि भूख मिटौंदि,
गाड़-गदेरा पांणिन  हमारी तीस बुझौंदि,
तेरा सारा लग्या छां बाटा हम,
हम सबुतै भला बाटा बतौ, मां।

कखि बणांगन बण फुकैंणा,
कखि बणों मा जीव भुकैंणा,
हर्या डाळा नांगा बण्यां
सैणा पुंगणा बांजा पण्या
मनख्यूं मा लाज सरम दे मां
भला जसिला करम दे मां।

धरती मां, तेरी पिड़ा चितौन
डाळी लगौणै छ्वीं-बथ लगौन
वसुन्धरा कु करज हम पर
सिखौ निभौण फरज हमुतै
ऊं भला पुरांणा दिन बोड़ै जा,मां
अपणि माटी कु जस दीजा, मां

नवीन जोशी,   पिळखी घनशाली।



गढवाली कविता बाल दिवस पर

चाचा नेहरू कु जन्म दिवस अयूं
बच्चों ते तोहफा ल्ययूं
चाचा नेहरू जीन बतै
बच्चा ह्वौंदा मन का सच्चा
थो से ना बढण से रोका
थौ से ही बढ्ण देश कु मान
बच्चों का बचपन कु करा सम्मान
तौंकु जन्म दिन
हम धूमधाम से मनौंदा
चाचा नेहरू का नारा लगौंदा।
             
अंकुश राणा ,कक्षा 9       
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पालाकुराली





---'बेटी'---

बेटी दगड़ि क्या कया नि ह्वोणू
यन मा बेटी बचा पर कनुके!
बेटी प्रतिभा भी छिन
पर पैर समाज का बांध्या छिन।

बेटी बेटा बरोबर
पर देखा दुं
बेटी कखि
गंदी नजरों चपेट मा
हैंसण मा पचास खडा हवे जांदन
र्वौण ओ त क्वे फैदा उठै जांदन।

कबि छोटा कपड़ों पर
कबि नचण-हैंसण पर
कबि जोर से भटेंण पर
कबि रेलि-खेल मा
दगड्यों दगड़ि मेल मा
संगति डांट गुस्सा खै जांदि

कखि गर्भ मा मर्येणी
कखि बस कार बटि भैर धक्येणि
कखि दहेज का नौ फुकेंणि
कखि गर्भ मा ही कुर्चेणी।

कखि स्या कैकि नाक च
कखि कैकु मान च
कैकि मां च
कैकि बैण
कैकि दीदी, तै,
त कैकि बेटी।
कैकि पत्नी त कैकि प्रेमिका
अपडि पछांण ही क्या च?

 --रविना राणा कक्षा -12, गंगी टिहरी गढ़वाल।








 मिं तुम्हारी कुण्यासी गढ़वाळि बोलणु छौं।।

पहाड़ की हीं उकाळ उन्ध्यारी धार बिटी।
 हाँ मैं तुमारी कुण्यासी गढवाळी बोलणु छौं।।
चुचौ किलै नि गनखणा मितैं इतगा भी की।
 जु मि हिंदी अर अंग्रेजी का अग्वड़ि रौणू छौं।।

 धारा-पंधेरों,गौं-गुठ्यार, छज्जा अर डेळ्यों तक।
   मीं धियान्नयों कु ही रोज राग अलापणोछौं।।
मेरा बाँचदारा छोड़िक भगिगेन दूर शहरों तक
 मीं यख यखुलि यखुलि कु घाम तापणो छौं।।

बांजा ड्वखरों अर नांगी लगल्यों मा।
मीं यख सुबेर्यो कव्वा जनि बासणु छौं।।
कैका दगड़ बछ्याण यख यखुलि अब।।
   बस यों बुड्यों दगड ही खासणो छौं।।

 तुम होला तों रिक्शा अर टैम्पों मा चलणा।
 मि त यूँ बुड्यों दगड़ सदानि धौन हाँकणु छौं।।
धाण काज न्यार पराळ की सरै बितिक।
 मीं कातिक की बग्वाळ पर तुमतैं जागणु छौं।।

छिलकों का सारा,कटेन्दीन यख राती।
     अर दिन मा लाठा टेकि हिटणु छौं।।
हिंदी अर अंग्रेजी की हीं दौड़ हारिक
   मीं तुम्हारी गढ़वाळी ब्वलणु छौं।।

 यनि किलै बिसरिगेन तुम मितैं कि मीं अब ।
    वॉट्सएप्प अर फेसबुक मा ही लिखैंणू छौं।।
घिच्चन ब्वलणु छोड़्याली, ज्वान दगड़्यों न।
  अर बच्चों मा अब किताबों मा सिख्याणु छौं।।

        अपडी इतगा ब्यकदरी देखिक।
        मीं खुद ही खुद मा शर्माणु छौं।।
       हिंदी अर अंग्रेजी कि हीं दौड़ मा।
        मी रोज यनि धक्का खाणु छौं।।

--दीपक मैठाणी, बाल पंचैत संस्थापक बजिंगा टिहरी गढ़वाल।


----"नाक"---

नाक कखि मान च
नाक कखि सम्मान च
नाक दगडि जुड्यूं
हम सबुकू स्वाभिमान च।

कैन नाक रगड़ि यख
झूठि छ्वीं-बातौ मा
कैकि नाक लंबी बिजां
हिटणू तिमला पत्तौ मा।

कैकि नाक कटैणि
कुकर्म करी समाज मा
कैन नाक काटि हकै
बदनामी का काज मा।

कैकु सेरु रोष क्रोध
नाक मा संभाळी धर्यू
बौंड़-वबरा संगति कैकु
नाक मा च दम कर्यू।

द्रोपदी हैंसी पर
दुर्योधने नाक लगी
ततरा कुरुक्षेत्र मा
ळवे कि कतरि गाड़ बगी।

छ्वीं-बथ रखण तखि तक
हेक्के नाक खड़ी जख तक
जनि अपड़ि नाक मण्ण
हेक्के नाक भी तनि जण्ण।

नाक ऐंच रखण अपड़ि
या त भलीऽ बात च
नाक रखण हक्के भी
ये त मनख्यात् च।

या नाके त रे, जैन
हमारि पद पौ प्रतिष्ठा रखि
मनख्यूं मा मनख्यात् कि
बिज्वाड़ भली पौजे रखि।

कखि नाक बगदि जांणि
गिच्चा ऐंच तक च आंणि
एक धारी ऐंच स्वण्न
खळबट्ट हैकि पेंद आंणि।

कर्तव्य का बाटा हिटा
नाक की भी नाक रखा
लड़ै-झगड़ा दूर करी
नाक की भी साख रखा।

कखि नाक सरेआम
जुल्म मा कटेणी च
अधर्मी पापी समाजा बीच
बेटी नाक बचौणौ भटेंणी च।

नाक दगडि नौ भी कैकु
पछांण जन जुड्यूं रे
फुलि-बुलाक नथुलि दगड़ि
नाक कन सज्यूं रे।

नाक मवड्न, नाक स्वड्न
भारी बुरी बात च
घ्राण-प्राण शक्ति मा
नाको बडु हाथ च।

कैकि नाक दिन-रात
कपालै मा चढ़ी च
अति-मति खै-खै
नाके गंध मरी च।

  --अश्विनी गौड़ 'दानकोट' राउमावि पालाकुराली रूद्रप्रयाग


Bhishma Kukreti

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कनि बात करणा छां'
-
Dharmendra Negi

-
हक दिलाणै बात करणा छां
क्यो ठगाणै बात करणा छां
हमकु टरकणि हुयीं छांछी की
घ्यू पिवाणै बात करणा छां
प्रीत का स्वीणा दिखै हमतैं
ज्यू जलाणै बात करणा छां
धरति मा खुट्टि नि टिकणी छन
द्यो उठाणै बात करणा छां
मेरि अंसधरि रोकि नी रुकणी
तुम हैंसाणैं बात करणा छां
कूड़ि फूकी क्योजि तुम कैकी
द्यू जलाणै बात करणा छां
बाटु बिरड़ै, तुम कुजणि हमतैं
कख लिजाणैं बात करणा छां
'धरम' बाज़ी हरण चाणू छऽ
तुम जिताणै बात करणा छां
 धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ीगढ़वाळ
Garhwali Satirical Poetry

 

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