Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 131302 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
July 20 at 2:30pm 

तुमारु सोचणु क्‍या छ, जरा प्रेम सी बतावा।

खै नि जाणि बल खटटा.......जोगी बणि जावा त लोग लगौन्‍दा ठटटा......
-कवि जिज्ञासु कहिन, दिनांक 20.7.2015

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
July 17 at 4:34pm ·

गढवाली शायरी।
.
झूठ बुलदी होली जून भी तेरा ही जन निहोण्या,
,
तभी ता हाल जून का देखी गैणा भी टुटि जाँदा....।।
.
मन्नू रावत (बौल्या)

मेरा कविमन मा ऊठिगी कब्‍लाट.....

सच बोन्‍नि होलि, होलि जोन जनि बिचारी,
गैणौ कू दिल टूटि, जुन्‍याळि रात की जोन देखि,
बौळ्या भुला दिल न तोड़, क्‍या छ यनि लाचारी......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु, 17.7.15

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
July 17 at 10:17am · Edited ·

आजकल लोग प्रेम कन से पेली मैं पुछणा छन,
,
तेरी दुसल्या माया मैं पितौण्या, बैध बणै ग्याई .......मन्नू रावत (बौल्या)

यनु कबलाट ह्वै मेरा कविमन मा भुला.......

पितौण्‍या दुसल्‍या माया कू बैद कू बणि ग्‍याई,
प्रेम कन्‍न सी पैलि पूछिक कैन तेरु दिल दुखाई,
बिसरिग्‍यें भुला त्‍वैन वेकू नौं भि नि बताई......कवि जिज्ञासु

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
June 30 at 11:37am ·

तिलाड़ी आन्‍दोलन.......

30 मई, 1930 कू,
तिलाड़ी का मैंदान मा,
जनता की बैठक होणी थै,
धौळी यमुना शांत बगणि थै,
सब लोग बेखबर,
बैठक की कार्रवाई,
ध्‍यान सी सुण्‍ना,
अर देखणा था.....

यख आप मेरी यीं गढ़वाळि कविता तैं पढ़ि सकदा छन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविमित्र शैलेन्‍द्र जोशी जी की अनुभूति

कुंगली गाती
ल्ग्यु चा ब्वे कि छाती
कभि रोणु कभि स्येणु
बाला कि स्या च मेस
कत्गा स्वाणु बाला शैलेश
दादा गीत लोरी लिख्णु
दफ्तर मा बैठी बैठी
नाती शैलेश खुणी
बुन भि क्या
शैलेश कु दादा
जिज्ञासु पैली बिटी गितैर छौ
अब नाती ज्यू ह्वेगे
डूबयु रांदु नाती प्रेम का
गीत लिखणा मा
अज्क्याल दिन राती....

रचना .............शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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23.12.2014

दगड़या श्री भगवान रावत की अनुभूति

जब बिटि नाती शैलेश आई,
मेरा जिज्ञासु दीदा का घर मा ।
भौजी मेरी बग्छट वया छन,
नाती शैलेश का प्यार मा।
गढ़वाल मा बोल्दन,
जे घर म लेणु छ त्वार छ।
जे घर मा नोना -बाला छन,
ते घर मा उलार छ।

- भगवान रावत, अखोड़ी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कैकै मंथरा संवाद (1940 से पैलाकि कविता )

रचना-- बलदेव प्रसाद नौटियाल (कड़ाकोट , गग्वाड़स्यूं , 1895 -1981 )

( इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती )

चुप क्या छै तु , बोल क्या ब्वलदी ?
रज्जा को ज्यु किछ त नि होयो !
गुमसुम क्या छे तु , म्यरि मंथरा
हैं ! रोण त नि छै लगीं तु छोरी ?
मंथरा हौर गुमसुम होय दण मण रोय
चल्यतर लगि कन्न
गंगजोण लगि उगसासि ल्हेण
कनि बौळेय स्या आग लगौण्या !
र्वै र्वै (र् वै ) कि वीन आँखि लाल कैनि
मुंड पकड़िक वा खड़ी होय
उमाळ भरेय बोल नि सअकी
आंख्यों बिटि फिर , ढांडो पोड़े
बुका बुकि कैक सो धां वा रोय
जनु वींको क्वी मोरी होय
धुक धुकि लगौण्या संवाद बिंगौण्या
इनि बि ह्वूंदन दूद की माखी तिरया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भुंदरा बौ उवाच --
मेरी जिठाण पैलि पैलि गौं बिटेन सीधा मुंबई गे।
जिठा जी जिठाण तै नर्यूळौ पाणि पिलाणौ बजार लीगेन।
जिठाणिन नर्यूळक पाणी प्यायी अर खाली नरियलौ दाण दुकानदार तै दींद दींद ब्वाल - ल्या भैजि अपण भड्डू समाळि धौर देन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मि भतकयूं , पिचकयूं, मुर्गाबाज पति छौं
रचना --- हरीश जुयाल कुट्ज

भाई साब मी बि पति छौं
बौ जी मी बि हजबैंड छौं
एक टकी, द्वी टकी नि छौं मी
पूरू कुट की छौं
पत्यों मा कू पत्ती छौं
खांदू रोज लत्ती छौं
घार कू मि ह्यड छौं
पर वींकू डबलबेड छौं
खटुला कु सड़्यूं तैड़ छौं
पर म्याळ फुंडा कू खैड़ छौं..... भाई साब...
बनीकरण की खोड़ सी
वींका समणी रैंदू भैजी
बाघ कु समणी बोड़ सी
कळजुगी जवान छौं
मच्छर पैलवान छौं
बोतळ मुर्गाबाज छौं
पर साबणा कू गाज छौं
कगर्वटा कू झौड़ू जन
अनगीरा कू प्याज छौं....... भाई साब.......
फुट्यूं कुटळजड़ू सी
वींका समणी रैंदू भैजी
सिपै जनू खड़ू सी
हौर्यूं खुणै बीर छौं
पर वींखुणै घंजीर छौं
दुन्या खुण थपल्याळ छौं
पर वींखुणै बुकर्याळ छौं
लुक्यूं रैंदू उड्यरा गैड़ सी
रींगदू गड्याळ छौं
अर एकमात्र मी यीं दुन्या मा
घर्वळी कू डुट्याळ छौं.... भाई साब.........
हौर्यूं खुणै जक्स छौं
पर वींखुणै कि लक्स छौं
वींकि पचकयीं ट्यूब छौं भैजी
बिना ढकणा कू जळ्वट म ध्वळ्यूं
वींकु आयोडक्स छौं
सड़्यां निवारौं कु खल्ला छौं
वींकि अंगुळि मा रिंगदू घुमदू
नै नै चाभी कु छल्ला छौं
पच्चीस पैंसा कु कुप्पन छौं
हथगुळि मा मिंड्यू उप्पन छौं
भैजी जब से मी हजबेंड छौं
तब से बेलण बैंड छौं
Copyright - हरीश जुयाल कुट्ज

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अबै दारु का नशाम त लमंड ले

रचना ----भगवान सिंह जयाड़ा
झूम ले , झूम ले , अबै दारु नशाम त झूम ले
लमंड ले , लमंड ले , दारुक नशाम त लमंड ले

कन फुके पहाड़ी समाज माँ या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,
यख ब्यो बरात होंन या जन्म दिन ,
अब त यनु उलटू रिवाज देखि मिन ,
बिना ईका कार्योँ मा मजा नि रैगी ,
यन बात यख सबुका मन मा समैगी
, शराब छ त सभी लोग वाह वाह करदा
, नित सभी वीं मवासी का नौउ धरदा,
जैन जादा पिलाई वेकि वाह क्या बात ,
सभी देण्या छन यख यन लोगु कु साथ ,
खाणु पाणी कथगा भी जू खूब करदा ,
शराब नि छ ता लोग ऊं का नौऊ धरदा ,
मन्न जन्मण मा अब कुछ फर्क नि रैगी ,
या निर्भागी दारू अब सब जगा समैगी ,
अगर यनि यीं दारू कु बोल बालू रालू ,
दिन दूर नि ,जब दारु मा सब समै जालू ,
तब पछतैक कुछ हमारा हाथ नि औण,
अपरी गलती कु सबून यख बाद मा रोण ,
कन फुके पहाड़ी समाज मा या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,

Copyright @ भगवान सिंह जयाड़ा दिनांक >१२ /०४ /२०१३

 

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