Author Topic: Learn Kumaoni & Garhwali - सीखे कुमाऊनी और गढ़वाली (मी उत्तराखंडी छौ) के साथ  (Read 12764 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,

हमारे उत्तराखंड  कई भाई बहिन उत्तराखंड की कुमाऊनी और गढ़वाली  बोलियो को नयी पीड़ी को सिखाने के लिए अथक प्रयास कर रहे है ! दुबई में रह रहे हमारे कुछ मित्र प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल, शशि कांडपाल और अन्य मित्रो ने फेसबुक में एक पेज बनाया है ''मी उत्तराखंडी छौ"! इस पेज के माध्यम से कुमाऊनी गढ़वाली भाषा का हिंदी में अनुवाद करके लोगो अपनी बोली से जोड़ा जा रहा है ! जिन लोगो का अपनी भाषा पर कम पकड़ है खासकर जो उत्तराखंड से बाहर पैदा हुए है, उनके लिए यह एक बहुत सुनहरा मौका है अपनी भाषा सीखने का! प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल जी  और सभी भाइयो को इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई ! इस पोर्टल के माध्यम से भी हमारी कोशिश रहेगी आप इस आपको अन्य लोगो तक पहुचाया जा सके ! This is the link - https://www.facebook.com/meeuttarakhandi

हम इस पोर्टल में इस पेज भी अनुवादित भाषा अंश पोस्ट करेंगे है ! साथ ही इस पेज का फेसबुक लिंक है यहाँ पोस्ट कर रहे है ताकि लोग सीधा फेसबुक से भी ''मी उत्तराखंडी छौ" ग्रुप से जुड़ सके !
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मी उत्तराखंडी छौ!!!
August 14 at 10:44pm ·
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स्वतंत्रता दिवस पर सन्देश गढ़वाली - कुमाउंनी - हिन्दी में

गढ़वाली :
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हर एक साल १५ अगस्त हम सबी भारतीयों कुण एक कौथिग जन बणिक आन्दू. स्वतंत्रता दिवस पूर देश में खुसी का दगड एक दगड़ी कठ्ठा ह्वेकन खूब झर फर क दगड मने जांदू. भारत ते १५ अगस्त १९४७ क दिन अंगरेजी हकूमत बटी आजादी मिली छे. तब बटी अब तक भारत न काफी उनती करी. पर अबी भी भौत कुछ करण बाकी च. स्वतंत्रता दिवस क दिन अपर आपस कु मन मुटाव भूले कन नै निर्माण कू प्रेरणा दीन्दू. हम सब एक सच्चू नागरिक बणिक, इमानदारी क दगड अपर जिम्मेदारी अर कर्तव्य निभे कन भारत ते श्रेष्ठ बणोला. सबी भारतीयों ते 'मी उत्तराखंडी छौं' पन्ना क तरफ बटी हार्दिक बधे अर सुबकामना. जे हिन्द !

कुमाउंनी:
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हर साल 15 अगस्त हम सब भारत वासीयु लीजिए भौत्ते गर्व लीबे ऊ औऱ यौ एक राष्ट्रीय त्योहार ले छू . 15 अगस्त 1947 मे हूमूके आजादी मिलि औऱ येके लिजि आजक दिन के खूशिल मनूनू औऱ आजादी मिलि बाद कई चीज़ मे प्रगति करि हाली लेकिन आजी ले भौत काम बाक्कि छू औऱ जो हम सब्बुल मिलि बे पुर करण छू . स्वतंत्रता दिवस माने ऊंच नीच ,जात पात भूली बे देशक लिजि काम करण औऱ देश के नयी ऊंचाईयां तक ली जाण. प्रण करिबे देश हित औऱ पुर ईमानदारिल अपण फर्ज औऱ काम करण चेनी औऱ भारत के संसार मे सर्वोच्च सम्मन दिलोंण चे, सब भारत वासीयों के मी उत्तराखंडी छों पन्ना तरफ़ बे खूब बधे और सुबभकामना. जय हिन्द!

हिन्दी:
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प्रति वर्ष १५ अगस्त का दिन हम सभी भारतवासियों के लिए उत्सव बनकर आता है. स्वतंत्रता दिवस के रूप में पूरा देश इसे हर्षों-उलास के साथ एक-साथ एकत्र हो कर बड़ी धूम धाम से मनाता है. भारत को १५ अगस्त १९४७ के दिन अंग्रेजो के राज से स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी. तब से भारत बहुत उन्नति कर चूका है. लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है. स्वतंत्रता दिवस भारत के सभी लोगो को आपसी मदभेद भुला कर देश के नव-निर्माण की प्रेरणा देता है. हम सब एक सच्चे नागरिक बन कर, इमानदारी से फर्ज और कर्तव्य निभाकर भारत को श्रेष्ठ बनाये. सभी भारतीयों को "मी उत्तराखंडी छौं" पन्ने की ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जय हिन्द !

कुमाउंनी अनुवाद : शशि कांडपाल


एम एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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August 11 at 

श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी **** जन्मदिन की बधाई **** १२ अगस्त **** गढ़वाली कुमाउंनी में सन्देश
[माता : स्व. समुद्रा देवी, पिता : स्व. उमराव सिंह नेगी,जन्मतिथि : १२ अगस्त १९४९ ,जन्म/पैतृक गौं : पौड़ी गांव, पौड़ी गढ़वाल]

गढ़वाली:

उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध लोकगायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी क जन्मदिन पर हम सब उते बधेई अर शुभाकांना दीणा छवाँ। श्री नेगी जी न अपर गीतूँ अर गायकी क दगड़ी उत्तराखंडे की संस्कृति तै जन जन तक पौंछाई और उंकी आवाजन देश विदेश मे बस्या सबी उत्तराखंडियो क मन मा हमेशा अपनी मातृभूमि /जन्मभूमि क प्रति लगाव पैदा करि। आज हर उत्तराखंडी उंकों आभारी च और जन्मदिन पर उंकी लंबी उमर और स्वस्थता की कामना करदू।

कुमाऊँनी:

उत्तराखंडाक सुप्रसिद्ध लोकगायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी ज्यूक जन्मदिन पर हम सबै उनु कै बधाई एवं शुभाकांनाए दिनु । श्री नेगी ज्यू ली अपन गीतो और गायकी ल उत्तराखंडेकी संस्कृति कै जन जन तक पौंचा और उनेरी आवाजेली देश विदेश मे बसी सबै उत्तराखंडियो क मन मे हमेशा अपनी मातृभूमि /जन्मभूमि क प्रति लगाव पैदा करि रा। आज हर उत्तराखंडी उनर आभारी छ और जन्मदिन हुनी उनेरी लंबी उमर और स्वस्थता की कामना करों।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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July 25 at 3:17am ·

अमर शहीद श्री देव सुमन जी की पुण्यतिथि पर सन्देश [ कुमाऊंनी - गढ़वाली- हिन्दी मा]

~कुमाऊंनी~

लोकतंत्राकि स्थापनाक लिजि ८४ दिनून तक आमरण अनशन करन वाल अमर शहीद श्री देव सुमन ले २५ जुलाई १९४४ कै अपण परान त्याग दियान। श्री देव सुमन को जनम २५ मई १९१४ मा टिहरीक बमुन्द पट्टी कै नोल गौं मा श्री हरिराम बडोनीक यां भ्यो थ्यो। वीन टिहरी रियासत मा देसाकि आज़ादीक दगाड़ राजशाहीक अभिसाप है मुक्त करान खिन लगातार आन्दोलन चलायान। ३० दिसम्बर १९४३ कै उनस चंबा मा पकड़ि बेर टिहरी जेल मा बंद करद्यो ग्यो। वाँ उनस भौत परकाराकि यातनाँ दी गैनी। जाँ वीन यस संसार है अलबिदा कयो .... मी उत्तराखंडी छौं पन्ना कि तरफ बठे यस उत्तराखंडाक सपूत कै उनारी पुण्यतिथि मा श्रद्धा सुमन अर्पित छन। [ अनुवाद हिमांशु करगेती]

~गढवाली~

लोकतंत्र की स्थापना का वास्ता ८४ दिनों तक भूख हड़ताल कन वला सिरी देव सुमन को २५ जुलाई १९४४ मा देहांत ह्वे। सिरी देव सुमन को जलम २५ मई १९१४ मा टीरी का बमुन्द पट्टी को नोल गों मा सिरी हरिराम बडोनी को घौर ह्वे। वूंल टीरी रियासत मा देसा कि आज़ादी का दगड़ी अपर क्षेत्र ते राजशाही को अभिशाप बीटी मुक्त कराणा का वास्ता लगातार आन्दोलन चलेइ। ३० दिसंबर १९४३ मा वून्ते चंबा मा गिरफ्तार कैरिक टीरी जेल मा कैद केर दे ग्ये। वख वून्ते बिंडी परकारा का कष्ट दिए गीं। वखी वूंल अपरी आखिर साँस लेइ।"मी उत्तराखंडी छौ" पन्ना की ओर बीटी उत्तराखंड का ये अमर सपूत ते वेकि पुण्यतिथि का उपलक्ष मा भावभीनी श्रद्धांजलि ! [अनुवाद निखिल उत्तराखंडी ]

~हिन्दी ~

लोकतंत्र की सथापना के लिए ८४ दिन तक आमरण अनशन करने वाले अमर शहीद श्री देव सुमन ने २५ जुलाई १९४४ को अपने प्राण त्याग दिए. श्री देव सुमन का जन्म २५ मै १९१४ में टिहरी के बमुन्द पट्टी के नोल ग्राम में श्री हरिराम बडोनी के यहाँ हुआ था. उन्होंने टिहरी रियासत में देश की आज़ादी के साथ साथ राजशाही के दंश से मुक्त कराने के लिए निरंतर आन्दोलन चलाये. ३० दिसम्बर १९४३ को उनको चंबा में पकड़ कर टिहरी जेल में बंद कर दिया गया .वहाँ उन्हें कई प्रकार की यातनाये दी गयी. जहाँ उन्होंने इस संसार से अलबिदा कहा .... मी उत्तराखंडी छौं पन्ने की और से श्रद्धा सुमन इस उत्तराखंड के सपूत की पुण्यतिथि पर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मी उत्तराखंडी छौ!!!!
July 16 ·

हरेला की शुभकामना कुमाऊँनी, गढ़वाली व् हिंदी में - साथ ही प्रार्थना है उत्तराखंड के लिए.

कुमाऊँनी:

सबै उत्तराखंडियूं कै हरियाव त्यारेकि भौत भौत बधे अर शुभकामना!!! उसिक तो हरियाव साल मै ३ बखत मनाई जां लेकिन सौन महिनाक एक पैट हनी मनानी त्यार भौते उत्साह ली मनाई जां । हरियाली जस सुखद और खुसी जिनदगी हो , यस आशीर्वाद ठुल बुजुर्ग लोग परिवार जानो कै दिनी .. । अफु सबै लोगो को यक बार फिरि शुभकामना!!

गढ़वाली:

सबी उत्तराखंडियूं ते हरेला त्योआर की बौत बौत बधे अर शुभकामना!!! उन त साल मा 3 बगत मने जांद पर सौण मेन क एक गति कुण मने जाणवॉल बिंडी उत्साह से मनये जांद। हरियाली जन सुखद अर खुसी राव, इन आशीर्वाद बड़ बूढ़ लोग दिंदिन कुटुंबदरी क लुखों ते। आप सब्यु ते एक बार फिर शुभकामना!!

हिन्दी:

हरेला के शुभ अवसर पर सभी उत्तराखंडियो को बधाई एवं शुभकामनायें। वैसे तो हरेला साल मे तीन बार मनाया जाता है लेकिन सावन माह के एक गते को मनाया जाने वाला यह त्यौहार अधिक उत्साह से मनाया जाता है। हरियाली जैसा सुखद अहसास एवं खुशियो भरा जीवन हो येसा आशीर्वाद बड़े बुजुर्ग परिवार जनो को देते है ...... आप सबको पुन: शुभकामनायें!!!!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मी उत्तराखंडी छौ!!!!
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एक सन्देश / सूचना

कुमाऊँनी सन्देश
क्या आप ये पन्न [मी उत्तराखंडी छौं] में सहयोग दिन चाँछा? क्या आप कुमौनी या गढ़वाली या जौनसारी या दुव्वै या तिन्नै भाषाओन कै भलि के समझछा लिखछा पढ़छा? अगर हाँ त क्या आप अनुवाद करन में सहयोग कर सकछा?

गढ़वाली सन्देश
क्या आप ये पन्ना ] मी उत्तराखंडी छौ ] मा सहयोग दीण चाणा छन? क्या आप कुमाऊँनी गढ़वली या जौनसारी /या द्वी / याँ तिन्नी भासाओ ते अच्छी तरह समझ्दिनी, लिखदा पडदा छाओ? यदि हाँ त क्या अनुवाद करण मा सहयोग करि सकदिन ?

हिन्दी सन्देश
क्या आप इस पन्ने [ मी उत्तराखंडी छौं ] में सहयोग देना चाहते है? क्या आप कुमाऊँनी या गढ़वाली या जौनसारी या दो या तीनो भाषाओ को अच्छी तरह समझते है लिखते है पढ़ते है? यदि हाँ तो क्या अनुवाद करने में सहयोग कर सकते हैं?

Message in English
Would you like to help in this page [mee uttarakhandi chhaun]? Do you know very well Kumauni or Garhwali or Jaunsari { understand,write / read}? If yes can you help in translation of the post?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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[ अध्याय २० ] भाग - १० कुछ शब्द और वाक्य प्रयोग
भोजन में स्वाद, गंध व आभास से सम्बंधित शब्द व उनका प्रयोग.
कृपया इस रूप में पढ़े समझे सीखे [ कुमाऊँनी - गढवाली - हिन्दी - अंगरेजी ]

१.
स्वादि: तुमले भौत स्वादि खानो बनाछ
स्वादी: खाणा भौत स्वादी बणे आपण
स्वादिष्ट खाना आपने बहुत स्वादिष्ट बनाया
Tasty you made very Tasty food

२.
बेस्वाद : आजो को खानो बेस्वाद छ
निस्वादी : आज कू खाणा निस्वादी च
स्वाद रहित: आज का खाना स्वाद रहित है
Not Tasty: Today food is not tasty Or today there is no taste in food

३.
मीठो : खाना खाय बाद मीठो खान चैं
मिठठू : खाणा खाणू क बाद मिठ्ठू खाण चैयंदू
मीठा: खाना खाने के बाद मीठा खाना चाहिए
Sweet: After food we must eat some sweet.

अन्य :
झिक मीठो - चस मिठ्ठू [ अधिक मीठा – over sweet ]
कम मीठो - निमखनी मिठ्ठू [ कम मीठा - less sweet ]

३.
डाऐलो / खुरश्यानी वाल / डा वाल : डाऐलो साग मैंस भौत पसंद छ
मरच्याणा : मरच्याणा साग मीते भौत पसंद च
मिर्ची होना : मुझे मिर्ची वाला साग बहुत पसंद है
Spicy /hot : I like spicy/hot curry

४.
नून ज्याद / झिक नून छ / नून को काल : आज दाल में नून ज्याद छ / आज दाल झिक नून हालि बेर बनैई / आज दाल नून को काल बना राखौ
लूण्या / लूणकटो : आज दाल लूण्या च / आज दाल क्या लूणकट बणेई
नमक होना / बहुत नमक होना : आज दाल में नमक बहुत है / आज दाल में बहुत नमक डाल कर बनाई
Salty / Over salty : Today daal is salty /today you added over salt in dal

५.
अलनो/ बिन नून को : साग अलनो छ आज / साग में नमक न्हातिन
अलूण : सब्जी अलूण च आज
बिना नमक: सब्जी बिना नमक के है आज / सब्जी में नमक नहीं है
Without salt: Today vegetable is without salt

६.
खट्टो/चुकीलो : झोली(कढ़ी/पल्यौ) को स्वाद खट्टो/चुकीलो छ आज
खट्टू : कड़ी कू स्वाद खट्टू च आज
खट्टा: कड़ी का स्वाद खट्टा है आज
sour: kadi is sour in taste today.

७.
जलैणी: कदुआ क साग में जलैणी ऐ रै छि
जल्याण: कद्दू क बुझ्झी मा जल्याण आणी च
जला हुआ : कद्दू की सब्जी जले हुए की गंध आ रही है
burnt: pumpkin veg is giving burnt smell today

८.
कुछ और शब्द स्वाद [ कुमाऊँनी / गढ़वाली : हिन्दी - English ]
खट्टैन (चुकिलो) / खटाण : खट्टे का स्वाद / गंध smell of sour
दऐनो / देयाण :दही का स्वाद / गंध smell of yogurt
इम्ल्यैनो / इम्लयाण: इमली का स्वाद smell of tamarind
छछ्यैनी / छछ्याण: छांछ की गंध\ smell of buttermilk
धन्यैनी / धनयाण: धनिये की गंध smell of coriander
खोकैन / खिखराण [ मसाले जलने से गले में होनी वाली खीच खीच / bad small of burnt spicy affecting throat]
निकि खुसबू/ कुमराण [ भुने हुई दालो की गंध /smell of roasted pulse ]
पनैन / तरतरो : [ न खट्टा न मीठा – बेस्वादी / neither sweet or sour ]
तेलैन / तेलाण : [ खाने में पूरी तरह न पके हुए तेल की गंध / the smell of half cooked oil in food ]
प्याजैन / पिराण: [ प्याज की गंध / bad smell of onion]
घियैन / घियाण: [ खाने में अधिक घी की गंध / smell of more Ghee in food]
बासैन / बस्याण: [ खाने में गंध आना / bad smell in cooked food ]

आभास
९.
तात्तो : खानो भौत तात्तो छ नी खायीन् र्यो
तातो: खाणा तातु च , नी ख़येणू च
गरम खाना बहुत गरम है खाया नही जा रहा
Hot: food is too hot, not able to eat

१०.
ठंडो : खानो ठंडो है ग्यो छ
ठंडो: खाणा ठंडो हवे ग्याई
ठंडा : खाना ठंडा हो गया है
cold: food got cold today

११.
कुणी ग्यान : दै इतुक चुकिल थ्यो कि म्यार दांत कुणी ग्या
दांत सिल्याण: आज देह इथुक खट्टी च कि म्यार दांत सिले गीन
दांत सुन्न होना : आज दही इतनी खट्टी है कि मेरे दांत सुेन्न हो गए
teeth become senseless: Today the curd is so sour that my teeth became senseless

१२.
अनैन पनैन : आज सूप अनैन पनैन छ
गल्तु/घल्तु (गलत्यणु)... आज सूप बिल्कुल गलत्यणु च
फीका: आज सूप का स्वाद फीका है
no taste [ like in soup/water etc]: today there is no taste in soup

कुमाऊनी अनुवाद सहयोग : श्री हिमांशु करगेती
उत्तराखंड की भाषा आप ते अपना संस्कृति क दगड़ जुडदी!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क्रांति दिवस पर वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली कुण हमर नमन - https://www.facebook.com/meeuttarakhandi
[ गढ़वली कुमाऊनी और हिन्दी में ]

~गढवाली में ~

भारतीय इतिहास मा चन्द्र सिंह गढ़वाली ते पेशावर कांड क नायक का रूप मा याद करे जांदु। २३ अप्रैल १९३० कुण हवलदार मेजर चन्द्र सिंह गढवाली का नेतृत्व मा रॉयल गढवाल राइफल्स क जवानों ना भारत क आजादी कुण लडन वॉल निहत्था पठानों पर गोली चलाण से इन्कार कर दे छ्याई। बिना गोली चलायां, बिना बम फट्या पेशावरमा इतना बड़ू धमाका हवेगयाई छ्याई कि एकाएक अंग्रेज भी खौंले गीं....... नमन हमर उत्तराखंड क यीं महान हस्ती ते!!!!

~कुमाऊँनी में ~

भारताक इतिहास मा चन्द्र सिंह गढ़वाली कै पेशावर काण्डाक नायकाक रूप मा याद कियो जांछ. 23 अप्रैल 1930 को दिन हवलदार मेजर चन्द्र सिंह गढ़वालीक नेतृत्व मा रॉयल गढ़वाल राइफलाक जवानन ले भारतीय आज़ादीक खातिर लड़न व्ल निहत्थ पठानन पर गोली चलून है इनकार कर हाल्यो थ्यो. बिन गोली चलाया, बिन बम फोड़या पेशावर मा इतुक बड़ धमाको भ्यो कि अंग्रेज ले अचानक आश्चर्य मा रै ग्या थ्यान... नमन हमर उत्तराखंडाक यस महान हस्ती कै.

~हिन्दी में ~

भारतीय इतिहास में चन्द्र सिंह गढ़वाली को पेशावर काण्ड के नायक के रूप में याद किया जाता है. 23 अप्रैल 1930 के दिन हवालदार मेजर चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में रॉयल गढ़वाल राइफल के जवानो ने भारतीय आज़ादी के लिए लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था. बिना गोली चले, बिना बम फोड़े पेशावर में इतना बड़ा धमाका हुआ कि अंग्रेज भी अचानक से हक्के बक्के रह गए थे . नमन हमारे उत्तराखंड के इस महान हस्ती को.

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कुमाऊनी सन्देश:- https://www.facebook.com/meeuttarakhandi

देवभूमि उत्तराखंड अपण जाग में देखन लायक जाग छ, यैकि सुन्दरता भक्तिकि तरफ आकर्षित करछी, वही शक्ति दिछी अर मन कै शांति दिछी.. आवौ ये चित्रावली क माध्यम ले यसे कुछ चित्रोन है परिचित हुनू... आवौ प्रवेश नौटियाल जी अर उनार कैमराक नज़रोनले देख्नू...

गढ़वाली सन्देश:
देवभूमि उत्तराखंड अपण आप मा दिखण वोळ जगा च. यैकि सुन्दरता भक्तिsक तरफ आकरसित करदी, उखी शक्ति दीन्द अर मन मा शांति परदान करदी.. आवा कुछ फोटुओ क दगडी परिचित हवे जोला यी चित्रावली क माध्यम सेे.. आवा द्याखा प्रवेश नौटियाल जी अर उकी कैमर क नज़र बटी

हिन्दी सन्देश:
देवभूमि उत्तराखंड अपने आप में दर्शनीय स्थल है, इसकी सुन्दरता भक्ति कीओर प्रेरित करती है, वही शक्ति देती हैऔर मन को शांति प्रदान करती है... आइये ऐसे कुछ चित्रों से रूबरू होते है इस चित्रावली के माध्यम से... आइये देखे प्रवेश नौटियाल जी कीऔर उनके कैमरे की नज़र से

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उतरायणी, खिचड़ी संग्रांद, घुघ्त्या [ शुभकामना - कुमाऊनी, गढवाली व् हिन्दी में ] -https://www.facebook.com/meeuttarakhandi

कुमाऊँनी

मकर संग्रांत त्यार देसाकि अलग-अलग जागान मा अलग-अलग नामँले जाणयो जांछ अर अलग-अलग तरीकन है भौत झर-परले मनायो जांछ. या त्यार कै हमर उत्तराखंडाक कुमाऊँ मंडल मा "उतरैणी" क नामले मनूनान् अर गढ़वाल मा येस पूर्वी उत्तर प्रदेशाक जन "खिचड़ी संग्रांत" या स्थानीय नाम "मकरैण" क नामाले मनानान्। कुमाऊँ मा येस "घुघुतिया" ले बुआलनान। यो दिन यक गुड़ मिल आटो है यक खास परकारक पकवान "घुघुत" बणायो जाँछ। यैक कारण ही कुमाऊँ मा मकर संग्रांत कै उतरैणीक दगाड़ घुघुतिया ले ब्वालनान। रात्त ही नारंगी, तलवार, दाड़िमाक फूल, डमरू, जलेबी आकाराक घुघुत, बड़न है बणि माला पैरीबेर छुआट बच्च "काले कौआ काले घुघुतिया माला खाले।" "ले कौवा बड़ा , मुकु दिजा सुनै-को घड़ा।" "ले कौवा तलवार , मुकु दिजा भॉल भॉल परिवार।"आदि कुनान। छत मा कौवा खिन घुघुत राखनान अर उनहै घुघुत खान खिन बुलुनान।
आप सबन कै यस पावन त्यारेकि भौत-भौत सुबकामना!
[अनुवाद - हिमांशु करगेती]

गढवाली

मकर सक्रांति कु त्यौहार देस का अलग अलग जगों मा अलग अलग नामों से जणे जांद अर् अलग अलग तरीका से भोत धूम धाम से मने जांद। ये त्यौहार ते हमर उत्तराखंड क कुमाऊँ मंडल मा "उत्तरायणी" क नाम से मनंदीन। अर् गढ़वाल मा येथे पूर्वी उत्तर प्रदेश को जन "खिचड़ी सग्रांद" या स्थानीय नाम "मकरैण" को नाम से मनंदीन।. कुमाऊँ मा येथे "घुघतिया " बी ब्वल्दीन। येका कारण ही कुमाऊँ मा मकर सक्रांद ते उत्तरायणी को दगड़ी घुघतिया बी ब्वल्दी ये दिन एक खास परकार कु पकवान "घुघुत" बणये जांद।सुबेर ही नारंगी, तलवार, दाड़िम क फूल, डमरू, जलेबी आकारा क घुघुत, बडा बटी बणि माला ते पेरी की छुटट नॉन बाल गंदीन "काले कौआ काले घुघुतिया माला खाले।" "ले कौवा बड़ा , मुकु दिजा सुनै-को घड़ा।" "ले कौवा तलवार , मुकु दिजा भॉल भॉल परिवार।" छत मा कौवों कुण घुघुत रखदिन अर ऊँते घुघुत खाण कु बुलादीन।
आप सब्ब्यों ते ये पावन त्योहारे की हार्दिक सुबकामना छन !
[अनुवाद - निखिल उत्तराखंडी]

हिन्दी

मकर संक्रान्ति का त्यौहार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम, तरीके से और बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरह "खिचड़ी संक्रान्ति" अथवा 'मकरैण' के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में यह त्यौहार 'घुघुतिया' के नाम से जाना जाता है। इस दिन गुड़ मिले आटे से एक विशेष प्रकार का व्यंजन 'घुघुत' बनाया जाता है जिस कारण कूमाऊं में मकर संक्रान्ति को ऊत्तरायणी के साथ साथ घुघुतिया के नाम से ज्यादा जाना जाता है। प्रातः ही नारंगी, तलवार, दाड़िम के फूल, डमरु, जलेबी आकार के घुघुत, बड़े से बनी माला पहनकर छोटे बच्चे "काले कौआ काले घुघुतिया माला खाले।" "ले कौवा बड़ा , मुकु दिजा सुनै-को घड़ा।" "ले कौवा तलवार , मुकु दिजा भॉल भॉल परिवार।" आदि कहते हैं। छत में कौओँ के लिए घुघुत रखते हैं और उनको घुघुत खाने के लिए बुलाते हैँ।
आप सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!

Bhishma Kukreti

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 Garhwali Bhasha Ki Shabda- Sampada: Excellent book for Understanding Garhwali 

  (Review of the book Garhwali Bhasha Ki Shabda- Sampada)
       (Garhwali Literature Review Series -2295)

                 Review by: Bhishma Kukreti


            Due to migration, no economic and social benefits from speaking Garhwali language, new generation migrated Garhwalis don’t speak in their own language. The learned linguistic scholars doubt that Garhwali language may extinct if Garhwalis do not protect the language.
           When minority language as Garhwali faces problems as pressure from languages Hindi and English, society and its members come forward in protecting the thousand year old language. Ramakant Benjwal one of such Garhwalis who came forward with many remedies for protecting Garhwali language by offering a book Garhwali Shabda Sampada and Garhwali Hindi dictionaries.
   Garhwali Bhasha Ki Shabda is excellent book for learner of Garhwali language. Ramakant Benjwal offers the following chapters in his praiseworthy book.
1-Historical Aspects of Garhwal and Garhwali Language (ऐतिहासक पृष्ठभूमि)
2-Relgion and Castes of Garhwal (धर्म एवं जातियां)
3-Cultrual perspectives (सांस्कृतिक परिदृश्य)
4- Learn Garhwali (गढ़वाली भाषा सीखें )
5-Grammar of Garhwali language (व्याकरण)
6-Rich heritage of Garhwali language (every aspect of a Language) शब्द सम्पदा (शब्द युग्म, पर्यायवाची, विलोम , अनेकार्थी , विशेषण , शब्द परिवार, पेशी कीट आदि अध्याय )
7- Literature of Garhwali Language (गढ़वाली भाषा का साहित्य )
8- Proverbs, Sayings and riddles (मुहावरे , पहेलियाँ व पहेलियाँ )
           The language is Hindi for explain Garhwali and Benjwal uses simple language that common man also understands the finer parts of Garhwali language.
 Since, the sound is important for speaking Garhwali, the learned writer pays attention in explain the pronunciation 
 The specific chapter deals with specific subject and thus makes easy for readers.
   By studying the book, reader becomes ready for speaking Garhwali. The book is basic of learning Garhwali.
          Garhwalis community will never forget the debt of Rama Kant Benjwal for his efforts in collecting the words and then explain in simple language. 

 Book-
Garhwali Bhasha Ki Shabda- Sampada
Language –Hindi for teaching Garhwali Language
Editor-Ramakant Benjwal
Year of Publication – 2010
Pages -248
Price - Rs 195
Publisher- Winsar Publishing Company, Dispensary Road, Dehradun, India
Email- winsar.nawani@gmail.com
www.winsar.org
Copyright@ Bhishma Kukreti, Mumbai 2015
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