Author Topic: Leela Dhar Jagoori, famous Poet & Writer from Uttarakhand-लीलाधर जगूड़ी कवि  (Read 3335 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting here information about Great Writer Shri Leela Dhar Jagoori ji. Mr Jagoori born in Tehri District of Uttarakhand. Here is the brief Introduction of Shri Leela Ghar Jagoori ji.

जन्म जन्म: 01 जुलाई 1944
  स्थान धंगण गाँव, टिहरी जिला, उत्तराखंड, भारत
  कुछ प्रमुख कृतियाँ  कविता संग्रह शंखमुखी शिखरों पर, नाटक जारी है, इस यात्रा में, रात अब भी मौजूद है, बची हुई पृथ्वी, घबराए हुए शब्द, भय भी शक्ति देता है, अनुभव के आकाश में चाँद, महाकाव्य के बिना, ईश्वर की अध्यक्षता में, खबर का मुँह विज्ञापन से ढँका है
  नाटक पाँच बेटे
  गद्य मेरे साक्षात्कार नाटक जारी है(1972); इस यात्रा में(1974); शंखमुखी शिखरों पर (1964); रात अभी मौजूद है(1976); बची हुई पृथ्वी (1977); घबराये हुए शब्द(1981) अनुभव के आकाश में चाँद / लीलाधर जगूड़ी
  एक किशोर की अजेय जिजीविषा   सम्मान    :
साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री सम्मान, रघुवीर सहाय सम्मान
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M S Mehta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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One of the famous poem by Leela Dhar Jagoori .


 
पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को
दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार
कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल
धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज
छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा
मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई
चट्टान को माँ के स्तन की तरह चूसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका
हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला
जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया
उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने
चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा
कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप
चट्टान और पेड़ को भिगोने
आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हम सिल्ला और चिल्ला गाँव के रहनेवाले हैं
कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़
उत्तर और दक्षिण के पहाड़ हमें बाहर देखने नहीं देते
वह चील हमसे ज्यादा जानकार है जो इन पहाड़ों के पार से
हमारी घाटी में आती है
पूरब का पहाड़ सूरज को उगने नहीं देता
पश्चिम का पहाड़ तीन बजे ही शाम कर देता है
दोपहर को सूर्योदय होता है सिल्ला गाँव में
सिल्ला गाँव में थोड़ा-थोड़ा सब कुछ होता है
बहुत ज्यादा कुछ नहीं होता
सिल्ला गाँव की बेटियाँ चिल्ला गाँव ब्याही हैं
चिल्ला गाँव के भी बहुतों की ससुराल है
सिल्ला गाँव में
पूरब पहाड़ के पश्चिम ढलान पर बसा है सिल्ला गाँव
इस ठंडे ठिठुरे गाँव में भी होते हैं रगड़े-झगड़े
होती है गरमा-गरमी
झगड़ा होता था एक दिन दो भाइयों में
बड़े ने कहा छोटे से कि कल सबेरे मुझे दिखना मत
(सबेरे सबेरे याने दोपहर बारह बजे कल सुबह)
किसी एक को एक दूसरे को उनमें से दिखना नहीं है
सिल्ला गाँव में
वरना बाकी का झगड़ा कल दोपहर में होगा सुबह-सुबह
सामने एक दूसरा गाँव है चिल्ला गाँव
यह पश्चिम पहाड़ के पूरब ढाल पर बसा है
चिल्ला गाँव में आता है सबसे पहले धाम
सबसे पहले वहाँ लोग उठ कर सिल्ला गाँववालों को
गाली देते हैं अभी तक सोए हुए होने के लिए
आवाज देते हैं कि सूरज चार पगाह चढ़ चुका है
सिल्ला गाँव के कुंभकरणों जाग जाओ
पहाड़ की छाया के अँधेरे में
सिल्ला की औरतें सुनती हैं चिल्लावालों की गुनगुनाहट
लगभग बारह बजे आ पाता है
सिल्ला गाँव चिल्ला गाँव के बराबर
तब सिल्ला से एक बहन आवाज देती है
चिल्लावाली बहन को कि तू मायके कब आएगी
चिल्ला गाँव का सूरज तीन बजे डूब जाता है
सिल्ला गाँव में पाँच-छह बजे तक धूप रहती है
चिल्ला में लोग तीन बजे से घरों में घुसना शुरू कर देते हैं
चूल्हे जलाना शुरू कर देते हैं शाम के
चिल्ला और चिल्ला गाँव आमने-सामने हैं
जब सिल्ला गाँव में रात पड़नी शुरू होती है तब चिल्ला के लोग
खाना खा चुके होते हैं
जब सिल्लावाले रात का खाना खाते हैं
तब चिल्लावाले सो चुके होते हैं
लेकिन पहाड़ों को और सूरज को वे
अलग-अलग तरह से देखते हैं
सिल्ला गाँव की सुबह और चिल्ला गाँव की शाम
दो भाइयों की तरह लड़ती हैं आपस में
दो बहनों की तरह दूर से देखती हैं एक-दूसरे को

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी से
आतंकी दोस्त ने कहा - 'अपना अंत बेहद करीब समझो
तुम अपने धर्म से भटक गए हो'
बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी ने कहा -

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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असंत-वसंत के बहाने / लीलाधर जगूड़ीलीलाधर जगूड़ी 


हवा, पानी और ऋतुओं में बदल कर समय
 हेमंत और शिशिर का कल्याणकारी उत्पाती
 सहयोग ले कर
 अनुवांशिकी के लिए खोजता या ख़ाली करवाता
 है जगह

 संत या असंत आगंतुक वसंत ने
 वृक्षस्थ पूर्वज— वसंत के पीछे
 हेमंत—शिशिर दो वैरागियों को लगा रक्खा है
 जो पत्रस्थ गेरुवे को भी उतार अपने सहित
 सबको
 दिगम्बर किए दे रहे हैं
 और शीर्ण शिराओं से रक्तहीन पदस्थ पीलेपन के
 ख़ात्मे में जुटे हुए हैं

 हिम—शीत पीड़ित दो हथेलियों को करीब ले आने वाली
 रगड़ावादी ये दो ऋतुएँ
 जिनका काम ही है प्रभंजन से अवरोधक का
 भंजन करवा देना
 हवाओं को पेड़ों और पहाड़ों से लड़वा देना
 नोचा—खोंसी में सबको अपत्र करवा देना
 ताकि प्रकृति की लड़ाई भी हो जाए और बुहारी
 भी
 और परोपकार का स्वाभाविक ठेका छोड़ना भी न
 पड़े

 पिछला वसंत अगर एक ही महंत की तरह
 सब  ऋतुओं  को छेके रहे
 तो नवोदय कहाँ से होगा
 कैसे उगेगी नवजोत एक—एक पत्ती की

 हर ऋतु के अस्तित्व को कोई दूसरी ऋतु धकेल
 रही है
 चुटकी भर धक्के से ही फूटता है कोई नया फूल
 खिलती है कोई नई कली
 शुरु होता है कोई नया दिल
 चटकता है कोई नया फूट कछारों में
 ब्राह्म मुहूर्त में चटकता है पूरा जंगल

 रोंगटों—सी खड़ी वनस्पतियों के पोर—पोर में
 हेमंत और शिशिर की वैरागी हवाएँ
 रिक्तता भेंट कर ही शांत होती हैं जिनकी चाहें और
 बाहें
 स्त्रांत में पत्रांत ही मुख्य वस्त्रांत है जिनका
 वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया
 जाती हैं
 जैसे पेड़ भग-वान इन्द्र की तरह सहस्त्र नयन हो
 गए हों
 घावों पर वरदान-सी फिरतीं
 वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव
 सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप
 उतना प्रस्फुटित हज़ारों मुखों को पहुँचाते हैं
 टहनियों के बीच खिल उठते हैं आकाश के कई
 चेहरे

 दो रागिये—वैरागिये
 हेमंत और शिशिर
 अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन
 जड़ों का
 जिनके प्रियतम-सा ऊर्ध्वारोही दिखता है अगला
 वसंत

 पिछली पत्तियाँ जैसे पहला प्रारूप कविता का
 झाड़ दिये सारे वर्ण
 पंक्ति—दर—पंक्ति पेड़ों के आत्म विवरण  की नई
 लिखावट
 फिर से क्षर —अक्षर उभार लाई रक्त में
 फटी, पुरती एड़ियों सहित हाथ चमकने लगे हैं
 पपड़ीली मुस्कान भी स्निग्ध हुई
 आत्मा के जूते की तरह शरीर की मरम्मत कर दी
 वसंत ने
 हर एक की चेतना में बैठे आदिम चर्मकार
 तुझको नमस्कार !

(Courtesy - http://www.kavitakosh.org)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आषाढ़ 
लीलाधर जगूड़ी

यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था

हमारे खेतों में

घुटनों तक उठ गया है

अगले इतवार तक फूल फूलेंगे

कार्तिक पकेगा

हमारा हँसिया झुकने से पहले

हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा

उसी तरह जिस तरह झुक कर

तुमने आषाढ़ रोपा था 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आँधी
लीलाधर जगूड़ी


रात वह हवा चली जिसे आँधी कहते हैं
 उसने कुछ दरवाजे भड़भड़ाए
 कुछ खिड़कियाँ झकझोरीं, कुछ पेड़ गिराए
 कुछ जानवरों और पक्षियों को आकुल-व्याकुल किया
 रात जानवरों ने बहुतसे जानवर खो दिए
 पक्षियों ने बहुत-से पक्षी
 जब कोई आदमी नहीं मिले
 तब उसने खेतों में खड़े बिजूके गिरा दिए
 काँटेदार तारों पर टँगे मिले हैं सारे बिजूके
 आदमियो! सावधान
 कल घरों के भीतर से उठनेवाली है कोई आँधी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता-संग्रह

    शंखमुखी शिखरों पर / लीलाधर जगूड़ी (1964)
    नाटक जारी है / लीलाधर जगूड़ी (1972)
    इस यात्रा में / लीलाधर जगूड़ी (1974)
    रात अभी मौजूद है / लीलाधर जगूड़ी (1976)
    बची हुई पृथ्वी / लीलाधर जगूड़ी (1977)
    घबराये हुए शब्द / लीलाधर जगूड़ी (1981)
    ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है / लीलाधर जगूड़ी
    ईश्वर की अध्यक्षता में / लीलाधर जगूड़ी
    महाकाव्य के बिना / लीलाधर जगूड़ी
    भय भी शक्ति देता है / लीलाधर जगूड़ी
    अनुभव के आकाश में चाँद / लीलाधर जगूड़ी
    चुनी हुई कविताएँ / लीलाधर जगूड़ी

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चट्टान पर चीड़ / लीलाधर जगूड़ी


पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को
दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार
कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल
धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज

छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा
मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई
चट्टान को माँ के स्तन की तरह चुसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका
हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला
जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया

उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने
चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा
कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप
चट्टान और पेड़ को भिगोने
आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश । http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9A%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A4%B0_%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BC_/_%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%B0_%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80#.Uvum4vtfu04

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चुनी हुई कविताएँ / लीलाधर जगूड़ी

     ग्यारहवीं दिशा में सातवीं ऋतु (भूमिका) / लीलाधर जगूड़ी
    अनचाहा मैं / लीलाधर जगूड़ी
    ऋतुओं का दीप / लीलाधर जगूड़ी
    अयाचित आशीष / लीलाधर जगूड़ी
    एक साँवला प्यार / लीलाधर जगूड़ी
    सौन्दर्य का शोषण / लीलाधर जगूड़ी
    अग्रगामी के नाम / लीलाधर जगूड़ी
    शृंखलित प्यार / लीलाधर जगूड़ी
    एक याद / लीलाधर जगूड़ी
    यादों का गाँव / लीलाधर जगूड़ी
    नीड़-हीन पाखी मैं / लीलाधर जगूड़ी
    हिम-फूल / लीलाधर जगूड़ी
    लुंग का दिन / लीलाधर जगूड़ी
    उत्तरकाशी के यादीले संदर्भ / लीलाधर जगूड़ी
    शंखमुखी शिखरों पर / लीलाधर जगूड़ी
    बीमारी / लीलाधर जगूड़ी
    प्रेमालाप / लीलाधर जगूड़ी
    होने का शिल्प / लीलाधर जगूड़ी
    हर तरह होना है / लीलाधर जगूड़ी
    सांस्कृतिक यातना / लीलाधर जगूड़ी
    सांकृतिक प्रार्थना / लीलाधर जगूड़ी
    यह मैं हूँ बंदी / लीलाधर जगूड़ी
    दंडस्वरूप / लीलाधर जगूड़ी
    इस यात्रा में / लीलाधर जगूड़ी
    न ययौ न तस्थौ / लीलाधर जगूड़ी
    आषाढ़ / लीलाधर जगूड़ी
    मेरी स्मृति में / लीलाधर जगूड़ी
    अ-मृत / लीलाधर जगूड़ी
    रंगों के पास एक पूरी भाषा है / लीलाधर जगूड़ी
    जीने की परंपरा में / लीलाधर जगूड़ी
    प्रेमांतरण / लीलाधर जगूड़ी
    अपराध / लीलाधर जगूड़ी
    दूर / लीलाधर जगूड़ी
    अभी-अभी / लीलाधर जगूड़ी
    संभावना / लीलाधर जगूड़ी
    अँधेरे में वसंत / लीलाधर जगूड़ी
    पत्तियों के नीचे / लीलाधर जगूड़ी
    अन्य शब्दों में खलल थी / लीलाधर जगूड़ी
    मैं लौट रहा हूँ / लीलाधर जगूड़ी
    वसंत / लीलाधर जगूड़ी
    अजनबी मेहमान / लीलाधर जगूड़ी
    स्मृति स्वरूप / लीलाधर जगूड़ी
    पेड़ / लीलाधर जगूड़ी
    शक्तिहीन / लीलाधर जगूड़ी
    स्वप्न भंग / लीलाधर जगूड़ी
    दुर्घटनास्थल-2 / लीलाधर जगूड़ी
    कविता 1973 / लीलाधर जगूड़ी
    आत्म-विलाप / लीलाधर जगूड़ी
    परिवार की खाड़ी में / लीलाधर जगूड़ी
    वहाँ ज़रूर कोई दिशा है / लीलाधर जगूड़ी
    जब तुम / लीलाधर जगूड़ी
    बोलने से पहले / लीलाधर जगूड़ी
    मुझे भय है / लीलाधर जगूड़ी
    भेद / लीलाधर जगूड़ी
    रामलीला / लीलाधर जगूड़ी
    पाटा / लीलाधर जगूड़ी
    तुम्हारा हाथ और मैं / लीलाधर जगूड़ी
    कार्यकर्ता से / लीलाधर जगूड़ी
    सालाना मौत / लीलाधर जगूड़ी
    डेढ़ रुपए की ताकत / लीलाधर जगूड़ी
    सूर्यहीन इच्छा / लीलाधर जगूड़ी
    उपद्रव / लीलाधर जगूड़ी
    ईश्वर और आदमी की बातचीत / लीलाधर जगूड़ी
    खतरा / लीलाधर जगूड़ी
    लक्ष्य भ्रष्ट / लीलाधर जगूड़ी
    उप-स्थिति / लीलाधर जगूड़ी
    मौत का कब्ज़ा / लीलाधर जगूड़ी
    लड़के और सिपाही की बातचीत / लीलाधर जगूड़ी
    दृश्य / लीलाधर जगूड़ी
    द्विरुक्ति / लीलाधर जगूड़ी
    भरोसे की कविता / लीलाधर जगूड़ी
    मुक्तियात्रा / लीलाधर जगूड़ी
    वस्तुबोध / लीलाधर जगूड़ी
    अंतर्देशीय / लीलाधर जगूड़ी
    चिड़िया-1 / लीलाधर जगूड़ी
    अंतिम शिखर पर / लीलाधर जगूड़ी
    आऊँगा / लीलाधर जगूड़ी
    इंतज़ार की जगह / लीलाधर जगूड़ी
    कायाकल्प / लीलाधर जगूड़ी
    बच्चे-1 / लीलाधर जगूड़ी
    मौलिकता / लीलाधर जगूड़ी
    एक बुढ़िया का इच्छागीत / लीलाधर जगूड़ी
    प्रेमप्रसंग / लीलाधर जगूड़ी
    मेरी कथा / लीलाधर जगूड़ी
    चिड़िया-2 / लीलाधर जगूड़ी
    चिड़िया का प्रसव / लीलाधर जगूड़ी
    सहयात्री / लीलाधर जगूड़ी
    किसी ने मुझे देखा / लीलाधर जगूड़ी
    बच्चे-2 / लीलाधर जगूड़ी
    कल के लिए / लीलाधर जगूड़ी
    चलती रेल में / लीलाधर जगूड़ी
    निगाह में रखी हुई / लीलाधर जगूड़ी
    उस दिन का जंगल / लीलाधर जगूड़ी
    स्वप्नदंड / लीलाधर जगूड़ी
    मातृमुख / लीलाधर जगूड़ी
    बच्चे-3 / लीलाधर जगूड़ी
    विदा / लीलाधर जगूड़ी
    खेल / लीलाधर जगूड़ी
    बची हुई पृथ्वी पर / लीलाधर जगूड़ी
    एक दूसरा रास्ता / लीलाधर जगूड़ी
    हद / लीलाधर जगूड़ी
    गुमशुदा की तलाश / लीलाधर जगूड़ी
    बच्चा और राजनीति / लीलाधर जगूड़ी
    हैसियत / लीलाधर जगूड़ी
    तो / लीलाधर जगूड़ी
    आश्वासन / लीलाधर जगूड़ी
    पुनः प्रवेश / लीलाधर जगूड़ी
    पेड़ की आज़ादी / लीलाधर जगूड़ी
    ठंड से डरकर / लीलाधर जगूड़ी
    प्यार से बातचीत / लीलाधर जगूड़ी
    अकेला / लीलाधर जगूड़ी
    झटका / लीलाधर जगूड़ी
    ज़रूरत है / लीलाधर जगूड़ी
    सिक्के / लीलाधर जगूड़ी
    लड़ाई / लीलाधर जगूड़ी
    विरोधी / लीलाधर जगूड़ी
    डुग-डुगी / लीलाधर जगूड़ी
    एक पूरी ऋतु / लीलाधर जगूड़ी
    से / लीलाधर जगूड़ी
    परंपरा / लीलाधर जगूड़ी
    संबंध / लीलाधर जगूड़ी
    प्यार में / लीलाधर जगूड़ी
    प्रार्थना / लीलाधर जगूड़ी
    हमारे शरीर / लीलाधर जगूड़ी
    पृथ्वी का स्वागत / लीलाधर जगूड़ी
    जूते और चेहरे की बातचित / लीलाधर जगूड़ी
    अ-दृश्य / लीलाधर जगूड़ी
    बूढ़ा पहाड़ / लीलाधर जगूड़ी
    छोटी नदी / लीलाधर जगूड़ी
    घबराए हुए शब्द / लीलाधर जगूड़ी
    क्या किसी को फ़ुर्सत है ? / लीलाधर जगूड़ी
    बुरे वक़्त की कविता / लीलाधर जगूड़ी
    अब इतने दिनों बाद / लीलाधर जगूड़ी
    बयासी का वसन्त / लीलाधर जगूड़ी
    गिरी हुई चीज़ / लीलाधर जगूड़ी
    हत्यारा / लीलाधर जगूड़ी
    अवदान / लीलाधर जगूड़ी
    परिवारशाही / लीलाधर जगूड़ी
    रोज़ एक कम / लीलाधर जगूड़ी
    मरने से पहले / लीलाधर जगूड़ी
    घर के डर में / लीलाधर जगूड़ी
    समाज के तट पर / लीलाधर जगूड़ी
    थका हुआ होने पर भी / लीलाधर जगूड़ी
    वाद्य ले जाती हुई लड़कियाँ / लीलाधर जगूड़ी

 

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