Author Topic: Garhwali Poems Hisotry - गढ़वाली कविताओ का इतिहास  (Read 27368 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क -46
 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग 46 Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -46                               भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti ) महाराज प्रदयुम्न शाह : संयुक्त गढवाळ को आख़री रज्जा (1785 -1804 ई. )
महाराज प्रदयुम्न शाहसंयुक्त गढवाळकोआख़री रज्जा छौ .वैको समौ मा गुर्ख्यौं न गढवाळ [/b]पर आक्रमण करी अर गढवाळ जीति. जै कीर्ति शाह अर प्रदयुम्न शाह को राज सरा भारत वलुं [/b] खुणि एक सीख च बल जै राज मा, जै परिवार मा पाळीबंदी/दल बंदी , जै संगठन मा स्वार्थी लोखुंक जमावड़ा जख सबि अपणी स्वाचन अर संगठन को मूल का बारा मा नि स्वाचन त वै परिवार, संगठन, प्रदेश, देश तैं गढ़वाळ -कुमाऊं जन घोर बिपदा/ बिप्पत्ति दिखण पोडद. पाळी बंदी समौ मा भेमाता क बिप्दौं/ प्राकृतिक प्रकोपुं से बि नि बचे सक्यांद .प्रदयुम्न शाह होशियार मनिख छौ पण परिस्थिति वैका विरुद्ध ही रैन. जब वै तैं राज मील त राजकोष खाली छौ [/b] प्रदयुम्न शाह को दरबारराणी : १- अजब सिंग गुलेरिया की बेटी गुलेरिया जी २- कमल मियाँ की बेटी - रणोटी जी ३- सुदर्शन की ब्व़े - मंदरवाळ जी नौनु : सुदर्शन शाह गुरु : श्रीपति नौटियाल बजीर : मोहन सिंग रावत, जै देव डंगवाळ , धौंकल सिंग बुगाणो दफ्तरी : शिव देव, चन्द्र मणि, हरि दत्त खंडूड़ी (खनूडि), कृष्णा नन्द खंडूडी, हर्षमणी, बख्सी : हमीर सिंग मिंयाँ देवान: गजे सिंग, उर्बी दत्त, रामेश्वर, शीशराम सकन्याणी , मोहन सिंग रावत गुरख्यौं लेखवार: धरणी खंडूडी वकील: रामा खंडूडी सभासद : कुंवर पराक्रम शाह , आनंद सिंग खत्री , धीरज मणि, दिवाकर, सर्पानंद पैन्युली , मंगला नन्द जोशी , उर्बी दत्त ओझा, देवी दत्त डोभाल फतेबादारू को नेगी : अनूप सिंग श्रीनगर को नेगी : दान सिंग फत्यौ क नेगी- इन्दर सिंग कुमौं का फौंददार : जै देव पांडे अजबराम को बध : अजब राम पराक्रम शाह तैं राज गद्दी मा बिठाण चाणू छौ पण कुमाऊं को हर्ष देव जोशी प्रदयुम्न शाह तैं श्रीनगर को राजा बनौण चाणू छौ . हर्षदेव जोशी न अजब राम की हत्या करवाई अर प्रदयुम्न शाह तैं गढ़वाळ अर कुमाऊं को रज्जा बणवै दे. हर्ष देव जोशी को कुमाऊं भगण : इख श्रीनगर मा गढ़वाळी मंत्री /दरबारी हर्षदेव की चाल बिंगण/समजण बिसे गे छया .दरबार्युं न इन कौंळ करी कि हर्ष देव जोशी तैं कुमाऊं भजण पोड़ कुमाऊं राज को प्रदयुम्न का ह्त्थुं से

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 जाण इतियासकार बुल्दन बल उख कुमाऊं मा जोश्युं अत्याचार अर खड़ यंत्र पिला से बिंडी ह्व़े गे छया .कुछ मंत्र्युं क सहायता, काशीपुर का दीवान कि मौ मदद से कुमौं का पूर्ब रज्जा मोहन चंद न कुमाऊं पर आक्रमण करी दिने . इनी पराक्रम शाह बि मोहन चंद को दगड ह्व़े गे अर वैन बि आक्रमण मा मोहन चंद को साथ दे . इन लगद दुयूं पैलि चिट्ठ्युं मा सक्कड़ -पक्कड (गुप्त मन्त्रणा ) ह्व़े इ होली मोहन चंद को आक्रमण तैं रुक णो बान प्रदयुम्न शाह श्रीनगर बिटेन सेना लेकी कुमाऊं तरफ गे पाली गौं को जुद्ध : हार्स देव जोशी बि सेना लेकी पाली गौं आये अर प्रदयुम्न से मील. हर्ष देव का भौत सा कुमाउनी सैनिक मोहन चंद का पाळी ह्व़े गेन . पाली गौं को जुद्ध मा प्रदयुम्न शाह अर हर्ष देव जोशी की हार ह्व़े पराक्रम शाह न अफु तैं गढ़वा ळ को रज्जा घोषित करी दिने.मोहन चंद अर पराक्रम मा सैरी/ मेल/ संधि ह्व़े गे कि गढवाल को रज्जा पराक्रम अर कुमौं का रज्जा मोहन चंद श्रीनगर मा पाळी बंदी : श्रीनगर मा दरबार्युं द्वी पाळी (धडा/दल) ह्व़े गेन एक प्रदयुम्न शाह को समर्थक अर दुसर पराक्रम का हितेषी गृह युद्ध की तैयारी चलण बिसे गेन दून पर रोहिलों अधिकार : इख श्रीनगर अर कुमाऊं मा भितर घात चलणो छौ अर वख भैर की सीमाओं मा बैरी घुसण बिसे गे छया . रोहिल्लों न अधिकार कॉरी अर गुलाम कादिर न गुरु राम राय दरबार तैं ल्हिष्ट -भिष्ट( भ्रष्ट ) करी दे . दून को गढ़वाली फौंद दार उम्मेद सिंग बि गुलाम कादिर को दगड ह्व़े गे . पैथर गुलाम कदीर को पतन दिल्ली का सुलतान न करी कुमाऊं मा उंच नीच: मोहन चंद का पास धन की कमी छे अर कर लगाण से लोक रुस्यां छया . हर्षदेव ण तराई मा सेना कट्ठा कार अरकुमौं पर आक्रमण करी दे अर मोहन चंद तैं मरवाई दे . हर्ष देव एक तरां से रज्जा बौणी गे . हर्ष देव की इच्छा थै बल प्रदयुम्न शाह तैं रज्जा बणये त पराक्रम शाह की इच्छा छे बल मोहन चंद को नौनु तैं कुमाऊं को रज्जा बणये जावू मोहन चंद को भुला लाल सिंह न रामपुर का नबाब के मदद से कुमाऊं पर आक्रमण करी अर हर्षदेव तैं कुमाऊं बिटेन खदेड़ दे महेंद्र चंद रज्जा बौण : पराक्रम कि सहायता अर पराक्रम तैं नजराना दीण को बद्दल मोहन चंद को नौनु महेंद्र चंद रज्जा बौ ण .लाल सिंग न सत्ता अपण ह्त्थुं मा करी दे

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हर्षदेव तैं पैडूळस्यूं की जागीर : प्रदयुम्न शाह न हर्ष देव तैं गढवाळ मा पैडूळस्यूं की जागीर दे पण पराक्रम शा कि कूटनीति से वै तैं बरेली भजण पोड़. पैडूळस्यूं मा जोशीयाणा गौं हर्ष देव जोशी का परिवार वालुं न बसै थौ
जगा जगा आक्रमण : प्रदयुम्न शाह तैं भितर घात से निजात नि मिलणी अर सीमा पर दून/हरिद्वार मा रोज आक्रमण होणा रौंद छ्या, जब प्रदयुम्न शाह न रामा खंडूडी अर धरणी खंडूडी तैं दून क्षेत्र तैं सम्बाळणो भ्याज जख पराक्रम शाह न रामा खंडूडी अर धरणी खंडूडी की हत्या करवाई
कुमाऊं पर गोरखों राज : हर्ष देव जोशी क योजना/खड़यंत्र क वजे से नेपाल को रज्जा न कुमाऊं पर आक्रमण करी अर सं 1790 ई मा नेपाल को कुमाऊं पर राज स्थापित ह्व़े . लाल सिंग अर महेंद्र चंद तैं भजण पोड़
हर्ष देव की चाल अर गोर्ख्यों क गढवाळ पर बार बार आक्रमण हर्ष देव न नेपाली रज्जा तैं गढवाळ पर आक्रमण को ब्युन्त बि बिन्गाई . पण क्वी बि गढवाळी नेपाली सरकार तैं सहायता /मौ मदद
दीणो तैयार नि ह्व़े सल़ाण पर /लं गुर गढ़ पर नेपाली आक्रमण होंदा ही रैनचीन को नेपाल पर आक्रमण को वजे से नेपाली सरकार तैं प्रदयुम्न शाह से संधि करण पोड़ जखमा नेपाल्युन तैं बार्सिक कर दिए गे
प्राकृतिक बिपदा ; ये बगत गढवा ळ मा भौत सी प्राकृतिक बिपदा बि ऐन. पराक्रम को देश द्रोह: पराक्रम ण देशद्रोह का कथगा ही काज करीन
गोरखा अधिकार
अंत मा गोर्ख्यों न गढवा ळ राज्य पर आक्रमण कॉरी . गढवाळी सेना नाकामयाब रये . प्रदयुम्न शाह तैं भजण पोड़. गंगा पार ह्वेका प्रदयुम्न शाह ज्वालापुर पौंछ . प्रदयुम्न शाह न गढवाळ राज्य प्राप्त हेतु आख़री लड़ाई खुड बुडा (देहरा दून ) मा लौड़ जामा प्रदयुम्न शाह शहीद ह्व़े
याने कि 1804 ई मा संयुक्त गढवाळ राज को अंत ह्व़े प्रीतम शाह तैं नेपाली लोक नेपाल ल़ी गेन अर पराक्रम शाह कांगड़ा नरेश के शरण मा गे
भौत सालुं तक प्रदयुम्न शाह को परिवार ज्वालापुर मा शरणागत रैन .
References:
1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 4History of Garhwal, History of Kumaun) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas
3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola बकै अगने खंड 47 मा बाँचो ...
To be continued part 47
Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai
गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क -47
गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग 47
Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -47

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भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti
 
गढवाळ मा गुरख्याणी (1804 -1815 ई . )
गढवाळ मा गुर्ख्याणी एक सच च अर ये बगत अत्याचार को नयो नमूना गढवाळ तैं दिखणो मील. कवि मौलाराम की एक कविता दर्शान्दी :
मालक रहा न गढ़ में मुलक खुवार हो गया
साहेब गुलाम पाजी सब इकसार हो गया
काजी करे ना काज सितमगार हो गया रैयत पर जुल्म जोर बिसियार हो गया
क्या खूब श्रीनगर था उजार हो गया
रीत के घर न पैसा कंगाल सब भये
ताम्बा रहा न कांसा माटी के चढ़ गये
टुकड़े का पड़ा सांसा म्घेस बध गये कपड़ा रहा न तन में भंगेले बि सड़ गये
इतियासऔ हिसाब से तौळ ऐ तिथि खासम ख़ास छन
१८०४ ई- खुड बुडा जुद्ध मा गढ़ रज्जा प्रदयुम्न शाह की मिरत्यु गढवा ळ पर गुर्ख्या राज की असली पवाण . ग्ध्राज्य पर
रण जोर सिंह थापा को शाशन
१८०४-१८०६ अमर सिंग थापा को हिमाचल आदि जितण
१८०५-१८०८- ग्ध्राज्य पर हस्तिदल चौतारिया को शासन
१८०६ - रण बहादुर की हत्या , गुरख्यों कांगड़ा पर धावा
१८०८- अंग्रेज अधिकारी रेपर को गढ़ राज्य मा औण कुमौं पर बम शाह को शासन
१८०८-१८११ - गढ़ राज्य पर भैरों थापा को शासन
१८०९- गढवाल मा ब्रिटिश कम्पनी का चाकरों को लीसा उत्पादन गुरख्यों रण जीत सिंग से हार
१८१०- जड़ा पंथ को जुद्ध
१८११ अमरार सिंग थापा तैं कजाई पद
सुदर्शन शाह द्वारा चंडी परगना तैं बिचण
गढ़ राज्य पर श्रेष्ठ थापा, बंधु थापा, भक्ति थापा को शासन १८१३-१८१४- ग्ध्राज्य पर तुलाराम अधिकारी को शासन
१८१३- लार्ड मोयारा को गबर्नर जनरल बणण
१८१४- बुत बल हत्याकांड ,
२० अक्टोबर - अंग्रेजुन कालसी जीति
२१ अक्टोबर देहरादून पर ब्रिटिश हकुमत शुरू नाहन पर अन्ग्रेजू जीत
सम्पूर्ण गढवाल पर ब्रिटिशऊँ जीत
कुमाऊं पर ब्रिटिश अधिकार
१८१५- ब्रिटिश अधिकारी फ्रेजर को पूरबी गढवाळ अफुम रखण अर
टिहरी गढ़वाळ सुदर्शन शाह तैं दीण कुमाऊं अर पौड़ी गढवाल क एक हूण
३० दिसम्बर १८१५ खुणी टीरी (टिहरी ) राजधानी स्थापित
References:
1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 5
History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri Garhwal )
2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola बकै अगने खंड 48 मा बाँचो ...
To be continued part 48
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गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -48 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  48 Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -48                                             भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti ) टिहरी नरेश सुदर्शन शाह (1815 -1859  ई.) सुदर्शन शाह कि गणना महान शाषक, चतुर मनिख, कुशल राजनीतिग्य, मनिखों की करण मा उस्ताद मा होंद सुदर्शन शाह धार्मिक मनिख छौ पण गोरिल जन दिवता नाचण, जादू टूण  से भौत चिरड़यांदो  छौ इन बोले जांद बल वैन बोक्सा ज़ात को टीरी राज बिटेन  मूल ही नष्ट करी   ब्रिटिश सरकार की किरपा से ही गढवाळ गुर्ख्यों  से मुक्त ह्व़े . सुदर्शन शाह को तिलक सैत  च वै दिन हे ह्व़े जै दिन राजधानी की स्थपाना ह्व़े . डा शिव प्रसाद न लगाई बल तिलक को दिन य़ी लोक उपस्थित रै होला:१- राजगुरु नौटियाळ २- राजगुरु (वशिष्ठ ) पुरोहित- पांडे ३- देवी सिंग - जु प्रवास मा सुदर्शन शाह को दगुड रै ४-मुंशी - चुन्नी लाल ५- कृपाराम - हरिद्वार का गढवाल राज का पंडा या वैक नौनु/रिश्तेदार . प्रदयुम्न शाह न किरपाराम पंडा को इख शरण ल़े छे ६- किसन  सिंग : प्रदयुम्न शाह को चोपदार ७- शिव राम, कशी राम , असाड़ू गुसाईं             राणी अर परिवार १- राणी बमोरी जी (जम्मू भमोर रज़ा की बेटी ) २- राणी सिरमौर जी (निर्वासित  सिरमौर नरेश करम प्रकाश  की बेटी ) ३-  सिरमौर नरेश संसार चन्द्र की द्वी बेटी  ४- खनेटि  जी (हिमाचल की कै छ्व टो  ठाकुर की बेटी ) ५-खवास राणी (उप पत्नी ) : गुणकली  राणी क नौनु भवानी शाह अगनी जैक रज्जा बौण ६-आठ नौ खवास (उप पत्नी )  राणी सुदर्शन शाह का आठ नौनु सौब खवासी रानियूं से ह्वेन (भवानि सिंग, शेर सिंग, गंगा सिंग, बद्री सिंग, सोबन सिंग, उत्तम सिंग, . फत्ते सिंग, केशर सिंग)   , द्वी  नौनी छे एक को ब्यौ बुशेहर को रज्जा महेंद्र को दगड अर हैंकी को ब्यौ विलासपुर को राजकुमार को दगड ह्व़े                       राज दरबारी धर्माधिकारी : प. हरि राम शर्मा जैन धर्म वल्ली जन भौत सा ग्रंथुं  रचना करी बजीर: दुर्गा दत्त पैन्यूली , धर्मदत्त बिजळवाण दीवान : ज्वालादत्त बहुगुणा हौरी अधिकारी : रमा नन्द नौटियाल, लक्ष्मीधर खंडूडी , रामदत्त रतूड़ी मुख्त्यार : शिव राम सकलानी बड़ी दीवानी का नाजिर : शंकरदत्त छ्वटि दीवानी को  नाजिर  :   बलिराम, देवी दत्त, कृष्ण दत्त खंडूडी थाणेदार  भागीरथी पार का :गंगादत्त      [/b] भिलंगना पार को - मोतीराम, राम कृष्ण रवाईन अर उदयपुर का - गंगा ड़ात, कृष्ण दत्त                गरीब राज से अमीर्ता को तरफ जब सुदर्शन शाह ण राजगद्दी कायम करी त टिहरी कुछ नी छौ पण फिर सने सने कौरिक टिहरी राज्य न सै राजा त अमीर बणदा गेन  गोरख्याळी मा जो बि उजड़ विजड ह्व़े  छौ धीरे धीरे अब गावं फिर से बस ण लगी गेन              शिव राम सकलानी अर गोबिंद सिंह बिष्ट शिव राम सकलानी ((सकलाना अर अठुर का जागीरदार  ) अर वैकु नौनु हरिराम आदि न राजा की अवहेलना करी इनी रवाइन को फौन्ज्दार /जागीरदार गोबिंद सिंह बिष्ट (एका बंशज कबि श्रीनगर मा दरबारी छया ) हमेश राजा क नीतियुं बिरोध मा राई

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               क्रान्ति का बीज : सकलाना मा बिद्रोह शिव राम सकलानी तैं ब्रिटिश सरकार न सकलाना का माफीदार जागीर दार बणे छयो अर वो उदंड ह्व़े गे छौ . जनता से वसूली मा बड़ी क्रूरता अर धांधली होंदी छे   यां से टिहरी रियासत मा सकलाना पट्टी मा एक क्रान्ति का बीज पैदा ह्वेन अप्रैल , 1835  ई. मा सकलाना का ३२ गौं का कमीण , सयाणा संगठित ह्वेन अर ३०० लोक कम्बळ , भंगल़ा क झुल्लौं मा  , पीठ मा सत्तू का झाबा, चिलम, लाठी  लेकी मेजर यंग का दफ्तर देहरादून कचहरी मा गेन अर अप नि फ़रियाद सुणाय़ी कि कं मुआफीदार शिवराम अर वैका कारिन्दा जनता तैं तंग करणा   छन प्रीतम शाह तैं वजीफा : सुदर्शन शाह ण प्रीतम शाह का बान वजीफा मुकर्र कार सुदर्शन शाह की हिंदी रचना सभा सार : सुदर्शन शाह क काव्य संग्रह बड़ो अलग सी बि च . शीर्षक  गढवाली मा होंद छया अर बाकि कविता ब्रज भाषा मा . कविता श्रृंगार अर वैराग्य का छन कुमदा  नन्द बहुगुणा : पैली  इ बहुगुणा बंश मा भौत सा विद्वान्, कवि/ज्योतिषी (भरत, मेघकर, रामदत्त )  ह्वेन . इनी सुदर्शन शाह क राज मा अचलानंद बहुगुणा क नौनु कुमदा  नन्द बहुगुणा ण सुदर्शनो डे काव्य' की रचना करी छेसत्यानन्द अर दुर्गा दत्त ज्योतिषी : सत्यानन्द अर दुर्गा दत्त भौत बड़ा ज्योतिषी ह्वेन वासबा नन्द ज्योतिषी : सैत च वासबा नन्द पोखरी का बहुगुणा छया पण यूँन अपण गौं क नाम पुख्श्री नाम दे वासबानंद का दादा क नाम गुणा नन्द भारद्वाज अर बुबा ज्यू क नाम लीला नन्द छौ . लीला नन्द एक बड़ो ज्योतिषी छौ वासबानंद न 'प्रश्न सिन्धु' संस्कृत ज्योतिष काव्य की रचना करी हरिदत्त शर्मा, नौटियाल: हरि दत्त का बुबा प्रमोद पति नौटियाल श्रीनगर दरबार मा छौ हरि दत्त शर्मा सुदर्शन शाह को धर्माधिकारी छौ . हरि दत्त शर्मा न संस्कृत काव्य भूषण नाटक, विष्णु स्मृति, धर्मवल्ली,लघुरामायण , लघु भागवत, नक्षत्र माला स्रोत्र, गंगालहरी, श्रृंगार ल्टा, कामदूत काव्य, भोज्याव्ली  आदि की रचना करी गुमानी पंत : गुमानी पंत पिथोरा गढ़ को छौ अर सुदर्शन शाह को राज दरबार मा बि राई . गुमानी पंत अपण तरां को अलग हे कवि छौ जु संस्कृत, नेपाली, कुमाउनी, गढ़वाली अर ब्रज भाषा मा कविता रचदू  थौ मनमंथ कवि : मनमंथ कवि कुमौं को छौ अर रिख्डा कर बि छौ. वैन अल्मोड़ा को एक मानचित्र सुदर्शन शाह तैं भेंट दे छौ कनखल मा पहाड़ी चित्रकार : जब शुदर्शन शाह कनखल मा छौ त वैक दगड कुछ पहाड़ी चित्रकार बि छया यूँ पहाड़ी चित्र कारू न कनखल मा भारमल खत्री कि दीवाल, अर हैंकि दीवाल मा चित्रकारी करी छे गुरु राम रै दरबार का दीवालुं मा बि यूँ पहाड़ी चित्रकारुं  न रंगीं रिखडा चित्र) बणेन ज्वाला राम चित्रकार : ज्वाला राम मौलाराम को नौनु छौ अर वो श्रीनगर  रौंद छयो अर कबि कबि टीरी औंद छौ वैन उख श्रीनगर मा कुछ चित्र गढ़वाळी ब्युंत (शैली) मा बणेन माणकू चित्रकार ; माणकू चित्रकार को जन्म कख ह्व़े यू त नी पता पण वो सुदर्शन शाह क इख आंदो छौ अर वैन भौत सा चित्र बणेन चैतू  चित्रकार : चैतू  चित्रकार  मौलाराम कू चेला छौ न भौत सा चित्र बणेन मौलाराम कि स्तिथी : इन बुले जांद बल सुदर्शन शाह न मौलाराम तैं बड़ा मंगण (प्रशंशा कविता ) सुनणो परांत बि कुछ सौगात नि दे त मौलाराम श्रीनगर ऐ गे मौलाराम न सुदर्शन शाह की कविता मा काट करीं छ  References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 6 4History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri garhwal ) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola 4- Minyan Prem singh - Guldast Tabarikh बकै  अगने खंड 49 मा बाँचो ... To be continued part 49   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai

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              गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -49 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  49 Great  Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -49                                                              भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )                                   टीरी (टिहरी ) राज्य मुतालिक लार्ड डलहौजी की चिट्ठी      राजा सुदर्शन शाह न वसीयत कॉरी छे या लोखुं तैं बताई छौ बल वैको उत्तराधिकारी भवानी सिंह होलू. कारण यू छौ बल मुख्य रान्यूँ से क्वी नौनु नि जनम अर सब नौनु खावास (उप पत्नी )  राणी यूँ से छया. इन नौन्याल्यूं  तैं काम असल नौनु बोले जांद छौ   . राजा सुदर्शन शाह न अपनों उत्तराधिकारी भवानी शाह तैं बणाणो  इजाजतऔ  बान द्वी तीन चिट्ठी ब्रिटिश सरकार तैं भेजी , क्वी चिट्ठी जबाब नी ऐ अंग्रेजुन भारतीय राजाओं पर गोद ल़ीणो अर वूं तैं राजगद्दी मा बैठा न बन्द करी दे छौ  अर इन राज तैं इंगरेज अपण कब्जा मा करी लींद था . फिर २५ जून  १८५४ खुणि लार्ड डलहौजी न ईस्ट इंडिया कम्पनी क बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल  को अध्यक्ष तै ये बाबत चिट्ठी लेखी   " इन हिन्दू राजा , जन कि टिहरी राजा च तैं अपण उत्तराधिकारी चुनणो पूरो अधिकार च . किलैली (सनद या संधि मुताबिक) टीरी (टिहरी) यौ राजा णा त भारत (ब्रिटिश) सरकार तैं क्वी टैक्श दींदु णा णा ही यू राजा ब्रिटिश हकुमत को अधीन च . ना हे ब्रिटिश टीरी को सार्वभौम अधिपति च . भारत सरकार तैं उत्तराधिकारी क मामला मा दखलंदाजी करणो क्वी  अधिकार नी च. "                                                        टिहरी राजा भवानी शाह (1859 -1871  ई. )                                     राज मिलण मा कठनै   ये त सब्बी जाणदा छया बल सुदर्शन शाह न भवानी शाह तैं उत्तराधिकारी घोषित कर्युं च पण खवास राणी खणेटी को मोरदो  सुदर्शन शाह पर पुरो प्रभाव छौ अर वींन बीमार रज्जा तैं अपुण कब्जा मा करी दे . अर जै दिन सुदर्शन शाह मोर वै दिन ही शेर सिंग ण अफु तैं शेर शाह को नाम से राजा घोषित करी दे अर शिवा नन्द खंडूड़ी न शेर शाह को तिलक करी.                                      भवानी सिंग पर दबाब   भवानी सिंग शेर सिंग तैं राज दीणो तैयार नी छौ अस्तु खणेटी राणी अर शेर सिंग का हितैषी जन कि गजाधर खंडूड़ी , लक्ष्मी धर  खंडूड़ी, रमा नन्द नौटियाल, देबू गैरोला, उमा दत्त बहुगुणा, बैशाखू खजांची शंकर दत्त सकलानी , कृष्ण दत्त लेखवार , बलिराम गैरोला, क्यूँल डंगवाल , ब्रंगला नेगी अर जितारु नेगी सब्ब्युन भवानी सिंग पर दबाब डाळ बल दास हजार मैना की पेंसन मा भवानी सिंग माने जाओ पण भवानी सिंग तैयार नी ह्व़े. भवानी सिंग न अपणि दरखास्त ब्रिटिश अधिकारी हेनरी रामसे को भेजी                                       ल़ा-दाबा' हस्ताक्षर   फिर शेर सिंग  हौर कम असल राजकुमार ( रज्जा का खवास पुत्र ), राज अधिकार्युं लेकी बीस हजार रुप्यौं महीना जागीर दीणो सनद पत्र लेखिक  ह्वेका भवानी सिंग का पास गेनी पण भवानी सिंग की राणयूँ को कारण भवानी सिंग शेर सिंग तैं नी मील                         फिर हेनरी रामसे टीरी पौंच अर जबरदस्ती या शेर सिंग तैं मनाये गे अर शेर सिंग तैं देहरादून मा बंदी बणयेगे फिर छै सितम्बर १८५९ ई. खुणि आधिकारिक रूप मा ताजपोशी ह्व़े.   भवानी शाह का राज मा कथगा ही प्रजा या फौन्ज्दारून मा असंतोष रै , जन कि जौनपुर मा बिद्रोह अर फिर बिद्रोह शान्ति, सकलाना क्षेत्र का सुनार गाँव (अठुर इलाका) का किसाण परवाण (नेता) बदरी सिंग अस्वाळ की परवाण गिरी (नेतृत्व)  मा एक किसाण आन्दोलन हैंको ह्व़े यां से उख नै भुव्यव्श्था ह्व़े .

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                                   ढंडक आन्दोलन ढंडक आन्दोलन टिहरी मा एक क्रान्ति बी को नयो रूप छौ. भवानी शाह एकांतवासी छौ . त राज वैका राज कर्मी सम्बाळदा था. इन मा प्रजा कार वसूली से जब परेसान होंदी छे प्रजा लाठी लेकी कर वसूल करण वालुं तैं पीटदी  दी  छे . फिर राजकीय कारिन्दा पुलिस ढंडकों तैं डंडयान्दी (दण्ड देना) छे शिव सिंह रौतेला ढंडक क्रांतिकारी    गढवाली विभुतियुं मा एक सम्मानजनक  नाम च शिव सिंह रौतेला को. जब भी क्रान्ति की बात होली त शिव सिंह रौतेला को नाम अगने रालो . शिव सिंग रौतेला धनारी गाँव को एक स्म्झ्युं, सुल्झ्युं मनिख थौ .किसाणु का दुःख से दुखी ह्वेका शिव सिंग रौतेला न गावं गाँव जैका  लोगूँ तै संजाई कि 'ढंडक' जरुरी च ढंडक माने अपण हक्क का बान राजकीय कारिंदों तैं पिटण. धीव सिंग रौतेला टिहरी राज को अत्याचार की व्यथा- कथाको ब्योरा कुमौं कमिश्नरी का अंग्रेज अधिकार्युं , को बि लिखदो छौ  यां से टीरी राजकीय व्यश्था नाराज ह्व़े अर  वै पर भारी कर लगै दिने अर शिव सिंग रौतेला क घर, पुंगडओं की कुर्की करे गे . शिव सिंग रौतेला का रिश्तेदार चिन्याली गाँव का शिव सिंग बिष्ट न जामिन देकी शिव सिंग रौतेला की जमीन जैजाद छुडवाई  रवाईं  मा विद्रोह : रंवांयी इलाका म त विद्रोह हुँदा ही रौंद था इन दिखे जाव त भवानी शाह क राज मा बि उथल पुथल त राई च . भवानी शाह शांत प्रिय रज्जा छौ अर वैन अपण भै शेर सिंह, खणेटि राणी तैं मुआफ करी दे छौ भवानी शाह न आय का साधनु जन कि बौणऊँ   का ठेका , गंगा जल ठेका, हथ्युं तैं बिचणो  प्रबंध सेराज्य की आय बढ़ाई .                          भवानी  शाह की द्वी राणी अर आठ नौन्याळ भवानी शाह की द्वी राणी (मंडी अर हिंडूर की राजकुमारी ) छे अर आठ नौनु छ्या :प्रताप शाह (सबसे ज्याठो)  , विक्रम शाह, प्रमोद सिंह, फत्ते सिंह, गोपाल सिंह, हीरा सिंह, मदन सिंह, अर तेग सिंग भवानी सिंग को मोंरणो पैथर प्रताप सिंग गद्दी पर बैठ References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 6 4History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri garhwal ) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola 4- Minyan Prem singh - Guldast Tabarikh बकै  अगने खंड 50 मा बाँचो ... To be continued part 50   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai

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B. C. Kukreti

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गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -46 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  46 Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -46                               भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )                                   महाराज प्रदयुम्न शाह : संयुक्त गढवाळ को आख़री रज्जा (1785 -1804   ई. )
              महाराज प्रदयुम्न शाहसंयुक्त गढवाळको आख़री रज्जा छौ .वैको समौ मा गुर्ख्यौं न गढवाळ [/b]पर आक्रमण करी अर गढवाळ जीति. जै कीर्ति  शाह अर प्रदयुम्न शाह को राज सरा भारत वलुं [/b] खुणि एक सीख च बल जै राज मा, जै परिवार मा पाळीबंदी/दल बंदी , जै संगठन मा स्वार्थी लोखुंक जमावड़ा जख सबि अपणी स्वाचन अर संगठन को मूल का बारा मा नि स्वाचन त वै परिवार, संगठन, प्रदेश, देश तैं गढ़वाळ -कुमाऊं जन घोर बिपदा/ बिप्पत्ति दिखण पोडद. पाळी बंदी समौ मा भेमाता क बिप्दौं/ प्राकृतिक प्रकोपुं से बि नि बचे सक्यांद .प्रदयुम्न शाह होशियार मनिख छौ पण परिस्थिति वैका विरुद्ध ही रैन. जब वै तैं राज मील त राजकोष खाली छौ [/b]प्रदयुम्न शाह को दरबार[/size]    राणी : [/b] १- अजब सिंग गुलेरिया की बेटी गुलेरिया जी २- कमल मियाँ की बेटी - रणोटी जी ३- सुदर्शन की ब्व़े - मंदरवाळ जी नौनु : सुदर्शन शाह गुरु : श्रीपति नौटियाल बजीर : मोहन सिंग रावत, जै देव डंगवाळ , धौंकल सिंग बुगाणो दफ्तरी : शिव देव, चन्द्र मणि, हरि दत्त खंडूड़ी (खनूडि),  कृष्णा नन्द खंडूडी, हर्षमणी, बख्सी : हमीर सिंग मिंयाँ देवान: गजे सिंग, उर्बी दत्त, रामेश्वर, शीशराम सकन्याणी , मोहन सिंग रावत गुरख्यौं लेखवार: धरणी खंडूडी वकील: रामा खंडूडी सभासद : कुंवर पराक्रम शाह , आनंद सिंग खत्री , धीरज मणि, दिवाकर, सर्पानंद पैन्युली , मंगला नन्द जोशी , उर्बी दत्त ओझा, देवी दत्त डोभाल फतेबादारू को नेगी : अनूप सिंगश्रीनगर को नेगी : दान सिंग फत्यौ क नेगी- इन्दर सिंग कुमौं का फौंददार :  जै देव पांडे अजबराम को बध : अजब राम पराक्रम शाह तैं राज गद्दी मा बिठाण चाणू छौ पण कुमाऊं को हर्ष देव जोशी प्रदयुम्न शाह तैं श्रीनगर को राजा बनौण  चाणू  छौ . हर्षदेव जोशी न अजब राम की हत्या करवाई अर प्रदयुम्न शाह तैं गढ़वाळ  अर कुमाऊं को रज्जा बणवै दे. हर्ष देव जोशी को कुमाऊं भगण : इख श्रीनगर मा गढ़वाळी मंत्री /दरबारी हर्षदेव की चाल बिंगण/समजण  बिसे गे छया .दरबार्युं न इन कौंळ  करी कि हर्ष देव जोशी तैं कुमाऊं भजण पोड़                  कुमाऊं राज को प्रदयुम्न का ह्त्थुं से  जाण इतियासकार बुल्दन बल उख कुमाऊं मा जोश्युं अत्याचार अर खड़ यंत्र पिला से बिंडी ह्व़े गे छया .कुछ मंत्र्युं क सहायता, काशीपुर का दीवान कि मौ मदद से कुमौं का पूर्ब रज्जा मोहन चंद न कुमाऊं पर आक्रमण करी दिने . इनी पराक्रम शाह बि मोहन चंद को दगड ह्व़े गे अर वैन बि आक्रमण  मा मोहन चंद को साथ दे  . इन लगद दुयूं पैलि चिट्ठ्युं मा सक्कड़ -पक्कड  (गुप्त मन्त्रणा ) ह्व़े इ होली मोहन चंद को आक्रमण तैं रुक णो बान प्रदयुम्न शाह श्रीनगर बिटेन सेना लेकी कुमाऊं तरफ गे पाली गौं को जुद्ध : हार्स देव जोशी बि सेना लेकी पाली गौं आये अर प्रदयुम्न से मील. हर्ष देव का भौत सा  कुमाउनी सैनिक मोहन चंद का पाळी ह्व़े गेन . पाली गौं को जुद्ध मा प्रदयुम्न शाह अर हर्ष देव जोशी की हार ह्व़े पराक्रम शाह न अफु तैं गढ़वा ळ को रज्जा घोषित करी दिने.मोहन चंद अर पराक्रम मा सैरी/ मेल/ संधि  ह्व़े गे  कि गढवाल को रज्जा पराक्रम अर कुमौं का रज्जा मोहन चंद श्रीनगर मा पाळी बंदी : श्रीनगर मा दरबार्युं द्वी पाळी (धडा/दल) ह्व़े गेन एक प्रदयुम्न शाह को समर्थक अर दुसर पराक्रम का हितेषी गृह युद्ध की तैयारी चलण बिसे गेन दून पर रोहिलों अधिकार : इख श्रीनगर अर कुमाऊं मा भितर घात चलणो छौ  अर वख भैर की सीमाओं मा बैरी घुसण बिसे गे छया . रोहिल्लों न अधिकार कॉरी अर  गुलाम कादिर न गुरु राम राय दरबार  तैं ल्हिष्ट -भिष्ट( भ्रष्ट ) करी दे . दून को गढ़वाली फौंद दार उम्मेद सिंग बि गुलाम कादिर को दगड ह्व़े गे . पैथर गुलाम कदीर को पतन दिल्ली का सुलतान न करी कुमाऊं मा उंच नीच: मोहन चंद का पास धन की कमी  छे अर कर लगाण से लोक रुस्यां छया . हर्षदेव ण तराई मा सेना कट्ठा कार अरकुमौं पर आक्रमण करी दे अर मोहन चंद तैं मरवाई दे . हर्ष देव एक तरां से रज्जा बौणी गे . हर्ष देव की इच्छा थै बल प्रदयुम्न शाह तैं रज्जा बणये त पराक्रम शाह की इच्छा छे बल मोहन चंद को नौनु तैं कुमाऊं को रज्जा बणये जावू मोहन चंद को भुला लाल सिंह न रामपुर का नबाब के मदद से कुमाऊं पर आक्रमण करी अर हर्षदेव तैं कुमाऊं बिटेन खदेड़ दे महेंद्र चंद रज्जा बौण : पराक्रम कि सहायता अर पराक्रम तैं नजराना दीण को बद्दल मोहन चंद को नौनु महेंद्र चंद रज्जा बौ ण .लाल सिंग न  सत्ता अपण ह्त्थुं मा करी दे हर्षदेव तैं पैडूळस्यूं की जागीर : प्रदयुम्न शाह न हर्ष देव तैं गढवाळ मा पैडूळस्यूं की जागीर दे पण पराक्रम शा कि कूटनीति से वै तैं बरेली भजण पोड़.  पैडूळस्यूं मा जोशीयाणा गौं हर्ष देव जोशी का परिवार वालुं न बसै थौ जगा जगा आक्रमण : प्रदयुम्न शाह तैं भितर घात से निजात नि मिलणी  अर सीमा पर दून/हरिद्वार मा रोज आक्रमण होणा रौंद छ्या, जब प्रदयुम्न शाह न  रामा खंडूडी अर धरणी खंडूडी तैं दून क्षेत्र तैं सम्बाळणो भ्याज जख पराक्रम शाह न रामा खंडूडी अर धरणी खंडूडी की हत्या करवाई कुमाऊं पर गोरखों राज : हर्ष देव जोशी क योजना/खड़यंत्र  क वजे से नेपाल को रज्जा न कुमाऊं  पर आक्रमण करी अर सं 1790  ई मा नेपाल को कुमाऊं पर राज स्थापित ह्व़े . लाल सिंग अर महेंद्र चंद तैं भजण पोड़                           हर्ष देव की चाल  अर गोर्ख्यों क गढवाळ पर बार बार आक्रमण हर्ष देव न नेपाली रज्जा तैं गढवाळ पर आक्रमण को ब्युन्त बि बिन्गाई . पण क्वी बि गढवाळी नेपाली सरकार तैं सहायता /मौ मदद दीणो तैयार नि ह्व़े  सल़ाण पर /लं गुर गढ़ पर नेपाली आक्रमण होंदा ही रैनचीन को नेपाल पर आक्रमण को वजे से  नेपाली सरकार तैं प्रदयुम्न शाह से संधि करण पोड़ जखमा नेपाल्युन तैं बार्सिक कर दिए गे प्राकृतिक बिपदा ; ये बगत गढवा ळ मा भौत सी प्राकृतिक बिपदा बि ऐन. पराक्रम को देश द्रोह: पराक्रम ण देशद्रोह का कथगा ही काज करीन                          गोरखा अधिकार   अंत मा गोर्ख्यों न गढवा ळ राज्य पर आक्रमण कॉरी . गढवाळी सेना नाकामयाब रये . प्रदयुम्न शाह तैं भजण पोड़. गंगा पार ह्वेका प्रदयुम्न शाह ज्वालापुर पौंछ . प्रदयुम्न शाह न गढवाळ राज्य प्राप्त हेतु आख़री लड़ाई खुड बुडा  (देहरा दून  )  मा लौड़ जामा प्रदयुम्न शाह शहीद ह्व़े याने कि 1804 ई मा संयुक्त गढवाळ राज को अंत ह्व़े   प्रीतम शाह तैं नेपाली लोक नेपाल ल़ी गेन अर पराक्रम शाह कांगड़ा नरेश के शरण मा गे भौत सालुं तक प्रदयुम्न शाह को परिवार ज्वालापुर मा शरणागत रैन .      References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 4History of Garhwal, History of Kumaun) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola बकै  अगने खंड 47 मा बाँचो ...To be continued part 47   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai                गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -47 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  47 Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -47                भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti                   गढवाळ मा गुरख्याणी      (1804  -1815  ई  . )              गढवाळ मा गुर्ख्याणी  एक सच च अर ये बगत अत्याचार को नयो नमूना  गढवाळ तैं दिखणो   मील.      कवि मौलाराम की एक कविता दर्शान्दी : मालक रहा  न गढ़ में     मुलक खुवार हो गया साहेब गुलाम पाजी सब इकसार हो गया काजी करे ना काज सितमगार हो गया रैयत पर जुल्म जोर बिसियार हो गया             क्या खूब श्रीनगर था उजार हो गया रीत के घर न पैसा कंगाल सब भये ताम्बा रहा न कांसा माटी के चढ़ गये टुकड़े का पड़ा सांसा म्घेस बध गये कपड़ा रहा न तन में भंगेले बि सड़ गये इतियासऔ हिसाब से तौळ ऐ तिथि खासम ख़ास छन   १८०४ ई- खुड बुडा जुद्ध मा गढ़ रज्जा प्रदयुम्न शाह की मिरत्यु   गढवा ळ पर गुर्ख्या राज की असली पवाण  . ग्ध्राज्य पर रण जोर सिंह थापा को शाशन १८०४-१८०६ अमर सिंग थापा को हिमाचल आदि जितण     १८०५-१८०८- ग्ध्राज्य पर हस्तिदल चौतारिया को शासन १८०६ - रण बहादुर की हत्या , गुरख्यों   कांगड़ा पर धावा १८०८- अंग्रेज अधिकारी रेपर को गढ़ राज्य मा औण कुमौं पर बम शाह को शासन १८०८-१८११ - गढ़ राज्य पर भैरों थापा को शासन १८०९- गढवाल मा ब्रिटिश कम्पनी का चाकरों को लीसा उत्पादन  गुरख्यों रण जीत सिंग से हार  १८१०- जड़ा पंथ को जुद्ध १८११ अमरार सिंग थापा तैं कजाई पदसुदर्शन शाह द्वारा चंडी परगना तैं  बिचण    गढ़ राज्य पर श्रेष्ठ थापा, बंधु थापा, भक्ति थापा को शासन १८१३-१८१४- ग्ध्राज्य पर तुलाराम अधिकारी को शासन १८१३- लार्ड मोयारा को गबर्नर जनरल बणण  १८१४- बुत बल हत्याकांड , २० अक्टोबर - अंग्रेजुन    कालसी जीति २१ अक्टोबर देहरादून पर ब्रिटिश हकुमत शुरू नाहन पर अन्ग्रेजू  जीत  सम्पूर्ण गढवाल पर ब्रिटिशऊँ जीत कुमाऊं पर ब्रिटिश अधिकार १८१५- ब्रिटिश अधिकारी फ्रेजर को पूरबी गढवाळ अफुम रखण अर टिहरी गढ़वाळ सुदर्शन शाह तैं दीण कुमाऊं अर पौड़ी गढवाल क एक हूण ३० दिसम्बर १८१५ खुणी टीरी  (टिहरी ) राजधानी स्थापित References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 5 History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri Garhwal ) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola बकै अगने खंड 48 मा बाँचो ... To be continued part 48   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -48 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  48 Great Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -48                                             भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti ) टिहरी नरेश सुदर्शन शाह (1815 -1859  ई.) सुदर्शन शाह कि गणना महान शाषक, चतुर मनिख, कुशल राजनीतिग्य, मनिखों की करण मा उस्ताद मा होंद सुदर्शन शाह धार्मिक मनिख छौ पण गोरिल जन दिवता नाचण, जादू टूण  से भौत चिरड़यांदो  छौ इन बोले जांद बल वैन बोक्सा ज़ात को टीरी राज बिटेन  मूल ही नष्ट करी   ब्रिटिश सरकार की किरपा से ही गढवाळ गुर्ख्यों  से मुक्त ह्व़े . सुदर्शन शाह को तिलक सैत  च वै दिन हे ह्व़े जै दिन राजधानी की स्थपाना ह्व़े . डा शिव प्रसाद न लगाई बल तिलक को दिन य़ी लोक उपस्थित रै होला:१- राजगुरु नौटियाळ २- राजगुरु (वशिष्ठ ) पुरोहित- पांडे ३- देवी सिंग - जु प्रवास मा सुदर्शन शाह को दगुड रै ४-मुंशी - चुन्नी लाल ५- कृपाराम - हरिद्वार का गढवाल राज का पंडा या वैक नौनु/रिश्तेदार . प्रदयुम्न शाह न किरपाराम पंडा को इख शरण ल़े छे ६- किसन  सिंग : प्रदयुम्न शाह को चोपदार ७- शिव राम, कशी राम , असाड़ू गुसाईं             राणी अर परिवार १- राणी बमोरी जी (जम्मू भमोर रज़ा की बेटी ) २- राणी सिरमौर जी (निर्वासित  सिरमौर नरेश करम प्रकाश  की बेटी ) ३-  सिरमौर नरेश संसार चन्द्र की द्वी बेटी  ४- खनेटि  जी (हिमाचल की कै छ्व टो  ठाकुर की बेटी ) ५-खवास राणी (उप पत्नी ) : गुणकली  राणी क नौनु भवानी शाह अगनी जैक रज्जा बौण ६-आठ नौ खवास (उप पत्नी )  राणी सुदर्शन शाह का आठ नौनु सौब खवासी रानियूं से ह्वेन (भवानि सिंग, शेर सिंग, गंगा सिंग, बद्री सिंग, सोबन सिंग, उत्तम सिंग, . फत्ते सिंग, केशर सिंग)   , द्वी  नौनी छे एक को ब्यौ बुशेहर को रज्जा महेंद्र को दगड अर हैंकी को ब्यौ विलासपुर को राजकुमार को दगड ह्व़े                       राज दरबारी धर्माधिकारी : प. हरि राम शर्मा जैन धर्म वल्ली जन भौत सा ग्रंथुं  रचना करी बजीर: दुर्गा दत्त पैन्यूली , धर्मदत्त बिजळवाण दीवान : ज्वालादत्त बहुगुणा हौरी अधिकारी : रमा नन्द नौटियाल, लक्ष्मीधर खंडूडी , रामदत्त रतूड़ी मुख्त्यार : शिव राम सकलानी बड़ी दीवानी का नाजिर : शंकरदत्त छ्वटि दीवानी को  नाजिर  :   बलिराम, देवी दत्त, कृष्ण दत्त खंडूडी थाणेदार  भागीरथी पार का :गंगादत्त      [/b] भिलंगना पार को - मोतीराम, राम कृष्ण रवाईन अर उदयपुर का - गंगा ड़ात, कृष्ण दत्त                गरीब राज से अमीर्ता को तरफ जब सुदर्शन शाह ण राजगद्दी कायम करी त टिहरी कुछ नी छौ पण फिर सने सने कौरिक टिहरी राज्य न सै राजा त अमीर बणदा गेन  गोरख्याळी मा जो बि उजड़ विजड ह्व़े  छौ धीरे धीरे अब गावं फिर से बस ण लगी गेन              शिव राम सकलानी अर गोबिंद सिंह बिष्ट शिव राम सकलानी ((सकलाना अर अठुर का जागीरदार  ) अर वैकु नौनु हरिराम आदि न राजा की अवहेलना करी इनी रवाइन को फौन्ज्दार /जागीरदार गोबिंद सिंह बिष्ट (एका बंशज कबि श्रीनगर मा दरबारी छया ) हमेश राजा क नीतियुं बिरोध मा राई                क्रान्ति का बीज : सकलाना मा बिद्रोह शिव राम सकलानी तैं ब्रिटिश सरकार न सकलाना का माफीदार जागीर दार बणे छयो अर वो उदंड ह्व़े गे छौ . जनता से वसूली मा बड़ी क्रूरता अर धांधली होंदी छे   यां से टिहरी रियासत मा सकलाना पट्टी मा एक क्रान्ति का बीज पैदा ह्वेन अप्रैल , 1835  ई. मा सकलाना का ३२ गौं का कमीण , सयाणा संगठित ह्वेन अर ३०० लोक कम्बळ , भंगल़ा क झुल्लौं मा  , पीठ मा सत्तू का झाबा, चिलम, लाठी  लेकी मेजर यंग का दफ्तर देहरादून कचहरी मा गेन अर अप नि फ़रियाद सुणाय़ी कि कं मुआफीदार शिवराम अर वैका कारिन्दा जनता तैं तंग करणा   छन प्रीतम शाह तैं वजीफा : सुदर्शन शाह ण प्रीतम शाह का बान वजीफा मुकर्र कार सुदर्शन शाह की हिंदी रचना सभा सार : सुदर्शन शाह क काव्य संग्रह बड़ो अलग सी बि च . शीर्षक  गढवाली मा होंद छया अर बाकि कविता ब्रज भाषा मा . कविता श्रृंगार अर वैराग्य का छन कुमदा  नन्द बहुगुणा : पैली  इ बहुगुणा बंश मा भौत सा विद्वान्, कवि/ज्योतिषी (भरत, मेघकर, रामदत्त )  ह्वेन . इनी सुदर्शन शाह क राज मा अचलानंद बहुगुणा क नौनु कुमदा  नन्द बहुगुणा ण सुदर्शनो डे काव्य' की रचना करी छेसत्यानन्द अर दुर्गा दत्त ज्योतिषी : सत्यानन्द अर दुर्गा दत्त भौत बड़ा ज्योतिषी ह्वेन वासबा नन्द ज्योतिषी : सैत च वासबा नन्द पोखरी का बहुगुणा छया पण यूँन अपण गौं क नाम पुख्श्री नाम दे वासबानंद का दादा क नाम गुणा नन्द भारद्वाज अर बुबा ज्यू क नाम लीला नन्द छौ . लीला नन्द एक बड़ो ज्योतिषी छौ वासबानंद न 'प्रश्न सिन्धु' संस्कृत ज्योतिष काव्य की रचना करी हरिदत्त शर्मा, नौटियाल: हरि दत्त का बुबा प्रमोद पति नौटियाल श्रीनगर दरबार मा छौ हरि दत्त शर्मा सुदर्शन शाह को धर्माधिकारी छौ . हरि दत्त शर्मा न संस्कृत काव्य भूषण नाटक, विष्णु स्मृति, धर्मवल्ली,लघुरामायण , लघु भागवत, नक्षत्र माला स्रोत्र, गंगालहरी, श्रृंगार ल्टा, कामदूत काव्य, भोज्याव्ली  आदि की रचना करी गुमानी पंत : गुमानी पंत पिथोरा गढ़ को छौ अर सुदर्शन शाह को राज दरबार मा बि राई . गुमानी पंत अपण तरां को अलग हे कवि छौ जु संस्कृत, नेपाली, कुमाउनी, गढ़वाली अर ब्रज भाषा मा कविता रचदू  थौ मनमंथ कवि : मनमंथ कवि कुमौं को छौ अर रिख्डा कर बि छौ. वैन अल्मोड़ा को एक मानचित्र सुदर्शन शाह तैं भेंट दे छौ कनखल मा पहाड़ी चित्रकार : जब शुदर्शन शाह कनखल मा छौ त वैक दगड कुछ पहाड़ी चित्रकार बि छया यूँ पहाड़ी चित्र कारू न कनखल मा भारमल खत्री कि दीवाल, अर हैंकि दीवाल मा चित्रकारी करी छे गुरु राम रै दरबार का दीवालुं मा बि यूँ पहाड़ी चित्रकारुं  न रंगीं रिखडा चित्र) बणेन ज्वाला राम चित्रकार : ज्वाला राम मौलाराम को नौनु छौ अर वो श्रीनगर  रौंद छयो अर कबि कबि टीरी औंद छौ वैन उख श्रीनगर मा कुछ चित्र गढ़वाळी ब्युंत (शैली) मा बणेन माणकू चित्रकार ; माणकू चित्रकार को जन्म कख ह्व़े यू त नी पता पण वो सुदर्शन शाह क इख आंदो छौ अर वैन भौत सा चित्र बणेन चैतू  चित्रकार : चैतू  चित्रकार  मौलाराम कू चेला छौ न भौत सा चित्र बणेन मौलाराम कि स्तिथी : इन बुले जांद बल सुदर्शन शाह न मौलाराम तैं बड़ा मंगण (प्रशंशा कविता ) सुनणो परांत बि कुछ सौगात नि दे त मौलाराम श्रीनगर ऐ गे मौलाराम न सुदर्शन शाह की कविता मा काट करीं छ  References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 6 4History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri garhwal ) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola 4- Minyan Prem singh - Guldast Tabarikh बकै  अगने खंड 49 मा बाँचो ... To be continued part 49   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai               गढवाळ का नामी गिरामी लोक अर जाती(मलारि जुग बिटेन अब तलक ) फड़क   -49 गढ़वाल की विभूतियाँ व समाज (मलारी युग से वर्तमान तक ) भाग  49 Great  Garhwali Personalities and Societies of Garhwal Part -49                                                              भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )                                   टीरी (टिहरी ) राज्य मुतालिक लार्ड डलहौजी की चिट्ठी      राजा सुदर्शन शाह न वसीयत कॉरी छे या लोखुं तैं बताई छौ बल वैको उत्तराधिकारी भवानी सिंह होलू. कारण यू छौ बल मुख्य रान्यूँ से क्वी नौनु नि जनम अर सब नौनु खावास (उप पत्नी )  राणी यूँ से छया. इन नौन्याल्यूं  तैं काम असल नौनु बोले जांद छौ   . राजा सुदर्शन शाह न अपनों उत्तराधिकारी भवानी शाह तैं बणाणो  इजाजतऔ  बान द्वी तीन चिट्ठी ब्रिटिश सरकार तैं भेजी , क्वी चिट्ठी जबाब नी ऐ अंग्रेजुन भारतीय राजाओं पर गोद ल़ीणो अर वूं तैं राजगद्दी मा बैठा न बन्द करी दे छौ  अर इन राज तैं इंगरेज अपण कब्जा मा करी लींद था . फिर २५ जून  १८५४ खुणि लार्ड डलहौजी न ईस्ट इंडिया कम्पनी क बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल  को अध्यक्ष तै ये बाबत चिट्ठी लेखी   " इन हिन्दू राजा , जन कि टिहरी राजा च तैं अपण उत्तराधिकारी चुनणो पूरो अधिकार च . किलैली (सनद या संधि मुताबिक) टीरी (टिहरी) यौ राजा णा त भारत (ब्रिटिश) सरकार तैं क्वी टैक्श दींदु णा णा ही यू राजा ब्रिटिश हकुमत को अधीन च . ना हे ब्रिटिश टीरी को सार्वभौम अधिपति च . भारत सरकार तैं उत्तराधिकारी क मामला मा दखलंदाजी करणो क्वी  अधिकार नी च. "                                                        टिहरी राजा भवानी शाह (1859 -1871  ई. )                                     राज मिलण मा कठनै   ये त सब्बी जाणदा छया बल सुदर्शन शाह न भवानी शाह तैं उत्तराधिकारी घोषित कर्युं च पण खवास राणी खणेटी को मोरदो  सुदर्शन शाह पर पुरो प्रभाव छौ अर वींन बीमार रज्जा तैं अपुण कब्जा मा करी दे . अर जै दिन सुदर्शन शाह मोर वै दिन ही शेर सिंग ण अफु तैं शेर शाह को नाम से राजा घोषित करी दे अर शिवा नन्द खंडूड़ी न शेर शाह को तिलक करी.                                      भवानी सिंग पर दबाब   भवानी सिंग शेर सिंग तैं राज दीणो तैयार नी छौ अस्तु खणेटी राणी अर शेर सिंग का हितैषी जन कि गजाधर खंडूड़ी , लक्ष्मी धर  खंडूड़ी, रमा नन्द नौटियाल, देबू गैरोला, उमा दत्त बहुगुणा, बैशाखू खजांची शंकर दत्त सकलानी , कृष्ण दत्त लेखवार , बलिराम गैरोला, क्यूँल डंगवाल , ब्रंगला नेगी अर जितारु नेगी सब्ब्युन भवानी सिंग पर दबाब डाळ बल दास हजार मैना की पेंसन मा भवानी सिंग माने जाओ पण भवानी सिंग तैयार नी ह्व़े. भवानी सिंग न अपणि दरखास्त ब्रिटिश अधिकारी हेनरी रामसे को भेजी                                       ल़ा-दाबा' हस्ताक्षर   फिर शेर सिंग  हौर कम असल राजकुमार ( रज्जा का खवास पुत्र ), राज अधिकार्युं लेकी बीस हजार रुप्यौं महीना जागीर दीणो सनद पत्र लेखिक  ह्वेका भवानी सिंग का पास गेनी पण भवानी सिंग की राणयूँ को कारण भवानी सिंग शेर सिंग तैं नी मील                         फिर हेनरी रामसे टीरी पौंच अर जबरदस्ती या शेर सिंग तैं मनाये गे अर शेर सिंग तैं देहरादून मा बंदी बणयेगे फिर छै सितम्बर १८५९ ई. खुणि आधिकारिक रूप मा ताजपोशी ह्व़े.   भवानी शाह का राज मा कथगा ही प्रजा या फौन्ज्दारून मा असंतोष रै , जन कि जौनपुर मा बिद्रोह अर फिर बिद्रोह शान्ति, सकलाना क्षेत्र का सुनार गाँव (अठुर इलाका) का किसाण परवाण (नेता) बदरी सिंग अस्वाळ की परवाण गिरी (नेतृत्व)  मा एक किसाण आन्दोलन हैंको ह्व़े यां से उख नै भुव्यव्श्था ह्व़े .                                    ढंडक आन्दोलन ढंडक आन्दोलन टिहरी मा एक क्रान्ति बी को नयो रूप छौ. भवानी शाह एकांतवासी छौ . त राज वैका राज कर्मी सम्बाळदा था. इन मा प्रजा कार वसूली से जब परेसान होंदी छे प्रजा लाठी लेकी कर वसूल करण वालुं तैं पीटदी  दी  छे . फिर राजकीय कारिन्दा पुलिस ढंडकों तैं डंडयान्दी (दण्ड देना) छे शिव सिंह रौतेला ढंडक क्रांतिकारी    गढवाली विभुतियुं मा एक सम्मानजनक  नाम च शिव सिंह रौतेला को. जब भी क्रान्ति की बात होली त शिव सिंह रौतेला को नाम अगने रालो . शिव सिंग रौतेला धनारी गाँव को एक स्म्झ्युं, सुल्झ्युं मनिख थौ .किसाणु का दुःख से दुखी ह्वेका शिव सिंग रौतेला न गावं गाँव जैका  लोगूँ तै संजाई कि 'ढंडक' जरुरी च ढंडक माने अपण हक्क का बान राजकीय कारिंदों तैं पिटण. धीव सिंग रौतेला टिहरी राज को अत्याचार की व्यथा- कथाको ब्योरा कुमौं कमिश्नरी का अंग्रेज अधिकार्युं , को बि लिखदो छौ  यां से टीरी राजकीय व्यश्था नाराज ह्व़े अर  वै पर भारी कर लगै दिने अर शिव सिंग रौतेला क घर, पुंगडओं की कुर्की करे गे . शिव सिंग रौतेला का रिश्तेदार चिन्याली गाँव का शिव सिंग बिष्ट न जामिन देकी शिव सिंग रौतेला की जमीन जैजाद छुडवाई  रवाईं  मा विद्रोह : रंवांयी इलाका म त विद्रोह हुँदा ही रौंद था इन दिखे जाव त भवानी शाह क राज मा बि उथल पुथल त राई च . भवानी शाह शांत प्रिय रज्जा छौ अर वैन अपण भै शेर सिंह, खणेटि राणी तैं मुआफ करी दे छौ भवानी शाह न आय का साधनु जन कि बौणऊँ   का ठेका , गंगा जल ठेका, हथ्युं तैं बिचणो  प्रबंध सेराज्य की आय बढ़ाई .                          भवानी  शाह की द्वी राणी अर आठ नौन्याळ भवानी शाह की द्वी राणी (मंडी अर हिंडूर की राजकुमारी ) छे अर आठ नौनु छ्या :प्रताप शाह (सबसे ज्याठो)  , विक्रम शाह, प्रमोद सिंह, फत्ते सिंह, गोपाल सिंह, हीरा सिंह, मदन सिंह, अर तेग सिंग भवानी सिंग को मोंरणो पैथर प्रताप सिंग गद्दी पर बैठ References: 1- Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand Ka Itihas Bhag 6 4History of Garhwal, History of Kumaun, History of Tihri garhwal ) 2- Harikrishn Raturi Garhwal ka Itihas 3- Garhwal ka Aitihasik Birtaant in Garhwali and Memoir of Garhwal as translation by Tara Datt Gairola 4- Minyan Prem singh - Guldast Tabarikh बकै  अगने खंड 50 मा बाँचो ... To be continued part 50   Copyright @ Bhishm Kukreti, Mumbai

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Regards
B. C. Kukreti

 

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