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आधुनिक गढवाली भाषा कहानियों की विशेषतायें और कथाकार ( Characteristics of Modern Garhwali Fiction and its Story Tellers) भीष्म कुकरेती कथा कहना और कथा सुनना मनुष्य का एक अभिन्न मानवीय गुण है . कथा वर्णन करने का सरल व समझाने की सुन्दर कला है अथवा कथा प्रस्तुतीकरण का एक अबूझ नमूना है . यही कारण है कि प्रतेक बोली-भाषा में लोक कथा एक आवश्यक विधा है. गढ़वाल में भी प्राचीन काल से ही लोक कथाओं का एक सशक्त भण्डार पाया जाता है . गढ़वाल में हर चूल्हे का, हर जात का, हर परिवार का, हर गाँव का , हर पट्टी का अपना विशिष्ठ लोक कथा भण्डार है जहाँ तक लिखित आधुनिक गढ़वाली कथा साहित्य का प्रश्न है यह प्रिंटिंग व्यवषथा सुधरने व शिक्षा के साथ ही विकसित हुआ . संपादकाचार्य विश्वम्बर दत्त चंदोला के अनुसार गढ़वाली गद्य की शुरुवात बाइबल की कथाओं के अनुबाद (१८२० ई. के करीब ) से हुयी ( सन्दर्भ: गाड मटयेकि गंगा १९७५ ) .गढ़वालियों में सर्वप्रथम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर पद प्राप्तकर्ता गोविन्द प्रसाद घिल्डियाल ने (उन्नीसवीं सदी के अंत में ) हितोपदेश कि कथाओं का अनुबाद पुस्तक छापी थी (सन्दर्भ :गाड म्यटेकि गंगा). आधुनिक गढ़वाली कहानियों के सदानंद कुकरेती आधुनिक गढ़वाली कथाओं के जन्म दाता विशाल कीर्ति के संपादक, राष्ट्रीय महा विद्यालय सिलोगी,मल्ला ढागु के संस्थापक सदा नन्द कुकरेती को जाता है . गढवाली ठाट के नाम से यह कहानी विशाल कीर्ति (१९१३ ) में प्रकाशित हुयी थी. इस कथा का आधा भाग प्रसिद्ध कलाविद बी . मोहन नेगी , पौड़ी के पास सुरक्षित है . कथा में चरित्र निर्माण व चरित्र निर्वाह बड़ी कुशलता पुर्बक हुआ है . गढवा ळी विम्बो का प्रयोग अनोखा है , यथा : "गुन्दरू की नाक बिटे सीम्प कि धार छोड़िक विलो मुख , वैकी झुगली इत्यादि सब मैला छन, गणेशु की सिरफ़ सीम्प की धारी छ पण सबि चीज सब साफ़ छन . यांको कारण , गुन्दरू की मा अळगसी' ख़ळचट अर लमडेर छ. . भितर देखा धौं ! बोलेंद यख बखरा रौंदा होला . मेंल़ो (म्याळउ ) ख़णेक घुळपट होयुं च . भितर तकाकी क्वी चीज इनै क्वी चीज उनै . सरा भितर तब मार घिचर पिचर होई रये. अपणी अपणी जगा पर क्वी चीज नी. भांडा कूंडा ठोकरियों मा लमडणा रौंदन . पाणी का भांडों तलें द्याखो धौं . धूळ को क्या गद्दा जम्युं छ. युंका भितर पाणी पेण को भी ज्यू नि चांदो . नाज पाणी कि खाताफोळ , एक मणि पकौण कु निकाळण त द्वी माणी खते जान्दन , अर जु कै डूम डोकल़ा , डल्या , भिकलोई तैं देण कु बोला त हे राम ! यांको नौं नी . रमा प्रसाद घिल्डियाल 'पहाड़ी ' ने इस कथा को पुन : गुन्दरू कौंका घार स्वाळ पक्वड़ ' शीर्षक के नाम से 'हिलांस' में प्रकाशित किया था . सदानंद कुकरेती ( १८८६-१९३८) का जन्म ग्वील-जसपुर , मल्ला ढागु , पौड़ी गढ़वाल में हुआ था .वे विशाल कीर्ति के सम्पादक भी थे गढवाली ठाट के बारे में रामप्रसाद पहाड़ी का कथन सही है कि यह कथा दुनिया की १०० सर्वश्रेष्ठ कथाओं में आती है. कथा व्यंगात्मक अवश्य है और कथा में सुघड़ व आलसी , लापरवाह स्त्रियों के चरित्र की तुलना हास्य, व्यंग्य शाली बहुत रोचक ढंग से हुआ है. कथा असलियत वादी तो है, वास्तविकता से भरपूर है, किन्तु पाठक को प्रगतिशीलता की ओर ल़े जाने में भी कामयाब है .कथा का प्रारभ व अंत बड़ी सुगमता व रोचकता से किया गया है भाषा सरल व गम्य है . भाषा के लिहाज से जहाँ ढागु के शब्द सम्पदा कथा में साफ़ दीखती है रमती है वहीं सदानंद कुकरेती ने पौड़ी व श्रीनगर कई शब्द व भौण भी कथा में समाहित किये हैं जो एक आश्चर्य है. ' गढवाली ठाट ' के बारे में अबोध बंधु बहुगुणा (सं -२) लिखते हैं ' सचमुच में गद्य का ऐसा नमूना मिलना गढ़वाली का बाधा भाग्य है. बंगाली, मराठी आदि भाषाओं में भी साहित्यिक गद्य की अभिव्यक्ति उस समय नहे पंहुची थी. यहाँ तक कि हिंदी में भी उस समय (सन १९१३ ई. में ) गद्य अभिव्यक्ति इतनी रटगादार , रौंस (आनन्द , रोचक ) भरी मार्मिक नहीं थी. इस तरह कि हू-ब-हू चित्रांकन शैली के लिए हिंदी भी तरसती थी. गढवाल कि दिवंगत विभितियाँ के सम्पादक भक्त दर्शन का कथन है " सदानंद कुकरेती चुटीली शैली में प्रहसनपूर्ण कथा आलोचना के लिए प्रसिद्ध हैं " डा अनिल डबराल का कहना है कि सदानंद कुकरेती कि अभिव्यक्ति की प्रासगिता आज भी बराबर बनी है . भीष्म कुकरेती के अनुसार ( सन्दर्भ 1) सदानंद कुकरेती का स्थान ब्लादिमीर नबोकोव, फ्लेंनरी ओ'कोंनर, कैथरीन मैन्सफील्ड , अर्न्स्ट हेमिंगवे, फ्रांज काफ्का, शिरले जैक्सन , विलियम कारोल विलियम्स , डी .एच लौरेन्स , सी. पी गिलमैन, लिओ टाल्स्टोय , प्रेमचंद, इडगर पो , ओस्कार वाइल्ड जैसे संसार के सर्वश्रेष्ठ कथाकारों की श्रेणी में आते हैं परुशराम नौटियाल : अबोध बंधु बहुगुणा ने गाड म्यटयेकि गंगा (पृ ४०) में लिखा है श्री परुशराम कि 'गोपू' आदि डो कहानियाँ इस दौरान ( १९१३- १९३६ ) प्रकाशित हुईं थीं श्री देव सुमन : बहुगुणा के अनुसार श्री देव सुमन ने ' बाबा ' नाम कि कथा जेल में लिखी थी.
By - Bhishm Kukreti.
M S Mehta