आजकल उत्तराखंड संगीत जगत में नए नए कलाकरों के द्वरा गाये गाने वाले गीतों का हाल किसी से छुपा नहीं है जिसका मूल कारण है की आजकल के अधिकतर कलाकार लोकगीतों के बारे में पढना या जानना नहीं चाहते है.
कुमाओं के लोक गीतों की धरोहर को अपनी किताब में पिरोया है श्रीमती सुषमा जोशी जी ने..
अगर आपलोग भी चाहते है की आपकी आने वाली पीढ़ी भी उत्तराखंड की सस्कृति को समझ सके तो इस पुस्तक को जरुर पढ़े...
सास बहु संवाद गीत
सास- भूखा पेट नींद न्हाती कासी बीते रात, रत्ते बयाँण कब होली बीती जाली रात,
बहु- खाली पेट मची सासु पेट मणि खलबली, भाना कुना खाली न्हाती मानिर कौ ले भात.
सास- ना त तेरो सौर घर ना त मेरा च्योलों, कथे कनु सुखा दुखा विपदा की बात.
बहु- नि घबड़ाओ सासु सुणो, देवी देणी होली, मिली जुलि काटी ल्यह्युलो अमुसी जे रात..
सास - नानातिना थें के कौली, कसिके समझाली, कं बै देली खाणा हुणी द्वि घास भात....
बहु- बीती जला दुःख दीन सुखा का दीन आला, जब म्यारा सौर म्यारा स्वामी घर आला.
सास-बहु- : रोज खुलो तब पूरी साग- ससाग बासमती को भात, योई आस करी-करी कटी जला दीन रात
विरह गीत
आकाश के चाई रुंलो कटी जाली रात, नि थामिनी पर यो सुवा आखिन की बरसात.
याद तेरी जब उछ सुवा मन कई नि लागनो, धो काटड़ है जांछ सुवा समय को कटाडो.
चाई रूंछ तारण के गडी- गडी काटन छुं रात.
सब घारण का मैस रोज ब्याव लौटी उनी. सुवा का मन भाई गेछ शहर की दूणी,
जाणी केले मुनि हालो भूलो गों के बाद....
म्यार मैत की देवी सुण कब देणी होली,
कुशल मंगल म्यार सुवा के घर कब ल्याली,
त्यारा थाना दियो जंगूलो चढुलो परसाद.....
Publisher
Sahitya Prakashan, 101, Pratap Nagar,
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