Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94638 times)

दीपक पनेरू

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उत्तराखंड की माटी
 

अपनी माटी उत्तराखंड की,
बीरों की पहचान बनी,
पूरे जग को किया है गर्वित,
ऐसी अपनी शान बनी.

ऊँचा हिमालय पुकारता है,
आज आपने मीत को,
मत भूलो हे भाइयो,
अपनी संस्कृति अपनी रीत को.

जिन पर पले बड़े है हम,
और हमारे परिवार,
आज उनको छोड़कर तुम,
ये क्या कर रहे हो यार?

अपनी संस्कृति की बग्वाल,
और अपना घुघूती का त्यौहार,
यही पहाड़ की रीति है,
 फूलदेई और भैटोई का प्यार.

ओ आलू-मूली का थेचुआ,
ओ भट्ट का चुड़कानी,
तरस रहे हो आज तुम,
पीने को स्रोतों का मीठा पानी.

इस पहाड़ को रोता सुन अब तो,
लौट आओ इसे मनाने,
जो भी कर बैठे हो तुम,
इसके साथ जाने, अनजाने.

घर बुलाता है तुम्हे,
आगन देखता राह है,
फिर गोद में आ जाओ ,
उसकी यही आखिरी चाह है.

..............क्रमशः
 

हेम पन्त

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बढिया है दीपक भाई! अपनी और भी कविताएं बांटिए हमारे साथ!

दीपक पनेरू

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अरे हेम दाज्यू आप तो ठैरे बल कवि टाइप आदमी और मैं हूँ ऐसा ही जो आया अनाप   सनाप लिख दिया, आप लोग पड़ लेते हो तब इज्जत बच जाती है. वैसे कहू तो   धन्यवाद आपको.

धनेश कोठारी

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Deepk ji aapki kavitaon mein anap shanap nahi balki gagrai bhi hai, matlab bhi hain. so lage raho munna bhaiiiiiiiii

दीपक पनेरू

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Dhanyabad Kothari Ji, jarur jarur.........main apne sabd waps leta hoon sriman

Deepk ji aapki kavitaon mein anap shanap nahi balki gagrai bhi hai, matlab bhi hain. so lage raho munna bhaiiiiiiiii

दीपक पनेरू

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भाइयो में कवि तो नहीं हूँ, लेकिन थोडा कुछ मेरे मन के जज्बात है जो कलम के माध्यम से पेश कर रहा हूँ



  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,
  ठंडो पाड़ी ठंडी हवा, मेर दिल भेरी ऐगे,
  इजू तेरी याद ऐगे, बेनु तेरु याद ऐगे.
 
  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  द्वि रोटी कारन इजू परदेश गयु,
  दुश्मन जमाना मेरो, एको हबे रेग्यु,
  घर उन को मन करो, परबश ह्वेग्यु,
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,

  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  तेरी हाथ रोटी सागा, बेनु की नराई,
  कुछ काम नि या इजू ये कॉलेज पढाई,
  गाली खायी, मार खायी, बाज्यू के हाथ की,
  आब याद उन्छों इजू , डांट उ ददा की,
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,

  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,
  ठंडो पाड़ी ठंडी हवा, मेर दिल  भेरी ऐगे,
  इजू तेरी याद ऐगे, बेनु तेरु याद ऐगे.


dramanainital

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भाइयो में कवि तो नहीं हूँ, लेकिन थोडा कुछ मेरे मन के जज्बात है जो कलम के माध्यम से पेश कर रहा हूँ

A non poet,as you say you are,you write brilliant stuff deepak jee.become a poet.



  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,
  ठंडो पाड़ी ठंडी हवा, मेर दिल भेरी ऐगे,
  इजू तेरी याद ऐगे, बेनु तेरु याद ऐगे.
 
  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  द्वि रोटी कारन इजू परदेश गयु,
  दुश्मन जमाना मेरो, एको हबे रेग्यु,
  घर उन को मन करो, परबश ह्वेग्यु,
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,

  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  तेरी हाथ रोटी सागा, बेनु की नराई,
  कुछ काम नि या इजू ये कॉलेज पढाई,
  गाली खायी, मार खायी, बाज्यू के हाथ की,
  आब याद उन्छों इजू , डांट उ ददा की,
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,

  ऊँचा डाना हे हे हे
 
  ऊँचा डाना मेरो पहाडा, हौली झुरी ऐगे,
  ठंडो पाड़ी ठंडी हवा, मेर दिल  भेरी ऐगे,
  इजू तेरी याद ऐगे, बेनु तेरु याद ऐगे.

दीपक पनेरू

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चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह सुमन की कविता

श्री शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित हिंदीकुंज डौट कॉम पर


गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ हिंदीकुंज डौट कॉम एवं मेरा पहाड़ डौट कॉम

Raje Singh Karakoti

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One of the sevearal perls from SS Suman. Excellent collection brother.
keep it ip.
 
 
चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह सुमन की कविता

श्री शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित हिंदीकुंज डौट कॉम पर

 
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

 
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।

 
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।

 
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।

 
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

 
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

 
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।
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