Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94627 times)

Raje Singh Karakoti

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सुप्रभात मेरा पहाड़ !
 एक छोटा सा फ़साना हमारी ओर से कुबूल फरमाइए !    कभी ख़ुशी की आशा , कभी गम की निराशा   कभी हकीकत की धुप, कभी सपनो की छाया !    कुछ खोकर कुछ पाने की आशा  शायद यही है ज़िन्दगी की परिभाषा !!   
 
 
 
आपके हुनर के थे हम  कायल,
अब आपने मुरीद अपना बना लिया,
दोस्त तो आप हमें बना चुके थे,
अब भाई भी आपने बना लिया,

क्या कहू इस अहशान  को मै,
सोचकर भी भुला सकता नहीं,
आपके लिए कुछ लिखू ,
अभी मैं इसके लायक नहीं,,,,,,,,,,,


धन्यवाद कहूँगा नेगी जी एव दीपक जी को !
आपके सुंदर शब्दों का, जिसका में लायक नहीं!

हाँ मेरापहाड़, एक परिवार है, एक मंच है
जहाँ घर जैसा माहौल है!
इस पोर्टल के नीव में जुड़े है नायक
कमल जी, अनुभव, हेम, पंकज,हिमांशु, दयाल आदि
आप लोगो का योगदान भी कम नहीं है!

नेगी जी. धन्यवाद है आमंत्रण के लिए
आरजू है यह मेरी भी, जल्द ही होगी आपसे मुलाकात

आप खुद को क्या कहें ये रजा है आपकी
पर हम पर रही है मेहरबानी आपकी
हम तो इस मंदिर (मेरा पहाड़) में आपकी अमानत हैं
आपको अज्ञानी समझे फिर तो  हम पर लानत है
इस मंच पर ला खड़ा किया हमें हम आपके सुक्र्गुजार है
कभी घर आइये आपकी खिदमत को हाजिर ये दिलदार है

दो ला-इन

अग्रज एव अनुज की क्या खूब है यह जुगलबंदी
आशा करता हूँ चलते रहे ये हस्ते -२

मै कविता लिखने में हूँ अज्ञानी 
लेकिन अब थोडा सा मै कर रहा हूँ तैयारी

सत्यदेव सिंह नेगी

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आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम
धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम
जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी
कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले
पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी
मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास
छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास
   

Raje Singh Karakoti

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 मोगेम्बो खुश हुआ !   
 
 
आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम
धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम
जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी
कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले
पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी
मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास
छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास
   

पंकज सिंह महर

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मेरा पहाड़ के इस कवि मंच पर,
ग्वै लगाते देखे, भविष्य के सुमेरु,
यों ही मेहनत करते रहो, रंग जरुर लायेगी,
सुन्दर, नेगी जी, विनोद और दीपक पनेरु।

दीपक पनेरू

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क्या खूब कही क्या खूब सुनी,
और क्या कहने का इरादा है,
अब तो दो से तीन हुए,
उम्मीद इससे भी ज्यादा है,

"काराकोटी" जी कूद पड़े,
लेकर कलम को इस तैयारी में,
अब खूब जमेगा रंग,
आपकी और हमारी यारी में,,,,,,,,

सुप्रभात मेरा पहाड़ !
 एक छोटा सा फ़साना हमारी ओर से कुबूल फरमाइए !    कभी ख़ुशी की आशा , कभी गम की निराशा   कभी हकीकत की धुप, कभी सपनो की छाया !    कुछ खोकर कुछ पाने की आशा  शायद यही है ज़िन्दगी की परिभाषा !!   
 

दीपक पनेरू

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महर जी हुनर ही तो है जो,
औरो से अलग दिखलाता है,
हम सब को तागे मे पिरोकर,
ये आपकी महानता दर्शाता है,

कभी कभी इसी तरह से,
बिचारो से अवगत करते रहना,
गलती हो तो माफ़ी चाहें,
अंत में मुझे है कहना...........

मेरा पहाड़ के इस कवि मंच पर,
ग्वै लगाते देखे, भविष्य के सुमेरु,
यों ही मेहनत करते रहो, रंग जरुर लायेगी,
सुन्दर, नेगी जी, विनोद और दीपक पनेरु।

दीपक पनेरू

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क्या खूब कही "नेगी जी" आपने,
आप सधे हुए माझी है कलम के,
स्टेडियम की आड़ लेकर,
जो शब्दों का बाण है चलाया,
हमे इस जुगलबंदी का अहसास,
आपने पूरे फोरम को कराया है,........

आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम
धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम
जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी
कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले
पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी
मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास
छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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आंखो को आज क्यो है, नम होने का इन्तजार.
आजा जालिम, तेरी यादो का क्यों करे इन्तजार.

कैसे समझाउ अपनी जुस्तजु को,
कैसे मनाऊ अपनी आरजु को,

भुल गया सावन का वादा,
या देहरी पर बिठाये हुवे है पहरेदार.

तनहा इंसान 13-08-2010

दीपक पनेरू

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अच्छी भावनाएं है सर.........अच्छा लगा पढ़कर

आंखो को आज क्यो है, नम होने का इन्तजार.
आजा जालिम, तेरी यादो का क्यों करे इन्तजार.

कैसे समझाउ अपनी जुस्तजु को,
कैसे मनाऊ अपनी आरजु को,

भुल गया सावन का वादा,
या देहरी पर बिठाये हुवे है पहरेदार.

तनहा इंसान 13-08-2010

दीपक पनेरू

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किसी कवि ने कहा था........
 
 
  तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम भी अपनों से कब खाली,
  चलो आज हो चुका मिलना, न तुम खाली न हम खाली......

 

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