क्या खूब कही क्या खूब सुनी,
और क्या कहने का इरादा है,
अब तो दो से तीन हुए,
उम्मीद इससे भी ज्यादा है,
"काराकोटी" जी कूद पड़े,
लेकर कलम को इस तैयारी में,
अब खूब जमेगा रंग,
आपकी और हमारी यारी में,,,,,,,,
सुप्रभात मेरा पहाड़ !
एक छोटा सा फ़साना हमारी ओर से कुबूल फरमाइए ! कभी ख़ुशी की आशा , कभी गम की निराशा कभी हकीकत की धुप, कभी सपनो की छाया ! कुछ खोकर कुछ पाने की आशा शायद यही है ज़िन्दगी की परिभाषा !!