Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94625 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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दीपक जी सधे हुए न कहें अभी इस अनाड़ी को
मस्तक न आप पहले देखो मेरी नाड़ी को
दिल के बीमार को बुखार का इलाज न दो
बीमार हैं बिन खुजली के सल्फाज न दो
लगता है आप शब्द भेदी बाण के सिपाही हैं
जो दोगे गुरु है तो ये कला भि आपसे ही पाई है
हम अब आगे से सिंगल्स ही लेंगे
हर पारी में अब सून्य पर विकेट न देंगे
क्या खूब कही "नेगी जी" आपने,
आप सधे हुए माझी है कलम के,
स्टेडियम की आड़ लेकर,
जो शब्दों का बाण है चलाया,
हमे इस जुगलबंदी का अहसास,
आपने पूरे फोरम को कराया है,........

आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम
धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम
जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी
कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले
पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी
मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास
छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास
 

सत्यदेव सिंह नेगी

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   सुन्दर जी आपकी कविता के तो हम फेन हैं
   
आपकी हम दिया आप लालटेन हैं 
 
 पर गुस्ताखी माफ़ लिखने की ललक हमने दीपक जी से पाई है
 
कुछ नहीं वो मेरे गुरु और आप भाई हैं 
 
इस फटीचर कविता को दस्तावेज न समझाना
 
 ये  हमारी नादानी है गुस्ताखी न समझाना

दीपक पनेरू

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आपके कर कमलों पर सरस्वती का वास है,
बार बार कलम यही आभास दिलाती है,
फोरम के सब लोग है कायल,
हर बार यही जताती है,,,,,,,
अब गुरु चेले मैं हो चली बहस,
कौन सीखा, कौन सीखाने वाला है,
बस यूही चलते रही ये महफ़िल,
शायद अब वक़्त बदलने वाला है,

दीपक जी सधे हुए न कहें अभी इस अनाड़ी को
मस्तक न आप पहले देखो मेरी नाड़ी को
दिल के बीमार को बुखार का इलाज न दो
बीमार हैं बिन खुजली के सल्फाज न दो
लगता है आप शब्द भेदी बाण के सिपाही हैं
जो दोगे गुरु है तो ये कला भि आपसे ही पाई है
हम अब आगे से सिंगल्स ही लेंगे
हर पारी में अब सून्य पर विकेट न देंगे
क्या खूब कही "नेगी जी" आपने,
आप सधे हुए माझी है कलम के,
स्टेडियम की आड़ लेकर,
जो शब्दों का बाण है चलाया,
हमे इस जुगलबंदी का अहसास,
आपने पूरे फोरम को कराया है,........

आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम
धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम
जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी
कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले
पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी
मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास
छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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हसते हुवे चेहरो के, राज होते है हजार.
बहते हुवे अश्को के, होती है कई मजार.

लिखते रहना तुम, इसी अंदाज मे मित्रो.
मत करना तुम, मुझ तनहा का इन्तजार.

तनहा इंसान 13-08-2010.

Raje Singh Karakoti

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Tiranga
सारे जहाँ से अच्छा……
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दुस्तां हमारा
हम बुलबले है उसकी वो गुलसितां हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का
वो सन्तरी हमारा, वो पासबां हमारा

गोदी मे खेलती है, उसकी हजारो नदियाँ
गुलशन है उसके दम से, रश्क ए जिनां हमारा

मजहब नही सिखाता, आपस मे बैर रखना
हिन्दी है हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा

 
 जय हिंद   जय उत्तराखंड

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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सारे जहां से अच्छा हिंन्दुस्तान हमारा?.

फटे हुवे मिले तिरंगे,लटके हुवे मिनारो से.
कुचला रहा है तिरंगा, कुडे कचरे के ढेरो से.

पैरो तले बिछयावा है तिरंगा,
बिछवाया है बडी सान से.

तनहा इंसान 13-08-2010.

Raje Singh Karakoti

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पर फिर भी सारे जहां से अच्छा हिंन्दुस्तान हमारा,   क्योंकि बुरा होकर भी हमारा देश बुराई नहीं करता    
सारे जहां से अच्छा हिंन्दुस्तान हमारा?.

फटे हुवे मिले तिरंगे,लटके हुवे मिनारो से.
कुचला रहा है तिरंगा, कुडे कचरे के ढेरो से.

पैरो तले बिछयावा है तिरंगा,
बिछवाया है बडी सान से.

तनहा इंसान 13-08-2010.

Raje Singh Karakoti

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मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।


चावल  अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।


माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।


साथी ऐसा चाहिये,  जैसा सूप सुभाय,
पैसा,रेजगारी गहि रहै, पैसा देय थमाय।


पैसा हाथन का मैल है, मत धरो मैल को पास,
कछु मनी माफ़िया ले गये,बाकी सट्टे में साफ़।


 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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ये तो यही हुआ सर जी कि.

सौ मे से नियानब्बे बेईमान,
फिर भी मेरा, देश महान.

दीपक पनेरू

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भ्रष्टाचार की नई परिभाषा,
कही घूस देने की परेशानी,
कही से घूस लेने की आशा,
बेईमानी में भी ईमानदारी,
भ्रष्टाचार की नई परिभाषा,

ये तो यही हुआ सर जी कि.

सौ मे से नियानब्बे बेईमान,
फिर भी मेरा, देश महान.

 

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