Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 75569 times)

खीमसिंह रावत

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khitakane is garhwali :)

दोस्तो मैने इस कविता मे एक जगह गढवाली शब्द का प्रयोग किया है.
जो भी उस शब्द को पहले पकड लेगा उसको मै एक करमा दुंगा।
दोस्तो पकडिये उस गढवाली शब्द को और अपना एक करमा बढाईये।


(फिर जीवन की वसंत आ गई)
 

गुलाब खिलकर, मुस्कराने लगा है।
कलियां खिलकर, खितकने लगी है।

 
सुन्दर सिंह नेगी 11-03-2010


jagmohan singh jayara

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नेगी जी  कवि  आप हैं,
सुन्दर आपके भाव,
छुपा है कविता में,
एक गढ़वाली शब्द,
पैदा हो गया चाव.

"खितकने" शब्द सुन्दर लगा,
छुपा इसमें अलंकार,
ऐसे शब्दों का प्रयोग कविता में,
होती ख़ुशी अपार.

हिंदी रचनाओं में,
पहाड़ी शब्दों का प्रयोग,
निज भाषा का सम्मान,
करो कवि मित्रों,
हमें अपनी संस्कृति पर,
गर्व है और अभिमान.
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु")


दोस्तो मैने इस कविता मे एक जगह गढवाली शब्द का प्रयोग किया है.
जो भी उस शब्द को पहले पकड लेगा उसको मै एक करमा दुंगा।
दोस्तो पकडिये उस गढवाली शब्द को और अपना एक करमा बढाईये।


(फिर जीवन की वसंत आ गई)
 

फिर जीवन की एक, वसंत आ गई है।
फिर से वादियां सजने लगी है।
मेरा पहाड़ मे कवि गोष्ठी, सुरू हो गई है।

फिर जीवन की एक वसंत आ गई है।
 
झरनो की रवानगी से, नदियों की छल-छल से।
कफुवे की खत-खत से, कोयल की कूक से।
पपीहे की प्यास, बडने लगी है।

फिर जीवन की एक वसंत आ गई है।
 
सैमल खिलकर धरा पर, बिखरने लगा है।
वादियों मे बुरास खिलकर, हसने लगा है।

गुलाब खिलकर, मुस्कराने लगा है।
कलियां खिलकर, खितकने लगी है।

फिर जीवन की एक वसंत आ गई है।
 
फाल्गुन के रंगो मे, चैत रंगने लगा है।
कोयल की पीडा सुनकर,
"सुन्दर" गमगीन हो गया है।

घुघुती की घुर-घुर सुनकर,
मेरी आंख भर आई है।

फिर जीवन की एक, वसंत आ गई है।
 
गेहुं की हरियाली देख, सरसो खिल गई है।
पिली-पिली सरसो देख, भवरे गुन-गुनाने लगे है।

वादियां सजने लगी है, सहनाईयां बजने लगी है।
वसंत ऋतु श्रंगार कर के, सज धज गई है।
वसंत की भीनी-भीनी, खुशबु आने लगी है।
 
फिर जीवन की एक वसंत आ गई है।
 
सुन्दर सिंह नेगी 11-03-2010


पंकज सिंह महर

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Bahut badiya daju logo maja aa gaya...

Waise kavitaye to mujhe samajh me aati nahi hain lekin Bhaw samjh thoda bahut samajh leta hu......

Bahut khub.....

कैलाश बाबू कविताओं को नहीं कवियों को बखूबी समझते हैं। ;) ;)
कविता का तो अपने को भी ज्ञान नहीं ठैरा, आप लोग लगे रहो, हम ताली बजाते रहेंगे। ;D ;D

हेम पन्त

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मैं भी ताली बजाने वालों में शामिल हूँ. मेहता जी का ’आनलाइन कवि सम्मेलन’ का विचार अनूठा है.... बहुत ही धांसू कवि और उनकी कविताएं सामने आ चुके हैं. मन गदगद हो गया...

तालियां..... तालियां... तालियां 

मोहन जी अगर ताली बजाने वाले नही होंगे तो कवि सम्मेल सफल कैसे होगा।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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सुक्रिया दोस्तो व कवि मित्रो आपने अपनी लगन से वह शब्द ढुढ लिय़ा जिसका मैने बहुत चतुराई से कविता मे प्रयोग किया था। तो सबसे पहले आर रावत जी ने शब्द ढुडा तो करमा के हकदार वही होगे क्योकी बात हुई थी कि जो पहले ढुढेगा उसे एक करमा मिलेगा.

एक बार फिर आर रावत जी, के रावत जी,जगमोहन जी आपक बहुत-बहुत धन्यबाद।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लो फिर आया बसंत
फूलो में भर लाया उमंग

बुराश फूल की लाली
छाई है हर डाली डाली
भवरे भन भनाये
कोयल मस्त होके गाये!

लो फिर आया बसंत
फूलो में भर लाया उमंग ...

खेतो में सरसों के फूल लहराए
बांज के पेड़ो पर तने नए उग आये
गेहू के पौधों की, कमर है झुक आयी
देखो कैसे है, सबके मन  भाई
 
लो फिर आया बसंत
फूलो में भर लाया उमंग ...

हवा भी मस्त होके झूमे
डानो से डानो में पहुचे

 
लो फिर आया बसंत
फूलो में भर लाया उमंग ...




 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Wah Mehta ji kavitaon main to nikhar aa raha hai likhate raho

धनेश कोठारी

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प्रियतमा बिन उदास होता है बसन्त
ढलका कर ओंस की बूंद रोता है बसन्त

सुबह उडारी भरते पंछी भी लौट आते हैं
सांझ में खुद को अकेला पाता है बसन्त

खिलखिलाने को होती है जब भी जोर-जबर
हंसने से खुद को रोक जाता है बसन्त

इस आबो-हवा में कैसे जीने का मन करे
आसमान को ताकने पर डर जाता है बसन्त

ऐसे लाल, हरे, पीले, नीले होने से क्या फायदा
शायद आयेगी बहार ‘धनेश’ इन्तजार में रहता है बसन्त॥
Copyright@ Dhanesh Kothari

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत खूब धनेश जी.... मै भी कोशिश करता हूँ (गलती के लिए क्षमा चाहता हूँ )
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 बसंत क बाहर आ रो
 फूल देई क त्यौहार आ रो

डालो में फूल भरी
घर घर नानतिन जानी
धन्य हो बसंत तवील हमार कैमा करी

 बसंत क बाहर आ रो
 फूल देई क त्यौहार आ रो

डाली -२ में बसंत, बोटी बोटी में बसंत
फूलों में हसी छो,बहारो में हसी छो
लेकिन दिल में नैरा छो
क्यों की स्वामी परदेश हो

 बसंत क बाहर आ रो
 फूल देई क त्यौहार आ रो




धनेश कोठारी

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इसी के साथ मेरा पहाड़ टीम और पहाड़वासियों को फूल संगरान्द की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

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