पहले हर कोई कच्चा होता है,
फिर कल्पना में डूबकर,
कच्चा कवि भी परिपक्व होकर,
कालजयी कवितायेँ लिखकर,
कल्पना में कहीं भी जाकर,
जैसे पर्वत शिखर पर,
आकाश और पाताल,
देवभूमि उत्तराखंड में,
कुमाऊँ और गढ़वाल,
करता है कमाल,
कवितायेँ लिख लिखकर,
ये है मुझ कवि "जिज्ञासु" की,
कविता के रूप में अनुभूति.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१३.८.१०