इस दोस्ती का अहसान मैं,
भूलू कैसे इन मतलबों में,
धन्य में समझाता हूँ खुद को,
शब्द नहीं है अब लबो में,
दोस्त कहकर काराकोटी जी,
आपने जो व्यथा सुनाई है,
आपके पैरो पर चुभे काँटों से,
मेरी आंखें भर आई है,
मोल नहीं इस प्रेम का,
जिसने पलकों पर हमें छुपा लिया,
पुछा आपसे किसी ने दोस्त के बारे में,
हसकर आपने मेरे नाम बता दिया,
करू मैं भी कुछ कोशिश ऐसी,
जोडू आपको लौ और दीपक की तरह,
कभी न आये आड़े कोई दुःख,
कभी न हो अपना विरह........
किसी ने पूछा दोस्त क्या है ?
मैने काँटो पैर चल कर बता दिया
कितना प्यार करोगे दोस्त को?
मैने पूरा आसमान दिखा दिया
कैसे रखोगे दोस्त को?
मैने हल्के से फूलों को सेहला दिया
किसी की नज़र लग गयी तो ?
मैने पल्को में उस को चुपा लिया
जान से भी प्यारा दोस्त किसे केहते हो ?
तो मैने दीपक जी का नाम बता दिया !