Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94586 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के दो महान लोक गायिकाये कबूतरी देवी जी एव कल्पना चौहान जी जो की अस्पताल में है, उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए ये दुवा :


   दो हाथ जोड़कर
  करता हूँ मै ये दुवा
  हे खुदा,
    शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर दे
  कल्पना एव कबूतरी जी का!

दीपक पनेरू

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"सुंदर जी" तीर तो कमानों से चला करते है,
हम तो कलम लिए मनमाने सब लिखा करते है,
"धरम जी" जी के शब्दों पर आपने गौर फ़रमाया होगा,
ये भी तो कभी कभी सावन में खिला करते है.......

शब्दो के तीर बहुत निराले, है तुम्हारे दिपक जी.
नामो की है माला पिरोई, तनहा ने बहुत अंजाने जी
मै नही इस मैदाने जंग मे, लिखा बहुत मन माने जी.

तनहा इंसान 16-08-2010


Raje Singh Karakoti

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हिमा हिट, हिमाला को देश जूंला,
पंछी बणी आकाश उडूंला,
लाली-लाली बुरांसी खिली ऐगे,
माटी-माटी फूंलूंला ढकी ऐगे,
प्यार पंछिन की दांग आइगे,
मेरो मन यो माया लागिगे,
हिमा हिट.....।
ओ बांजे डाई को ठंडो पाणी,
चल चुपई लै पीय ऊला,
काफल की डाई मूणा,
झित हियैकि बाल कूंला,
हिमा हिट....।
देवदारु सुवास छाइगे,
हिमचोटी चमकण लगिगे,
डावा-बोटी पराग उड़न लागि,
के भलि छबि छांजण लैगे,
हिमा हिट...।
ऊंची-नीची ऊं घाटी-बाटी,
ओ म्यार पहाड़ की प्यारी माटी,
चल हाथै ले छुई ऊंला,
हिमा हिट.....।
ओ झुकी आइगो आकाश जैति,
वां ऊंचि चोटी मा चढि वैटि,
गणि हाथैले गिणि ऊंला,
हिमा...! हिट, हिमाला का देश जूंला।


दीपक पनेरू

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मैं भी हूँ दुआ मैं शामिल,
इन विभूतियों पर दया हो तेरी,
कुशल कर दे तो इनको जल्दी,
ये विनती है दिल से मेरी,

मैं और मेरा फोरम अब,
शुरुवात दुआ की करता है,
हम तो है अज्ञान हे प्रभु,
तू तो जग का दुःख हरता है,

मेरी दुआ भी शामिल कर,
"कल्पना जी", "कबूतरी जी" के लिए,
हम जीना चाहते है अब इनके संग,
अपने लिए जिए तो क्या जिए,


उत्तराखंड के दो महान लोक गायिकाये कबूतरी देवी जी एव कल्पना चौहान जी जो की अस्पताल में है, उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए ये दुवा :


   दो हाथ जोड़कर
  करता हूँ मै ये दुवा
  हे खुदा,
    शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर दे
  कल्पना एव कबूतरी जी का!

पंकज सिंह महर

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हिमा हिट, हिमाला को देश जूंला,
पंछी बणी आकाश उडूंला,
लाली-लाली बुरांसी खिली ऐगे,
माटी-माटी फूंलूंला ढकी ऐगे,
प्यार पंछिन की दांग आइगे,
मेरो मन यो माया लागिगे,
हिमा हिट.....


इस कविता के रचयिता श्री पूर्ण मनराल जी हैं।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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दो हाथ जोड़कर विनय करता हु, कल्पना जी, कबुतरी जी.
दोनो ही है लोक गायीका, क्या खुब बताया तुमने मेहता जी.

क्यो छोड़ गया इस हालत मे तु, निकला तु बडा वेईमान.
जल्दी करना स्वस्थ दोनो को, वरना रो पडेगा तनहा इंसान.



तनहा इंसान 16-08-2010

दीपक पनेरू

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क्या दर्द भरा सपना है,
  क्यों ऐसा अपने संग होता है,
  "तनहा इन्शान" रोये जो,
  ये "दीपक" भी उसके संग रोता है,
 
  "कल्पना जी एवं कबूतरी जी",
  स्वस्थ्य आप हो जाओगे,
  वही मीठी और प्यारी वाणी से,
  फिर गीत हमें सुनाओगे.
 
  मैं सारा फोरम आपके लिए,
  दुवायें भरमार करे,
  जल्दी ठीक हो आ जाओ तुम अब,
  ये फोरम आपका इन्तजार करे......

सत्यदेव सिंह नेगी

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सुन्दर जी आपने तो हमें शब्द्विहीन किया   
कहाँ से सुरु करू कैसे कहू कहे ये नौसिखिया   
आपकी कविता हमें लेती है मंत्रमुग्ध   
खाना  पीना तक भूल बैठे बैठे भूल सुध बुध   
दीपक जी तो सच में दीपक हैं अच्छा इनका मेल   
खूब फैलाएं उजाला जलाएं खुद का तेल   
राजेसिंह जी सच में नरेश हैं इस कवितामंडल के   
जगह दें अपने महल में पंछी  को हम जैसे भूले भटके   
आप कवि हैं उच्च दर्जे के शोभित आपसे मेरा पहाड़   
मुझे जैसे तुच्छ कवि का भी लग गया जुगाड़

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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शब्दहीन न होना तुम जग मे, देवो के देव हो तुम,
ये क्या कह दिया तुमने, सबके प्यारे सत्यदेव हो तुम.

तनहा की लेखनी पर, मंत्र मुग्ध हो जाते हो तुम.
तनहा भी नौसिखिया है, ये कैसे भूल जाते हो तुम.

तनहा इंसान 16-08-2010

Raje Singh Karakoti

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लौट बे एजाओ आब म्यारा पहाडा
धात लगे लगे बुलानी या गढ़यर गाडा
गाढ़ मे दहौ पदान हैगो आब घर आओ
काफल किल्मौड पाक एबेर खै जाओ
धर नोहों को ठंडो पाणी द्वि घूट पि जाओ
लौटी बे .................................

रूढी का घामा उदेख दिना हिय भरी आणि
आम डाई मुन चली रे पौना सर सर सर बुलानी
द्वि घडी निकल बे टेमा यो मूं बैठ जाओ

लौट बे ....................................
ह्यों का दिना धुपरी घामा बैठी क्विढ़ लगानी
भाँग का लूणा निमुवा सानौ मिली जुली खानी
आग तापने आमे की आहनी,जवाब दी जाओ
लौट बे .........................................

बिनती सुणी लियो मेरी लगे बेर काना
परदेश भूली बेर तुम याँ लगाओ ध्याना
जन्मभूमि तुमारी छो यौ करमभूमि ले एति बनाओ
लौट बे ..............................................

पुरखों कुड़ी उधर बे तली ऐगे ऐ बेर छे जाओ
खेती बाड़ी सब बांजी पड़ गयी ऐ बेर कमै जाओ
स्वर्ग छू यौ देवों की भूमि आपण नानाक यौ समझाओ
लौट बे ऐ जाओ .....................................
धात लगे लगे बुलानी यौ गधयर गाडा I

 

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