Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94588 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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कबूतरी जी आप हो इस धरा पर संस्कृति की माला   
आपने इस देवक्षेत्र तो एक धागे में पिरोडाला     
सभी करें बिनती एक सुर में उस विधाता से     
आपके स्वास्थ्य की गुजारिस है उस दाता से     
है हमें विस्वास अटूट उस दाता के न्याय पर     
देगा सबको अच्छी खबर आपको ठीक कर   

दीपक पनेरू

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हम सारे ही नौसिखिये है, ऐसे सीखा तो जाता है,
वीर अर्जुन पुत्र अभिमन्यु कि तरह यहाँ,
कौन पेट से सीखकर आता है,
कुछ हमने लिखा और कुछ आपने,
फिर शब्दों का गोलमोल हुआ,
पहाड़ी और अंग्रेजी शब्दों संग,
ये कविताओं का कैसा झोल हुआ,


शब्दहीन न होना तुम जग मे, देवो के देव हो तुम,
ये क्या कह दिया तुमने, सबके प्यारे सत्यदेव हो तुम.

तनहा की लेखनी पर, मंत्र मुग्ध हो जाते हो तुम.
तनहा भी नौसिखिया है, ये कैसे भूल जाते हो तुम.

तनहा इंसान 16-08-2010


दीपक पनेरू

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बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ है नेगी जी अति सुंदर


कबूतरी जी आप हो इस धरा पर संस्कृति की माला   
आपने इस देवक्षेत्र तो एक धागे में पिरोडाला     
सभी करें बिनती एक सुर में उस विधाता से     
आपके स्वास्थ्य की गुजारिस है उस दाता से     
है हमें विस्वास अटूट उस दाता के न्याय पर     
देगा सबको अच्छी खबर आपको ठीक कर   

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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दिपक तुम्हारी दुवाओ पढकर, चढा तनहा को भी बुखार,
नेगी जी की लेखनी पढकर, हुआ तनहां फिर से बिमार.
तनहा को छोड़ो तनहा, क-क के लिए दुवाऐं करो हजार.

तनहा इंसान 16-08-2010

दीपक पनेरू

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अरे आप क्यों मुरझाते हो,
हम लोगो को तो ये रोग लगा,
बिना ज्ञान, बिना धूनी के,
ना जाने कैसा जोग लगा,

आप कवि हो अपने नाम से सुंदर,
शब्दों का अच्छा ज्ञान है पाया,
मैं सोचू आप ये क्यों लिखते हो,
ये सोच मेरा दिल भर आया......

सच्ची में महाराज....

दिपक तुम्हारी दुवाओ पढकर, चढा तनहा को भी बुखार,
नेगी जी की लेखनी पढकर, हुआ तनहां फिर से बिमार.
तनहा को छोड़ो तनहा, क-क के लिए दुवाऐं करो हजार.

तनहा इंसान 16-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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मेरा गांव मेरा पहाड़, कितना है तेरा प्यार निराला.
ठंडक की तो खान है तु, गरम पिलाये चाय का पयाला.
कोंन है ऐसा जो नही जानता, कोंन नही तेरा मतवाला.

तनहा इंसान 16-08-2010

सत्यदेव सिंह नेगी

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खूब चल रहा शीत द्वंध कलम के दो वीरों का   
मजे लुट रहा सत्यदेव चमक देख हीरों का   
तेज है दीपक में तो आभा सुन्दर  की अमिट   
देख मेरे चक्षु असमंजस में ऐसा मुझे प्रतीत   
एक वार करे दूजा कटे शब्द की बारिश हुई   
स्तब्ध हूँ मैं भी भीगूँ एक और गुजारिश हुई   
प्रेम मन्दाकिनी में खूब लगाऊं दुबकी   
तुम जैसा मै भी हो जाऊं अभिलाषा मेरे मन की 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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दो दिन का है जीवन का मेला, यही सभी कहते है दिपक.
मै कैसे जानु मन का विरह तुम्हारा, सबके प्यारे दिपक.

बाकी बचा है जीवन का मेरा, एक दिन का और मेला.
तनहा समझा तुमहै उजाला, जीवन है मेरा मिट्रटी का ढेला.

तनहा इंसान 16-08-2010

Raje Singh Karakoti

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तनहा की व्यथा सुनकर दिल हुआ गमसार  क्या  हमेशा ऐसा ही था तनहा  दुखी और लाचार !!  गुज़ारिश यही है तनहा से की अपनी व्यथा बताओ   कुछ हमारी भी सुनो और कुछ अपनी सुनाओ !!   
 
दो दिन का है जीवन का मेला, यही सभी कहते है दिपक.
मै कैसे जानु मन का विरह तुम्हारा, सबके प्यारे दिपक.

बाकी बचा है जीवन का मेरा, एक दिन का और मेला.
तनहा समझा तुमहै उजाला, जीवन है मेरा मिट्रटी का ढेला.

तनहा इंसान 16-08-2010

सत्यदेव सिंह नेगी

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सच में रोग है ये प्रेम ये मैंने आज जाना   
दोनों प्रेमियों में है कविता का खजाना   
एक दूजे को हिम्मत दे देख मै नादान सन्न   
लड़ते हो या खेल है ये या ये दोनों का फन 
चलता रहे तुम दोनों का ये फंसना फ़साना   
मुझे भी नित मिलता रहेगा नया अफसाना   
राजे सिंह जी बिच बिच में लगाके ठुमके   
मै भी सोचूं आयटम बॉय है इस क्रिकेट के

 

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