Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94567 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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दीपक जी करे खूब बढाई भाये मन को
यूँ लगे ज्ञान संग मिले तोहफे इस जन को
शब्द है सभी तुम्हारे कुछ मांगे कुछ  लिए चुरा
पता तो है आपको भी पर न माने अब तक बुरा
युही को किसी को भला क्यों गुरु गुरु पुकारता
गुरु भी है शालीन अंदाज उनका हैं सबको सुहाता

दीपक पनेरू

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लो मैंने भी सैकड़ा मार दिया,
  अब तो ख़ुशी का ठिकाना ना रहा,
  ये तो बधाई देने वाली बात थी शायद,
  क्यूंकि "राजे जी" ने मुझे सबसे पहले कहा,
 
  क्यों "नेगी जी" क्या सोचते हो,
  मुझ भोले का संशय दूर करो,
  अपने जैसे तीरों से अब तुम,
  मेरे सर्कस को भरो......
 
  सर्कस (तीर रखने की वस्तु)
 
 

दीपक पनेरू

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नेगी जी अपने क्या खूब हुनर है पाया,
  जैसे शब्द तथा भावों का सागर,
  मैं तो लिखता अति सीधे शब्दों में,
  पर आप जो लिखे ओ "गागर में सागर"
 
  क्यों "मेहता जी" और "दयाल जी" ने,
  हम लोगो से मुह मोड़ लिया,
  वादा किया था संग चलने का,
  क्यों यहाँ अकेला छोड़ दिया,
 
  हम नादान अज्ञानी इस जंग में,
  बस कुछ शब्दों का ज्ञान है आया,
  जो हम लिखते है "मेहता जी",
  ओ सभी आप लोगो से है पाया,.....
 

dramanainital

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सत्यदेव सिंह नेगी

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सही फरमाएं दीपक गुरु ज्ञानी
आपकी सीधी है भाषा जुबानी
 
 
 
.
हो मुबारक आपका ये सैकड़ा हमें
हो गए हम कायल आपके जमे जमे
   
 
 
.
लम्बाई कविता की हो ये आजा से नया पाया
रोज दें खूब ज्ञान मैंने कई कई से है नपाया
   
 
 
.
इस बाल कवि मंडल के आप हो सिकंदर
हम सब चेले हैं आपके सीखें गुर  निरंतर
   
 
 
.
आपसे शोभित होते हम और राजेसिंह तनहा
चलो नया देखें आपका रुकू मै एक और लम्हा
   
 
 
.
मेहता जी और दयाल जी की लगती रुसवाई
चलो आपसे तक तक और लूटें हम ठेठ गवाई
   
 
 
.
सुंदरजी और राज से आपका देख दंगल
लडें आप निरंतर होता rahe  हमारा मंगल
   
 
 
..

dramanainital

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  सर्कस (तीर रखने की वस्तु)
 
  sarkas ni hun tarkash hoon.shaayad.

सत्यदेव सिंह नेगी

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तुकबंदी करा जा रहा मै, न होना कविवर नाराज 
खता हो मुझसे अज्ञानवश, न बिगड़े आपका मिजाज
न बनू मै किसी की राह में, छिलका किसी केले का
न सह सकू फिसलन आपकी, स्वाद न बिगड़े मेले का
देना सन्देश अगर असंभव, सा लगे मेरा कविता बेडापार
मै समझूंगा न लगे श्वेत कोयला, kitna ghiso बारम्बार 
इस सम्मलेन में महाकवियों की, कमी अखरती भारी
मुह न मोड़ो वजह हमारी, सच्चाई का मै सदा पुजारी
सत्यदेव नाम है मेरा निभाना इसे सदा मेरा रहे प्रयास
मत करो और अनुजों को , वजह मेरी तुम उदास
मेहता जी दयाल जी पकज भाई, आपकी बेरुखी सब पर है भारी
अब बरस जाओ मेरे महागुरु , नहीं तो चलता ये मदारी

Raje Singh Karakoti

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  मेरे उनकी जुबान शादी के बाद…

अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को खेत भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
खाट पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज खेत जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…

ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…

क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे….

सत्यदेव सिंह नेगी

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Greate Sir

  मेरे उनकी जुबान शादी के बाद…

अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को खेत भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
खाट पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज खेत जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…

ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…

क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे….


सत्यदेव सिंह नेगी

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राजे जी कहा हो सुबह से
ढूंढ़  रहा हूँ मै अपनी मंडली
कहाँ हैं सुदर जी कहाँ हैं दीपक भी
कहदो उनसे फिर से पुरवाई चली
बाट जोह रहे सदा की तरह
लगते चक्क्कर कभी इस गली तो उस गली
आजाओ मैदान में सभी कविगन
राजे जी ने है हुंकार भरी

 

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