रहता था एक बलिष्ठ शेर हिमालय की किसी कन्दरा में , लौट आ रहा था कर शिकार भक्षण भैसे का था मस्ती की मुद्रा में ,
तभी मिला रस्ते में एक सियार कमजोर करने लगा लेटकर प्रणाम चुगलखोर ,
बोला शेर क्यों हो गिरते इतना क्या चाहिए सीधे से बोलो ना ,
झट से चालाक सियार करने लगा मिन्नत
लेलो शरण में हे राजन कबूल करो मेरी खिदमत ,
करूँगा सफाई गुफा की गर आपको जंचा
करूँ चाकरी आपकी खाऊँगा जूठा जो भी हो बचा ,
सोचा शेर ने है चतुर ये कर लेता हूँ मित्रता इसकी
मेरा कुछ बिगाड़ सके ना हैसियत किसीकी ,
कुछ ही दिन में खा खाके शेर का जूठा
सियार भी होता गया बहुत मोटा मोटा ,
रोज देखता पराक्रम शेर का
समझने लगा वो खुद को भी उसके जैसा ,
बोला मस्ती में एकदिन जोर से
ऐ शेर मै तेरे से कहाँ कम सुन गौर से ,
आज ही हाथी मारूंगा मै अच्छा
अब तेरी बारी है खाने की बचा खुचा ,
मित्र कहा था तो समझा इसे उपहास
बोला मत करना मित्र तुम ऐसा प्रयास ,
दम्भी सियार न माना गया चोटी पर,
देख हाथी झुण्ड का कूदा उछल कर
सिर में उसके पैर रखे गजराज आगे बढ़ गए
तब तक सियार हे प्राण पखेरु उड़ गये।
हरकतें देख सिंह ने तब यह कहा हे कुमति
होते हैं जो मूर्ख और घमण्डी होती है उनकी ऐसी ही गति