Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94555 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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  अपने जैसे तीरों से अब तुम,
  मेरे सर्कस को भरो......
 
  सर्कस (तीर रखने की वस्तु)
 
 

सर्कस नहीं दाज्यू............."तरकस"

"तरकस" में ही तीर रखे जाते हैं |

सत्यदेव सिंह नेगी

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महंगाई के इस आलम में दल हैं मालामाल
थोडा थोडा क्यों नहीं दें बाँट आम आदमी है फटे हाल
क्या लोगों की तड़प से खजाना आपका है बढ़ता
क्या रोके घडियाली आंसू पक्ष विपक्ष का ये मायाजाल
प्रजातंत्र है ठगते रोज प्रजा को क्या यही है पेशा तुम्हारा
राजनीती अब सब ढोंग है अच्छे लोगों का है अकाल
कब तक नोचोगे तुम इस प्रजा को किसे फुर्सत पूछने की
लगा मरने आम आदमी गया गोश्त बच गया कंकाल

सत्यदेव सिंह नेगी

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बड़ी शांति है इधर आज, कवि न आरहे इस ओर
कविसम्मेलन के हॉल में, अकेला बैठा मै कमजोर
गडिया जी आके लेके, थोड़े से संसोधन तरकस
मै सोचा है आज नया मुकाबला, बैठा सुबह से मै कमरकस
दीपक जी तो भावुक हैं राजे सिंह का मिजाज अजीब
सुन्दर जी ब्यस्त फेसबुक में लेन गए नई तरकीब
मेरे पहाड़ के इस गुलदस्ते में लगाई किसने सेंध
बल्ला किल्ली पैड है गायब क्या करे अकेली गेंद


Raje Singh Karakoti

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देखो आज फिर आकाश में घनघोर घटा छाई है
मंद-मंद चलती फिर से पुरवाई है
जंगलो मे  भी मयूर लगे हैं नाचने
फिर ये हमारे कविवर किसकी राह लगे ताकने
 
बड़ी शांति है इधर आज, कवि न आरहे इस ओर
कविसम्मेलन के हॉल में, अकेला बैठा मै कमजोर
गडिया जी आके लेके, थोड़े से संसोधन तरकस
मै सोचा है आज नया मुकाबला, बैठा सुबह से मै कमरकस
दीपक जी तो भावुक हैं राजे सिंह का मिजाज अजीब
सुन्दर जी ब्यस्त फेसबुक में लेन गए नई तरकीब
मेरे पहाड़ के इस गुलदस्ते में लगाई किसने सेंध
बल्ला किल्ली पैड है गायब क्या करे अकेली गेंद

सत्यदेव सिंह नेगी

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सावन के महीने में सुस्त हो गए सभी कबी 
ले रहें लुफ्त मस्त मौसम का ये मै सोचूं अभी अभी
घटायें और पुरवाई का जी भर लेलो नजारा खूब
कल ये मौसम हो न वो फिर गर्मी से जाओगे ऊब
आजाओ इस तरफ भी यदा कदा न जाओ इस माहौल को भूल
सुबह से झाड़ रहा कुर्सियां थक गया उड़ा उड़ा मै धुल
देखो आज फिर आकाश में घनघोर घटा छाई है
मंद-मंद चलती फिर से पुरवाई है
जंगलो मे  भी मयूर लगे हैं नाचने
फिर ये हमारे कविवर किसकी राह लगे ताकने
 
बड़ी शांति है इधर आज, कवि न आरहे इस ओर
कविसम्मेलन के हॉल में, अकेला बैठा मै कमजोर
गडिया जी आके लेके, थोड़े से संसोधन तरकस
मै सोचा है आज नया मुकाबला, बैठा सुबह से मै कमरकस
दीपक जी तो भावुक हैं राजे सिंह का मिजाज अजीब
सुन्दर जी ब्यस्त फेसबुक में लेन गए नई तरकीब
मेरे पहाड़ के इस गुलदस्ते में लगाई किसने सेंध
बल्ला किल्ली पैड है गायब क्या करे अकेली गेंद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आदरनीय कवियों,

उत्तराखंड के आन्दोलन को याद करते हुए क्या कविताये यहाँ पर पड़ने को मिल सकते है क्या?

सत्यदेव सिंह नेगी

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रहता था एक बलिष्ठ शेर हिमालय की किसी कन्दरा में ,   
लौट आ रहा था कर शिकार भक्षण भैसे का था मस्ती की मुद्रा में ,   
तभी मिला रस्ते में एक सियार कमजोर  करने लगा लेटकर प्रणाम चुगलखोर ,   
बोला शेर क्यों हो गिरते इतना   क्या चाहिए सीधे से बोलो ना , 
झट से चालाक सियार करने लगा मिन्नत   
लेलो शरण में हे राजन कबूल करो मेरी खिदमत ,   
करूँगा सफाई गुफा की गर आपको जंचा   
करूँ चाकरी आपकी खाऊँगा जूठा जो भी हो बचा ,   
सोचा शेर ने है चतुर ये कर लेता हूँ मित्रता इसकी   
मेरा कुछ  बिगाड़ सके ना हैसियत किसीकी ,   
कुछ ही दिन में खा खाके शेर का जूठा   
सियार भी होता  गया  बहुत मोटा मोटा ,   
रोज देखता पराक्रम शेर का 
समझने  लगा वो खुद को भी उसके जैसा ,   
बोला मस्ती में एकदिन जोर से   
ऐ शेर मै तेरे से कहाँ कम सुन गौर से ,   
आज ही हाथी मारूंगा मै अच्छा   
अब तेरी बारी है खाने की बचा खुचा ,   
मित्र कहा था तो समझा  इसे उपहास 
बोला मत करना मित्र तुम ऐसा प्रयास  ,   
दम्भी सियार न माना गया चोटी पर,   
देख हाथी झुण्ड का कूदा उछल कर   
सिर में उसके पैर रखे गजराज आगे बढ़ गए   
तब तक सियार हे प्राण पखेरु उड़ गये।
हरकतें देख सिंह ने तब यह कहा हे कुमति   
होते हैं जो मूर्ख और घमण्डी होती है उनकी ऐसी ही गति

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आन्दोलन

जल रहा था हिमालय
हर तरफ थी मसाले
हर कौने से
सिर्फ एक ही था नारा
आज दो, अभी दो
उत्तराखंड राज्य दो 

सत्यदेव सिंह नेगी

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सच फ़रमाया आपने ये अफसाना
दमन पर था शासन कठिन था टिक पाना
न था कोंई अपना सोये में थे सियासतदार
उपेक्षित थे हम पहाड़ी न थी विकास की बयार
आजादी के परिदों ने तब बहाया अपना खून
छोड़ दिए खेत खलिहान अजब सा उनका जूनून
आजादी मिली तो लूटें  मलाई  सियासतदार
चाटुकारों का प्रभाव है ठगे से हैं सिपहसलार

दीपक पनेरू

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धन्यवाद जी बिलकुल यो तरकश होता है जी..........



  सर्कस (तीर रखने की वस्तु)
 
  sarkas ni hun tarkash hoon.shaayad.


 

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