Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94554 times)

दीपक पनेरू

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धन्यवाद जी बिलकुल यो तरकश होता है जी.........गडिया मैं ठैरा अल्प ज्ञानी तरकश जी जगह सर्कस ही लिख दिया.........क्या करें सम्भालों सब ........




  अपने जैसे तीरों से अब तुम,
  मेरे सर्कस को भरो......
 
  सर्कस (तीर रखने की वस्तु)
 
 

सर्कस नहीं दाज्यू............."तरकस"

"तरकस" में ही तीर रखे जाते हैं |

दीपक पनेरू

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ये किसके पापो का घड़ा अब,
उत्तराखंड पर फूटा है,
चोर, उचक्के, बदमाश यहाँ,
जिन्होंने लाखों को लूटा है,

मरते अबोध मासूम ओ बच्चे,
जिन्होंने अभी अभी चलना सीखा है,
क्या किस्मत लेकर आये माँ बाप,
क्या बच्चों के भाग्य मैं लिखा है,

ये बारिश का कहर बन क्यों,
प्रभु हमसे रूठा है,
उत्तराखंड की पावन धरती पर,
क्यों कहर बन कर टूटा है,

कही टूटकर गिरे पर्वत,
कही नदिया है जोरो पर,
दुखियों की किसी को खबर नहीं,
नेता लगे पैसे के जोरो पर,

अब इस दुःख की घडी में भी ये,
अपनी जेबों को गरम करें,
जिनको जरुरत है इनकी अब,
उनके लिए तो कुछ शर्म करें.

फिर बना "लेह", "लाह झेकला"
ये इन पापियों के पाप का साया है,
इस पावन उत्तराखंड को हर पल,
इन दुष्टों ने ऐसे ही सताया है.........

अब संभल  जाओ भाइयों,
इनको जड़ से साफ करो,
मरना तो सबको है एक दिन,
क्यों न उत्तराखंड के लिए मरो.

प्रभु दे शांति उन पीड़ितों को,
जिन्होंने इस दुःख को उठाया है,
किसी ने खोया घर बार यहाँ,
किसी ने बच्चों को गवाया है,


रचना दीपक पनेरू,
दिनांक 19 - अगस्त - 2010

दीपक पनेरू

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ये प्यारी फूलों की क्यारी,
  किसको इसकी नजर लगी,
  क्या फिर उगेगे वही फूल यही पर,
  ऐसी फिर क्यों आस जगी,
 
  क्यों कुदरत ने कहर बरपाया,
  बच्चों ने क्या कुसूर किया,
  किसी कि करनी इन पर बरसी,
  क्यों  इनको हमसे दूर किया,
 
  क्यों पावन भूमि पर ऐसी,
  अनहोनी ने जनम लिया,
  किसी कि करनी कोई भरे,
  क्यों ऐसा कोई करम किया,
 
  क्यों हर "दल" अब रोता है,
  इनको होनी का पता नहीं,
  मौसम विभाग, आपदा प्रबंधन,
  क्यों समय से जगा नहीं.
 
  क्या अब इस जगह कि सुन्दरता,
  ये अब फिर वापस ला सकते है....
  भावनाओ का मोल ख़तम हुआ,
  क्यों एक दुसरे को तकते है,....
 
  फिर कोई "कपकोट" न बन पाए,
  ऐसा सकल्प अब लेना होगा,
  तन, मन, धन जो भी बन पड़े हमसे,
  ओ अब दिल से देना होगा.......
 
  रचना दीपक पनेरू
  दिनांक १९-०८-२०१०

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                    "कुदरत का खेल निराला"

कुदरत का अपना खेल निराला, हारा उसके आघे, हर इंसान.
कोई बनती प्यारी दुलहनियां, कोई करता उसका, कन्यादान.

आंखों के कोने नम है तनहा के, क्यो जुल्म ढाया तुमने भगवान.
चार दिन की जिन्दगी है तनहा, सभी है इस धरती के, मेहमान.

रो-रो कर सिसकीया भर रहे, माया, ममता, मंजु, दिवान.
मम्मी पापा थाम कलेजा, देहरी मे बैठै है, सुनसान.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान
19/08/2010 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                         "पाने को उत्तराखण्ड़"
मैने जन्म लिया, आजाद भारत मे, सन उन्नीसा सौ ईक्कासी को.
बनता देखा जन्म भुमी को पृथक राज्य, नौ नवम्बर, दो हाजार को.

खून बहाया भोली जनता ने, चम्मचो, नेताओ को मिली उसकी पहचान.
भुल गये वो उत्तराखण्ड पाकर, माँ, बहन, बीरो, भाईयो का बलिदान.

मेरा- मेरा कहने वाले, खुब जमा हुए, वेईमान इंसान.
पहाडो़ की भोली जन्ता को, चिढाया कुछ अंदाजे सुनसान.

माँ, बहनो ने दाव लगाई ईज्जत, पाने को पृथक उत्तराखण्ड.
मिठे सुनहरे सपने देखे, कुर्वान किया अपना, तन,मन,धन.

ऐसे-ऐसे नेता बने, जो जनता के पैसे से पहुचे, संसद भवन.
अपनी गलती पर खुद रो रहा, आज उत्तराखण्ड का हर जन-जन.

कब खिलंगे जन के सपनो के फूल, उत्तराखण्ड के उपवन मै.
हमारी भोली भाली जनता के सपने, कब पहुचंगे, संसद भवन मे.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान
19/08/2010.

सत्यदेव सिंह नेगी

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हम सब खिलौने हैं उस प्रभु के, वही है सबका रखवाला
है हम सब अभी दुखी दिल, उसका इन्फास बड़ा निराला
खड़े सभी नतमस्तक, दे शांति आत्मा जो को भी हैं मरे
दे ताकत अपनों को सह सकें दुख, विधाता तू इतना करे 
दिल पसीजा  देख कहर कुदरत का, है सिरहन अभी
दे सदबुद्धि गुनाहगारों को, सुधर जाओ तुम कभी
दोषी हैं ये तेरे, पहाड़ को दिया इन्होने खोद 
रोक तेरे जल को स्वार्थवश, बांध बनाये हैं कितने अबोध
इनकी करनी का फल हे प्रभु, न दो मासूमों को अब
जग गए हैं हम सभी प्रभु, निबटेंगे इनसे मिल हम सब

सत्यदेव सिंह नेगी

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सुन्दर जी बात करे उचित जनता है भोली 
किस जनता की करें बात जो बोतल की होली   
कहे नेगी जी "हाथल हुसकी पिलाई फूल ला पिलाई रम"   
अपना भला बुरा न सोचे इसी बात है है गम   
पहाड़ अभी तक बच्चा है बिन शिक्षा के है नादान 
पलायन कर जाते आप हम पढ़ लिख कर हो विद्वान   
साचो क्यों नहीं पनपा ज्ञान क्यों नहीं हैं स्कुल में शिक्षक   
रहे सदा अज्ञानी पहाड़ है किसका ए प्रयास अथक 
पढ़ा सन पिच्यासी में तब थी स्कूल में विज्ञान बाइलौजी और  गणित   
आज न बाइलौजी विज्ञान गणित वहां पड़ें आर्ट्स बने पंडित

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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हमारे पहाडी़ लोग औरो के मुकाबले
सिधे साधे ही होते है सत्यदेव जी.
नर हो या नारी, देश हो या परदेश जी.

तनहा इसान


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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क्यो नही कर रहा उजाला, है दिपक फोरम पर,
तनहा नही कर सकता दुवाए, अकेले अपने दम पर.

तनहा इसान 19-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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तनहा नही मुस्करा सकता, इस शोकाकुल की घडी़ मे,
महसुस होता है दुख तनहा को भी, बागेश्वर की उस नगरी मे.

जान गवाई मासुम बच्चो ने, गुरू भी सिधार गये स्वर्गलोक.
तनहा रोया फिर तनहाई मे, तनहाई मे ही मना रहा हु शोक.


तनहा इसान 19-08-2010

 

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