Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 77349 times)

Vinod Jethuri

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प्रेम पुजारी, प्रेम  दिवानी..
प्रेम की एक, छोटी सी कहानी...!
ईन्तजारी मे, बैठि है किसी की
पास मे नदी का, बहता पानी....!!


गया था कोई, उसे छोडकर
फिर न देखा, पिछे मुडकर...!
अन्त मिलन की, जगह येही है...
पार गया ओ, सात समुन्दर....!!


हर दिन ओ, यंहा है आती..
कुछ समय, अपना बिताती..!
मन का बोझ हल्का होता
शायद अपने मन को बहलाती..!!

हाय ये कैसी प्रेम मजबुरी ?
फुट-फुट कर, कभी ओ रोती..!
प्रेम के रन्ग का, पी गयी पानी
जैसे क्रष्ण के रंग मे, राधा दिवानी..!!

प्रेम पुजारी प्रेम दिवानी
प्रेमी कोई ना देखी येसी..!
तडप रही है, झुलस रही है
फिर भी उसको ना भुल पाती..!!

"प्रेम की पुजारी, प्रेम की दिवानी
प्रेम की एक, सच्ची कहानी
ईन्तजारी मे, बैठि है किसी की
पास मे नदी का, बहता पानी...."

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तेज दौडती गाडी को देखा
तो जिन्दगी का ख्याल आया
जिन्दगी भी तो एक गाडी है दोस्तो
जिसे मैने बहुत तेजी से दौडते पाया

चलति गाडी से पिछे, मुडके जब मैने देखा
मोह माया कि दौड मे, सबको दौडते पाया
क्या पता कब रुक जाय, सफ़र ईस गाडी का
क्योकि कब किसपे से हटा दे, ओ मालिक अपनी साया

पुन्य, दया, धर्म के रास्तो को. सदा खाली पाया
कोर्ध,ईर्श्या,लोभ,माया, के रास्तो पर. बडा जाम पाया
खाली रास्तो पर होगा कठिन, भीड मे आसान चलना
न भर्मित हों हम रास्तो से, सभी को वही है जाना

दुख:सुख के पहियों पे, गाडी को है चलना
कभी सर्दि तो कभी गर्मी, कभी मौसम बेगाना
क्या लेके थे आये, क्या लेके है जाना..
दया धर्म का मुल है, यही सबसे बडा खजाना

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वक्त हर जख्म तै भूलै  देन्दू :-

क्वी कैकू बगैर, नी मूरदू.!
झूट छ कि मै नी रै सकदू
समय बडू बलवान छ दगडियों ..
वक्त हर जख्म तै भूलै  देन्दू.. !!


चोट लगली ता दर्द भी होलू !
हर दर्द कू क्वी उपचार ता होलू ?
दवैयी क बान भटकणू छौ मी..
यी दवैयी खुनी, कै डाक्टर मू जौलू ?


मी तै यू कन रोग लगी होलू ?
उफ़्फ़, दर्द मेरू यू बढदी जान्दू.
कब ऊ दिन आलू हे दगडियों !
जब मै बटी यू रोग मिटी जालू..


समय लगलू पर ठीक हवे जौलू
मीन भी कैकू दिल दुखै होलू
जन करलू बल तन ही भरलू....
वांकू ही शायद फ़ल मिनू होलू


अपणू तै क्वी, कमी नी चान्दू !
ती खूनी भी मै कमी नी करदू
तीन बस अपणी सूख की सोची..
हैकू कू बारे मा भला क्वी सूचदू ?

क्वी कैकू बगैर, नी मूरदू ...!
झूट छ कि मै नी रै सकदू
समय बडू बलवान छ दगडियों ..
वक्त हर जख्म तै भुलै देन्दू.. !!

Copyright © 2010 Vinod Jethuri, 14th Sep 2010 @ 22:52 PM
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धोनी ती खुनी, बहुत बधायी..
उत्तराखन्ड सी, प्रेम दिखायी..!
साक्षी सी होयी,  सगायी..
चट मंगनी और, पट ब्याह करायी !!


अल्मोडा छ जीला, गांव छ लवाली
पालन पोषण, रांची मा हवायी...!
पिताजी पान सिहं, माताजी देवकी
जयन्ती बैणी, जितेन्द्र छ भाई...!!


कै सन जरा भी, खबर नी हवायी.
साठ आदमियों की, बरात लिजायी !
महान आदमी, छयी तू धोनी.....
महानता कु, परिचय करायी....!!


स्यालियोन तैतै, दे होलु गाली..
जुता भी. होलु लुकायी.....!!
ढोल-दमो मा, लगी होलु मन्डाण
मुसाकबाज भी, होलु बजायी..!!


मैच मा खेली, ट्वन्टी-ट्वन्टी..
पर साक्षी न,  बोल्ड करायी.!
सुखमयी हो, सफ़र सुहावना
जीवन की या नयी पारी...!!


अपणी सन्सक्रति सी, प्रेम दिखायी
उत्तराखन्ड कु, मान बढायी....!
जुगराज रैया, तुम दवी का दवीयी
हमारी सुभकामना, तुमतै छायी..!!


"पहाडी छौ मी, पहाडी ही रौलु
पहाड सी प्रेम, रौलू  सदा..!
हंसा-खेला और, फ़ला फ़ुला..
अपणु पहाड कु, नाम बढा..!!"


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यु छ मेरु, ऊ छ तेरू:-

यु छ मेरु, ऊ छ तेरू
द्वीयोंमा पुडयु झमेलु..!
बिच बचाण गै छ मीता
बणिग्यो ईन जन पिचक्यु गन्देलू


क्या मिललू और क्या ह्वे जालु ?
द्वेष छोडीक प्रेम अपनालू !
भोल कु क्वी पता नी छ लाटू..
पल भर मा पतानी क्या ह्वे जालू !!


ईक बुनू छौ मी छौ बडू..
हैकु बुनू छौ मी नीछ छुटटू !
सभी मनखी एक समान ..
पैसो पर छ क्या भरोशू ? !!


बीच बचोव मा अब नी जौलु !
युं झगडो सी दुर ही रौलु..
अहकार मा स्यो-बाघ बन्या छन
यों बाघो सी मै खये जौलु


"कत्का सुन्दर होली दुनिया
जु मिली जुली क राय
छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
प्रेम कु बाठु अपनाय"..

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आवा बौडी


आवा बौडी आवा बौडी
अपणो तै ना जावा छोडी
यखुली छाजा मा बैठी छ बोडी
बोडा लेण छ लखडा तोडी
धै लगाणा छ्न बाजा कुडी
मेरा अपणो आवा बौडी


मै अभागी ईन भी रायी
ब्यो करि तै ल्यायी ब्वारी
पहली हि महिना चली गेय दिल्ली
बुढि-बुढिया हम रै गें यखुली
बुढि-बुढियों तै जावा ना छोडी
मेरा अपणो आवा बौडी


दादा मनु छ हुक्का कि सोडी
पर आन्खियों मा नाति कि मुखडी
सालो हवेगेन नाती नी बौडी
सभी चली गेन हम तै छोडी
मेरा अपणो आवा बौडी
हमतै ना जावा छोडी


दादी की ता झुरी गे जिकुडी
लडिक ब्वारियों का बाठा देखी
गोर गुठ्यार भैसियों कि तान्दी
आज देखा सब पुडियां छ्न बाझी
आवा बौडी आवा बौडी
अपणो तै ना जावा छोडी



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टिपडा (जन्मपत्री)


दिल ता मिली गे छ पर
टिपडा नी जूडी
नौनू-नौनी की पंसद भी हवेगे छ पर
टिपडा नी जूडी
पहली ता पन्डाजी न बोली कि
टिपडा नी जूडी
पांच सौ कू नौट दिखायी ता
बिन दिख्या...
टिपडा भी फ़ट जूडी..
टिपडो का पैथर
टपरै ग्या हम.
पन्डाजीन बोली ता
भरमै ग्या हम.
कत्का सच्चाई छ यी बात मा
टिपडा नी जूडी ता.!
अनहोनी होली
टिपडा जू जूडी ता
सूख-शान्ति राली.
आवा दगडियो पता लगौला.
सतमगल्यो कू टिपडा जूडौला
औन्सियो कू ब्यो करौला
टिपडो क पैथर.
रुकणा छन जू
ऊ टिपडो तै भूली जौला.


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Dhanybaad dosto aur bhi bahut si kavitaye hai jo maine abhi tak apne blog me bhi post nahi ki hai bahut jald blog me bhi post kar dunga aur phir yahn par bhi..
Jai Devbhumi Uttarakhand

Vinod Jethuri

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वह भी खूश थी, मै भी खूश था
एक दूसरे को पाके .....
जो भी मांगा था रब से मैने
वह पाया था उसमे मैने
बडे-बडे सपने देखे थे
साथ जिन्दगी बिताने के
उड गये सारे सपने
एक हवा के झोके से
हवा का झोका कुछ यों आया
कि अन्धविस्वासो की लहर मे.
मेरी सारी खुशीया ले गया..:(
मै तडप रहा हू !
रो रहा हू...!
किसे अपनी सुनाऊ ?
जिसे सुनाना चाहू पर
उसे निन्द से कैसे उठाऊ ?
अर्धरात्री हो चुकी है
नीन्द मुझे क्यों न आती ?
उसको भूलना तो चाहू पर
उसकी यांदे दिल से ना जाती
कुछ सोचता हू, समझता हू
यो ही अपने दिल को मनाये जा रहा हूं
अगर ओ ना मिली जो तो..
उसके बिना, कैसे जी पाऊ ?


8 September 2010 @ 23:38 PM
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काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता....
रोड पे ना कोई भुखा मरता!...
पैसे कि क्या होती किमत ??
क्या जाने ओ.........
जो कोई महलो मे है रहता..
और कोई......!!!!
बिन खाये शाम कि रोटी
खुले आशमान के निचे सोता....
काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता...
सोचो फिर दुनिया कैसे होता ?
एक समान हर कोई होता...


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