Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76265 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बसंत ऋतू पर मेरी यह कविता -

आहा रे बसंत आ गैयी
सब जाग छा रेई बहार !

डाना काना लाल पिगली है गैयी
बोट डाव है गैयी जुवान !! ...

कति सरसों क खेत पिगल है  रेई
बुराश फूलो ले जंगल है गैयी लाल ....

मंद मंद ब्याव चलन रेई !
मणि ठण्ड, मणि गरम!! ...

पोथ पथील फसक करण रेई,
बल आ गियो बल ऋतू राज !! ..

गियो खेतो में दौन रेई हाव!
आह से कस रंगत आ गयी। ..

ऋतू राज आ रेई ..
बसंत ऋतू छा रेई ...

माही सिंह मेहता
मेरापहाड़ फोरम डॉट काम




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम पियो कोक, पेप्सी ठंडा
मुझे तो पीना है धारे या नौले का पानी !!

तुम खाओ चौमिन, मैगी और पिज्जा
मुझे तो खाना है आलू के गुडके और पहाड़ का रायता !!

तुम खाओ आइस क्रीम, बर्फी
मुझे तो खाना है बाल मिठाई!!

तुम आनंद लो ऐ सी की हवा की।
मुझे पसंद हिमालय की हवा !!

तुम रहो ऊँचे ऊँचे फ्लैट में
मुझे तो रहना है हिमालय की गोद में .

 

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