किसी ज़माने में उत्तराखंड एक देवभूमि के नाम से जानी जाती थी. आज यह बात बिलकुल बदल गयी है . शिक्षा दर जरूर बढ़ी परन्तु अन्धविश्वास बिलकुल नहीं घटा अपितु बढ़ गया .मंदिरों में पशु बलि खूब हो रही है. शराब और धुम्रपान बढ़ते ही जा रहा है. भ्रष्ठाचार चारों ओर फ़ैल गया है. हाल ही में मैं उत्तराखंड गया. मुझे कई बुजर्गों ने बताया, "कांडपाल जी उत्तराखंड अब देवभूमि नहीं रहा. ये अब अन्धविश्वास भूमि, शराबभूमि, धुम्रपान भूमि बन गया है. परदेश गए पढ़े लिखे लोग जब छुट्टी मनाने यहाँ आते हैं तो वे भी जागर ,मशान, हंकार,भूत आदि के चक्करों में मंदिरों को लहूलुहान करते हुए खूब बकरियां काटते हैं. विरोध करने के बजाय अन्धविश्वास में शामिल होना अच्छी बात नहीं है.पूजा करने का यह कौन सा तरीका है जो पशुओं का खून बहाया जाता है.यह सब कुछ लोंगो ने अपने खाने पीने का धंधा बना रखा है. इस पूजा में अब तो शराब भी मगाई जाने लगी है. " मैं इस कालम के माध्यम से सभी से अनुरोध करना चाहूँगा कि आप चाहें तो मांश खाएं परन्तु भगवन की पूजा के नाम पर पशु बलि न दें. पूजा तो हाथ जोड़कर ही हो जाती है. बलि पर खर्च होने वाले धन को अपने आसपडोस के स्कूल में चटाई,दरी,या पानी की व्यवस्था पर खर्च करें.या गाँव में एक पुस्तकालय की व्यवस्था करने का प्रयास करें.या गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करादें. इस से बढ़ कर पूजा और क्या हो सकती है. देवभूमि के बारे ye shabd dukhi तो करते हैं परन्तु यह सत्य है. जमीन में जाकर देखें आप को वास्तविकता नजर आएगी.