Author Topic: श्री पूरन चंद कांडपाल, उत्तराखंड मूल के प्रसिद्ध साहित्यकार एव कवि : PC Kandpal  (Read 17394 times)

narayankamla

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श्री पूरन चंद कांडपाल, उत्तराखंड मूल के प्रसिद्ध साहित्यकार एव कवि

Dosto,

We are going to introduce you one of the famous Poet of Uttarakhand origin. Shree Poor Chand Kand Pal Ji who has written various books on Uttarakhand related issues as well as other social issues. He resides in Delhi and his writing has been highly acclaimed by people. He also got several awards on his writing.  Apart form his legacy with literature and poem  writing, he is also a social worker.

Here is the details of the books written by him.

BOOKS WRITTEN-

Jagar    (Upanyas)
Banjar Mein Aankur (Upanyas)
Kargil Ke Ranbankure (kargil yudh 1999)
Ye Nirale (Kuchh Maha Manav Jeevanee)
Uttrakhand Ek Darpan (Uttrakhand ki tasveer)
Smriti Lahar (Kavita Sangraha)
Pokhar Ke Moti (Kahani Sangraha)
Bachpan Ki Buniyad (Bal Sandesh)
Sharab Dhumrapan Aur Aap (Swasth Shiksha)
India Gate Ka Shaheed (Lekh Sangraha)
Ukao Horao (Kumaouni Geet-Kavita'Vyanga
Bhal Karau Chyala Tweel (Kumaouni Kahani Sangraha)

We will also put some the highlights of his books under this thread.

Regards

M S Mehta


narayankamla

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Mehtaji

Puran Chand Kandpalji ke sahitya ke bare mai aape
kaphi achhi jankari  di, P C kandpalji ne kaphi kitape likhi and
ham savi ke aagarh par unhoone pahari bhasa mai bhi kithabe likha
sooru kar dia and  jo ki pahar ke liye yek achhi uplbhi hai.

Kandpalji aur mai
Rohini Sector-15
Delhi  mai rahte hai

Narayan Singh

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Narayan ji is jaankaari ke liye.

Mehtaji

Puran Chand Kandpalji ke sahitya ke bare mai aape
kaphi achhi jankari  di, P C kandpalji ne kaphi kitape likhi and
ham savi ke aagarh par unhoone pahari bhasa mai bhi kithabe likha
sooru kar dia and  jo ki pahar ke liye yek achhi uplbhi hai.

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Narayan Singh


Pooran Chandra Kandpal

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 किसी ज़माने में उत्तराखंड एक देवभूमि के नाम से जानी जाती थी. आज यह बात बिलकुल बदल गयी है . शिक्षा दर जरूर बढ़ी परन्तु अन्धविश्वास बिलकुल नहीं घटा अपितु बढ़ गया .मंदिरों में पशु बलि खूब हो रही है. शराब और धुम्रपान बढ़ते ही जा रहा है. भ्रष्ठाचार चारों ओर फ़ैल गया है. हाल ही में मैं उत्तराखंड गया. मुझे कई बुजर्गों ने बताया, "कांडपाल जी उत्तराखंड अब देवभूमि नहीं रहा. ये अब अन्धविश्वास भूमि, शराबभूमि, धुम्रपान भूमि बन गया है. परदेश गए पढ़े लिखे लोग जब छुट्टी मनाने यहाँ आते हैं तो वे भी जागर ,मशान, हंकार,भूत आदि के चक्करों में मंदिरों को लहूलुहान करते हुए खूब बकरियां काटते हैं. विरोध करने के बजाय अन्धविश्वास में शामिल होना अच्छी बात नहीं है.पूजा करने का यह कौन सा तरीका है जो पशुओं का खून बहाया जाता है.यह सब कुछ लोंगो ने अपने खाने पीने का धंधा बना रखा है. इस पूजा में अब तो शराब भी मगाई जाने लगी है. " मैं इस कालम के माध्यम से सभी से अनुरोध करना चाहूँगा कि आप चाहें तो मांश खाएं परन्तु भगवन की पूजा के नाम पर पशु बलि न दें. पूजा तो हाथ जोड़कर ही हो जाती है. बलि पर खर्च होने वाले धन को अपने आसपडोस के स्कूल में चटाई,दरी,या पानी की व्यवस्था पर खर्च करें.या गाँव में एक पुस्तकालय की व्यवस्था करने का प्रयास करें.या गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करादें. इस से बढ़ कर पूजा और क्या हो सकती है. देवभूमि के बारे ye  shabd dukhi  तो करते हैं परन्तु यह सत्य है. जमीन में जाकर देखें आप को  वास्तविकता नजर आएगी. 

Devbhoomi,Uttarakhand

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कांडपाल जी अपने सही कहा,लेकिन उत्तराखंड आज भी देवभूमि है लेकिन इस देवभूमि मैं रहने वाले देव गायब हो गए,और कुछ ऐसे दानवों ने जन्म ले लिया है,जो कि-इस देवभूमि को दानवभूमि मैं तबदील करने मैं भरपूर प्रयाश कर रहे हैं!
जय देवभूमि उत्तराखंड

Pooran Chandra Kandpal

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प्रिय उत्तराखंडी भाईयो,
               
                                       राजधानी गैरसैण नि गयी, रैगे देहरादून
                      राजधानी आयोगक कान में घुसिगिन पिरुवाक बून
                      मुज्जफ़्फ़र्नगराक पिशाचों पर नि लाग कानून
                      शहीद पुछेन्राई किलै बहा हमुल आपण खून
                      को सुनूँ उनरी जै पर बीती
                      को हौ शहीद मेंकें के खबर न्हीती

              (राजधानी गैरसैण नहीं गयी, धोखा दिया. नरपिशाचों को सजा नहीं दी, धोखl
किया,शहीद पूँछ रहे हैं हमने अपना खून क्यों बहाया? आज शहीद परिवारों पर क्या बीत रहीहोगी इसकी खबर किसे है ?)
pooran chandra kandpal    02/10/2009

Pooran Chandra Kandpal

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                                                        रूढिवाद को समझो

                रक्षाबंधन के दिन (५ अगस्त) बग्वाल मेला चम्पावत में देविधूरा मंदिर प्रांगन में खूनी पाषाण युद्घ में लगभग चार दर्जन लोग घायल हो गए. मेला बंद के बाद भी वहां पत्थरबाजी चलती रही. कुछ लोग इस खून खराबे को महिमामंडित करते हैं.  कुछ वर्ष पूर्व तक जिला अल्मोडा की तहसील रानीखेत पट्टी चौगाँव के ग्राम सिलंगी नामक स्थान पर भी ऐसा ही पत्थर मार मेला लगता था.  स्थानीय कई गाँव दो धडों में बंट जाते थे और बैशाखी के दिन संध्या से पूर्व दोनों ऑर से भंयंकर पत्थर बाजी होती थी.  खून बहता था और अंग भंग भी हो जाते थे. यह  खून देवी के नाम पर बहाया जाता था.
                           
                             शिक्षा के प्रसार के साथ स्थानीय लोगों ने इसे बंद करना चाहा तो इसके समर्थकों ने कहा 'खून नहीं बहा तो क्षेत्र में बीमारी फ़ैल जायेगी.  अंततः शिक्षा की जीत हुयी, वहां पर पत्थर बाजी बंद करके लोकगीत गाए जाने लगे.  समय के साथ यह बात आई गयी हो गयी और किसी को कोई दुःख बीमारी नहीं हुयी.

                             हमारे देश में ग्रामीण धरातल पर मेले लगते हैं, वहां खेल कूद होते हैं.  चम्पावत में भी इस पत्थर बाजी की जगह खेलकूद होने चाहिए.  खामों को विभिन्न खेलों की टीमें बनानी चाहिए और जीतने वाली टीम को ट्रोफी दे जानी चाहिए.  हम इस पत्थर बाजी कब तक खून बहाते रहेंगे.  देवी देवताओं के नाम पर कभी पशुबलि , कभी पत्थर बाजी, कभी जागर मशान अनुचित है.  इन रुदिवादी परम्पराओं पर हमें मंथन करना चाहिए. देवी को खुश करने के लिए मनुष्य का खून चढाना स्वयं देवी देवताओं को भी अच्छा नहीं लगता होगा.  इस बात को समझना होगा की अच्छे कार्य करने और प्रार्थना करने से ही देवी देवता प्रसन्न होते हैं.

                                                                                                                                                                           पूरन चन्द्र कांडपाल                                                                                   30/08/2009

Pooran Chandra Kandpal

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चारू जी के लेख उत्तराखंड के धरातल से जुड़े होते हैं. में कई बार चारू जी से मिला हूँ.
        उनके मन मस्तिष्क सदैव राज्य की पीडा रहती है. २ अक्टूबर २००९ को भी मुझे चारू जी जंतर मंतर
     पर मिले थे.  हम सब कई लोग एक साथ शहीदों की श्रधांजलि सभा में सम्मिलित हुए.  सभा का आयोजन
     प्यारा उत्तराखंड के संपादक देव सिंह रावत जी ने किया था.  इस सभा में उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण
     बनाने की बात बड़ी प्रखरता से उठाई गयी. गाँधी जी और उत्तराखंड के शहीदों  को याद करते हुए सभा में
     आये सभी लोगों ने काले रिबन बाँध कर रोष प्रकट किया.

                                                     03/10/2009                                        पूरन  चन्द्र कांडपाल




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Very well written Kandapal Ji.

Only education can eradicate such things from society.

                                                        रूढिवाद को समझो

                रक्षाबंधन के दिन (५ अगस्त) बग्वाल मेला चम्पावत में देविधूरा मंदिर प्रांगन में खूनी पाषाण युद्घ में लगभग चार दर्जन लोग घायल हो गए. मेला बंद के बाद भी वहां पत्थरबाजी चलती रही. कुछ लोग इस खून खराबे को महिमामंडित करते हैं.  कुछ वर्ष पूर्व तक जिला अल्मोडा की तहसील रानीखेत पट्टी चौगाँव के ग्राम सिलंगी नामक स्थान पर भी ऐसा ही पत्थर मार मेला लगता था.  स्थानीय कई गाँव दो धडों में बंट जाते थे और बैशाखी के दिन संध्या से पूर्व दोनों ऑर से भंयंकर पत्थर बाजी होती थी.  खून बहता था और अंग भंग भी हो जाते थे. यह  खून देवी के नाम पर बहाया जाता था.
                           
                             शिक्षा के प्रसार के साथ स्थानीय लोगों ने इसे बंद करना चाहा तो इसके समर्थकों ने कहा 'खून नहीं बहा तो क्षेत्र में बीमारी फ़ैल जायेगी.  अंततः शिक्षा की जीत हुयी, वहां पर पत्थर बाजी बंद करके लोकगीत गाए जाने लगे.  समय के साथ यह बात आई गयी हो गयी और किसी को कोई दुःख बीमारी नहीं हुयी.

                             हमारे देश में ग्रामीण धरातल पर मेले लगते हैं, वहां खेल कूद होते हैं.  चम्पावत में भी इस पत्थर बाजी की जगह खेलकूद होने चाहिए.  खामों को विभिन्न खेलों की टीमें बनानी चाहिए और जीतने वाली टीम को ट्रोफी दे जानी चाहिए.  हम इस पत्थर बाजी कब तक खून बहाते रहेंगे.  देवी देवताओं के नाम पर कभी पशुबलि , कभी पत्थर बाजी, कभी जागर मशान अनुचित है.  इन रुदिवादी परम्पराओं पर हमें मंथन करना चाहिए. देवी को खुश करने के लिए मनुष्य का खून चढाना स्वयं देवी देवताओं को भी अच्छा नहीं लगता होगा.  इस बात को समझना होगा की अच्छे कार्य करने और प्रार्थना करने से ही देवी देवता प्रसन्न होते हैं.

                                                                                                                                                                           पूरन चन्द्र कांडपाल                                                                                   30/08/2009


 

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